डग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

डग संज्ञा पुं॰ [हिं॰ डाँकना या स॰ दक्ष]

१. चलने में एक स्थान से पैर उठाकर दूसरे स्थान पर रखने की क्रिया की समाप्ति । कदम । उ॰—मुरि मुरि चितवति नंदगली । डग न परत ब्रजनाथ साथ बिनु, बिरह व्यथा मचली । —सूर (शब्द॰) । (ख) ज्यों कोउ दुरि चलन कौं करै । क्रम क्रम करि डग डग पग धरै ।—सूर॰, ३१३ । क्रि॰ प्र॰—पड़ना । मुहा॰—डग देना = चलने में आगे की ओर पैर रखना । उ॰— पुर ते निकसी रघुबीर बघु धरि धीर दियो मग ज्यों डग द्वै ।—तुलसी (शब्द॰) । डग भरना = चलने में आगे पैर रखना ।