जाग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

जाग ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ यज्ञ] यज्ञ । मख । उ॰—(क) शव कौन्हैं सो दैहैं आम । ता सैती तुम कीजौ जाव । वक्ष कियैं वंघ्कपुर जैहौ । तहाँ आइ मोकौं तुम पैही । —सूर॰, ९ ।२ । (ख) दच्छ लिए मुनि बोलि सब करब लदे ??? । नेवते सादर सकल सुरे जे पावत क्य वाज ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰— करना । —जागना । — जगना । उ॰—चहत महा मुनि जाग जयो । नीच निसाचर देत ?? ?? ?? ?? तयो । —तुलसी (शब्द॰) ।

जाग † ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ जगह]

१. जगह । स्कज । ?? । उ—(क) तुहिकाँ न मुहिकाँ कहीं ?? ?? ??, भाग कुंल और तोपखाना बाध व्यावा है । —सूदन (शब्द॰) । (ख) कुदरत वाकी भर रही रसनिधि लचही लाय । ईंधन बिन घनियौ रहै ज्यों पाहन में आग । —रसविधि (शब्द॰) ।

२. गृह । घर । मकान । —(डिं॰) ।

जाग ^३ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ जागना] जागने की क्रिया या भाव । जागरण । उ॰—घटती होइ जाहि ते अपनी ताको कीजै त्याग । धोखे कियो बास मन भीतर अव समझे भइ जाग ।—सूर (शब्द॰) ।

जाग ^४ संज्ञा पुं॰ [देश॰] वह कबूतर जो बिलकूल काले रंग का हो ।

जाग ^५ संज्ञा पुं॰ [अं॰ जक] जहाज का भांडाररक्षक ।