नारद

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

नारद संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक ऋषि का नाम जो ब्रह्मा के पुत्र कहे जाते हैं । ये देवर्षि माने गए हैं । विशेष—वेदों में ऋग्वेद मंडल ८ और ९ के कुछ मंत्रों के कर्ता एक नारद का नाम मिलता है जो कहीं कण्व और कतहीं कश्यपवंशी लिखे गए हैं । इतिहास और पुराणों में नारद देवर्षि कहे गए हैं जो नाना लोकों में विचरते रहते हैं और इस लोक का संवाद इस लोक में दिया करते है । हरिवंश में लिखा है कि नारद ब्रह्मा के मानसपुत्र हैं । ब्रह्मा ने प्रजासृष्टि की आभिलाषा करके पहले मरीचि, अत्रि आदि को उत्पन्न किया, फिर सनक, सनंदन, सतातन, सनत्कुमार, स्कंद, नारद और रुद्रदेव उत्पन्न हुए (हरिवंश अ॰ १) । विष्णु पुराण में लिखा है कि ब्रह्मा ने अपने सब पुत्रों को प्रजासृष्टि करने में लगाया पर नारद ने कुछ बाधा की, इसपर ब्रह्मा ने उन्हें शाप दिया कि 'तुम सदा सब लोकों में मे घूमा करोगे; एक स्थान पर स्थिर होकर न रहोगे ।' महाभारत में इनका ब्रह्मा से संगीत की शिक्षा लाभ करना लिखा है । भागवत, ब्रह्मवैवर्त आदि पीछे के पुराणों में नारद के संबंध में लंबी चौ़ड़ी कथाएँ मिलती हैं । जैसे, ब्रह्मावैवर्त में इन्हें ब्रह्मा के कठ से उत्पन्न बताया है और लिखा है कि जब इन्होंने प्रजा की सृष्टि करना अस्वीकार किया तब ब्रह्मा ने इन्हों शाप दिया और गधमादत पर्वत पर उपवर्हण नामक गंधर्व हुए । ए क दिन इंद्र की सभा में रंभा का नाच देखते ये कामनीय हो गए । इसपर ब्रह्मा ने फिर शाप दिया कि 'तुम मनुष्य हो' । द्रुमिल नामक गोप की स्त्री कलावती पति की आज्ञा से ब्रह्मवीर्य की प्राप्ति के लिये निकली और उसने काश्यप नारद से प्रार्थना की । अंत में काश्यप नारद के वीर्यभक्षण से उसे गर्भ रहा । उसी गर्भ से गंधर्व देह त्याग नारद उत्पन्न हुए । पुराणों में नारद बड़े भारी हरिभक्त प्रसिद्ध हैं । ये सदा भगवान् का यश वीणा बजाकर गाया करते हैं । इनका स्वभाव कलहप्रिय भी कहा गया है इसी से इधर की उधर लगानेवाले को लोग 'नारद' कह दिया करते हैं ।

२. विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम (महाभारत) ।

३. एक प्रजापति का नाम ।

४. कश्यप मुनि की स्त्री से उत्पन्न एक गंधर्व ।

५. चौबीस बुद्धों में से एक ।

६. शाकद्वीप का एक पर्वत (मत्यस्य पु॰) ।

७. वह व्यक्ति जो लोगों में परस्पर झगड़ा लगाता हो । लड़ाई करनेवाला ।

८. जलद ।