पितृयाण

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पितृयाण संज्ञा पुं॰ [सं॰] मृत्यु के अनंतर जीव के जाने का वह मार्ग जिससे वह चंद्रमा को प्राप्त होता है । वह मार्ग जिससे जाकर मृत व्यक्ति को निश्चित काल तक स्वर्ग आदि में सुख भोगकर पुनः संसार में आना पड़ता है । विशेष—ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति का प्रयास न कर अनेक प्रकार के अग्निहोत्र आदि विस्तृत पुण्यकर्म करनेवाले व्यक्ति जिस मार्ग से ऊपर के लोकों को जाते है वही पितृयाण है । इसमें से जाते हुए वे पहले धूमाभिमानी देवताओं को प्राप्त होते हैं । फिर रात्रि, फिर कृष्ण पक्ष, फिर दक्षिणायन षण्मास के अभिमानी देवताओं को प्राप्त होते हैं । इसके पीछे पितृलोक और वहाँ से चंद्रमा को प्राप्त होते हैं । अनंतर वहाँ से पतित होकर संसार में कर्मसंस्कार के अनुसार किसी एक योनि में जन्म ग्रहण करते हैं । देवयान अर्थात् ब्रह्मज्ञानी- पासकों के मार्ग से यह उलटा है । दे॰ 'देवयान' ।