दाव

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

दाव ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वन । जंगल ।

२. वन की आग ।

३. आग । अग्नि ।

४. जलन । ताप । कष्ट । पीड़ा ।

दाव ^२ संज्ञा पुं॰ [देश॰]

१. एक प्रकार का हथियार ।

२. एक पेड़ का नाम । दे॰ 'धावरा' ।

दाव ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ दावँ]

१. अवसर । सुयोग । उ॰— ले सँभारि सँवारि आपुहिं भिलहि नहिं फिर दाव ।—जग॰ बानी, पृ॰ ३५ । †

२. रिक्त स्थान । जगह । दावँ ।

३. छल । कपट । इष्टसाधन की कुटिल युक्ति या चालबाजी । यौ॰—दावपेंच = दावँपेंच । चालबाजी । उ॰— सारे दावपेच खुले पेचीदगी आने पर । यार गिरपतार हुआ खून के बहाने पर ।—बेला, पृ॰ ९१ । मुहा॰— दाव पेंच चलना = एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिये चालें चलना । चतुरता की चालें चलना । उ॰— वाह किबला, आपके फेजाने सुहवत से हस पोख्ता मगज हो गए हैं ऐसे कच्चे नहीं कि हमपर किसी का दाव पेंच चले ।— फिसाना॰ भा॰ १, पृ॰ ९ ।

४. कुअवसर । बुरा मौका । उ॰— जिससे सुंदरदास जी के मठ वा असथल को बहुत भारी नुकसान पहुँचने का दाव व संभावना का रूप हो गयै हैं ।— सुंदर ग्रं॰ (जी॰), भा॰ १ पृ॰ १८६ ।