पटसन

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पटसन संज्ञा पुं॰ [सं॰ पाट + हिं॰ सं॰ शरण सन]

१. एक प्रसिद्ध पौधा जिसके रेशे से रस्सी, बोरे, टाट और वस्ञ बनाए जाते हैं । विशेष—यह गरम जलवायुवाले प्रायः सभी देशों में उत्पन्न होता है । इसके कुल ३६ भेद हैं जिनमें से ८ भारतवर्ष में पाए जाते हैं । इन ८ में से दो मुख्य हैं और प्रायः इन्हीं की खेती की जाती है । इसके कई भेद अब भी वन्य अवस्था में मिलते हैं । दो मुख्य भेदों में से एक को 'नरछा' और दूसरे को 'वनपाट' कहते हैं । 'नरछा' विशेषतः बंगाल और आसाम में बोया जाता है । वनपाट की अपेक्षा इसके रेशे अधिक उत्तम होते हैं । नरछे का पौधा वनपाट के पौधे से ऊँचा होता है । और पत्ती तथा कली लंबी होती है वनपाट की पत्तियाँ गोल, फूल नरछे से बडे़ और कली की चोंच भी नरछे से कुछ अधिक लंबी होती है । पटसन की बोआई भदईँ जिन्सौं के साथ होती है और कटाई उस समय होती है जब उसमें फूल लगते हैं । इस समय न काट लेने से रेशे कड़े हो जाते हैं । बीज के लिये थोड़े से पौधे खेत में एक किनारे छोड़ दिए जाते हैं, शेष काटकर और गट्ठों में बाँधकर नदी, तालाब या गड्ढे के जल में गाड़ दिया जाते हैं । तीन चार दिन बाद उसे निकालकर डंठल से छिलके को अलग कर लेते हैं । फिर छिलकों को पत्थर के ऊपर पछाड़ते हैं और थोडी़ थोडी़ देर के बाद पानी में धोते हैं जिससे कड़ी छाल कटकर धुल जाती हैं और नीचे की मुलायम छाल निकाल आती हैं । छिलके या रेशे अलग करने के लिये यंञ भी है, परंतु भार- तीय किसान उसका उपयोग नहीं करते । यंत द्वारा अलग किए हुए रेशों की अपेक्षा सड़ाकर अलग किए हुए रेशे अधिक मुलायम होते हैं । छुड़ाए और सुखाए जाने के अनंतर रेशे एक विशेष यंञ में दबाए अथवा कुचले जाते हैं । जबतक यह क्रिया होती रहती है, रेशों पर जल और तेल के छींटे देते रहते हैं जिससे उनकी रुखाई और कठोरता दूर होकर, कोमलता, चिकनाई और चमक आ जाती है । आजकल पटसन के रेशों से तीन काम लिए जाते हैं—मुलायम, लचीले रेशों से कपड़े तथा टाट बनाए जाते हैं, कड़े से रस्से , रस्सियाँ और जो इन दोंनों कामों के अयोग्य समझे जाते हैं उनसे कागज बनाया जाता हैं । रेशों की उत्त मता, अनुत्त- मता के विचार से भी पटसन के कई भेद हैं । जैसे, उत्तरिया, देसवाल, देसी, डुयौरा या डौरा, नारायनगंजी, सिराजगंजी आदि । इनमें उत्तरिया और देसवाल सर्वोत्तम हैं । पटसन के रेशे अन्य वृक्षों या पौधों के रेशों से कमजोर होते हैं । रंग इसके रेशों पर चाहे जितना गहरा या हलका चढ़ाया जा सकता है । चमक, चिकनाई आदि में पटसन रेशम का मुकाबला करता है, जिस कारखाने में पटसन के सूत और कपडे़ बनाए जाते हैं उनको जूट मिल और जिस यंत्र में दाब पहुँचाकर रेशों को मुलायम और चमकीला बनाया जाता हैं उसे 'जूट प्रेस' कहते हैं ।

२. पटसन के रेशे । पाट । जूट । विशेष—(क) पटसन से रस्से, रसिस्याँ टाट और टाट ही की तरह का एक मोटा कपड़ा तो बहुत दिनों से लोग बनाते रहे हैं, पर उसका बारीक रेशम तुल्य सूत और उनसे बहु- मूल्य वस्त्र तैयार करने की ओर उनका ध्यान नहीं गया था । अब उसका खूब महीन सूत भी बनने लग गया है । (ख) कुछ लोगों का यह अनुमान है कि नरछा नामक उत्तम जाति के पटसन के बीज भारत में चीन से लाए गए हैं । बंगाल और आसाम के जिन जिन भागों में नरछे की खेती सफलता- पूर्वक की जा सकती है वहाँ की जलवायु में चीन की जल- वायु से बहुत कुछ समानता है ।