झालर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

झालर ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ झल्लरी]

१. किसी चीज के किनारे पर शोभा के लिये बनाया, लगाया या टाँका हुआ वह हाशिया जो लबकता रहता है । विशेष— इसकी चौड़ाई प्रायः कम हुआ करती है और उसमें सुंदरता के लिये कुछ बेल बूटे आदि बने रहते हैं । मुख्यतः झालर कपड़े में ही होती हैं, पर दूसरी चीजों में भी शोभा के लिये झालर के आकार की कोई चीज बना या लगा लेते है । जैसे, गद्दी या तकिये की झलर, पंखे की झालर ।

२. झालर के आकार की या किनारे पर लटकती हुई कोई चीज ।

३. किनारा । छोर ।—(क्व॰) ।

४. झाँझ । झाल । उ॰— (क) सुन्न सिखर पर झालर झलकै बरसै अभी रस बुंद हुआ ।—कबीर श॰, भा॰ ३, पृ॰ १० । (ख) धुरत निस्सान तहँ गैब की झालरा गैव के वंट का नाद आवै ।— कबीर श॰, पृ॰ ८८ ।

५. घड़ियाल जो पूजा आदि के समय बजाया जाता है । उ॰— घटे क्रिया बाँभण, मिटे झालर परसाँदा । ईन प्रजा उपजे, निरख दुर रीत निसादा ।—रा॰ व॰, पृ॰ २० ।

झालर ^२ † संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का पकावान जिसे झलरा भी कहते है । उ॰— झालर माँड़े आए पोई । देखत उजर पाग जस घोई ।— जायसी (शब्द॰) ।