दम

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

दम ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. दंड जो दमन करने के लिये दिया जाता है । सजा ।

२. ब्राह्मोद्रियों का दमन । इंद्रियों को वश में रखना और चित्त के बुरे कामों में प्रवृत्त न होने देना ।

३. कीचड़ ।

४. घर ।

५. एक प्राचीन महर्षि जिनका उल्लेख महाभारत में हे ।

६. पुराणानुसार मरुत राजा को पोत्र जो वभ्रु की कन्या इंद्रसेना के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । विशेष— कहते हैं कि ये नो वर्ष तक माता के गर्भ में रहें थे । इनके पुरोहित ने समझा था कि जिसकी जननी को नौ बर्ष तक इस प्रकार इंद्रियदमन करना पड़ है वह बालक स्वयं भी बहुत हो दमनशील होगा । इसी लिये उसने इनका नाम दम रखा था । ये वेद वेदांगों के बहुत अच्छे ज्ञाता और धनुर्विद्या में बड़े प्रवीण थे ।

७. बुद्ध का एक नाम ।

८. भीम राजा के एक पुत्र और दमयंती के एक भाई का नाम ।

९. बिष्णु ।

१०. दबाव ।

दम ^२ संज्ञा पुं॰ [फा़॰]

१. साँस । श्वस । क्रि॰ प्र॰—आना ।—चलना ।—जाना ।—लेना । मुहा॰—दम अटकना = साँस रुकना, विशेषतः मरने के समय साँस रुकना । दम उखड़ना = दे॰ 'दम अटकना' । दम उलटना = (१) व्याकुलता होना । घबराहट होना । जी घबराना । (२) दे॰ 'दम घुटना' । दम खाना = दे॰ 'दम लेना' । दम खिंचना = दे॰ 'दम अटकना' । दम खींचना' = (१) चुप रह जाना । न बोलना । (२) साँस खींचना । साँस ऊपर चढ़ाना । दम घुटना = हवा की कमी के कारण साँस रुकना । साँस न लिया जा सकता । दम घोंटना = (१) साँस न लेने देना । किसी को साँस लेने से रोकना । (२) बहुत कष्ट देना । दम घोंटकर मारना = (१) गला दबाकर मारना । (२) बहुत कष्ट देना । दम चढ़ना = दे॰ 'दम फूलना' । दम चुराना = जान बूझकर साँस रोकना । विशेष— यह क्रिया विशेषतः मक्कार जानवर करते हैं । बंदर मार खाने के समय इसलिये दम चुराता है कि जिसमें मारन े वाला उसे मुरदा समझ ले । लोमड़ी कभी कभी अपने आप को मरी हुई जतलाने के लिय दम चुराती है । साज चढ़ाने के समय मक्कार घोड़े भी साँस रोककर पेट फुला लेते है जिसमें पेटी या बंद अच्छी तरह न कसा जा सके । दम टूटना = (१) साँस बंद हो जाना । प्राण निकलना । (२) दौड़ने या तैरने आदि के समय इतना अधिक हाँफने लगना कि जिसमें आगे दौड़ा या तैरा न जा सके । दम तोड़ना = मरतें समय झटके से साँस लेना । अंतिम साँस लेना । दम पचना = निरंतर परिश्रम के कारण ऐसा अभ्यास होना जिसमें साँस न फूले ।— (कुश्तीबाज) । दम फूलना = (१) अधिकर परिश्रम के कारण साँस का जल्दी जल्दी चलना । हाँफना । (२) दमे के रोग का दौरा होना । दम बंद करना = बलपूर्वक किसी को बोलने आदि से रोकना । दम बंद होना = भय या आंतक आदि के कारण बिलकुल चुप रह जाना । दम भरना = (१) किसी के प्रेम अथवा मित्रता आदि का पक्का भरोसा रखना और समय समय पर अभिमानपूर्वक उसका वर्णन करना । जैसे,—(क) वे उनकी मुहब्बत का दम भरते हैं । (ख) हम आपकी दोस्ती का दम भरते है । (२) परिश्रम या दौड़ने आदि के कारण साँस फूलने लगता और थकावट आ जाना । परिश्रम के कारण थक जाना । जैसे,— इतनी सीढ़ियाँ चढ़ने में हमारा दम भर गया । (३) भालू का हाथ या लकड़ी मुहँ पर रखकर साँस खींचना । इस क्रिया से उसका क्रोध शांत होता अथथा भोजन पचना है (कलंदर) । (४) किसी को कुश्ती लड़ाकर थकाना (पहल— वानों की परीक्षा) । दम मारना = (१) विश्राम करना । सुस्ताना । (२) बोलना । कुछ कहना । चूँ करना । जैसे,— आपकी क्या मजाल जो इस बात में दम भी मार सकें । (३) हस्तक्षेप करना । दखल देना । जैसे,— इस जगह कोई दम मारनेवाला भी नहीं हैं । दम लेना = विश्राम करना । ठहरना । सुस्ताना । दम साधाना = (१) श्वास की गति को रोकना । साँस रोकने का अभ्यास करना । जैसे, प्राणायाम करनेवालों का दम साधना, गोता लगनेवालों का दम साधना । (२) चुप होना । मौन रहना । जैसे—(क) इस मामले में अब हम भी दम साधेंगे । (ख) रुपयों का नाम सुनते ही आप दम साध गए ।

