बाहना

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बाहना क्रि॰ स॰ [सं॰ वहन]

१. ढोना, लादना या चढ़ाकर ले जाना या ले आना ।

२. जलाना । फेंकना । (हथियार) । उ॰—(क) लखि रथ फिरत असुर बहु धाए । बाहत अस्त्र नृपति पर आए ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ख) करि क्रोध जोध बाहत सार ।—ह॰ रासो, पृ॰ ८२ । (ग) नेही सनमुख जुरत ही तहँ मन की गिरवान । बाहन हैं रन बावरे तेरे दृग किरवान ।—रसनिधि (शब्द॰) । (घ) इहित संग उभ्भारि बिरचि बाही गज मथ्थह ।—पृ॰ रा॰, १ । ६५३ ।

३. गाड़ी, घोड़े आदि को हाँकना ।

४. धारणा करना । लेना । पकड़ना ।

५. बहना । प्रवाहित होना । उ॰—(क) तजै रँग ना रँग केसरि को अंग धोवत सो रँग बाहन जात ।—देव (शब्द॰) । (ख) नातरु जगत सिंधु महँ भंगा । बाहत कर्म बीचिकन संगा ।—रघुनाथ (शब्द॰) । (ग) मैं निरास औ बिनु जिउ आहा । आस दई तै जिउ घट बाहा ।—चित्रा॰, पृ॰ ६५ ।

६. खेत जोतना । खेत में हल चलाना । जैसे,—आज तो उसने चार बीघा बाह के दम लिया ।

७. वपन करना । बीज आदि बोना । उ॰—जो बाहै लुनिएगा सोई । अंमृत खाइ कि विष फल होई ।—सुंदर ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ ३३६ ।

८. गौ, भैस आदि को गाभिन कराना ।

९. कघी करना । बाछना । उ॰—बालों को बाहकर उनमें तेल डालते थे ।—हिंदु॰ सभ्यता, पृ॰ ८० ।

१०. लगाना । आँजना । सारना । उ॰—दादू सतगुरु अंजन बाहि करि, नैन पटल सब खौलै । बहरे कानो सुँणने लागे, गूँगे मुख सौं बोले ।—दादू॰ बानी, पृ॰ ३ ।