बजरी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बजरी † ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ बज्र]

१. कंकड़ के छटे छोटे टुकडे़ जो गच के ऊपर पीटकर बैठाए जाते हैं और जिनपर सुरखो और चूना डालकर पलस्तर किया जाता है । कंकड़ी ।

२. ओला । वर्षोपल । बनौरी ।

३. छोटा नुमाइशी कँगूरा जो किले आदि की दीवारों के ऊपरी भाग में बराबर थोडे़ थोडे़ अंतर पर बनाया जाता है और जिसकी बगल में गोलियाँ चलाने के लिये कुछ अवकाश रहता है । उ॰— है जो मेघगढ़ लाग अकासा । बजरी कटी कोट चहुँ पासा ।— जायसी (शब्द॰) ।

४. दे॰ 'बाजरा' ।

बजरी † ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ बज्रोली] बज्रोली नामक मुद्रा । वि॰ दे॰ 'बज्रोली' । उ॰— बजरी करंता अमरी राषै अमरि करंता बाई । भोग करता जो व्यंद राखे ते गोरख का गुरभाई ।— गोरख॰, पृ॰ ४९ ।