नृग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

नृग संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक राजा जिन्हें गिरगिट योनि में रहकर कृत पाप का फल भोगना पड़ा था । विशेष—महाभारत में इनकी कथा इस प्रकार है—राजा नृग बड़े दानी थे । उन्होंने न जाने कितने गोदान आदि किए थे । एक बार उनकी गायों के झुंड में किसी एक ब्राह्मण की गाय आ मिली । राजा ने एक बार एक ब्राह्मण को सहस्त्र गो दान में दी जिनमें वह ब्राह्मणावाली गाय भी थी । ब्राह्मण ने जब अपनी गाय को पहचाना तब दोनों ब्राह्मण राजा नृग के पास आए । राजा नृग ने जिस ब्राह्मण को गाएँ दान में दी थीं उसे गाय बदल लेने के लिये बहुत समझाया पर उससे एक न मानी । अंत में वह दूसरा ब्राह्मण उदास होकर चला गया । जब राजा का परलोकवास हुआ तब उनसे यम ने कहा कि आपका पुण्य- फल बहुत है पर ब्राह्मण की गाय हरने का पाप भी आपको लगा है । चाहे पाप का फल पहले भोगिए, चाहे पुण्य का । राजा ने पाप का ही फल पहले भोगना चाहा अतः वे सहस्त्र वर्ष के लिये गिरागिट होकर एक कुएँ में रहने लगे । अंत में श्रीकृष्ण के हाथों से उनका उद्धार हुआ ।

२. मनु के पुत्र का नाम ।

३. यौधेय वंश का आदि पुरुष जो नृगा के गर्भ से उत्पन्न उशीनर का पुत्र था ।

४. परमात्मा (को॰) ।