विक्षनरी:पशुचिकित्सा शब्दावली

विक्षनरी से
(पशुचिकित्सा शब्दावली से अनुप्रेषित)
  • आक्षेपहारी (Antispasmodics) : वे औषधियाँ जो पेट की ऐंठन व मरोड़ को दूर करती हैं।
  • ‌‌‌उद्दीपक (Stimulants) : ये औषधियाँ शरीर के विभिन्न अंगों में तत्काल लेकिन कम समय के लिए शक्ति प्रदान करती हैं।
  • ‌‌‌एण्टीजाइमोटिक्स (Antizymotics) : वे औषधियाँ अथवा पदार्थ जो कि सड़ाव क्रिया (Fermentation) को रोकती हैं। इनका प्रयोग अफारा अथवा उदरशूल आदि रोगों में गैस आदि का बनने को रोकने हेतू किया जाता है। जैसे कि फॉर्मेलिन, बोरिक एसिड आदि।
  • ‌‌‌एण्टीपरूराइटिक्स (Antipriritics) : वे औषधियाँ जो उद्दीयपन (Irritation) और खुजली (Priritus) को शान्त करती हैं। जैसे कि कार्बोलिक एसिड, कोकेन आदि।
  • ‌‌‌ऐरोमैटिक्स (Aromatics) : ये वे पदार्थ हैं जिनमें उड़नशील तेल (Volatile oils) होते हैं और स्वभाव से बहुत तिक्त होते हैं। जैसे कि इलायची, सौंफ, अदरक, पिपरमेंट आदि।
  • ‌‌‌कफरोधी (Antiexpectorants) : कफ निकलने से रोकने वाली औषधियाँ जैसे कि अफीम, बेलाडोना आदि।
  • ‌‌‌कफोत्सारक (Expectorants) : वे औषधियाँ जैसे कि अमोनिया उड़नशील तेल आदि, जो कफ को बाहर निकालती हैं।
  • ‌‌‌कषाय (Astringents) : वे औषधियाँ अथवा पदाथ्र हैं जो कि श्लैष्मिक झिल्ली (Mucous membrane), रक्तवाहिनियों (Blood vessels) और ‌‌‌तन्तुओं (Tisssues) में संकुचन (Contraction) ‌‌‌उत्पन्न करके उत्सर्जन (Secretion) को बन्द कर देते हैं। जब इन औषधियों अथवा पदार्थों को उपरी तौर (External use) पर लगाया जाता है तब इन्हे अवशोषी (Absorbant) कहा जाता है। लेकिन जब इन्हें अन्दरूनी तौर पर लगाया जाता है तो इन्हें आन्त्रस्तम्भक Intestinal astringents) कहते हैं। इसके मुख्य उदाहरण कत्था, अफीम, बेलाडोना, अरगट, फिटकरी, क्लोरीडीन आदि हैं।
  • ‌‌‌कास्टिक्स (Caustics) : ये औषधियाँ तन्तुओं को नष्ट करने वाली होती हैं। जैसे कि कास्टिक सोडा, कॉपर सल्फेट, जिंक सल्फेट, फेनॉल, कार्बोलिक एसिड आदि।
  • ‌‌‌कृमिहर (Anthelmintics) : वे औषधियाँ जो पेट में मौजूद परजीवियों बाहर निकालती हैं जैसे कि कॉपर सल्फेट, फेरस सल्फेट, निकाटिनिक सल्फेट, तार का तेल, कार्बन डाई आक्साइड, हेक्साक्लोरोथिन आदि। ऐसी कृमिहर औषधियाँ जो इन परजीवियों को मार देती हैं, लेकिन शरीर से बाहर नहीं निकालती हैं, को कृमिनाशक (Vermicide) कहा ‌‌‌जाता है।
  • ‌‌‌क्षोभक (Irritants) : ये औषधियाँ अथवा पदार्थ शरीर के जिस भाग पर लगाए जाते हैं, उनको उत्तेजित कर देते हैं। जैसे कि विभिन्न प्रकार के अम्ल (Acids)।
  • ‌‌‌गन्धनाशक (Deodorants) : ये औषधियाँ अथवा पदार्थ शरीर की गन्ध को दूर करती हैं। जैसे कि चारकोल, ब्लीचिंग पाउडर, माण्ड, फेलाइल आदि।
  • ‌‌‌ग्राही (Antistomachics) : वे औषधियाँ जो जठर रस (Gastric juice) बनना कम करती हैं। जैसे कि अफीम, बेलाडोना आदि।
  • ‌‌‌ज्वररोधी/ज्वरनाशी (Antipyretics/Febrifuse) : वे औषधियाँ जो ज्वर या शरीर के तापमान को कम करती हैं जैसे कि एस्प्रीन, सैलिसिलिक एसिड, एनालजीन आदि।
