विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/य-लहरी
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- मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
- यः—पुं॰—-—या + ड—जाने वाला, गन्ता
- यः—पुं॰—-—या + ड—गाड़ी
- यः—पुं॰—-—या + ड—हवा, वायु
- यः—पुं॰—-—या + ड—मिलाप
- यः—पुं॰—-—या + ड—यश
- यः—पुं॰—-—या + ड—जौ
- यकन्—नपुं॰—-—-—जिगर
- यकृत्—नपुं॰—-—यं संयमं करोति कृ क्विप् तुक् च्—जिगर, या तद्गत प्रभावशालिता
- यकृतात्मिका—स्त्री॰—यकृत्-आत्मिका—-—तैलचोर
- यकृतोदरम्—नपुं॰—यकृत्-उदरम्—-—जिगर की वृद्धि
- यकृत्कोषः—पुं॰—यकृत्-कोषः—-—जिगर को ढकने वाली झिल्ली
- यक्षः—पुं॰—-—यक्ष्यते-यक्ष् + (कर्मणि) घञ्—एक देवयोनि
- यक्षः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का भूत-प्रेत
- यक्षः—पुं॰—-—-—इन्द्र का महल
- यक्षः—पुं॰—-—-—कुबेर
- यक्षी—स्त्री॰—-—-—यक्ष जाति की स्त्री
- यक्षाधिपः—पुं॰—यक्षः-अधिपः—-—यक्षों का राजा कुबेर
- यक्षाधिपतिः—पुं॰—यक्षः-अधिपतिः—-—यक्षों का राजा कुबेर
- यक्षेन्द्रः—पुं॰—यक्षः-इन्द्रः—-—यक्षों का राजा कुबेर
- यक्षावासः—पुं॰—यक्षः-आवासः—-—जंजीर का वृक्ष
- यक्षकर्दमः—पुं॰—यक्षः-कर्दमः—-—एक प्रकार का लेप
- यक्षग्रहः—पुं॰—यक्षः-ग्रहः—-—यक्ष या भूत प्रेतादि की बाधा से युक्त व्यक्ति
- यक्षतरुः—पुं॰—यक्षः-तरुः—-—बटवृक्ष
- यक्षधूपः—पुं॰—यक्षः-धूपः—-—गूगल, लोबान
- यक्षरसः—पुं॰—यक्षः-रसः—-—एक प्रकार का मादक पेय
- यक्षराज्—पुं॰—यक्षः-राज्—-—कुबेर का नाम
- यक्षराजः—पुं॰—यक्षः-राजः—-—कुबेर का नाम
- यक्षरात्रिः—स्त्री॰—यक्षः-रात्रिः—-—दीपमाला का उत्सव
- यक्षवित्तः—पुं॰—यक्षः-वित्तः—-—यक्ष जैसा
- यक्षिणी—स्त्री॰—-—यक्ष् + इनि + ङीप्—यक्ष जाति की स्त्री
- यक्षिणी—स्त्री॰—-—-—कुबेर की पत्नी का नाम
- यक्षिणी—स्त्री॰—-—-—दुर्गा क़ी सेवा में रहने वाली यक्षस्त्री
- यक्षिणी—स्त्री॰—-—-—एक अप्सरा
- यक्ष्मः—पुं॰—-—यक्ष् +मन्—फेफड़ों का रोग, क्षयरोग
- यक्ष्मः—पुं॰—-—यक्ष् +मन्—रोगमार्ग
- यक्ष्मन्—पुं॰—-—यक्ष् +मनिन् —फेफड़ों का रोग, क्षयरोग
- यक्ष्मन्—पुं॰—-—यक्ष् +मनिन् —रोगमार्ग
- यक्ष्मग्रह—वि॰—यक्ष्मः-ग्रह—-—क्षयरोग का आक्रमण
- यक्ष्मग्रस्त—वि॰—यक्ष्मः-ग्रस्त—-—क्षयरोगी
- यक्ष्मघ्नी—स्त्री॰—यक्ष्मः-घ्नी—-—अंगूर
- यक्ष्मिन्—वि॰—-—यक्ष्म + इनि—जो क्षयरोग से ग्रस्त या पीड़ित है
- यज्—भ्वा॰ उभ॰<यजति> <यजते>, <इष्ट>, कर्मवा॰ <इज्यते>, इच्छा॰ <यियक्षति>, <यियक्षते>—-—-—यज्ञ करना, त्याग पूर्वक पूजा करना
- यज्—भ्वा॰ उभ॰<यजति> <यजते>, <इष्ट>, कर्मवा॰ <इज्यते>, इच्छा॰ <यियक्षति>, <यियक्षते>—-—-—आहुति देना
- यज्—भ्वा॰ उभ॰<यजति> <यजते>, <इष्ट>, कर्मवा॰ <इज्यते>, इच्छा॰ <यियक्षति>, <यियक्षते>—-—-—पूजा करना, सुभूषित करना, सम्मान करना, आदर करना
- यज्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—-—-—यज्ञ करवाना
- यज्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—-—-—यज्ञ में सहायता देना
- यज्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—-—-—यज्ञ करवाना
- यज्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—-—-—यज्ञ में सहायता देना
- अयज्—भ्वा॰ उभ॰—अ-यज्—-—यज्ञ करना, आहुति देना
- परियज्—भ्वा॰ उभ॰—परि-यज्—-—यज्ञ करना, आहुति देना
- प्रयज्—भ्वा॰ उभ॰—प्र-यज्—-—यज्ञ करना, आहुति देना
- संयज्—भ्वा॰ उभ॰—सम्-यज्—-—अलंकृत करना, पूजा करना
- यजतिः—पुं॰—-—यज् + तिप्—यज्ञीय अनुष्ठानों का पारिभाषिक नाम
- यजत्रः—पुं॰—-—यज् + अत्र—अग्निहोत्री
- यजत्रम्—नपुं॰—-—-—अभिमन्त्रित अग्नि को स्थापित रखना
- यजनम्—नपुं॰—-—यज् + ल्युट्—यज्ञ करने की क्रिया
- यजनम्—नपुं॰—-—यज् + ल्युट्—यज्ञ
- यजनम्—नपुं॰—-—यज् + ल्युट्—यज्ञ करने का स्थान
- यजमानः—पुं॰—-—यज् + शानच्—यजमान
- यजमानः—पुं॰—-—यज् + शानच्—यजमान
- यजमानः—पुं॰—-—यज् + शानच्—आतिथेयी, संरक्षक, धनी व्यक्ति
- यजमानः—पुं॰—-—यज् + शानच्—कुल का प्रधान पुरुष
- यजमानशिष्यः—पुं॰—यजमानः-शिष्यः—-—स्वयं यज्ञ करने वाले ब्राह्मण का शिष्य
- यजिः—पुं॰—-—यज् + इन्—यज्ञकर्ता
- यजिः—पुं॰—-—यज् + इन्—यज्ञ करने की क्रिया
- यजिः—पुं॰—-—यज् + इन्—यज्ञ
- यजुस्—नपुं॰—-—यज् + उसि—यज्ञीय प्रार्थना या मन्त्र
- यजुस्—नपुं॰—-—-—यजुर्वेद का पाठ
- यजुस्—नपुं॰—-—-—यजुर्वेद का नाम
- यजुर्विद्—वि॰—यजुस्-विद्—-—यज्ञीय विधि का ज्ञाता
- यजुर्वेदः—पुं॰—यजुस्-वेदः—-—वेदों में द्वितीय
- यज्ञः—पुं॰—-—यज् + (भावे) नङ्—याग या मख, यज्ञ सम्बन्धी कृत्य
- यज्ञः—पुं॰—-—-—पूजा का कार्य
- यज्ञः—पुं॰—-—-—अग्नि का नाम
- यज्ञः—पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
- यज्ञांशः—पुं॰—यज्ञः-अंशः—-—यज्ञ का एक भाग
- यज्ञभुज्—पुं॰—यज्ञः-भुज्—-—देवता देव
- यज्ञागार—वि॰—यज्ञः-अगार—-—एक यज्ञीय भूमि
- यज्ञागार—वि॰—यज्ञः-आगार—-—एक यज्ञीय भूमि
- यज्ञागारम्—नपुं॰—यज्ञः-अगारम्—-—एक यज्ञीय भूमि
- यज्ञागारम्—नपुं॰—यज्ञः-आगारम्—-—एक यज्ञीय भूमि
- यज्ञाङ्गम्—नपुं॰—यज्ञः-अङ्गम्—-—यज्ञ का एक भाग
- यज्ञाङ्गम्—नपुं॰—यज्ञः-अङ्गम्—-—कोई भी यज्ञीय आवश्यकता, यज्ञ का साधन
- यज्ञगः—पुं॰—यज्ञः-गः—-—गूलर का पेड़
- यज्ञगः—पुं॰—यज्ञः-गः—-—विष्णु का नाम
- यज्ञारिः—पुं॰—यज्ञः-अरिः—-—शिव का विशेषण
- यज्ञाशनः—पुं॰—यज्ञः-अशनः—-—देव
- यज्ञात्मन्—पुं॰—यज्ञः-आत्मन्—-—विष्णु का नाम
- यज्ञेश्वरः—पुं॰—यज्ञः-ईश्वरः—-—विष्णु का नाम
- यज्ञोपकरणम्—नपुं॰—यज्ञः-उपकरणम्—-—यज्ञपात्र
- यज्ञोपवीतम्—नपुं॰—यज्ञः-उपवीतम्—-—द्विज द्वारा पहना जाने वाला यज्ञोपवीत
- यज्ञकर्मन्—वि॰—यज्ञः-कर्मन्—-—यज्ञकार्य में व्यस्त
- यज्ञकर्मन्—नपुं॰—यज्ञः-कर्मन्—-—यज्ञीय कृत्य
- यज्ञकल्प—वि॰—यज्ञः-कल्प—-—यज्ञ के समान
- यज्ञकीलकः—पुं॰—यज्ञः-कीलकः—-—वह खूँटा जिसके साथ यज्ञीय बलि-पशु बाँधा जाता है
- यज्ञकुण्डम्—पुं॰—यज्ञः-कुण्डम्—-—हवनकुण्ड, अग्निकुण्ड
- यज्ञकृत्—वि॰—यज्ञः-कृत्—-—यज्ञानुष्ठान करने वाला
- यज्ञकृत्—पुं॰—यज्ञः-कृत्—-—विष्णु का नाम
- यज्ञकृत्—पुं॰—यज्ञः-कृत्—-—यज्ञ कराने वाला पुरोहित
- यज्ञऋतुः—पुं॰—यज्ञः-ऋतुः—-—यज्ञीय कृत्य
- यज्ञऋतुः—पुं॰—यज्ञः-ऋतुः—-—पूर्णकृत्य या मुख्य अनुष्ठान
- यज्ञऋतुः—पुं॰—यज्ञः-ऋतुः—-—विष्णु का विशेषण
- यज्ञघ्नः—पुं॰—यज्ञः-घ्नः—-—वह राक्षस जो यज्ञों में विघ्न डालता है
- यज्ञदक्षिणा—स्त्री॰—यज्ञः-दक्षिणा—-—यज्ञीय उपहार
- यज्ञदीक्षा—स्त्री॰—यज्ञः-दीक्षा—-—किसी यज्ञीय कृत्य में प्रवेश या उपक्रम
- यज्ञदीक्षा—स्त्री॰—यज्ञः-दीक्षा—-—यज्ञ का अनुष्ठान
- यज्ञद्रव्यम्—नपुं॰—यज्ञः-द्रव्यम्—-—यज्ञ वस्तु
- यज्ञपतिः—पुं॰—यज्ञः-पतिः—-—यजमान
- यज्ञपतिः—पुं॰—यज्ञः-पतिः—-—विष्णु का नाम
- यज्ञपशुः—पुं॰—यज्ञः-पशुः—-—यज्ञ के लिए पशु, यज्ञीय बलि
- यज्ञपशुः—पुं॰—यज्ञः-पशुः—-—घोड़ा
- यज्ञपुरुषः—पुं॰—यज्ञः-पुरुषः—-—विष्णु का विशेषण
- यज्ञफलदः—पुं॰—यज्ञः-फलदः—-—विष्णु का विशेषण
- यज्ञभागः—पुं॰—यज्ञः-भागः—-—यज्ञ का एक अंश, यज्ञ के उपहारों में हिस्सा
- यज्ञभागः—पुं॰—यज्ञः-भागः—-—देव, देवता
- यज्ञभुज्—पुं॰—यज्ञः-भुज्—-—देव, देवता
- यज्ञभूमिः—स्त्री॰—यज्ञः-भूमिः—-—यज्ञ के लिए स्थान, यज्ञीय भूमि
- यज्ञभृत्—पुं॰—यज्ञः-भृत्—-—विष्णु का विशेषण
- यज्ञभोक्तृ—पुं॰—यज्ञः-भोक्तृ—-—विष्णु या कृष्ण का विशेषण
- यज्ञरसः—नपुं॰—यज्ञः-रसः—-—सोम
- यज्ञरेतस्—नपुं॰—यज्ञः-रेतस्—-—सोम
- यज्ञवराहः—पुं॰—यज्ञः-वराहः—-—शूकरावतार में विष्णु
- यज्ञवल्लिः—पुं॰—यज्ञः-वल्लिः—-—सोम की बेल या पौधा
- यज्ञवल्ली—स्त्री॰—यज्ञः-वल्ली—-—सोम की बेल या पौधा
- यज्ञवाटः—पुं॰—यज्ञः-वाटः—-—यज्ञ के लिए तैयार की गई या घेरी गई भूमि
- यज्ञवाहनः—पुं॰—यज्ञः-वाहनः—-—विष्णु का विशेषण
- यज्ञवृक्षः—पुं॰—यज्ञः-वृक्षः—-—वट वृक्ष
- यज्ञवेदिः—पुं॰—यज्ञः-वेदिः—-—यज्ञ का वेदी
- यज्ञवेदी—स्त्री॰—यज्ञः-वेदी—-—यज्ञ का वेदी
- यज्ञशरणम्—नपुं॰—यज्ञः-शरणम्—-—यज्ञकक्ष,या अस्थायी छप्पर जिसके नीचे बैठकर यज्ञ किया जाय
- यज्ञशाला—स्त्री॰—यज्ञः-शाला—-—यज्ञ का कमरा
- यज्ञशेषः—पुं॰—यज्ञः-शेषः—-—यज्ञ का अवशिष्ट
- यज्ञशेषम्—नपुं॰—यज्ञः-शेषम्—-—यज्ञ का अवशिष्ट
- यज्ञश्रेष्ठा—स्त्री॰—यज्ञः-श्रेष्ठा—-—सोम का पौधा
- यज्ञसदस्—नपुं॰—यज्ञः-सदस्—-—यज्ञ में उपस्थित जनमण्डली
- यज्ञसम्भारः—पुं॰—यज्ञः-सम्भारः—-—यज्ञ के लिए आवश्यक सामग्री
- यज्ञसारः—पुं॰—यज्ञः-सारः—-—विष्णु का विशेषण
- यज्ञसिद्धिः—स्त्री॰—यज्ञः-सिद्धिः—-—यज्ञ की पूर्ति
- यज्ञसूत्रम्—नपुं॰—यज्ञः-सूत्रम्—-—द्विज द्वारा पहना जाने वाला यज्ञोपवीत
- यज्ञसेनः—पुं॰—यज्ञः-सेनः—-—राजा द्रुपद का विशेषण
- यज्ञस्थाणुः—पुं॰—यज्ञः-स्थाणुः—-—यज्ञ का खम्भा
- यज्ञहन्—पुं॰—यज्ञः-हन्—-—शिव का विशेषण
- यज्ञहनः—पुं॰—यज्ञः-हनः—-—शिव का विशेषण
- यज्ञिकः—पुं॰—-—यज्ञ + ठन्—ढाक का पेड़
- यज्ञिय—वि॰—-—यज्ञाय हितः-घ—यज्ञसम्बन्धी, यज्ञोपयुक्त, या यज्ञपरक
- यज्ञिय—वि॰—-—-—पुनीत, पवित्र, दिव्य
- यज्ञिय—वि॰—-—-—अर्चनीय, पूजनीय
- यज्ञिय—वि॰—-—-—भक्त, पुण्यशील
- यज्ञियः—पुं॰—-—-—देव, देवता
- यज्ञियः—पुं॰—-—-—तीसरा युग, द्वापर
- यज्ञियदेशः—पुं॰—यज्ञिय-देशः—-—यज्ञों का देश
- यज्ञियशाला—स्त्री॰—यज्ञिय-शाला—-—यज्ञमण्डप
- यज्ञीय —वि॰—-—यज्ञ + छ—यज्ञ संबंधी
- यज्ञीयः—पुं॰—-—-—गूलर का पेड़
- यज्ञीयब्रह्मपादपः—पुं॰—यज्ञीय-ब्रह्मपादपः—-—विकंकत नामक पेड़
- यज्वन्—वि॰—-—यज् + क्वनिप्—यज्ञ करने वाला, पूजा करने वाला, अर्चना करने वाला आदि
- यज्वन्—पुं॰—-—-—यज्ञों का अनुष्ठाता
- यज्वन्—पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
- यत्—भ्वा॰ आ॰ <यतते>,<यतित>—-—-—यत्न करना, कोशिश करना, प्रयास करना, उद्योग करना
- यत्—भ्वा॰ आ॰ <यतते>,<यतित>—-—-—प्रयास करना, उत्सुक या आतुर होना, उत्कण्ठित होना
- यत्—भ्वा॰ आ॰ <यतते>,<यतित>—-—-—हाथ पैर मारना, निरन्तर उद्योग करना, श्रम करना
- यत्—भ्वा॰ आ॰ <यतते>,<यतित>—-—-—सावधानी बरतना, खबरदार रहना
- यत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—-—-—लौटाना वापिस करना, बदला देना, हरजाना देना, फेर देना
- यत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—-—-—घृणा करना, निन्दा करना
- यत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—-—-—प्रोत्साहन देना, प्राण फूंकना, सजीव बनाना
- यत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—-—-—सताना, दुःखी करना, परेशान करना
- यत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—-—-—तैयार करना, विस्तार से कार्य करना
- यत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—-—-—लौटाना वापिस करना, बदला देना, हरजाना देना, फेर देना
- यत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—-—-—घृणा करना, निन्दा करना
- यत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—-—-—प्रोत्साहन देना, प्राण फूंकना, सजीव बनाना
- यत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—-—-—सताना, दुःखी करना, परेशान करना
- यत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—-—-—तैयार करना, विस्तार से कार्य करना
- आयत्—भ्वा॰ आ॰ —आ-यत्—-—प्रयास करना, कोशिश करना
- आयत्—भ्वा॰ आ॰ —आ-यत्—-—भरोसे पर रहना, निर्भर रहना
- निर्यत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—निस्-यत्—-—लौटाना, फेर देना
- निर्यत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—निस्-यत्—-—बदला देना, वापिस करना, प्रतिहिंसा करना
- प्रयत्—भ्वा॰ आ॰ —प्र-यत्—-—चेष्टा करना, प्रयत्न करना, प्रयास करना
- प्रतियत्—भ्वा॰ आ॰ —प्रति-यत्—-—चेष्टा करना
- प्रतियत्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—प्रति-यत्—-—फेर देना, वापिस करना
- संयत्—भ्वा॰ आ॰ —सम्-यत्—-—संघर्ष करना, तर्क विर्तक करना
- यत—भू॰क॰कृ॰—-—यम् + क्त—प्रतिबद्ध, दमन किया हुआ, नियंत्रित, पराभूत
- यत—भू॰क॰कृ॰—-—-—सीमित, संयत, मर्यादित
- यतम्—भू॰क॰कृ॰—-—-—महावत द्वारा हाथी को एड़ लगना
- यतात्मन्—वि॰—यत-आत्मन्—-—स्वसंयत, जितेन्द्रिय
- यताहार—वि॰—यत-आहार—-—मिताहारी, संयमी
- यतेन्द्रिय—वि॰—यत-इन्द्रिय—-—जितेन्द्रिय, पवित्र, धर्मात्मा
- यतचित्त—वि॰—यत-चित्त—-—मन को वश में रखने वाला
- यतमनस्—वि॰—यत-मनस्—-—मन को वश में रखने वाला
- यतमानस—वि॰—यत-मानस—-—मन को वश में रखने वाला
- यतवाच्—वि॰—यत-वाच्—-—मितभाषी, मौनावलंबी
- यतव्रत—वि॰—यत-व्रत—-—दृढ़ प्रतिज्ञ
- यतनम्—नपुं॰—-—यत् + ल्युट्—चेष्टा, प्रयत्न
- यतम—वि॰—-—यद् + डतमच्—जो या जौन सा (बहुतों में से)
- यतर—वि॰—-—यद् + डतरच्—जो (दो में से)
- यतस्—अव्य॰—-—यद् + तसिल्—जहां से, जिस जगह से, जिस स्थान से या जिस दिशा से
- यतस्—अव्य॰—-—-—जिस कारण, जिस लिए
- यतस्—अव्य॰—-—-—क्योंकि, चूँकि, के कारण से, इस लिए कि
- यतस्—अव्य॰—-—-—जिस समय से लेकर, जब से कि
- यतस्—अव्य॰—-—-—ताकि, जिससे कि
- यतस्ततः—अव्य॰—-—-—जिस किसी जगह से, किसी भी दिशा से
- यतस्ततः—अव्य॰—-—-—चाहे किसी व्यक्ति से
- यतस्ततः—अव्य॰—-—-—चाहे जहां, चारों ओर, किसी भी दिशा में
- यतो यतः—अव्य॰—-—-—चाहे जिस जगह से
- यतो यतः—अव्य॰—-—-—चाहे जिस से, किसी भी व्यक्ति से
- यतो यतः—अव्य॰—-—-—चाहे जहां, चाहे जिस दिशा में
- यतः प्रभृति—अव्य॰—-—-—जिस समय से लेकर
- यतोभव—वि॰—यतस्-भव—-—जिससे उत्पन्न
- यतोमूल—वि॰—यतस्-मूल—-—जिसमें जन्म लेने वाला, या जिससे उदित
- यति—सर्व॰ वि॰—-—यद् परिमाणे अति—जितने, जितनी बार, जितने कि
- यतिः—स्त्री॰—-—यम् + क्तिन्—प्रतिबंध, रोक, नियंत्रण
- यतिः—स्त्री॰—-—-—रोकना, ठहरना, आराम
- यतिः—स्त्री॰—-—-—दिग्दर्शन
- यतिः—स्त्री॰—-—-—संगीत में विराम
- यतिः—स्त्री॰—-—-—विश्राम
- यतिः—स्त्री॰—-—-—विधवा
- यतिः—पुं॰—-—-—संन्यासी
- यतित—वि॰—-—यत् + क्त—चेष्टा की गई, प्रयत्न किया गया, कोशिश की गई, प्रयास किया गया
- यतिन्—पुं॰—-—यत + इनि—संन्यासी
- यतिनी—पुं॰—-—यतिन् + ङीप्—विधवा
- यत्नः—पुं॰—-—यत् (भावे) नङ्—प्रयत्न, चेष्टा, प्रयास, कोशिश, उद्योग
- यत्नः—पुं॰—-—-—मेहनत, गंभीर मनोयोग, अध्यवसाय
- यत्नः—पुं॰—-—-—देखरेख, उत्साह, सावधानता, जागरूकता
- यत्नः—पुं॰—-—-—पीड़ा, कष्ट, श्रम, कठिनाई
- यत्र—अव्य॰—-—यद् + त्रल्—जहां, जिस स्थान में, जिधर
- यत्र—अव्य॰—-—-—जब, जैसा कि `यत्र काले' में
- यत्र—अव्य॰—-—-—चूँकि क्यों, जब से, जहाँ
- यत्रयत्र—अव्य॰—-—-—जहाँ कहीं
- यत्र यत्र—अव्य॰—-—-—चाहे जिस स्थान में, सर्वत्र
- यत्रकुत्र—अव्य॰—-—-—जहाँ कहीं चाहे जिस जगह
- यत्रकुत्र—अव्य॰—-—-—जब कभी
- यत्रक्वचन—अव्य॰—-—-—जहाँ कहीं चाहे जिस जगह
- यत्रक्वचन—अव्य॰—-—-—जब कभी
- यत्रक्वापि—अव्य॰—यत्र क्वापि—-—जहाँ कहीं चाहे जिस जगह
- यत्रक्वापि—अव्य॰—यत्र क्वापि—-—जब कभी
- यत्रत्य—वि॰—-—यत्र + त्यप्—जिस स्थान का, जिस स्थान पर रहता हुआ
- यथा—अव्य॰—-—यद् प्रकारे थाल्—कथितरीति के अनुसार
- यथा—अव्य॰—-—-—नामतः, जैसा कि आगे आता है
- यथा—अव्य॰—-—-—जैसा कि, की भांति
- यथा—अव्य॰—-—-—जैसा कि उदाहरणस्वरूप
- यथा—अव्य॰—-—-—प्रत्यक्ष उक्ति को आरंभ करने के समय प्रयुक्त, अन्त में चाहे `इति' हो या न हो
- यथा—स्त्री॰—-—-—जिससे कि, इसलिए कि
- यथा—स्त्री॰—-—-—तथा के सहवर्तित्व में प्रयुक्त होकर `यथा' के निम्नलिखित अर्थ है :- जैसा, वैसा(इस अवस्था में तथा के स्थान में `एवं' और `तद्वत्'
- यथा—स्त्री॰—-—-—ताकि, जिससे कि
- यथा—स्त्री॰—-—-—क्योंकि, इसलिए, क्योंकि
- यथा—स्त्री॰—-—-—यदि-तो, इतने विश्वास से कि, बड़े निश्चय से
- यथा यथा- तथा तथा—अव्य॰—-—-—जितना अधिक उतना हि जितना कम उतना ही
- यथा तथा—अव्य॰—-—-—किसी रीति से, किसी भी ढंग से
- यथाकथञ्चित्—अव्य॰—-—-—किसी न किसी प्रकार
- यथांशम्—अव्य॰—यथा-अंशम्—-—ठीक-ठीक अनुपातरूप में
- यथांशतः—अव्य॰—यथा-अंशतः—-—ठीक-ठीक अनुपातरूप में
- यथाधिकारम्—अव्य॰—यथा-अधिकारम्—-—अधिकार या प्रमाण के अनुसार
- यथाधीत—वि॰—यथा-अधीत—-—जैसा पढ़ा हुआ या अध्ययन किया हुआ है, मूलपाठ के समनुरूप
- यथानुपूर्वम्—अव्य॰—यथा-अनुपूर्वम्—-—नियमित क्रम या परम्परा में, क्रमशः, यथाक्रम
- यथानुपूर्व्यम्—अव्य॰—यथा-अनुपूर्व्यम्—-—नियमित क्रम या परम्परा में, क्रमशः, यथाक्रम
- यथानुपूर्व्या—अव्य॰—यथा-अनुपूर्व्या—-—नियमित क्रम या परम्परा में, क्रमशः, यथाक्रम
- यथानुभूतम्—अव्य॰—यथा-अनुभूतम्—-—अनुभव के अनुसार
- यथानुभूतम्—अव्य॰—यथा-अनुभूतम्—-—पूर्वानुभव के अनुरूप
- यथानुरूपम्—अव्य॰—यथा-अनुरूपम्—-—यर्थाथ समनुरुपता में, उचित रूप से
- यथाभिप्रेत—वि॰—यथा-अभिप्रेत—-—इच्छा के अनुकूल
- यथाभिमत—वि॰—यथा-अभिमत—-—इच्छा के अनुकूल
- यथाभिलषित—वि॰—यथा-अभिलषित—-—इच्छा के अनुकूल
- यथाभीष्ट—वि॰—यथा-अभीष्ट—-—इच्छा के अनुकूल
- यथार्थ—वि॰—यथा-अर्थ—-—सचाई के अनुरूप, सत्य, वास्तविक, सही
- यथार्थ—वि॰—यथा-अर्थ—-—सत्य अर्थ के समनुरूप, अर्थ के अनुसार सही ठीक, उपयुक्त, सार्थक
- यथार्थ—वि॰—यथा-अर्थ—-—योग्य, उपयुक्त
- यथार्थम्—अव्य॰—यथा-अर्थम्—-—सत्यतापूर्वक, सही
- यथार्थतः—अव्य॰—यथा-अर्थतः—-—सत्यतापूर्वक, सही
- यथाक्षर—वि॰—यथा-अक्षर—-—सार्थक
- यथानामन्—वि॰—यथा-नामन्—-—जिसका नाम अर्थ की दृष्टि से सही है या पूर्णतः सार्थक है
- यथावर्णः—पुं॰—यथा-वर्णः—-—गुप्तचर
- यथार्ह—वि॰—यथा-अर्ह—-—गुणों के अनुसार अधिकारी
- यथार्ह—वि॰—यथा-अर्ह—-—समुचित, उपयुक्त न्यायोचित
- यथावर्णः—पुं॰—यथा-वर्णः—-—गुप्तचर, दूत
- यथार्हम्—अव्य॰—यथा-अर्हम्—-—गुण या योग्यता के अनुरूप
- यथार्हतः—अव्य॰—यथा-अर्हतः—-—गुण या योग्यता के अनुरूप
- यथार्हणम्—अव्य॰—यथा-अर्हणम्—-—औचित्य के अनुरूप
- यथार्हणम्—अव्य॰—यथा-अर्हणम्—-—गुण या योग्यता के अनुरूप
- यथावकाशम्—अव्य॰—यथा-अवकाशम्—-—कक्ष या स्थान के अनुसार
- यथावकाशम्—अव्य॰—यथा-अवकाशम्—-—जैसा कि अवसर हो, अवसरानुकूल, अवकाशानुकूल, औचित्यानुकुल
- यथावकाशम्—अव्य॰—यथा-अवकाशम्—-—ठीक स्थान पर
- यथावस्थम्—अव्य॰—यथा-अवस्थम्—-—दशा या परिस्थिति के अनुकूल
- यथाख्यात—वि॰—यथा-आख्यात—-— पूर्वोल्लिखित
- यथाख्यातम्—अव्य॰—यथा-आख्यातम्—-—जैसा कि पहले बतलाया गया है
- यथागत—वि॰—यथा-आगत—-—मूर्ख, जड
- यथागतम्—अव्य॰—यथा-आगतम्—-—जैसा कि कोई आया, उसी रीति से जैसे कि कोई आया
- यथाचारम्—अव्य॰—यथा-आचारम्—-—प्रथा के अनुसार, जैसा कि प्रचलन है
- यथाम्नातम्—अव्य॰—यथा-आम्नातम्—-—जैसा कि वेदों में विहित है
- यथाम्नायम्—अव्य॰—यथा-आम्नायम्—-—जैसा कि वेदों में विहित है
- यथारम्भम्—अव्य॰—यथा-आरम्भम्—-—आरंभ के अनुसार, नियमित क्रम या अनुक्रम में
- यथावासम्—अव्य॰—यथा-आवासम्—-—अपने रहने के अनुसार, प्रत्येक अपने निवास के अनुसार
- यथाशयम्—अव्य॰—यथा-आशयम्—-—इच्छा या आशय के अनुसार
- यथाशयम्—अव्य॰—यथा-आशयम्—-—करार के अनुसार
- यथाश्रमम्—अव्य॰—यथा-आश्रमम्—-—आश्रम या किसी व्यक्ति के धार्मिक जीवन के विशिष्ट के अनुसार
- यथेच्छा—वि॰—यथा-इच्छा—-—इच्छा या कामना के अनुसार, अपनी रुचि के अनुकूल, यथेष्ट
- यथेष्ट—वि॰—यथा-इष्ट—-—इच्छा या कामना के अनुसार, अपनी रुचि के अनुकूल, यथेष्ट
- यथेप्सित—वि॰—यथा-ईप्सित—-—इच्छा या कामना के अनुसार, अपनी रुचि के अनुकूल, यथेष्ट
- यथेच्छम्—अव्य॰—यथा-इच्छम्—-—इच्छा या कामना के अनुसार, इच्छा या मन के अनुकूल
- यथेच्छम्—अव्य॰—यथा-इच्छम्—-—जितनी आवश्यकता हो, मन भर कर
- यथेष्टम्—अव्य॰—यथा-इष्टम्—-—इच्छा या कामना के अनुसार, इच्छा या मन के अनुकूल
- यथेष्टम्—अव्य॰—यथा-इष्टम्—-—जितनी आवश्यकता हो, मन भर कर
- यथेप्सितम्—अव्य्॰—यथा-ईप्सितम्—-—इच्छा या कामना के अनुसार, इच्छा या मन के अनुकूल
- यथेप्सितम्—अव्य्॰—यथा-ईप्सितम्—-—जितनी आवश्यकता हो, मन भर कर
- यथेक्षितम्—अव्य॰—यथा-ईक्षितम्—-—जैसा कि स्वयं देखा हो, जैसा कि प्रत्यक्ष किया गया हो
- यथोक्त—वि॰—यथा-उक्त—-— उपर्युल्लिखित
- यथोदित—वि॰—यथा-उदित—-— उपर्युल्लिखित
- यथोचित—वि॰—यथा-उचित—-—उपयुक्त, उचित, वाजिब, योग्य
- यथोचितम्—अव्य॰—यथा-उचितम्—-—ठीक-ठीक, उपयुक्त रुप से, उचित रूप से
- यथोत्तरम्—अव्य॰—यथा-उत्तरम्—-—नियमित क्रम या परंपरा में, क्रमशः
- यथोत्साहम्—अव्य॰—यथा-उत्साहम्—-—अपनी शक्ति या ताकत के अनुसार
- यथोत्साहम्—अव्य॰—यथा-उत्साहम्—-—अपनी पूरी शक्ति से
- यथोद्दिष्ट—वि॰—यथा-उद्दिष्ट—-—जैसा कि वर्णन किया गया है या संकेतित है
- यथोद्दिष्टम्—अव्य॰—यथा-उद्दिष्टम्—-—संकेतित रीति से
- यथोद्देशम्—अव्य॰—यथा-उद्देशम्—-—संकेतित रीति से
- यथोपजोषम्—अव्य॰—यथा-उपजोषम्—-—मन या इच्छा के अनुसार
- यथोपदेशम्—अव्य॰—यथा-उपदेशम्—-—जैसा कि परामर्श या अनुदेश दिया गया है
- यथापयोगम्—अव्य॰—यथा-उपयोगम्—-—आवश्यकता या कार्य की दृष्टि से, परिस्थिति के अनुसार
- यथाकाम—वि॰—यथा-काम—-—इच्छा के अनुरूप
- यथाकामम्—अव्य॰—यथा-कामम्—-—रुचि के अनुकूल, इच्छा के अनुरूप, मन भर कर
- यथाकामिन्—वि॰—यथा-कामिन्—-—स्वतंत्र, प्रतिबंधरहित
- यथाकालः—पुं॰—यथा-कालः—-—ठीक या सही समय, उचित समय
- यथाकालम्—अव्य॰—यथा-कालम्—-—ठीक समय पर, समयानुकूल, मौसम के अनुसार
- यथाकृत—वि॰—यथा-कृत—-—प्रथानुकूल
- यथाक्रमम्—अव्य॰—यथा-क्रमम्—-—ठीक क्रम या परंपरा से, नियमित रूप से, सही रूप में, उचित रीति से
- यथाक्रमेण—अव्य॰—यथा-क्रमेण—-—ठीक क्रम या परंपरा से, नियमित रूप से, सही रूप में, उचित रीति से
- यथाक्षमम्—अव्य॰—यथा-क्षमम्—-—अपनी शक्ति के अनुसार, जितना संभव हो
- यथाजात—वि॰—यथा-जात—-—मूर्ख, अज्ञानी जड
- यथाज्ञानम्—अव्य॰—यथा-ज्ञानम्—-—व्यक्ति की अधिक से अधिक जानकारी या वुद्धि के अनुसार
- यथाज्येष्ठम्—अव्य॰—यथा-ज्येष्ठम्—-—पद के अनुसार, वरिष्ठता के अनुसार
- यथातथ—वि॰—यथा-तथ—-—सत्य, सही
- यथातथ—वि॰—यथा-तथ—-—परिशुद्ध, खरा
- यथातथम्—वि॰—यथा-तथम्—-—किसी वस्तु के विवरण या बिशेषताओं का आख्यान, विवरण मूलक या सूक्ष्मकथन
- यथातथम्—अव्य॰—यथा-तथम्—-—यथार्थतः, सूक्ष्मतया
- यथातथम्—अव्य॰—यथा-तथम्—-—सही तौर पर, उचित रूप से, जैसा कि वस्तुतः बात हो
- यथादिक्—अव्य॰—यथा-दिक्—-—सब दिशाओं में
- यथादिशम्—अव्य॰—यथा-दिशम्—-—सब दिशाओं में
- यथानिर्दिष्ट—वि॰—यथा-निर्दिष्ट—-—जैसा कि पहले उल्लेख हो चुका है
- यथान्यायम्—अव्य॰—यथा-न्यायम्—-—न्यायतः, सही रूप से, उचित रीति से
- यथापुरम्—अव्य॰—यथा-पुरम्—-—जैसा कि पहले था, जैसा कि पूर्व अवसरों पर था
- यथापूर्व—वि॰—यथा-पूर्व—-—पूर्ववर्ती
- यथापूर्वक—वि॰—यथा-पूर्वक—-— पूर्ववर्ती
- यथापूर्वम्—अव्य॰—यथा-पूर्वम्—-—जैसा कि पहले था
- यथापूर्वम्—अव्य॰—यथा-पूर्वम्—-—क्रम या परंपरा में, क्रमशः
- यथापूर्वकम्—अव्य॰—यथा-पूर्वकम्—-—जैसा कि पहले था
- यथापूर्वकम्—अव्य॰—यथा-पूर्वकम्—-—क्रम या परंपरा में, क्रमशः
- यथाप्रदेशम्—अव्य॰—यथा-प्रदेशम्—-—उचित या उपयुक्त स्थान में
- यथाप्रदेशम्—अव्य॰—यथा-प्रदेशम्—-—विधि या निदेश के अनुसार
- यथाप्रधानम्—अव्य॰—यथा-प्रधानम्—-—पद या स्थिति के अनुकूल, पूर्ववर्तिता के अनुसार
- यथाप्रधानतः—अव्य॰—यथा-प्रधानतः—-—पद या स्थिति के अनुकूल, पूर्ववर्तिता के अनुसार
- यथाप्राणम्—अव्य॰—यथा-प्राणम्—-—सामर्थ्य के अनुसार, अपनी पूरी शक्ति से
- यथाप्राप्त—वि॰—यथा-प्राप्त—-—परिस्थितियों के अनुरूप
- यथाप्रार्थितम्—अव्य॰—यथा-प्रार्थितम्—-—प्रार्थना के अनुकूल
- यथाबलम्—अव्य॰—यथा-बलम्—-—अपनी अधिकतम् शक्ति के साथ, अपनी शक्ति से
- यथाभागम्—अव्य॰—यथा-भागम्—-—प्रत्येक के भाग के अनुसार, ठीक अनुपात से
- यथाभागम्—अव्य॰—यथा-भागम्—-—प्रत्येक अपने क्रमिक स्थान पर
- यथाभागम्—अव्य॰—यथा-भागम्—-—ठीक स्थान पर
- यथाभागशः—अव्य॰—यथा-भागशः—-—प्रत्येक के भाग के अनुसार, ठीक अनुपात से
- यथाभागशः—अव्य॰—यथा-भागशः—-—प्रत्येक अपने क्रमिक स्थान पर
- यथाभागशः—अव्य॰—यथा-भागशः—-—ठीक स्थान पर
- यथाभूतम्—अव्य॰—यथा-भूतम्—-—जो कुछ हो चुका उसके अनुसार, सच्चाई के अनुसार, सत्यतः,यथार्थतः
- यथामुखीन—वि॰—यथा-मुखीन—-—ठीक सामने देखने वाला
- यथायथम्—अव्य॰—यथा-यथम्—-—यथा-योग्य
- यथायथम्—अव्य॰—यथा-यथम्—-—नियमित क्रम में, पृथक् पृथक् एक एक करके
- यथायुक्तम्—अव्य॰—यथा-युक्तम्—-—परिस्थितियों के अनुकूल, यथायोग्य, उपयुक्त रूप से
- यथायोगम्—अव्य॰—यथा-योगम्—-—परिस्थितियों के अनुकूल, यथायोग्य, उपयुक्त रूप से
- यथायोग्य—वि॰—यथा-योग्य—-—उपयुक्त, योग्य, उचित, सही
- यथारुचम्—अव्य॰—यथा-रुचम्—-—अपनी पसन्द या रुचि के अनुकूल
- यथारुचि—अव्य॰—यथा-रुचि—-—अपनी पसन्द या रुचि के अनुकूल
- यथारूपम्—अव्य॰—यथा-रूपम्—-—रूप या दर्शन के अनुसार
- यथारूपम्—अव्य॰—यथा-रूपम्—-—ठीक-ठीक, यथोचित, यथायोग्य
- यथावस्तु—अव्य॰—यथा-वस्तु—-—जैसा कि तथ्य हैं, यथार्थतः, विशुद्ध रूप से, सचमुच
- यथाविधि—अव्य॰—यथा-विधि—-—नियम या विधि के अनुसार, ठीक-ठीक, यथोचित
- यथाविभवम्—अव्य॰—यथा-विभवम्—-—अपनी आय के अनुपात से, अपने साधनों के अनुरूप
- यथावृत्त—वि॰—यथा-वृत्त—-—जैसा कि हो चुका है, किया गया है
- यथावृत्तम्—नपुं॰—यथा-वृत्तम्—-—वास्तविक तथ्य, किसी घटना की परिस्थितियाँ या विवरण
- यथाशक्ति—अव्य॰—यथा-शक्ति—-—अपनी शक्ति के अनुसार, जहाँ तक संभव हो
- यथाशक्त्या—अव्य॰—यथा-शक्त्या—-—अपनी शक्ति के अनुसार, जहाँ तक संभव हो
- यथाशास्त्रम्—अव्य॰—यथा-शास्त्रम्—-—धर्मशास्त्रों के अनुसार जैसा कि धर्मशास्त्रों में विहित है
- यथाश्रुतम्—अव्य॰—यथा-श्रुतम्—-—जैसा कि सुना है, या बताया गया है
- यथाश्रुति—वि॰—यथा-श्रुति—-—वैदिक विधि के अनुसार
- यथासंख्यम्—नपुं॰—यथा-संख्यम्—-—अलंकार शास्त्र में एक अलंकार
- यथासंख्यम्—अव्य॰—यथा-संख्यम्—-—संख्या के अनुसार, क्रमशः, संख्या के संख्या
- यथासंख्येन—अव्य॰—यथा-संख्येन—-—संख्या के अनुसार, क्रमशः, संख्या के संख्या
- यथासमयम्—अव्य॰—यथा-समयम्—-—उचित समय पर, करार के अनुसार, सर्वसम्म्रत प्रचलन के अनुसार
- यथासम्भव—वि॰—यथा-सम्भव—-—शक्य, जो हो सके
- यथासुखम्—अव्य॰—यथा-सुखम्—-—मन या इच्छा के अनुसार
- यथासुखम्—अव्य॰—यथा-सुखम्—-—आराम से, सुखपूर्वक, इच्छानुकूल, जिससे सुख हो
- यथास्थानम्—अव्य॰—यथा-स्थानम्—-—सही और उचित स्थान
- यथास्थानम्—अव्य॰—यथा-स्थानम्—-—उचित स्थान पर, ठीक-ठीक
- यथास्थित—वि॰—यथा-स्थित—-—वास्तविक तथ्य या परिस्थितियों के अनुकूल, जैसी कि स्थिति हो
- यथास्थित—वि॰—यथा-स्थित—-—सचमुच, उचित रूप से
- यथास्वम्—अव्य॰—यथा-स्वम्—-—अपने अपने क्रम से, क्रमशः
- यथास्वम्—अव्य॰—यथा-स्वम्—-—वैयक्तिक रूप से
- यथास्वम्—अव्य॰—यथा-स्वम्—-—ठीक ठीक, यथोचित, सही रूप से
- यथावत्—अव्य॰—-—यथा + वति—ठीक ठीक ज्यों का त्यों, यथोचित, सही रूप से; प्रायः विशेषण के बल के साथ
- यथावत्—अव्य॰—-—-—विधि या नियम के अनुसार, जैसा कि नियमों द्वारा विहित है
- यद्—सर्व॰ वि॰—-—यज् + अदि, डित्—संबंधबोधक सर्वनाम जो जौन सा जो कुछ
- यद्—सर्व॰ वि॰—-—-—इसका उपयुक्त सहसंबंधी `तद्' है
- यद्—सर्व॰ वि॰—-—-—जो कोई,जो कुछ
- यद्—सर्व॰ वि॰—-—-—‘कुछ भी’ ‘चाहे जो कोई’ ‘कोई’
- येन केन प्रकारेण—अव्य॰—-—-—जिस किसी प्रकार से, किसी न किसी प्रकार से
- यत्किंचिदेतद्—अव्य॰—-—-—यह तो केवल तुच्छ बात है
- यद्—अव्य॰—-—-—अव्यय के रूप में ‘यद्’ नाना प्रकार से प्रयुक्त होता है
- यद्—अव्य॰—-—-—किसी प्रत्यक्ष या आश्रित वाक्य को आरम्भ करने में अन्त में चाहे ‘इति’ हो या न हो
- यद्—अव्य॰—-—-—क्योंकि, चूंकि
- यदपि—अव्य॰—यद्-अपि—-—यद्यपि, अगर्चे
- यदर्थम्—अव्य॰—यद्-अर्थम्—-—जिस लिए, जिस कारण, जिस वास्ते, जिस हेतु
- यदर्थम्—अव्य॰—यद्-अर्थम्—-—चूंकि, क्योंकि
- यदर्थे—अव्य॰—यद्-अर्थे—-—जिस लिए, जिस कारण, जिस वास्ते, जिस हेतु
- यदर्थे—अव्य॰—यद्-अर्थे—-—चूंकि, क्योंकि
- यत्कारणम्—अव्य॰—यद्-कारणम्—-—जिस लिए, जिस कारण
- यत्कारणम्—अव्य॰—यद्-कारणम्—-—चूंकि, क्योंकि
- यत्कारणात्—अव्य॰—यद्-कारणात्—-—जिस लिए, जिस कारण
- यत्कारणात्—अव्य॰—यद्-कारणात्—-—चूंकि, क्योंकि
- यत्कृते—अव्य॰—यद्-कृते—-—जिस लिए, जिस वास्ते, जिस पुरुष या वस्तु के लिए
- यद्भविष्यः—पुं॰—यद्-भविष्यः—-—भाग्यवादी
- यद्वा—अव्य॰—यद्-वा—-—अथवा, या
- यद्वृत्तम्—नपुं॰—यद्-वृत्तम्—-—साहसिकता
- यत्सत्यम्—अव्य॰—यद्-सत्यम्—-—निश्चय ही, सचाई तो यह है कि, सत्यतः सचमुच
- यदा—अव्य॰—-—यद्काले दाच्—जब, उस समय जब कि
- यदायदा—अव्य॰—-—-—जब कभी
- यदैवतदैव—अव्य॰—-—-—उसी समय, ज्यों ही
- यदाप्रभृति…त़दाप्रभृति—अव्य॰—-—-—जब से लेकर….तब से लेकर
- यदा—अव्य॰—-—-—यदि
- यदा—अव्य॰—-—-—जब कि, चूंकि, यतः
- यदि—अव्य॰—-—यद् + णिच् + इन्, णिलोपः—अगर, जो
- यदि—अव्य॰—-—-—चाहे, अगर
- यदि—अव्य॰—-—-—बशर्ते कि, जब कि
- यदि—अव्य॰—-—-—यदि, कदाचित्, शायद
- यद्यपि—अव्य॰—-—-—हालांकि, अगर्चे
- यदि वा—अव्य॰—-—-—या
- यदि वा—अव्य॰—-—-—या शायद, कदाचित्, भले ही, प्रायः
- यदुः—पुं॰—-—यज् + उ पृषो॰ जस्य दः—एक प्राचीन राजा का नाम, ययाति और देवयानी का ज्येष्ठ पुत्र, यादवों का वंश प्रवर्तक
- यदुकुलोद्भवः—पुं॰—यदुः-कुलोद्भवः—-—कृष्ण का विशेषण
- यदुनन्दनः—पुं॰—यदुः-नन्दनः—-—कृष्ण का विशेषण
- यदुश्रेष्ठः—पुं॰—यदुः-श्रेष्ठः—-—कृष्ण का विशेषण
- यदृच्छा—स्त्री॰—-—यद् + ऋच्छ + अङ् + टाप्—मनपसन्द करना, स्वेच्छा, (कार्य करने की) स्वतंत्रता
- यदृच्छा—स्त्री॰—-—-—संयोग, घटना
- यदृच्छाभिज्ञः—पुं॰—यदृच्छा-अभिज्ञः—-—ऐच्छिक अथवा स्वपुरस्कृत साक्षी
- यदृच्छासंवादः—पुं॰—यदृच्छा-संवादः—-—अकस्मात् वार्तालाप
- यदृच्छासंवादः—पुं॰—यदृच्छा-संवादः—-—स्वतःस्फूर्त अथवा संयोगवश मिलन, घटनावश मिलाप
- यदृच्छातस्—अव्य॰—-—यदृच्छा + तसिल्—अकस्मात्, घटनावश, संयोग से
- यन्तृ—पुं॰—-—यम् + तृच्—निदेशक, राज्यपाल, शासक
- यन्तृ—पुं॰—-—-—चालक कोचवान सारथि
- यन्तृ—पुं॰—-—-—महावत, हस्ति चालक, हस्त्यारोही
- यन्त्र्—भ्वा॰ चुरा॰ उभ॰ <यन्त्रति>,ते—-—-—नियंत्रण में करना, दमन करना, रोकना, बांधना, कसना, बाध्य करना
- नियन्त्र्—भ्वा॰ चुरा॰ उभ॰—नि-यन्त्र्—-—दमन करना, नियंत्रण में करना बेड़ियाँ डालना
- नियन्त्र्—भ्वा॰ चुरा॰ उभ॰—नि-यन्त्र्—-—कसना, बांधना
- संयन्त्र्—भ्वा॰ चुरा॰ उभ॰—सम्-यन्त्र्—-—रोकना, नियंन्त्रण में करना, ठहराना
