मलखम

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मलखम संज्ञा पुं॰[सं॰ मल्ल+हिं॰ खभा]

१. लकड़ी का एक प्रकार का खभा जिसपर कसरत करनेवाले फुरती से चढ़ और उतरकर कसरत करते हैं । मालखंभ । विशेष—मलखम तीन प्रकार के होते हैं—गड़ा मलखम, लटक ा मलखम और वेत का मलखम । गड़ा मलखम एक लंबा मोटा चार पाँच हाथ ऊँचा मुगदर के आकार का खंभा होता है जो भूमि में गड़ा रहता है । लटका हुआ या लटकौआँ मलखम छत्त या किसी और धरन के सहारे ऊपर से अधोमुख लटका रहता है । जब इस खंभे की जगह धरन आदि में बेंत लटकाया जाता है, तब इसे बेंत को मलखम कहते हैं इसपर कसरत करनेवाले वेत की हाथ में पकड़कर उसपर अनेक मुद्राओं से कसरत करते हैं । इसे बाँस, लग्गी या मलखानी भी कहते हैं । मलखम की कसरत भारतवर्ष की एक प्राचीन मल्ल नामक क्षत्रिय जाति की निकाली हुई है । इसी मल्ल जाति को आविष्कार की हुई कुश्ती को मल्लयुद्ध भी कहते हैं । मलखम पर चढ़ने उतरने की 'पकड़' कहते हैं । इस कसरत से मनुष्य में फुरती आती है और रानें दृढ़ होती हैं ।

२. वह कसरत जो मलखम पर या उसक सहारे से की जाय ।

३. पत्थर या लकड़ी के पुरानी चाल के कोल्हू में लकड़ी का एक खूँटा जो कातर या पाट में कोल्हू से दूसरी छोर पर गाड़ा जाता है और जिसमें ढेंके की रस्सी बाँधी जाती है; अथवा जिसमें रस्सी लगाकर ढेंकी बाँधकर पाट के ऊपर लगाते हैं । इसे मरखम भी कहते हैं ।