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वसन्त

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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वसंत संज्ञा पुं॰ [सं॰ वसन्त] [वि॰ वासंत, वासंतक, वासतिक, वसंती]

१. वर्ष की छह ऋतुओं में से प्रधान और प्रथम ऋतु जिसके अंतर्गत चैत और बैसाख के महीने माने गए है । नई पत्ती लगने और बहुत से फूल फूलने की सुंदर ऋतु । बहार का मौसम । विशेष—प्राचीन वैदिक काल में यह ऋतु चैत और बैसाख में ही पड़ती थी; पर क्रमशः अयन खिसकने से आजकल प्रकृति में कुछ अंतर दिखाई पड़ता है । इसी से पीछे के कुछ ग्रंथों में फागुन और चैत के महीने वसंत ऋतु के कहे गए हैं । पर काव्य आदि में परंपरानुसार अबतक चैत और बैसाख ही इस ऋतु के महीने माने जाते हैं । वसंत ऋतु के ये लक्षण कहे गए हैं—पेड़ों में फूल लगना और नई पत्तियाँ आना, शीतल, मंद और सुगंधयुक्त वायु चलना, सायंकाल अत्यंत मनोरम होना और स्त्री पुरुषों का उमंग से भरना, आदि । इस ऋतु में प्राचीन काल में वसंतोत्सव और मदनपूजा होती थी । आजकल होली का उत्सव उसी की परंपरा है । पुराणों में इस ऋतु का अधिष्ठाता देवता कामदेव का सहचर कहा गया है ।

२. अतिसार रोग ।

३. शीतला रोग । विस्फोटक । चेचक ।

४. मसूरिका रोग ।

५. छह रागों में दूसरा राग । (संगीत) । विशेष—इस राग की उत्पत्ति पंचवक्त्र शिव के पाँचवें मुख से कही गई है । इसकी छह रागिनियाँ ये हैं—देशी, देवगिरी, वैराटी, ताड़िका, ललिता और हिंडोला । कल्लिनाथ के अनुसार छह रागिनियाँ ये हैं—अंधूली, गमकी, पटमंजरी, गौड़केरी, धामकली और देवशाखा । संगीतदामोदर का मत है कि श्रीपंचमी से हरिशयनी एकादशी तक वसंत राग गा सकते हैं । पर संगीतदर्पण के अनुसार इसे वसंत ऋतु में ही गाना चाहिए । इसका सरगम इस प्रकार है—सा, रि, ग, म, प, नि, सा । कुछ लोग इस राग को हिंदोल राग का पुत्र मानते हैं ।

६. एक ताल का नाम । (संगीत) ।

७. फूलों का गुच्छा ।

८. नाटक में विदूषकों की आख्या वा नाम (को॰) ।

९. एक वृत्त का नाम (को॰) ।

वसंत ^२ वि॰

१. बसंती । वसंत ऋतु का । वसंत संबंधी ।

२. युवा । जीवन के वसंत में वर्तमान । युवक ।

३. कार्यतत्पर । काम में संलग्न [को॰] ।