ढीला

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ढीला वि॰ [सं॰ शिथिल, प्रा॰ सिठिल]

१. जो कसा या तना हुआ न हो । जो सब ओर से खूब खिंचा न हो । (डोरी, रस्सी तागा आदि) जिसके ठहरे या बँधे हुए छोरों के बीच झोल हो । जैसे, लगाम ढीली करना, ड़ोरी ढोली करना, चारपाई (की बुनावट) ढीली होना । मुहा॰— ढीला छो़ड़ना या देना = बंधन ढीला । करना । अंकुश न रखना । मनमाना इधर उधर करने के लिये स्वच्छद करना ।

२. जो खूब कसकर पकड़ा हुआ न हो । जो अच्छी तरह जमा या बैठा न हो । जो दृढ़ता से बँधा या लगा हुआ न हो । जैसे, पेंच ढीला होना, जंगले की छड़ ढीली होना ।

३. जो खूब कसकर पकड़े हुए न हो । जैसे, मुट्ठी ढीली करना, गाँठ ढीली होना, बंधन ढीला होना ।

४. जिसमें किसी वस्तु को डालने से बहुत सा स्थान इधर उधर छूटा हो । जो किसी सामनेवाली चीज के हिसाब से बड़ा या चौड़ा हो । फर्राख । कुशादा । जैसे, ढीला जूता, ढीला अंग, ढीला पायजामा ।

५. जो कड़ा न हो । बहुत गीला । जिसमें जल का भाग अधिक हो गया हो । पनीला । जैसे, रसा ढीला करना, चाशनी ढीली करना ।

६. जो अपने हठ पर अड़ा न रहे । पयत्न या संकल्प में शिथिल । जैसे,—ढीले मत पड़ना, बराबर अपने रुपए का तकाजा करते रहना । क्रि॰ प्र॰—पड़ना ।

७. जिसके क्रोध आदि का वेग मंद पड़ गया गो । धीमा । शांत नरम । जैसे,— जरा भी ढीले पड़े कि वह सिर पर चढ़ जायगा । क्रि॰ प्र॰—पड़ना ।

८. मंद । सुस्त । धीमा । शिथिल । जैसे, उत्साह ढीला पड़ना । मुहा॰— ढीली आँख = मंद मंद दृष्ठि । अधखुली आँख । रसपूर्ण या मदभरी चितवन । उ॰— देह लग्यो ढिग गेहपति तऊ नेह मिरबाहि । ढीली आँखियन ही इते गई कतखियन चाहि ।— बिहारी (शब्द॰) ।

९. मट्ठर । सुस्त । आलसी । कहिल ।

१०. जिसमें काम का वेग कम हो । नपुंसक ।