- यन्त्रम्—नपुं॰—-—यन्त्र + अच्—जो नियन्त्रण करता है, या कसता है, थूणी, खंभा, सहारा टेक जैसा कि गृहयंत्र में
- यन्त्रम्—नपुं॰—-—-—बेड़ी, पट्टी, कसना, कंठबंध या ग्रंथि, चमड़े का तस्मा
- यन्त्रम्—नपुं॰—-—-—शल्योपयोगी उपकरण
- यन्त्रम्—नपुं॰—-—-—कोई भी उपकरण या मशीन, यन्त्र, साधन, सामान्य उपकरण
- यन्त्रम्—नपुं॰—-—-—चटकनी, कुंडी, ताला
- यन्त्रम्—नपुं॰—-—-—नियंत्रण, बल
- यन्त्रम्—नपुं॰—-—-—ताबीज़
- यन्त्रोपलः—पुं॰—यन्त्रम्-उपलः—-—चक्की, का पाट
- यन्त्रकरण्डिका—स्त्री॰—यन्त्रम्-करण्डिका—-—एक प्रकार का जादू का पिटारा
- यन्त्रकर्मकृत्—पुं॰—यन्त्रम्-कर्मकृत्—-—कलाकार, शिल्पकार
- यन्त्रगृहम्—नपुं॰—यन्त्रम्-गृहम्—-—तेली का कोल्हू
- यन्त्रगृहम्—नपुं॰—यन्त्रम्-गृहम्—-—निर्माणशाला, शिल्पगृह
- यन्त्रचेष्टितम्—नपुं॰—यन्त्रम्-चेष्टितम्—-—जादू का करतब, जादू-टोना,
- यन्त्रदृढ—वि॰—यन्त्रम्-दृढ—-—कुंडी या चटख़नी जिसमें लगी हुई है
- यन्त्रनालम्—नपुं॰—यन्त्रम्-नालम्—-—यन्त्रमूलक कोई नली
- यन्त्रपुत्रकः—पुं॰—यन्त्रम्-पुत्रकः—-—यन्त्रचालित गुड़िया
- यन्त्रपुत्रिका—स्त्री॰—यन्त्रम्-पुत्रिका—-—यन्त्रचालित गुड़िया
- यन्त्रप्रवाहः—पुं॰—यन्त्रम्-प्रवाहः—-—पानी की एक कृत्रिम सरिता
- यन्त्रमार्गः—पुं॰—यन्त्रम्-मार्गः—-—एक नली या पतनाला
- यन्त्रशरः—पुं॰—यन्त्रम्-शरः—-—कोई तीर या अस्त्र जो किसी यंत्र द्वारा छोड़ा जाय
- यन्त्रकः—पुं॰—-—यन्त्र + ण्वुल्—जो कल-पुर्जों से सुपरिचित हो
- यन्त्रकः—पुं॰—-—-—कुशल यान्त्रिक
- यन्त्रकम्—नपुं॰—-—-—पट्टि
- यन्त्रकम्—नपुं॰—-—-—खैराद
- यन्त्रणम्—नपुं॰—-—यन्त्र् + ल्युट्—नियंत्रण, दमन, रोक-थाम
- यन्त्रणम्—नपुं॰—-—-—नियन्त्रण, प्रतिबंध, रोक
- यन्त्रणम्—नपुं॰—-—-—कसना, बांधना
- यन्त्रणम्—नपुं॰—-—-—बल, बाध्यता, निग्रह, कष्ट, पीड़ा या वेदना
- यन्त्रणम्—नपुं॰—-—-—अभिरक्षा
- यन्त्रणम्—नपुं॰—-—-—पट्टी
- यन्त्रणा—स्त्री॰—-—यन्त्र् + ल्युट् +टाप् —नियंत्रण, दमन, रोक-थाम
- यन्त्रणा—स्त्री॰—-—-—नियन्त्रण, प्रतिबंध, रोक
- यन्त्रणा—स्त्री॰—-—-—कसना, बांधना
- यन्त्रणा—स्त्री॰—-—-—बल, बाध्यता, निग्रह, कष्ट, पीड़ा या वेदना
- यन्त्रणा—स्त्री॰—-—-—अभिरक्षा
- यन्त्रणा—स्त्री॰—-—-—पट्टी
- यन्त्रणी—स्त्री॰—-—यन्त्रण + ङीप्—पत्नी की छोटी बहन, छोटी साली
- यन्त्रिणी—स्त्री॰—-—यन्त्रण + णिनि + ङीप्—पत्नी की छोटी बहन, छोटी साली
- यन्त्रिन्—वि॰—-—यन्त्र + इनि, यन्त्र + णिनि वा—(घोड़ा आदि) जो जीन व साज से सुसज्जित हो
- यन्त्रिन्—वि॰—-—-—पीड़क, सताने वाला
- यन्त्रिन्—वि॰—-—-—जिसने ताबीज वाधा हुआ हो
- यम्—भ्वा॰ पर॰ <यच्छति>, <यत>, इच्छा॰ <यियसति>—-—-—रोकना, दमन करना, नियन्त्रण करना, वश में करना, दबाना, ठहराना, बन्द करना
- यम्—भ्वा॰ पर॰ <यच्छति>, <यत>, इच्छा॰ <यियसति>—-—-—प्रदान करना, देना, अर्पण करना
- यम्—भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—नियंत्रण करना, रोकना आदि
- आयम्—भ्वा॰ पर॰ —आ-यम्—-—विस्तार करना, लंबा करना, फैलाना
- आयम्—भ्वा॰ पर॰ —आ-यम्—-—ऊपर ख़ीचना, वापिस ख़ीचना
- आयम्—भ्वा॰ पर॰ —आ-यम्—-—नियन्त्रित करना, थामना, दबाना, (श्वास आदि) रोकना
- आयम्—भ्वा॰आ॰—आ-यम्—-—अंगड़ाई लेना,लम्बा बढ़ जाना
- आयम्—भ्वा॰आ॰—आ-यम्—-—ग्रहण करना, अधिकार करना, रखना
- आयम्—भ्वा॰आ॰—आ-यम्—-—ले जाना, नेतृत्व करना
- उद्यम्—भ्वा॰आ॰—उद्-यम्—-—उठाना, ऊपर करना, उन्नत करना
- उद्यम्—भ्वा॰आ॰—उद्-यम्—-—तैयार होना, प्रस्थान करना, आरंभ करना
- उद्यम्—भ्वा॰आ॰—उद्-यम्—-—प्रयास करना, घोर प्रयत्न करनाद्
- उद्यम्—भ्वा॰आ॰—उद्-यम्—-—शासन करना, प्रबन्ध करना, हकूमत करना
- उपयम्—भ्वा॰आ॰—उप-यम्—-—विवाह करना
- उपयम्—भ्वा॰आ॰—उप-यम्—-—पकड़ना, थामना, लेना, स्वीकार करना, अधिकार करना
- उपयम्—भ्वा॰आ॰—उप-यम्—-—प्रकट करना, संकेत करना
- नियम्—भ्वा॰आ॰—नि-यम्—-—नियंत्रित करना, दमन करना, रोकना, वश में करना, शासन करना
- नियम्—भ्वा॰आ॰—नि-यम्—-—दबाना, निलंबित करना, रोकना, (श्वास आदि)
- नियम्—भ्वा॰आ॰—नि-यम्—-—दान करना, देना
- नियम्—भ्वा॰आ॰—नि-यम्—-—सजा देना, दण्ड देना
- नियम्—भ्वा॰आ॰—नि-यम्—-—विनियमित करना या निदेशित करना
- नियम्—भ्वा॰आ॰—नि-यम्—-—प्राप्त करना, अवाप्त करना
- नियम्—भ्वा॰आ॰—नि-यम्—-—धारण करना
- नियम्—भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—नि-यम्—-—नियंत्रित करना, वश में करना, विनियमित करना, रोकना, दण्ड देना
- नियम्—भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—नि-यम्—-—बाँधना, कसना
- नियम्—भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—नि-यम्—-—मर्यादित करना, हलका करना, विश्राम देना
- विनियम्—भ्वा॰ पर॰ —विनि-यम्—-—दमन करना, नियंत्रण रखना
- संयम्—भ्वा॰ पर॰ —सम्-यम्—-—नियंत्रित करना, दमन करना, रोकना, नियंत्रण में रखना
- संयम्—भ्वा॰ पर॰ —सम्-यम्—-—बाँधना, कैद करना, कसना, बंदी बनाना
- संयम्—भ्वा॰ पर॰ —सम्-यम्—-—एकत्र करना
- संयम्—भ्वा॰ पर॰ —सम्-यम्—-—बन्द करना, भेड़ना
- यमः—पुं॰—-—यम् + घञ्—संयत करना, नियंत्रित करना, दमन करना
- यमः—पुं॰—-—-—नियन्त्रण, संयम
- यमः—पुं॰—-—-—आत्मनियन्त्रण
- यमः—पुं॰—-—-—कोई महान् नैतिक कर्तव्य या धर्मसाधना
- यमः—पुं॰—-—-—योग प्राप्ति के आठ अंगों या साधनों में पहला साधन आठ अंग यह है
- यमः—पुं॰—-—-—मृत्यु का देबता, मृत्यु का मूर्त रूप, यह सूर्य का पुत्र माना जाता है
- यमः—पुं॰—-—-—यमल
- यमः—पुं॰—-—-—जोड़े में एक
- यमम्—नपुं॰—-—-—जोड़ा, जोड़ी
- यमानुगः—पुं॰—यमः-अनुगः—-—यम का सेवक या टहलुआ
- यमानुचरः—पुं॰—यमः-अनुचरः—-—यम का सेवक या टहलुआ
- यमान्तकः—पुं॰—यमः-अन्तकः—-—शिव का विशेषण
- यमान्तकः—पुं॰—यमः-अन्तकः—-—यम का विशेषण
- यमकिङ्करः—पुं॰—यमः-किङ्करः—-—यम का सेवक, मृत्यु का दूत
- यमकीलः—पुं॰—यमः-कीलः—-—विष्णु
- यमज—वि॰—यमः-ज—-—जन्म से जुड़वा, यमल
- यमदूतः—पुं॰—यमः-दूतः—-—मृत्यु का दूत
- यमदूतः—पुं॰—यमः-दूतः—-—कौवा
- यमद्वितीया—स्त्री॰—यमः-द्वितीया—-— भाईदूज
- यमधानी—स्त्री॰—यमः-धानी—-—यम का निवास स्थान
- यमभगिनी—स्त्री॰—यमः-भगिनी—-—यमुना नदी
- यमयातना—स्त्री॰—यमः-यातना—-—मरणोपरात पापियों को यम के द्वारा दी जाने वाली पीड़ा
- यमराज्—पुं॰—यमः-राज्—-—यम, मृत्यु का देवता
- यमसभा—स्त्री॰—यमः-सभा—-—यमराज की न्यायसभा
- यमसूर्यम्—नपुं॰—यमः-सूर्यम्—-—एक भवन जिसमें केवल दो कमरे हो, एक का मुंह पश्चिम को तथा दूसरे का उत्तर को हो
- यमकः—पुं॰—-—यम + स्वार्थे कन्—प्रतिबंध, रोक
- यमकः—पुं॰—-—-—यमल या जुड़वाँ
- यमकः—पुं॰—-—-—एक महान् नैतिक या धार्मिक कर्तव्य
- यमकम्—नपुं॰—-—-—दोहरी पट्टि
- यमकम्—नपुं॰—-—-—अक्षरों की पुनरावृत्ति परन्तु अर्थ की भिन्नता के साथ
- यमन—वि॰—-—यम् + ल्युट्—संयमी, दमन करने वाला, शासक आदि
- यमनम्—नपुं॰—-—-—संयम करना, दमन करना, बाँधना
- यमनम्—नपुं॰—-—-—ठहरना, थमना
- यमनम्—नपुं॰—-—-—विराम, विश्राम
- यमनः—नपुं॰—-—-—मृत्यु का देवता यम
- यमनिका—स्त्री॰—-—यमन + कन् + टाप्, इत्वम्—परदा, ओट, तु॰ जवनिका
- यमल—वि॰—-—यम + ला + क—जोड़वां, जोड़ी में से एक
- यमलः—पुं॰—-—-—दो की संख्या
- यमलौ—पुं॰द्वि॰व॰—-—-—जोंड़ी
- यमलम्—नपुं॰—-—-—मिथुन, जोड़ी
- यमली—स्त्री॰—-—-—मिथुन, जोड़ी
- यमवत्—वि॰—-—यम + मतुप्, वत्वम्—आत्म नियंत्रित
- यमसात्—अव्य॰—-—यम + साति—यम के हाथों में, यमकी शक्ति में
- यमसात् कृ——-—-—मृत्यु को सौंपना
- यमुना—स्त्री॰—-—यम् + उनन् + टाप्—एक प्रसिद्ध नदी का नाम (जो यम की बहन मानी जाती है)
- यमुनाभ्रातृ—पुं॰—यमुना-भ्रातृ—-—मृत्यु का देवता यम
- ययातिः—पुं॰—-—यस्य वायोरिव यातिः सर्वत्र रथगतिर्यस्य—एक प्रसिद्ध चन्द्रवंशी राजा का नाम, नहुष का पुत्र
- ययावरः—पुं॰—-—पुनः पुनः याति देशान्तरं गच्छति या + यङ् + वरच्—परिव्रज्याशील साधु, संत
- ययिः—पुं॰—-—या + ई, कित्, धातोर्द्वित्वम्—अश्वमेध या अन्य किसी यज्ञ के उपयुक्त घोड़ा
- ययिः—पुं॰—-—या + ई, कित्, धातोर्द्वित्वम्—घोड़ा
- ययी—पुं॰—-—या + ई, कित्, धातोर्द्वित्वम्—अश्वमेध या अन्य किसी यज्ञ के उपयुक्त घोड़ा
- ययी—पुं॰—-—या + ई, कित्, धातोर्द्वित्वम्—घोड़ा
- यर्हि—अव्य॰—-—यद् + र्हिल्—जब, जब कि, जब कभी
- यर्हि—अव्य॰—-—-—क्योंकि, यतः, चूंकि
- यवः—पुं॰—-—यु +अच्—जौ
- यवः—पुं॰—-—-—जौ के दाने या जौ के दानों का भार
- यवः—पुं॰—-—-—लम्बाई की एक नाप -एक अंगुल का १/६ या १/८
- यवः—पुं॰—-—-—हाथ की अंगुलियों में जौ के दाने का चिह्न जो धनधान्य, प्रजा, और सौभाग्य का सूचक है
- यवाङ्कुरः—पुं॰—यवः-अङ्कुरः—-—जौ का अंखुवा या पत्ती
- यवप्ररोहः—पुं॰—यवः-प्ररोहः—-—जौ का अंखुवा या पत्ती
- यवाग्रयणम्—नपुं॰—यवः-आग्रयणम्—-—जौ के खेती का पहला फल
- यवक्षारः—पुं॰—यवः-क्षारः—-—जवाखार, शोरा, सज्जी
- यवशूकः—पुं॰—यवः-शूकः—-—क्षारीय नमक, सज्जी
- यवशूकजः—पुं॰—यवः-शूकजः—-—क्षारीय नमक, सज्जी
- यवसुरम्—नपुं॰—यवः-सुरम्—-—जौ की शराब, यवमद्य
- यवनः—पुं॰—-—यु +युच्—ग्रीस देश का निवासी, यूनान देश का वासी
- यवनः—पुं॰—-—-—विदेशी, जंगली
- यवनः—पुं॰—-—-—गाजर
- यवनानी—स्त्री॰—-—यवनानां लिपिः - यवन + आनुक्, ङीप् च—यबनों की लिपि या लिखावट
- यवनिका—स्त्री॰—-—यु + ल्युट् + ङीप् = यवनी + कन् + टाप्, ह्रस्वः—यवनस्त्री, ग्रीस देश की स्त्री या मुसलमानी
- यवनिका—स्त्री॰—-—यु + ल्युट् + ङीप् = यवनी + कन् + टाप्, ह्रस्वः—परदा
- यवनी—स्त्री॰—-—यु + ल्युट् + ङीप् —यवनस्त्री, ग्रीस देश की स्त्री या मुसलमानी
- यवनी—स्त्री॰—-—यु + ल्युट् + ङीप् —परदा
- यवसम्—नपुं॰—-—यु + असच्—घास, चारा, चरागाहों का घास
- यवागू—स्त्री॰—-—यूयते मिश्र्यत्र्- यु + आगू—चावलों का माड़, चावलों के माड़ की कांजी, या जौ आदि किसी और अन्न की कांजी
- यवानिका—स्त्री॰—-—दुष्टो यवो यवानी- यव + ङीष्, आनुक्,कन् + टाप्, ह्रस्वः—अजवायन
- यवानी—स्त्री॰—-—दुष्टो यवो यवानी- यव + ङीष्, आनुक्—अजवायन
- यविष्ठ—वि॰—-—युवन् + इष्ठन्, यवादेशः—कनिष्ठ, सबसे छोटा
- यविष्ठः—पुं॰—-—-—सबसे छोटा भाई, कनिष्ठ भ्राता
- यवीयस्—वि॰—-—युवन् + ईयसुन् यवादेशः—छोटा बच्चा
- यवीयस्—पुं॰—-—-—छोटा भाई
- यवीयस्—पुं॰—-—-—शूद्र
- यशस्—नपुं॰—-—अश् स्तुतौ असुन् धातोः युट् च्—प्रसिद्धि, ख्यति, कीर्ति, विश्रुति
- यशस्कर—वि॰—यशस्-कर—-—कीर्ति देने वाला, यशस्वी
- यशस्काम—वि॰—यशस्-काम—-—प्रसिद्धि प्राप्त करने का इच्छुक
- यशस्काम—वि॰—यशस्-काम—-—उच्चाकांक्षी, महत्त्वाकांक्षी
- यशस्कायम—नपुं॰—यशस्-कायम्—-—प्रसिद्धि के रूप में शरीर, कीर्तिदेह
- यशःशरीरम्—नपुं॰—यशस्-शरीरम्—-—प्रसिद्धि के रूप में शरीर, कीर्तिदेह
- यशोद—वि॰—यशस्-द—-—कीर्तिकर
- यशोदः—पुं॰—यशस्-दः—-—पारा
- यशोदा—स्त्री॰—यशस्-दा—-—नन्द की पत्नी और कृष्ण की पालक माता का नाम
- यशोधन—वि॰—यशस्-धन—-—कीर्ति ही जिसका धन है, ख्याति में समृद्ध, अत्यंत विश्रुत
- यशःपटहः—पुं॰—यशस्-पटहः—-—यशरूपी ढोल
- यशःशेष—वि॰—यशस्-शेष—-— सिवाय कीर्ति के जिसका और कुछ न बचा हो - अर्थात् मृतव्यक्ति
- यशःशेषः—वि॰—यशस्-शेषः—-—मृत्यु
- यशस्य—वि॰—-—यशसे हितं-यत्—सम्मान या कीर्ति की ओर ले जाने वाला
- यशस्य—वि॰—-—-—विश्रुत, प्रसिद्ध, विख्यात
- यशस्विन्—वि॰—-—यशस् + विनि—प्रसिद्ध, विख्यात, विश्रुत
- यष्टिः—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम्—लकड़ी, लाठी
- यष्टिः—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम्—सोटा, गदका, गदा
- यष्टिः—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम्—खंभा, सतून, स्तम्भ
- यष्टिः—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम्—अड्डा
- यष्टिः—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम्—वृन्त, सहारा
- यष्टिः—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम्—झंड़े का डंडा
- यष्टिः—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम्—डंढल, वृन्त
- यष्टिः—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम्—शाखा, टहनी
- यष्टिः—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम्—डोरी, लड़ी,
- यष्टिः—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम्—कोई लता
- यष्टिः—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम्—कोई भी पतली या सुकुमार वस्तु
- यष्टी—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम् + ङीप् —लकड़ी, लाठी
- यष्टी—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम् + ङीप् —सोटा, गदका, गदा
- यष्टी—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम् + ङीप् —खंभा, सतून, स्तम्भ
- यष्टी—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम् + ङीप् —अड्डा
- यष्टी—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम् + ङीप् —वृन्त, सहारा
- यष्टी—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम् + ङीप् —झंड़े का डंडा
- यष्टी—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम् + ङीप् —डंढल, वृन्त
- यष्टी—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम् + ङीप् —शाखा, टहनी
- यष्टी—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम् + ङीप् —डोरी, लड़ी,
- यष्टी—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम् + ङीप् —कोई लता
- यष्टी—स्त्री॰—-—यज् + क्तिन्, नि॰ न संप्रसारणम् + ङीप् —कोई भी पतली या सुकुमार वस्तु
- यष्टिग्रहः—पुं॰—यष्टि-ग्रहः—-—गदाधारी, लाठी रखने वाला
- यष्टिनिवासः—पुं॰—यष्टि-निवासः—-—मोर आदि पक्षियों के बैठने का अड्डा
- यष्टिनिवासः—पुं॰—यष्टि-निवासः—-—खड़े हुए डंडों पर स्थिर कबूतरों का घर या छतरी
- यष्टिप्राण—वि॰—यष्टि-प्राण—-—निर्बल, शक्तिहीन
- यष्टिप्राण—वि॰—यष्टि-प्राण—-—प्राणहीन
- यष्टिकः—पुं॰—-—यष्टि + कन्—टिटिहरी पक्षी
- यष्टिका—स्त्री॰—-—यष्टिक + टाप्—लाठी, डंडा, सोटा, गदका
- यष्टिका—स्त्री॰—-—-—(एक लड़का) मोतियों का हार
- यष्टृ—पुं॰—-—यज् + तृच्—पूजा करने वाला, यजमान
- यस्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <यसति>,<यस्यति>,<यस्त>—-—-—प्रयास करना, कोशिश करना, परिश्रम करना
- यस्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—कष्ट देना
- आयस्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰—आ-यस्—-—प्रयास करना, कोशिश करना, चेष्टा करना
- आयस्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰—आ-यस्—-—थका देना, थक जाना
- आयस्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰प्रेर॰—आ-यस्—-—कष्ट देना, सताना, पीड़ा देना
- प्रयास्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰—प्र-यस्—-—प्रयास करना, क़ोशिश करन
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—जाना, हिलना-जुलना, चलना, आगे बढ़ना
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—चढ़ाई करना, आक्रमण करना
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—जाना, प्रयाण करना, कूच करना
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—गुजर जाना, वापिस होना, बिदा होना
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—नष्ट होना, ओझल होना
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—गुजर जाना, बीतना ( समय का)
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—टिकना
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—होना, घटित होना
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—जाना, घटना, होना
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—उत्तरदायित्व संभालना
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—मैथुनसंबंध स्थापित करना
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—प्रार्थना करना, याचना करना
- या—अदा॰ पर॰ <याति>,<यात>—-—-—ढूँढना, खोजना
- अग्रे या—अदा॰ पर॰—-—-—आगे आगे चलना, नेतृत्व करना, मार्ग दिखाना
- अधो या—अदा॰ पर॰—-—-—डुबना
- अस्तं या—अदा॰ पर॰—-—-—छिपना, अस्त होना क्षीण होना
- उदयं या—अदा॰ पर॰—-—-—उदय होना
- नाशं या—अदा॰ पर॰—-—-—नष्ट होना
- निद्रां या—अदा॰ पर॰—-—-—सो जाना
- पदं या—अदा॰ पर॰—-—-—पद प्राप्त करना
- पारं या—अदा॰ पर॰—-—-—पार जाना, स्वामी होना, पार कर जाना, आगे बढ़ जाना
- प्रकृति या—अदा॰ पर॰—-—-—फिर स्वाभाविक अवस्था को प्राप्त करना
- लघुतां या—अदा॰ पर॰—-—-—हलका होना
- वशं या—अदा॰ पर॰—-—-—बस में होना, अधिकार में आना
- वाच्यतां या—अदा॰ पर॰—-—-—कलङ्कित या निन्दित होना
- विपर्यासं या—अदा॰ पर॰—-—-—परिवर्तित होना, रूप बदलना
- शिरसा महीं या—अदा॰ पर॰—-—-—भूमि पर सिर झुकाना आदि
- या—अदा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—चलाना, आगे बढ़ाना
- या—अदा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—हटाना, दूर हांकना
- या—अदा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—व्यय करना, (समय) बिताना
- या—अदा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—सहारा देना, पालनपोषण करना
- या—अदा॰ पर॰, इच्छा॰ <यियासति>—-—-—जाने की इच्छा करना, जाने को होना
- अतिया—अदा॰ पर॰—अति-या—-—पार जाना, अतिक्रमण करना, उल्लंघन करना
- अतिया—अदा॰ पर॰—अति-या—-—आगे बढ़ना
- अधिया—अदा॰ पर॰—अधि-या—-—चले जाना, आगे बढ़ना, वच निकलना
- अनुया—अदा॰ पर॰—अनु-या—-—अनुसरण करना, पीछे जाना
- अनुया—अदा॰ पर॰—अनु-या—-—नकल करना, बरावर करना
- अनुया—अदा॰ पर॰—अनु-या—-—साथ चलना
- अनुसंया—अदा॰ पर॰—अनुसम्-या—-—क्रमशः चलना
- अपया—अदा॰ पर॰—अप-या—-—चले जाना, बिदा होना, वापिस होना
- अभिया—अदा॰ पर॰—अभि-या—-—पहुँचाना, जाना, नजदीक होना
- अभिया—अदा॰ पर॰—अभि-या—-—प्रयाण करना, आक्रमण करना
- अभिया—अदा॰ पर॰—अभि-या—-—संलग्न करना
- आया—अदा॰ पर॰—आ-या—-—आना, पहुँचना, निकट होना
- आया—अदा॰ पर॰—आ-या—-—पहुँचाना, प्राप्त करना, भुगतना, किसी भी अवस्था में होना
- उपया—अदा॰ पर॰—उप-या—-—पहुँचना, निकट होना
- उपया—अदा॰ पर॰—उप-या—-—( किसी विशेष अवस्था को) प्राप्त होना
- निर्या—अदा॰ पर॰—निस्-या—-—निकलना, बाहर जाना
- निर्या—अदा॰ पर॰—निस्-या—-—गुजरना, (समय) बीतना,
- परिया—अदा॰ पर॰—परि-या—-—चार्रो ओर घूमना चक्कर काटना, प्रदक्षिणा करना
- प्रया—अदा॰ पर॰—प्र-या—-—चलना, जाना
- प्रया—अदा॰ पर॰—प्र-या—-—प्रयाण करना, कूच करना
- प्रतिया—अदा॰ पर॰—प्रति-या—-—वापिस जाना, लौटना
- प्रत्युद्या—अदा॰ पर॰—प्रत्युद्-या—-—(आदर स्वरूप) उठकर मिलना, अभिवादन करना, सत्कार करना
- विर्निया—अदा॰ पर॰—विनिस्-या—-—बाहर जाना, निकल जाना, में से चले जाना
- संया—अदा॰ पर॰—सम्-या—-—चले जाना, बिदा होना, मार्ग पार कर लेना
- संया—अदा॰ पर॰—सम्-या—-—जाना, प्रविष्ट होना
- संया—अदा॰ पर॰—सम्-या—-—पहुँचना
- यागः—पुं॰—-—यज् + घञ्, कुत्वम्—उपहार, यज्ञ, आहुति
- यागः—पुं॰—-—-—कोई भी अनुष्ठान जिसमें आहुतियाँ दी जायं @ रघु॰ ८/३०
- याच्—भ्वा॰ आ॰ <याचते> - विरल पुं॰—-—-—मांगना, याचना करना, निवेदन करना, प्रार्थना करना, अनुरोध करना, अनुनय-विनय करना (द्विकर्म॰ के साथ)
- याचकः—पुं॰—-—याच् + ण्वुल्—भिक्षुक, भिखारी, आवेदक
- याचनम्—नपुं॰—-—याच् + ल्युट्—मांगना, याचना करना, निवेदन करना
- याचनम्—नपुं॰—-—-—प्रार्थना, अनुरोध, आवेदन
- याचना—स्त्री॰—-—याच् + ल्युट्, स्त्रियां टाप् च—मांगना, याचना करना, निवेदन करना
- याचना—स्त्री॰—-—-—प्रार्थना, अनुरोध, आवेदन
- याचनकः—पुं॰—-—याचन् + कन्—भिखारी, अभियोक्ता, आवेदक
- याचिष्णु—वि॰—-—याच् + इष्णुच्—भीख मांगने पर उतारू, याचनाशील, मांगने के स्वभाव वाला
- याचित—भू॰ क॰ कृ॰—-—याच् + क्त —मांगा गया, निवेदन किया गया, याचना किया गया, अनुरोध किया गया, प्रार्थना की गई
- याचितकम्—नपुं॰—-—याचित + कन्—भिक्षा में प्राप्त वस्तु, उधार ली हुई कोई वस्तु
- याच्ञा—स्त्री॰—-—याच् + नङ् + टाप्—मांगना, याचना करना
- याच्ञा—स्त्री॰—-—-—भिखारीपन
- याच्ञा—स्त्री॰—-—-—प्रार्थना, निवदन, अनुरोध,
- याजकः—पुं॰—-—यज् + णिच् + ण्वुल्—यज्ञ कराने वाला, यज्ञ कराने वाला पुरोहित
- याजकः—पुं॰—-—-—राजकीय हाथी
- याजकः—पुं॰—-—-—मदोन्मत्त हाथी
- याजनम्—नपुं॰—-—यज् + णिच् + ल्युट्—यज्ञ का संचालन या अनुष्ठान कराने की क्रिया
- याज्ञसेनी—स्त्री॰—-—यज्ञसेन + अण् + ङीप्—द्रौपदी का पितृपरक नाम
- याज्ञिक—वि॰—-—यज्ञाय हितं, यज्ञः प्रयोजनमस्य वा ठक्—यज्ञसंबंधी
- याज्ञिकः—पुं॰—-—-—यज्ञ कराने वाला, या यज्ञ करने वाला, यज्ञ कराने वाला पुरोहित
- याज्य—वि॰—-—यज् + ण्यत्—त्याग करने के योग्य
- याज्य—वि॰—-—-—यज्ञ संबंधी
- याज्य—वि॰—-—-—जिसके लिये यज्ञ किया जाय
- याज्य—वि॰—-—-—शास्त्र द्वारा जो यज्ञ करने का अधिकारी माना है
- याज्यः—पुं॰—-—-—यज्ञकर्ता, यज्ञसंस्थापक
- याज्यम्—नपुं॰—-—-—उपहार या दक्षिणा जो यज्ञ कराने के उपलक्ष्य में प्राप्त हो
- यात—भू॰ क॰कृ॰—-—या + क्त—गया हुआ, प्रयात, चला हुआ
- यात—भू॰ क॰कृ॰—-—-—गुजरा हुआ, विसर्जित, दूर गया हुआ
- यातम्—नपुं॰—-—-—चाल, गति
- यातम्—नपुं॰—-—-—प्रयाण
- यातम्—नपुं॰—-—-—भूतकाल
- यातयाम्—वि॰—यात-याम्—-—बासी, इस्तेमाल किया हुआ, विकृत, परित्यक्त, जो निरर्थक हो गया है
- यातयाम्—वि॰—यात-याम्—-—कच्चा, अधपका (भोजन आदि)
- यातयाम्—वि॰—यात-याम्—-—जीर्ण, थका हुआ, घिसा हुआ
- यातयामन्—वि॰—यात-यामन्—-—बासी, इस्तेमाल किया हुआ, विकृत, परित्यक्त, जो निरर्थक हो गया है
- यातयामन्—वि॰—यात-यामन्—-—कच्चा, अधपका (भोजन आदि)
- यातयामन्—वि॰—यात-यामन्—-—जीर्ण, थका हुआ, घिसा हुआ
- यातनम्—नपुं॰—-—यत् + णिच् + ल्युट्—प्रतिकार, बदला, प्रतिशोध, प्रतिहिंसा
- यातनम्—नपुं॰—-—-—प्रतिहिंसा, वैरशोधन
- यातना—स्त्री॰—-—-—प्रतिशोध, क्षतिपूर्ति, बदला
- यातना—स्त्री॰—-—-—संताप, संपीडन, वेदना
- यातना—स्त्री॰—-—-—यम के द्वारा पापियों को दी गई यातना, नरक की यन्त्रणा (ब॰ व॰)
- यातुः—पुं॰—-—या + तुन्—यात्री, बटोही
- यातुः—पुं॰—-—-—हवा
- यातुः—पुं॰—-—-—समय
- यातुधान—वि॰—यातुः-धान—-—भूतप्रेत, पिशाच
- यातृ—स्त्री॰—-—यत् + ऋन्, वृद्धिश्च—जिठानी या देवरानी
- यात्रा—स्त्री॰—-—या ष्ट्रन् + टाप्—जाना, गति, सफर
- यात्रा—स्त्री॰—-—-—सेना का प्रयाण, चढ़ाई, आक्रमण्
- यात्रा—स्त्री॰—-—-—तीर्थाटन यथा तीर्थयात्रा
- यात्रा—स्त्री॰—-—-—तीर्थ यात्रियों का समूह
- यात्रा—स्त्री॰—-—-—उत्सव, पर्व, किसी उत्सव या संस्कार का अवसर
- यात्रा—स्त्री॰—-—-—जुलूस, उत्सवयात्रा
- यात्रा—स्त्री॰—-—-—सड़क
- यात्रा—स्त्री॰—-—-—जीवन का सहारा, जीविका, निर्वाह
- यात्रा—स्त्री॰—-—-—(समय का) बीतना
- यात्रा—स्त्री॰—-—-—संव्यवहार
- यात्रा—स्त्री॰—-—-—रीति, उपाय, तरकीब
- यात्रा—स्त्री॰—-—-—प्रथा, प्रचलन, दस्तूर, रीति
- यात्रा—स्त्री॰—-—-—वाहन, सवारी
- यात्रिक—वि॰—-—यात्रा + ठक्—यात्रा करता हुआ
- यात्रिक—वि॰—-—-—किसी यात्रा या आन्दोलन
- यात्रिक—वि॰—-—-—जीवन-धारण की आवश्यक सामग्री
- यात्रिक—वि॰—-—-—प्रचलित, प्रथानुकूल
- यात्रिकः—पुं॰—-—-—यात्री
- यात्रिकम्—नपुं॰—-—-—प्रयाण, अभियान या चढ़ाई
- यात्रिकम्—नपुं॰—-—-—खाद्य सामग्री, (यात्रा के लिए) रसद, सम्भरण
- याथातथ्यम्—नपुं॰—-—यथातथ + ष्यञ्—वास्तविकता, सचाई
- याथातथ्यम्—नपुं॰—-—-—न्याय्यता, औचित्य
- याथार्थ्यम्—नपुं॰—-—यथार्थ + ष्यञ्—वास्तविक या सही प्रकृति, सचाई, सच्चा चरित्र
- याथार्थ्यम्—नपुं॰—-—-—न्याय्यता, उपयुक्तता
- याथार्थ्यम्—नपुं॰—-—-—उद्देश्य की पूर्ति या निष्पन्नता
- यादवः—पुं॰—-—यदोरपत्यम्- अण्—यदु की संतान, यदुवंशी
- यादस्—नपुं॰—-—यान्ति वेगेन- या + असुन्, दुगागमः—कोई भी विशालकाय जलजन्तु, समुद्री दानव
- यादस्पतिः—पुं॰—-—-—समुद्र
- यादस्पतिः—पुं॰—-—-—वरुण का नाम
- यादस्नाथः—पुं॰—-—-—समुद्र
- यादस्नाथः—पुं॰—-—-—वरुण का नाम
- यादृक्ष—वि॰—-—यद् + दृश् + क्त, क्विन्, कञ् वा, अत्वम्—जिस प्रकार का, जिसके समान, जिस प्रकृति का, जैसा
- यादृश्—वि॰—-—यद् + दृश् + क्त, क्विन्—जिस प्रकार का, जिसके समान, जिस प्रकृति का, जैसा
- यादृश—वि॰—-—यद् + दृश् + क्त, कञ्, अत्वम्—जिस प्रकार का, जिसके समान, जिस प्रकृति का, जैसा
- यादृच्छिक—वि॰—-—यदृच्छा + ठक्र्—ऐच्छिक, स्वतःस्फूर्त, स्वतंत्र
- यादृच्छिक—वि॰—-—-—आकस्मिक, अप्रत्याशित
- यानम्—नपुं॰—-—या भावे ल्युट्—जाना, हिलना-जुलना, चलना, टहलना, सवारी करना
- यानम्—नपुं॰—-—-—जलयात्रा, यात्रा
- यानम्—नपुं॰—-—-—अभियान करना, आक्रमण करना
- यानम्—नपुं॰—-—-—जलूस, परिजन
- यानम्—नपुं॰—-—-—सवारी, वाहन, गाड़ी
- यानपात्रम्—नपुं॰—यानम्-पात्रम्—-—जहाज़, नौका
- यानभङ्गः—पुं॰—यानम्-भङ्गः—-—जहाज़ का टूट जाना
- यानमुखम्—नपुं॰—यानम्-मुखम्—-—गाड़ी का अगला भाग, गाड़ी का वह भाग जहाँ जूआ बांधा जाता है
- यापनम्—नपुं॰—-—या + णिच् + ल्युट्, पुकागमः, —जाने देना, हांक कर बाहर निकालना, निष्कासन, हटाना
- यापनम्—नपुं॰—-—-—(किसी रोग की) चिकित्सा या प्रशमन
- यापनम्—नपुं॰—-—-—समय बिताना
- यापनम्—नपुं॰—-—-—विलम्ब, दीर्घसूत्रता
- यापनम्—नपुं॰—-—-—सहारा, निर्वाह
- यापनम्—नपुं॰—-—-—प्रचलन, अभ्यास
- यापना—स्त्री॰—-—या + णिच् + ल्युट्, पुकागमः, स्त्रियां टाप् च—जाने देना, हांक कर बाहर निकालना, निष्कासन, हटाना
- यापना—स्त्री॰—-—-—(किसी रोग की) चिकित्सा या प्रशमन
- यापना—स्त्री॰—-—-—समय बिताना
- यापना—स्त्री॰—-—-—विलम्ब, दीर्घसूत्रता
- यापना—स्त्री॰—-—-—सहारा, निर्वाह
- यापना—स्त्री॰—-—-—प्रचलन, अभ्यास
- याप्य—वि॰—-—या + णिच् + ण्यत्, पुकागमः—हटाये जाने के योग्य, निकाले जाने के योग्य, अथवा अस्वीकार किय जाने के योग्य
- याप्य—वि॰—-—-—नीचे, तिरस्कारणीय, मामूली, अनावश्यक
- याप्ययानम्—नपुं॰—याप्य-यानम्—-—शिविका या पालकी, डोली
- यामः—पुं॰—-—यम् + घञ्—निरोध, धैर्य, नियन्त्रण्
- यामः—पुं॰—-—-—पहर, दिन का आठवाँ भाग, तीन घंटे का समय
- यामघोषः—पुं॰—यामः-घोषः—-—मुर्ग़ा
- यामघोषः—पुं॰—यामः-घोषः—-—घण्टा या घड़ियाल (जिससे रात के पहरों की टनतन होती है)
- यामयमः—पुं॰—यामः-यमः—-—प्रत्येक घण्टे के लिए निर्दिष्ट कार्य
- यामवृत्तिः—स्त्री॰—यामः-वृत्तिः—-—पहरा देना, चौकीदारी करना
- यामलम्—नपुं॰—-—यमल + अण्—जोड़ी, मिथुन
- यामवती—स्त्री॰—-—याम + मतुप्, वत्वम्, ङीप्—रात
- यामिः—स्त्री॰—-—याति कुलात् कुलान्तरम्- या + मि—बहन
- यामिः—स्त्री॰—-—याति कुलात् कुलान्तरम्- या + मि—रात
- यामी—स्त्री॰—-—याति कुलात् कुलान्तरम्- या + मि, ङीप् च—बहन
- यामी—स्त्री॰—-—याति कुलात् कुलान्तरम्- या + मि, ङीप् च—रात
- यामिकः—पुं॰—-—यामे नियुक्तः - याम + ठक्—पहरेदार, रातको पहरे पर नियुक्त, चौकीदार
- यामिका—स्त्री॰—-—यामिक + टाप्—रात
- यामिकापतिः—पुं॰—यामिका-पतिः—-—चन्द्र्मा
- यामिकापतिः—पुं॰—यामिका-पतिः—-—कपूर
- यामिनी—स्त्री॰—-—याम + इनि +ङीप्—रात
- यामिनीपतिः—पुं॰—यामिनी-पतिः—-—चन्द्र्मा
- यामिनीपतिः—पुं॰—यामिनी-पतिः—-—कपूर
- यामुन—वि॰—-—यमुना + अण्—यमुना से संबद्ध, या निकला हुआ, या यमुना से उत्पन्न
- यामुनम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का अंजन, सुर्मा
- यामुनेष्टकम्—नपुं॰—-—यमुना + इष्टकम्—सीसा, रांग
- याम्य—वि॰—-—यम + ष्यञ्—दक्षिणी
- याम्य—वि॰—-—-—यम से संबंध रखने वाला या यम से मिलता जुलता
- याम्यायनम्—नपुं॰—याम्य-अयनम्—-—दक्षिणायन, मकरसंक्रांति
- याम्योत्तर—वि॰—याम्य-उत्तर—-—दक्षिण से उत्तर को जाने वाला
- याम्या—स्त्री॰—-—याम्य + टाप्—दक्षिणदिशा
- याम्या—स्त्री॰—-—-—रात्रि
- यायजूकः—पुं॰—-—यज् + यङ् + ऊक —बार २ यज्ञ का अनुष्ठान करने वाला, जो लगातार यज्ञ करता रहता है, इज्याशील
- यायावर—वि॰—-—पुनः पुनः याति देशान्तरं गच्छति या + यङ् + वरच्—परिव्रज्याशील साधु, संत
- यावः—पुं॰—-—यु + अच् + अण् = याव—जौ से तैयार किया हुआ आहार
- यावः—पुं॰—-—यु + अच् + अण् = याव—लाख, लाल रंग, महावर
- यावकः—पुं॰—-—यु + अच् + अण् = याव + कन्—जौ से तैयार किया हुआ आहार
- यावकः—पुं॰—-—यु + अच् + अण् = याव + कन्—लाख, लाल रंग, महावर
- यावकम्—नपुं॰—-—यु + अच् + अण् = याव + कन्—जौ से तैयार किया हुआ आहार
- यावकम्—नपुं॰—-—यु + अच् + अण् = याव + कन्—लाख, लाल रंग, महावर
- यावत्—वि॰—-—यद् + वतुप्, आत्वम् (`तावत्' का सहसंबंधी)—जितना, जितने (`जितने' के लिए यावत् तथा `उतने' के लिए तावत् का प्रयोग होता है)
- यावत्—वि॰—-—-—जितना बड़ा, जितना विस्तृत, कितना बड़ा, कितना विस्तृत
- यावत्—वि॰—-—-—सब, समस्त (यहाँ दोनों मिल कर समष्टि या साकल्य का अर्थ प्रकट करते हैं
- यावत्—वि॰—-—-—जहां तक, तक, पर्यन्त, जब तक कि, (कर्म॰ के साथ)
- यावत्—वि॰—-—-—तभी, ठीक उसी समय, इसी बीच में (तुरन्त किये जाने वाले कार्य को दर्शाने वाल
- यावत्—वि॰—-—-—इतनी देर कि, इतने समय तक कि
- यावत्—वि॰—-—-—ज्योंहि, अभी-अभीम् इसी समय
- यावत्—वि॰—-—-—जबकि, उसी समय तक
- यावत्—वि॰—-—-—जबकि, उसी समय तक
- यावदन्तम्—अव्य॰—यावत्-अन्तम्—-—अन्त तक, आखीर तक
- यावदन्ताय—अव्य॰—यावत्-अन्ताय—-—अन्त तक, आखीर तक
- यावदर्थ—वि॰—यावत्-अर्थ—-—आवश्यकता के अनुसार, उतने जितने कि अर्थ प्रकट के लिए आवश्यक है (शब्द)
- यावदर्थम्—अव्य॰—यावत्-अर्थम्—-—उतना जितना उपयोगी हो
- यावदर्थम्—अव्य॰—यावत्-अर्थम्—-—सभी अर्थों में
- यावदिष्टम्—अव्य॰—यावत्-इष्टम्—-—यथेच्छ, इच्छा के अनुकूल
- यावदीप्सितम्—अव्य॰—यावत्-ईप्सितम्—-—यथेच्छ, इच्छा के अनुकूल
- यावदित्थम्—अव्य॰—यावत्-इत्थम्—-—आवश्यकता के अनुसार, जितना आवश्यक हो
- यावज्जन्म—अव्य॰—यावत्-जन्म—-—जीवन भर, जीवनपर्यंत, आजीवन
- यावज्जीवम्—अव्य॰—यावत्-जीवम्—-—जीवन भर, जीवनपर्यंत, आजीवन
- यावज्जीवेन—अव्य॰—यावत्-जीवेन—-—जीवन भर, जीवनपर्यंत, आजीवन
- यावद्बलम्—अव्य॰—यावत्-बलम्—-—अपनी शक्ति के अनुसार, जितना अधिक से अधिक वल हो
- यावद्भाषित—वि॰—यावत्-भाषित—-—उतना जितना कहा जा चुका है
- यावदु्क्त—वि॰—यावत्-उक्त—-—उतना जितना कहा जा चुका है
- यावन्मात्र—वि॰—यावत्-मात्र—-—इतना बड़ा, इतना विस्तृत, जहाँ तक व्यापक हो
- यावन्मात्र—वि॰—यावत्-मात्र—-—नगण्य, तुच्छ, मामूली
- यावच्छक्यम्—अव्य॰—यावत्-शक्यम्—-—जहां तक संभव हो, अपनी शक्ति के अनुसार
- यावच्छक्ति—अव्य॰—यावत्-शक्ति—-—जहां तक संभव हो, अपनी शक्ति के अनुसार
