मतंग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मतंग संज्ञा पुं॰ [सं॰ मतङ्ग]

१. हाथी । उ॰—मग डोलत मतंग मतवारे ।—हम्मीर॰, पृ॰ २६ ।

२. बादल ।

३. एक दानव का नाम ।

४. एक प्राचीन तीर्थ का नाम ।

५. कामरूप के अग्निरोण के एक देश का प्राचीन नाम ।

६. त्रिशंकु राजा का नाम (को॰) ।

७. एक ऋषि का नाम जो शबरी के गुरु थे । विशेष—महाभारत में लिखा है कि ये एक नापित के वीर्य से एक ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । उस ब्राह्मणी के पति ने इन्हें अपना ही पुत्र और ब्राह्मण समझकर पाल ा था । एक बार ये गधे के रथ पर सवार होकर पिता के लिये यज्ञ की सामग्री लाने जा रहे थे । उस समय इन्होंने गधे को बहुत निदंयता से मारा था । इसपर उस गधे की माता गधी से इन्हें मालूम हुआ कि में ब्राह्णण की संतान नहीं हूँ, चांडाल समाचार कहे और ब्राह्मणत्व प्राप्त करने के लिये घोर तपस्या करने लगे । तब इंद्र ने आकर समझाया कि ब्राह्मणत्व प्राप्त करना सहज नहीं है । उसके लिये लाखों वर्षों तक अनेक जन्म धारण करके तपस्या करनी पड़ती है । तब इन्होंने वर माँगा कि मुझे पक्षी बना दीजिए जिसकी सभी वर्णवाले पूजा करे; मैं जहाँ चाहूँ, वहाँ जा सकूँ और मेरी कीर्ति अक्षय हो । इंद्र ने इन्हें यही वर दिया और ये छदोदेव के नाम से प्रसिद्ध हुए । कुछ दिनों के उपरांत इन्होंने शरीर त्यागकर उत्तम गति प्राप्त की ।