बालि

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बालि संज्ञा पुं॰ [सं॰] पंपा किष्किंधा का वानर राजा जो अंगद का पिता और सुग्रीव का बड़ा भाई था । विशेष—कहते हैं, एक बार मेरु पर्वत पर तपस्या करते समय ब्रह्मा की आँखों से गिरे हुए आँसुओं से एक बंदर उत्पन्न हुआ जिसका नाम ऋक्षराज था । एक बार ऋक्षराज पानी में अपनी छाया देखकर कूद पड़ा । पानी में गिरते ही उसने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर लिया । एक बार उस स्त्री को देखकर इंद्र और सूर्य मोहित हो गए । इंद्र ने अपना वीर्य उसके मत्सक पर और सूर्य ने अपना वीर्य उसके गले में डाल दिया । इस प्रकार उस स्त्री को इंद्र के वीर्य से बालि और सूर्य के वीर्य से सुग्रीव नामक दो बंदर उत्पन्न हुए । इसके कुछ दिनों पीछे उस स्त्री ने फिर अपना पूर्व रूप धारण कर लिया । ब्रह्मा की आज्ञा से उसके पुत्र किष्किंधा में राज्य करने लगे । एक बार रावण ने किष्किंधा पर आक्रमण किया था । उस समय बालि दक्षिण सागर में संध्या कर रहा था । रावण को देखते ही उसने बगल में दबा लिया । अंत में उसके हार मैनने पर बालि ने उसे छोड़ दिया । एक बार बालि मय नामक दैत्य के पुत्र मायावी का पीछा करने के लिये पाताल गया था । उसके पीछे सुग्रीव ने उसका राज ले लिया, पर बालि ने आते ही उसे मार भगाया और वह अपनी स्त्री तारा तथा सुग्रीव की स्त्री रूमा को लेकर सुख से रहने लगा । सुग्रीव ने भागकर मतंग ऋषि के आश्रम में आश्रय लिया । जिस समय रामचंद्र सीता को ढूँढ़ते हुए किष्किंधा पहुँचे, उस समय मतंग के आश्रम में सुग्रीव से उनकी भेंट हुई थी । उसी समय सूग्रीव के कहने से उन्होंने बालि का वध किया था, सुग्रीव को राज्य दिलाया था और बालि के लड़के अंगद को वहाँ का युवराज बनाया था । रावण के साथ युद्ध करने में सुग्रीव और अंगद ने रामचंद्र की बहुत सहातया की थी ।