- यावन—वि॰—-—यवन + अण्, यु + णिच् + ल्युट् वा—यवनों से संबंध रखने वाला
- यावनः—पुं॰—-—-—लोबान
- यावसः—पुं॰—-—यवस + अण्—घास का ढेर
- यावसः—पुं॰—-—-—चारा, खाद्यसामग्री
- याष्टीक—वि॰—-—यष्टिः प्रहरणमस्य - ईकक्—लाठी या सोटे से सुसज्जित
- याष्टीकः—पुं॰—-—-—लाठी से सुसज्जित योद्धा
- यास्कः—पुं॰—-—यस्कस्यापत्यम् - यस्क + अण्—निरुक्तकार का नाम
- यु—अदा॰ पर॰ <यौति>, <युत>; पुं॰—-—-—सम्मिलित होना, मिलना
- यु—अदा॰ पर॰ <यौति>, <युत>; पुं॰—-—-—मिलाना, गड्डमड्ड करना
- यु—जुहो॰ पर॰ <युयोति>—-—-—अलग-अलग करना
- यु—क्र्या॰ उभ॰ <युनाति>,<युनीते>—-—-—वाँधना, जकड़ना, सम्मिलित होना, मिलना
- प्रयु—क्र्या॰ उभ॰—प्र-यु—-—थामना, अनुष्ठान करना
- व्यतियु—क्र्या॰ उभ॰—व्यति-यु—-—मिश्रण करना
- युक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—युज् + क्त—सम्मिलित, मिला हुआ
- युक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जकड़ा हुआ, जूए में जोता हुआ, साज-सामान से संनद्ध
- युक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—युक्त किया हुआ, सुव्यवस्थित
- युक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सहित
- युक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सुसज्जित, युक्त, भरा हुआ, सहित
- युक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—स्थिर, तुला हुआ, लीन, व्यस्त
- युक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कर्मपरायण, परिश्रमी
- युक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कुशल अनुभवी, चतुर
- युक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—योग्य, उचित, ठीक, उपयुक्त
- युक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—आदिकालीन, मौलिक (शब्द)
- युक्तः—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—महात्मा जो परव्रह्म परमात्मा से सायुज्य प्राप्त कर चुका है
- युक्तम्—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जोड़ी, जुआ या युग्म
- युक्तार्थ—वि॰—युक्त-अर्थ—-—समझदार, विवेकी, सार्थक
- युक्तकर्मन्—वि॰—युक्त-कर्मन्—-—जिसे किसी कर्तव्य कर्म पर लगाया गया है
- युक्तदण्ड—वि॰—युक्त-दण्ड—-—न्यायोचित दंड देने वाला
- युक्तमनस्—वि॰—युक्त-मनस्—-—सावधान
- युक्तरूप—वि॰—युक्त-रूप—-—योग्य, उचित, लायक, उपयुक्त (संबं॰ या अधि॰ के साथ)
- युक्तिः—स्त्री॰—-—युज् + क्तिन्—मिलाप, संगम, सम्मिश्रण
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—प्रयोग, इस्तेमाल, काम में लाना
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—ज़ुए में जोतना
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—व्यवहार, प्रचलन
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—उपाय, तरकीब, योजना, जुगुत
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—कपटयोजना,कूटयुक्ति, दाव-पेंच
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—औचित्य, योग्यता, सामंजस्य, संगति, उपयुक्तता
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—कौशल,कला
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—तर्कना, युक्ति, दलील
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—अनुमान, निगमन
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—हेतु, कारण
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—क्रमबद्धता, रचना
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—संभावना, परिस्थिति की गणना या विशेषता (समय, स्थान आदि की दृष्टि से)
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—घटनाओं की नियमित शृंखला, तु॰ सा॰ द॰ ३४३
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—किसी के प्रयोजन या अभिकल्प की प्रच्छन्न अथवा प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—कुल राशि, योग
- युक्तिः—स्त्री॰—-—-—धातु में खोट मिलाना
- युक्तिकथनम्—नपुं॰—युक्तिः-कथनम्—-—हेतुओं का वर्णन
- युक्तिकर —वि॰—युक्तिः-कर —-—उपयुक्त, योग्य
- युक्तिकर —वि॰—युक्तिः-कर —-—सिद्ध
- युक्तिज्ञ—वि॰—युक्तिः-ज्ञ—-—तरकीब या उपायों में कुशल, आविष्कार कुशल
- युक्तियुक्त—वि॰—युक्तिः-युक्त—-—उपयुक्त, योग्य
- युक्तियुक्त—वि॰—युक्तिः-युक्त—-—विशेषज्ञ, कुशल
- युक्तियुक्त—वि॰—युक्तिः-युक्त—-—स्थापित, सिद्ध
- युक्तियुक्त—वि॰—युक्तिः-युक्त—-—तर्कयुक्त
- युगम्—नपुं॰—-—युज् + घञ् कुत्वम्, गुणाभावः—जुआ
- युगम्—नपुं॰—-—-—जोड़ा, दम्पती, युगल
- युगम्—नपुं॰—-—-—श्लोकार्ध जिसमें दो चरण होते हैं, युग्म
- युगम्—नपुं॰—-—-—सृष्टि का युग
- युगम्—नपुं॰—-—-—पीढ़ी, जीवन
- युगम्—नपुं॰—-—-—`चार' की संख्या की अभिव्यक्ति, `बारह' की संख्या के लिए विरलप्रयोग
- युगान्तः—पुं॰—युगम्-अन्तः—-—जुए का किनारा
- युगान्तः—पुं॰—युगम्-अन्तः—-—युग का अन्त, सृष्टि का अन्त या विनाश
- युगान्तः—पुं॰—युगम्-अन्तः—-—मध्याह्न, दोपहर
- युगावधिः—पुं॰—युगम्-अवधिः—-—सृष्टि का अन्त या विनाश
- युगकीलकः—पुं॰—युगम्-कीलकः—-—ज़ुए की कीली
- युगपार्श्वग—वि॰—युगम्-पार्श्वग—-—जुए पास जाने वाला, जुए में जुतने वाला बैल
- युगबाहु—वि॰—युगम्-बाहु—-—लम्बी भुजाओं वाला
- युगन्धरः—पुं॰—-—युग + धृ + खच्, मुम्—गाड़ी की जोड़ी जिसके साथ जुआ कस दिया जाता है
- युगन्धरम्—नपुं॰—-—युग + धृ + खच्, मुम्—गाड़ी की जोड़ी जिसके साथ जुआ कस दिया जाता है
- युगपद्—अव्य॰—-—युग + पद् + क्विप्—एक ही समय, सब एक साथ, सब मिलकर, उसी समय
- युगलम्—नपुं॰—-—युज् + कलच्, कुत्वम्—जोड़ा, दम्पती
- युगलकम्—नपुं॰—-—युगल + कन्—जोड़ी
- युगलकम्—नपुं॰—-—-—श्लोकार्ध (जो दो मिलकर पूरा श्लोक या वाक्य बनाएं)
- युग्म—वि॰—-—-—सम
- युग्मम्—नपुं॰—-—युज् + मक्, कुत्वम्—जोड़ी, दम्पती,
- युग्मम्—नपुं॰—-—-—संगम, मिलाप
- युग्मम्—नपुं॰—-—-—(नदियों का) संगम
- युग्मम्—नपुं॰—-—-—जुड़वां
- युग्मम्—नपुं॰—-—-—श्लोकार्ध (जिन दो से मिलकर पूरा एक वाक्य बने)
- युग्मम्—नपुं॰—-—-—मिथुन राशि
- युग्य—वि॰—-—युगाय हितः- यत्—जोतने के योग्य
- युग्य—वि॰—-—-—जुता हुआ, साज सामग्री से संनद्ध
- युग्य—वि॰—-—-—खींचा गया
- युग्यः—पुं॰—-—-—जुता हुआ, खींचने वाला जानवर, (विशेषतः) रथ का घोड़ा
- युज्—रुधा॰ उभ॰< युनक्ति>, <युङ्के>,<युक्त>—-—-—संमिलित होना, मिलना, अनुरक्त होना, संबद्ध होना, जुड़ना
- युज्—रुधा॰ उभ॰< युनक्ति>, <युङ्के>,<युक्त>—-—-—जोतना, जीन कसकर संनद्ध करना, लगाना, इस्तेमाल करना
- युज्—रुधा॰ उभ॰< युनक्ति>, <युङ्के>,<युक्त>—-—-—सुसज्जित करना, से युक्त करना
- युज्—रुधा॰ उभ॰< युनक्ति>, <युङ्के>,<युक्त>—-—-—प्रयुक्त करना, काम में लगाना, इस्तेमाल करना
- युज्—रुधा॰ उभ॰< युनक्ति>, <युङ्के>,<युक्त>—-—-—नियुक्त करना, स्थापित करना
- युज्—रुधा॰ उभ॰< युनक्ति>, <युङ्के>,<युक्त>—-—-—निदेशित करना, (मन आदि का) स्थिर करना, जमाना
- युज्—रुधा॰ उभ॰< युनक्ति>, <युङ्के>,<युक्त>—-—-—अपना ध्यान संकेन्द्रित करना
- युज्—रुधा॰ उभ॰< युनक्ति>, <युङ्के>,<युक्त>—-—-—रखना, स्थिर करना, जमाना
- युज्—रुधा॰ उभ॰< युनक्ति>, <युङ्के>,<युक्त>—-—-—तैयार करना, सुव्यवस्थित करना, सज्जित करना, युक्त करना
- युज्—रुधा॰ उभ॰< युनक्ति>, <युङ्के>,<युक्त>—-—-—देना, प्रदान करना, सादर समर्पित करना
- युज्—रुधा॰, कर्मवा॰ <युज्यते>—-—-—संमिलित होने के योग्य
- युज्—रुधा॰, कर्मवा॰ <युज्यते>—-—-—प्राप्त करना, स्वामी होना
- युज्—रुधा॰, कर्मवा॰ <युज्यते>—-—-—योग्य या सही होना, समुचित होना, उपयुक्त होना
- युज्—रुधा॰, कर्मवा॰ <युज्यते>—-—-—तैयार होना
- युज्—रुधा॰, कर्मवा॰ <युज्यते>—-—-—तुल जाना, लीन होना, निदेशित होना
- युज्—रुधा॰ उभ॰प्रेर॰—-—-—सम्मिलित होना, मिलना एकत्र करना
- युज्—रुधा॰ उभ॰प्रेर॰—-—-—उपहार देना, समर्पण करना, प्रदान करना
- युज्—रुधा॰ उभ॰प्रेर॰—-—-—नियुक्त करना, काम पर लगाना, इस्तेमाल करना
- युज्—रुधा॰ उभ॰प्रेर॰—-—-—मुड़ना, किसी ओर निदेशित करना
- युज्—रुधा॰ उभ॰प्रेर॰—-—-—उत्तेजित करना, प्रेरित करना, भड़काना
- युज्—रुधा॰ उभ॰प्रेर॰—-—-—सम्पन्न करना, निष्पन्न करना
- युज्—रुधा॰ उभ॰प्रेर॰—-—-—तैयार करना, सुव्यवस्थित करना, सुसज्जित करना
- युज्—रुधा॰ उभ॰, इच्छा॰ <युयुक्षति>,<युयुक्षते>—-—-—सम्मिलित होने की इच्छा करना, जोतने की इच्छा करना, देने की कामना करना
- अनुयुज्—रुधा॰, आ॰—अनु-युज्—-—पूछना प्रश्न करना
- अनुयुज्—रुधा॰, आ॰—अनु-युज्—-—परीखण करना, जांच करना
- अभियुज्—रुधा॰, आ॰—अभि-युज्—-—चेष्टा करना, काम में पिल जाना
- अभियुज्—रुधा॰, आ॰—अभि-युज्—-—आक्रमण करना, धावा करना
- अभियुज्—रुधा॰, आ॰—अभि-युज्—-—दोषारोपण करना, दोषी ठहराना
- अभियुज्—रुधा॰, आ॰—अभि-युज्—-—अधिकार जताना, मांग प्रस्तुत करना
- अभियुज्—रुधा॰, आ॰—अभि-युज्—-—कहना, बोलना
- उद्युज्—रुधा॰ उभ॰—उद्-युज्—-—उत्तेजित करना,सक्रियता उद्दीप्त करना
- उद्युज्—रुधा॰ उभ॰—उद्-युज्—-—कोशिश करना, प्रयास करना
- उद्युज्—रुधा॰ उभ॰—उद्-युज्—-—तैयार करना
- उपयुज्—रुधा॰, आ॰—उप-युज्—-—इस्तेमाल करना, काम में लगाना
- उपयुज्—रुधा॰, आ॰—उप-युज्—-—चखना, स्वाद लेना अनुभव करना (आलं॰ से भी)
- उपयुज्—रुधा॰, आ॰—उप-युज्—-—उपभोग करना, खाना
- नियुज्—रुधा॰, आ॰—नि-युज्—-—नियुक्त करना, प्रतिनियुक्त करना, आदेश देना
- नियुज्—रुधा॰, आ॰—नि-युज्—-—सम्मिलित होना, मिलना
- नियुज्—रुधा॰, आ॰—नि-युज्—-—नियत करना, आदिष्ट करना
- नियुज्—रुधा॰ उभ॰प्रेर॰—नि-युज्—-—सम्मिलित करना, मिलाना, से युक्त करना, प्रदान करना
- नियुज्—रुधा॰ उभ॰प्रेर॰—नि-युज्—-—जोतना, संनद्ध करना
- नियुज्—रुधा॰ उभ॰प्रेर॰—नि-युज्—-—उकसाना, प्रेरित करना
- प्रयुज्—रुधा॰, आ॰—प्र-युज्—-—इस्तेमाल करना, काम में लाना
- प्रयुज्—रुधा॰, आ॰—प्र-युज्—-—नियत करना, काम में लगाना, निदेशित करना, आदेश देना
- प्रयुज्—रुधा॰, आ॰—प्र-युज्—-—देना, प्रदान करना, अभिदान करना
- प्रयुज्—रुधा॰, आ॰—प्र-युज्—-—हिलना-जुलना, गतिदेना
- प्रयुज्—रुधा॰, आ॰—प्र-युज्—-—उत्तेजित करना, प्रेरित करना, हांकना
- प्रयुज्—रुधा॰, आ॰—प्र-युज्—-—संपन्न करना
- प्रयुज्—रुधा॰, आ॰—प्र-युज्—-—रंगमंच पर प्रतिनिधित्व करना, अभिनय करना, नाट्य करना
- प्रयुज्—रुधा॰, आ॰—प्र-युज्—-—इस्तेमाल करने के लिए उधार देना, (घन आदि) ब्याज पर देना
- वियुज्—रुधा॰, आ॰—वि-युज्—-—छोड़ना, परित्याग करना
- वियुज्—रुधा॰, आ॰—वि-युज्—-—अलग-अलग करना
- वियुज्—रुधा॰, आ॰—वि-युज्—-—ढीला करना, शिथिल करना
- विनियुज्—रुधा॰ उभ॰—विनि-युज्—-—इस्तेमाल करना, व्यय करना
- विनियुज्—रुधा॰ उभ॰—विनि-युज्—-—नियुक्त करना, काम में लगाना
- विनियुज्—रुधा॰ उभ॰—विनि-युज्—-—बांटना, अनुभाजन करना, वितरण करना
- विनियुज्—रुधा॰ उभ॰—विनि-युज्—-—वियुक्त करना, अलग करना
- संयुज्—रुधा॰ उभ॰, कर्मवा॰—सम्-युज्—-—सम्मिलित होना
- संयुज्—रुधा॰ उभ॰प्रेर॰—सम्-युज्—-—मिलाना, सम्मिलित करना
- युज्—भ्वा॰ चुरा॰ पर॰ <योजति>,<योजयति>—-—-—जोंड़ना, मिलाना, जोतना
- युज्—दिवा॰ आ॰ <युज्यते>—-—-—मन को संकेन्द्रित करना
- युज्—वि॰—-—युज् + क्विन्—जुड़ा हुआ, मिला हुआ, जुता हुआ, ख़ीचा जाता हुआ
- युज्—वि॰—-—-—सम, अविषम
- युज्—पुं॰—-—-—सम्मेलक, जो जोड़ देता है, मिला देता है
- युज्—पुं॰—-—-—ऋषि मुनि, जो अपने आपको भावसमाधि में संलग्न रखता है
- युज्—पुं॰—-—-—जोड़ा, दंपती
- युञ्जानः—पुं॰—-—युज् + शानच्—हांकने बाला, रथवान्
- युञ्जानः—पुं॰—-—-—वह ब्राह्मण जो परमात्मा से सायुज्य प्राप्त करने के लिए योगाभ्यास में व्यस्त है
- युत—भू॰ क॰ कृ॰—-—यु + क्त—जुड़ा हुआ,सम्मिलित, मिला हुआ,
- युत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—से युक्त या सहित
- युतकम्—नपुं॰—-—युत + कन्—जोड़ी
- युतकम्—नपुं॰—-—-—मिलाप, मित्रता, मैत्री
- युतकम्—नपुं॰—-—-—विवाहोपहार
- युतकम्—नपुं॰—-—-—स्त्रियों की एक प्रकार की वेशभूषा
- युतकम्—नपुं॰—-—-—स्त्रियों की एक प्रकार की वेशभूषा
- युतिः—स्त्री॰—-—यु + क्तिन्—मिलाप, संगम
- युतिः—स्त्री॰—-—-—सुसज्जित होना
- युतिः—स्त्री॰—-— —स्वामित्व प्राप्त करना
- युतिः—स्त्री॰—-—-—जोड़, योग
- युतिः—स्त्री॰—-—-—संयुक्ति, दो ग्रहों का स्पष्ट योग
- युद्धम्—नपुं॰—-—युध् + क्त—संग्राम, समर, लड़ाई, भिड़न्त, मुठभेड़, संघर्ष, द्वन्द्व
- युद्धम्—नपुं॰—-—-—ग्रहों का संघर्ष या विरोध
- युद्धावसानम्—नपुं॰—युद्धम्-अवसानम्—-—युद्ध की समाप्ति, सुलह
- युद्धाचार्यः—पुं॰—युद्धम्-आचार्यः—-—सैन्यशिक्षा का गुरु
- युद्धोन्मत्त—वि॰—युद्धम्-उन्मत्त—-—युद्ध के लिए पागल, रणोन्मत्त
- युद्धकारिन्—वि॰—युद्धम्-कारिन्—-—लड़ने वाला, संघर्षशील
- युद्धभूः—स्त्री॰—युद्धम्-भूः—-—रणक्षेत्र
- युद्धभूमिः—स्त्री॰—युद्धम्-भूमिः—-—रणक्षेत्र
- युद्धमार्गः—पुं॰—युद्धम्-मार्गः—-—सैनिक कूटचाल या छलबल, युद्धाभिनय, तिकड़मबाज़ी
- युद्धरङ्गः—पुं॰—युद्धम्-रङ्गः—-—रणक्षेत्र, लड़ाई का अखाड़ा
- युद्धवीरः—पुं॰—युद्धम्-वीरः—-—योद्धा, शूरबीर, मल्ल
- युद्धवीरः—पुं॰—युद्धम्-वीरः—-—सैन्यविक्रम से उत्पन्न वीरता का मनोभाव, वीररस
- युद्धसारः—पुं॰—युद्धम्-सारः—-—घोड़ा
- यु्ध्—दिवा॰ आ॰ <युध्यते>,<युद्ध>—-—-—लड़ना, संघर्ष करना, विवाद करना, युद्ध करना
- यु्ध्—दिवा॰उभ॰प्रेर॰—-—-—लड़वाना,
- यु्ध्—दिवा॰उभ॰प्रेर॰—-—-—युद्ध में सामना करना या विरोध करना
- यु्ध्—दिवा॰ आ॰, इच्छा॰ <युयुत्सते>—-—-—लड़ने की इच्छा करना
- नियुध्—दिवा॰ आ॰—नि-युध्—-—मल्लयुद्ध करना, विरोध करना
- प्रतियुध्—दिवा॰ आ॰—प्रति-युध्—-—युद्ध में सामना करना, विरोध करना
- यु्ध्—स्त्री॰—-—युध् + क्विप्—संग्राम,जंग,लड़ाई, मुठभेड़
- यु्धानः—पुं॰—-—युध् + आनच्, स च कित्—योद्धा, क्षत्रिय जाति का पुरुष
- युप्—दिवा॰ पर॰ <युध्यति>—-—-—मिटा देना, विलुप्त करना
- युप्—दिवा॰ पर॰ <युध्यति>—-—-—कष्ट देना
- युयुः—पुं॰—-—या + यङ् + डु—घोड़ा
- युयुत्सा—वि॰—-—युध् + सन् + अङ् + टाप्—लड़ने की इच्छा, विरोधी इरादा
- युयुत्सु—वि॰—-—युध् + सन् + उ—लड़ने की इच्छा वाला
- युवतिः—स्त्री॰—-—युवन् + ति—तरुणी स्त्री, तरुणी मादा (चाहे मनुष्य की हो या किसी पशु की हो)
- युवती—स्त्री॰—-—युवन् +ति+ ङीप् —तरुणी स्त्री, तरुणी मादा (चाहे मनुष्य की हो या किसी पशु की हो)
- युवन्—वि॰—-—यौतीति युवा, यु + कनिन्—तरुण, जवान, वयस्क, परिपक्वावस्था को प्राप्त
- युवन्—वि॰—-—-—हृष्ट-पुष्ट, स्वस्थ
- युवन्—वि॰—-—-—श्रेष्ठ, उत्तम
- युवन्—पुं॰—-—-—जवान आदमी, तरुण
- युवन्—पुं॰—-—-—छोटी सन्तान (बड़ी सन्तान जीवित रहते हुए)
- युवखलति—वि॰—युवन्-खलति—-—जवानी में ही गंजा
- युवजरत्—वि॰—युवन्-जरत्—-—जवानी में ही बूढ़ा दिखाई देने वाला, समय से पूर्व बूढ़ा हो जाने वाला
- युवराज्—पुं॰—युवन्-राज्—-—प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी, राज्याधिकारी राजकुमार, राजा का उत्तराधिकारी पुत्र
- युवराजः—पुं॰—युवन्-राजः—-—प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी, राज्याधिकारी राजकुमार, राजा का उत्तराधिकारी पुत्र
- युष्मद्—पुं॰—-—युष् + मदिक्—मध्यमपुरुष के पुरुषवाचक सर्वनाम का प्रातिपदिक रूप (कर्तृ॰ त्वम्, युवाम्, यूयम्), तू, तुम (कई समासों के आरंभ में प्रयुक्त)
- युष्मादृश् <o> युष्मादृश—वि॰—-—युष्मद् + दृश् + क्विन्, आत्वम्—तुम्हारी तरह
- यूकः—पुं॰—-—यु + कन्, दीर्घः—जूँ
- यूका—स्त्री॰—-—यु + कन्, दीर्घः, स्त्रियां टाप्—जूँ
- यूतिः—स्त्री॰—-—यु + क्तिन्, ति॰ दीर्घः—मिश्रण, मिलाप
- संगम—वि॰—-—-—संबंध
- यूथम्—नपुं॰—-—यु + थक्, पृषो॰ दीर्धः—रेवड़, लहंडा, भीड़, टोली, झुण्ड (जैसा वन्य पशुओं का)
- यूथनाथः—पुं॰—यूथम्-नाथः—-—किसी टोली या दल का नेता
- यूथनाथः—पुं॰—यूथम्-नाथः—-—किसी रेवड़ या भीड़ (प्रायः हाथियों की) का मुखिया, विशालकाय हाथी
- यूथपः—पुं॰—यूथम्-पः—-—किसी टोली या दल का नेता
- यूथपः—पुं॰—यूथम्-पः—-—किसी रेवड़ या भीड़ (प्रायः हाथियों की) का मुखिया, विशालकाय हाथी
- यूथपतिः—पुं॰—यूथम्-पतिः—-—किसी टोली या दल का नेता
- यूथपतिः—पुं॰—यूथम्-पतिः—-—किसी रेवड़ या भीड़ (प्रायः हाथियों की) का मुखिया, विशालकाय हाथी
- यूथिका—स्त्री॰—-—यूथं पुष्पवृन्दमस्ति अस्याः - यूथ + ठन् + टाप्—एक प्रकार की चमेली, जुही, बेला या इसका फूल
- यूथी—स्त्री॰—-—यूथं पुष्पवृन्दमस्ति अस्याः यूथ + अच् + ङीष्—एक प्रकार की चमेली, जुही, बेला या इसका फूल
- यूपः—पुं॰—-—यु + पक्, पृषो॰ दीर्घः—यज्ञ की स्थूणा
- यूपः—पुं॰—-—-—विजय-स्मारक, विजयोपहार
- यूषः—पुं॰—-—यूष् +क, कनिन् वा—रसा, झोल, शोरबा, मटर का रसा
- यूषम—पुं॰—-—यूष् +क, कनिन् वा—रसा, झोल, शोरबा, मटर का रसा
- यूषन्—नपुं॰—-—यूष् +क, कनिन् वा—रसा, झोल, शोरबा, मटर का रसा
- येन—अव्य॰—-—‘यद्’ शब्द का करण॰ का एक वचनांत रूप जो क्रियाविशेषण की भांति प्रयुक्त होता है—जिससे, जिसके द्वारा, जिस लिए, जिस कारण से, जिसके साधन से
- येन—अव्य॰—-—-—जिससे कि
- येन—अव्य॰—-—-—चूँकि, क्योंकि
- योक्त्रम्—नपुं॰—-—युज् + ष्ट्रन्—डोरी, रस्सी, तस्मा, रज्जु
- योक्त्रम्—नपुं॰—-—-—हल के जुए की रस्सी
- योक्त्रम्—नपुं॰—-—-—वह रस्सी जिसके द्वारा किसी पशु को गाड़ी के जोड़े से बाँध दिया जाता है
- योगः—पुं॰—-—युज् भावादौ घञ्, कुत्वम्—जोड़ना, मिलाना
- योगः—पुं॰—-—-—मिलाप, संगम, मिश्रण
- योगः—पुं॰—-—-—संपर्क स्पर्श, संबंध
- योगः—पुं॰—-—-—काम में लगाना, प्रयोग, इस्तेमाल
- योगः—पुं॰—-—-—पद्धति, रीति, क्रम, साधन
- योगः—पुं॰—-—-—फल, परिणाम
- योगः—पुं॰—-—-—जुआ
- योगः—पुं॰—-—-—वाहन, सवारी, गाड़ी
- योगः—पुं॰—-—-—जिरहबख्तर, कवच
- योगः—पुं॰—-—-—योग्यता, औचित्य, उपयुक्तता
- योगः—पुं॰—-—-—व्यवसाय, कार्य, व्यापार
- योगः—पुं॰—-—-—दाव-पेंच, जालसाजी, कूट चाल
- योगः—पुं॰—-—-—तरकीब, योजना, उपाय
- योगः—पुं॰—-—-—कोशिश उत्साह, परिश्रम, अध्यवसाय
- योगः—पुं॰—-—-—उपचार, चिकित्सा
- योगः—पुं॰—-—-—इन्द्रजाल, अभिचार, मंत्रयोग, जादू, जादू-टोना
- योगः—पुं॰—-—-—लब्धि, अवाप्ति, अभिग्रहण
- योगः—पुं॰—-—-—धनदौलत, द्रव्य
- योगः—पुं॰—-—-—नियम, विधि
- योगः—पुं॰—-—-—पराश्रय, संबंध, नियमित आदेश या संयोग, एक शब्द की दूसरे शब्द पर निर्भरता
- योगः—पुं॰—-—-—निर्वचन, या अर्थ की दृष्टि से शब्द व्युत्पत्ति
- योगः—पुं॰—-—-—शब्द के निर्वचनमूलक अर्थ
- योगः—पुं॰—-—-—गंभीर भावचिन्तन, मन का संकेन्द्रीकरण, परमात्मचिन्तन, जिसे (योगदर्शन) में ‘चित्तवृत्तिनिरोध’ कहते हैं
- योगः—पुं॰—-—-—पतंजलि द्वारा स्थापित दर्शन पद्धति जो सांख्य दर्शन का ही दूसरा भाग समझा जाता है, परन्तु व्यवहारतः यह एक पृथक् दर्शन है
- योगः—पुं॰—-—-—जोड़, संकलन
- योगः—पुं॰—-—-—संयुक्ति, दो ग्रहों का स्पष्ट योग
- योगः—पुं॰—-—-—तारापुंज
- योगः—पुं॰—-—-—विशेष प्रकार का ज्योतिषीय समय-विभाग
- योगः—पुं॰—-—-—किसी नक्षत्र पुंज का मुख्य तारा
- योगः—पुं॰—-—-—भक्ति, परमात्मा की पवित्र खोज
- योगः—पुं॰—-—-—भेदिया, गुप्तचर
- योगः—पुं॰—-—-—द्रोही, विश्वासघाती
- योगाङ्गम्—नपुं॰—योगः-अङ्गम्—-—योग की प्राप्ति के साधन
- योगाचारः—पुं॰—योगः-आचारः—-—योग का अभ्यास या पालन
- योगाचारः—पुं॰—योगः-आचारः—-—बुद्ध के उस संप्रदाय का अनुयायी जो केवल विज्ञान या प्रज्ञा के शाश्वत अस्तित्व को ही मानता है
- योगाचार्यः—पुं॰—योगः-आचार्यः—-—जादू का शिक्षक
- योगाचार्यः—पुं॰—योगः-आचार्यः—-—योग दर्शन का अध्यापक
- योगाधमनम्—नपुं॰—योगः-आधमनम्—-—जालसाजी से भरी बन्धकावस्था
- योगारूढ—वि॰—योगः-आरूढ—-—सूक्ष्मभावचिन्तन में निमग्न
- योगासनम्—नपुं॰—योगः-आसनम्—-—सूक्ष्मभावचिन्तन के अनुरूप अंग-स्थिति
- योगेन्द्रः—पुं॰—योगः-इन्द्रः—-—योग में निष्णात या सिद्धहस्त
- योगेन्द्रः—पुं॰—योगः-इन्द्रः—-—जिसने अलौकिक शक्ति सम्पादन कर ली है
- योगेन्द्रः—पुं॰—योगः-इन्द्रः—-—जादूगर
- योगेन्द्रः—पुं॰—योगः-इन्द्रः—-—देवता
- योगेन्द्रः—पुं॰—योगः-इन्द्रः—-—शिव का विशेषण
- योगेन्द्रः—पुं॰—योगः-इन्द्रः—-—याज्ञवल्क्य का विशेषण
- योगेशः—पुं॰—योगः-ईशः—-—योग में निष्णात या सिद्धहस्त
- योगेशः—पुं॰—योगः-ईशः—-—जिसने अलौकिक शक्ति सम्पादन कर ली है
- योगेशः—पुं॰—योगः-ईशः—-—जादूगर
- योगेशः—पुं॰—योगः-ईशः—-—देवता
- योगेशः—पुं॰—योगः-ईशः—-—शिव का विशेषण
- योगेशः—पुं॰—योगः-ईशः—-—याज्ञवल्क्य का विशेषण
- योगेश्वरः—पुं॰—योगः-ईश्वरः—-—योग में निष्णात या सिद्धहस्त
- योगेश्वरः—पुं॰—योगः-ईश्वरः—-—जिसने अलौकिक शक्ति सम्पादन कर ली है
- योगेश्वरः—पुं॰—योगः-ईश्वरः—-—जादूगर
- योगेश्वरः—पुं॰—योगः-ईश्वरः—-—देवता
- योगेश्वरः—पुं॰—योगः-ईश्वरः—-—शिव का विशेषण
- योगेश्वरः—पुं॰—योगः-ईश्वरः—-—याज्ञवल्क्य का विशेषण
- योगक्षेमः—पुं॰—योगः-क्षेमः—-—सामान की सुरक्षा, संपत्ति की देखभाल
- योगक्षेमः—पुं॰—योगः-क्षेमः—-—दुर्घटनाओं से संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए शुल्क, बीमा
- योगक्षेमः—पुं॰—योगः-क्षेमः—-—कल्याण, कुशलक्षेम, सुरक्षा समृद्धि
- योगक्षेमः—पुं॰—योगः-क्षेमः—-—संपत्ति, लाभ, फायदा
- योगक्षेमौ—पुं॰—योगः-क्षेमौ—-—(संपति का) अभिग्रहण और प्ररक्षण, उपलब्धि और सुरक्षा, पुराने का प्ररक्षण तथा नूतन का अभिग्रहण
- योगक्षेमे—नपुं॰—योगः-क्षेमे—-—(संपति का) अभिग्रहण और प्ररक्षण, उपलब्धि और सुरक्षा, पुराने का प्ररक्षण तथा नूतन का अभिग्रहण
- योगक्षेमम्—नपुं॰—योगः-क्षेमम्—-—(संपति का) अभिग्रहण और प्ररक्षण, उपलब्धि और सुरक्षा, पुराने का प्ररक्षण तथा नूतन का अभिग्रहण
- योगचूर्णम्—नपुं॰—योगः-चूर्णम्—-—जादू का चूर्ण, जादू की शक्ति वाला चूरा
- योगतारका—स्त्री॰—योगः-तारका—-—नक्षत्रपुंज का मुख्य तारा
- योगतारा—स्त्री॰—योगः-तारा—-—नक्षत्रपुंज का मुख्य तारा
- योगदानम्—नपुं॰—योगः-दानम्—-—योग के सिद्धांतों का संचारण
- योगदानम्—नपुं॰—योगः-दानम्—-—जालसाजी से युक्त उपहार
- योगधारणा—स्त्री॰—योगः-धारणा—-—सतत भक्ति, अनवरतभजन
- योगनाथः—पुं॰—योगः-नाथः—-—शिव का विशेषण
- योगनिद्रा—स्त्री॰—योगः-निद्रा—-—अर्धचिन्तन और अर्धनिद्रित अवस्था, जागरण और निद्रा के मध्य की स्थिति अर्थात् लघुनिद्रा
- योगनिद्रा—स्त्री॰—योगः-निद्रा—-—युग के अन्त में विष्णु की निद्रा
- योगपट्टम्—नपुं॰—योगः-पट्टम्—-—भावसमाधि के अवसर पर संन्यासियों द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र जो पीठ से लेकर घुटनों तक शरीर को ढक लेता है
- योगपतिः—पुं॰—योगः-पतिः—-—विष्णु का विशेषण
- योगबलम्—नपुं॰—योगः-बलम्—-—भक्ति की शक्ति, भावचिंतन की शक्ति, अलौकिक शक्ति
- योगबलम्—नपुं॰—योगः-बलम्—-—जादू की शक्ति
- योगमाया—स्त्री॰—योगः-माया—-—योग की जादू जैसी शक्ति
- योगमाया—स्त्री॰—योगः-माया—-—ईश्वर की सर्जन शक्ति जिससे कि देवता के रूप में मूर्त धरा की रचना की जाती है
- योगमाया—स्त्री॰—योगः-माया—-—दुर्गा का नाम
- योगरङ्गः—पुं॰—योगः-रङ्गः—-—नारंगी
- योगरूढ—वि॰—योगः-रूढ—-—वह शब्द जिसके निर्वचनमूलक अर्थ भी हैं, साथ ही उसका विशेष परंपरागत अर्थ है
- योगरोचना—स्त्री॰—योगः-रोचना—-—एक प्रकार का जादू का लेप जिसके लगाने से मनुष्य अदृश्य और अभेद्य हो जाता है
- योगवर्तिका—स्त्री॰—योगः-वर्तिका—-—जादू का लैम्प या बत्ती
- योगवाहिन्—पुं॰—योगः-वाहिन्—-—औषधियों को मिलाने का माध्यम
- योगवाहिन्—नपुं॰—योगः-वाहिन्—-—औषधियों को मिलाने का माध्यम
- योगवाही—स्त्री॰—योगः-वाही—-—रेह, सज्जी
- योगवाही—स्त्री॰—योगः-वाही—-—मधु
- योगवाही—स्त्री॰—योगः-वाही—-—पारा
- योगविक्रयः—पुं॰—योगः-विक्रयः—-—धोखे की बिक्री
- योगविद्—वि॰—योगः-विद्—-—योग का जानकार
- योगविद्—पुं॰—योगः-विद्—-—शिव का विशेषण
- योगविद्—पुं॰—योगः-विद्—-—योगाभ्यासी
- योगविद्—पुं॰—योगः-विद्—-—योगसिद्धांतों का अनुयायी
- योगविद्—पुं॰—योगः-विद्—-—जादूगर
- योगविद्—पुं॰—योगः-विद्—-—दवाइयों के बनाने वाला
- योगविभागः—पुं॰—योगः-विभागः—-—बहुधा एक स्थान पर जुड़े हुओं को अलग-अलग करना, (विशेषत) सूत्र के शब्दों को अलग अलग करना, एक ही नियम के दो तीन टुकड़े करना
- योगशास्त्रम्—नपुं॰—योगः-शास्त्रम्—-—योगदर्शन
- योगसमाधिः—पुं॰—योगः-समाधिः—-—आत्मा का गूढ़ भावचिन्तन में लीन होना
- योगसारः—पुं॰—योगः-सारः—-—सब रोगों की एक दवा, रामबाण, सर्वव्याधिहर
- योगसेवा—स्त्री॰—योगः-सेवा—-—भावचिंतन का अभ्यास करना
- योगिन्—वि॰—-—युज् + घिनुण्, योग + इनि वा—से युक्त, या सहित
- योगिन्—वि॰—-—-—जादू की शक्ति से युक्त
- योगिन्—पुं॰—-—-—चिन्तनशील महात्मा, भक्त, संन्यासी
- योगिन्—पुं॰—-—-—जादूगर, ओझा, बाजीगर
- योगिन्—पुं॰—-—-—योगदर्शन के सिद्धांतों का अनुयायी
- योगिनी—स्त्री॰—-—-—जादूगरनी, अभिचारिका, ओझाइन, मायाविनी
- योगिनी—स्त्री॰—-—-—भक्तिनी
- योगिनी—स्त्री॰—-—-—शिव या दुर्गा की सेविकाओं की टोली
- योगेष्टम्—नपुं॰—-—-—सीसा, रांग
- योग्य—वि॰—-—योगमर्हति यत्, युज् + ण्युत् वा—लायक, उचित, उपयुक्त, योग्यता-प्राप्त
- योग्य—वि॰—-—-—योग्य, उपयुक्त, योग्यताप्राप्त, सक्षम, अर्ह
- योग्य—वि॰—-—-—उपयोगी, सेवा करने के योग्य
- योग्य—वि॰—-—-—योग या भावचिन्तन के योग्य
- योग्यः—पुं॰—-—-—युक्ति या तरकीबों का कलयिता
- योग्या—स्त्री॰—-—-—अभ्यास, व्यवहार
- योग्या—स्त्री॰—-—-—सैनिक कवायद, अभ्यास
- योग्यम्—नपुं॰—-—-—सवारी, गाड़ी, वाहन
- योग्यम्—नपुं॰—-—-—चन्दन की लकड़ी
- योग्यम्—नपुं॰—-—-—रोटी
- योग्यम्—नपुं॰—-—-—दूध
- योग्यता—स्त्री॰—-—योग्य + तल् + टाप्—सामर्थ्य, सक्षमता
- योग्यता—स्त्री॰—-—योग्य + तल् + टाप्—अनुरूपता, औचित्य
- योग्यता—स्त्री॰—-—योग्य + तल् + टाप्—समुपयुक्तता
- योग्यता—स्त्री॰—-—योग्य + तल् + टाप्—ज्ञान की अनुरूपता या संगति, शब्दों द्वारा संकेतित वस्तुओं के पारस्परिक संबंध की असंगति का अभाव
- योजनम्—नपुं॰—-—युज् भावादौ ल्युट्—जोड़ना, मिलाना, जोतना
- योजनम्—नपुं॰—-—युज् भावादौ ल्युट्—प्रयोग करना, स्थिर करना
- योजनम्—नपुं॰—-—युज् भावादौ ल्युट्—तैयारी, व्यवस्था
- योजनम्—नपुं॰—-—युज् भावादौ ल्युट्—व्याकरणसम्मत रचना, शब्दान्वय
- योजनम्—नपुं॰—-—युज् भावादौ ल्युट्—आठ यानौ मील अथवा चार कोस की दूरी की माप
- योजनम्—नपुं॰—-—युज् भावादौ ल्युट्—उत्तेजित करना, भड़काना
- योजनम्—नपुं॰—-—युज् भावादौ ल्युट्—मन का संकेन्द्रीकरण, भाव (= योग)
- योजना—स्त्री॰—-—युज् भावादौ ल्युट्+टाप्—संगम, मिलाप, संबंध
- योजना—स्त्री॰—-—युज् भावादौ ल्युट्+टाप्—व्याकरणसंमत शब्दान्वय
- योजनगन्धा—स्त्री॰—योजन-गन्धा—-—कस्तूरी
- योजनगन्धा—स्त्री॰—योजन-गन्धा—-—व्यास की माता सत्यवती
- योत्रम्—नपुं॰—-—-—डोरी, रस्सी, तस्मा, रज्जु
- योत्रम्—नपुं॰—-—-—हल के जुए की रस्सी
- योत्रम्—नपुं॰—-—-—वह रस्सी जिसके द्वारा किसी पशु को गाड़ी के जोड़े से बाँध दिया जाता है
- योधः—पुं॰—-—युध् + अच्—योद्धा, सैनिक, लड़ाकू
- योधः—पुं॰—-—युध् + अच्—संग्राम, लड़ाई
- योधागारः—पुं॰—योधः-अगारः—-—सैनिकों का निवास, सैन्यावास, बारक
- योधागारम्—नपुं॰—योधः-अगारम्—-—सैनिकों का निवास, सैन्यावास, बारक
- योधधर्मः—पुं॰—योधः-धर्मः—-—सैनिकों का कानून, सैन्यविधि या नियम
- योधसंरावः—पुं॰—योधः-संरावः—-—लड़ाकू सिपाहियों की पारस्परिक ललकार, आह्वान
- योधनम्—नपुं॰—-—युध् भावे ल्युट्—संग्राम, लड़ाई, मुठभेड़
- योधिन्—पुं॰—-—युध् + णिनि—योद्धा, सिपाही, लड़ाकू
- योनिः—पुं॰/स्त्री॰—-—यु + नि—गर्भाशय, बच्चेदानी, भग, स्त्रियों की जननेन्द्रिय
- योनिः—पुं॰/स्त्री॰—-—यु + नि—जन्मस्थान, मूलस्थान, उद्गम, मूल, जननात्मक कारण, निर्झर, फौवारा
- योनिः—पुं॰/स्त्री॰—-—यु + नि—खान
- योनिः—पुं॰/स्त्री॰—-—यु + नि—आवास, स्थान, भाजन या पात्र, आसन, आधार
- योनिः—पुं॰/स्त्री॰—-—यु + नि—घर, मांद
- योनिः—पुं॰/स्त्री॰—-—यु + नि—कुल, गोत्र, वंश, जन्म, अस्तित्व का रूप
- योनिः—पुं॰/स्त्री॰—-—यु + नि—जल
- योनिगुणः—पुं॰—योनिः-गुणः—-—जन्मस्थान या गर्भाशय का गुण
- योनिज—वि॰—योनिः-ज—-—गर्भाशय से जन्म लेने वाला, जरायुज
- योनिदेवता—स्त्री॰—योनिः-देवता—-—पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र
- योनिभ्रंशः—पुं॰—योनिः-भ्रंशः—-—बच्चेदानी का अपने स्थान से हट जाना
- योनिरञ्जनम्—नपुं॰—योनिः-रञ्जनम्—-—रजःस्राव
- योनिलिङ्गम्—नपुं॰—योनिः-लिङ्गम्—-—भगांकुर, चिंकु
- योनिः-सङ्करः—पुं॰—योनिः-सङ्करः—-—अवैध अन्तर्जातीय विवाहों से उत्पन्न वर्ण संकर जाति
- योनी—स्त्री॰—-—-—गर्भाशय, बच्चेदानी, भग, स्त्रियों की जननेन्द्रिय
- योनी—स्त्री॰—-—-—जन्मस्थान, मूलस्थान, उद्गम, मूल, जननात्मक कारण, निर्झर, फौवारा
- योनी—स्त्री॰—-—-—खान
- योनी—स्त्री॰—-—-—आवास, स्थान, भाजन या पात्र, आसन, आधार
- योनी—स्त्री॰—-—-—घर, मांद
- योनी—स्त्री॰—-—-—कुल, गोत्र, वंश, जन्म, अस्तित्व का रूप
- योनी—स्त्री॰—-—-—जल
- योपनम्—नपुं॰—-—युप + ल्युट्—मिटाना, बिलुप्त करना
- योपनम्—नपुं॰—-—युप + ल्युट्—कोई वस्तु जिससे मिटाया जाय
- योपनम्—नपुं॰—-—युप + ल्युट्—विकलता, घबराहट
- योपनम्—नपुं॰—-—युप + ल्युट्—उत्पीडन, अत्याचार, ध्वंस
- योषा—स्त्री॰—-—यौति मिश्रीभवति- यु + स + टाप्—स्त्री, लड़की, तरुणी, जवान स्त्री
- योषित्—स्त्री॰—-—योषति पुमांसम् - युष् + इति—स्त्री, लड़की, तरुणी, जवान स्त्री
- योषिता—स्त्री॰—-—युष् + इति, योषित् + टाप्—स्त्री, लड़की, तरुणी, जवान स्त्री
- यौक्तिक—वि॰—-—युक्तित आगतः - ठक्—उपयुक्त, योग्य, उचित
- यौक्तिक—वि॰—-—-—तर्क संगत, तर्क या हेतु पर आधारित
- यौक्तिक—वि॰—-—-—तर्क्य, अनुमेय
- यौक्तिक—वि॰—-—-—प्रचलित, प्रथानुकूल
- यौक्तिकः—वि॰—-—-—राजा का आमोदप्रिय साथी
- यौगः—पुं॰—-—योग + अण्—योगदर्शन के सिद्धांतों का अनुयायी
- यौगपद्यम्—नपुं॰—-—युगपद् + ष्यञ्—समकालिकता, समसामयिकता
- यौगिक—वि॰—-—योग् + ठक्—उपयोगी, सेवा के योग्य, उचित
- यौगिक—वि॰—-—-—प्रचलित
- यौगिक—वि॰—-—-—व्युत्पन्न, निर्वचनमूलक, शब्दव्युत्पत्ति के अनुरूप
- यौगिक—वि॰—-—-—उपचार परक
- यौगिक—वि॰—-—-—योग संबंधी, योग से व्युत्पन्न
- यौतक—वि॰—-—युते विवाहकाले अधिगतं वुण्—किसी एक व्यक्ति की सम्पत्ति जिस एकान्ततः अपना ही अधिकार हो, ऐसी सम्पत्ति जिस पर यथार्थतः उसका ही एकमात्र अधिकार हो
