मया
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मया ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] चिकित्सा ।
मया ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ माया]
१. मामा । भ्रमजाल । इंद्रजाल ।
२. जगत् । संसार ।
३. जीव और शरीर का संबध । जीवन । उ॰— तुम जिय मैं तन जौ लहि मया । कहे जो जवि करै सौ कया ।— जायसी (शब्द॰) ।
४. प्रेमपाश । प्रेम का बंघन । मोह । उ॰— (क) बहुत मया सुन राजा फूल । चला साथ पहुचावै भूला ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) का रानी का चेरी कोई । जोहि कहँ मया करे भल सोई ।— जायसी (शब्द॰) । (ग) मृगया यहे शूर तर बढ़ी । बंदी मुखनि चाप सी पड़ी । जो केहू चितवे यह दया । बात कहे तो बड़िए मया ।—केशव (शब्द॰) ।
५. दया । अनुकंपा । छोह । उ॰—(क) तहाँ चकोर कोकिला तोहि तन मया पईठ । नयनन रकत भरा यहि तुम पुनि कोन्ही ड़ीठ ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) सँदेसो देवकी सौं कहियौ । हौं कौ धाइ तिहारे सुत की मया करत ही रहियौ ।— सूर॰, १० । ३१७५ । (ग) कहि धौं मृगी मया करि हमसों कहि धौं मधुप मराल । सूरदास प्रभु के तुम संगी हौ कहँ परम दयाल ।— सूर (शब्द॰) ।