फरकाना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

फरकाना ^१ क्रि॰ स॰ [हिं॰ फरकना]

१. फरकने का सकर्मक रूप । हिलाना । संचालित करना । उ॰ (क) तू काहैं नहिं वेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावे । कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं कबहुँ अधर फरकावै ।—सूर॰, १० । ४३ । (ख) सखी रोक ! यह फिर कहने की उत्सुकता दिखालाता है । देख, अधर अपना ऊपर का बार बार फरकाता है ।—द्विवेदी (शब्द॰) ।

२. फड़फड़ाना । बार बार हिलाना । उ॰— आगम भो तरुनापन को बिसराम भई कछु चंचल आँखैं । खंजन के युग सावक ज्यों उड़ि आवत ना फरकावत पाँखैं ।— बिसराम (शब्द॰) ।

फरकाना ^२ क्रि॰ स॰ [हिं॰ फरक (= अलग)] विलग करना । अलगाना । अलग करना ।