२. नशे आदि के लिये साँस के साथ धूआँ खींचने की क्रिया । क्रि॰ प्र॰—खींचना । मुहा॰— दम मारना = गाँजे या चरस आदि को चिलम पर रखकर उसका धूआँ खींचना । दम लगना = गाँजे या चरस का धूँआँ खींचना । दम लगाना = दे॰ 'दम मारना' ।

३. साँस खींचकर जोर से बाहर फेँकने या फूँकने की क्रिया । मुहा॰— दम मारना = मंत्र आदि की सहायता से झाड़ फूँक करना । दम फूँकना = किसी चीज में मुँह से हवा भरना । दम भरना = कबूतर के पोटे में हवा भरना ।

४. उतता समंम जितना एक बार साँस लेने में लगता है । लमहा । पल । मुहा॰— दम के दम = क्षण भर । थोड़ी देर । जैसे,—वे यहाँ दम के दम बैठे, फिर चले गए । दम पर दम = बहुत थोड़ी थोड़ी देर पर । हर दम । बराबर । जैसे,—दम पर दम उन्हें कै आ रही है । दम बदम = दे॰ 'दम पर दम' ।

५. प्राण । जान । जी । मुहा॰—दम उलझना = जी घबराना । व्याकुल होना । दम खाना = दिक करना । तंग करना । दम खुश्क होना = दे॰ 'दम सूखना' । दम पुराना = जी चुराना । जान बचाना । किसी बहाने से काम करने से अपने आपको बचाना । दम नाक में या नाक में दम आना = बहुत अधिक दुखी होना । बहुत तंग या परेशान होना । दम नाक में या नाक में दम करना अथवा लाना = बहुत कष्ट या दुःख देना । बहुत तंग या परेशान करना । दम निकलना = मृत्यु होना । मरना (किसी पर) दम निकलना = किसी पर इतना अधिक प्रेम होना कि उसके वियोग में प्राण निकलने का सा कष्ट हो । बहुत अधिक आसक्ति होना । जैसे,—उसी को देखकर जीने हैं जिसपर दम निकलना है । दम पर आ बनना = (१) जान पर आ बनना । प्राणभय होना । (२) आपत्ति आना । आफत आना । (३) हैरानी हीना । व्यग्रता होना । दम फड़क उठना या जाना = किसी चीज की सुंदरता या गुण आदि देखकर चित्त का बहुत प्रसन्न होना । जैसे,— उसकी कसरत देखकर दम फड़क गया । दम फड़कना = चित्त ता व्याकुल होना । बेचैनी होना । दम फना होना = दे॰ 'दम सूखना' । जैसे,— (क) देने के नाम तो उसका दम फना हो जाता है । दम में दम आना = घबराहट या भय का दूर होना । चित्ता स्थिर होना । दम में दम रहना या होना = प्राण रहना । जिंदगी रहना । दम सूखना = बहुत अधिक भय के कारण बिलकुल चुप हो जाना । बहुत डर के कारण साँस तक न लेना । प्राण सूखना । भय के मारे स्तब्ध होना । जैसे,— उन्हें देखते ही लड़के का दम सूख गाया ।

६. वह शक्ति जिससे कोई पदार्थ अपना अस्तित्व बनाए रखता और काम देता है । जीवनी शक्ति । जैसे,— (क) इस छाते में अब बिल्कुल दम नहीं हैं । (ख) इस मकान में कुछ दम तो हैं ही नहीं, तुम इसे लेकर क्या करोगे । यौ॰—दमदार = (१) जिसमें जीवनी शक्ति यथेष्ट हो ।(२) जमबूत । दृढ़ ।

७. व्यक्तित्व । जैसे, आपके ही दम से ये सब बातें हैं । मुहा॰— (किसी का) दम गनीमत होना = (किसी के) जीवित रहने के कारम कुछ न कुछ अच्छी बातों का होता रहना । गई बीती दशा में भी किसी के कार्यों का ऐसा होना जिसमें उसका आदर हो सके ।जैसे—इस शहर में अब तो और कोई पंड़ित नहीँ रहा, पर फिर भी आपका दम गनी मत है ।

८. संगीत में किसी स्वर का देर तक उच्चारण ।

दम ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰] दरी बुननेबालों की एक प्रकार की तिकोनी कमाची जिसमें सवा गज की तीन लकड़ियाँ एक साथ बँधी रहती है । यै करघे में पड़ी रहती है और उसमें जीती बँधी रहती है जौ पैर के अँगूठे में बाँध दी जाती है । बुनने के समय इस पैर से नीचे दबाते हैं ।

दम ^४ संज्ञा पुं॰ [देश॰] झोपड़ । छप्पर । ब॰— ये अपनी बस्ती को विश् कहते थे और उनके भीतर इनके झोपड़े दम और पूः कहलाते थे ।— प्रा॰ भा॰ प॰, पृ॰ ९६ ।