थूहर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

थूहर संज्ञा पुं॰ [सं॰ स्थूण (= थूनी)] एक छोटा पेड़ जिसमें लचीली टहनियाँ नहीं होतीं, गाँठों पर से गुल्ली या डंडे के आकार के डंठल निकालते हैं । उ॰—थूहरों से सटे हुए पेड़ और झाड़ हरे, गोरज से धूम ले जो खड़े हैं किनारे पर ।— आचार्य॰, पृ॰ १९८ । विशेष—किसी जाति के थूहर में बहुत मोटे दल के लंबे पत्ते होते हैं और किसी जाति में पत्ते बिलकुल नहीं होते । काँटे भी किसी में होते हैं किसी में नहीं । थूहर के डंठलों और पत्तों में एक प्रकार का कड़ुआ दूध भरा रहता है । निकले हुए डंठलों के सिरे पर पीले रंग के फूल लगते हैं जिनपर आवरणपत्र या दिउली नहीं होती । पुं॰ और स्त्री॰ पुष्प अलग अलग होते हैं । थूहर कई प्रकार के होते है—जैसे, काँटेवाला थूहर, तिधारा थूहर, चौधारा थूहर, नागफनी, खुरसानी, थूहर विलायती थूहर, इत्यादि । खुरासानी थूहर का दूध विषैला होता है । थूहर का दूध औषध के काम में आता है । थूहर के दूध में सानी हुई बाजरे के आटे की गोली देने से पेट का दर्द दूर होता है और पेट साफ हो जाता है । थूहर के दूध में भिगोई हुई चने की दाल (आठ या दस दाने) खाने से अच्छा जुलाब होता है और गरमी का रोग दूर होता है । थूहर की राख से निकाल हुआ खार भी दवा के काम में में आता है । काँटेवाले थूहर के पत्तों का लोग अचार भी डालते हैं । थूहर का कोयला बारूद बनाने के काम में आता है । वैद्यक में थूहर रेचक, तीक्ष्ण, अग्निदीपक, कटु तथा शूल, गुल्म, अष्ठी, वायु, उन्माद, सूजन इत्यादि को दूर करनेवाला माना जाता है । थूहर को सेहुड़ भी कहतै हैं । पर्या॰—स्नुही । समंतगुग्धा । नागद्रु । महावृक्षा । सुधा । वज्रा । शीहुंडा । सिहुंड़ । दंडवृक्षक । स्नुक् । स्नुषा । गुड । गुडा । कृष्णासार निस्त्रिंशपत्रिका । नेत्रारि । कांडशाख । सिंहतुंड । कांडरोहक ।