- यौतकम्—नपुं॰—-—-—निजी सम्पत्ति
- यौतकम्—नपुं॰—-—-—स्त्री का दहेज, स्त्रीधन
- यौतवम्—नपुं॰—-—यु + तु= योतु + अण्—एक प्रकार की माप
- यौध—वि॰—-—योध+अण्—लड़ाकू, लड़नेवाला
- यौन—वि॰—-—योनितः योनि संबन्धात् वा आगतम्-अण्—सोदर
- यौन—वि॰—-—-—वैवाहिक, विवाह संबंधी
- यौनम्—नपुं॰—-—-—विवाह, वैवाहिक सम्बन्ध
- यौवतम्—नपुं॰—-—युवतीनां समूहः-अण्—तरुणियों या जवान स्त्रियों का समूह
- यौवतम्—नपुं॰—-—-—तरुणी स्त्री का गुण (सौन्दर्य आदि) तरुणी स्त्री होने की अवस्था
- यौवनम्—नपुं॰—-—यूनो भावः अण्—जवानी (आलं॰ से भी) तारुण्य, तरुणाई, वयस्कता
- यौवनम्—नपुं॰—-—-—जवान व्यक्तियों का विशेष कर तरुणियों का समूह
- यौवनान्त—वि॰—यौवनम्-अन्त—-—जवानी में समाप्त होने वाला, लंबी जवानी होना
- यौवनारम्भः—पुं॰—यौवनम्-आरम्भः—-—जवानी का उभार, खिलती हुई जवानी
- यौवनदर्पः—पुं॰—यौवनम्-दर्पः—-—जवानी भरा अभिमान
- यौवनदर्पः—पुं॰—यौवनम्-दर्पः—-—जवानी में सहजसुलभ अविवेक
- यौवनलक्षणम्—नपुं॰—यौवनम्-लक्षणम्—-—जवानी का चिह्न
- यौवनलक्षणम्—नपुं॰—यौवनम्-लक्षणम्—-—आकर्षण, लावण्य
- यौवनलक्षणम्—नपुं॰—यौवनम्-लक्षणम्—-—स्त्रियों के कुच
- यौवनकम्—नपुं॰—-—यौवन् + कन्—जवानी
- यौवनाश्वः—पुं॰—-—युवनाश्व + अण्—युवनाश्व का पुत्र मान्धाता
- यौवराज्यम्—नपुं॰—-—युवराज + ष्यञ्—युवराज का पद या अधिकार
- यौवराज्येऽभिषिक्तः—पुं॰—-—-—युवराज पद का मुकुट धारण किये हुए
- यौष्माक—वि॰—-—युष्मद् + अण्, खञ् वा, युष्माक आदेशः—तुम्हारा, आपका
- यौष्माकीण—वि॰—-—युष्मद् + अण्, खञ् वा, युष्माक आदेशः—तुम्हारा, आपका
- रः—पुं॰—-—रा + ड—अग्नि
- रः—पुं॰—-—रा + ड—गर्मी
- रः—पुं॰—-—रा + ड—प्रेम, इच्छा
- रः—पुं॰—-—रा + ड—चाल, गति
- रंह्—भ्वा॰ पर॰ <रंहति>—-—-—हिलना-जुलना, वेग से चलना, जल्दी करना
- रंह्—भ्वा॰ पर॰ —-—-—जल्दी से चलाना, प्रेरणा देना
- रंह्—भ्वा॰ पर॰ —-—-—बहाना
- रंह्—भ्वा॰ पर॰ —-—-—जाना
- रंह्—भ्वा॰ पर॰ —-—-—बोलना
- रंहतिः—स्त्री॰—-—रंह् + श्तिप्—चाल, वेग
- रंहस्—पुं॰—-—रंह् + असुन्, हुक् च—चाल, वेग
- रंहस्—पुं॰—-—-—आतुरता, प्रचण्डता, उत्कटता, उग्रता
- रक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्ञ्ज् करणे क्तः—रंगीन, रंगा हुआ, हलके रंग वाला, रंग लिप्त
- रक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लाल, गहरा लाल रंग, लोहितवर्ण
- रक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मुग्ध, सानुराग, अनुरक्त, प्रेमासक्त
- रक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रिय, वल्लभ
- रक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सुहावना, आकर्षक, मधुर, सुखद
- रक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खेल का शौकीन, खिलाड़ी, क्रीडाप्रिय
- रक्तः—पुं॰—-—-—लाल रंग
- रक्तः—पुं॰—-—-—कुसुम्भ
- रक्ता—स्त्री॰—-—-—लाख
- रक्ता—स्त्री॰—-—-—गुंजा का पौधा
- रक्तम्—नपुं॰—-—-—रुधिर
- रक्तम्—नपुं॰—-—-—तांबा
- रक्तम्—नपुं॰—-—-—जाफरान
- रक्तम्—नपुं॰—-—-—सिन्दूर
- रक्ताक्ष—वि॰—रक्त-अक्ष—-—लाल आँखो वाला
- रक्ताक्ष—वि॰—रक्त-अक्ष—-—डरावना
- रक्ताक्षः—पुं॰—रक्त-अक्षः—-—भैंसा
- रक्ताक्षः—पुं॰—रक्त-अक्षः—-—कबूतर
- रक्ताङ्कः—पुं॰—रक्त-अङ्कः—-—मूँगा
- रक्ताङ्गः—पुं॰—रक्त-अङ्गः—-—खटमल
- रक्ताङ्गः—पुं॰—रक्त-अङ्गः—-—मङ्गलग्रह
- रक्ताङ्गः—पुं॰—रक्त-अङ्गः—-—सूर्यमण्डल या चन्द्रमण्डल
- रक्ताधिमन्थः—पुं॰—रक्त-अधिमन्थः—-—आंखों की सूजन
- रक्ताम्बरम्—नपुं॰—रक्त-अम्बरम्—-—लाल वस्त्र
- रक्ताम्बरः—पुं॰—रक्त-अम्बरः—-—गेरुआ वस्त्रधारी परिव्राजक
- रक्तार्बुदः—पुं॰—रक्त-अर्बुदः—-—रसौली
- रक्ताशोकः—पुं॰—रक्त-अशोकः—-—लाल फूलों वाला अशोक वृक्ष
- रक्ताधारः—पुं॰—रक्त-आधारः—-—चमड़ी, खाल
- रक्ताभ—वि॰—रक्त-आभ—-—लाल दिखाई देने वाला
- रक्ताशयः—पुं॰—रक्त-आशयः—-—एक प्रकार का आशय जिसमें रुधिर रहता है तथा जिससे निकलता रहता है
- रक्तोत्पलम्—नपुं॰—रक्त-उत्पलम्—-—लालकमल
- रक्तोपलम्—नपुं॰—रक्त-उपलम्—-—गेरु, लाल मिट्टी
- रक्तकण्ठ—वि॰—रक्त-कण्ठ—-—मधुरकण्ठवाला
- रक्तकण्ठिन्—वि॰—रक्त-कण्ठिन्—-—मधुरकण्ठवाला
- रक्तकण्ठ—पुं॰—रक्त-कण्ठ—-—कोयल
- रक्तकण्ठिन्—पुं॰—रक्त-कण्ठिन्—-—कोयल
- रक्तकन्दः—पुं॰—रक्त-कन्दः—-—मूँगा
- रक्तकन्दलः—पुं॰—रक्त-कन्दलः—-—मूँगा
- रक्तकमलम्—नपुं॰—रक्त-कमलम्—-—लाल कमल
- रक्तचन्दनम्—नपुं॰—रक्त-चन्दनम्—-—लाल चन्दन, जाफरान, केसर
- रक्तचूर्णम्—नपुं॰—रक्त-चूर्णम्—-—सिन्दूर
- रक्तच्छर्दिः—स्त्री॰—रक्त-छर्दिः—-—रुधिर की कै करना
- रक्तजिह्व—वि॰—रक्त-जिह्व—-—सिंह
- रक्ततुण्डः—पुं॰—रक्त-तुण्डः—-—तोता
- रक्तदृश्—पुं॰—रक्त-दृश्—-—कबूतर
- रक्तधातुः—पुं॰—रक्त-धातुः—-—गेरु या हरताल
- रक्तधातुः—पुं॰—रक्त-धातुः—-—तांबा
- रक्तपः—पुं॰—रक्त-पः—-—पिशाच, भूत-प्रेत
- रक्तपल्लवः—पुं॰—रक्त-पल्लवः—-—अशोकवृक्ष
- रक्तपा—स्त्री॰—रक्त-पा—-—जोंक
- रक्तपातः—पुं॰—रक्त-पातः—-—नरहत्या
- रक्तपाद—वि॰—रक्त-पाद—-—लाल पैरों वाला
- रक्तपादः—पुं॰—रक्त-पादः—-—लालपैरों का पक्षी, तोता
- रक्तपादः—पुं॰—रक्त-पादः—-—युद्धरथ
- रक्तपादः—पुं॰—रक्त-पादः—-—हाथी
- रक्तपायिन्—पुं॰—रक्त-पायिन्—-—खटमल
- रक्तपायिनी—स्त्री॰—रक्त-पायिनी—-—जोंक
- रक्तपिण्डम्—नपुं॰—रक्त-पिण्डम्—-—लाल रंग की फुन्सी
- रक्तपिण्डम्—नपुं॰—रक्त-पिण्डम्—-—नाक और मुंह से रक्तस्राव होना
- रक्तप्रमेहः—पुं॰—रक्त-प्रमेहः—-—मू्त्र के साथ रक्त का निकलना
- रक्तभवम्—नपुं॰—रक्त-भवम्—-—मांस
- रक्तमोक्षः—पुं॰—रक्त-मोक्षः—-—रुधिर निकलना
- रक्तमोक्षणम्—नपुं॰—रक्त-मोक्षणम्—-—रुधिर निकलना
- रक्तवटी—स्त्री॰—रक्त-वटी—-—चेचक
- रक्तवरटी—स्त्री॰—रक्त-वरटी—-—चेचक
- रक्तवर्गः—पुं॰—रक्त-वर्गः—-—लाख
- रक्तवर्गः—पुं॰—रक्त-वर्गः—-—अनार का पेड़
- रक्तवर्गः—पुं॰—रक्त-वर्गः—-—कुसुम्भ
- रक्तवर्ण—वि॰—रक्त-वर्ण—-—लाल रंग का
- रक्तवर्णः—पुं॰—रक्त-वर्णः—-—लाल रंग
- रक्तवर्णः—पुं॰—रक्त-वर्णः—-—बीरबहूटी नामक कीड़ा
- रक्तवर्णम्—नपुं॰—रक्त-वर्णम्—-—सोना
- रक्तवसन—वि॰—रक्त-वसन—-—लाल रंग की वेश भूषा धारण किये हुए सारस
- रक्तवासस्—वि॰—रक्त-वासस्—-—लाल रंग की वेश भूषा धारण किये हुए सारस
- रक्तशासनम्—नपुं॰—रक्त-शासनम्—-—सिन्दूर
- रक्तशीर्षकः—पुं॰—रक्त-शीर्षकः—-—एक प्रकार का सारस
- रक्तसन्ध्यकम्—नपुं॰—रक्त-सन्ध्यकम्—-—लाल कमल
- रक्तसारम्—नपुं॰—रक्त-सारम्—-—लाल चन्दन
- रक्तक—वि॰—-—रक्त + कन्—लाल
- रक्तक—वि॰—-—-—सानुराग, अनुरक्त, स्नेहशील
- रक्तक—वि॰—-—-—सुहावना, विनोदप्रिय
- रक्तक—वि॰—-—-—रक्तरंञ्जित
- रक्तकः—पुं॰—-—-—लाल रंग की वेशभूषा
- रक्तकः—पुं॰—-—-—सानुराग व्यक्ति, शृङ्गार-प्रिय पुरुष
- रक्तकः—पुं॰—-—-—खिलाड़ी
- रक्तिः—स्त्री॰—-—रञ्ज् + क्तिन्—सुहावनापन, प्रियता, आकर्षण, लावण्य
- रक्तिः—स्त्री॰—-—-—आसक्ति, स्नेह, निष्ठा, भक्ति
- रक्तिका—स्त्री॰—-—रक्ति + कन् + टाप्—गुंजा का पौधा या इसका बीज जो तोलने (एक रत्ती) के काम आता है
- रक्तिमन्—पुं॰—-—रक्त + इमनिच्—ललाई
- रक्ष्—भ्वा॰ पर॰ <रक्षति>,<रक्षित>—-—-—रक्षा करना, चौकीदारी करना, देखभाल करना, पहरा देना (पशु आदि) पालन, राज्य करना, (पृथ्वी पर) शासन करना
- रक्ष्—भ्वा॰ पर॰ <रक्षति>,<रक्षित>—-—-—सुरक्षित रखना, (भेद) न खोलना
- रक्ष्—भ्वा॰ पर॰ <रक्षति>,<रक्षित>—-—-—सन्धारण करना, बचाना, बचा कर रखना
- रक्ष्—भ्वा॰ पर॰ <रक्षति>,<रक्षित>—-—-—टालमटुल करना
- रक्षक—वि॰—-—रक्ष् + ण्वुल्—चौकसी रखने वाला, रक्षा करने वाला
- रक्षकः—पुं॰—-—-—रखवाला, अभिभावक, चोकीदार, पहरेदार
- रक्षणम्—नपुं॰—-—रक्ष् + ल्युट्—रक्षा करना, बचाव, संधारण, चौकसी, देखभाल आदि (रक्षणम् भी)
- रक्षणी—स्त्री॰—-—-—रास, लगाम
- रक्षस्—नपुं॰—-—रक्ष्यतेहविरस्यात्, रक्ष् + असुन्—भूत-प्रेत पिशाच, भूतना, बैताल
- रक्ष ईशः—पुं॰—रक्षस्-ईशः—-—रावण का विशेषण
- रक्षोनाथः—पुं॰—रक्षस्-नाथः—-—रावण का विशेषण
- रक्षोजननी—स्त्री॰—रक्षस्-जननी—-—रात्रि
- रक्षःसभम्—नपुं॰—रक्षस्-सभम्—-—राक्षसों की सभा
- रक्षा—स्त्री॰—-—रक्ष्- भावे अ + टाप्—वचाव, संधारण
- रक्षा—स्त्री॰—-—-—देखभाल, सुरक्षा
- रक्षा—स्त्री॰—-—-—चौकसी, पहरा
- रक्षा—स्त्री॰—-—-—ताबीज या गण्डा, परिरक्षी
- रक्षा—स्त्री॰—-—-—अभिभावक देवता
- रक्षा—स्त्री॰—-—-—भस्म, राख
- रक्षा—स्त्री॰—-—-—रक्षाबन्धन, पहुँची (विशेषकर श्रावण पूर्णिमा के दिन कलाई में बांधी जाने वाली रेशम या सूत की डोरी) ताबीज या गण्डे के रूप में
- रक्षाधिकृतः—पुं॰—रक्षा-अधिकृतः—-—जिसे प्ररक्षण या अधीक्षण कार्य सुपुर्द किया गया है, अधीक्षक या शासक अथवा राज्यपाल
- रक्षाधिकृतः—पुं॰—रक्षा-अधिकृतः—-—दण्डनायक, मजिस्ट्रेट
- रक्षाधिकृतः—पुं॰—रक्षा-अधिकृतः—-—मुख्य आरक्षाधिकारी
- रक्षापेक्षकः—पुं॰—रक्षा-अपेक्षकः—-—कुली, द्वारपाल
- रक्षापेक्षकः—पुं॰—रक्षा-अपेक्षकः—-—अन्तःपुर का पहरेदार
- रक्षापेक्षकः—पुं॰—रक्षा-अपेक्षकः—-—गांडू, लौंडा
- रक्षापेक्षकः—पुं॰—रक्षा-अपेक्षकः—-—नाटक का पात्र अभिनेता
- रक्षाकरण्डः—पुं॰—रक्षा-करण्डः—-—तबीज़ की डिबिया, गण्ड, जादू की डिबिया
- रक्षाकरण्डकम्—नपुं॰—रक्षा-करण्डकम्—-—तबीज़ की डिबिया, गण्ड, जादू की डिबिया
- रक्षागृहम्—नपुं॰—रक्षा-गृहम्—-—प्रसूति का गृह
- रक्षापात्रः—पुं॰—रक्षा-पात्रः—-—एक प्रकार का भोजपात्र
- रक्षापालः—पुं॰—रक्षा-पालः—-—पहरेदार, चौकीदार, प्रारक्षी
- रक्षापुरुषः—पुं॰—रक्षा-पुरुषः—-—पहरेदार, चौकीदार, प्रारक्षी
- रक्षाप्रदीपः—पुं॰—रक्षा-प्रदीपः—-—वह दीपक जो भूत प्रेत से बचाव के लिए जलता हुआ रखा जाता है
- रक्षाभूषणम्—नपुं॰—रक्षा-भूषणम्—-—एक प्रकार का आभूषण जो ताबीज की भांति भूत प्रेतादि की बाधा से बचाव के लिए पहना जाता है
- रक्षामणि—पुं॰—रक्षा-मणि—-—एक प्रकार का आभूषण जो ताबीज की भांति भूत प्रेतादि की बाधा से बचाव के लिए पहना जाता है
- रक्षारत्नम्—नपुं॰—रक्षा-रत्नम्—-—एक प्रकार का आभूषण जो ताबीज की भांति भूत प्रेतादि की बाधा से बचाव के लिए पहना जाता है
- रक्षितृ—वि॰—-—रक्ष् + तृच्—बचाने वाला, चौकसी करने वाला, राज्य करने वाला
- रक्षितृ—पुं॰—-—रक्ष् + तृच्—रक्षा करने वाला, संरक्षक, बचाने वाला
- रक्षितृ—पुं॰—-—रक्ष् + तृच्—चौकीदार, सन्तरी, प्रारक्षी
- रक्षिन्—वि॰—-—रक्ष् +णिनि —बचाने वाला, चौकसी करने वाला, राज्य करने वाला
- रक्षिन्—पुं॰—-—रक्ष् +णिनि —रक्षा करने वाला, संरक्षक, बचाने वाला
- रक्षिन्—पुं॰—-—रक्ष् +णिनि —चौकीदार, सन्तरी, प्रारक्षी
- रघुः—पुं॰—-—लंघति ज्ञानसीमानं प्राप्नति- लंघ् + कु, न लोपः लस्य रः—एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा, दिलीप का पुत्र और अज का पिता
- रघुनन्दनः—पुं॰—रघुः-नन्दनः—-—राम के विशेषण
- रघुनाथः—पुं॰—रघुः-नाथः—-—राम के विशेषण
- रघुपतिः—पुं॰—रघुः-पतिः—-—राम के विशेषण
- रघुश्रेष्ठः—पुं॰—रघुः-श्रेष्ठः—-—राम के विशेषण
- रघुसिंहः—पुं॰—रघुः-सिंहः—-—राम के विशेषण
- रङ्क—वि॰—-—रमते तुष्यति - रम् + क—अधम, दरिद्र भंगता, अभागा, दयनीय
- रङ्क—वि॰—-—-—मन्थर
- रङ्कः—पुं॰—-—-—भिखारी, मन्दभाग्य, भूखा, क्षुधार्त, भुखमरा
- रङ्कुः—पुं॰—-—रम् + कु—हरिण, कुरङ्ग्, कृष्णसार मृग
- रङगः—पुं॰—-—रन्ज् भावे घञ्—रङ्ग, वर्ण, रङ्गने का मसाला रङ्ग्लेप या रोगन
- रङगः—पुं॰—-—-—रङ्गमंच, नाट्यशाला, नाट्यगृह अखाड़ा, सार्वजनिक आमोदस्थली
- रङगः—पुं॰—-—-—सभा-भवन
- रङगः—पुं॰—-—-—श्रोतृवर्ग
- रङगः—पुं॰—-—-—रणक्षेत्र
- रङगः—पुं॰—-—-—नाचना, गाना, अभिनय
- रङगः—पुं॰—-—-—आमोद, मनोविनोद
- रङगः—पुं॰—-—-—सुहागा
- रङगः—पुं॰—-—-—स्वर का अनुनासिक उच्चारण
- रङगः—पुं॰—-—-—रांग, टिन
- रङगम्—नपुं॰—-—-—रांग, टिन
- रङ्गाङ्गणम्—नपुं॰—रङ्गः- अङ्गणम्—-—अखाड़ा, नाचघर
- रङ्गावतरणम्—नपुं॰—रङ्गः- अवतरणम्—-—रङ्गमंच पर प्रवेश
- रङ्गावतरणम्—नपुं॰—रङ्गः- अवतरणम्—-—अभिनेता या नाट्यपात्र का व्यवसाय
- रङ्गावतारकः—पुं॰—रङ्गः- अवतारकः—-—अभिनेता, नाटक का पात्र
- रङ्गावतारिन्—पुं॰—रङ्गः- अवतारिन्—-—अभिनेता, नाटक का पात्र
- रङ्गाजीवः—पुं॰—रङ्गः- आजीवः—-—अभिनेता
- रङ्गाजीवः—पुं॰—रङ्गः- आजीवः—-—चित्रकार
- रङ्गोपजीविन्—पुं॰—रङ्गः-उपजीविन्—-—चित्रकार, रंगवेपक
- रङ्गकारः—पुं॰—रङ्गः-कारः—-—चित्रकार, रंगवेपक
- रङ्गजीवकः—पुं॰—रङ्गः-जीवकः—-—चित्रकार, रंगवेपक
- रङ्गचुरः—पुं॰—रङ्गः-चुरः—-—अभिनेता, नाटक का पात्र
- रङ्गचुरः—पुं॰—रङ्गः-चुरः—-—वाग्मी
- रङ्गजम्—नपुं॰—रङ्गः-जम्—-—सिन्दूर
- रङ्गदेवता—स्त्री॰—रङ्गः-देवता—-—क्रीड़ा तथा सार्वजनिक आमोद-प्रमोद की अधिष्ठात्री देवता
- रङ्गद्वारम्—नपुं॰—रङ्गः-द्वारम्—-—रङ्गशाला का द्वार
- रङ्गद्वारम्—नपुं॰—रङ्गः-द्वारम्—-—किसी नाटक का मंगलाचरण या प्रस्तावना
- रङ्गभूतिः—स्त्री॰—रङ्गः-भूतिः—-—आश्विन मास की पूर्णिमा की रात
- रङ्गभूमिः—स्त्री॰—रङ्गः-भूमिः—-—रङ्गमंच, नाट्यशाला
- रङ्गभूमिः—स्त्री॰—रङ्गः-भूमिः—-—अखाड़ा, रणक्षेत्र
- रङ्गमण्डपः—पुं॰—रङ्गः-मण्डपः—-—रङ्गशाला
- रङ्गमातृ—स्त्री॰—रङ्गः-मातृ—-—लाख, लालरङ्ग, महावर, इसे पैदा करने वाला कीड़ा
- रङ्गमातृ—स्त्री॰—रङ्गः-मातृ—-—कुटनी, दूती
- रङ्गवस्तु—नपुं॰—रङ्गः-वस्तु—-—रङ्गलेप
- रङ्गवाटः—पुं॰—रङ्गः-वाटः—-—अखाड़ा, बाड़ा जहाँ नाटक नाच आदि होते हों
- रङ्गशाला—स्त्री॰—रङ्गः-शाला—-—नाचघर, नाट्यगृह, नाटकघर
- रन्ध्—भ्वा॰ उभ॰ <रन्धति>,<रन्धते>—-—-—जाना
- रन्ध्—भ्वा॰ उभ॰ <रन्धति>,<रन्धते>—-—-—शीघ्र जाना, जल्दी करना
- रच्—चुरा॰ उभ॰ <रचयति>, <रचयते>, रचित—-—-—व्यवस्थित करना, सज्जित करना, तैयार करना, बना लेना, रचना करना
- रच्—चुरा॰ उभ॰—-—-—बनाना, रूप देना, कार्यान्वित करना, रचना करना पैदा करना
- रच्—चुरा॰ उभ॰—-—-—लिखना, रचना करना, (किसी कृति आदि को) एकत्र करना
- रच्—चुरा॰ उभ॰—-—-—रखना, स्थिर करना, जमाना
- रच्—चुरा॰ उभ॰—-—-—अलंकृत करना, सजाना
- रच्—चुरा॰ उभ॰—-—-—(मन को) लगाना
- आरच्—चुरा॰ उभ॰—आ-रच्—-—व्यवस्थित करना
- विरच्—चुरा॰ उभ॰—वि-रच्—-—व्यवस्थित करना
- विरच्—चुरा॰ उभ॰—वि-रच्—-—रचना करना
- विरच्—चुरा॰ उभ॰—वि-रच्—-—कार्यान्वित करना, पैदा करना, बनाना
- रचनम्—नपुं॰—-—रच् + युच्—व्यवस्था, तैयारी, विन्यास --अभिषेक, संगीत आदि
- रचनम्—नपुं॰—-—-—बनाना, सर्जन करना, उत्पन्न करना
- रचनम्—नपुं॰—-—-—सम्पन्नता, पूर्ति, निष्पत्ति, कार्यान्वयन
- रचनम्—नपुं॰—-—-—साहित्यिक रचना या सृजन, निर्माण, संरचना - संक्षिप्ता वस्तु रचना
- रचनम्—नपुं॰—-—-—बाल संवारना
- रचनम्—नपुं॰—-—-—सैन्यव्यूहन
- रचनम्—नपुं॰—-—-—मन की सृष्टि, कृत्रिम उद्भावना
- रचना—स्त्री॰—-—रच् + युच्, स्त्रियां टाप्—व्यवस्था, तैयारी, विन्यास --अभिषेक, संगीत आदि
- रचना—स्त्री॰—-—-—बनाना, सर्जन करना, उत्पन्न करना
- रचना—स्त्री॰—-—-—सम्पन्नता, पूर्ति, निष्पत्ति, कार्यान्वयन
- रचना—स्त्री॰—-—-—साहित्यिक रचना या सृजन, निर्माण, संरचना - संक्षिप्ता वस्तु रचना
- रचना—स्त्री॰—-—-—बाल संवारना
- रचना—स्त्री॰—-—-—सैन्यव्यूहन
- रचना—स्त्री॰—-—-—मन की सृष्टि, कृत्रिम उद्भावना
- रजः—पुं॰—-—-—धूल, रेणु,गर्द
- रजः—पुं॰—-—-—फूल की रेणु या पराग
- रजः—पुं॰—-—-—सूर्य किरणों में फैले हुए कण, कोई भी छोटा सा कण
- रजः—पुं॰—-—-—ज़ुती हुई भूमि, कृषियोग्य खेत
- रजः—पुं॰—-—-—अन्धकार, अन्धेरा
- रजः—पुं॰—-—-—मलिनता, आवेश, संवेग, नैतिक या मानसिक अन्धकार
- रजः—पुं॰—-—-—सब प्रकार के भौतिक द्रव्यों के घटक गुणों अथवा तीन गुणों में से दूसरा
- रजः—पुं॰—-—-—रजःस्राव, ऋतुस्राव
- रजकः—पुं॰—-—रञ्ज् + ण्वुल्, नलोपः—धोबी
- रजका—स्त्री॰—-—रजक + टाप्—धोबन
- रजकी —स्त्री॰—-—रजक +ङीष् —धोबन
- रजत—वि॰—-—रन्ज् + अतच्, नलोपः—चांदी के रंग का, चाँदी का बना हुआ
- रजत—वि॰—-—-—उज्ज्वल
- रजतम्—नपुं॰—-—-—चाँदी
- रजतम्—नपुं॰—-—-—स्वर्ण
- रजतम्—नपुं॰—-—-—मोतियों का आभूषण या माला
- रजतम्—नपुं॰—-—-—रुधिर
- रजतम्—नपुं॰—-—-—हाथी दाँत
- रजतम्—नपुं॰—-—-—नक्षत्रपुंज, तारासमूह
- रजनिः—स्त्री॰—-—रज्यतेऽत्र, रञ्ज् + कनि—रात
- रजनी—स्त्री॰—-—रज्यतेऽत्र, रञ्ज् + कनि वा ङीप्—रात
- रजनिकरः—नपुं॰—रजनिः-करः—-—चन्द्रमा
- रजनिचरः—नपुं॰—रजनिः-चरः—-—रात को घूमने वाला, पिशाच, बेताल
- रजनिजलम्—नपुं॰—रजनिः-जलम्—-—ओस, धुन्ध
- रजनिपतिः—पुं॰—रजनिः-पतिः—-—चन्द्रमा
- रजनिरगणः—पुं॰—रजनिः-रगणः—-—चन्द्रमा
- रजनिमुखम्—नपुं॰—रजनिः-मुखम्—-—सन्ध्या, सायंकाल
- रजनिमन्य—वि॰—-—-—जो रात जैसा बीते या रात जैसा दिखाई दे
- रजस्—पुं॰—-—रञ्ज् + असुन्, नलोपः—धूल, रेणु,गर्द
- रजस्—पुं॰—-—-—फूल की रेणु या पराग
- रजस्—पुं॰—-—-—सूर्य किरणों में फैले हुए कण, कोई भी छोटा सा कण
- रजस्—पुं॰—-—-—ज़ुती हुई भूमि, कृषियोग्य खेत
- रजस्—पुं॰—-—-—अन्धकार, अन्धेरा
- रजस्—पुं॰—-—-—मलिनता, आवेश, संवेग, नैतिक या मानसिक अन्धकार
- रजस्—पुं॰—-—-—सब प्रकार के भौतिक द्रव्यों के घटक गुणों अथवा तीन गुणों में से दूसरा
- रजस्—पुं॰—-—-—रजःस्राव, ऋतुस्राव
- रजोगुणः—पुं॰—रजस्-गुणः—-—सब प्रकार के भौतिक द्रव्यों के घटक गुणों अथवा तीन गुणों में से दूसरा
- रजस्तमस्क—वि॰—रजस्-तमस्क—-—रज और तम दोनों गुणों से प्रभावित
- रजस्तोकः—पुं॰—रजस्-तोकः—-—लोलुपता, लालच
- रजस्तोकः—पुं॰—रजस्-तोकः—-—`ज़ोश का पुतला' यह प्रकट करने के लिए कि यह व्यक्ति तुच्छ है, नगण्य है, इस शब्द का प्रयोग किया जाता है
- रजस्कम्—नपुं॰—रजस्-कम्—-—लोलुपता, लालच
- रजस्कम्—नपुं॰—रजस्-कम्—-—`ज़ोश का पुतला' यह प्रकट करने के लिए कि यह व्यक्ति तुच्छ है, नगण्य है, इस शब्द का प्रयोग किया जाता है
- रजस्पुत्रः—पुं॰—रजस्-पुत्रः—-—लोलुपता, लालच
- रजस्पुत्रः—पुं॰—रजस्-पुत्रः—-—`ज़ोश का पुतला' यह प्रकट करने के लिए कि यह व्यक्ति तुच्छ है, नगण्य है, इस शब्द का प्रयोग किया जाता है
- रजोदर्शनम्—नपुं॰—रजस्-दर्शनम्—-—प्रथम बार रजोधर्म का होना, सबसे पहला रजःस्राव
- रजोबन्धः—पुं॰—रजस्-बन्धः—-—रजोधर्म का बन्द हो जाना
- रजोरसः—पुं॰—रजस्-रसः—-—अन्धेरा
- रजःशुद्धिः—पुं॰—रजस्-शुद्धिः—-—रजोधर्म की विशुद्ध दशा
- रजोहरः—पुं॰—रजस्-हरः—-—मैल हटाने वाला' धोबी
- रजसानुः—पुं॰—-—रज्यतेऽस्मिन् - रञ्ज् + असानु—बादल
- रजसानुः—पुं॰—-—-—आत्मा, दिल
- रजस्वल—वि॰—-—रजस् + वलच्—मैला, धूल से भरा हुआ
- रजस्वल—वि॰—-—-—आवेश या संवेग से भरा हुआ
- रजस्वलः—पुं॰—-—-—भैंसा
- रजस्वला—स्त्री॰—-—-—रजस्वला स्त्री
- रजस्वला—स्त्री॰—-—-—विवाह के योग्य कन्या
- रज्जुः—स्त्री॰—-—सृज् + उ, असुमागमः धातोस्सलोपः, आगमसकारस्य जश्त्वं दकारः, तस्यापि चुत्वं जकारः—रस्सा, डोरी, सुतली
- रज्जुः—पुं॰—-—-—कशेरुका स्तम्भ से निकलने वाली स्नायु
- रज्जुः—पुं॰—-—-—स्त्रियों के सिर की चोटी
- रज्जुदालकम्—नपुं॰—रज्जुः-दालकम्—-—एक प्रकार का जंगली मुर्ग
- रज्जुपेडा—स्त्री॰—रज्जुः-पेडा—-—सुतली से बनी हुई टोकरी
- रञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰ <रजति>, <रजते>, <रज्यति>, <रज्यते>, रक्त, कर्मवा॰ <रज्यते>, इच्छा॰ <रिरंक्षन्ति>—-—-—रंगे जाने के योग्य, लाल रंग से रंगना, लाल होना, चमकना
- रञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰ <रजति>, <रजते>, <रज्यति>, <रज्यते>, रक्त, कर्मवा॰ <रज्यते>, इच्छा॰ <रिरंक्षन्ति>—-—-—रंगना, हलका रंग देना रंगीन बनाना, रंगलेप करना
- रञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰ <रजति>, <रजते>, <रज्यति>, <रज्यते>, रक्त, कर्मवा॰ <रज्यते>, इच्छा॰ <रिरंक्षन्ति>—-—-—अनुरक्त होना, भक्त बनना
- रञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰ <रजति>, <रजते>, <रज्यति>, <रज्यते>, रक्त, कर्मवा॰ <रज्यते>, इच्छा॰ <रिरंक्षन्ति>—-—-—मुग्ध होना, प्रेमासक्त होना, स्नेह की अनुभूति होना
- रञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰ <रजति>, <रजते>, <रज्यति>, <रज्यते>, रक्त, कर्मवा॰ <रज्यते>, इच्छा॰ <रिरंक्षन्ति>—-—-—प्रसन्न होना, सन्तुष्ट होना, खुश होना
- रञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰प्रेर॰—-—-—रंगना, हलका रंगना, रंगीन बनाना, लाल करना, रंगलेप करना
- रञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰प्रेर॰—-—-—प्रसन्न करना, तृप्त करना, मनाना, सन्तुष्ट करना
- रञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰प्रेर॰—-—-—मेल करना, जीत लेना, सन्तुष्ट रहना
- रञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰प्रेर॰—-—-—हरिण का शिकार करना
- अनुरञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰—अनु-रञ्ज्—-—लाल होना
- अनुरञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰—अनु-रञ्ज्—-—स्नेहशील होना, भक्त होना, अनुरक्त बनना, प्रेम करना, पसन्द करना
- अनुरञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰—अनु-रञ्ज्—-—खुश होना
- अपरञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰—अप-रञ्ज्—-—असन्तुष्ट होना, सन्तोषरहित होना
- अपरञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰—अप-रञ्ज्—-—पीला होना, विवर्ण होना
- उपरञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰—उप-रञ्ज्—-—ग्रहणग्रस्त होना
- उपरञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰—उप-रञ्ज्—-—हलके रंग का होना, रंगीन होना
- उपरञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰—उप-रञ्ज्—-—कष्टग्रस्त या विपद्ग्रस्त होना
- विरञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰—वि-रञ्ज्—-—रंगरहित होना, मलिन होना, घटिया या भद्दा होना
- विरञ्ज्—भ्वा॰ दिवा॰ उभ॰—वि-रञ्ज्—-—असन्तुष्ट होना, निर्लिप्त होना, नापसंद करना, घृणा करना
- रञ्जकः—पुं॰—-—रंजयति - रंज् + णिच् + ण्वुल्—चित्रकार, रंगलेपक, रंगरेज
- रञ्जकः—पुं॰—-—-—उत्तेजक, उद्दीपक
- रञ्जकम्—नपुं॰—-—-—लाल चन्दन
- रञ्जकम्—नपुं॰—-—-—सिन्दूर
- रञ्जनम्—नपुं॰—-—रज्यतेऽनेन- रञ्ज् करणे ल्युट्—रंग करना, हलका रंगना, रंगलेप करना
- रञ्जनम्—नपुं॰—-—-—वर्ण, रंग
- रञ्जनम्—नपुं॰—-—-—प्रसन्न करना, खुश करना, सन्तुष्ट रहना, तृप्त होना, प्रसन्नता देना
- रञ्जनम्—नपुं॰—-—-—लाल चन्दन की लकड़ी
- रञ्जनी—स्त्री॰—-—रंजन + ङीप्—नील का पौधा
- रट्—भ्वा॰ पर॰ <रटति>, <रटित>—-—-—चिल्लाना, चीत्कार करना, चीखना, क्रंदन करना, दहाड़ना, चिघाड़ना
- रट्—भ्वा॰ पर॰ <रटति>, <रटित>—-—-—जोर से बोलना, उद्धोषणा करना
- रट्—भ्वा॰ पर॰ <रटति>, <रटित>—-—-—प्रसन्नता से चिल्लाना, प्रशंसा करना
- आरट्—भ्वा॰ पर॰—आ-रट्—-—पुकारना, चिल्लाना
- रटनम्—नपुं॰—-—रट् + ल्युट्—क्रन्दन की क्रिया, चिलाना, जोर से आवाज देना
- रटनम्—नपुं॰—-—-—प्रशंसा का चीत्कार, पसंदगी
- रण्—भ्वा॰ पर॰ <रणति>, <रणित>—-—-—ध्वनि करना, टनटनाना, झुनझुनाना, झनझनाना (पायजेब आदि का)
- रणः—पुं॰—-—रण् + अप्—संग्राम, समर, युद्ध, लड़ाई
- रणः—पुं॰—-—-—युद्धक्षेत्र
- रणम्—नपुं॰—-—रण् + अप्—संग्राम, समर, युद्ध, लड़ाई
- रणम्—नपुं॰—-—-—युद्धक्षेत्र
- रणः—पुं॰—-—-—शब्द, शोर
- रणः—पुं॰—-—-—सारंगी बजाने का गज
- रणः—पुं॰—-—-—गति, चाल
- रणाग्रम्—नपुं॰—रणः-अग्रम्—-—युद्ध का अगला भाग
- रणाङ्गम्—नपुं॰—रणः-अङ्गम्—-—युद्धशस्त्र, शस्त्र तलवार
- रणाङ्गणम्—नपुं॰—रणः-अङ्गणम्—-—युद्धक्षेत्र
- रणाङ्गनम्—नपुं॰—रणः-अङ्गनम्—-—युद्धक्षेत्र
- रणापेत—वि॰—रणः-अपेत—-—युद्ध से भागने वाला, भगोड़ा
- रणातोद्यम्—नपुं॰—रणः-आतोद्यम्—-—सैनिक ढोल, मारु बाजा
- रणतूर्यम्—नपुं॰—रणः-तूर्यम्—-—सैनिक ढोल, मारु बाजा
- रणदुन्दुभिः—पुं॰—रणः-दुन्दुभिः—-—सैनिक ढोल, मारु बाजा
- रणोत्साहः—पुं॰—रणः-उत्साहः—-—युद्ध में प्रदर्शित विक्रम
- रणक्षितिः—स्त्री॰—रणः-क्षितिः—-—युद्धक्षेत्र
- रणक्षेत्रम् —नपुं॰—रणः-क्षेत्रम् —-—युद्धक्षेत्र
- रणभूः—स्त्री॰—रणः-भूः—-—युद्धक्षेत्र
- रणभूमिः—स्त्री॰—रणः-भूमिः—-—युद्धक्षेत्र
- रणस्थानम्—नपुं॰—रणः-स्थानम्—-—युद्धक्षेत्र
- रणधुरा—स्त्री॰—रणः-धुरा—-—युद्ध में आगे रहना, युद्ध का वार
- रणप्रिय—वि॰—रणः-प्रिय—-—युद्ध का शौकिन, लड़ाकू
- रणमत्तः—पुं॰—रणः-मत्तः—-—हाथी
- रणमुखम्—नपुं॰—रणः-मुखम्—-—युद्ध का अगला भाग, लड़ाई का मुख्य वार
- रणमुखम्—नपुं॰—रणः-मुखम्—-—सेना का अग्रभाग
- रणमुर्धन्—पुं॰—रणः-मुर्धन्—-—युद्ध का अगला भाग, लड़ाई का मुख्य वार
- रणमुर्धन्—पुं॰—रणः-मुर्धन्—-—सेना का अग्रभाग
- रणशिरस्—नपुं॰—रणः-शिरस्—-—युद्ध का अगला भाग, लड़ाई का मुख्य वार
- रणशिरस्—नपुं॰—रणः-शिरस्—-—सेना का अग्रभाग
- रणरङ्कः—पुं॰—रणः-रङ्कः—-—हाथी के दाँतों के मध्य का फासला
- रणरङ्गः—पुं॰—रणः-रङ्गः—-—युद्धक्षेत्र
- रणरणः—पुं॰—रणः-रणः—-—डांस, मच्छर
- रणरणम्—नपुं॰—रणः-रणम्—-—प्रबल इच्छा, उत्कण्ठा
- रणरणम्—नपुं॰—रणः-रणम्—-—खोई हुई वस्तु के लिए खेद
- रणरणकः—पुं॰—रणः-रणकः—-—चिंता, बेचैनी, खेद, (किसी प्रिय वस्तु के लिए) कष्ट या संताप (प्रेम से उत्पन्न)
- रणरणकः—पुं॰—रणः-रणकः—-—प्रेम, इच्छा
- रणरणकम्—नपुं॰—रणः-रणकम्—-—चिंता, बेचैनी, खेद, (किसी प्रिय वस्तु के लिए) कष्ट या संताप (प्रेम से उत्पन्न)
- रणरणकम्—नपुं॰—रणः-रणकम्—-—प्रेम, इच्छा
- रणकः—पुं॰—रणः-कः—-—कामदेव
- रणवाद्यम्—नपुं॰—रणः-वाद्यम्—-—मारू बाजा, सैनिक संगीत बाजा
- रणशिक्षा—स्त्री॰—रणः-शिक्षा—-—सैन्यविज्ञान, युद्धकला, या युद्ध विज्ञान
- रणसङ्कुलम्—नपुं॰—रणः-सङ्कुलम्—-—घोर-युद्ध, तुमुल-युद्ध
- रणसज्जा—स्त्री॰—रणः-सज्जा—-—युद्ध की सामग्री, सैनिक साज-सामान
- रणसहायः—पुं॰—रणः-सहायः—-—मित्र, सहायक
- रणस्तम्भः—पुं॰—रणः-स्तम्भः—-—विजयस्मारक, विजयचिह्न
- रणत्कारः—पुं॰—-—रण् + शतृ, ष॰त॰—खड़खड़ाहट, झनझनाहट या छनछन की आवाज
- रणत्कारः—पुं॰—-—-—(मक्खियों का) भनभनाना
- रणितम्—नपुं॰—-—रण् + क्त—खड़खड़ाहट, टनटन, झनझनाहट या छनछन की आवाज
- रण्डः—पुं॰—-—रम् + ड—वह पुरुष जो पुत्रहीन मरे
- रण्डः—पुं॰—-—-—बंजर वृक्ष
- रण्डा—स्त्री॰—-—-—फूहड़स्त्री, पुंश्चली, स्त्रियों को संबोधित करने में निदापरक शब्द
- रण्डा—स्त्री॰—-—-—विधवा स्त्री
- रत—भू॰ क॰ कृ॰—-—रम् +क्त—प्रसन्न, खुश, तृप्त
- रत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रसन्न या खुश, स्नेहशील, मुग्ध, अनुरक्त
- रत—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—तुला हुआ, व्यस्त, संलग्न
- रतम्—नपुं॰—-—-—प्रसन्नता
- रतम्—नपुं॰—-—-—मैथुन, संभोग
- रतम्—नपुं॰—-—-—उपस्थ इन्द्रिय
- रतायनी—स्त्री॰—रत-अयनी—-—वेश्या, रंडी
- रतार्थिन्—वि॰—रत-अर्थिन्—-—कामुक, कामासक्त
- रतोद्वहः—पुं॰—रत-उद्वहः—-—कोयल
- रतर्द्धिकम्—नपुं॰—रत-ऋद्धिकम्—-—दिन
- रतर्द्धिकम्—नपुं॰—रत-ऋद्धिकम्—-—आनन्द के लिए स्नान
- रतकीलः—पुं॰—रत-कीलः—-—कुत्ता
- रतकूजितम्—नपुं॰—रत-कूजितम्—-—कामासक्त व्यक्ति की मैथुन के समय की सीत्कार
- रतज्वरः—पुं॰—रत-ज्वरः—-—कौवा
- रततालिन्—पुं॰—रत-तालिन्—-—स्वेच्छाचारी, कामासक्त
- रतताली—स्त्री॰—रत-ताली—-—कुटनी, दूती
- रतनारीचः—पुं॰—रत-नारीचः—-—विषयी
- रतनारीचः—पुं॰—रत-नारीचः—-—कामदेव, मदन
- रतनारीचः—पुं॰—रत-नारीचः—-—कुत्ता
- रतनारीचः—पुं॰—रत-नारीचः—-—मैथुन के समय की कामार्त व्यक्ति की सी-सी ध्वनि
- रतबन्धः—पुं॰—रत-बन्धः—-—मैथुन, संभोग
- रतहिण्डकः—पुं॰—रत-हिण्डकः—-—स्त्रियों को फुसलाकर उनसे बलात्कार करने वाला
- रतहिण्डकः—पुं॰—रत-हिण्डकः—-—विलासी
- रतिः—स्त्री॰—-—रम् + क्तिन्—आनन्द, खुशी, संन्तोष, हर्ष
- रतिः—स्त्री॰—-—-—स्नेहशीलता, भक्ति, अनुराग, आनन्दानुभूति
- रतिः—स्त्री॰—-—-—प्रेम, स्नेह,
- रतिः—स्त्री॰—-—-—सम्भोग का आनन्द
- रतिः—स्त्री॰—-—-—मैथुन, संभोग, सहवास
- रतिः—स्त्री॰—-—-—रतिदेवी, कामदेव की पत्नी
- रतिः—स्त्री॰—-—-—योनि, भग
- रत्यङ्गम्—नपुं॰—रतिः-अङ्गम्—-—योनि, भग
- रतिकुहरम्—नपुं॰—रतिः-कुहरम्—-—योनि, भग
- रतिगृहम्—नपुं॰—रतिः-गृहम्—-—क्रीड़ा गृह
- रतिगृहम्—नपुं॰—रतिः-गृहम्—-—चकला, रंडीखाना
- रतिगृहम्—नपुं॰—रतिः-गृहम्—-—योनि, भग
- रतिभवनम्—नपुं॰—रतिः-भवनम्—-—क्रीड़ा गृह
- रतिभवनम्—नपुं॰—रतिः-भवनम्—-—चकला, रंडीखाना
- रतिभवनम्—नपुं॰—रतिः-भवनम्—-—योनि, भग
- रतिमन्दिरम्—नपुं॰—रतिः-मन्दिरम्—-—क्रीड़ा गृह
- रतिमन्दिरम्—नपुं॰—रतिः-मन्दिरम्—-—चकला, रंडीखाना
- रतिमन्दिरम्—नपुं॰—रतिः-मन्दिरम्—-—योनि, भग
- रतितस्करः—पुं॰—रतिः-तस्करः—-—फुसलाने वाला, व्यभिचारी
- रतिदूतिः—स्त्री॰—रतिः-दूतिः—-—प्रेम का संदेश ले जाने वाली
- रतिदूती—स्त्री॰—रतिः-दूती—-—प्रेम का संदेश ले जाने वाली
- रतिपतिः—पुं॰—रतिः-पतिः—-—कामदेव
- रतिप्रिय—पुं॰—रतिः-प्रिय—-—कामदेव
- रतिरमणः—पुं॰—रतिः-रमणः—-—कामदेव
- रतिरसः—पुं॰—रतिः-रसः—-—संभोग का आनन्द
- रतिलम्पट—वि॰—रतिः-लम्पट—-—कामी, कामासक्त, कामुक,
- रतिसर्वस्वम्—नपुं॰—रतिः-सर्वस्वम्—-—रतिक्रीडा का अत्युत्तम् रस, अत्यानन्द
- रत्नम्—नपुं॰—-—रमतेऽत्र, रम् + न, तान्तादेशः—मणि, आभूषण, हीरा
- रत्नम्—नपुं॰—-—-—कोई भी मूल्यवान् पदार्थ, क़ीमती ख़ज़ाना
- रत्नम्—नपुं॰—-—-—अपने प्रकार की अत्युत्तम वस्तु (समास के अन्त में)
- रत्नम्—नपुं॰—-—-—चुम्बक
- रत्नानुविद्ध—वि॰—रत्नम्-अनुविद्ध—-—रत्नों से जड़ा हुआ
- रत्नाकारः—पुं॰—रत्नम्-आकारः—-—रत्नों की खान
- रत्नाकारः—पुं॰—रत्नम्-आकारः—-—समुद्र
- रत्नालोकः—पुं॰—रत्नम्-आलोकः—-—मणि की कान्ति
- रत्नावली—स्त्री॰—रत्नम्-आवली—-—रत्नों का हार
- रत्नमाला—स्त्री॰—रत्नम्-माला—-—रत्नों का हार
- रत्नकन्दलः—पुं॰—रत्नम्-कन्दलः—-—मूंगा
- रत्नखचित—वि॰—रत्नम्-खचित—-—रत्न या मणियों से जड़ा हुआ
- रत्नगर्भः—पुं॰—रत्नम्-गर्भः—-—समुद्र
- रत्नगर्भा—स्त्री॰—रत्नम्-गर्भा—-—पृथ्वी
- रत्नदीपः—पुं॰—रत्नम्-दीपः—-—रत्नों का बना दीपक
- रत्नदीपः—पुं॰—रत्नम्-दीपः—-—रत्न जो दीपक का काम
- रत्नप्रदीपः—पुं॰—रत्नम्-प्रदीपः—-—रत्नों का बना दीपक
- रत्नप्रदीपः—पुं॰—रत्नम्-प्रदीपः—-—रत्न जो दीपक का काम
- रत्नमुखम्—नपुं॰—रत्नम्-मुखम्—-—हीरा
- रत्नराज्—पुं॰—रत्नम्-राज्—-—लाल
- रत्नराशिः—पुं॰—रत्नम्-राशिः—-—रत्नों का ढेर
- रत्नराशिः—पुं॰—रत्नम्-राशिः—-—समुद्र
- रत्नसानुः—पुं॰—रत्नम्-सानुः—-—मेरु पर्वत
- रत्नसू—वि॰—रत्नम्-सू—-—रत्नों को उत्पन्न करने वाला
- रत्नसू—स्त्री॰—रत्नम्-सू—-—पृथ्वी
- रत्नसूतिः—स्त्री॰—रत्नम्-सूतिः—-—पृथ्वी
