पटच्चर

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पटच्चर संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. जीर्ण वस्त्र । पुराना कपड़ा । उ॰— तब लपेट तैलाक्त पटच्चर आग लगाई रिपुऔं ने ।—साकेत, पृ॰ ३९० ।

२. चोर । तस्कर ।

३. महाभारत और पुराणों मे वर्णित एक प्राचीन देश । विशेष—महाभारत के टिकाकार नीलकंठ के मत से यह देश प्राचीन चोल है । पर महाभारत सभापर्व में सहदेव का द्विग्विजय प्रकरण पढ़ने से इसका स्थान मत्स्य देश के दक्षिण चेदि के निकट कहीं पर जान पड़ता है । जैन हरिवंश के मत से यह मंत्र देश का ही अंशविशेष है ।