  • ‌‌‌तिक्त पदार्थ (Bitters) : ये औषधियाँ स्वाद में कड़वी व वानस्पतिक, एक-दूसरे से एकदम असम्बन्धित होती हैं। जैसे कि चिरायता, सर्पगन्धा, सिनकोना आदि।
  • ‌‌‌तीव्र रेचक (Drastic purgative) : इन औशधियों के सेवन करने के उपरान्त ऐंठनयुक्त दस्त बार-बार आते हैं। जैसे कि क्रोटोन आयन, बेरियम क्लोराइड आदि।
  • ‌‌‌दीपन (Stomachics) : ये औषधियाँ अथवा पदार्थ जठर रस का बनना बढ़ाते हैं। जैसे कि चिरायता, मसाले, एल्कोहॉल आदि।
  • ‌‌‌दुग्ध-प्रसावी (Galactogogues) : ये औषधियाँ दुग्ध उत्पादन को बढ़ाती हैं। जैसे कि गंधक, आयोडाइज्ड कैसीन, थायराक्सिन, एण्टीमनी, उत्तम आहार आदि।
  • ‌‌‌निद्राकारी (Hypnotics) : ये नींद लाने वाली औषधियाँ हैं। जैसे कि ब्रोमाइड, क्लोरल हाइड्रेट आदि।
  • ‌‌‌परजीविघन (Paraciticides) : ये औषधियाँ परजीवियों को नष्ट करने वाली होती हैं। जैसे कि एसिटिक एसिड, कॉपर सल्फेट, डी.डी.टी., फिनायल, थाइमोल, गैमेक्सीन, बेन्जाइल-बेंजोएट।
  • ‌‌‌परिरक्षक (Preservatives) : ये वे पदार्थ हैं जिनमें रखे जाने पर, रखे जाने वाले पदार्थ पर्याप्त समय तक बिना बिगड़े रखे रहते हैं। जैसे कि बोरिक एसिड, स्पिरिट आदि।
  • ‌‌‌पीड़ाहारी (Analgesics/Anodyne) : वे औषधियाँ जो स्नायुओं (nerves) की उद्दीप्यता (Irritability) को कम करके दर्द को कम करती हैं जैसे कि लाइकर अमोनिया, कपूर आदि का लिनीमेंट, बेलाडोना और एकोनाइड के लिनीमें, एस्प्रीन, भांग आदि।
  • ‌‌‌पोषक (Nutrients) : ये पदार्थ शारीरिक तन्तुओं का पोषण करने वाले होते हैं। जैसे कि कॉड लीवर ऑयल, वीटामीन, जैतून का तेल आदि।
  • ‌‌‌प्रक्षालक (Detergents) : ये आषधियाँ शरीर की स्वच्छता बनाये रखने में सहायक होती हैं। जैसे कि साबुन, पानी, सोडियम हाइड्राक्साइड, पोटाशियम हाइड्राक्स, कार्बोनेट्स आदि।
  • ‌‌‌प्रतिकारक (Antidotes) : वे औषधियाँ जो विष के प्रभाव को नष्ट करती हैं जैसे कि सायनाइड विष में लोहा लवण (Iron salt) आदि।
  • प्रतिजैविक (Antibiotics): जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न जीवाणुनाशक औषधियाँ (Antibacterial drugs) जैसे पेनिसिलिन, स्ट्रेप्टोमाइसिन, क्लोरोमाइसिन आ​दि।
  • ‌‌‌प्रशितक (Refrigerants) : शरीर पर बाहर से लेप करने पर उसे ठंडक प्रदान करने वाली औषधियाँ। जैसे पिपरमेंट, बर्फ, अमोनियम क्लोराइड आदि।
  • ‌‌‌बल्य (Tonics) : ये औषधियाँ शरीर या शरीर के किसी भी अंग को बल प्रदान करने वाली होती हैं। ‌‌‌बल्य औषधियाँ अपना प्रभाव धीरे-धीरे प्रकट करती हैं लेकिन यह प्रभाव अपेक्षाकृत अधिक समय तक रहता है।
  • ‌‌‌मूत्रर्द्धक (Dieretics): ये अधिक मूत्र लाने वाली औषधियाँ होती हैं। कैलोमल, यूरीया, कल्मी शोरा (Potassium nitrate) आदि।
  • ‌‌‌मूत्रलतारोधी (Antidiuretics) : वे औषधियाँ जो मूत्र में कमी लाती हैं जैसे कि इन्स्यूलिन, एड्रीनेलिन, पिट्यूट्रीन आदि।
  • ‌‌‌मृदु रेचक (Simple purgatives) : ये ऐसी दस्तावर औषधियाँ हैं जो बिना ऐंठन किये खुलकर दस्त लगा देती हैं। जैसे कि मैगनिशियम सल्फेट, सोडियम सल्फेट, कैलोमल, अमलताश का गूदा आदि।