- रत्निः—पुं॰—-—ऋ + कत्निच्, यण्—कोहनी
- रत्निः—पुं॰—-—-—कोहनी से मुट्ठी तक की दूरी, एक हाथ का परिमाण
- रत्निः—पुं॰—-—-—बन्द मुट्ठी
- रथः—पुं॰—-—रम्यतेऽअनेन अत्र वा - रम् + कथन्—गाड़ी, जलूसी गाड़ी, यान, वाहन, विशेषकर युद्धरथ
- रथः—पुं॰—-—-—नायक(रथिन्)
- रथः—पुं॰—-—-—पैर
- रथः—पुं॰—-—-—अवयव, भाग, अंग
- रथः—पुं॰—-—-—शरीर
- रथः—पुं॰—-—-—नरकुल
- रथाक्षः—पुं॰—रथः-अक्षः—-—गाड़ी का धुरा
- रथाङ्गम्—नपुं॰—रथः-अङ्गम्—-—गाड़ी का कोई भाग
- रथाङ्गम्—नपुं॰—रथः-अङ्गम्—-—विशेषकर गाड़ी के पहिये
- रथाङ्गम्—नपुं॰—रथः-अङ्गम्—-—चक्र, विशेषकर विष्णु का
- रथाङ्गम्—नपुं॰—रथः-अङ्गम्—-—कुम्हार का चाक
- रथाह्वयः—वि॰—रथः-आह्वयः—-—चकवा, चक्रवाक
- रथनामकः—वि॰—रथः-नामकः—-—चकवा, चक्रवाक
- रथनामन्—वि॰—रथः-नामन्—-—चकवा, चक्रवाक
- रथपाणिः—पुं॰—रथः-पाणिः—-—विष्णु का नाम
- रथेशः—पुं॰—रथः-ईशः—-—रथ पर बैठ कर युद्ध करने वाला योद्धा
- रथेषा—स्त्री॰—रथः-ईषा—-—गाड़ी का जोड़ा
- रथशा—स्त्री॰—रथः-शा—-—गाड़ी का जोड़ा
- रथोद्वहः—पुं॰—रथः-उद्वहः—-—रथ का वह स्थान जहाँ सारथि बैठता है, चालक का आसन
- रथोपस्थः—पुं॰—रथः-उपस्थः—-—रथ का वह स्थान जहाँ सारथि बैठता है, चालक का आसन
- रथकट्या—स्त्री॰—रथः-कट्या—-—रथों का समूह
- रथकड्या—स्त्री॰—रथः-कड्या—-—रथों का समूह
- रथकल्पकः—पुं॰—रथः-कल्पकः—-—राजा के रथों की व्यवस्था का अधिकारी
- रथकारः—पुं॰—रथः-कारः—-—गाड़ी बनाने वाला, बढ़ाई, पहिये घड़ने वाला
- रथकुटुम्बिकः—पुं॰—रथः-कुटुम्बिकः—-—रथवान्, सारथि
- रथकुटुम्बिन्—पुं॰—रथः-कुटुम्बिन्—-—रथवान्, सारथि
- रथकूबरः—पुं॰—रथः-कूबरः—-—गाड़ी की शहतीरी
- रथकूबरम्—नपुं॰—रथः-कूबरम्—-—गाड़ी की शहतीरी
- रथकेतुः—पुं॰—रथः-केतुः—-—रथ का झण्डा
- रथक्षोभः—पुं॰—रथः-क्षोभः—-—रथ का हचकोला
- रथगर्भकः—पुं॰—रथः-गर्भकः—-—डोली, पालकी
- रथगुप्तिः—पुं॰—रथः-गुप्तिः—-—रथ के चारों ओर लगा लोहे या लकड़ी का ढांचा जिससे रथ की किसी से टकराने पर रक्षा हो सके
- रथचरणः—पुं॰—रथः-चरणः—-—रथ का पहिया
- रथचरणः—पुं॰—रथः-चरणः—-—चकवा
- रथपादः—पुं॰—रथः-पादः—-—रथ का पहिया
- रथपादः—पुं॰—रथः-पादः—-—चकवा
- रथचर्या—स्त्री॰—रथः-चर्या—-—रथ का इधर उधर घुमना, रथ का उपयोग, रथ पर सवारी करना
- रथधुर्—स्त्री॰—रथः-धुर्—-—गाड़ी के जोड़े की शहतीरी
- रथनाभिः—स्त्री॰—रथः-नाभिः—-—रथ के पहिये की नाह या नाभि
- रथनीडः—पुं॰—रथः-नीडः—-—रथ के अन्दर का भाग या आसन
- रथबन्धः—पुं॰—रथः-बन्धः—-—रथ का साज-सामान, रस्सी आदि
- रथमहोत्सवः—पुं॰—रथः-महोत्सवः—-—रथ में देव प्रतिमा स्थापित कर जलूस निकालना
- रथयात्रा—स्त्री॰—रथः-यात्रा—-—रथ में देव प्रतिमा स्थापित कर जलूस निकालना
- रथमुखम्—नपुं॰—रथः-मुखम्—-—गाड़ी का अगला भाग
- रथयुद्धम्—नपुं॰—रथः-युद्धम्—-—`रथों का युद्ध' (वह युद्ध जिसमें योद्धा रथों पर बैठ कर युद्ध करते हैं)
- रथवर्त्मन्—नपुं॰—रथः-वर्त्मन्—-—राजमार्ग, मुख्य सड़क
- रथवीथिः—स्त्री॰—रथः-वीथिः—-—राजमार्ग, मुख्य सड़क
- रथवाहः—पुं॰—रथः-वाहः—-—रथ का घोड़ा
- रथवाहः—पुं॰—रथः-वाहः—-—सारथि
- रथशक्तिः—स्त्री॰—रथः-शक्तिः—-—वह ध्वज जिस पर रथ युद्ध की पताका लहराती रहती है
- रथशाला—स्त्री॰—रथः-शाला—-—गाड़ीघर, गाड़ियाँ रखने का स्थान
- रथसप्तमी—स्त्री॰—रथः-सप्तमी—-—माघशुक्ला सप्तमी का दिन
- रथिक—वि॰—-—रथ + ठन्—रथ पर सवारी करने वाला
- रथिक—वि॰—-—-—रथ का स्वामी
- रथिन्—वि॰—-—रथ + इनि—रथ में सवारी करने वाला, या रथ हांकने वाला
- रथिन्—वि॰—-—-—रथ को रखने वाला या रथ का स्वामी
- रथिन्—पुं॰—-—-—गाड़ी का स्वामी
- रथिन्—पुं॰—-—-—वह योद्धा जो रथ पर बैठ कर युद्ध करता है
- रथिन—वि॰—-—रथ + इन—रथ में सवारी करने वाला, या रथ हांकने वाला
- रथिन—वि॰—-—रथ + इन—रथ को रखने वाला या रथ का स्वामी
- रथिन—वि॰—-—रथ + इन—गाड़ी का स्वामी
- रथिन—वि॰—-—रथ + इन—वह योद्धा जो रथ पर बैठ कर युद्ध करता है
- रथिर—वि॰—-—रथ +इरच्—रथ में सवारी करने वाला, या रथ हांकने वाला
- रथिर—वि॰—-—रथ +इरच्—रथ को रखने वाला या रथ का स्वामी
- रथिर—वि॰—-—रथ +इरच्—गाड़ी का स्वामी
- रथिर—वि॰—-—रथ +इरच्—वह योद्धा जो रथ पर बैठ कर युद्ध करता है
- रथ्यः—पुं॰—-—रथं वहति - यत्—रथ का घोड़ा
- रथ्यः—पुं॰—-—-—रथ का एक भाग
- रथ्या—स्त्री॰—-—रथ्य + टाप्—गाड़ियों के आने जाने के लिए सड़क, राजमार्ग, मुख्य सड़क
- रथ्या—स्त्री॰—-—-—वह स्थान जहाँ कई सड़कें मिलती हों
- रथ्या—स्त्री॰—-—-—गाड़ियों या रथों का समूह
- रद्—भ्वा॰ पर॰ <रदति>—-—-—टुकड़े टुकड़े करना, फाड़ना
- रद्—भ्वा॰ पर॰ <रदति>—-—-—खुरचना
- रदः—पुं॰—-—रद् + अचृ—टुकड़े टुकड़े करना, खुरचना
- रदः—पुं॰—-—-—दांत, (हाथी का) दांत
- रदखण्डनम्—नपुं॰—रदः-खण्डनम्—-—दाँत से काटना
- रदच्छदः—पुं॰—रदः-छदः—-—ओष्ठ
- रदनः—पुं॰—-—रद् + ल्युट्—दाँत
- रदनच्छदः—पुं॰—रदनः-छदः—-—ओठ
- रध्—दिवा॰ पर॰ <रध्यति>, <रद्ध>, पुं॰—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, संताप देना मार डालना, नष्ट करना
- रध्—दिवा॰ पर॰ <रध्यति>, <रद्ध>, पुं॰—-—-—भोजन बनाना (खाना) पकाना या तैयार करना
- रन्तिदेवः—पुं॰—-—रम् + तिक्= रन्तिश्चासौ देवश्च-कर्म॰ स॰—एक चन्द्रवंशी राजा, भरत के बाद छठी पीढ़ी में
- रन्तुः—पुं॰—-—रम् + तुन्—रास्ता, मार्ग
- रन्तुः—पुं॰—-—-—नदी
- रन्धनम्—स्त्री॰—-—रध् + ल्युट् नुमागमः—क्षति पहुंचाना, सन्ताप देना, नष्ट करना
- रन्धनम्—स्त्री॰—-—रध् + ल्युट् नुमागमः—पकाना
- रन्धिः—स्त्री॰—-—रध् +इन् नुमागमः—क्षति पहुंचाना, सन्ताप देना, नष्ट करना
- रन्धिः—स्त्री॰—-—रध् +इन् नुमागमः—पकाना
- रन्ध्रम्—नपुं॰—-—रध् + रक्, नुमागमः—विवर, छेद, गर्त, मुँह खाई, दरार
- रन्ध्रम्—नपुं॰—-—-—बलहीन स्थान, वह जगह जहाँ आक्तमण किया जा सके
- रन्ध्रम्—नपुं॰—-—-—त्रुटि, दोष, कमी
- रन्ध्रान्वेषिन्—वि॰—रन्ध्रम्-अन्वेषिन्—-—दूसरों के कमजोर स्थलों को ढूंढ़ने वाला
- रन्ध्रानुसारिनू—वि॰—रन्ध्रम्-अनुसारिनू—-—दूसरों के कमजोर स्थलों को ढूंढ़ने वाला
- रन्ध्रबभ्रुः—पुं॰—रन्ध्रम्-बभ्रुः—-—चूहा
- रन्ध्रवंशः—पुं॰—रन्ध्रम्-वंशः—-—खोखला या पोला बांस
- रभ्—भ्वा॰ आ॰ <रभते>,<रव्ध>, प्रेर॰<रम्भयति>,<रम्भयते>,इच्छा॰<रिप्सते>—-—-—आरंभ करना
- आरभ्—भ्वा॰ आ॰—आ-रभ्—-—आरंभ करना, शुरू करना, काम में लग जाना, ज़िम्मेदारी ले लेना
- आरभ्—भ्वा॰ आ॰—आ-रभ्—-—व्यस्त होना, सोत्साह होना
- प्रारभ्—भ्वा॰ आ॰—प्रा-रभ्—-—आरंभ करना, शुरू करना, काम में लग जाना, ज़िम्मेदारी ले लेना
- प्रारभ्—भ्वा॰ आ॰—प्रा-रभ्—-—व्यस्त होना, सोत्साह होना
- परिरभ्—भ्वा॰ आ॰—परि-रभ्—-—कौली भरना, आलिङ्गन करना
- संरभ्—भ्वा॰ आ॰—सम-रभ्—-—क्षुब्ध होना भाव विभोर होना, प्रभावित होना
- संरभ्—भ्वा॰ आ॰—सम-रभ्—-—कुपित होना, उत्तेजित होना, क्रोधोन्मत्त या चिड़-चिड़ होना
- रभस्—नपुं॰—-—रभ् + असुन्—प्रचण्डता, उत्साह
- रभस्—नपुं॰—-—-—बल, सामर्थ्य
- रभस—वि॰—-—रभ् + असच्—प्रचण्ड, उग्र, भीषण, प्रखर
- रभस—वि॰—-—-—प्रबल, गहन, उत्कट, शक्तिशाली, तीक्ष्ण, तीब्र (उत्कण्ठा आदि)
- रभसः—पुं॰—-—-—प्रचण्डता, भीषणता, उग्रता, शीघ्रता, वेग, आतुरता, उत्कटता
- रभसः—पुं॰—-—-—उतावलापन, साहसिकता, जल्दबाजी
- रभसः—पुं॰—-—-—क्रोध, आवेश,कोपम् भीषणता
- रभसः—पुं॰—-—-—खेद, शोक
- रभसः—पुं॰—-—-—हर्ष, आनन्द, खुशी
- रम्—भ्वा॰ आ॰ <रमते>, परन्तु वि, आ, परि उपसर्ग लगने पर पर॰, रत—-—-—प्रसन्न होना, खुश होना, हर्ष मनाना, तृप्त होना
- रम्—भ्वा॰ आ॰ <रमते>, परन्तु वि, आ, परि उपसर्ग लगने पर पर॰, रत—-—-—हर्षित होना, प्रसन्न होना, आनन्द मनाना, स्नेहशील होना
- रम्—भ्वा॰ आ॰ <रमते>, परन्तु वि, आ, परि उपसर्ग लगने पर पर॰, रत—-—-—खेलना, क्रीडा करना, प्रेमालिङ्गन करना, जी बहलाना
- रम्—भ्वा॰ आ॰ <रमते>, परन्तु वि, आ, परि उपसर्ग लगने पर पर॰, रत—-—-—संभोग करना
- रम्—भ्वा॰ आ॰ <रमते>, परन्तु वि, आ, परि उपसर्ग लगने पर पर॰, रत—-—-—रहना, ठहरना, टिकना
- रम्—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰—-—-—प्रसन्न करना, खुश करना, सन्तुष्ट करना
- रम्—भ्वा॰ आ॰ इच्छा॰ <रिरंसते>—-—-—क्रीडा करने की इच्छा करना
- अभिरम्—भ्वा॰ आ॰ —अभि-रम्—-—हर्ष मनाना, या प्रसन्न या आनन्दित होना, अत्यनुरक्त होना @ भट्टि॰ १/७, भग॰ १८/४५
- आरम्—भ्वा॰ आ॰ —आ-रम्—-—आनन्द लेना, खुशी मनाना
- आरम्—भ्वा॰ आ॰ —आ-रम्—-—ठहरना, थमना, छोड़ देना (बोलना आदि), समाप्त करना
- उपरम्—भ्वा॰ आ॰ —उप-रम्—-—रुकना, अन्त करना, समाप्त करना
- उपरम्—भ्वा॰ आ॰ —उप-रम्—-—रुकना, थमना
- उपरम्—भ्वा॰ आ॰ —उप-रम्—-—चुप होना, शांत होना
- उपरम्—भ्वा॰ आ॰ —उप-रम्—-—मरना
- परिरम्—भ्वा॰ आ॰ —परि-रम्—-—प्रसन्न होना, खुश होना
- विरम्—भ्वा॰ आ॰ —वि-रम्—-—अन्त होना, समाप्त होना, अवसान होना
- विरम्—भ्वा॰ आ॰ —वि-रम्—-—रुकनाम् बन्द होना, थमना, छोड़ देना ( बोलना आदि)
- संरम्—भ्वा॰ आ॰ —सम्-रम्—-—प्रसन्न होना, हर्ष मनाना
- रम—वि॰—-—रम् + अच्—सुहवना, आनन्दप्रद, संतोषजनक, आदि
- रमः—पुं॰—-—-—हर्ष, खुशी
- रमः—पुं॰—-—-—प्रेमी, पति
- रमः—पुं॰—-—-—कामदेव
- रमठम्—नपुं॰—-—रमेः अठः—हींग
- रमठध्वनिः—पुं॰—रमठम्-ध्वनिः—-—हींग
- रमण—वि॰—-—रम्यति-रम् + णिच् + ल्युट्—सुहवना, संतोषजनक, आनन्दप्रद, मनोहर
- रमणः—पुं॰—-—-—प्रेमी, पति
- रमणः—पुं॰—-—-—कामदेव
- रमणः—पुं॰—-—-—गधा
- रमणः—पुं॰—-—-—अंडकोष
- रमणम्—नपुं॰—-—-—क्रीड़ा करना
- रमणम्—नपुं॰—-—-—प्रेमालिंगन, जी बहलाना, केलीक्रीडा
- रमणम्—नपुं॰—-—-—रति, मैथुन
- रमणम्—नपुं॰—-—-—हर्ष, उल्लास
- रमणम्—नपुं॰—-—-—कूल्हा, पुट्ठा
- रमणा—स्त्री॰—-—रमण + टाप्—सुन्दर तरुण स्त्री
- रमणा—स्त्री॰—-—-—पत्नी, स्वामिनी
- रमणी—स्त्री॰—-—रमण + ङीप् —सुन्दर तरुण स्त्री
- रमणी—स्त्री॰—-—-—पत्नी, स्वामिनी
- रमणीय—वि॰—-—रम्यतेऽत्र- रम् आधारे अनीयर्—सुहवना, आनन्दप्रद, प्रिय, मनोहर, सुन्दर
- रमा—स्त्री॰—-—रमयति- रम् + अच् + टाप्—पत्नी, स्वामिनी
- रमा—स्त्री॰—-—-—लक्ष्मी, विष्णु की पत्नी तथा धनदौलत की देवी
- रमा—स्त्री॰—-—-—धन
- रमाकान्तः—पुं॰—रमा-कान्तः—-—विष्णु का विशेषण
- रमानाथः—पुं॰—रमा-नाथः—-—विष्णु का विशेषण
- रमापतिः—पुं॰—रमा-पतिः—-—विष्णु का विशेषण
- रमावेष्टः—पुं॰—रमा-वेष्टः—-—तारपीन
- रम्भा—स्त्री॰—-—रम्भ् + अच् + टाप्—केले का पौधा
- रम्भा—स्त्री॰—-—-—गौरी का नाम, नलकुबेर की पत्नी (जो इन्द्र के स्वर्ग में अत्यंत सुन्दरी )मानी जाती है
- रम्भोरू—वि॰—रम्भा-ऊरू—-—केले के आन्तर भाग के समान जंघाओं वाला या वाली @ शि॰ ८/१९, रघु॰ ६/३५
- रम्य—वि॰—-—रम्य्अतेऽत्र यत्—सुहावना, सुखद, आनन्दप्रद, रुचिकर
- रम्य—वि॰—-—-—सुन्दर प्रिय, मनोहर
- रम्यः—पुं॰—-—-—चम्पक नाम का वृक्ष
- रम्यम्—नपुं॰—-—-— वीर्य
- रय्—भ्वा॰ आ॰ <रयते>,<रयित>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- रयः—पुं॰—-—रय् + अच्—नदी की धारा, प्रवाह
- रयः—पुं॰—-—-—बल, चाल, वेग
- रयः—पुं॰—-—-—उत्साह, उत्कण्ठा, उत्कटता, उग्रता
- रल्लकः—पुं॰—-—रमणं रत= इच्छा तां लाति - ला + क= रल्ल + कन्—ऊनी वस्त्र, कंबल
- रल्लकः—पुं॰—-—-—पलक मारना
- रल्लकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का हरिण
- रवः—पुं॰—-—रु + अप्—क्रन्दन, चीख, चीत्कार, हू हू,( जानवरों की) चिंघाड़
- रवः—पुं॰—-—-—गाना, (पक्षियों की) कूजनध्वनि
- रवः—पुं॰—-—-—झनझनाहट
- रवः—पुं॰—-—-—शब्द, कोलाहल
- रवण—वि॰—-—रु + युच्—क्रंदन करने वाला, चिंघाड़ने वाला, चीखने वाला
- रवण—वि॰—-—-—ध्वन्यात्मक, शब्दायमान
- रवण—वि॰—-—-—तीक्ष्ण, तप्त
- रवण—वि॰—-—-—चंचल, अस्थिर
- रवणः—पुं॰—-—-—ऊँट
- रवणः—पुं॰—-—-—कोयल
- रवणम्—नपुं॰—-—-—पीतल, कांसा
- रविः—पुं॰—-—रु + इ—सूर्य
- रविकान्तः—पुं॰—रविः-कान्तः—-—सूर्यकान्तमणि
- रविजः—पुं॰—रविः-जः—-—शनिग्रह
- रविजः—पुं॰—रविः-जः—-—कर्ण के विशेषण
- रविजः—पुं॰—रविः-जः—-—वालि के विशेषण
- रविजः—पुं॰—रविः-जः—-—वैवस्वत मनु के विशेषण
- रविजः—पुं॰—रविः-जः—-—यम के विशेषण
- रविजः—पुं॰—रविः-जः—-—सुग्रीव के विशेषण
- रवितनयः—पुं॰—रविः-तनयः—-—शनिग्रह
- रवितनयः—पुं॰—रविः-तनयः—-—कर्ण के विशेषण
- रवितनयः—पुं॰—रविः-तनयः—-—वालि के विशेषण
- रवितनयः—पुं॰—रविः-तनयः—-—वैवस्वत मनु के विशेषण
- रवितनयः—पुं॰—रविः-तनयः—-—यम के विशेषण
- रवितनयः—पुं॰—रविः-तनयः—-—सुग्रीव के विशेषण
- रविपुत्रः—पुं॰—रविः-पुत्रः—-—शनिग्रह
- रविपुत्रः—पुं॰—रविः-पुत्रः—-—कर्ण के विशेषण
- रविपुत्रः—पुं॰—रविः-पुत्रः—-—वालि के विशेषण
- रविपुत्रः—पुं॰—रविः-पुत्रः—-—वैवस्वत मनु के विशेषण
- रविपुत्रः—पुं॰—रविः-पुत्रः—-—यम के विशेषण
- रविपुत्रः—पुं॰—रविः-पुत्रः—-—सुग्रीव के विशेषण
- रविसूनुः—पुं॰—रविः-सूनुः—-—शनिग्रह
- रविसूनुः—पुं॰—रविः-सूनुः—-—कर्ण के विशेषण
- रविसूनुः—पुं॰—रविः-सूनुः—-—वालि के विशेषण
- रविसूनुः—पुं॰—रविः-सूनुः—-—वैवस्वत मनु के विशेषण
- रविसूनुः—पुं॰—रविः-सूनुः—-—यम के विशेषण
- रविसूनुः—पुं॰—रविः-सूनुः—-—सुग्रीव के विशेषण
- रविदिनम्—नपुं॰—रविः-दिनम्—-—रविवार, आदित्यवार
- रविवारः—पुं॰—रविः-वारः—-—रविवार, आदित्यवार
- रविवासरः—पुं॰—रविः-वासरः—-—रविवार, आदित्यवार
- रविवासरम्—नपुं॰—रविः-वासरम्—-—रविवार, आदित्यवार
- रविसङ्क्रान्ति—स्त्री॰—रविः-सङ्क्रान्ति—-—सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश
- रशना—स्त्री॰—-—अश् + युच्, रशादेशः—रस्सी, डोरी
- रशना—स्त्री॰—-—-—रास, लगाम
- रशना—स्त्री॰—-—-—कटिबंध, कमरबंद, स्त्रियों की करधनी
- रशना—स्त्री॰—-—-—जिह्वा
- रसना—स्त्री॰—-—-—रस्सी, डोरी
- रसना—स्त्री॰—-—-—रास, लगाम
- रसना—स्त्री॰—-—-—कटिबंध, कमरबंद, स्त्रियों की करधनी
- रसना—स्त्री॰—-—-—जिह्वा
- रशनोपमा—स्त्री॰—रशना-उपमा—-—उपमा अलंकार का एक भेद, यह उपमाओं की एक शृंखला है जिसमें पूर्व उपमेय, आगे चलकर उपमान बनता जाता है
- रश्मिः—स्त्री॰—-—अश् + मि धातोरुट्, रश् + मि वा—डोर, डोरी, रस्सी
- रश्मिः—स्त्री॰—-—-—लगाम, रास
- रश्मिः—स्त्री॰—-—-—सांटा, हंटर
- रश्मिः—स्त्री॰—-—-—किरण, प्रकाश किरण
- रश्मिकलापः—पुं॰—रश्मिः-कलापः—-—चव्वन लड़ियों की मोतियों की माला
- रश्मिमत्—पुं॰—-—रश्मि + मतुप्—सूर्य
- रस्—भ्वा॰ पर॰ <रसति>, <रसित>—-—-—दहाड़ना, हूहू करना, चिल्लना, चीखना
- रस्—भ्वा॰ पर॰ <रसति>, <रसित>—-—-—शब्द करना, कोलाहल करना, टनटन करना, झनझन करना
- रस्—भ्वा॰ पर॰ <रसति>, <रसित>—-—-—प्रतिध्वनि करना, गूंजना
- रस्—चुरा॰ उभ॰ <रसयति>,<रसयते>, <रसित>—-—-—चखना, स्वाद लेना
- रसः—पुं॰—-—रस् + अच्—सार, (वृक्षों का) दूध, रस, इक्षुरसः कुसुमरसः आदि
- रसः—पुं॰—-—-—तरल, द्रव
- रसः—पुं॰—-—-—पानी
- रसः—पुं॰—-—-—मदिरा, शराब
- रसः—पुं॰—-—-—घूंट एक मात्रा, खूराक
- रसः—पुं॰—-—-—चखना, रस, स्वाद (आलं॰ से भी)
- रसः—पुं॰—-—-—चटनी, मिर्च मसाला
- रसः—पुं॰—-—-—कोई स्वादिष्ट पदार्थ
- रसः—पुं॰—-—-—किसी वस्तु के लिए स्वाद या रुचि, पसन्दगी, इच्छा
- रसः—पुं॰—-—-—प्रेम, स्नेह,
- रसः—पुं॰—-—-—आनन्द, प्रसन्नता, खुशी
- रसः—पुं॰—-—-—लावण्य, अभिरुचि, सौन्दर्य-लावण्य
- रसः—पुं॰—-—-—करुणरस, भाव-भावना
- रसः—पुं॰—-—-—काव्य रचनाओं में रस
- रसः—पुं॰—-—-—सत्, सार, तत्त्व, सर्वोत्तम भाग
- रसः—पुं॰—-—-—शरीर के संघटक द्रव
- रसः—पुं॰—-—-—वीर्य
- रसः—पुं॰—-—-—पारा
- रसः—पुं॰—-—-—विष, जहरीला पेय
- रसः—पुं॰—-—-—कोई भी खनिज या धातुसंबंधी लवण
- रसाञ्जनम्—नपुं॰—रसः-अञ्जनम्—-—रसौत, एक प्रकार का अंजन
- रसाम्लः—पुं॰—रसः-अम्लः—-—अमलबेत
- रसायनम्—नपुं॰—रसः-अयनम्—-—अमृत, कोई भी औषध जो बुढ़ापे को रोक कर जीवन को लम्बा करे
- रसायनम्—नपुं॰—रसः-अयनम्—-—(आलं॰) अमृत का काम देने वाला अर्थात् जो मन को तृप्त भी करे साथ ही हर्षित भी करे
- रसायनम्—नपुं॰—रसः-अयनम्—-—रससिद्धि, रसायन
- रसश्रेष्ठः—पुं॰—रसः-श्रेष्ठः—-—पारा
- रसात्मक—वि॰—रसः-आत्मक—-—रसीला, रसदार
- रसात्मक—वि॰—रसः-आत्मक—-—तरल, द्रव
- रसाभासः—पुं॰—रसः-आभासः—-—किसी रस का बाह्यरूप या केवल प्रतीति
- रसाभासः—पुं॰—रसः-आभासः—-—किसी रस का अनुपयुक्त स्थान पर वर्णन
- रसास्वादः—पुं॰—रसः-आस्वादः—-—सत् या रस आदि चखना
- रसास्वादः—पुं॰—रसः-आस्वादः—-—काव्यरस की अनुभूति, काव्य सौन्दर्य का प्रत्यक्षीकरण
- रसेन्द्रः—पुं॰—रसः-इन्द्रः—-—पारा
- रसेन्द्रः—पुं॰—रसः-इन्द्रः—-—पारसमणि, चिन्तामणि
- रसोद्भवम्—नपुं॰—रसः-उद्भवम्—-—मोती
- रसोपलम्—नपुं॰—रसः-उपलम्—-—मोती
- रसकर्मन्—नपुं॰—रसः-कर्मन्—-—उन वस्तुओं को तैयार करना जिनमें पारा इस्तेमाल किया जाता है
- रसकेसरम्—नपुं॰—रसः-केसरम्—-—कपूर
- रसगन्धः—पुं॰—रसः-गन्धः—-—लोबान की तरह का खुशबूदार गोंद, रसगन्ध
- रसधम्—नपुं॰—रसः-धम्—-—लोबान की तरह का खुशबूदार गोंद, रसगन्ध
- रसग्रह—वि॰—रसः-ग्रह—-—रसों का ज्ञाता
- रसग्रह—वि॰—रसः-ग्रह—-—आनन्द मनाने वाला
- रसजः—पुं॰—रसः-जः—-—राब, शीरा
- रसजम्—नपुं॰—रसः-जम्—-—रुधिर
- रसज्ञ—वि॰—रसः-ज्ञ—-—जो रस की उत्तमता को परखता है, जो स्वाद जानता है
- रसज्ञ—वि॰—रसः-ज्ञ—-—वस्तुओं के सौन्दर्य को पहचानने में सक्षम
- रसज्ञः—पुं॰—रसः-ज्ञः—-—स्वाद का जानकार, भावुक, विवेचक, काव्यमर्मज्ञ, कवि
- रसज्ञः—पुं॰—रसः-ज्ञः—-—रससिद्धि का ज्ञाता
- रसज्ञः—पुं॰—रसः-ज्ञः—-—पारे के योग से बनने वाली औषधियों के तैयार करने वाला वैद्य
- रसज्ञा—स्त्री॰—रसः-ज्ञा—-—जिह्वा
- रसतेजस्—नपुं॰—रसः-तेजस्—-—रुधिर
- रसदः—पुं॰—रसः-दः—-—वैद्य
- रसधातु—नपुं॰—रसः-धातु—-—पारा
- रसप्रबन्धः—पुं॰—रसः-प्रबन्धः—-—कोई भी काव्यरचना, विशेष कर नाटक
- रसफलः—पुं॰—रसः-फलः—-—नारियल का पेड़
- रसभङ्गः—पुं॰—रसः-भङ्गः—-—रस का टूट जाना या अवरोध
- रसभवम्—नपुं॰—रसः-भवम्—-—रुधिर
- रसराजः—पुं॰—रसः-राजः—-—पारा
- रसविक्रयः—पुं॰—रसः-विक्रयः—-—मदिरा की बिक्री
- रसशास्त्र—वि॰—रसः- शास्त्र—-—रससिद्धि का विज्ञान,
- रससिद्ध—वि॰—रसः- सिद्ध—-—काव्य-सम्पन्न, रसवेत्ता
- रससिद्ध—वि॰—रसः- सिद्ध—-—रससिद्धि में कुशल
- रससिद्धिः—स्त्री॰—रसः- सिद्धिः—-—रससिद्धि में कुशलता
- रसनम्—नपुं॰—-—रस् + ल्युट्—क्रन्दन करना, चिघाड़ना, शोर मचाना, टनटन करना, कोलाहल करना
- रसनम्—नपुं॰—-—-—बादलों की गड़गड़ाहट, बादलों की गरज
- रसनम्—नपुं॰—-—-—स्वाद, रस
- रसनम्—नपुं॰—-—-—स्वाद लेने की इन्द्रिय, जिह्वा
- रसनम्—नपुं॰—-—-—प्रत्यक्षीकरण, गुणागुणविवेचन, ज्ञान
- रसनारदः—पुं॰—रसना-रदः—-—पक्षी
- रसनालिह्—पूं॰—रसना-लिह्—-—कुत्ता
- रसवत्—वि॰—-—रस + मतुप्—रसेदार, रसीला
- रसवत्—वि॰—-—-—स्वादिष्ट, मशालेदार, मजेदार, सुरस
- रसवत्—वि॰—-—-—तर, गीला, पानी से आर्द्र
- रसवत्—वि॰—-—-—मनोहर,शानदार, प्रांजल, परिष्कृत
- रसवत्—वि॰—-—-—भावों से भरा हुआ, जोशीला
- रसवत्—वि॰—-—-—स्नेहसिक्त, प्रेमपूरित
- रसवत्—वि॰—-—-—साहसी, रसिक
- रसवतो—वि॰—-—-—रसोई
- रसा—स्त्री॰—-—रस् + अच् = टाप्—निम्नतर नारकीय प्रदेश, नरक
- रसा—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी, भूमि, मिट्टी
- रसा—स्त्री॰—-—-—जिह्वा
- रसातलम्—नपुं॰—रसा-तलम्—-—पृथ्वी के नीचे सात पातालों में से एक
- रसातलम्—नपुं॰—रसा-तलम्—-—नीचे की दुनिया, नरक
- रसालः—पुं॰—-—रसमालाति - आ + ला + क, ष॰ त॰—आम का पेड़
- रसालः—पुं॰—-—-—गन्ना, ईख
- रसाला—स्त्री॰—-—-—जिह्वा
- रसाला—स्त्री॰—-—-—वह् दही जिसमें शक्कर तथा मसाले मिला दिए गये हों
- रसाला—स्त्री॰—-—-—`दूर्वा' घास, दूब
- रसाला—स्त्री॰—-—-—अंगूरों की बेल या अंगूर
- रसालम्—नपुं॰—-—-—लोबान
- रसिक—वि॰—-—रसोऽस्त्यस्य ठन्—मसालेदार, मज़ेदार, स्वादिष्ट
- रसिक—वि॰—-—-—शानदार, लालित, सुन्दर
- रसिक—वि॰—-—-—जोशिला
- रसिक—वि॰—-—-—उत्तमता या रस को पहचानने वाला, स्वादयुक्त, गुणग्राही, विवेचक
- रसिक—वि॰—-—-—आनन्द लेने वाला, खुशी मनाने वाला, प्रसन्नता अनुभव करने वाला, भक्त (प्रायः समास में)
- रसिकः—पुं॰—-—-—रसिया, गुणग्राही, सहृदय पुरुष तु॰ अरसिक
- रसिकः—पुं॰—-—-—स्वेच्छाचारी
- रसिकः—पुं॰—-—-—हाथी
- रसिकः—पुं॰—-—-—घोड़ा
- रसिका—स्त्री॰—-—-—ईख का रस, राब,मींझा
- रसिका—स्त्री॰—-—-—जिह्वा
- रसिका—स्त्री॰—-—-—स्त्रियों की करधनी
- रसित—भू॰ क॰कृ॰—-—रस् + क्त—चखा हुआ
- रसित—भू॰ क॰कृ॰—-—-—रस या मनोभाव से युक्त
- रसित—भू॰ क॰कृ॰—-—-—मुलम्मा चढ़ा हुआ
- रसितम्—नपुं॰—-—-—शराब या मदिरा
- रसितम्—नपुं॰—-—-—क्रंदन, दहाड़, गरज, चिंघाड़, कोलाहल, शोर
- रसोनः—पुं॰—-—रसेनैकेन ऊनः—लहसुन
- रस्य—वि॰—-—रस + यत्—रसवाला, मजेदार, सुस्वादु, रुचिकर
- रह्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <रहिति>, <रहयति>, <रहयते>, <रहित>—-—-—छोड़ देना, त्याग देना, परित्याग करना, तिलांजलि देना, छोड़कर अलग हो जाना
- रहणम्—नपुं॰—-—रह् + ल्युट्—छोड़ कर भाग जाना, परित्याग कर देना, अलग हो जाना
- रहस्—नपुं॰—-—रह् + असुन्—एकान्तता, एकान्तवास, अकेलापन, एकाकीपन, निर्जनता
- रहस्—नपुं॰—-—-—उजड़ा हुआ या सुनसान स्थान, छिपने की जगह
- रहस्—नपुं॰—-—-—भेद की बात, रहस्य
- रहस्—नपुं॰—-—-—मैथुन, संभोग
- रहस्—नपुं॰—-—-—गुप्त इन्द्रिय
- रहस्—अव्य॰—-—-—चुपचाप, आँख बचा कर, गुप्त रूप से, एकान्त में, निर्जनस्थान में
- रहस्य—वि॰—-—रहसि भवः- यत्—गुप्र, निजी, प्रच्छन्न
- रहस्य—वि॰—-—-—भेदाभरा
- रहस्यम्—नपुं॰—-—-—भेद
- रहस्यम्—नपुं॰—-—-—रहस्य से भरा जादू, मंत्र, (अस्त्रसंबंधी) भेद, गुप्त बात
- रहस्यम्—नपुं॰—-—-—आचरण का भेद या रहस्य, गुप्त बात
- रहस्यम्—नपुं॰—-—-—गुह्य या गोपनीय शिक्षा, एक रहस्यमय सिद्धान्त
- रहस्यम्—अव्य॰—-—-—चुपचाप, गुप्तरूप से
- रहस्याख्यायिन्—वि॰—रहस्य-आख्यायिन्—-—भेद की बात बताने वाला
- रहस्यभेदः—पुं॰—रहस्य-भेदः—-—किसी भेद या गुप्त बात का खोलना
- रहस्यविभेदः—पुं॰—रहस्य-विभेदः—-—किसी भेद या गुप्त बात का खोलना
- रहस्यव्रतम्—नपुं॰—रहस्य-व्रतम्—-—गुप्त प्रतिज्ञा या साधना
- रहस्यव्रतम्—नपुं॰—रहस्य-व्रतम्—-—जादू के शस्त्रास्त्रों पर अधिकार प्राप्त करने के लिए एक रहस्यमय विज्ञान
- रहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—रह् कर्मणि क्त—छोड़ गया, छोड़ दिया गया, परित्यक्त, सम्परित्यक्त
- रहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वियुक्त, मुक्त, वञ्चित, हीन, के बिना
- रहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अकेला, एकाकी
- रहितम्—नपुं॰—-—-—गोपनीयता, परदा या ओट
- रा—स्त्री॰—-—अदा॰ पर॰ <राति>, <रात>—देना, अनुदान देना, समर्पण करना
- राका—स्त्री॰—-—रा + क + टाप्—पूर्णिमा का दिन, विशेषरूप से रात्रि
- राका—स्त्री॰—-—-—पूर्णिमा की अधिष्ठात्री देवी
- राका—स्त्री॰—-—-—वह कन्या जिसे अभी रजोधर्म होना आरभ्ं हुआ है
- राका—स्त्री॰—-—-—खुजली, खाज
- राक्षस—वि॰—-—रक्षस इदम्- अण्—दैत्य या राक्षस से सबंध रखने वाला, पैशाची, निशाचर के स्वभाव वाला
- राक्षसः—पुं॰—-—-—पिशाच, भूतप्रेत, बैताल, दानव, शैतान
- राक्षसः—पुं॰—-—-—हिन्दु-धर्मशास्त्रों में प्रतिपादित विवाह के आठ भेदों में से एक प्रकार जिसमें दुलहिन के सम्बन्धियों को युद्ध में परास्त कर कन्या को बलात् उठाकर के जाया जाता है
- राक्षसः—पुं॰—-—-—ज्योतिषविषयक एक योग
- राक्षसः—पुं॰—-—-—नन्द राजा का मन्त्री, जो मुद्राराक्षस नाटक में एक प्रधान पात्र है
- राक्षसी—स्त्री॰—-—-—पिशाचिनी
- राक्षा—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का लाल रंग, महावर, लाख
- राक्षा—स्त्री॰—-—-—वीरबहूटी' जिससे यह रंग बनता है
- रागः—पुं॰—-—रञ्ज् भावे घञ्, नलोपकुत्वे—वर्ण, रंग, रंजक वस्तु
- रागः—पुं॰—-—-—लाल रङ्ग, लालिमा
- रागः—पुं॰—-—-—लाल रङ्ग, लाल रङ्ग की लाख, महावर
- रागः—पुं॰—-—-—प्रेम, प्रणयोन्माद, स्नेह, प्रीति विषयक या काम-भावना
- रागः—पुं॰—-—-—भावना, संवेग, सहानुभूति, हित
- रागः—पुं॰—-—-—हर्ष, आनन्द
- रागः—पुं॰—-—-—क्रोध रोष
- रागः—पुं॰—-—-—प्रियता, सौन्दर्य
- रागः—पुं॰—-—-—संगीत के राग या स्वरग्राम
- रागः—पुं॰—-—-—संगीत की संगति, संगीतमाधुर्य
- रागः—पुं॰—-—-—खेद, शोक
- रागः—पुं॰—-—-—लालच, ईर्ष्या
- रागात्मक—वि॰—रागः-आत्मक—-—जोशिला
- रागचूर्णः—पुं॰—रागः-चूर्णः—-—खैर का वृक्ष
- रागचूर्णः—पुं॰—रागः-चूर्णः—-—सिन्दूर
- रागचूर्णः—पुं॰—रागः-चूर्णः—-—लाख
- रागचूर्णः—पुं॰—रागः-चूर्णः—-—होली के उत्सव पर एक दूसरे पर फेंका जाने वाला गुलाल या अबीर
- रागचूर्णः—पुं॰—रागः-चूर्णः—-—कामदेव
- रागद्रव्यम्—नपुं॰—रागः-द्रव्यम्—-—रंगने वाला पदार्थ, रङ्गलेप, रङ्ग
- रागबन्धः—पुं॰—रागः-बन्धः—-—भावना का प्रकटीकरण, (नाना प्रकार संवेगों के) उपयुक्त वर्णन से उत्पन्न रुचि
- रागयुज्—वि॰—रागः-युज्—-—लाल
- रागसूत्रम्—पुं॰—रागः-सूत्रम्—-—रङ्गीन धागा
- रागसूत्रम्—पुं॰—रागः-सूत्रम्—-—रेशमी धागा
- रागसूत्रम्—पुं॰—रागः-सूत्रम्—-—तराजू की डोरी
- रागिन्—वि॰—-—रग + इनि—रङ्गी, रङ्गा हुआ
- रागिन्—वि॰—-—रग + इनि—रङ्ग करने वाला, रङ्गलेप करने वाला
- रागिन्—वि॰—-—रग + इनि—लाल
- रागिन्—वि॰—-—रग + इनि—भावना और आवेश से पूर्ण, जोशिला
- रागिन्—वि॰—-—रग + इनि—प्रेमपूरित
- रागिन्—वि॰—-—रग + इनि—सावेश, स्नेहशील, श्रद्धानुरागपूर्ण, अभिलाषी, लालायित
- रागिन्—पुं॰—-—रग + इनि—चित्रकार
- रागिन्—पुं॰—-—रग + इनि—प्रेमी
- रागिन्—पुं॰—-—रग + इनि—स्वेच्छाचारी, कामासक्त
- रागिणी—स्त्री॰—-—रग + इनि+ङीप्—संगीत के स्वरग्राम की विकृतियाँ जिनमें से तीस या छत्तीस भेद गिनाये जाते है
- रागिणी—स्त्री॰—-—रग + इनि+ङीप्—स्वैरिणी, पुंश्चली, कामुकी
- राघवः—पुं॰—-—रघोर्गोत्रापत्यम् -अण्—रघुवंशी, रघु की संतान विशेषतः राम
- राघवः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का बड़ा मच्छ
- राङ्कव—वि॰—-—रङ्कोरयं विकारो वा तल्लोमजातत्वात् अण्—रङ्कु नाम की हरिण जाति से सम्बन्ध रखने वाला, या इसके बालों से बना हुआ, ऊनी
- राङ्कवम्—नपुं॰—-—-—हरिण के बालों से बनाया हुआ ऊनी कपड़ा, ऊनी वस्त्र
- राङ्कवम्—नपुं॰—-—-—कम्बल
- राज्—भ्वा॰ उभ॰ <राजति>,<राजते>,<राजित>—-—-—चमकाना, जगमगाना, शानदार या सुन्दर प्रतीत होना, प्रमुख होना
- राज्—भ्वा॰ उभ॰ <राजति>,<राजते>,<राजित>—-—-—प्रतीत होना, झलक दिखाई देना
- राज्—भ्वा॰ उभ॰ <राजति>,<राजते>,<राजित>—-—-—हकूमत करना, शासन करना
- राज्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—चमकाना, रोशनी करना, उज्ज्वल करना
- नीराज्—भ्वा॰ उभ॰—निस्-राज्—-—चमकाना, रोशनी करना, उज्ज्वल करना,अलंकृत करना, देदीप्यमान करना
- नीराज्—भ्वा॰ उभ॰—निस्-राज्—-—आरती उतारना, नीराजन करना
- विराज्—भ्वा॰ उभ॰—वि-राज्—-—चमकाना
- विराज्—भ्वा॰ उभ॰—वि-राज्—-—दिखाई देना, प्रतीत होना
- राज्—पुं॰—-—राज् + क्विप्—राजा, सरदार, युवराज
- राजकः—पुं॰—-—राजन् + कन्—छोटा राजा, मामूलि राणा
- राजकम्—नपुं॰—-—-—राजा या राणाओं का समूह, प्रभुसत्ता प्राप्त राजाओं का समुदाय
- राजत—वि॰—-—रजत + अण्—चांदी का, चांदी का बना हुआ
- राजतम्—नपुं॰—-—-—चाँदी
- राजन्—पुं॰—-—राज् + कनिन्, रञ्ज्यति रञ्ज् + कनिन् नि॰ वा—राजा, शासक, युवराज, सरदार या मुखिया (बंगराजः, महाराजः आदि)
- राजन्—पुं॰—-—-—सैनिक जाति का पुरूष, क्षत्रिय
- राजन्—पुं॰—-—-—युधिष्ठिर का नाम
- राजन्—पुं॰—-—-—इन्द्र का नाम
- राजन्—पुं॰—-—-—चन्द्रमा
- राजन्—पुं॰—-—-—यक्ष
- राजाङ्गनम्—नपुं॰—राजन्-अङ्गनम्—-—राजकीय कचहरी या दरबार, महल का आंगन
- राजाधिकारिन्—वि॰—राजन्-अधिकारिन्—-—राजकीय अधिकारी या अफ़सर
- राजाधिकारिन्—वि॰—राजन्-अधिकारिन्—-—न्यायाधीश
- राजाधिकृतः—पुं॰—राजन्-अधिकृतः—-—राजकीय अधिकारी या अफ़सर
- राजाधिकृतः—पुं॰—राजन्-अधिकृतः—-—न्यायाधीश
- राजाधिराजः—पुं॰—राजन्-अधिराजः—-—राजाओं का राजा, सर्वोपरि राजा, प्रमुख प्रभु, सम्राट्
- राजेन्द्रः—पुं॰—राजन्-इन्द्रः—-—राजाओं का राजा, सर्वोपरि राजा, प्रमुख प्रभु, सम्राट्
- राजानकः—पुं॰—राजन्-अनकः—-—घटिया राजा, छोटा राणा
- राजानकः—पुं॰—राजन्-अनकः—-—एक प्रकार की उपाधि जो पहले पूजनीय विद्वानों और कवियों को दी जाती थी
- राजापसदः—पुं॰—राजन्-अपसदः—-—अयोग्य या पतित राजा
- राजाभिषेकः—पुं॰—राजन्-अभिषेकः—-—राजा का राजतिलक
- राजार्हम्—नपुं॰—राजन्-अर्हम्—-—अगर की लकड़ी, एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी
- राजार्हणम्—नपुं॰—राजन्-अर्हणम्—-—राजकीय सम्मानसूचक उपहार
- राजाज्ञा—स्त्री॰—राजन्-आज्ञा—-—राजा का अनुशासन, अध्यादेश, अथवा आदेश
- राजाभरणम्—पुं॰—राजन्-आभरणम्—-—राजा का आभूषण
- राजावलिः—स्त्री॰—राजन्-आवलिः—-—राजकीय वशांवली, राजवशांवली
- राजावलीः—स्त्री॰—राजन्-आवलीः—-—राजकीय वशांवली, राजवशांवली
- राजपोकरणम्—नपुं॰—राजन्-उपकरणम्—-—राजकीय साज-सामान,राजचिह्न
- राजर्षिः—पुं॰—राजन्-ऋषिः—-—राजकीय ऋषि, सन्तसमान राजा, क्षत्रिय जाति का पुरुष जिसने अपने पवित्र जीवन तथा साधनामय भक्ति से ऋषि का पद प्राप्त किया हो। (जैसे पुरूरवा, जनक और विश्वामित्र)
- राजकरः—पुं॰—राजन्-करः—-—राजा को दिया जाने वाला शुल्क
- राजकार्यम्—नपुं॰—राजन्-कार्यम्—-—राज्य का कार्य
- राजकुमारः—पुं॰—राजन्-कुमारः—-—युवराज
- राजकुल—वि॰—राजन्-कुल—-—राजकीय परिवार, राजा का कुटुम्ब
- राजकुल—वि॰—राजन्-कुल—-—राजा का दरबार
- राजकुल—वि॰—राजन्-कुल—-—न्यायालय
- राजकुल—वि॰—राजन्-कुल—-—राजा का महल
- राजकुल—वि॰—राजन्-कुल—-—राज, महाराज
- राजगामिन्—वि॰—राजन्-गामिन्—-—राज्याधीन या राजाधिकार में होने वाली सम्पत्ति आदि
- राजगृहम्—नपुं॰—राजन्-गृहम्—-—राजकीय निवास, राजा का महल
- राजगृहम्—नपुं॰—राजन्-गृहम्—-—मगध के मुख्य नगर या राजधानी का नाम
- राजचिह्नम्—नपुं॰—राजन्-चिह्नम्—-—राजचिह्न, राजाधिकार या राजशक्ति
- राजतालः—पुं॰—राजन्-तालः—-—सुपारी का पेड़
- राजताली—स्त्री॰—राजन्-ताली—-—सुपारी का पेड़
- राजदण्डः—पुं॰—राजन्-दण्डः—-—राजा के हाथ का डडां
- राजदण्डः—पुं॰—राजन्-दण्डः—-—राज शासन या राजाधिकार
- राजदण्डः—पुं॰—राजन्-दण्डः—-—राजाद्वारा दिया गया दण्ड
- राजदन्तः—पुं॰—राजन्-दन्तः—-—आगे का दाँत
- राजदूतः—पुं॰—राजन्-दूतः—-—राजदूत, राजा का प्रतिनिधि
- राजद्रोहः—पुं॰—राजन्-द्रोहः—-—राजा के विरुद्ध विश्वासघात, राजसत्ता के विरुद्ध आन्दोलन, राजविद्रोह
- राजद्वार्—स्त्री॰—राजन्-द्वार्—-—राजा के महल का मुख्य द्वार या फाटक
