जिन
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]जिन ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. विष्णु ।
२. सूर्य ।
३. बुद्ध ।
४. जैनों के तीर्थंकर । यौ॰—जिन सदन = जिनसद्म । जैन मंदिर ।
जिन ^२ वि॰
१. जीतनेवाला । जयी ।
२. राग द्वेष आदि जीतनेवाला ।
३. वृद्ध [को॰] ।
जिन ^३ वि॰ [सं॰ यानि] 'जिस' का बहुवचन ।
जिन ^४ सर्व॰ [हिं॰] 'जिस' का बहुवचन ।
जिन ^५ संज्ञा पुं॰ [अ॰] भूत । मुहा॰—जिन का साया = जिन लगना । जिन चढ़ना, जिन सवार होना = क्रोध के आवेश में होना । क्रोधांध होना ।
जिन ^६ अव्य॰ [हिं॰ जनि] मत । उ॰—सोच करो जिन होहु सुखी मतिराम प्रवीन सबै नरनारी । मंजुल बंजुल कुंजन में घन, पुंज सखी ससुरारि तिहारी ।—मति॰ ग्रं॰, पृ॰ २९० ।
जिन ^७ संज्ञा पुं॰ [अं॰] एक प्रकार की शराब । उ॰—जिन का एक देग ।—वो दुनिया, पृ॰ १४२ ।
जिन बखसीसति सदा घमंडहि मूरखताई ।—श्रीधर पाठक (शब्द॰) ।