जुगुप्सा
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
जुगुप्सा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. निंदा । गर्हणा । बुराई ।
२. अश्रद्बा । घृणा । विशेष—साहित्य में यह बीभत्स रस का स्थायी भाव है और शांत रस का व्यभिचारी । पतंजलि के अनुसार शौच या शुद्धि लाभ कर लेने पर अपने अंगों तक से जो घृणा हो जाती है और जिसके कारण सांसारिक प्राणियों तक का संसर्ग अच्छा नहीं लगता, उसका नाम 'जुगुप्सा' है ।