- राजद्वारम्—स्त्री॰—राजन्-द्वारम्—-—राजा के महल का मुख्य द्वार या फाटक
- राजद्वारिकः—पुं॰—राजन्-द्वारिकः—-—राजमहल का ड्योढ़ीवान
- राजधर्मः—पुं॰—राजन्-धर्मः—-—राज कर्तव्य
- राजधर्मः—पुं॰—राजन्-धर्मः—-—राजाओं से सम्बन्ध रखने वाला नियम या विधि
- राजधानम्—नपुं॰—राजन्-धानम्—-—राजा का निवास स्थान, मुख्य नगर, राजधानी, शासन के कार्यालय का स्थान
- राजधानिका—स्त्री॰—राजन्-धानिका—-—राजा का निवास स्थान, मुख्य नगर, राजधानी, शासन के कार्यालय का स्थान
- राजधानी—स्त्री॰—राजन्-धानी—-—राजा का निवास स्थान, मुख्य नगर, राजधानी, शासन के कार्यालय का स्थान
- राजधुर्—स्त्री॰—राजन्-धुर्—-—शासन का उत्तर दायित्व या भार
- राजधुरा—स्त्री॰—राजन्-धुरा—-—शासन का उत्तर दायित्व या भार
- राजनयः—स्त्री॰—राजन्-नयः—-—राज्य का प्रशासन, सरकार का प्रशासन, राजनय, राजनीतिज्ञता
- राजनीतिः—स्त्री॰—राजन्-नीतिः—-—राज्य का प्रशासन, सरकार का प्रशासन, राजनय, राजनीतिज्ञता
- राजनीलम्—नपुं॰—राजन्-नीलम्—-—पन्ना, मरकत मणि
- राजपट्टः—पुं॰—राजन्-पट्टः—-—घटिया हीरा
- राजपथः—स्त्री॰—राजन्-पथः—-—राजमार्ग
- राजपद्धतिः—स्त्री॰—राजन्-पद्धतिः—-—राजमार्ग
- राजपुत्रः—पुं॰—राजन्-पुत्रः—-—राजकुमार, युवराज
- राजपुत्रः—पुं॰—राजन्-पुत्रः—-—क्षत्रिय, सैनिक जाति का पुरुष
- राजपुत्रः—पुं॰—राजन्-पुत्रः—-—बुधग्रह
- राजपुत्री—स्त्री॰—राजन्-पुत्री—-—राजकुमारी
- राजपुरुषः—पुं॰—राजन्-पुरुषः—-—राजा का सेवक
- राजपुरुषः—पुं॰—राजन्-पुरुषः—-—मन्त्री
- राजप्रेष्यः—पुं॰—राजन्-प्रेष्यः—-—राजा का सेवक
- राजप्रेष्यम्—नपुं॰—राजन्-प्रेष्यम्—-—राजा का सेवा
- राजबीजिन्—वि॰—राजन्-बीजिन्—-—राजा की सन्तान, राजवंशज
- राजवंश्य—वि॰—राजन्-वंश्य—-—राजा की सन्तान, राजवंशज
- राजभृतः—पुं॰—राजन्-भृतः—-—राजा का सिपाही
- राजभृत्यः—पुं॰—राजन्-भृत्यः—-—राजा का सेवक या मंत्री
- राजभृत्यः—पुं॰—राजन्-भृत्यः—-—कोई सरकारी अधिकारी
- राजभोगः—पुं॰—राजन्-भोगः—-—राजा का भोजन, खाना
- राजभौतः—पुं॰—राजन्-भौतः—-—राजा का विदूषक या हंसोकड़ा
- राजमात्रधरः—पुं॰—राजन्-मात्रधरः—-—राजा की सलाहकर
- राजमन्त्रिन्—पुं॰—राजन्-मन्त्रिन्—-—राजा की सलाहकर
- राजमार्गः—पुं॰—राजन्-मार्गः—-—मुख्य मार्ग, मुख्य सड़क, राजकीय या मुख्य पथ, मुख्य रास्ता या प्रधान मार्ग
- राजमार्गः—पुं॰—राजन्-मार्गः—-—राजाओं की कार्य-विधि प्रणाली, या रीति
- राजमुद्रा—स्त्री॰—राजन्-मुद्रा—-—राजा की मोहर
- राजयक्ष्मन्—पुं॰—राजन्-यक्ष्मन्—-—क्षयरोग, फुफ्फुसीय क्षयरोग, तपेदिक
- राजयानम्—नपुं॰—राजन्-यानम्—-—राजा की सवारी, पालकी
- राजयोगः—पुं॰—राजन्-योगः—-—जन्म के समय ग्रहों और नक्षत्रों का ऐसा संरूपण जिससे उस व्यक्ति के राजा होने का संकेत मिले
- राजयोगः—पुं॰—राजन्-योगः—-—धार्मिक चिन्तन का एक सरल योग (राजाओं द्वारा अभ्यास करने योग्य) जो हठ योग
- राजरङ्गम्—नपुं॰—राजन्-रङ्गम्—-—चाँदी
- राजराजः—पुं॰—राजन्-राजः—-—प्रमुख राजा, सर्वोपरि प्रभु, सम्राट्
- राजराजः—पुं॰—राजन्-राजः—-—कुबेर का नाम
- राजराजः—पुं॰—राजन्-राजः—-—चन्द्रमा
- राजरीतिः—स्त्री॰—राजन्-रीतिः—-—कांसा, फूल
- राजलक्षणम्—नपुं॰—राजन्-लक्षणम्—-—मनुष्य के शरीर पर कोई ऐसा चिह्न, जो उसकी भावी राजकीयता को प्रकट करे
- राजलक्षणम्—नपुं॰—राजन्-लक्षणम्—-—राजकीय चिह्न, राजचिह्न, राजशक्ति
- राजलक्ष्मीः—स्त्री॰—राजन्-लक्ष्मीः—-—राजा का सौभाग्य या समृद्धि, (देवी का मूर्तरूप) राजा की कीर्ति या महिमा
- राजश्रीः—स्त्री॰—राजन्-श्रीः—-—राजा का सौभाग्य या समृद्धि, (देवी का मूर्तरूप) राजा की कीर्ति या महिमा
- राजवंशः—पुं॰—राजन्-वंशः—-—राजाओं का वशं
- राजवंशावली—स्त्री॰—राजन्-वंशावली—-—राजाओं की वंशावली, राजाओं का वंशविवरण
- राजविद्या—स्त्री॰—राजन्-विद्या—-—`राजकीय नीति' राजा का कौशल. राज्य की नीति, राजनीति
- राजविहारः—पुं॰—राजन्-विहारः—-—राजकीय शिक्षालय
- राजशासनम्—नपुं॰—राजन्-शासनम्—-—राजा का अनुशासन
- राजशृङ्गम्—नपुं॰—राजन्-शृङ्गम्—-—सुनहरी डंडी का राजकीय छाता
- राजसंसद्—स्त्री॰—राजन्-संसद्—-—न्यायालय
- राजसदनम्—नपुं॰—राजन्-सदनम्—-—महल
- राजसर्षपः—पुं॰—राजन्-सर्षपः—-—काली सरसों
- राजसायुज्यम्—नपुं॰—राजन्-सायुज्यम्—-—प्रभुसत्ता
- राजसारसः—पुं॰—राजन्-सारसः—-—मोर
- राजसूयः—पुं॰—राजन्-सूयः—-—एक बृहद यज्ञ जिसका अनुष्ठान चक्रवर्ती राजा (इसमें सहायक राजा लोग भी भाग लेते हैं) इसलिए करते हैं जिससे कि प्रकट हो कि उनका राजतिलक बिना किसी विरोध के सर्वसम्मति से हो रहा है
- राजयम्—नपुं॰—राजन्-यम्—-—एक बृहद यज्ञ जिसका अनुष्ठान चक्रवर्ती राजा (इसमें सहायक राजा लोग भी भाग लेते हैं) इसलिए करते हैं जिससे कि प्रकट हो कि उनका राजतिलक बिना किसी विरोध के सर्वसम्मति से हो रहा है
- राजस्कन्धः—पुं॰—राजन्-स्कन्धः—-—घोड़ा
- राजस्वम्—नपुं॰—राजन्-स्वम्—-—राजकीय संपत्ति
- राजस्वम्—नपुं॰—राजन्-स्वम्—-—राजा को दिया जाने वाला शुल्क, मालगुज़ारी
- राजहंसः—पुं॰—राजन्-हंसः—-—मराल (श्वेत रंग का हंस जिसकी चोंच और टांगे लाल हों)
- राजहस्तिन्—पुं॰—राजन्-हस्तिन्—-—राजकीय हाथी अर्थात् शाही तथा सुन्दर हाथी
- राजन्य—वि॰—-—राजन् + यत्—शाही, राजकीय
- राजन्यः—पुं॰—-—-—क्षत्रिय जाति का पुरुष, राजकीय व्यक्ति
- राजन्यः—पुं॰—-—-—श्रेष्ठ या पूज्य व्यक्ति
- राजन्यकम्—नपुं॰—-—राजन्य + कन्—क्षत्रियों या योद्धाओं का समूह
- राजन्वत्—वि॰—-—राजन् + मतुप्, वत्वम्—न्यायपरायण या उत्तम राजा द्वारा शासित
- राजस—वि॰—-—रजसा निर्मितम्-अण्—रजोगुण से प्रभावित या संबद्ध, रजोगुण से युक्त
- राजसात्—अव्य॰—-—राजन् + साति—राज्य में सम्मिलित या राजा के अधिकार में
- राजिः—स्त्री॰—-—राज् + इन् —धारी, रेखा, पंक्ति, कतार
- राजी—स्त्री॰—-—राज् + ङीप्—धारी, रेखा, पंक्ति, कतार
- राजिका—स्त्री॰—-—राजि + कन्+ टाप्—रेखा, पंक्ति, कतार
- राजिका—स्त्री॰—-—-—खेत
- राजिका—स्त्री॰—-—-—काली सरसों
- राजिका—स्त्री॰—-—-—सरसों (एक परिमाण, तोल)
- राजिलः—पुं॰—-—राज् + इलच्—सांपों की एक सरल जाति जिसमें विष नहीं होता
- राजीवः—पुं॰—-—राजी दलराजी अस्त्यस्य व—एक प्रकार का हरिण
- राजीवः—पुं॰—-—-—सारस
- राजीवः—पुं॰—-—-—हाथी
- राजीवम्—नपुं॰—-—-—नील कमल
- राजीवाक्ष—वि॰—राजीवः-अक्ष—-—कमल जैसी आंखो वाला
- राज्ञी—स्त्री॰—-—राजन् +ङीप्, अकारलोपः—रानी, राजा की पत्नी
- राज्यम्—नपुं॰—-—राज्ञो भावः कर्म वा, राजन् + यत्, नलोपः—राजकीयता, प्रभुसत्ता, राजकीय अधिकार
- राज्यम्—नपुं॰—-—-—राजधानी, राज्य, साम्राज्य
- राज्यम्—नपुं॰—-—-—हकूमत, राज्य, शासन, राज्य का प्रशासन
- राज्याङ्गम्—नपुं॰—राज्यम्-अङ्गम्—-—राज्य का संविधायी सदस्य, राजप्रशासन की आवश्यक सामग्री, यह बहुधा सात बतलाई जाती हैं
- राज्याधिकारः—पुं॰—राज्यम्-अधिकारः—-—राज्य पर अधिकार
- राज्याधिकारः—पुं॰—राज्यम्-अधिकारः—-—प्रभुसत्ता का अधिकार
- राज्यापहरणम्—नपुं॰—राज्यम्-अपहरणम्—-—हड़पना, बलाद् ग्रहण करना
- राज्याभिषेकः—पुं॰—राज्यम्-अभिषेकः—-—राजा का राजतिलक या सिंहासनारोहण
- राज्यकरः—पुं॰—राज्यम्-करः—-—वह शुक्ल जो एक अधीनस्थ राजा द्वारा दिया जाता है
- राज्यच्युत—वि॰—राज्यम्-च्युत—-—गद्दी से उतारा हुआ, सिंहासनच्युत
- राज्यतन्त्रम्—नपुं॰—राज्यम्-तन्त्रम्—-—शासनविज्ञान, प्रशासन पद्धति, राज्य का शासन या प्रशासन
- राज्यधुरा—स्त्री॰—राज्यम्-धुरा—-—शासन का जुआ, सरकार का उत्तरदायित्व या प्रशासन
- राज्यभारः—पुं॰—राज्यम्-भारः—-—शासन का जुआ, सरकार का उत्तरदायित्व या प्रशासन
- राज्यभङ्गः—पुं॰—राज्यम्-भङ्गः—-—प्रभुसत्ता का विनाश
- राज्यलोभः—पुं॰—राज्यम्-लोभः—-—उपनिवेश बनाने की इच्छा, प्रादेशिक वृद्धि की इच्छा
- राज्यव्यवहारः—पुं॰—राज्यम्-व्यवहारः—-—प्रशासन, सरकारी काम-काज
- राज्यसुखम्—नपुं॰—राज्यम्-सुखम्—-—राजकीय, माधुर्य
- राढा—स्त्री॰—-—-—आभा
- राढा—स्त्री॰—-—-—बंगाल के जिले का नाम, उसकी राजधानी
- रात्रिः—स्त्री॰—-—राति सुखं भयं वा रा + त्रिप्—रात
- रात्री—स्त्री॰—-—राति सुखं भयं वा रा + ङीप्—रात
- रात्र्यटः—पुं॰—रात्रिःअटः—-—बेताल, पिशाच, भूत-प्रेत
- रात्र्यटः—पुं॰—रात्रिःअटः—-—चोर
- रात्र्यन्धः—वि॰—रात्रिःअन्ध—-—जिसे रात को दिखाई न दे
- रात्रिकरः—पुं॰—रात्रिःकरः—-—चन्द्रमा
- रात्रिचरः—पुं॰—रात्रिःचरः—-—निशाचर, डाकू, चोर
- रात्रिचरः—पुं॰—रात्रिःचरः—-—पहरेदार, आरक्षी, चौकीदार
- रात्रिचरः—पुं॰—रात्रिःचरः—-—पिशाच, भूत, प्रेत
- रात्रिचर्या—स्त्री॰—रात्रिःचर्या—-—रात में इधर उधर घूमना
- रात्रिचर्या—स्त्री॰—रात्रिःचर्या—-—रात को होने वाला कार्य या संस्कार
- रात्रिजम्—नपुं॰—रात्रिःजम्—-—तारा, नक्षत्रपुंज
- रात्रिजलम्—नपुं॰—रात्रिःजलम्—-—ओस
- रात्रिजागरः—पुं॰—रात्रिःजागरः—-—रात को पहरा देना, रात को जागते रहना, रात में बैठे रहना
- रात्रिजागरः—पुं॰—रात्रिःजागरः—-—कुत्ता
- रात्रितरा—स्त्री॰—रात्रिःतरा—-—आधी रात, मध्यरात्रि
- रात्रिपुष्पम्—नपुं॰—रात्रिःपुष्पम्—-—कुमुद
- रात्रियोगः—पुं॰—रात्रिःयोगः—-—रात का आ जाना
- रात्रिरक्षः—पुं॰—रात्रिःरक्षः—-—पहरेदार, रखवाला
- रात्रिरक्षकः—पुं॰—रात्रिःरक्षकः—-—पहरेदार, रखवाला
- रात्रिरागः—पुं॰—रात्रिःरागः—-—अंधकार, घना अंधेरा
- रात्रिवासस्—नपुं॰—रात्रिःवासस्—-—रात की वेशभूषा
- रात्रिवासस्—नपुं॰—रात्रिःवासस्—-—अंधकार
- रात्रिविगमः—पुं॰—रात्रिःविगमः—-—रात का अंत, दिन का निकलना, पौ फाटना, प्रभात का प्रकाश
- रात्रिवेदः—पुं॰—रात्रिःवेदः—-—मुर्ग़ा
- रात्रिवेदिन्—पुं॰—रात्रिःवेदिन्—-—मुर्ग़ा
- रात्रिन्दिवम्—अव्य॰,द्व॰ स॰—-—-—रात दिन, लगातार, अनवरत
- रात्रिन्दिवा—अव्य॰,द्व॰ स॰—-—-—रात दिन, लगातार, अनवरत
- रात्रिम्मन्व—वि॰—-—रात्रिम् + मन् + खश्—रात की भांति दिखाई देने वाला (जैसे दुर्दिन या मेघाच्छादित दिन हो)
- राद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—राध् कर्तरि कर्मणि वा क्त—आराधित, प्रसादित, मनाया गया
- राद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कार्यान्वित सम्पन्न, निष्पन्न, अनुष्ठित
- राद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पकाया हुआ, (खाना) राधा हुआ
- राद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—तैयार किया हुआ
- राद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्राप्त किया हुआ, हासिल किया हुआ
- राद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सफल, सौभाग्यशाली, प्रसन्न
- राद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जादू की शक्ति से पूर्ण
- राद्धान्तः—पुं॰—राद्ध-अन्तः—-—सिद्ध या स्थापित तथ्य, प्रदर्शित उपसंहार या सचाई, अन्तिम निर्णय, सिद्धांत, मत
- राद्धान्तित—वि॰—राद्ध-अन्तित—-—प्रदर्शित, प्रमाणों द्वारा स्थापित, तर्कसिद्ध
- राध्—स्वा॰ पर॰ <राध्नोति>,<राद्ध>, इच्छा॰ <रिरात्सति>, परन्तु `मारना चाहता है' के लिए <रत्सति>—-—-—राज़ी करना, मनाना, प्रसन्न करना
- राध्—स्वा॰ पर॰ <राध्नोति>,<राद्ध>, इच्छा॰ <रिरात्सति>, परन्तु `मारना चाहता है' के लिए <रत्सति>—-—-—सम्पन्न करना, कार्यान्वित करना, पूरा करना, अनुष्ठान करना, निष्पन्न करना
- राध्—स्वा॰ पर॰ <राध्नोति>,<राद्ध>, इच्छा॰ <रिरात्सति>, परन्तु `मारना चाहता है' के लिए <रत्सति>—-—-—प्रस्तुत करना, तैयार करना
- राध्—स्वा॰ पर॰ <राध्नोति>,<राद्ध>, इच्छा॰ <रिरात्सति>, परन्तु `मारना चाहता है' के लिए <रत्सति>—-—-—क्षतिग्रस्त करना, नष्ट करना, मार डालना, उखाड़ना
- राध्—दिवा॰ पर॰ <राध्यति>, <राद्ध>—-—-—अनुकूल या दयार्द्र होना
- राध्—दिवा॰ पर॰ <राध्यति>, <राद्ध>—-—-—सम्पन्न, या पुर्ण होना
- राध्—दिवा॰ पर॰ <राध्यति>, <राद्ध>—-—-—सफल होना, कामयाब होना, समृद्ध होना
- राध्—दिवा॰ पर॰ <राध्यति>, <राद्ध>—-—-—तैयार होना
- राध्—दिवा॰ पर॰ <राध्यति>, <राद्ध>—-—-—मार डालना, नष्ट करना
- राध्—दिवा॰ पर॰—-—-—राज़ी करना
- राध्—दिवा॰ पर॰—-—-—सम्पन्न करना, पूरा करना
- अनुराध्—दिवा॰ पर॰—अनु-राध्—-—आराधना करना, पूजा करना, मनाना
- अपराध्—दिवा॰ पर॰—अप-राध्—-—रुष्ट करना, ठेस पहुँचाना, पाप करना
- अपराध्—दिवा॰ पर॰—अप-राध्—-—चूक जाना, लक्ष्यवेध न कर सकना
- अपराध्—दिवा॰ पर॰—अप-राध्—-—सताना, चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना
- आराध्—दिवा॰ पर॰—आ-राध्—-—आराधना करना
- आराध्—दिवा॰ पर॰—आ-राध्—-—राज़ी करना, मनाना, प्रसन्न करना
- आराध्—दिवा॰ पर॰—आ-राध्—-—पूजा करना, सेवा करना
- विराध्—दिवा॰ पर॰—वि-राध्—-—चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, रुष्ट करना, ठेस पहुँचाना
- राधः—पुं॰—-—राधा विशाखा तद्वती पौर्णमासी राधी, सा अस्मिन् अस्ति- राधी + अण्—वैशाख का महीना
- राधा—स्त्री॰—-—राध्नोति साधयति कार्याणि- राध् + अच् + टाप्—समृद्धि, सफलता
- राधा—स्त्री॰—-—-—प्रसिद्ध गोपिका जिस पर कृष्ण भगवान् का बड़ा अनुराग था
- राधा—स्त्री॰—-—-—अधिरथ की पत्नी तथा कर्ण की पालिका माता का नाम
- राधा—स्त्री॰—-—-—विशाखा नाम का नक्षत्र
- राधा—स्त्री॰—-—-—बिजली
- राधिका—स्त्री॰—-—-—समृद्धि, सफलता
- राधिका—स्त्री॰—-—-—प्रसिद्ध गोपिका जिस पर कृष्ण भगवान् का बड़ा अनुराग था
- राधिका—स्त्री॰—-—-—अधिरथ की पत्नी तथा कर्ण की पालिका माता का नाम
- राधिका—स्त्री॰—-—-—विशाखा नाम का नक्षत्र
- राधिका—स्त्री॰—-—-—बिजली
- राधेयः—पुं॰—-—राधा + ढक्—कर्ण का विशेषण
- राम—वि॰—-—रम् कर्तरि घञ्, ण वा—सुहावना, आनंदप्रद, हर्षदायक
- राम—वि॰—-—रम् कर्तरि घञ्, ण वा—सुन्दर, प्रिय, मनोहर
- राम—वि॰—-—रम् कर्तरि घञ्, ण वा—मलिन, धूमिल, काला
- राम—वि॰—-—रम् कर्तरि घञ्, ण वा—श्वेत
- रामः—पुं॰—-—रम् कर्तरि घञ्, ण वा—जमदग्नि का पुत्र परशुराम
- रामः—पुं॰—-—रम् कर्तरि घञ्, ण वा—वसुदेव का पुत्र बलराम जो कृष्ण का भाई था
- रामः—पुं॰—-—रम् कर्तरि घञ्, ण वा—दशरथ और कौशल्या का पुत्र रामचन्द्र या सीताराम, रामायण का नायक
- रामायणम्—नपुं॰—रामः-अयनम्—-—राम के साहसिक कार्य
- रामायणम्—नपुं॰—रामः-अयनम्—-—वाल्मीकिप्रणीत एक प्रसिद्ध महाकाव्य जिस में सात काण्ड तथा २४००० श्लोक हैं
- रामगिरिः—पुं॰—रामः-गिरिः—-—एक पहाड़ का नाम
- रामचन्द्रः—पुं॰—रामः-चन्द्रः—-—दशरथ के पुत्र का नाम
- रामभद्रः—पुं॰—रामः-भद्रः—-—दशरथ के पुत्र का नाम
- रामदूतः—पुं॰—रामः-दूतः—-—हनुमान् का नाम
- रामनवमी—स्त्री॰—रामः-नवमी—-—चैत्रशुक्ला नवमी, राम की जयंती
- रामसेतुः—पुं॰—रामः-सेतुः—-—‘राम का पुल’ भारत और लंका को मिलाने वाला रेत का पुल जिसे आजकल ‘एडम्स ब्रिज’ कहते हैं
- रामठः—पुं॰—-—रम् + अठ, धातोर्वृद्धिः—हींग
- रामठम्—नपुं॰—-—रम् + अठ, धातोर्वृद्धिः—हींग
- रामणीयक—वि॰—-—रमणीय + वुञ्—प्रिय, सुन्दर सुखद
- रामणीयकम्—नपुं॰—-—-—प्रियता, सौन्दर्य
- रामा—स्त्री॰—-—रमतेऽनया रम् करणे घञ्—सुन्दरी स्त्री, मनोहारिणी तरुणी
- रामा—स्त्री॰—-—-—प्रिया, पत्नी, गृहस्वामिनी @ रघु॰ १२/२३, १४/२७
- रामा—स्त्री॰—-—-—स्त्री
- रामा—स्त्री॰—-—-—नीचे जाति की स्त्री
- रामा—स्त्री॰—-—-—सिंदूर
- रामा—स्त्री॰—-—-—हींग
- राम्भः—पुं॰—-—रम्भा + अण्—बाँस की लाठी जिसे ब्रह्मचारी या संन्यासी रखते हैं
- रावः—पुं॰—-—रु + घञ्—क्रन्दन, चीत्कार, चीख, दहाड़, किसी जानवर की चिंघाड़
- रावः—पुं॰—-—-—शब्द, ध्वनि
- रावण—वि॰—-—रावयति भीषयति सर्वान् - रु + णिच् + ल्युट्—क्रन्दन करने वाला, चीखने वाला, दहाड़ने वाला, शोक के कारण रोने धोने वाला
- रावणः—पुं॰—-—-—एक प्रसिद्ध राक्षस, लंका का राजा, राक्षसों का मुखिया
- रावणिः—पुं॰—-—रावणस्यापत्यम्-इञ्—इन्द्रजित् का नाम
- रावणिः—पुं॰—-—-—रावण का कोई पुत्र
- राशिः—पुं॰—-—अश्नुते व्याप्नोति-अश् + इञ्, धातोरुडागमच्स—ढेर, अंबार, संग्रह, परिणाम, समुदाय
- राशिः—पुं॰—-—-—अकं या संख्याएं जो अंकगणित की किसी विशेष प्रकिया के लिए प्रयुक्त की जायँ (जैसे जोड़ना, गुणा करना आदि)
- राशिः—पुं॰—-—-—ज्योतिश्चक्र, बारह राशियाँ
- राश्यधिपः—पुं॰—राशिः-अधिपः—-—कुण्डली में किसी विशेष घर का स्वामी
- राशिचक्रम्—नपुं॰—राशिः-चक्रम्—-—तारामण्डल, बारह राशियाँ
- राशित्रयम्—नपुं॰—राशिः-त्रयम्—-—त्रैराशिक गणित
- राशिभागः—पुं॰—राशिः-भागः—-—किसी राशि का भाग या अंश
- राशिभोगः—पुं॰—राशिः-भोगः—-—सूर्य, चन्द्रमा आदि ग्रहों का राशिचक्र में से होकर मार्ग अर्थात् किसी ग्रह का किसी राशि पर रहने का काल
- राष्ट्रम्—नपुं॰—-—राज् + ष्ट्रन्—राज्य, देश, साम्राज्य
- राष्ट्रम्—नपुं॰—-—-—जिला, प्रदेश, देश, मण्डल जैसा कि ‘महाराष्ट्र’ में
- राष्ट्रम्—नपुं॰—-—-—अधिवासी, जनता, प्रजा
- राष्ट्रम्—नपुं॰—-—-—कोई राष्ट्रीय या सार्वजनिक संकट
- राष्ट्रः—पुं॰—-—-—कोई राष्ट्रीय या सार्वजनिक संकट
- राष्ट्रिकः—पुं॰—-—राष्ट्र + ठक्—किसी राज्य या देश का वासी
- राष्ट्रिकः—पुं॰—-—-—किसी राज्य का शासक, राज्यपाल
- राष्ट्रिय—वि॰—-—राष्ट्रे भवः ध—राज्य से स्म्बन्ध रखने वाला
- राष्ट्रियः—पुं॰—-—-—राज्य का शासक, राजा
- राष्ट्रियः—पुं॰—-—-—राजा ला साला (रानी का भाई)
- रास्—भ्वा॰ आ॰ <रासते>—-—-—क्रंदन करना, चिल्लाना, किलकिलाना, शब्द करना, हूहू करना
- रासः—पुं॰—-—रास् + घञ्—होहल्ला, कोलाहल, शोरगुल
- रासः—पुं॰—-—-—शब्द, ध्वनि
- रासः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का नाच जिसका अभ्यास, कृष्ण और गोपिकाएं करती थीं, विशेषतः वृन्दावन की गोपियाँ
- रासक्रीडा—स्त्री॰—रासः-क्रीडा—-—क्रीडामूलक नाच, कृष्ण और वृन्दावन की गोपिकाओं का वर्तुलाकार नाच
- रासमण्डलम्—नपुं॰—रासः-मण्डलम्—-—क्रीडामूलक नाच, कृष्ण और वृन्दावन की गोपिकाओं का वर्तुलाकार नाच
- रासकम्—नपुं॰—-—रास +कन्—एक प्रकार का छोटा नाटक
- रासभः—पुं॰—-—रासेः अभाच्—गधा, गर्दभ
- राहित्यम्—नपुं॰—-—रहित + ष्यञ्—बिना किसी वस्तु के रहना, अभाव, किसी वस्तु का न होना
- राहुः—पुं॰—-—रह् + उण्—एक राक्षस का नाम, विप्रचित्त और सिंहिका का पुत्र, इसीलिए कई बार यह सैंहिकेय कहलाता है
- राहुग्रसनम्—नपुं॰—राहुः-ग्रसनम्—-—(चाँद या सूर्य का) ग्रहण
- राहुग्रासः—पुं॰—राहुः-ग्रासः—-—(चाँद या सूर्य का) ग्रहण
- राहुदर्शनम्—नपुं॰—राहुः-दर्शनम्—-—(चाँद या सूर्य का) ग्रहण
- राहुसंस्पर्शः—पुं॰—राहुः-संस्पर्शः—-—(चाँद या सूर्य का) ग्रहण
- राहुसूतकम्—नपुं॰—राहुः-सूतकम्—-—राहु का जन्म अर्थात् (चाँद या सूर्य का) ग्रहण
- रि—तुदा॰ पर॰ <रियति>,<रीण>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- रि—क्र्या॰ उभ॰—-—-—टपकना, बूंद-बूंद गिरना, रिसना, पसीजना, बहना
- रि—क्र्या॰ उभ॰—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- रि—क्र्या॰ उभ॰—-—-—चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, मार डालना
- रि—क्र्या॰ उभ॰—-—-—हू हू करना
- रिक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—रिच् + क्त—खाली किया गया, साफ किया गया, रिताया गया
- रिक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खाली, शून्य
- रिक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—से रहित, वञ्चित, के बिना
- रिक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खोखला किया गया (जैसे हाथ की अंजलि)
- रिक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दरिद्र
- रिक्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विभक्त, वियुक्त
- रिक्तम्—नपुं॰—-—-—खाली स्थान, शून्यक निर्वातता
- रिक्तम्—नपुं॰—-—-—जंगल, उजाड़, बियाबान
- रिक्तपाणि—वि॰—रिक्त-पाणि—-—खाली हाथ वाला, (फूल आदि के) उपहार से रहित
- रिक्तहस्त—वि॰—रिक्त-हस्त—-—खाली हाथ वाला, (फूल आदि के) उपहार से रहित
- रिक्तक—वि॰—-—रिक्त + कन्—खाली किया गया, साफ किया गया, रिताया गया
- रिक्तक—वि॰—-—रिक्त + कन्—खाली, शून्य
- रिक्तक—वि॰—-—रिक्त + कन्—से रहित, वञ्चित, के बिना
- रिक्तक—वि॰—-—रिक्त + कन्—खोखला किया गया (जैसे हाथ की अंजलि)
- रिक्तक—वि॰—-—रिक्त + कन्—दरिद्र
- रिक्तक—वि॰—-—रिक्त + कन्—विभक्त, वियुक्त
- रिक्ता—स्त्री॰—-—रिक्त + टाप्—चान्द्रमास के पक्ष की चतुर्थी, नवमी या चतुर्दशी का दिन
- रिक्थम्—नपुं॰—-—रिच् + थक्—दायभाग, उत्तराधिकार में प्राप्त सम्पत्ति, मरने के पश्चात् विरासत में छोड़ी हुई सम्पत्ति
- रिक्थम्—नपुं॰—-—-—सम्पत्ति धनदौलत, सामान
- रिक्थम्—नपुं॰—-—-—सोना
- रिक्थादः—पुं॰—रिक्थम्-आदः—-—उत्तराधिकारी
- रिक्थग्राहः—पुं॰—रिक्थम्-ग्राहः—-—उत्तराधिकारी
- रिक्थभागिन्—पुं॰—रिक्थम्-भागिन्—-—उत्तराधिकारी
- रिक्थहरः—पुं॰—रिक्थम्-हरः—-—उत्तराधिकारी
- रिक्थहारिन्—पुं॰—रिक्थम्-हारिन्—-—उत्तराधिकारी
- रिङ्ख्—तुदा॰पर॰ <रिङ्खति>—-—-—रेंगना, दबे पाँव चलना
- रिङ्ख्—तुदा॰पर॰ <रिङ्खति>—-—-—मन्दगति से चलना
- रिङ्ग्—तुदा॰पर॰ <रिङ्गति>—-—-—रेंगना, दबे पाँव चलना
- रिङ्ग्—तुदा॰पर॰ <रिङ्गति>—-—-—मन्दगति से चलना
- रिङ्खणम्—नपुं॰—-—रिङ्ख् + ल्युट्—रेंगना, पेट के बल चलना (गुडलियो चलना)
- रिङ्खणम्—नपुं॰—-—-—(सदाचार से) विचलित होना, उन्मार्गगामी होना
- रिङ्गणम्—नपुं॰—-—रिङ्ग् + ल्युट्—रेंगना, पेट के बल चलना (गुडलियो चलना)
- रिङ्गणम्—नपुं॰—-—-—(सदाचार से) विचलित होना, उन्मार्गगामी होना
- रिच्—रुधा॰ उभ॰ <रिणक्ति>,<रिंक्ते>,<रिक्त>—-—-—खाली करना, रिताना, साफ करना, निर्मल करना
- रिच्—रुधा॰ उभ॰ <रिणक्ति>,<रिंक्ते>,<रिक्त>—-—-—वञ्चित करना, विरहित करना
- रिच्—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खाली किया गया, साफ किया गया, रिताया गया
- रिच्—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खाली, शून्य
- रिच्—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—से रहित, वञ्चित, के बिना
- रिच्—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खोखला किया गया (जैसे हाथ की अंजलि)
- रिच्—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दरिद्र
- रिच्—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विभक्त, वियुक्त
- अतिरिच्—रुधा॰ उभ॰—अति-रिच्—-—आगे बढ़ना, प्रगति करना, पीछे छोड़ देना
- उद्रिच्—रुधा॰ उभ॰—उद्-रिच्—-—आगे बढ़ना, पीछे छोड़ देना, प्रगति करना
- उद्रिच्—रुधा॰ उभ॰—उद्-रिच्—-—बढ़ाना, विस्तार करना
- व्यतिरिच्—रुधा॰ उभ॰—व्यति-रिच्—-—बढ़ जाना, पीछे छोड़ना
- रिच्—भ्वा॰ चुरा॰ पर॰<रेचति>,<रेचयति>,<रेचित>—-—-—विभक्त करना, वियुक्त करना, अलग-अलग करना
- रिच्—भ्वा॰ चुरा॰ पर॰—-—-—परित्याग करना, छोड़ना
- रिच्—भ्वा॰ चुरा॰ पर॰—-—-—सम्मिलित होना, मिलना
- आरिच्—भ्वा॰ चुरा॰ पर॰—आ-रिच्—-—सिकोड़ना, खेल-खेल में चलना
- रिटिः—पुं॰—-—रि + टिन्—एक प्रकार का बाजा
- रिटिः—पुं॰—-—-—शिव के एक सेवक (गण) का नाम
- रिपुः—पुं॰—-—रप् + उन्, पृषो॰ इत्वम्—शत्रु, दुश्मन, प्रतिपक्षी
- रिफ्—तुदा॰ पर॰ <रिफति>,<रिफित>—-—-—कटकटाने का शब्द करना
- रिफ्—तुदा॰ पर॰ <रिफति>,<रिफित>—-—-—बुरा भला कहना, कलङ्क लगाना
- रिष्—भ्वा॰ पर॰<रेषति>,<रिष्ट>—-—-—क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना, ठेस पहुँचाना
- रिष्—भ्वा॰ पर॰<रेषति>,<रिष्ट>—-—-—मार डालना, नष्ट करना
- रिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—रिष् + क्त—क्षतिग्रस्त, चोट पहुँचाया हुआ
- रिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अभागा
- रिष्टम्—नपुं॰—-—-—उत्पात, क्षति, ठेस
- रिष्टम्—नपुं॰—-—-—बदकिस्मत, दुर्भाग्य
- रिष्टम्—नपुं॰—-—-—विनाश, हानि
- रिष्टम्—नपुं॰—-—-—पाप
- रिष्टम्—नपुं॰—-—-—सौभाग्य, समृद्धि
- रिष्टिः—नपुं॰—-—रिष् + क्तिन्—उत्पात, क्षति, ठेस
- रिष्टिः—नपुं॰—-—रिष् + क्तिन्—बदकिस्मत, दुर्भाग्य
- रिष्टिः—नपुं॰—-—रिष् + क्तिन्—विनाश, हानि
- रिष्टिः—नपुं॰—-—रिष् + क्तिन्—पाप
- रिष्टिः—नपुं॰—-—रिष् + क्तिन्—सौभाग्य, समृद्धि
- रिष्टिः—पुं॰ —-—-—तलवार
- री—दिवा॰ आ॰ <रीयते>—-—-—टपकना, बूंद-बूंद गिरना, रिसना, पसीजना, बहना
- री—क्र्या॰ उभ॰ <रिणाति>,<रिणीते>, <रीण>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- री—क्र्या॰ उभ॰ <रिणाति>,<रिणीते>, <रीण>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, मार डालना
- री—क्र्या॰ उभ॰ <रिणाति>,<रिणीते>, <रीण>—-—-—हू हू करना
- रीज्या—स्त्री॰—-—-—निन्दा, झिड़की, कलंक
- रीज्या—स्त्री॰—-—-—शर्म, हया
- रीढकः—पुं॰—-—-—मेरु दण्ड, रीढ की हड्डी
- रीढा—स्त्री॰—-—रिह् + क्त + टाप्—अनादर, तिरस्कार, अपमान
- रीण—भू॰ क॰ कृ॰—-—री + क्त—टपका हुआ, बहा हुआ, बूँद-बुँद करके गिरा हुआ
- रीतिः—स्त्री॰—-—री + क्तिन्—हिलना-जुलना, बहना
- रीतिः—स्त्री॰—-—-—गति, क्रम
- रीतिः—स्त्री॰—-—-—धारा, नदी
- रीतिः—स्त्री॰—-—-—रेखा, सीमा
- रीतिः—स्त्री॰—-—-—प्रणाली, ढंग, तरीक़ा, मार्ग, शैली, विधा, प्रक्रिया
- रीतिः—स्त्री॰—-—-—रिवाज, प्रथा, प्रचलन
- रीतिः—स्त्री॰—-—-—शैली, वाक्यविन्यास
- रीतिः—स्त्री॰—-—-—पीतल, कांसा (इस अर्थ में ‘रीति’ भी)
- रीतिः—स्त्री॰—-—-—लोहे का जंग, मुर्चा
- रीतिः—स्त्री॰—-—-—धातु के तल पर लगा जारेय
- रु—अदा॰ पर॰ <रीति>,<रवीति>,<रुत>—-—-—क्रंदन करना, हूहू करना, चिल्लाना, चीख़ना, जोर से बोलना, दहाड़ना (मक्खियों का) भनभनाना शब्द करना,
- विरु—अदा॰ पर॰ —वि-रु—-—क्रंदन करना, विलाप करना, शोक में रोना
- विरु—अदा॰ पर॰ —वि-रु—-—कोलाहल करना, शोर मचाना
- रुक्म—वि॰—-—रुच् + मन्, नि॰ कुत्वम्—उज्ज्वल, चमकदार
- रुक्मः—पुं॰—-—-—सोने का आभूषण
- रुक्मम्—नपुं॰—-—-—सोना
- रुक्मम्—नपुं॰—-—-—लोहा
- रुक्मकारकः—पुं॰—रुक्म-कारकः—-—सुनार
- रुक्मपृष्ठक—वि॰—रुक्म-पृष्ठक—-—सोने के मुलम्मे से युक्त, सोना चढ़ा हुआ
- रुक्मवाहनः—पुं॰—रुक्म-वाहनः—-—द्रोणाचार्य का नामान्तर
- रुक्मिन्—पुं॰—-—रुक्म + इनि—भीष्मक के ज्येष्ठ पुत्र तथा रुक्मिणी के भाई का नाम
- रुक्मिणी—स्त्री॰—-—रुक्मिन् + ङीप्—विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री का नाम
- रुक्ष—वि॰—-—रुक्ष् + अच्—खुरदरा, कठोर, (स्पर्श या शब्द आदि) जो मृदु न हो, रूखा
- रुक्ष—वि॰—-—रुक्ष् + अच्—कसैला (स्वाद)
- रुक्ष—वि॰—-—रुक्ष् + अच्—ऊबड़-खाबड़, असम, कठिन, कर्कश
- रुक्ष—वि॰—-—रुक्ष् + अच्—दूषित, मलिन, मैला
- रुक्ष—वि॰—-—रुक्ष् + अच्—क्रूर, निर्दय, कठोर
- रुक्ष—वि॰—-—रुक्ष् + अच्—नीरस, भुना हुआ, सूखा, वीरान
- रुग्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—रुज् + क्त—टूटा हुआ, नष्ट भ्रष्ट
- रुग्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—व्यर्थीकृत
- रुग्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—झुका हुआ,वक्रीकृत
- रुग्ण—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—क्षतिग्रस्त, चोट पहुँचाया हुआ
- रुग्ण—वि॰—-—-—रोगी, बीमार
- रुग्णरय—वि॰—रुग्ण-रय—-—जिसका आक्रमण रोक दिया गया हो, जिसका धावा विफल कर दिया गया हो
- रुच्—भ्वा॰ आ॰ <रोचते>,<रुचित>—-—-—चमकाना, सुन्दर या शानदार दिखलाई देना, जगमगाना
- रुच्—भ्वा॰ आ॰ <रोचते>,<रुचित>—-—-—पसन्द करना, (अन्य व्यक्तियों से) प्रसन्न होना, (वस्तुओं से) प्रसन्न होना, रुचिकर होना
- रुच्—भ्वा॰ आ॰—-—-—पसन्द करना, रुचिकर या सुहावना करना
- रुच्—भ्वा॰ आ॰, इच्छा॰ <रुरु>,<रोचिषते>—-—-—पसन्द करने की इच्छा करना
- अभिरुच्—भ्वा॰ आ॰—अभि-रुच्—-—पसन्द करना, रुचिकर होना
- प्ररुच्—भ्वा॰ आ॰—प्र-रुच्—-—बहुत चमकना
- प्ररुच्—भ्वा॰ आ॰—प्र-रुच्—-—पसन्द किया जाना,
- प्ररुच्—वि॰—प्र-रुच्—-—चमकना, जगमगाना
- रुच—स्त्री॰—-—रुच् +क्विप्—प्रकाश, कान्ति, उज्ज्वलता
- रुच—स्त्री॰—-—-—रङ्ग, छबि (समास के अन्त में)
- रुच—स्त्री॰—-—-—अभिरुचि, इच्छा
- रुचा—स्त्री॰—-—रुच् + टाप्—प्रकाश, कान्ति, उज्ज्वलता
- रुचा—स्त्री॰—-—-—रङ्ग, छबि (समास के अन्त में)
- रुचा—स्त्री॰—-—-—अभिरुचि, इच्छा
- रुचक—वि॰—-—रुच् + क्वुन्—रुचिकर, सुखद
- रुचक—वि॰—-—-—क्षुधावर्धक या भूखबढ़ाने वाली (औषधि)
- रुचक—वि॰—-—-—तीक्ष्ण, चर्परा
- रुचकः—पुं॰—-—-—नीबू
- रुचकः—पुं॰—-—-—कबूतर
- रुचकम्—नपुं॰—-—-—दाँत
- रुचकम्—नपुं॰—-—-—सोने का आभूषण विशेषकर हार
- रुचकम्—नपुं॰—-—-—पौष्टिक या पाचनशक्तिवर्धक
- रुचकम्—नपुं॰—-—-—माला, हार
- रुचकम्—नपुं॰—-—-—काला नमक
- रुचा—स्त्री॰—-—-—प्रकाश, कान्ति, उज्ज्वलता
- रुचा—स्त्री॰—-—-—रङ्ग, छबि (समास के अन्त में)
- रुचा—स्त्री॰—-—-—अभिरुचि, इच्छा
- रुचिः—स्त्री॰—-—रुच् + कि—प्रकाश, कान्ति, आभा, उज्ज्वलता
- रुचिः—स्त्री॰—-—-—प्रकाश किरण
- रुचिः—स्त्री॰—-—-—छबि, रङ्ग, सौन्दर्य बहुधा समास के अन्त में
- रुचिः—स्त्री॰—-—-—स्वाद, मज़ा
- रुचिः—स्त्री॰—-—-—सुस्वाद, भूख, क्षुधा
- रुचिः—स्त्री॰—-—-—कामना, इच्छा, खुशी
- स्वरुच्या—स्त्री॰—-—-—स्वेच्छा से, खुशी से
- रुचिः—स्त्री॰—-—-—अभिरुचि, स्वाद
- रुचिः—स्त्री॰—-—-—प्रणयोन्माद, किसी की बात में लवलीनता
- रुचिकर—वि॰—रुचि-कर—-—स्वादिष्ट, चटपटा, मज़ेदार
- रुचिकर—वि॰—रुचि-कर—-—इच्छा का उत्तेजक
- रुचिकर—वि॰—रुचि-कर—-—पाचनशक्तिवर्धक, पौष्टिक
- रुचिभर्तृ—पुं॰—रुचि-भर्तृ—-—सूर्य
- रुचिभर्तृ—पुं॰—रुचि-भर्तृ—-—पति
- रुचिर—वि॰—-—रुचिं राति ददाति - रुच् + किरच्—उज्ज्वल, चमकदार, प्रकाशमान, जगमगाता
- रुचिर—वि॰—-—-—स्वादिष्ट, मज़ेदार
- रुचिर—वि॰—-—-—मधुर, ललित
- रुचिर—वि॰—-—-—क्षुधावर्धक या भूख बढ़ाने वाला
- रुचिर—वि॰—-—-—पुष्टिदायक, बलवर्धक
- रुचिरा—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का पीला रंग
- रुचिरा—स्त्री॰—-—-—वृत्तविशेष
- रुचिरम्—नपुं॰—-—-—केसर
- रुचिरम्—नपुं॰—-—-—लौंग
- रुच्य—वि॰—-—रुच् + क्यप्—उज्ज्वल, प्रिय आदि
- रुज्—तुदा॰ पर॰ <रुजति>,<रुग्ण>—-—-—तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े करना, नष्ट करना
- रुज्—तुदा॰ पर॰ <रुजति>,<रुग्ण>—-—-—पीड़ा देना, क्षति पहुँचाना, अस्वस्थ करना, रोगग्रस्त करना
- रुज्—तुदा॰ पर॰ <रुजति>,<रुग्ण>—-—-—झुकना
- रुज्—स्त्री॰—-—रुज् + क्विप्—भंग, अस्थिभंग
- रुज्—स्त्री॰—-—रुज् + क्विप्—पीड़ा, संताप, यातना, वेदना
- रुज्—स्त्री॰—-—रुज् + क्विप्—बीमारी, व्याधि, रोग
- रुज्—स्त्री॰—-—रुज् + क्विप्—थकावट, श्रम, प्रयत्न, कष्ट
- रुक्प्रतिक्रिया—स्त्री॰—रुज्-प्रतिक्रिया—-—प्रतिकार या रोग की चिकित्सा, इलाज, चिकित्सा का व्यवसाय
