लीला
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
लीला ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. वह व्यापार जो चित्त की उमंग से केवल मनोरंजन के लिये किया जाय । केलि । क्रीड़ा । खेल । जैसे,—वाललीला ।
२. श्रृंगार की उमंगभीरी चेष्टा । प्रेम का खेलवाड़ । प्रेमविनोद ।
३. नायिकाओँ का एक हाव जिसमें वे प्रिय के वेश, गति, वाणी आदि का अनुकरण करती हैं ।
४. सौंदर्य । सुंदरता । (को॰) ।
५. रहस्यपूर्ण व्यापार । विचित्र काम । जैसे,— यह ईश्वर की लीला है जो ऐसे स्थान में ऐसा सुंदर पेड़ होता है ।
६. मनुष्यों की मनोरंजन के लिये किए हुए ईश्वरावतारों का अभिनय । चरित्र । जैसे,—रामलीला, कृष्ण- लीला ।
७. बारह मात्राओं का एक छंद जिसके अंत में एक जगण होता है ।
८. एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में भगण, नगण और एक गुरु होता है ।
९. चौबीस मात्राओं का एक छंद जिसमें ७+७+७+३ के विराम से २४ मात्राएँ और अंत में सगण होता है ।
लीला ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ नील]
१. स्याह रंग का घोड़ा । उ॰— लीले, सुरंग, कुमैत श्याम तेहि परदे सब मन रंग ।— (शब्द॰) ।
२. गोदना ।
लीला ^३ वि॰ नीला । उ॰—कटि लहँगा लीलो वन्यो धौं को जो देखि न मोहे ।—सूर (शब्द॰) ।