लकीर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

लकीर के रूप में दूर तक गया हुआ पतला गड्ढा जिससे होकर पानी बहता हो । जल-प्रवाह-पथ ।

२. गलीज आदि बहने का मार्ग । मोरी ।

३. वह गहरी लकीर जो तलवार के बीचोबीच पूरी लंबाई तक गई होती है ।

४. डंड करने गड्ढा जिसमें होकर छाती निकल जाय । मुहा॰—नाली के डंड = वह डंड जो नाली में से बदन निकालकर किया जाय । नाली में डंड पेलना=स्त्रीसंभोग करना (बाजारू) ।

५. कुम्हार के आँवें का वह नीचे की ओर गया हुआ छेद जिससे आग डालते हैं ।

६. घोड़े की पीठ का गड्ढा ।

७. बैल आदि चौपायों को दबा पिलाने का चोंगा । ढरका ।

लकीर संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ रेखा, हिं॰ लीक]

१. कलम आदि के द्वारा अथवा और किसी प्रकार बनी हुई वह सीधी आकृति जो बहुत दूर तक एक ही सीध में चली गई हो । रेखा । खत । मुहा॰—लकीर का फकीर = वह जो बिना समझे बुझे किसी प्राचीन प्रथा पर चला चलता हो । आँखे बंद करके पुराने ढंग पर चलनेवाला । लकीर पीटना = बिना समझे बूझे पुरानी प्रथा पर चले चलना । लकीर पर चलना = दे॰ 'लकीर पीटना' । क्रि॰ प्र॰—करना ।—खींचना ।—बनाना ।

२. वह चिह्न दूर तक रेखा के समान बना हो ।

३. धारी ।

४. पंक्ति । सतर ।

५. क्रम (को॰) । क्रि॰ प्र॰—करना ।—खींचना ।—बनाना ।