दंडी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

दंडी संज्ञा पुं॰ [सं॰दण्डिन्]

१. दंड धारण करनेवाला व्यक्ति ।

२. यमराज ।

३. राजा ।

४. द्वारपाल ।

५. वह संन्यासी जो दंड और कमंडलु धारण करे । विशेष—ब्राह्मण के अतिरिक्त और किसी को दंडी होने का अधिकार नहीं है । यद्यापि पिता, माता, स्त्री, पुत्र आदि के रहते भी दंड लेने का निषेध है, तथापि लोग ऐसा करते हैं । मंत्र देने के पहले गुरु शिष्य होनेवाले के सब संस्कार (अन्न- प्राशन आदि) फिर से करते हैं । उसकी शिखा मूँड़ दी जाती है और जनेऊ उतारकर भस्म कर दिया जाता है । पहला नाम भी बदल दिया जाता है । इसके उपरांत दशाक्षर मंत्र देकर गुरु गेरुवा वस्त्र और दंड कमंडलु देते हैं । इन सबको गुरु से प्राप्त कर शिष्य दंडी हो जाता है और जीवनपर्यत कुछ नियमों का पालन करता है । दंडी लोग गेरुआ वस्त्र पहनते हैं, सिर मुड़ाए रहते हैं और कभी कभी भस्म और रुद्राक्ष भी धारण करते हैं । दंडी लोग अग्नि और धातु का स्पर्श नहीं करते, इनसे अपने हाथ से रसोई नहीं बना सकते । किसी ब्राह्मण के घर से पका भोजन माँगकर खा सकते हैं । दंडियों के लियो दो बार भोजन करने का निषेध है । इन सब नियमों का बाराह वर्ष तक पालन करके अंत में दंड को जल में फेंककर दंडी परमहंस आश्रय को प्राप्त करता है । दंडियों के लिये निर्गुण ब्रह्म की उपासना की व्यवस्था है । जिनसे यह उपसना न हो सके वे शिव आदि की उपासन ा कर सकते हैं । मरने पर दंडियो के शव का दाह नहीं होता, या तो शव मिट्टी में गाड़ दिया जाता है या नदी में फेंक दिया जाता है । काशी में बहुत से दंडी दिखाई पड़ते हैं ।

६. सूर्य के एक पार्श्वचर का नाम ।

७. जिन देव ।

८. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम ।

९. दमनक वृक्ष । दौने का पौधा ।

१०. मंजुश्री ।

११. शिव । महादेव ।

१२. नाविक । केवट (को॰) ।

१३. संस्कृत के प्रसिद्ध कवि जिनके बनाए हुए दा ग्रंथ मिलते है 'दशकुमाररचित' और 'काव्यादर्श' । ऐसा प्रसिद्ध है कि दंडी ने तीन ग्रंथ लिखे थे दशकुमारचरित (गद्यकाव्य) काव्यदर्श (लक्षण ग्रंथ) और अवंतिसुंदरी कथा, पर तीसरे का पता बहुत दिनों तक नहीं लगा था । इधर उक्त ग्रंथ प्राप्त हो गया है और प्रकाशित भी है । अनेक लोगों का मत है कि ईसा की छठी शताब्दी में दंडी हुए थे । 'शंकरदिग्विजय में 'वाणयमयूरदंडि मुख्यान्' से ज्ञात होता है कि ये वाण और मयूर के समकालीन थे । इतना तो निश्चय है कि ये कालिदास और शूद्रक आदि के पीछे के हैं । इनकी वाक्य- रचना आडंबरपूर्ण है ।