डङ्क

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

डंक संज्ञा पुं॰ [सं॰ दंश या दंशी]

१. भिड़, बिच्छू, मधुमक्खी आदि कीड़ों के पीछे का जहरीला काँटा जिसे वे क्रोध में या अपने बचाव के लिये जीवों के शरीर में धँसाते हैं । उ॰— उलटिया सूर ग्रह डंक छेदन किया, पोखिया चंद्र तहाँ कला सारी ।—राम॰ धर्म॰, पृ॰ ३१६ । विशेष—भिड़, मधुमक्खी आदि उड़नेवाले कीड़ों के पीछे जो काँटा होता है, वह एक नली के रूप में होता है जिसमें होकर जहर की गाँठ से जहर निकलकर चुभे हुए स्थान में प्रवेश करता है । यह काँटा केवल मादा कीड़ों को होता है । क्रि॰ प्र॰—मारना ।

२. कलम की जीभ । निब ।

३. डंक मारा हुआ स्थान । डंक का घाव ।

डंक पु ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰, प्रा॰ डक्क ( = वाद्यविशेष) अथवा अनु॰] डमरू । डिगडिगी । उ॰—बाजीगर ने डंक बजाया । सब लोग तमाशे आया ।—कबीर मं॰, पृ॰ ३३८ ।