पुरु

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पुरु ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. देवलोक । स्वर्ग ।

२. एक दैत्य जिसे इंद्र ने मारा था ।

३. पराग ।

४. एक पर्वत ।

५. शरीर ।

६. बृहत्संहिता के अनुसार एक देश ।

७. एक प्राचीन राजा जो नहुष के पुत्र ययाति के पुत्र थे । विशेष— पुराणों में ययाति चंद्रवंश के मूल पुरुषों में थे । ययाति की दो रानियाँ थीं । एक शुक्राचार्य की कन्या देवयानी, दूसरी शर्मिष्ठा । देवयानी के गर्भ से यदु और तुर्वसु तथा शर्मिष्ठा के गर्भ से द्रुह्यु, अनु और पुरु हुए । इन नामों का उल्लेख ऋग्वेद में है । पुरु के बडे़ भारी विजयी और पराक्रमी होने की चर्चा भी ऋग्वेद में है । एक स्थान पर लिखा है— 'हे वैश्वानर ! जब तुम पुरु के समीप पुरियों का विध्वंस करके प्रज्वलित हुए तब तुम्हारे भय से असिक्नी (असिक्नीर- सितवर्णाः—सायण; अर्थात् असिक्नी या चेनाब के किनारे के काले अनार्य दस्यु) भोजन छोड़ छोड़कर आए' । ए क स्थान पर और भी है—'हे इंद्र ! तुम युद्ध में भूमिलाभ के लिये पुरुकुत्स के पुत्र त्रसदस्यु और पुरु की रक्षा करो ।' इसका समर्थन एक और मंत्र इस प्रकार करता है—'हे इंद्र ! तुमने पुरु और दिवोदास राजा के लिये नब्बे पुरों का नाश किया है ।' महाभारत और पुराणों में पुरु के संबंध में यह कथा मिलती हैं— शुक्राचार्य के शाप से सब ययाति जराग्रस्त हुए तब उन्होंने सब पुत्रों को बुलाकर अपना बुढ़ापा देना चाहा । पर पुरु को छोड़ और कोई बुढ़ापा लेकर अपनी जवानी देने पर सम्मत न हुआ । पुरु से यौवन प्राप्त कर ययाति ने बहुत दिनों तक सुखभोग किया, अंत में अपने पुत्र पुरु को राज्य दे वे वन में चले गए । पुरु के वंश में ही दुष्यंत के पुत्र भरत हुए । भरत के कई पीढिय़ों पीछे कुरु हुए जिनके नाम से कौरव वंश कहलाया ।

८. पंजाब का एक राजा जो ईसा से ३२७ वर्ष पहले सिकंदर से लड़ा था । पोरस ।

पुरु ^२ क्रि॰ वि॰

१. अधिक । बहुत से । कई ।

२. अकसर । बारबार । पुनः पुनः [को॰] ।