नाका

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

नाका ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ नाकना]

१. किसी रास्ते आदि का वह छोर जिससे होकर लोग किसी ओर जाते मुड़ते, निकलते या कहीं घुसते है । प्रवेशद्वार । मुहाना । उ॰—(क) हरीचंद तुम बिनु को रोकै ऐसे ठग को नाका ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ६५० ।

२. वह प्रधान स्थान जहाँ से किसी नगर, बस्ती आदि में जाने के मार्ग का आरंभ होता है । गली या रास्ते का आरंभस्थान । जैसे,—नाके नाके पर सिपाही तैनात थे कि कोई जाने न पावे । उ॰—अबकी होरी धूम मचैगी, गलिन गलिन अरु नाके नाके ।—घनानंद, पृ॰ ५८० । यौ॰—नाकाबंदी । नाकेदार ।

३. नगर, दुर्ग आदि का प्रवेशद्वार । फाटक । निकलने पैठने का रास्ता । जैसे, शहर का नाका । मुहा॰—नाका छेंकना या बाँधना = आने जाने का मार्ग रोकना ।

४. वह प्रधान स्थान या चौकी जहाँ निगरानी रखने, या किस ी प्रकार का महसूल आदि वसूल करने के लिये तैनात हो ।

५. सूई का छेद ।

६. आठ गिरह लंबा जुलाहों का एक औजार जिसमें ताने के तागे बाँधे जाते हैं ।

नाका ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ नक्र] मगर की जाति का एक जलजंतु । नक्र । दे॰ 'नाक' ।