पुरइन

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पुरइन पु † संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पुटकिनी, प्रा॰ पुड़इनी (कमलिनी), पु॰ हिं॰ पुरइनि]

१. कमल का पता । उ॰—(क) पुरइन सधन ओट जल बेगि न पाइय मर्म । मायाछन्न न देखिए जैसे निर्गुण ब्रह्म ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) देखो भाई रूप सरोवर साज्यो । ब्रज बनिता वर वारि वृंद में श्री ब्रजराज बिराज्यो । पुरइन कपिश निचोल विविध रँग विहसत सचु उपजावै । सूर श्याम आनंदकंद की सोभ कहत न आवै ।—सूर (शब्द॰) ।

२. कमल । उ॰—(क) सरवर चहुँ दिसि पुरइनि फूली । देखा वारि रहा मन भूली ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) ऊधो तुम हौ अति बड़ भागी । अपरस रहत सनेह तगा तें नाहिन मन अनुरागी । पुरइन पात रहत जल भीतर ता रस देह न दागी । ज्यों जल माँह तेल की गागरि बुँद न ताको लगी ।—सूर (शब्द॰) ।