डाँटना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

डाँटना ^१ क्रि॰ स॰ [हिं॰ डाँट + ना (प्रत्य॰) अथवा सं॰ दण्डन]

१. डराने के लिये क्रोधपूर्वक कड़े स्वर में बोलना । घुड़कना । डपटना । उ॰—(क) जैसे मोन किलकिला दरसत, एसैं रहौ प्रभु डाँटत । पुनि पाछै अधसिंधु है सूर खाल किन पाटत ।—सूर, १ ।१०७ । (ख) जानै ब्रह्मा सो विप्रवर आँखि दिखावहि डाँटि ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) सोई इहाँ जेंवरी बाँधे, जननि साँटि लै डाँटै ।—सूर॰ १० ।३४६ । संयो॰ क्रि॰—देना ।

२. ठाठ से वस्त्र आदि पहनना । दे॰ 'डाटना'—६ । उ॰— चाकर भी वर्दी डाँटे हैं ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ ३६ ।