राड़
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]राड़ वि॰ [सं॰ राटि, प्रा॰ राडि]
१. दुष्ट । जड़ । उ॰—(क) लखि गयंद लै चलत भजि स्वान सुखानो हाड़ । गज गुन, मोल, अहार, बल महिमा जान की राड़ ।— तुलसी ग्रं॰, पृ॰ १३४ ।
२. नीच । निकम्मा । उ॰— (क) कागा करँक ढँढोरिया मूठिक रहिया हाड़ । जिस पिंजर बिरहा बसै माँस कहा रे राड़ ।— कबीर (शब्द॰) । (ग) बिष्ठा का चौका दिया हाँड़ी सीझै हाड़, छूति बचावै चाम की तिनहू का गुरु राड़ ।— कबीर (शब्द॰) । (घ) रावन राड़ के हाड़ गढैंगे ।— तुलसी (शब्द॰) ।
२. कायर । झगोड़ा । यौ॰—राड़ रोर ।