फाँसी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

फाँसी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पाशी]

१. फँसाने का फंदा । पाश । उ॰— लालन बाल के द्वै ही दिना से परी मन आय सनेह की फाँसी ।—मतिराम (शब्द॰) ।

२. वह रस्सी या रेशम का फंदा जिसमें फँसने से गला घुट जाता है और फँसनेवाला मर जाता है । क्रि॰ प्र॰—लगना ।

३. रेशम या रस्सी का फंदा जो दो ऊँचे खंभे गाड़कर ऊपर से लटकाया जाता है और जिसे गले में डालकर अपराधियों को प्राणदंड दिया जाता है । मुहा॰—फाँसी खड़ी होना=(१) फाँसी के खंभे इत्यादि गड़ना । फाँसी दिए जाने की तैयारी होना । (२) प्राण जाने का डर होना । डर की बड़ी भारी बात होना । जैसे,— जाते क्यों नहीं, क्या वहाँ फाँसी खड़ी है ? फाँसी चढ़ना = पाश द्वारा प्राणदंड पाना । फाँसी चड़ाना=गले में फंदा डालकर प्राण दंड देना ।

४. वह दंड जो अपराधी को फंदे के द्वारा मारकर दिया जाय । पाश द्वारा प्राणदंड । मौत की सजा जो गले में फंदा डालकर दी जाय । क्रि॰ प्र॰—होना । मुहा॰—फाँसी देना=पाश द्वारा प्राणदंड देना । गले में फंद ा डालकर मार डालना । फाँसी पाना = पाश द्वारा प्राणदंड पाना । किसी अपराध में गले में फदा डालकर मार डाला जाना ।