पंचमहायज्ञ

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पंचमहायज्ञ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पञ्चमहायज्ञ] स्मृतियों और गृह्य सूत्रों के अनुसार वे पाँच कृत्य जिनका नित्य करना गृहस्थों के लिये आवश्यक है । विशेष—गृहस्थों के गृहकार्य से पाँच प्रकार से हिंसा होती है जिसे धर्मशास्त्रों में 'पंचसूना' कहते हैं । इन्हीं हिंसाओं के पाप से निवृति के लिये धर्मशास्त्रों में इन पाँच कृत्यों का विधान है । वे कृत्य ये हैं (१) अध्यापन—जिसे ब्रह्मयज्ञ कहते हैं । संध्यावंदन इसी अध्यापन के अंतर्गत है । (२) पितृतर्पण—जिसे पितृयज्ञ कहते हैं । (३) होम—जिसका नाम देवयज्ञ है । (४) बलिवैश्वदेव वा भूतयज्ञ । (५) अतिथिपूजन—नृयज्ञ वा मनुष्ययज्ञ ।