मनाना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मनाना क्रि॰ स॰ [हिं॰ मानना का प्रे॰ रूप]

१. दूसरे को मानने पर उद्यत करना । यह कहलवाना कि हाँ कोई बात ऐसी ही है । स्वीकार कराना । सकरवाना ।

२. जो अप्रसन्न हो, उसे संतुष्ट या अनुकूल करना । रूठे हुए को प्रसन्न करना । राजी करना । जैसे,—वह रूठा था, हमने मना लिया । उ॰— (क) सो सुकृती सुचि मंत सुसंत सुसील सयान सिरोमनि स्व ै सूर तीरथ ताहि मनावन आवत पावन होत है तात न छ्वै ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) मोहिं तुम्हैं न उन्हैं न इन्हें मनभावती सो न मनावन आइहै ।—पद्याकर (शब्द॰) ।

३. अप्रसन्न को प्रसन्न करने के लिये अनुनय विनय करना । रूठे हुए को प्रसन्न करने के लिये मीठी मीठी बातें करना । मनुहार करना । उ॰—(क) जैसे आव तैसे साधि सौंहनि मनाइ लाई तुम इक मेरी बात एती विसरैयो ना ।—पद्याकर (शब्द॰) । (ख) केतो मनावै पाउँ परि केतो मनावै रोइ । हिंदू पूजै देवता तुरुक न काहुक होइ ।—कबीर (शब्द॰) । (ग) लाज कियो जो पिय नहिं पाऊँ । तजों लाज कर जोरि मनाऊँ—जायसी (शब्द॰) ।

४. देवता आदि से किसी काम के होने के लिये प्रार्थना करना । उ॰—(क) यह कहि कहि देवता मनावति । भोग समग्री धरति उठावति ।—सूर (शब्द॰) । (ख) सुकृति सुमिरि मनाइ पितर सुर सीस ईस पद नाइ कै । रघुवर कर धनुभंग चहत सब आपनौ सो हित चित लाइ कै ।—तुलसी (शब्द॰) ।

५. प्रार्थना करना । स्तुति करना । (क) तुम सब सिद्ध मनावहु, होइ गणेश सिध लेहु । चेला को न चलावै मिलै गुरू जेहि भेउ ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) ताके युग पद कमल मनाऊँ । जासु कृपा निरमल मति पाऊँ ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) करी प्रतिज्ञा कहेउ भीष्म मुख पुनि पुनि देव मनाऊँ ।—सूर (शब्द॰) ।