भौँरा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

भौँरा ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ भ्रमर, पा॰ भमर, प्रा॰ भँवर] [स्त्री॰ भँवरी]

१. काले रंग का उड़नेवाला एक पतंगा जो गोबरैले के बराबर होता है और देखने में बहुत द्दढ़ांग प्रतीत होता है । भ्रमर । चंचरीक । उ॰—आँपुहि भौंरा आपुहि फूल । आतम- ज्ञान बिना जग भूल ।—सूर (शब्द॰) । विशेष—इसके छह पैर, दो पर और दो मूछें होती हैं । इसके सारे शरीर पर भूरे रंग के छोटे छोटे चमकदार रोएँ होते हैं । इसका रंग प्रायः नीलापन लिए चमकीला काला होता है और इसकी पीठ पर दोनों परों की जड़ के पास का प्रदेश पीले रंग का होता है । स्त्री के डंक होता है और वह डंक मारती है । यह गुंजारता हुआ उड़ा करता है और फूलों का रस पीता है । अन्य पतंगों के समान इस जाति के अंडे से भी ढोले निकलते हैं जो कालांतर में परिवर्तित होकर पर्तिगे हो जाते हैं । यह डालियों ओर ठूठी ठहनियों पर अंड़े देता है । कवि इसकी उपमा और रूपक नायक के लिये लाते हैं । उनका यह भी कथन है कि यह सब फूलों पर बैठता है, पर चंपा के फूल पर नहीं बैठता ।

२. बड़ी मधुमक्खी । सारँग । भँमर । डंगर ।

३. काला वा लाल भड़ ।

४. एक खिलौना जौ लट्टू के आकार का होता है और जिसमें कील वा छोटी डंडी लगी रहती है । इसी कील में रस्सी लपेटकर लड़के इसे भूमि पर नचाते हैं । उ॰— लोचन मानत नाहिन बोल । ऐसे रहत श्याम के आगे मनु है लीन्हों मोल । इत आवत है जात देखाई ज्यों भौंरा चकडोर । उतते सूत्र न टारत कबहूँ मोसों मानत कोर ।—सूर (शब्द॰) ।

५. हिंडोले की वह लकड़ी जो मयारी में लगी रहती है और जिसमें डोरी और डंडी बंधी रहती है । उ॰— हिंडोरना माई झूलत गोपाल । संग राधा परम सुंदरि चहूँघा ब्रज बाल । सुभग यमुना पुलिन मोहन रच्यो रुचिर हिंडोर । लाल डाँड़ी स्फटिक पटुलि मणिन मरुवा घोर । भौंरा मयारिनि नील सरकत खँचे पांति अपार । सरल कंचन खंभ सुंदर रच्वो काम श्रुतिहार ।—सूर (शब्द॰) ।

६. गाड़ी के पहिए का वह भाग, जिसके बीच के छेद में धुरे का गज रहता है और जिसमें आरा लगाकर पहिए की पुट्ठियाँ जड़ी जाती है । नाभि । लट्ठा । मूँड़ी ।

७. रहट की खड़ी चरखी जो भँवरी को फिराती है । चकरी (बुदेल॰) ।

८. पशुओं का एक रोग जिसे चेवक कहते हैं (बुंदेल॰) ।

९. पशुओं की मिरगी (बुंदेल॰) ।

१०. वह कुत्ता जो गड़ेरियों की भेड़ों की रखवाली करता है ।

११. एक प्रकार का कीड़ा जो ज्वार आदि की फसल को बहुत हानि पहुँचाता है ।

भौँरा ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ भ्रमण]

१. मकान के नीचे का वर ।

२. वह गड्ढा जिसमें अन्न रखा जाता है । खात । खत्ता ।