दंडकला

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

दंडकला संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ दण्डकला] एक छंद जिसमें १०, ८ और १४ के विराम से ३२ मात्राएँ होती हैं । इसमें जगण न आना चाहिए । जैसे—फल फूलनि ल्यावै, हरिहिं सुनावै, है या लायक भोगन की । अरु सब गुन पूरी, स्वादन रूरी, हरनि अनेकन रोगन की ।