पंघरना ‡ क्रि॰ अ॰ [हिं॰ पिघलना] द्रवित होना । पिघलना । भावाभिभूत होना । उ॰—तपा जी तुम्हारे बचन सुण कर मोम की न्याई पंघर गए हाँ जी ।—प्राण॰, पृ॰ २६२ ।