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पशु

विक्षनरी से

संज्ञा

पु.

अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

पशु संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. लांगूलविशिष्ट चतुष्पद जंतु । चार पैरों से चलनेवाला कोई जंतु जिसके शरीर का भार खड़े होने पर पैरों पर रहता हो । रेंगनेवाले, उड़नेवाले, जल में रहनेवाले जीवों तथा मनुष्यों को छोड़ कोई जानवर । जैसे, कुत्ता, बिल्ली, घोड़ा, ऊँट, बैल, हाथी, हिरन, गीदड़, लोमड़ी, बंदर इत्यादि । विशेष— भाषारत्न में लोम और लांगूल (रोएँ और पूँछ) वाले जंतु पशु कहे गए हैं । अमरकोश में पशु शब्द के अंतर्गत इन जंतुओं के नाम आए हैं— सिह, बाघ, लकड़बग्घा (चरग) , सूअर, बंदर, भालू, गैंड़ा, भैसा, गीदड़, बिल्ली, गोह, साही, हिरन (सब जाति के), सुरागाय, नीलगाय, खरहा, गंधबिलाव, बैल, ऊँट, बकरा, मेढा, गदहा, हाथी और घोड़ा । इन नामों में गोह भी है जो सरीसृप या रेंगनेवाला है । पर साधारणतः छिपकली, गिरगिट आदि को पशु नहीं कहते ।

२. जीवमात्र । प्राणी । यौ॰— पशुपति । विशेष— शैव दर्शन और पाशुपत दर्शन में 'पशु' जीवमात्रा की संज्ञा मानी गई है ।

३. देवता ।

४. प्रथम ।

५. यज्ञ ।

६. यज्ञ उड़ुंबर ।

७. बलि- पशु (को॰) ।

८. सदसद्विवेक से रहित व्यक्ति । मुर्ख (को॰) ।

९. छाग । बकरा (को॰) ।

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