- रुग्भेषजम्—नपुं॰—रुज्-भेषजम्—-—औषध
- रुक्सद्मन्—नपुं॰—रुज्-सद्मन्—-—विष्ठा, मल
- रुजा—स्त्री॰—-—रुज् + टाप्—भंग, अस्थिभंग
- रुजा—स्त्री॰—-—रुज् + टाप्—पीड़ा, संताप, यातना, वेदना
- रुजा—स्त्री॰—-—रुज् + टाप्—बीमारी, व्याधि, रोग
- रुजा—स्त्री॰—-—रुज् + टाप्—थकावट, श्रम, प्रयत्न, कष्ट
- रुण्डः—पुं॰—-—रुङ् + ड—सिर रहित शरीर, धड़मात्र, कबन्ध
- रुण्डम्—नपुं॰—-—रुण्ड् + अच्—सिर रहित शरीर, धड़मात्र, कबन्ध
- रुतम्—नपुं॰—-—रु + क्त—क्रन्दन, किलकिलाना, दहाड़ना, शब्द करना, कोलाहल, (पक्षियों का) कूजना, (मक्खियों का) भनभनाना
- रुतज्ञः—पुं॰—रुतम्-ज्ञः—-—भविष्यवक्ता, नजूमी
- रुतव्याजः—पुं॰—रुतम्-व्याजः—-—कूट-क्रंदन
- रुतव्याजः—पुं॰—रुतम्-व्याजः—-—स्वांग
- रुद्—अदा॰ पर॰ <रोदिति>, <रुदित>, इच्छा॰ <रुरुदिषति>—-—-—क्रंदन करना, रोना, विलाप करना, शोक मनाना, आँसू बहाना
- रुद्—अदा॰ पर॰ <रोदिति>, <रुदित>, इच्छा॰ <रुरुदिषति>—-—-—हूहू करना, दहाड़ना, चिल्ली मारना
- प्ररुद्—अदा॰ पर॰—प्र-रुद्—-—फूट फूट कर रोना
- रुदनम्—नपुं॰—-—रुद् + ल्युट्—रोना, क्रंदन करना, विलाप करना, शोक में रोना-धोना
- रुदितम्—नपुं॰—-—रुद् + क्त —रोना, क्रंदन करना, विलाप करना, शोक में रोना-धोना
- रुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—रुध् + क्त—अवरुद्ध, बाधायुक्त, विरोधी
- रुद्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—रुध् + क्त—घेरा डाला हुआ, घिरा हुआ, घेरा हुआ
- रुद्र—वि॰—-—रोदिति-रुद् + रक—भयानक, भयंकर, डरावना, भीषण
- रुद्रः—पुं॰—-—-—देवसमूह विशेष, (गिनति में ग्यरह), ऐसा माना जाता है कि शंकर या शिव के ही यह अपकृष्ट रूप हैं, शिव स्वयं इस समूह के मुखिया हैं
- रुद्रः—पुं॰—-—-—शिव का नाम
- रुद्राक्षः—पुं॰—रुद्रः-अक्षः—-—एक प्रकार का वृक्ष
- रुद्राक्षम्—नपुं॰—रुद्रः-अक्षम्—-—इसी वृक्ष के फल के बीज, जिनसे रुद्राक्षमाला बनाई जाती है
- रुद्रावासः—पुं॰—रुद्रः-आवासः—-—रुद्र का निवासस्थल, कैलास पर्वत
- रुद्रावासः—पुं॰—रुद्रः-आवासः—-—वाराणसी
- रुद्रावासः—पुं॰—रुद्रः-आवासः—-—श्मशान
- रुद्राणी—स्त्री॰—-—रुद्र + ङीप्, आनुक्—रुद्र की पत्नी, पार्वती का नामान्तर
- रुध्—रुधा॰ उभ॰ <रुणद्धि>,<रुद्धे>,<रुद्ध>, -इच्छा॰ <रुरुत्सति>,<रुरुत्सते>—-—-—इदं रुणद्धि मां पद्ममन्तःकूजितषट्पदम् @ विक्रम॰ ४/२१, रुद्धालोके नरपतिपथे @ मेघ॰ ३७,९१, प्राणापानगती रुध्वा॰ @ भग॰ ४/२९
- रुध्—रुधा॰ उभ॰ <रुणद्धि>,<रुद्धे>,<रुद्ध>, -इच्छा॰ <रुरुत्सति>,<रुरुत्सते>—-—-—थामना, संधारण करना, (गिरने से) बचाना
- रुध्—रुधा॰ उभ॰ <रुणद्धि>,<रुद्धे>,<रुद्ध>, -इच्छा॰ <रुरुत्सति>,<रुरुत्सते>—-—-—बन्द करना, ताला लगाना, रोकना, भेड़ना, बन्द कर देना
- रुध्—रुधा॰ उभ॰ <रुणद्धि>,<रुद्धे>,<रुद्ध>, -इच्छा॰ <रुरुत्सति>,<रुरुत्सते>—-—-—वांधना, सीमित करना
- रुध्—रुधा॰ उभ॰ <रुणद्धि>,<रुद्धे>,<रुद्ध>, -इच्छा॰ <रुरुत्सति>,<रुरुत्सते>—-—-—घेरा डालना, घेरना, नाकेबन्दी करना
- रुध्—रुधा॰ उभ॰ <रुणद्धि>,<रुद्धे>,<रुद्ध>, -इच्छा॰ <रुरुत्सति>,<रुरुत्सते>—-—-—छिपाना, ढकना, ओझल करना, गुप्तं करना
- रुध्—रुधा॰ उभ॰ <रुणद्धि>,<रुद्धे>,<रुद्ध>, -इच्छा॰ <रुरुत्सति>,<रुरुत्सते>—-—-—अत्याचार करना, सताना, अत्यन्त कष्ट देना
- अनुरुध्—रुधा॰ उभ॰—अनु-रुध्—-—अवेक्षण करना, अभ्यास करना
- अनुरुध्—रुधा॰ उभ॰—अनु-रुध्—-—प्रेम करना, अनुरक्त होना
- अनुरुध्—रुधा॰ उभ॰—अनु-रुध्—-—आज्ञा मानना, अनुसरण करना, अनुरूप होना
- अनुरुध्—रुधा॰ उभ॰—अनु-रुध्—-—स्वीकृति देना, सहमत होना, अनुमोदन करना
- अनुरुध्—रुधा॰ उभ॰—अनु-रुध्—-—प्रेरित करना, दबाव डालना
- अवरुध्—रुधा॰ उभ॰—अव-रुध्—-—रोकना, अटकाना
- अवरुध्—रुधा॰ उभ॰—अव-रुध्—-—बन्दी बनाना, कैद करना, बन्द करना
- अवरुध्—रुधा॰ उभ॰—अव-रुध्—-—घेरा डालना
- उपरुध्—रुधा॰ उभ॰—उप-रुध्—-—अवरुद्ध करना, विघ्न डालना
- उपरुध्—रुधा॰ उभ॰—उप-रुध्—-—तंग करना, दुःखी करना, कष्ट देना
- उपरुध्—रुधा॰ उभ॰—उप-रुध्—-—पार कर लेना, दबा देना
- उपरुध्—रुधा॰ उभ॰—उप-रुध्—-—कैद करना, बन्दी बनाना, नियन्त्रण में रखना
- उपरुध्—रुधा॰ उभ॰—उप-रुध्—-—छिपाना, ढक लेना
- निरुध्—रुधा॰ उभ॰—नि-रुध्—-—अवरुद्ध करना, रोकना, विरोध करना, बन्द करना
- निरुध्—रुधा॰ उभ॰—नि-रुध्—-—बन्दी बनाना, कैद करना
- निरुध्—रुधा॰ उभ॰—नि-रुध्—-—ढकना, छिपाना
- प्रतिरुध्—रुधा॰ उभ॰—प्रति-रुध्—-—अवरुद्ध
- विरुध्—रुधा॰ उभ॰—वि-रुध्—-—विरोध करना, अवरोध करना
- विरुध्—रुधा॰ उभ॰—वि-रुध्—-—विवाद करना, झगड़ना
- विरुध्—रुधा॰ उभ॰—वि-रुध्—-—भिन्नमत का होना
- संरुध्—रुधा॰ उभ॰—सम्-रुध्—-—अवरुद्ध करना, अटकाना, रोकना
- संरुध्—रुधा॰ उभ॰—सम्-रुध्—-—बाधा डालना, रुकावट डालना, रोकना
- संरुध्—रुधा॰ उभ॰—सम्-रुध्—-—दृढ़तापूर्वक थामना, शृंखलाबद्ध करना
- संरुध्—रुधा॰ उभ॰—सम्-रुध्—-—अधिकार में करना, बलात् अभिग्रहण करना, पकड़ना
- रुधिरम्—नपुं॰—-—रुध् +किरच्—लहू
- रुधिरम्—नपुं॰—-—-—जाफरान, केसर
- रुधिरः—पुं॰—-—-—मंगलग्रह
- रुधिराशनः—पुं॰—रुधिरम्-अशनः—-—‘खुन पीने वाला’ राक्षस, भूत-प्रेत
- रुधिरामयः—पुं॰—रुधिरम्-आमयः—-—रक्तश्राव
- रुधिरपायिन्—पुं॰—रुधिरम्-पायिन्—-—पिशाच
- रुरुः—पुं॰—-—रौति रु + क्रुन्—एक प्रकार का हरिण
- रुश्—तुदा॰ पर॰ <रुशति>—-—-—चोट पहुँचाना, जान से मार डालना, नष्ट करना
- रुशत्—वि॰—-—रुश् + शतृ—चोट पहुँचाने वाला, अरुचिकर, (शब्द आदि जो) बुरे लगे
- रुष्—दिवा॰ पर॰ <रुष्यति>, विरलप्रयोग<रुष्यते>,<रुषित>,<रुष्ट>—-—-—रूसना, नाराज होना, क्षुब्ध होना
- रुष्—भ्वा॰ पर॰ <रोषति>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, मार डालना
- रुष्—भ्वा॰ पर॰ <रोषति>—-—-—नाराज करना, सताना
- रुष्—स्त्री॰—-—रुष् + क्विप्—क्रोध, रोष्, गुस्सा
- रुषा—स्त्री॰—-—रुष् + टाप्—क्रोध, रोष्, गुस्सा
- रुह्—भ्वा॰ पर॰ <रोहति>,<रूढ>—-—-—उगना, फूटना, अंकुरित होना, उपजना
- रुह्—भ्वा॰ पर॰ <रोहति>,<रूढ>—-—-—उपजना, विकसित होना, बढ़ना
- रुह्—भ्वा॰ पर॰ <रोहति>,<रूढ>—-—-—उठना, ऊपर चढ़ना, उन्नत होना
- रुह्—भ्वा॰ पर॰ <रोहति>,<रूढ>—-—-—पकना, (व्रण आदि को) स्वस्थ होना
- रुह्—भ्वा॰ पर॰—-—-—उगाना, पौधा लगाना, भूमि में (बीज) बखेरना
- रुह्—भ्वा॰ पर॰—-—-—उठाना, उन्नत करना
- रुह्—भ्वा॰ पर॰—-—-—सौंपना, सुपुर्द करना, देखरेख में देना
- रुह्—भ्वा॰ पर॰—-—-—स्थिर करना, निदेशित करना, जमाना @ रघु॰ ९/२२
- रुह्—भ्वा॰ पर॰, इच्छा॰ <रुरुक्षति>—-—-—उगाने की इच्छा करना
- अधिरुह्—भ्वा॰ पर॰—अधि-रुह्—-—चढ़ना, सवार होना, सवारी करना
- अधिरुह्—भ्वा॰ पर॰—अधि-रुह्—-—उन्नत होना, ऊपर उठाना, बिठाना
- अवरुह्—भ्वा॰ पर॰—अव-रुह्—-—नीचे जाना, उतरना
- आरुह्—भ्वा॰ पर॰—आ-रुह्—-—चढ़ना, सवार होना, पकड़ लेना, सवारी करना
- प्रतिज्ञामारुह् —भ्वा॰ पर॰—-—-—वचन देना, प्रतिज्ञा करना
- तुलामारुह् —भ्वा॰ पर॰—-—-—समानता के स्तर पर होना
- संशयमारुह् —भ्वा॰ पर॰—-—-—जोखिम उठाना, सन्दिग्धावस्था में होना आदि
- आरुह्—भ्वा॰ पर॰—आ-रुह्—-—उन्नत होना, उठाना
- आरुह्—भ्वा॰ पर॰—आ-रुह्—-—रखना, जमाना, निदेशित करना
- आरुह्—भ्वा॰ पर॰—आ-रुह्—-—मढ़ना, थोपना, आरोपित
- आरुह्—भ्वा॰ पर॰—आ-रुह्—-—(धनुष पर) प्रत्यंचा चढ़ाना
- आरुह्—भ्वा॰ पर॰—आ-रुह्—-—नियुक्त करना, कार्य भार सौंपना
- प्ररुह्—भ्वा॰ पर॰—प्र-रुह्—-—उगना, अंकुरित होना
- विरुह्—भ्वा॰ पर॰—वि-रुह्—-—उगना, अंकुर फूटना
- विरुह्—भ्वा॰ पर॰—वि-रुह्—-—(व्रण आदि का) स्वस्थ होना
- संरुह्—भ्वा॰ पर॰—सम्-रुह्—-—उगना
- रुह्—वि॰—-—रुह् + क्विप्—उगा हुआ या उत्पन्न, जैसा कि `महीरुह्' और `पङ्केरुह्' में
- रुह—वि॰—-—रुह् + क्—उगा हुआ या उत्पन्न, जैसा कि `महीरुह्' और `पङ्केरुह्' में
- रुहा—स्त्री॰—-—रुह् + टाप्—दूर्वा घास, दूबड़ा
- रूक्ष—वि॰—-—रूक्ष् + अच्—खुरदरा, कठोर, (स्पर्श या शब्द आदि) जो मृदु न हो, रूखा
- रूक्ष—वि॰—-—-—कसैला (स्वाद)
- रूक्ष—वि॰—-—-—ऊबड़-खाबड़, असम, कठिन, कर्कश
- रूक्ष—वि॰—-—-—दूषित, मलिन, मैला
- रूक्ष—वि॰—-—-—क्रूर, निर्दय, कठोर
- रूक्ष—वि॰—-—-—नीरस, भुना हुआ, सूखा, वीरान
- रूक्षीकृ—वि॰—-—-—ऊबड़-खाबड़ करना, मैला करना, मिट्टी लथेड़ना
- रूक्षणम्—नपुं॰—-—रूक्ष् + ल्युट्—सुखाना, पतला करना
- रूक्षणम्—नपुं॰—-—-—(आयु॰ में) (शरीर की) मेद को घटने की चिकित्सा
- रूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—रुह् + क्त—उगा हुआ, अंकुरित, फूटा हुआ, उपजा हुआ
- रूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जन्मा हुआ, उत्पन्न
- रूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बढ़ा हुआ, वृद्धि को प्राप्त, विकसित
- रूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उठा हुआ, चढ़ा हुआ
- रूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विस्तृत, बड़ा, स्थूलकाय
- रूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विकीर्ण, इधर उधर फैला हुआ
- रूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विदित, ज्ञात, व्यापक
- रूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सर्वजनस्वीकृत, परंपराप्राप्त, प्रचलित, सर्वप्रिय
- रूढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निश्चित, निश्चित किया हुआ
- रूढिः—स्त्री॰—-—रुह् +क्तिन्—उगना, उपजना
- रूढिः—स्त्री॰—-—-—जन्म, पैदायश
- रूढिः—स्त्री॰—-—-—वृद्धि, विकास, वर्धन, प्रवृद्धता
- रूढिः—स्त्री॰—-—-—ऊपर उठाना, चढ़ना
- रूढिः—स्त्री॰—-—-—प्रसिद्धि, ख्याति, बदनामी
- रूढिः—स्त्री॰—-—-—परम्परा, प्रथा, परंपरागत रिवाज
- रूढिः—स्त्री॰—-—-—सामान्य प्रचार, साधारण व्यापकता या प्रचलन
- रूढिः—स्त्री॰—-—-—सर्वमान्य अर्थ, शब्द का प्रचलित अर्थ
- रूप्—चुरा॰ उभ॰ <रूपयति>,<रूपयते>,<रूपित>—-—-—रूप बनाना, गढ़ना
- रूप्—चुरा॰ उभ॰ <रूपयति>,<रूपयते>,<रूपित>—-—-—रूप धर कर रंगमंच पर आना, अभिनय करना, हावभाव प्रदर्शित करना
- रूप्—चुरा॰ उभ॰ <रूपयति>,<रूपयते>,<रूपित>—-—-—चिह्न लगाना, ध्यान पूर्वक पालन करना, देखना, नजर डालना
- रूप्—चुरा॰ उभ॰ <रूपयति>,<रूपयते>,<रूपित>—-—-—मालूम करना, ढूंढना
- रूप्—चुरा॰ उभ॰ <रूपयति>,<रूपयते>,<रूपित>—-—-—खयाल करना, विचार करना
- रूप्—चुरा॰ उभ॰ <रूपयति>,<रूपयते>,<रूपित>—-—-—तय करना, निश्चय करना
- रूप्—चुरा॰ उभ॰ <रूपयति>,<रूपयते>,<रूपित>—-—-—परीक्षा करना, अन्वेषण करना
- रूप्—चुरा॰ उभ॰ <रूपयति>,<रूपयते>,<रूपित>—-—-—नियुक्त करना
- विरूप्—चुरा॰ उभ॰—वि-रूप्—-—विरूपित करना, रूप बिगाड़ना
- रूपम्—नपुं॰—-—रूप् + क, भावे अच् —शक्ल, आकृति, सूरत
- रूपम्—नपुं॰—-—-—रूप या रंग का प्रकार (वैशेषिकों के चौबीस गुणों में एक
- रूपम्—नपुं॰—-—-—कोई भी दृश्य पदार्थ या वस्तु
- रूपम्—नपुं॰—-—-—मनोहर रूप या आकृति, सुन्दर सूरत, सौन्दर्य, लावण्य, लालित्य
- रूपम्—नपुं॰—-—-—स्वाभाविक स्थिति या दशा, प्रकृति, गुण, लक्षण, मूलतत्त्व
- रूपम्—नपुं॰—-—-—ढंग, रीति
- रूपम्—नपुं॰—-—-—चिह्न, चेहरा-मोहरा
- रूपम्—नपुं॰—-—-—प्रकार, भेद, जाति
- रूपम्—नपुं॰—-—-—प्रतिबिम्ब, प्रतिच्छाया
- रूपम्—नपुं॰—-—-—सादृश्य, समरूपता
- रूपम्—नपुं॰—-—-—नमूना, प्रकार, बनत
- रूपम्—नपुं॰—-—-—किसी क्रिया या संज्ञा का व्युत्पन्न रूप, विभक्ति या लकार के चिह्न से युक्त रूप
- रूपम्—नपुं॰—-—-—‘एक की संख्या, गणित की एक इकाई
- रूपम्—नपुं॰—-—-—पूर्णांक
- रूपम्—नपुं॰—-—-—नाटक, खेल
- रूपम्—नपुं॰—-—-—किसी ग्रंथ को बार बार पढ़ कढ़ कर या कंठस्थ करके पारंगत होने की क्रिया
- रूपम्—नपुं॰—-—-—मवेशी
- रूपम्—नपुं॰—-—-—ध्वनि, शब्द
- रुपाधिबोधः—पुं॰—रूपम्-अधिबोधः—-—ज्ञानेन्द्रियों द्वारा किसी पदार्थ के रंग रूप का प्रत्यक्ष करना
- रूपाभिग्राहित—वि॰—रूपम्-अभिग्राहित—-—काम करते हुए पकड़ा गया, मौके पर पकड़ा गया
- रूपाजीवा—स्त्री॰—रूपम्-आजीवा—-—वेश्या, रंडी, गणिका
- रूपाश्रयः—पुं॰—रूपम्-आश्रयः—-—अत्यंत सुन्दर व्यक्ति
- रूपेन्द्रियम्—नपुं॰—रूपम्-इन्द्रियम्—-—आँख, रंगरूप को प्रत्यक्ष करने वाली इन्द्रिय
- रूपोच्चयः—पुं॰—रूपम्-उच्चयः—-—ललित रूपों का समूह
- रूपकारः—पुं॰—रूपम्-कारः—-—मूर्तिकार, शिल्पी
- रूपकृत्—पुं॰—रूपम्-कृत्—-—मूर्तिकार, शिल्पी
- रूपतत्त्वम्—नपुं॰—रूपम्-तत्त्वम्—-—अन्तर्हित गुण, मूलतत्त्व
- रूपधर—वि॰—रूपम्-धर—-—रूप धरे हुए, छद्मवेषी
- रूपनाशनः—पुं॰—रूपम्-नाशनः—-—उल्लू
- रूपलावण्यम्—नपुं॰—रूपम्-लावण्यम्—-—रूप की उत्कृष्टता, चारुता
- रूपविपर्ययः—पुं॰—रूपम्-विपर्ययः—-—विरूपण, शारीरिक रूप में विकृत परिवर्तन
- रूपशालिन्—वि॰—रूपम्-शालिन्—-—सुन्दर
- रूपसम्पद्—स्त्री॰—रूपम्-सम्पद्—-—रूप की उत्कृष्टता, सौन्दर्य की वृद्धि, सौन्दर्यातिरेक
- रूपसम्पत्तिः—स्त्री॰—रूपम्-सम्पत्तिः—-—रूप की उत्कृष्टता, सौन्दर्य की वृद्धि, सौन्दर्यातिरेक
- रूपकः—पुं॰—-—रूप् + ण्वुल्, रूप + कन् —विशेष सिक्का, रूपया
- रूपकम्—नपुं॰—-—-—शक्ल, आकृति, सूरत
- रूपकम्—नपुं॰—-—-—कोई वर्णन या प्रकटीकरण
- रूपकम्—नपुं॰—-—-—चिह्न, चेहरा-मोहरा
- रूपकम्—नपुं॰—-—-—प्रकार, जाति
- रूपकम्—नपुं॰—-—-—नाटक, खेल नाट्यकृति
- रूपकम्—नपुं॰—-—-—(आलं में) अंग्रेजी के मैटाफर के अनुरूप एक अलंकार जिसमें उपमेय को उपमान के ठीक समनुरूप वर्णित किया जाता है
- रूपकम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का तोल
- रूपकतालः—पुं॰—रूपकः-तालः—-—संगीत में विशेष-समय
- रूपकशब्दः—पुं॰—रूपकः-शब्दः—-—आलंकारिक या रूपकोक्ति
- रूपणम्—नपुं॰—-—रूप् + ल्युट्—सारोप वर्णन या आलंकारिक वर्णन
- रूपणम्—नपुं॰—-—-—गवेषण, परीक्षा
- रूपवत्—वि॰—-—रूप + मतुप्, वत्वम्—रंगरूप वाला
- रूपवत्—वि॰—-—-—शारीरिक, दैहिक
- रूपवत्—वि॰—-—-—सशरीर
- रूपवत्—वि॰—-—-—मनोहर, सुन्दर
- रूपवती—स्त्री॰—-—-—सुन्दरी स्त्री
- रूपिन्—वि॰—-—रूप +इनि—के सदृश दिखाई देने वाला
- रूपिन्—वि॰—-—-—सशरीर, मूर्तिमान
- रूपिन्—वि॰—-—-—सुन्दर
- रूप्य—वि॰—-—रूप + यत्—सुन्दर ललित
- रूप्यम्—नपुं॰—-—-—चांदी
- रूप्यम्—नपुं॰—-—-—चांदी (या सोने) का सिक्का, मुद्रांकित सिक्का, रूपया
- रूप्यम्—नपुं॰—-—-—शुद्ध किया हुआ सोना
- रुष्—भ्वा॰ पर॰ <रूषति>, <रूषित>—-—-—अलंकृत करना, सजाना
- रुष्—भ्वा॰ पर॰ <रूषति>, <रूषित>—-—-—पोतना, चुपड़ना, मण्डित करना, लीपना (मिट्टी आदि से)
- रुष्—चुरा॰ उभ॰ <रूषयति>,<रूषयते>—-—-—कांपना
- रुष्—चुरा॰ उभ॰ <रूषयति>,<रूषयते>—-—-—फट जाना
- रूषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—रूष् + क्त—अलंकृत
- रूषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पोता हुआ, ढका हूआ, बिछाया हुआ
- रूषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मिट्टी में लथेड़ा हुआ
- रूषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खुरदरा, ऊबड़ खाबड़
- रूषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कूटा हुआ, चूर्ण किया हुआ
- रे—अव्य॰—-—रा + के—संबोधनात्मक अव्यय
- रेखा—स्त्री॰—-—लिख् + अच् + टाप्, लस्य रः—लकीर, धारी, मदरेखा, दानरेखा, रागरेखा, आदि
- रेखा—स्त्री॰—-—-—लकीर माप, अल्पांश, लकीर इतना
- रेखा—स्त्री॰—-—-—पंक्ति, परास, लकीर, श्रेणी
- रेखा—स्त्री॰—-—-—आलेखन, रूपरेखा
- रेखा—स्त्री॰—-—-—भारतीय ज्योतिषियों की प्रथम याम्योत्तर रेखा जो लंका से उज्जैन होते हुए मेरु पर्वत तक खिंची हुई है
- रेखा—स्त्री॰—-—-—पू्र्णता, सन्तोष
- रेखा—स्त्री॰—-—-—धोखा, जालसाजी
- रेखांशः—पुं॰—रेखा-अंशः—-—रेखांश, द्राघिमांश के घात, देशान्तरीय घात
- रेखान्तरम्—नपुं॰—रेखा-अन्तरम्—-—प्रथम याम्योत्तर रेखा से पूर्व या पश्चिम की दूरी, किसी स्थान का देशान्तर
- रेखाकार—वि॰—रेखा-आकार—-—परम्परा प्राप्त, रेखामय, धारीदार
- रेखागणितम्—नपुं॰—रेखा-गणितम्—-—ज्यामिति
- रेच—वि॰—-—-—रिक्त करने वाला, निर्मल करने वाला
- रेच—वि॰—-—-—दस्तावर, मुलय्यन
- रेच—वि॰—-—-—फेफड़ों को खाली करने वाला, श्वास को बहर फेंकने वाला
- रेचक—वि॰—-—रेचयति रिच् + णिच् + ण्वुल्—रिक्त करने वाला, निर्मल करने वाला
- रेचक—वि॰—-—-—दस्तावर, मुलय्यन
- रेचक—वि॰—-—-—फेफड़ों को खाली करने वाला, श्वास को बहर फेंकने वाला
- रेचिका—स्त्री॰—-—रेचयति रिच् + णिच् + ण्वुल्—रिक्त करने वाला, निर्मल करने वाला
- रेचिका—स्त्री॰—-—-—दस्तावर, मुलय्यन
- रेचिका—स्त्री॰—-—-—फेफड़ों को खाली करने वाला, श्वास को बहर फेंकने वाला
- रेचकः—पुं॰—-—-—श्वास का बाहर निकालना बहिःश्वसन, निःश्वसन विशेष कर एक नथने से
- रेचकः—पुं॰—-—-—वस्तियन्त्र या पिचकारी
- रेचकः—पुं॰—-—-—जवाखार, शोरा
- रेचकम्—नपुं॰—-—-—दस्तावर,विरेचन
- रेचनम्—नपुं॰—-—रिच् + ल्युट्—रिक्त करना
- रेचनम्—नपुं॰—-—रिच् + ल्युट्—घटाना, कम कऱना
- रेचनम्—नपुं॰—-—रिच् + ल्युट्—श्वास का बाहर निकालना
- रेचनम्—नपुं॰—-—रिच् + ल्युट्—निर्मल करना
- रेचनम्—नपुं॰—-—रिच् + ल्युट्—मल बाहर निकालना
- रेचना—स्त्री॰—-—रिच् + ल्युट्+टाप्—रिक्त करना
- रेचना—स्त्री॰—-—रिच् + ल्युट्+टाप्—घटाना, कम कऱना
- रेचना—स्त्री॰—-—रिच् + ल्युट्+टाप्—श्वास का बाहर निकालना
- रेचना—स्त्री॰—-—रिच् + ल्युट्+टाप्—निर्मल करना
- रेचना—स्त्री॰—-—रिच् + ल्युट्+टाप्—मल बाहर निकालना
- रेचित—वि॰—-—रिच् + णिच् + क्त—रिताया गया, साफ किया गया
- रेचितम्—नपुं॰—-—-—घोड़े की दुलकी चाल
- रेणुः—पुं॰—-—रीयतेः णुः नित्—धूल, धूलकण, रेत आदि
- रेणुः—पुं॰—-—-—पराग, पुष्परज
- रेणुका—स्त्री॰—-—रेणु + क + क + टाप्—जमदग्नि की पत्नी तथा परशुराम की माता
- रेतस्—नपुं॰—-—री + असुन्, तुट् च—वीर्य, धातु
- रेप—वि॰—-—रेप् + घञ्—तिरस्करणीय, नीच, अधम
- रेप—वि॰—-—-—क्रूर, निष्ठुर
- रेफ—वि॰—-—रिफ् + अच्—नीच, कमीना, तिरस्करणीय
- रेफः—पुं॰—-—-—कर्कश ध्वनि, गड़गड़ध्वनि
- रेफः—पुं॰—-—-—`र्' वर्ण
- रेफः—पुं॰—-—-—प्रणयोन्माद, अनुराग
- रेवटः—पुं॰—-—-—सूअर
- रेवटः—पुं॰—-—-—बाँस की छड़ी
- रेवटः—पुं॰—-—-—बवंडर
- रेवतः—पुं॰—-—रेव् + अतच्—नींबू का पेड़
- रेवती—स्त्री॰—-—रेवत + ङीष्—सत्ताइंसवां नक्षत्रपुंज जिसमें बत्तीस तारे होते हैं
- रेवती—स्त्री॰—-—-—बलराम की पत्नी का नाम
- रेवा—स्त्री॰—-—रेव् + अच् + टाप्—नर्मदा नदी का नाम
- रेष्—भ्वा॰ आ॰ <रेषते>,<रेषित>—-—-—दहाड़ना, हूहू करना, किलकिलाना
- रेष्—भ्वा॰ आ॰ <रेषते>,<रेषित>—-—-—हिनहिनाना
- रेषणम्—नपुं॰—-—रेष् + ल्युट्—दहाड़ना, हिनहिनाना
- रेषा—स्त्री॰—-—रेष् + अ + टाप्—दहाड़ना, हिनहिनाना
- रै—पुं॰—-—रातेः डैः—दौलत, सम्पत्ति, धन
- रैवतः—पुं॰—-—रेवत्या अदूरो देशः-खेती + अण्=रैवत + कन्—द्वारका के निकट विद्यमान पहाड़
- रैवतकः—पुं॰—-—रेवत्या अदूरो देशः-खेती + अण्=रैवत + कन्—द्वारका के निकट विद्यमान पहाड़
- रोकम्—नपुं॰—-—रु + कन्—छिद्र
- रोकम्—नपुं॰—-—-—नाव, जहाज़
- रोकम्—नपुं॰—-—-—हिलता हुआ, लहराता हुआ
- रोगः—पुं॰—-—रुज् + घञ्—रुजा, बीमारी, व्याधि,मनोव्यथा या आधि, अशक्तता सतांपयन्ति कमपथ्यभुजं न रोगाः @ हि॰ ३/११७, भोगे रोगभयम् @ भर्तृ॰ ३/३५
- रोगायतनम्—नपुं॰—रोगः-आयतनम्—-—शरीर
- रोगार्त—वि॰—रोगः-आर्त—-—रोगग्रस्त, बीमार
- रोगशान्तिः—स्त्री॰—रोगः-शान्तिः—-—रोग का उपशमन या चिकित्सा
- रोगहर—वि॰—रोगः-हर—-—चिकित्सापरक
- रोगहरम्—नपुं॰—रोगः-हरम्—-—औषधि
- रोगहारिन्—वि॰—रोगः-हारिन्—-—चिकित्साविषयक
- रोगहारिन्—पुं॰—रोगः-हारिन्—-—वैद्य, डाक्टर
- रोचक—वि॰—-—रुच् + ण्वुल्—सुखद, रुचिकर
- रोचक—वि॰—-—-—भूख बढ़ाने वाला, क्षुधोत्तेजक
- रोचकम्—नपुं॰—-—-—भूख
- रोचकम्—नपुं॰—-—-—मन्दाग्नि को दूर करने वाली कोई पुष्टि कारक औषधि उद्दीपक, पौष्टिक
- रोचकम्—नपुं॰—-—-—काँच की चूड़ियाँ या अन्य बनावटी आभूषण बनाने वाला
- रोचन—वि॰—-—रुच् + ल्युट्, रोचयति —प्रकाश करने वाला, रोशनी करने वाला, जगमगा देने वाला
- रोचन—वि॰—-—-—उज्ज्वल, शानदार, सुन्दर, प्रिय, सुहावना, रुचिकर
- रोचन—वि॰—-—-—क्षुधावर्धक
- रोचनः—पुं॰—-—-—भूख बढ़ाने वाली औषधि
- रोचनम्—नपुं॰—-—-—उज्ज्वल आकाश, अन्तरिक्ष
- रोचना—स्त्री॰—-—रोचन + टाप्—उज्ज्वल आकाश, अन्तरिक्ष
- रोचना—स्त्री॰—-—-—सुन्दरी स्त्री
- रोचना—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का पीलारंग (गोरचना)
- रोचमान—वि॰—-—रुच् + शानच्—चमकदार, उज्ज्वल
- रोचमान—वि॰—-—-—प्रिय, सुन्दर, मनोहर
- रोचमानम्—नपुं॰—-—-—घोड़े की गर्दन के बालों का गुच्छा
- रोचिष्णु—वि॰—-—रुच् + इष्णुच्—उज्ज्वल, चमकीला, चमकदार, देदीप्यमान
- रोचिष्णु—वि॰—-—-—छैल-छवीला, भड़कीले कपड़ों वाला, प्रफुल्लवदन
- रोचिष्णु—वि॰—-—-—क्षुधावर्धक
- रोचिस्—नपुं॰—-—रुचेः इसिः—प्रकाश, आभा, उज्ज्वलता, ज्वाला
- रोदनम्—नपुं॰—-—रुद् + ल्युट्—रोना
- रोदनम्—नपुं॰—-—-—आंसू
- रोदस्—नपुं॰—-—रुद् + असुन्—आकाश और पृथ्वी
- रोधः—पुं॰—-—रुध् + घञ्—रोकना, पकड़ना, रुकावट डालना
- रोधः—पुं॰—-—-—अवरोधम् ठहराना, बाधा, रोक, प्रतिषेध, दबाना
- रोधः—पुं॰—-—-—बन्द करना, रोकना, नाकेबंदी करना, घेरा डालना
- रोधः—पुं॰—-—-—बाँध
- रोधनः—पुं॰—-—रुध् + ल्युट्—बुधग्रह
- रोधनम्—नपुं॰—-—-—ठहराना, रोकना, बन्दी बनाना, नियन्त्रण, रोक थाम
- रोधस्—नपुं॰—-—रुध् + असुन्—तट, पुश्ता, बाँध
- रोधस्—नपुं॰—-—-—किनारा, ऊंचा तट
- रोधवक्रा—स्त्री॰—रोधस्-वक्रा—-—नदी
- रोधवक्रा—स्त्री॰—रोधस्-वक्रा—-—वेग से बहने वाली नदी
- रोधबती—स्त्री॰—रोधस्-बती—-—नदी
- रोधबती—स्त्री॰—रोधस्-बती—-—वेग से बहने वाली नदी
- रोध्रः—पुं॰—-—रुध् + रन्—एक प्रकार का वृक्ष, लोध्रवृक्ष
- रोध्रः—पुं॰—-—-—पाप
- रोध्रम्—नपुं॰—-—-—पाप
- रोध्रम्—नपुं॰—-—-—अपराध, क्षति
- रोपः—पुं॰—-—रुह + णिच् + अच्, हस्य पः—उगाना, बोना
- रोपः—पुं॰—-—-—पौधा लगाना
- रोपः—पुं॰—-—-—बाण
- रोपः—पुं॰—-—-—छिद्र, गह्वर
- रोपणम्—नपुं॰—-—रुह + णिच् + ल्युट्, हस्य पः—सीधा खड़ा करना, जमाना, उठाना
- रोपणम्—नपुं॰—-—-—पौधा लगाना
- रोपणम्—नपुं॰—-—-—स्वस्थ होना
- रोपणम्—नपुं॰—-—-—(व्रण आदि पर) स्वस्थप्रद औषध का प्रयोग
- रोमकः—पुं॰—-—रोमन् + कन्—रोम नाम का नगर
- रोमकः—पुं॰—-—-—रोमवासी, रोम नगर का निवासी
- रोमकपत्तनम्—नपुं॰—रोमकः-पत्तनम्—-—रोम नगर
- रोमकसिद्धान्तः—पुं॰—रोमकः-सिद्धान्तः—-—पाँच मुख्य सिद्धान्तों में से एक
- रोमन्—नपुं॰—-—रु + मनिन्—मनुष्य और अन्य जीव जंतुओं के शरीर पर होने वाले बाल, विशेषतः, छोटे-छोटे बाल, कड़े बाल
- रोमाङ्कः—पुं॰—रोमन्-अङ्कः—-—बाल का चिह्न
- रोमाञ्चः—पुं॰—रोमन्-अञ्चः—-—(हर्षातिरेक, बिभीषिका या आश्चर्य आदि में) पुलक, रोंगटे खड़े होना
- रोमाञ्चित—वि॰—रोमन्-अञ्चित—-—हर्ष के कारण पुलकित
- रोमान्तः—पुं॰—रोमन्-अन्तः—-—हथेली की पीठ पर के बाल
- रोमाली—स्त्री॰—रोमन्-आली—-—रोमों की पंक्ति जो पेट पर ठीक नाभि के ऊपर को गई हो
- रोमावलिः—स्त्री॰—रोमन्-आवलिः—-—रोमों की पंक्ति जो पेट पर ठीक नाभि के ऊपर को गई हो
- रोमली—स्त्री॰—रोमन्-ली—-—रोमों की पंक्ति जो पेट पर ठीक नाभि के ऊपर को गई हो
- रोमोद्गमः—पुं॰—रोमन्-उद्गमः—-—(शरीर पर) बालों का खड़ा होना, पुलक, रोमांच
- रोमोद्भेदः—पुं॰—रोमन्-उद्भेदः—-—(शरीर पर) बालों का खड़ा होना, पुलक, रोमांच
- रोमकूपः—पुं॰—रोमन्-कूपः—-—चमड़ी के ऊपर के छिद्र जिनमें रोम उगे हों, लोमछिद्र
- रोमकूपम्—नपुं॰—रोमन्-कूपम्—-—चमड़ी के ऊपर के छिद्र जिनमें रोम उगे हों, लोमछिद्र
- रोमगर्तः—पुं॰—रोमन्-गर्तः—-—चमड़ी के ऊपर के छिद्र जिनमें रोम उगे हों, लोमछिद्र
- रोमकेशरम्—नपुं॰—रोमन्-केशरम्—-—मुरछल, चंवर
- रोमकेसरम्—नपुं॰—रोमन्-केसरम्—-—मुरछल, चंवर
- रोमपुलकः—पुं॰—रोमन्-पुलकः—-—रोंगटे खड़े होना, हर्षातिरेक
- रोमभूमिः—पुं॰—रोमन्-भूमिः—-—‘बालों का स्थान’ अर्थात् खाल, चमड़ी
- रोमरन्ध्रम्—नपुं॰—रोमन्-रन्ध्रम्—-—रोमकूप
- रोमराजिः—स्त्री॰—रोमन्-राजिः—-—पेट पर ठीक नाभि के ऊपर रोमावली
- रोमजी—स्त्री॰—रोमन्-जी—-—पेट पर ठीक नाभि के ऊपर रोमावली
- रोमलता—स्त्री॰—रोमन्-लता—-—पेट पर ठीक नाभि के ऊपर रोमावली
- रोमविकारः—पुं॰—रोमन्-विकारः—-—पुलक, रोमांच
- रोमविक्रिया—स्त्री॰—रोमन्-विक्रिया—-—पुलक, रोमांच
- रोमविभे़दः—पुं॰—रोमन्-विभे़दः—-—पुलक, रोमांच
- रोमहर्षः—पुं॰—रोमन्-हर्षः—-—बालों या रोंगटों का खड़े होना, पुलक
- रोमहर्षण—वि॰—रोमन्-हर्षण—-—पुलक या रोमांच करने वाला, रोगंटे खड़े कर देने वाला, विस्मयोत्पादक
- रोमहर्षणः—पुं॰—रोमन्-हर्षणः—-—सूत का नामान्तर, व्यास का एक शिष्य जिसने शौनकमुनि को कई पुराण सुनाये थे
- रोमहर्षणम्—नपुं॰—रोमन्-हर्षणम्—-—शरीर पर रोंगटे खड़े होना, पुलक
- रोमन्थः—पुं॰—-—रोगं मध्नाति-मन्थ् + अण्, पृषो॰ गलोपः—जुगाली करना, खाये हुए घास को चर्वण करना
- रोमन्थः—पुं॰—-—-—(अतः) लगातार पिष्टपेषण
- रोमश—वि॰—-—रोमाणि सन्त्यस्य श—बालों वाला, बहुत से रोओं से युक्त, पशमदार या ऊर्णामय
- रोमशः—पुं॰—-—-—भेड़, मेंढा
- रोमशः—पुं॰—-—-—कुत्ता, सूअर
- रोरुदा—स्त्री॰—-—रुद् + यङ् + अ + टाप्—प्रचंडक्रंदन, अत्यन्त विलाप
- रोलम्बः—पुं॰—-—रो + लम्ब् + अच्—भौंरा
- रोषः—पुं॰—-—रुष् + घञ्—क्रोध, कोप, गुस्सा
- रोषण—वि॰—-—रुष् + युच्—क्रोधी, चिड़चिड़ा, गुस्सैल, आवेशी
- रोषणः—पुं॰—-—-—कसौटी
- रोषणः—पुं॰—-—-—पारा
- रोषणः—पुं॰—-—-—बंजर पड़ी हुई रिहाली ज़मीन
- रोहः—पुं॰—-—रुह् + अच्—उठान, ऊँचाई, गहराई
- रोहः—पुं॰—-—-—किसी चीज़ का ऊपर उठाना
- रोहः—पुं॰—-—-—वृद्धि, विकास (आल॰)
- रोहः—पुं॰—-—-—कली, बौर, अंकुर
- रोहणः—पुं॰—-—रुह् + ल्युट्—लंका के एक पहाड़ का नाम
- रोहणम्—नपुं॰—-—-—सवार होने, सवारी करने, चढ़ने और स्वस्थ होने की क्रिया
- रोहणद्रुमः—पुं॰—रोहणः-द्रुमः—-—चन्दन का पेड़
- रोहन्तः—पुं॰—-—रुहेः झच्—वृक्ष
- रोहन्ती—स्त्री॰—-—-—लता
- रोहिः—पुं॰—-—रुह् + इन्—एक प्रकार का हरिण
- रोहिः—पुं॰—-—-—धार्मिक पुरुष
- रोहिः—पुं॰—-—-—वृक्ष
- रोहिः—पुं॰—-—-—बीज
- रोहिणी—स्त्री॰—-—रुह् + इनन् + ङीष्—लाल रंग की गाय
- रोहिणी—स्त्री॰—-—-—गाय
- रोहिणी—स्त्री॰—-—-—चौथा नक्षत्रपुंज(जिसमें पाँच तारे हैं)
- रोहिणी—स्त्री॰—-—-—वसुदेव की एक पत्नी तथा बलराम की माता का नाम
- रोहिणी—स्त्री॰—-—-—तरुण कन्या जिसे अभी रजोधर्म होना आरंभ हुआ है
- रोहिणी—स्त्री॰—-—-—बिजली
- रोहिणीपतिः—पुं॰—रोहिणी-पतिः—-—सांड
- रोहिणीपतिः—पुं॰—रोहिणी-पतिः—-—चन्द्रमा
- रोहिणीप्रियः—पुं॰—रोहिणी-प्रियः—-—सांड
- रोहिणीप्रियः—पुं॰—रोहिणी-प्रियः—-—चन्द्रमा
- रोहिणीवल्लभः—पुं॰—रोहिणी-वल्लभः—-—सांड
- रोहिणीवल्लभः—पुं॰—रोहिणी-वल्लभः—-—चन्द्रमा
- रोहिणीरमणः—पुं॰—रोहिणी-रमणः—-—सांड
- रोहिणीरमणः—पुं॰—रोहिणी-रमणः—-—चन्द्रमा
- रोहिणीशकटः—पुं॰—रोहिणी-शकटः—-—`गाड़ी' की आकृति का रोहिणी नक्षत्रपुंज
- रोहित—वि॰—-—रुहेः इतन् रश्च लो वा—लाल, लालरंग का
- रोहितः—पुं॰—-—-—लाल रंग
- रोहितः—पुं॰—-—-—लोमड़ी
- रोहितः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का हरिण
- रोहितः—पुं॰—-—-—मछली की एक जाति
- रोहितम्—नपुं॰—-—-—रुधिर
- रोहितम्—नपुं॰—-—-—जाफरान, केसर
- रोहिताश्वः—पुं॰—रोहित-अश्वः—-—अग्नि
- रोहिषः—पुं॰—-—रुह् + इषन्—एक प्रकार की मछली
- रोहिषः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का हरिण
- रौक्ष्यम्—नपुं॰—-—रूक्ष + ष्यञ्—कठोरता, सूखापन, अनुपजाऊपन
- रौक्ष्यम्—नपुं॰—-—-—खुरदुरापन, कर्कशता, क्रुरता
- रौद्र—वि॰—-—रुद्र + अण्—`रुद्र' जैसा प्रचंड, चिड़मिड़, गुस्सैल
- रौद्र—वि॰—-—-—भीषण, बर्बर, भयानक, जंगली
- रौद्रः—पुं॰—-—-—रुद्र का उपासक
- रौद्रः—पुं॰—-—-—गर्मी, उत्कण्ठा, सरगर्मी, जोश, मन्यु या भीषणता का मनोभाव
- रौद्रम्—नपुं॰—-—-—क्रोध, कोप
- रौद्रम्—नपुं॰—-—-—उग्रता, भीषणता, बर्बरता
- रौद्रम्—नपुं॰—-—-—गर्मी, उष्णता, सूर्यताप
- रौप्य—वि॰—-—रूप्य + अण्—चाँदी का बना हुआ, चाँदी, चाँदी जैसा
- रौप्यम्—नपुं॰—-—-—चाँदी
- रौरव—वि॰—-—रुरु + अण्—`रुरु' मृग की खाल का बना हुआ
- रौरव—वि॰—-—-—डरावना, भयानक
- रौरव—वि॰—-—-—जालसाज़ी से भरा हुआ, बेईमान
- रौरवः—पुं॰—-—-—बर्बर
- रौरवः—पुं॰—-—-—एक नरक का नाम
- रौहिणः—पुं॰—-—रोहिण + अण्—चन्दन का वृक्ष
- रौहिणः—पुं॰—-—-—वटवृक्ष
- रौहिणेयः—पुं॰—-—रोहिणी + ढक्—बछड़ा
- रौहिणेयः—पुं॰—-—-—बलराम का नामांतर
- रौहिणेयः—पुं॰—-—-—बुधग्रह
- रौहिणेयम्—नपुं॰—-—-—पन्ना, मरकतमणि
- रौहिष्—पुं॰—-—-—एक प्रकार का हरिण
- रौहिषः—पुं॰—-—रुह् + टिषच्, धातोश्च वृद्धिः—
- रौहिषम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का घास
- लः—पुं॰—-—-—इन्द्र् का विशेषण
- लः—पुं॰—-—-—लघु
- लः—पुं॰—-—-—पाणिनि द्वारा प्रयुक्त
- लक्—चुरा॰उभ॰<लाकयति> <लाकयते> —-—-—स्वाद लेना
- लक्—चुरा॰उभ॰<लाकयति> <लाकयते> —-—-—प्राप्त करना
- लकः—पुं॰—-—लक्+अच्—मस्तक
- लकः—पुं॰—-—-—जंगली चावलों की बाल
- लकचः—पुं॰—-—लक्+ अचन् , उचन् वा—बडहर का पेड़, बडहर का फल
- लकुचः—पुं॰—-—-—बडहर का पेड़, बडहर का फल
- लकचम्—नपुं॰—-—-—बडहर का पेड़, बडहर का फल
- लकुटः—पुं॰—-—लक्+उटन्—मुद्गर, सोटा
- लक्तकः—पुं॰—-—लक्+क्त+कन् ,रक्त+कै+क, रस्य लत्वं वा—लाख, महावर
- लक्तकः—पुं॰—-—लक्+क्त+कन् ,रक्त+कै+क, रस्य लत्वं वा—चिथड़ा, जीर्ण कपड़ा
- लक्तिका—स्त्री॰— —लक्तक+टाप्, इत्वम्—छिपकली
- लक्ष्—भ्वा॰ आ॰ लक्षते, लक्षित—-—-—प्रत्यक्ष करना, समझना, अवलोकन करना, देखना
- लक्ष्—चुरा॰उभ॰<लक्ष्यति>, < लक्ष्यते> लक्षित—-—-—देखना, अवलोकन करना, निरखना, ज्ञात करना, प्रत्यक्ष करना
- लक्ष्—चुरा॰उभ॰<लक्ष्यति>, < लक्ष्यते> लक्षित—-—-—चिह्न लगाना, प्रकट करना,चरित्रचित्रण करना, संकेत करना
- लक्ष्—चुरा॰उभ॰<लक्ष्यति>, < लक्ष्यते> लक्षित—-—-—परिभाषा करना
- लक्ष्—चुरा॰उभ॰<लक्ष्यति>, < लक्ष्यते> लक्षित—-—-—गौण रूप से संकेत करना, गौण अर्थ में सार्थक करना
- लक्ष्—चुरा॰उभ॰<लक्ष्यति>, < लक्ष्यते> लक्षित—-—-—लक्ष्य करना, ख्याल करना, आदर करना,सोचना
- अभिलक्ष्—चुरा॰उभ॰—अभि-लक्ष्—-—अंकित करना,देखना
- आलक्ष्—चुरा॰उभ॰—आ-लक्ष्—-—देखना, अवलोकन करना,प्रत्यक्ष करना
- उपलक्ष्—चुरा॰उभ॰—उप-लक्ष्—-—देखना, अवलोकन करना,निगाह डालना, अंकित करना
- उपलक्ष्—चुरा॰उभ॰—उप-लक्ष्—-— अंकित करना,चिह्न लगाना
- उपलक्ष्—चुरा॰उभ॰—उप-लक्ष्—-—प्रकट करना,मनोनीत करना
