मेढक

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मेढक संज्ञा पुं॰ [सं॰ मण्ड़ूक] एक जल-स्थल-चारी जंतु जो तीन चार अंगल से लेकर एक बालिश्त तक लंबा होता है । यह पानी में तैरता है और जमीन पर कूद कूदकर चलता है । इसके चार पैर होते हैं जिनमें जालीदार पंजे होते हैं । यह फेफड़ों से साँस लेता है, मछलियो की तरह गलफड़ों से नहीं । पर्या॰—मंडूक । दर्दुर । विशेष—विकासक्रम में यह जलचारी और स्थलचारी जंतुओं के बीच का माना जाता है । मछलियों से ही क्रमशः विकास परंपरानुसार जल-स्थल-चारी जंतुओं की उत्पत्ति हुई है, जिनमे सबसे अधिक ध्यान देने योग्य मेढक है । रीढ़वाले जंतुओं में जो उन्नत कोटि के हैं, वे फेफड़ों से साँस लेते हैं । पर जिनका ढाँचा सादा है और जिन्हें जल ही में रहना पड़ता है, वे गलफड़ों से साँस लेते हैं । मछली के ढाँचे से उन्नति करके मेढ़क का ढाँचा बना है, इसका आभास मेढ़क की वृद्धि को देखने से मिलता है । अंडे के फूटने पर मेढ़क का डिंभकीट मछली के रूप में आता है, जल ही में रहता है, गलफड़ों से साँस लेता है और घासपात खाता है । उसे लंबी पूँछ होती है, पैर नहीं होते । कहीं कहीं उसे 'छुछमछली' भी कहते हैं । धीरे धीरे कायाकल्प करता हुआ वह उभयचारी जंतु का रूप प्राप्त करता है और जालीदार पंजों से युक्त पैरवाला, फेफड़े से साँस लेनेवाला और कीड़े पर्तिगे खानेवाला मेढ़क हो जाता है ।