यकृत्

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

यकृत् संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. पेट में दाहिनी और को एक थैली जिसमें पाचनरस रहता है और जिसकी क्रिया से भोजन पचता है; अर्थात् उसमें वह विकार उत्पन्न होता है, जिमसे शरीर की धातुएँ बनती हैं । जिगर । कालखंड ।

२. वह रोग जिसमें यह अंग दूषित होकर बढ़ जाता है । वर्म जिगर ।

३. पक्वाश्य ।