  • ‌‌‌रक्तस्थापक (Haemostatics) : ये औषधियाँ अथवा पदार्थ शरीर से रक्त बहना रोकने के लिए प्रयोग की जाती हैं। जैसे कि फिटकरी, बर्फ, टिंकचर बेन्जोइन, फैरी-परक्लोराइड टिंकचर आदि।
  • रक्तसंलयी विरोधी (Anti-congestives) : ये औषधियाँ फेफड़ों की रक्तवाहिकाओं में रक्त को जमा होने से बचाती हैं। ‌‌‌जैसे कि मूली ‌‌‌आदि।
  • ‌‌‌रेचक/दस्तावर (Purgatives) : ये औषधियाँ दस्त लगाने वाली होती हैं। जैसे कि मैग्निशियम सल्फेट, अलसी का तेल आदि।
  • रोगणुरोधक/रोगाणुप्रतिरोधक (Antiseptics) : वे औषधियाँ जो कि जीवाणुओं की अभिवृ​द्धि को रोकती हैं, पर जीवाणुओं को नष्ट नहीं करतीं जैसे कि बोरिक एसिड, आयोडीन, केलामल आ​दि।
  • ‌‌‌रोगाणुनाशक (Disinfectants) : ये ऐसी औषधियाँ होती हैं जो तन्तुओं को नष्ट कर देती है। जैसे कि पोटाशियम परमैग्नेट, हाइड्रोजन परआक्साइड, क्लारीन आदि। ब्रोमीन, आयोडीन, मरक्यूरिक क्लाराइड, फेनॉल आदि औषधियाँ भी ऐसे ही गुण वाली हैं।
  • ‌‌‌लालास्राव वर्द्धक (Sialagogues) : ये औषधियाँ अथवा पदार्थ लार को बढ़ाती हैं। जैसे कि मरकरी आदि।
  • ‌‌‌वमनकारी (Emetics) : ये ऐसे औषधीय पदार्थ हैं जिनको खाने से वमन/उल्टी होती है। जैसे कि नमक (Sodium chloride), फिटकरी, सरसों, कॉपर सल्फेट, जिंक सल्फेट आदि।
  • ‌‌‌वातसारी (Carminatives) : ये औषधियाँ उदर व अंतड़ियों में गैस बनना रोकती हैं। जेसे कि अमोनियम कार्बोनेट, हींग, धनिया, दालचीनी, जीरा, क्लारोफार्म, अदरक, एल्कोहोल आदि।
  • ‌‌‌वैकल्पिक (Alternative) : वे औषधियाँ जो तन्तुओं (Body tissues) में परिवर्तन लाकर विभिन्न अंगों के पोषण में सुधार करती हैं। ये औषधियाँ रोगी के अधिक कमजोर होने पर दी जाती हैं। जैसे कि संखिया (Arsenic), मरकरी (Mercury), आयोडीन, मैगसल्फ, लीवर ऑयल, सल्फर, कुचला आदि।
  • ‌‌‌शामक (Sedative) : यह एक सामान्य शब्द है जिसमें मूल शामक (Anodyne), निद्राबह (Narcotic) औषधियाँ सम्मिलित हैं जो स्नायु संस्थान (Nervous system) की अति उत्तेज्यता (Over excitability) को शान्त करती है।
  • ‌‌‌शोष (Desicants) : ये औषधियाँ ऊपरी घावों से बहते पानी को सुखाने वाली होती हैं। जैसे कि जिंक आक्साइड, बोरिक एसिड, टेल्कम पाउडर आदि।
  • ‌‌‌संवेदन-मंदक (Narcotics) : ये औषधियाँ गहरी नींद लाने वाली एवं रक्त संचार व श्वास क्रिया में उदासीनता लाने वाली हैं। जैसे कि भांग, क्लाराफार्म, ईथर आदि।
  • ‌‌‌संवेदनहारी/निश्चेतक (Anaesthetics) : वे औषधियाँ जिन्हे खिलाये जाने पर पशु बिल्कुल बेहोश हो जाते हैं। जैसे कि क्लोराफॉर्म, ईथर, नाइट्रस आक्साइड आदि।
  • ‌‌‌सूजनहारी (Antoflogistics) : वे औषधियाँ या पर्दा जो सूजन और दर्द में प्रयोग किये जाते हैं। जैसे कि एण्टीफलोजिस्टीन का प्लास्टर चढ़ाना अथवा पुल्टिस बाँधना आदि।
  • ‌‌‌हल्के रेचक (Luxatives) : ये औषधियाँ हल्के दस्त लगती हैं। जैसे कि ईसबगोल की भूसी, शीरा, हरा चारा, सफर आदि।