तुरई

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तुरई

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

तुरई ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ तूर( = तुरही बाजा)] एक बेल जिसके लंबे फलों की तरकारी बनाई जाती है । विशेष—इसकी पत्तियाँ गोल कटावदार कदुदू की पत्तियोँ से मिलती जुलती होती हैं । यह पौधा बहुत दिनों तक नहीं रहता । इसे पानी की विशेष आवश्यकता होती है, इससे यह बरसात ही में विशेषकर बोया जाता है और बरसात ही तक रहता है । बरसाती तुरई छप्परों या टट्टियों पर फैलाई जाती है, क्योंकि भूमि में फैलाने से पत्तियों और फलों के सड़ जाने का डर रहता है । गरमी में भी लोग क्यारियों में इसे बोते हैं और पानी से तर रखते हैं । गरमी से बचाने पर यह बेल जमीन ही में फैलती और फलती है । तुरई के फूल पीले रंग के होते हैं और संध्या के समय खिलते हैं । फल लंबे लंबे हाते हैं जिनपर लंबाई के बल उभरी हुई नसों को सीधी लकीर समान अंतर पर होती हैं । मुहा॰—तुरई का फूल सा = हलकी वा छोटी मोटी चीज की तरह जल्दी खतम या खर्च बो जानेवाला । इस प्रकार चटपट चुक जाने या खर्च जानेवाला कि मालूम न हो । जैसे-तुरई के फूल से ये सौ रुपए देखते देखते उठ गए ।

२. उक्त बेल का फल ।

तुरई ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'तुरही' ।