परख

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

परख संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ परीक्षा, प्रा॰ परिक्ख]

१. गुणदोष स्थिर करने के लिये अच्छी तरह देखभाल । जाँच । परीक्षा । जैसे,— अभी उस सोने की परख हो रही है ।

२. गुणदोष का ठीक ठीक पता लगानेवाली द्दष्टि । गुणदोष का विवेचन करनेवाली अंतःकरण वृत्ति । कोई वस्तु भली है या बुरी यह जान लेने की शक्ति । पहचान । जैसे,—(क) तुम्हें सोने की परख नहीं है । (ख) उसे आदमी की परख नहीं है । क्रि॰ प्र॰—होना ।