माल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

माल ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. क्षेत्र । ऊँचा क्षेत्र । ऊँचा भुखंड ।

२. कपट ।

३. बन । जंगल । उ॰—चकित चहुँ दिसि चहति, विधुर जनु मृगी माल तै ।—नंद॰ ग्रं॰, पृ॰ २७० ।

४. हरताल ।

५. विष्णु ।

६. एक प्राचीन अनार्य जाति । भागवत में इसे म्लेच्छ लिखा है ।

७. एक देश का नाम जो बंगाल के पश्चिम वा दक्षिणपश्चिम की ओर है । इसे मेदिनी- पुर कहते हैं ।

माल ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ मल्ल] कुश्ती लड़नेवाला । दे॰ 'मल्ल' । उ॰—(क) कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अति बल गर्जहीं ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) योगी घर मेले सब पाछे । उतरे माल आए रनं काछे ।—जायसी (शब्द॰) । ‡

२. राजपथ या सड़क के आस पास की वह भूमि जो कच्चा हो ।

माल ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ माला]

१. माला । हार । उ॰—(क) विनय प्रेम बस बई भवानी । खसी माल मुरति मुसुकानी ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) पहिर लियो छन माँझ असुर बल औरउ नखन बिदारी । रुधिर पान करि आँत माल धरि जय जय शब्द पुकारी ।—सुर (शब्द॰) । (ग) चंदन चित्रित रंग, सिंधु राज यह जानिए । बहुत बाहिनौ संग मुकुता माल विसाल उर ।—केशव (शब्द॰) । (घ) कितने काज चलाइयतु चतुराई की चाल कहे देत गुन रावरे सब गुन निर्गुन माल ।—बिहारी (शब्द॰) ।

२. वह रस्सी वा सुत की डोरी जो चरखे में मुड़ी वा वेलन पर से होकर जाती है और टेकुए को घुमाती है । †

२. चौड़ा मार्ग । चौड़ी सड़क ।

४. पंक्ति । पाँती । उ॰— (क) सेवक मन मानस मराल से । पावनं गंग तरंग माल से ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) बालधी विसाल बिकराल ज्वाल माल मानो लंक लीलिबे को काल रसान पसारी है ।—तुलसी (शब्द॰) ।(ग) धाम धामनि आगि की बहु ज्वाल माल बिरा- जहीं । पवन के झकझोर ते झँझरी झतोखे बाजहीं ।—केशव (शब्द॰) । (घ) गीधन की माल कहुँ जंबुक कराल कहुँ नाचत बैताल लै कपाल जाल जात से ।—हनुमत्राटक (शब्द॰) ।

माल ^४ संज्ञा पुं॰ [अ॰]

१. संपत्ति । धन । उ॰—(क) भली करी उन श्याम बंधाएँ । बरज्यो नहीं कह्यो उन मेरी अति आतुर उठि धाए । अल्प चोर बहु माल लुभाने संगी सबन धराए । निदारे गए तैसो फल पायो अब वे भए पराए ।—सूर (शब्द॰) । (ख) धाम औ धरा को माल बाल अबला को असि तजत परात राह चहत परान की ।—गुमान (शब्द॰) । (ग) माखन चोरी सों अरी परकि रहेउ नँदलाल । चोरन लागै अब लखौ नेहिन को मन माल ।—रसनिधि (शब्द॰) । यौ॰—मालखाना । मालगाड़ी । मालगोदाम । मालजामिन, माल मनकूला । माल गैरमनकूला ।मालदार आदि । मुहा॰—माल उड़ाना=(१) बहुत रुपया खर्च करना । घन का अपव्यय करना । (२)किसी की संपत्ति को हड़प लेना । दुसरे का माल अनुचित रुप से ले लेना । माल काटना=किसी के धन को अनुचित रुप से अधिकार में लाना । माल उड़ाना । माल चीरना=पराया धन हड़पना । माल उड़ाना । माल मारना । माल मारना=अनुचित रुप से पराए घन पर अधिकार करना । पराया धन हड़पना । दुसरे की संपत्ति दबा बैठना ।

२. सामग्री । समाना । असबाब । उ॰—(क) कहो तुमहिं हम को का वुझाते । लै लै नाम सुनावहु तुम हीं मो सों कहा अरुझति । तुम जानति मैं हुँ कछु जानत जी जो माल तुम्हारे । डारि देहु जा पर जो लागै मारग चलै हमारे ।—सुर (शब्द॰) (ख) मिती ज्वार भाटा हु की शीघ्र ही निकारै । लोग कहत हैं भरे माल कुँ कुति हु डारै ।—श्रीधर (शब्द॰) । मुहा॰—माल काटना=चलती रेल गाड़ी में से या मालगुदाम आदि में से माल चुराना । माल टाल=धन संपत्ति । माल असबाब माल मता=माल असबाब । माल मस्ती=धन का मद । माल की मस्ती । माल महकमा=माल का महकमा या विभाग । राजस्व संबंधी विभाग ।

३. क्रय विक्रय का पदार्थ ।

४. वह धन जो कर में मिलता है ।

५. फसल को उपज ।

६. उत्तम और सुस्वादु भोजन ।

माल ^४ प्रत्य॰ [फा़॰] मला दला । मर्दित । जैसे, पामाल=पैरों से मर्दिप या मला दला ।

माल अदालत संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ माल+अदालत] वह अदालत जिसमें लगान, मालगुजारी आदि के मुकदमे दायर किए जाते हैं ।