पली

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पली संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पलिध] तेल, घी, आदि द्रव पदार्थों को बड़े बरतन से निकालने का लोहे का उपकरण । इसमें छोटी करछी के बराबर एक कटोरी होती है जो एक खड़ी घुंडी से जुड़ी होती हौ । मुहा॰—पली पली जोड़ना = थोड़ा थोड़ा करके संचय या संग्रह करना । पैसा पैसा जोड़कर धन एकत्र करना । उ॰—मियाँ जोड़े पली पली खुदा लृढ़ावें कुप्पा ।—(कहावत) ।

पली ^५ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पालि (= पंक्ति)] एक प्राचीन भाषा जिसमें बौद्धों के धर्मग्रंथ लिखे हुए हैं और जिसका पठन पाठन स्याम, बरमा, सिंहल आदि देशों में उसी प्रकार होता है जिस प्रकार भारतवर्ष में संस्कृत का । विशेष— बौद्ध धर्म के अभ्युदय के समय में इस भाषा का प्रचार वाह्लीक (बलख) सै लेकर स्याम देश तक और उत्तर भारत से लेकर सिंहल तक हो गया था । कहते हैं, बुद्ध भगवान् ने इसी भाषा में धर्मोपदेश किया था । बौद्ध धर्मग्रंथ त्रिपिटक इसी भाषा में हैं । पाली का सबसे पुराना व्याकरण कच्चायन (कात्यायन) का सुगंधिकल्प है । ये कात्यायन कब हुए थे ठीक पता नहीं । सिंहल आदि के बोद्धों में यह प्रसिद्ध है कि कात्यायन बुद्ध भगवान् के शिष्यों में से थे और बुद्ध भग- बान् ने हो उनसे उस भाषा का व्याकरण रचने के लिये कहा था जिसमें भगवान् के उपदेश होते थे । पर कात्यायन के व्याकरण में ही एक स्थान पर सिंहल द्विप के राजा तिष्य का नाम आया है जो ईसा से ३०७ वर्ष पहले राज्य करता था । इस बाधा का उत्तर लोग यह देते हैं कि पाली भाषा का अध्ययन बहुत दिनों तक गुरु शिष्य परंपरानुसार ही होता आया था । इससे संभव है कि 'तिष्य' वाला उदाहरण पीछे से किसी ने दे दिया हो । कुछ लोग वररुचि को, जिनका नाम कात्यायन भी था, पाली व्याकरणाकार कात्यायन समझते हैं, पर यह भ्रम है । कात्यायन ने अपने व्याकरण में पाली की मागधी और मूल भाषा कहा है । पर बहुत से लोगों ने मागधी से पाली को भिन्न माना है । कुछ पाली ग्रंथकारों ने तो यहाँ तक कहा है कि पाली बुद्धों, बोधिसत्वों और देवताओं की भाषा है और मागधी मनुष्यों की । बात यह मालूम होती है कि मागधी शब्द का व्यवहार मगध की प्राकृत के लिये बहुत पीछे तक बराबर होता रहा है । जैसे साहित्यदर्पणकार ने नाटकों के लिये यह नियम किया है कि अंतःपुरचारी लोग मागधी में बातचीत करते दिखाए जायँ और चेट, राजपुत्र तथा वणिक् लोग अर्धमागधी में । पर पाली भाषा एक विशेष प्राचीनतर काल की मागधी का नाम है जिसे व्याकरणबद्ध करके कात्यायन आदि ने उसी प्रकार अचल और स्थिर कर दिया जिस प्रकार पाणिनि आदि ने संस्कृत को । इससे परवर्ती काल के पढे़ लिखे बौद्ध भी उसी प्राचीन मागधी का व्यवहार अपनी शास्त्रचर्चा में बराबर करते रहे । 'पाली' शब्द कहाँ से आया इसका संतोषप्रद उत्तर कहीं से नहीं प्राप्त होता है । लोगों ने अनेक प्रकार की कल्पनाएँ की हैं । कुछ लोग उसे सं॰, पल्लि (= बस्ती, नगर) से निकालते हैं, कुछ लोग कहते हैं, 'पालाश' से, जो मगध का एक नाम है, पाली बना है । कुछ महात्मा पह्लवी तक जा पहुँचे हैं । पटने का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र या इससे कुछ लोगों का अनुमान है कि पाठलि की भाषा, ही पाली कहलाने लगी । पर सबसे ठीक अनुमान यह जान पड़ता है कि 'पाली' शब्द का प्रयोग पंक्ति के अर्थ में था । अब भी संस्कृत के छात्र और अध्यापक किसी ग्रंथ में आए हुए वाक्य को 'पक्ति' कहते हैं, जैसे, पक्ति नहीं लगती है । मागधी का बुद्ध के समय का रूप बौद्धशास्त्रों में लिपिबद्ध हो जाने के कारण पाली (सं॰ पालि = पंक्ति) कहलाने लगी । हीनयान शाखा में तो पाली का प्रचार बराबर एक सा चलता रहा, पर महायान शाखा के बौद्धों ने अपने ग्रंथ संस्कृत में कर लिए ।