महा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]महा ^१ वि॰ [सं॰]
१. अत्यंत । बहुत । अधिक । उ॰—महा अजय संसार रिपु जीत सकइ सो वीर । जाके अस रथ होंइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर ।—तुलसी (शब्द॰) ।
२. सर्वश्रेष्ठ । सबसे बढ़कर । उ॰—महा मंत्र जोइ जपत मेहेसू । कासी मुकुति हेतु उपदेसू ।—तुलसी (शब्द॰) ।
३. बहुत बड़ा । भारी । जैसे, महावाहु, महासमुद्र । उ॰—(क) बुंद सोखि गो कहा महा समुद्र छीजई ।—केशव (शब्द॰) । (ख) कहै पद्याकर सुबास तें जवास तें सुफूलन को रास तें जगी है महा सास तै ।—पद्याकर (शब्द॰) । विशेष—ब्राह्मण, पात्र, यात्रा, प्रस्थान, निद्रा, तैल और मांस इन शब्दों में 'महा' शब्द लगाने से इन शब्दों के अर्थ कुत्सित हो जाते हैं । जैसे,—महाब्राह्मण = कदृहा ब्राह्मण । महापात्र = कदृहा ब्राह्मण । महायात्रा = मृत्यु । महाप्रस्थान = मृत्यु । महानिद्रा = मृत्यु । महामांस = मनुष्य का मांस । यौ॰—महाबली = अत्यंत शक्तिवान् । बलवान । समर्थ । उ॰— साचा समरथ गुरु मिल्या, तिन तत दिया बताइ । दादू मोटा महाबली घटि घृत मथि करि थाइ ।—दादू॰, पृ॰ ७ । महबिरही = अत्यंत बियोगपीड़िल । उ॰—मनहु महाबिरही अति कामी ।—मानस, ३ ।२४ । महाबिरहिनी = अति वियोगिनी । उ॰—छिनक माँझ वरनी तिहि बाला । महाबि- रहिनी ह्वै तिहि काला ।—नंद॰ ग्रं॰, पृ॰ १६४ । महामनि = मणि जिससे सर्पविष दूर होता है । उ॰—मंत्र महामनि विषय व्याल के ।—मानस, १ ।३२ ।
महा पु † ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ महना] मठ्ठा । छाछ । उ॰—रीझि बूझी सब की प्रतीति प्रीति एही द्वार दूध कौ जरयौ पिवत फूँकि फूँकि मह्यो हौं ।—तुलसी (शब्द॰) ।
महा ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. गाय ।
२. गोपवल्ली [को॰] ।