- उपलक्ष्—चुरा॰उभ॰—उप-लक्ष्—-—अतिरिक्त उपलक्षित होना,वस्तुतःअभिव्यक्त की अपेक्षा अधिक सम्मिलित करना
- उपलक्ष्—चुरा॰उभ॰—उप-लक्ष्—-—मनन करना, विचारकोटि में लाना
- उपलक्ष्—चुरा॰उभ॰—उप-लक्ष्—-—ख्याल करना, मानना
- विलक्ष्—चुरा॰उभ॰—वि-लक्ष्—-—अवलोकन करना, ध्यान देना, देखना
- विलक्ष्—चुरा॰उभ॰—वि-लक्ष्—-—चरित्रचित्रण करना, अन्तर प्रकट करना
- विलक्ष्—चुरा॰उभ॰—वि-लक्ष्—-—व्याकुल होना, चकित होना,घबरा जाना
- संलक्ष्—चुरा॰उभ॰—सम्-लक्ष्—-—अवलोकन करना,प्रत्यक्ष करना, देखना,ध्यान देना
- संलक्ष्—चुरा॰उभ॰—सम्-लक्ष्—-—परीक्षण करना, सिद्ध करना, निर्धारित करना
- संलक्ष्—चुरा॰उभ॰—सम्-लक्ष्—-—सुनना, जानना, समझना,चरित्रचित्रण करना, भेद बताना
- लक्षम्—नपुं॰—-—लक्ष्+अच्—सौ हजार
- लक्षम्—नपुं॰—-—-—चिह्न,चाँदमारी, लक्ष्य,निशाना
- लक्षम्—नपुं॰—-—-—निशान, निशानी, चिह्न
- लक्षम्—नपुं॰—-—-—दिखावा,बहाना,जालसाजी,छद्मवेश
- लक्षाधीशः—पुं॰—लक्षम्-अधीशः—-—लाखों की सम्पत्ति का स्वामी
- लक्षक—वि॰—-—लक्ष्+ण्वुल्—अप्रत्यक्ष रूप से सूचित करने वाला ,गौण रूप से अभिव्यक्त करने वाला
- लक्षकम्—नपुं॰—-—-—सौ हजार ,एक लाख
- लक्षणम्—नपुं॰— —लक्ष्यतेऽनेन-लक्ष् करणे ल्युट्—चिह्न, निशानी, निशान, संकेत, विशेषता, भेद बोधक चिह्न
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—रोग का लक्षण
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—विशेषण, खूबी
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—परिभाषा, यथार्थ वर्णन
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—शरीर पर भाग्य सूचक चिह्न
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—शरीर पर बना कोई चिह्न
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—नाम पद, अभिधान
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—श्रेष्ठता उत्कर्ष, अच्छाई
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—उद्देश्य,क्रियाक्षेत्र या लक्ष्य, ध्येय
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—निश्चित भाव
- लक्षणम्—नपुं॰— —-—रूप ,प्रकार प्रकृति
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—कर्तव्यनिर्वाह, कार्यप्रणाली
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—कारण ,हेतु
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—सिर, शीर्षक, विषय
- लक्षणम्—नपुं॰—-—-—बहाना, छद्मवेश
- लक्षणः—पुं॰— —-—सारस
- लक्षणा—स्त्री॰—-—-—उद्देश्य, ध्येय
- लक्षणा—स्त्री॰—-—-—शब्द का परोक्षप्रयोग या गौण सार्थकता, शब्द की एक शक्ति
- लक्षणान्वित—वि॰—लक्षणम्-अन्वित—-—शुभ लक्षणों से युक्त
- लक्षणज्ञ—वि॰—लक्षणम्-ज्ञ—-—चिह्नों की व्याख्या करनें में सक्षम
- लक्षणभ्रष्ट—वि॰—लक्षणम्-भ्रष्ट—-—अभागा दुर्भाग्य ग्रस्त
- लक्षणलक्षणा—स्त्री॰—लक्षणम्-लक्षणा—-—
- लक्षणसन्निपातः—पुं॰—लक्षणम्-सन्निपातः—-—दाग लगना, कलंकित करना
- लक्षण्य—वि॰—-—लक्षण+यत्—चिह्न का काम देने वाला,
- लक्षण्य—वि॰—-—-—अच्छे लक्षणों से युक्त
- लक्षशस्—अव्य॰—-—लक्ष्+शस्—लाख- लाख करके बडी संख्या में
- लक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लक्ष्+क्त—दुष्ट , अवलोकित, चिह्नित, निगाह डाली गई
- लक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रकट किया गया, संकेतित
- लक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—चरित्रचित्रित, चिह्नित, अन्तर बताया गया
- लक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परिभाषित
- लक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उद्दिष्ट
- लक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परोक्ष रूप से अभिव्यक्त, संकेतित, इशारा किया गया
- लक्षित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-— पूछताछ की गई, परीक्षित
- लक्ष्मण—वि॰—-—लक्ष्मन्+अण् , न वृद्धिः—चिह्नों से युक्त
- लक्ष्मण—वि॰—-— —शुभ लक्षणों से युक्त, सौभाग्यशाली,अच्छी किस्मत वाला
- लक्ष्मण—वि॰—-—-—समृद्धिशाली, फलता- फूलता
- लक्ष्मणः—पुं॰—-—-—सारस
- लक्ष्मणः—पुं॰—-—-—सुमित्रा नामक पत्नी से उत्पन्न दशरथ का एक पुत्र
- लक्ष्मणा—स्त्री॰—-—-—हंसनी
- लक्ष्मणम्—नपुं॰—-—-—नाम अभिधान
- लक्ष्मणम्—नपुं॰—-—-—चिह्न, संकेत, निशानी
- लक्ष्मणप्रसूः—स्त्री॰—लक्ष्मण-प्रसूः—-—लक्ष्मण की माता सुमित्रा
- लक्ष्मन्—नपुं॰—-—लक्ष्+मनिन्—चिह्न,निशान,निशानि विशेषता
- लक्ष्मन्—नपुं॰— —-—चित्ती ,धब्बा
- लक्ष्मन्—नपुं॰—-—-—परिभाषा
- लक्ष्मन्—पुं॰—-—-—सारस पक्षी
- लक्ष्मन्—पुं॰—-—-—लक्ष्मण का नामान्तर
- लक्ष्मीः—स्त्री॰—-—लक्ष्+ई ,मुट्+च—सौभाग्य, समृद्धि,धन दौलत
- लक्ष्मीः—स्त्री॰—-—-—सौभाग्य,अच्छी किस्मत
- लक्ष्मीः—स्त्री॰—-—-—सफलता,सम्पन्नता
- लक्ष्मीः—स्त्री॰—-—-—सौन्दर्य प्रियता,अनुग्रह,लावण्य,आभा,कान्ति
- लक्ष्मीः—स्त्री॰— —-—सौभाग्यदेवी,समृद्धि, सौन्दर्य
- लक्ष्मीः—स्त्री॰—-—-—राजकीय या प्रभुशक्ति, उपनिवेश,राज्य
- लक्ष्मीः—स्त्री॰—-—-—नायक की पत्नी
- लक्ष्मीः—स्त्री॰—-—-—मोती
- लक्ष्मीः—स्त्री॰— —-—हल्दी
- लक्ष्मीशः—पुं॰—लक्ष्मीः-ईशः—-—विष्णु का विशेषण
- लक्ष्मीशः—पुं॰—लक्ष्मीः-ईशः—-—आम का वृक्ष
- लक्ष्मीशः—पुं॰—लक्ष्मीः-ईशः—-—समृद्ध या भाग्यशाली पुरूष
- लक्ष्मीकान्तः—पुं॰—लक्ष्मीः-कान्तः—-—विष्णु का विशेषण
- लक्ष्मीकान्तः—पुं॰—लक्ष्मीः-कान्तः—-—राजा
- लक्ष्मीगृहम्—नपुं॰—लक्ष्मीः-गृहम्—-—लाल कमल का फूल
- लक्ष्मीतालः—पुं॰—लक्ष्मीः-तालः—-—एक प्रकार का ताड़ का वृक्ष
- लक्ष्मीनाथः—पुं॰—लक्ष्मीः-नाथः—-—विष्णु का विशेषण
- लक्ष्मीपतिः—पुं॰—लक्ष्मीः-पतिः—-—विष्णु का विशेषण
- लक्ष्मीपतिः—पुं॰—लक्ष्मीः-पतिः—-—राजा
- लक्ष्मीपतिः—पुं॰—लक्ष्मीः-पतिः—-—सुपारी का पेड़, लौंग का वृक्ष
- लक्ष्मीपुत्रः—पुं॰—लक्ष्मीः-पुत्रः—-—घोडा़
- लक्ष्मीपुत्रः—पुं॰—लक्ष्मीः-पुत्रः—-—कामदेव का नामान्तर
- लक्ष्मीपुष्पः—पुं॰—लक्ष्मीः-पुष्पः—-—लाल
- लक्ष्मीपूजनम्—नपुं॰—लक्ष्मीः-पूजनम्—-—लक्ष्मी के पूजा का कृत्य
- लक्ष्मीपूजा—स्त्री॰—लक्ष्मीः-पूजा—-—कार्तिकमास की आमावस्या के दिन किया जाने वाला पूजन
- लक्ष्मीफलः—पुं॰—लक्ष्मीः-फलः—-—बिल्व वृक्ष
- लक्ष्मीरमणः—पुं॰—लक्ष्मीः-रमणः—-—विष्णु का विशेषण
- लक्ष्मीवसतिः—स्त्री॰—लक्ष्मीः-वसतिः—-—लक्ष्मी का निवास,लाल कमल का फूल
- लक्ष्मीवारः—पुं॰—लक्ष्मीः-वारः—-—बृहस्पतिवार
- लक्ष्मीवेष्टः—पुं॰—लक्ष्मीः-वेष्टः—-—तारपीन
- लक्ष्मीसखः—पुं॰—लक्ष्मीः-सखः—-—लक्ष्मी की कृपा का पात्र
- लक्ष्मीसहजः—पुं॰—लक्ष्मीः-सहजः—-—चन्द्रमा का विशेषण
- लक्ष्मीसहोदरः—पुं॰—लक्ष्मीः-सहोदरः—-—चन्द्रमा का विशेषण
- लक्ष्मीवत्—वि॰—-—लक्ष्मी+मतुप् ,वत्वम्—सौभाग्यशाली,किस्मतवाला,अच्छे भाग्य वाला
- लक्ष्मीवत्—वि॰—-—-—दौलतमन्द धनवान्, समृद्धिशाली
- लक्ष्मीवत्—वि॰— —-—मनोंहर ,प्रिय ,सुन्दर
- लक्ष्य—सं॰ कृ॰—-—लक्ष्+ण्यत्—देखने के योग्य,अवलोकन करने योग्य,दृश्य अवेक्षणीय,प्रत्यक्ष जानने के योग्य
- लक्ष्य—सं॰ कृ॰—-—-—संकेतित या अभिज्ञेय
- लक्ष्य—सं॰ कृ॰—-—-—ज्ञातव्य या प्राप्त,सुराग लगाने योग्य
- लक्ष्य—सं॰ कृ॰—-—-—चिह्नित या चित्रित किया जाना
- लक्ष्य—सं॰ कृ॰—-—-—परिभाषा के योग्य
- लक्ष्य—सं॰ कृ॰—-—-—उद्दिष्ट किये जाने योग्य
- लक्ष्य—सं॰ कृ॰—-—-—अभिव्यक्त किया जाना या परोक्ष रुप से प्रकट किया जाना
- लक्ष्य—सं॰ कृ॰—-—-—ख्याल किये जाने योग्य ,चिन्तनीय
- लक्ष्यम्—नपुं॰—-—-—उद्देश्य, निशाना ,चिह्न,चांदमारी, उद्दिष्ट् चिह्न
- लक्ष्यम्—नपुं॰—-—-—निशान, निशानी
- लक्ष्यम्—नपुं॰—-—-—वस्तु जिसकी परिभाषा की गई है
- लक्ष्यम्—नपुं॰—-—-—परोक्ष या गौण अर्थ जो लक्षणा शक्ति से प्रतीत हों
- लक्ष्यम्—नपुं॰—-—-—बहाना ,झूठमूठ
- लक्ष्यम्—नपुं॰—-—-—लाख सौ हजार
- लक्ष्यक्रम—वि॰—लक्ष्य-क्रम—-—ध्वनि आदि अर्थ जिसकी प्रणाली प्रत्यक्ष ज्ञेय हैं
- लक्ष्यभेदः—पुं॰—लक्ष्य-भेदः—-—निशाना लगाना
- लक्ष्यवेधः—पुं॰—लक्ष्य-वेधः—-—निशाना लगाना
- लक्ष्यसुप्त—वि॰—लक्ष्य-सुप्त—-—झूठमूठ,सोया हुआ
- लक्ष्यहन्—वि॰—लक्ष्य-हन्—-—निशाना मारने वाला
- लक्ष्यहन्—पुं॰—लक्ष्य-हन्—-—बाण ,तीर
- लख्—भ्वा॰ पर॰ लखति—-—-—जाना ,हिलना जुलना
- लङ्ख्—भ्वा॰ पर॰ लङ्खति—-—-—जाना ,हिलना जुलना
- लग्—भ्वा॰ पर॰ लगति , लग्न—-—-—लग जाना, दृढ रहना,चिपकना, जुड़ जाना
- लग्—भ्वा॰ पर॰ लगति , लग्न—-—-—स्पर्श करना, संपर्क में आना
- लग्—भ्वा॰ पर॰ लगति , लग्न— —-—स्पर्श करना, प्रभावित करना, लक्ष्य स्थान तक जाना
- लग्—भ्वा॰ पर॰ लगति , लग्न—-—-—मिल जाना, सम्मिलित होना, ( रेखा आदि )काटना
- लग्—भ्वा॰ पर॰ लगति , लग्न—-—-—ध्यान पूर्वक अनुसरण करना,अनुघटित होना , बाद में घटित होना
- लग्—भ्वा॰ पर॰ लगति , लग्न—-—-—नियुक्त करना ,अटकाना (किसी को धंधे में लगाना)
- अवलग् —भ्वा॰ पर॰ —अव-लग् —-— जुड़ जाना, चिपक जाना
- आलग्—भ्वा॰ पर॰ —आ-लग्—-—जमे रहना
- विलग्—भ्वा॰ पर॰ —वि-लग्—-—चिपकना, लग जाना ,जुड़् जाना
- लग्—चुरा॰ उभ॰< लागयति>,< लागयते>—-—-—स्वाद लेना, प्राप्त करना
- लगड—वि॰—-—लग्+अलच्,डलयोः एक्यात् डः—प्रिय, मनोहर,सुन्दर
- लगित—भू॰ क॰ कृ—-—लग्+क्त—जु्ड़ा हुआ, चिपका हुआ
- लगित—भू॰ क॰ कृ—-—-—संम्बद्ध , अनुसक्त
- लगित—भू॰ क॰ कृ—-—-—प्राप्त,उपलब्ध
- लगुडः—पुं॰—-—लग्+उलच् पक्षे लस्य, डः, रः—मुद्गर,छड़ी,लाठी, सोटा
- लगुरः—पुं॰—-—-—मुद्गर,छड़ी,लाठी, सोटा
- लगुलः—पुं॰—-—-—मुद्गर,छड़ी,लाठी, सोटा
- लग्न—भू॰ क॰ कृ—-—लग्+क्त— जुडा हुआ, चिपका हुआ, सटा हुआ, दृढ़ थामा हुआ
- लग्न—भू॰ क॰ कृ—-—-—स्पर्श करना, संपर्क में आना,अनुषक्त,संबद्ध
- लग्न—भू॰ क॰ कृ—-— —अनुषक्त,संबद्ध
- लग्न—भू॰ क॰ कृ—-—-—चिपटा हुआ ,जुड़ा हुआ,साथ लगा हुआ
- लग्न—भू॰ क॰ कृ—-—-—काटना,रेखा आदि का मिलाना
- लग्न—भू॰ क॰ कृ—-—-—ध्यान पूर्वक अनुसरण करना आसन्न या निकटवर्ती
- लग्न—भू॰ क॰ कृ—-—-—व्यस्त,काम में लगा हुआ
- लग्न—भू॰ क॰ कृ—-—-—शुभ
- लग्न—भू॰ क॰ कृ—-—-—भाट, चारण
- लग्नम्—नपुं॰—-—-—मदोन्मत्त हाथी
- लग्नम्—नपुं॰—-—-—संपर्क बिन्दु, मिथश्छेदन बिन्दु
- लग्नम्—नपुं॰—-—-—क्रान्ति-वृत का बिन्दु जो एक समय क्षितिज या याम्योत्तर-रेखा पर होता है
- लग्नम्—नपुं॰—-—-—वह क्षण जिसमें सूर्य का प्रवेश किसी रासि विशेष में होता है
- लग्नम्—नपुं॰—-—-—बारह राशियों की आकृति
- लग्नम्—नपुं॰—-—-—शुभ या सौभाग्य प्रद क्षण
- लग्नम्—नपुं॰—-—-—कार्यारंभ का उचित समय
- लग्नाहः—पुं॰—लग्न-अहः—-—शुभदिन ज्योतिषियों द्वारा बताया गया शुभ समय
- लग्नदिनम्—नपुं॰—लग्न-दिनम्—-—शुभदिन ज्योतिषियों द्वारा बताया गया शुभ समय
- लग्नदिवसः—पुं॰—लग्न-दिवसः—-—शुभदिन ज्योतिषियों द्वारा बताया गया शुभ समय
- लग्नवासरः—पुं॰—लग्न-वासरः—-—शुभदिन ज्योतिषियों द्वारा बताया गया शुभ समय
- लग्ननक्षत्रम्—नपुं॰—लग्न-नक्षत्रम्—-—शुभ नक्षत्र
- लग्नमण्डलम्—नपुं॰—लग्न-मण्डलम्—-—राशि चक्र
- लग्नमासः—पुं॰—लग्न-मासः—-—शुभ महीना
- लग्नशुद्धिः—स्त्री॰—लग्न-शुद्धिः—-—किसी धर्म कृत्य के अनुष्ठान के लिए बताये गये मुहूर्त की मांगलिकता
- लग्नकः—पुं॰—-—लग्न+ कन्—प्रतिभू , जमानत,वह जो जमानत करे
- लग्निका—स्त्री॰—-—लग्न+कन्+टाप् ,इत्वम्—नग्निका' का अपभ्रंश रूप
- लघयति—ना॰धा॰ पर॰—-—-—हलका करना, भार कम करना
- लघयति—ना॰धा॰ पर॰—-—-—कम करना,घटाना,धीमा करना,न्यून करना
- लघयति—ना॰धा॰ पर॰—-—-—तुच्छ समझना, तिरस्कार करना,घृणा करना
- लघयति—ना॰धा॰ पर॰—-—-—महत्वहीन या नगण्य समझना
- लघिमन्—पुं॰—-—लघु+इमनिच्—हलकापन ,भार का अभाव
- लघिमन्—पुं॰—-—-—लघुता, अल्पता,नगण्यता
- लघिमन्—पुं॰—-—-—तुच्छता,ओछापन,नीचता,कमीनापन
- लघिमन्—पुं॰—-—-—नासमझी, छिछोरपन
- लघिमन्—पुं॰—-—-—इच्छानुसार अत्यन्त लघु हो जाने की अलौकिक शक्ति,आठ सिद्धियों में से एक
- लघिष्ठ—वि॰—-—अयमेषामतिश्येन लघुः-इष्ठन्—हलके से हलका,निम्नतम,अत्यन्त हलका
- लघीयस्—वि॰—-—अयमनयोः अतिशयेन लघुः-ईयसुन्—अपेक्षाकृत हलका,निम्नतर बहुत हलका
- लघु—वि॰—-—लड्घेः कुः नलोपश्च—हलका जो भारी न हो
- लघु—वि॰— —-—तुच्छ,अल्प न्यून
- लघु—वि॰—-—-—ह्रस्व,संक्षिप्त,सामासिक,
- लघु—वि॰—-—-—क्षुद्र, तृणप्राय, नगण्य, महत्वहीन
- लघु—वि॰—-—-—नीच ,अधम,निद्य,तिरस्करणीय
- लघु—वि॰—-—-—अशक्त ,दुर्बल
- लघु—वि॰—-—-—ओछा ,मन्दबुद्धि
- लघु—वि॰—-—-—फुर्तीला ,चुस्त,चपल,स्फूर्त
- लघु—वि॰—-—-—तेज ,द्रुतगामी,त्वरित
- लघु—वि॰—-—-—सरल ,जो कठिन न हो
- लघु—वि॰—-—-—सुलभ,सुपाच्य,हलका (भोजन)
- लघु—वि॰— —-—ह्रस्व
- लघु—वि॰—-—-—मृदु, मन्द्,कोमल
- लघु—वि॰—-—-—सुखद,सुखकर,वांछनीय
- लघु—वि॰—-—-—प्रिय ,मनोहर, सुंदर
- लघु—वि॰—-—-—विशुद्ध,स्वच्छ
- लघु—अव्य॰—-—-—हलकेपन से,क्षुद्रभाव से,अनादर पूर्वक
- लघु—अव्य॰—-—-— शीघ्र,फुर्ती से,लघूत्थिता
- लघु—नपुं॰—-—-—काला अगर या विशेष प्रकार का अगर
- लघु—नपुं॰—-—-—समय की विशेष माप
- लघ्वाशिन्—वि॰—लघु-आशिन्—-—थोड़ा खाने वाला,मितभौजी,मिताहारी
- लघ्वाहार—वि॰—लघु-आहार—-—थोड़ा खाने वाला,मितभौजी,मिताहारी
- लघूक्तिः—स्त्री॰—लघु-उक्तिः—-—अभिव्यक्ति का संक्षिप्त प्रकार
- लघूत्थान—वि॰—लघु-उत्थान—-—फुर्तीला ,द्रुतगति से कार्य करने वाला
- लघुसमुत्थान—वि॰—लघु-समुत्थान—-—फुर्तीला ,द्रुतगति से कार्य करने वाला
- लघुकाय—वि॰—लघु-काय—-—हलके शरीर वाला
- लघुकायः—वि॰—लघु-कायः—-—बकरा
- लघुक्रम—वि॰—लघु-क्रम—-—जल्दी चलने वाला,शीघ्र पग रखने वाला
- लघुखट्विका—स्त्री॰—लघु-खट्विका—-—खटोला,छोटी खाट
- लघुगोधूमः—पुं॰—लघु-गोधूमः—-—छोटी जाति का गेहूँ
- लघुचित्त—वि॰—लघु-चित्त—-—हल्के मन वाला,नीच ह्रदय,क्षुद्र मन का,कमीने दिल का
- लघुचित्त—वि॰—लघु-चित्त—-—मन्द बुद्धि, चंचल,अस्थिर
- लघुचित्त—वि॰—लघु-चित्त—-— चंचल,अस्थिर
- लघुमनस्—वि॰—लघु-मनस्—-—हल्के मन वाला,नीच ह्रदय,क्षुद्र मन का,कमीने दिल का
- लघुमनस्—वि॰—लघु-मनस्—-—मन्द बुद्धि
- लघुमनस्—वि॰—लघु-मनस्—-— चंचल,अस्थिर
- लघुह्रदय—वि॰—लघु-ह्रदय—-—हलके मन वाला,नीच ह्रदय,क्षुद्र मन का,कमीने दिल का
- लघुह्रदय—वि॰—लघु-ह्रदय—-—मन्द बुद्धि
- लघुह्रदय—वि॰—लघु-ह्रदय—-—चंचल,अस्थिर
- लघुजङ्गलः—पुं॰—लघु-जङ्गलः—-—लावा पक्षी
- लघुद्राक्षा—स्त्री॰—लघु-द्राक्षा—-—बिना बीज का अंगूर,किशमिश
- लघुद्राविन्—वि॰—लघु-द्राविन्—-—अनायास पिघल जाने वाला
- लघुपाक—वि॰—लघु-पाक—-—सुपाच्य
- लघुपुष्पः—पुं॰—लघु-पुष्पः— —एक प्रकार का वृक्ष
- लघुप्रयत्न—वि॰—लघु-प्रयत्न—-—(वर्ण आदि)थोड़े से जिह्वाव्यापार से उच्चरित
- लघुप्रयत्न—वि॰—लघु-प्रयत्न—-—निठल्ला,आलसी
- लघुबदरः—स्त्री॰—लघु-बदरः—-—एक प्रकार का बेर
- लघुबदरी—स्त्री॰—लघु-बदरी—-—एक प्रकार का बेर
- लघुभवः—पुं॰—लघु-भवः—-—नीच योनि ,या क्षुद्र घर में जन्म
- लघुभोजनम्—नपुं॰—लघु-भोजनम्—-—हलका भोजन
- लघुमांस—वि॰—लघु-मांस—-—एक प्रकार का तीतर
- लघुमूलम्—नपुं॰—लघु-मूलम्—-—समीकरण की राशि का न्यूनतर मूल
- लघुमूलकम्—नपुं॰—लघु-मूलकम्—-—मूली
- लघुलयम्—नपुं॰—लघु-लयम्—-—एक प्रकार की सुगंधित जड़,खस, वीरणमूल
- लघुवासस्—वि॰—लघु-वासस्—-—हलके और निर्मल वस्त्र धारण करने वाला
- लघुविक्रम—वि॰—लघु-विक्रम—-—तेज कदम वाला,शीघ्र पग उठाने वाला
- लघुवृत्ति—वि॰—लघु-वृत्ति—-—बदचलन,नीच ,दुष्ट
- लघुवृत्ति—वि॰—लघु-वृत्ति—-—क्षुद्र,मंदबुद्धि,कुव्यवस्थित,दुर्वृत्त
- लघुवेधिन्—वि॰—लघु-वेधिन्—-—बारीक, निशाना लगाने वाला
- लघुहस्त—वि॰—लघु-हस्त—-—हलके हाथ का,चतुर दक्ष विशेषज्ञ
- लघुहस्त—वि॰—लघु-हस्त—-—सक्रिय ,फुर्तीला
- लघुहस्तः—नपुं॰—लघु-हस्तः—-—विशेषज्ञ या कुशल धनुर्धर
- लघुता—स्त्री॰—-—लघु+तल्+टाप्—हलकापन ,ओछापन
- लघुता—स्त्री॰—-—-—छोटापन,थोड़ापन
- लघुता—स्त्री॰— —-—नगण्यता,महत्वहीनता,तिरस्कार,मर्यादा का अभाव
- लघुता—स्त्री॰—-—-—अपमान,निरादर
- लघुता—स्त्री॰—-—-—क्रियाशीलता,फुर्ती
- लघुता—स्त्री॰—-—-—संक्षेप,संक्षिप्तता
- लघुता—स्त्री॰—-—-—सुगमता,सुविधा
- लघुता—स्त्री॰—-—-—नासमझी,निरर्थकता
- लघुता—स्त्री॰—-—-—स्वेच्छाचारिता
- लघुत्वम्—नपुं॰—-—लघु+त्व—हलकापन ,ओछापन
- लघुत्वम्—नपुं॰—-—-—छोटापन,थोड़ापन
- लघुत्वम्—नपुं॰—-—-—नगण्यता,महत्वहीनता,तिरस्कार,मर्यादा का अभाव
- लघुत्वम्—नपुं॰—-—-—अपमान,निरादर
- लघुत्वम्—नपुं॰—-—-—क्रियाशीलता,फुर्ती
- लघुत्वम्—नपुं॰—-—-—संक्षेप,संक्षिप्तता
- लघुत्वम्—नपुं॰—-—-—सुगमता,सुविधा
- लघुत्वम्—नपुं॰—-—-—नासमझी,निरर्थकता
- लघुत्वम्—नपुं॰—-—-—स्वेच्छाचारिता
- लघ्वी—स्त्री॰—-—लघु+ङीष्—कोमलांगिनी स्त्री
- लघ्वी—स्त्री॰—-—-—हलकी गाड़ी
- लङ्का—स्त्री॰—-—लक्+अच्,मुम् च—रावण का निवास और राजधानी
- लङ्का—स्त्री॰—-—-—व्यभिचारिणी स्त्री,रंड़ी,वेश्या
- लङ्का—स्त्री॰—-—-— शाखा
- लङ्का—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का अनाज
- लङ्काधिपः—पुं॰—लङ्का-अधिपः—-—लंका का स्वामी अर्थात् रावण या विभीषण
- लङ्काधिपति—पुं॰—लङ्का-अधिपति—-—लंका का स्वामी अर्थात् रावण या विभीषण
- लङ्केशः—पुं॰—लङ्का-ईशः—-—लंका का स्वामी अर्थात् रावण या विभीषण
- लङ्केश्वरः—पुं॰—लङ्का-ईश्वरः—-—लंका का स्वामी अर्थात् रावण या विभीषण
- लङ्कानाथः—पुं॰—लङ्का-नाथः—-—लंका का स्वामी अर्थात् रावण या विभीषण
- लङ्कापति—पुं॰—लङ्का-पति—-—लंका का स्वामी अर्थात् रावण या विभीषण
- लङ्कारिः—पुं॰—लङ्का-अरिः—-—राम का विशेषण
- लङ्कादाहिन्—पुं॰—लङ्का-दाहिन्—-—हनुमान का विशेषण
- लङ्खनी—स्त्री॰—-—लङ्ख्+ल्युट्+ङीप्—लगाम की वल्गा,मुखरी
- लङ्गः—पुं॰—-—लङ्गः+अच्—लंगड़ापन
- लङ्गः—पुं॰—-—-—संघ समाज
- लङ्गः—पुं॰—-—-—प्रेमी जार
- लङ्गूलम्—नपुं॰—-—लङ्ग्+उलच् पृषो॰—जानवर की प्ँछ
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>लङ्घित,इच्छा॰,<लिलङ्घिषति>,<लिलङ्घिषते>—-—-—उछलना,कूदना ,छलांग लगाना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>लङ्घित,इच्छा॰,<लिलङ्घिषति>,<लिलङ्घिषते>—-—-— सवारी करना ,चढ़ना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>लङ्घित,इच्छा॰,<लिलङ्घिषति>,<लिलङ्घिषते>—-—-—परे चले जाना ,अतिक्रमण करना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>लङ्घित,इच्छा॰,<लिलङ्घिषति>,<लिलङ्घिषते>—-—-—उपवास करना,अनशन करना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰, पर॰—-—-—सूखना, सूख जाना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—झपट्टा मारना,आक्रमणकरना,खा जाना,क्षति पहुँचाना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰या चुरा॰उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>—-—-—ऊपर से कूद जाना,छलांग लगा देना,परे जाना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰या चुरा॰उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>—-—-—तय कर लेना,चल कर पार कर लेना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰या चुरा॰उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>—-—-—सवारी करना, चढ़ना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰या चुरा॰उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>—-—-—उल्लंघन करना,अतिक्रमण करना,अवज्ञा करना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰या चुरा॰उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>—-—-—रुष्ट करना, अपमान करना,निरादर करना,उपेक्षा करना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰या चुरा॰उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>—-—-—रोकना, विरोध करना,ठहरना,टालना,हटाना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰या चुरा॰उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>—-—-—आक्रमण करना,झपट्टा मारना,क्षतिग्रस्त करना,चोट पहुँचाना @ रघु॰ ११/९२
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰या चुरा॰उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>—-—-—आगे बढ जाना, पीछे छोड़ देना,अपेक्षाकृत अधिक चमकना,ग्रहणग्रस्त करना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰या चुरा॰उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>—-—-—उपवास करवाना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰या चुरा॰उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>—-—-—चमकना
- लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰या चुरा॰उभ॰<लङ्घति>,<लङ्घते>—-—-—बोलना
- अभिलङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—अभि- लङ्घ्—-—परे चले जाना ,ऊपर से छलांग लगा देना
- अभिलङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—अभि- लङ्घ्—-—उल्लंघन करना,अतिक्रमण करना,अवज्ञा करना
- उल्लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—उद्- लङ्घ्—-—पार जाना,पार कर लेना,परे चले जाना
- उल्लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—उद्- लङ्घ्—-—सवारी करना, चढ़ना
- उल्लङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—उद्- लङ्घ्—-—उल्लंघन करना,अतिक्रमण करना
- विलङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—वि- लङ्घ्—-—पार जाना,उछल कर पार करना,यात्रा करना
- विलङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—वि- लङ्घ्—-—उल्लंघन करना,अतिक्रमण करना,बाहर कदम रखना,अवहेलना करना,उपेक्षा करना
- विलङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—वि- लङ्घ्—-—औचित्य की सीमा का उल्लंघन करना
- विलङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—वि- लङ्घ्—-—उठाना, चढना,ऊपर जाना
- विलङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—वि- लङ्घ्—-—छोड़ देना ,परित्याग करना,एक ओर फेंक देना
- विलङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—वि- लङ्घ्—-—आगे बढ जाना, पीछे छोड़ देना
- विलङ्घ्—भ्वा॰ उभ॰—वि- लङ्घ्—-—उपवास कराना
- लङ्घनम्—नपुं॰—-— लङ्घ्+ल्युट्—छलांग लगाना,कूदना
- लङ्घनम्—नपुं॰—-—-—उछल कर चलना,यात्रा करना,पार जाना,चलना,गतिशील होना
- लङ्घनम्—नपुं॰—-—-—सवारी करना,चढना,उठना
- लङ्घनम्—नपुं॰—-—-—उच्चपद प्राप्त करने को इच्छुक
- लङ्घनम्—नपुं॰—-—-—धावा बोलना, एकाएक आक्रमण के द्वारा दुर्गादि हथिया लेना,अधिकार में कर लेना
- लङ्घनम्—नपुं॰—-—-—आगे बढना,परे चले जाना,बाहर कदम रखना,उल्लंघन,अतिक्रमण
- लङ्घनम्—नपुं॰—-—-—अवहेलना करना,घृणा करना,तिरस्कार पूर्वक व्यवहार करना,अपमान करना
- लङ्घनम्—नपुं॰—-—-—अन्यायाचरण, मानहानि,अपमान
- लङ्घनम्—नपुं॰—-—-—अनिष्ट,क्षति
- लङ्घनम्—नपुं॰—-—-—उपवास करना संयम
- लङ्घनम्—नपुं॰—-—-—घोड़े का एक कदम
- लङ्घित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लङ्घ्+क्त—ऊपर से कूदा हुआ,पार किया हुआ
- लङ्घित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—यात्रा द्वारा पार किया हुआ
- लङ्घित—भू॰ क॰ कृ॰— — —अतिक्रान्त, उल्लंघन किया हुआ
- लङ्घित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अवज्ञात,अपमानित,अनादृत
- लछ्—भ्वा॰ पर॰ लच्छति—-—-—चिह्न लगाना,देखना
- लज्—तुदा॰आ॰ लज्जते—-—-—लज्जित होना
- लज्—भ्वा॰ पर॰लजति—-—-—कलंकित करना
- लज्—चुरा॰ पर॰ लजयति—-—-—दिखाई देना, प्रतीत होना,चमकना
- लज्—चुरा॰ पर॰ लजयति— —-—ढकना,छिपाना
- लज्ज्—तुदा॰आ॰लज्जते, लज्जित—-—-—लज्जित होना,शर्मिंदा होना
- लज्जका—स्त्री॰—-—लज्ज+अच्+कन्+टाप्—जंगली कपास का पौधा
- लज्जा—स्त्री॰—-—लज्ज+अ+टाप्—शर्म
- लज्जा—स्त्री॰—-—-—शर्मीलापन,विनय
- लज्जा—स्त्री॰—-—-—छुई मुई का पौधा
- लज्जान्वित—वि॰—लज्जा-अन्वित—-—विनयशील, शर्मीला
- लज्जावह—वि॰—लज्जा-आवह—-—विनयशील, शर्मीला
- लज्जाकर—वि॰—लज्जा-कर—-—विनयशील, शर्मीला
- लज्जाकरा—स्त्री॰—लज्जा-करा—-—लज्जाजनक,शर्मनाक,अकीर्तिकर,कलंकी
- लज्जाकरी—स्त्री॰—लज्जा-करी—-—लज्जाजनक,शर्मनाक,अकीर्तिकर,कलंकी
- लज्जाशील—वि॰—लज्जा-शील—-—शर्मीला,शालीन
- लज्जारहित —वि॰—लज्जा-रहित —-—निर्लज्ज,ढीठ,बेहया
- लज्जाहीन—वि॰—लज्जा-हीन—-—निर्लज्ज,ढीठ,बेहया
- लज्जाशून्य—वि॰—लज्जा-शून्य—-—निर्लज्ज,ढीठ,बेहया
- लज्जालु—वि॰—-—लज्जा+अलुच्—विनयशील, शर्मीला
- लज्जालु—स्त्री॰—-—-—छुई मुई का पौधा
- लज्जालु—पुं॰—-—-—छुई मुई का पौधा
- लज्जित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लज्ज्+क्त—विनयशील, शर्मीला,लजाया हुआ,शर्मिन्दा
- लञ्ज्—भ्वा॰ पर॰लञ्जति—-—-—कलंक लगाना,निन्दा करना, बदनाम करना,भूनना,तलना
- लञ्ज्—चुरा॰उभ॰<लञ्जयति><लञ्जयते>—-—-—क्षतिग्रस्त करना,प्रहार करना,मार डालना
- लञ्ज्—चुरा॰उभ॰<लञ्जयति><लञ्जयते>—-—-—देना
- लञ्ज्—चुरा॰उभ॰<लञ्जयति><लञ्जयते>—-—-—बोलना
- लञ्ज्—चुरा॰उभ॰<लञ्जयति><लञ्जयते>—-—-—सबल या शक्तिशाली
- लञ्ज्—चुरा॰उभ॰<लञ्जयति><लञ्जयते>—-—-—निवास करना
- लञ्ज्—चुरा॰उभ॰<लञ्जयति><लञ्जयते>—-—-—चमकना
- लञ्जः—पुं॰—-—लञ्ज+अच्—पैरधोती की लांग या किनारा जो पीछे कमर में टांग लिया जाता है
- लञ्जः—पुं॰—-—-—धोती की लांग या किनारा जो पीछे कमर में टांग लिया जाता है
- लञ्जः—पुं॰—-—-—पूँछ
- लञ्जा—स्त्री॰—-—लञ्ज्+टाप्—धार
- लञ्जा—स्त्री॰— —-—व्यभिचारिणी स्त्री
- लञ्जा—स्त्री॰—-—-—लक्ष्मी का नामान्तर
- लञ्जा—स्त्री॰—-—-—निद्रा
- लञ्जिका—स्त्री॰—-—लञ्ज्+ण्वुल्+टाप्—रण्डी,वेश्या
- लट्—भ्वा॰पर॰लटति—-—-—बालक बनना
- लट्—भ्वा॰पर॰लटति—-—-—बालकों की तरह व्यवहार करना
- लट्—भ्वा॰पर॰लटति—-—-—बच्चों की भांति तोतली बातें करना,तुतलाना
- लट्—भ्वा॰पर॰लटति—-—-—क्रन्दन करना,रोना
- लटः—पुं॰—-—लट्+अच्—मूर्ख,बुद्धू
- लटः—पुं॰—-—-—त्रुटि,दोष
- लटः—पुं॰—-—-—लुटेरा
- लटकः—पुं॰—-—लट्+क्वुन्—ठग,बदमाश,पाजी,दुष्ट
- लटभ—वि॰—-—-—लावण्यमय,मनोहर,सुंदर,आकर्षक,प्रिय
- लट्टः—पुं॰—-—-—दुष्ट ,बदमाश
- लट्वः—पुं॰—-—लटेः+क्वन्—घोड़ा
- लट्वः—पुं॰—-—-—नाचने वाला लड़का
- लट्वः—पुं॰—-—-—एक जाति का नाम
- लट्वा—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का पक्षी
- लट्वा—स्त्री॰—-—-—मस्तक पर बालों का घूँघर,अलक
- लट्वा—स्त्री॰—-—-—चिड़िया,गौरया
- लट्वा—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का वाद्ययन्त्र
- लट्वा—स्त्री॰—-—-—एक खला
- लट्वा—स्त्री॰—-—-—जाफरान,केसर
- लट्वा—स्त्री॰—-—-—व्यभिचारिणी स्त्री
- लड्—भ्वा॰ पर॰ लडति—-—-— खेलाना,क्रीडा करना,हावभाव दिखाना
- लड्—भ्वा॰ पर॰चुरा॰ पर॰< लडति>,<लडयति>—-—-—फेंकना,उछालना
- लड्—भ्वा॰ पर॰चुरा॰ पर॰< लडति>,<लडयति>—-—-—कलंक लगाना
- लड्—भ्वा॰ पर॰चुरा॰ पर॰< लडति>,<लडयति>—-—-—जीभ लपलपाना
- लड्—भ्वा॰ पर॰चुरा॰ पर॰< लडति>,<लडयति>—-—-—तंग करना,सताना
- लड्—चुरा॰उभ॰ <लाडयति>,<लाडयते>—-—-—लाड़् प्यार करना,पुचकारना,दुलारना
- लड्—चुरा॰उभ॰ <लाडयति>,<लाडयते>—-—-—सताना
- लडह—वि॰—-—-—सुंदर,मनोहर
- लड्डुः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की मिठाई,लड्डू,मोदक
- लड्डुकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की मिठाई,लड्डू,मोदक
- लण्ड्—भ्वा॰ पर॰चुरा॰ पर॰< लण्डति>,<लण्डयति>,<लण्डयते>—-—-—ऊपर को उछालना,ऊपर की ओर फेंकना
- लण्ड्—भ्वा॰ पर॰चुरा॰ पर॰< लण्डति>,<लण्डयति>,<लण्डयते>— —-—बोलना
- लण्डम्—नपुं॰—-—लण्ड्+घञ्—विष्ठा,मल
- लण्ड्रः—पुं॰—-—-—लन्दन
- लता—स्त्री॰—-—लत+अच्+टाप्—बेल, फैलने वाला पौधा
- लता—स्त्री॰—-—-—शाखा
- लता—स्त्री॰— —-—प्रियंगु लता
- लता—स्त्री॰—-—-—माधवी लता
- लता—स्त्री॰—-—-—कस्तूरी लता
- लता—स्त्री॰—-—-—हंटर या कोड़े का सड़ाका
- लता—स्त्री॰—-—-—मोतियों की लड़ी
- लता—स्त्री॰—-—-—सुकुमार स्त्री
- लतान्तम्—नपुं॰—लता-अन्तम्—-—फूल
- लताम्बुजम्—नपुं॰—लता-अम्बुजम्—-—एक प्रकार की ककड़ी
- लतार्कः—पुं॰—लता-अर्कः—-—हरा प्याज
- लतालकः—पुं॰—लता-अलकः—-—हाथी
- लताननः—पुं॰—लता-आननः—-—नाचते समय हाथों की विशेष मुद्रा
- लतोद्गमः—पुं॰—लता-उद्गमः—-—लता का ऊपर को चढना
- लताकरः—पुं॰—लता-करः—-—नाचते समय हाथों की विशेष मुद्रा
- लताकस्तूरिका—स्त्री॰—लता-कस्तूरिका—-— कस्तूरी की बेल
- लताकस्तूरी—स्त्री॰—लता-कस्तूरी—-—कस्तूरी की बेल
- लतागृहः—पुं॰—लता-गृहः—-—लतागृह ,लताकुंज
- लतागृहम्—नपुं॰—लता-गृहम्—-—लतागृह ,लताकुंज
- लताजिह्वः—पुं॰—लता-जिह्वः—-—साँप
- लतारसनः—पुं॰—लता-रसनः—-—साँप
- लतातरुः—पुं॰—लता-तरुः—-—साल का वृक्ष
- लतातरुः—पुं॰—लता-तरुः—-—संतरे का पेड़
- लतापनसः—पुं॰—लता-पनसः—-—तरबूज
- लताप्रतानः—पुं॰—लता-प्रतानः—-—लता तन्तु
- लताभवनम्—नपुं॰—लता-भवनम्—-—लतागृह ,लताकुंज
- लतामणिः—पुं॰—लता-मणिः—-—मूँगा
- लतामण्डपः—पुं॰—लता-मण्डपः—-—लतागृह ,लताकुंज
- लतामृगः—पुं॰—लता-मृगः—-—बन्दर
- लतायावकम्—नपुं॰—लता-यावकम्—-—अंकुर,अखुआ
- लतावलयः—पुं॰—लता-वलयः—-—लताकुंज
- लतावलयम्—नपुं॰—लता-वलयम्—-—लताकुंज
- लतावृक्षः—पुं॰—लता-वृक्षः—-—नारियल का पेड़
- लतावेष्टः—पुं॰—लता-वेष्टः—-—एक प्रकार का रतिबन्ध,संभोग का प्रकार
- लतावेष्टनम्—नपुं॰—लता-वेष्टनम्—-—आलिङ्गन का प्रकार
- लतावेष्टितकम्—नपुं॰—लता-वेष्टितकम्—-—आलिङ्गन का प्रकार
- लतिका—स्त्री॰—-—-—छोटी लता, बेल
- लतिका—स्त्री॰—-—लता+कन्+टाप्—मोतियों की लड़ी
- लत्तिका—स्त्री॰—-—लत्+तिकन्+टाप्—एक प्रकार की छिपकली
- लप्—भ्वा॰ पर॰ <लपति>—-—-—बोलना, बातें करना
- लप्—भ्वा॰ पर॰ <लपति>—-—-—चायँ चायँ करना,चीं चीं करना
- लप्—भ्वा॰ पर॰ <लपति>—-—-—कानाफूसी करना
- लप्—भ्वा॰ पर॰, <लापयति><लापयते>—-—-—बातें करवाना
- अनुलप्—भ्वा॰ पर॰—अनु-लप्—-—दोहराना, बार बार बातें करना
- अपलप्—भ्वा॰ पर॰—अप-लप्—-—मुकरना,स्वीकार नहीं करना,इन्कार कर देना
- अपलप्—भ्वा॰ पर॰—अप-लप्—-—छिपाना, ढ़्कना
- आलप्—भ्वा॰ पर॰—आ-लप्—-—बातें करना,वार्तालाप करना
- आलप्—भ्वा॰ पर॰—आ-लप्—-—बातें करना,बोलना
- आलप्—भ्वा॰ पर॰—आ-लप्—-—चायँ चायँ करना,चीं चीं करना,बक,बक करना,निरर्थक बातें करना
- विलप्—भ्वा॰ पर॰—वि-लप्—-—कहना,बोलना
- विलप्—भ्वा॰ पर॰—वि-लप्—-—विलाप करना,शोक मनाना,क्रन्दन करना,रोना
- विलप्—भ्वा॰ पर॰—वि-लप्—-—झगड़ा करना,विरोध करना,वाद विवाद करना,तू तू मैं मैं करना
- संलप्—भ्वा॰ पर॰—सम्-लप्—-—बातें करना वार्तालाप करना
- संलप्—भ्वा॰ पर॰—सम्-लप्—-—नाम लेना, पुकारना
- लपनम्—नपुं॰—-—लप्+ल्युट्—बातें करना,बोलना
- लपनम्—नपुं॰—-—-—मुख
- लपित—भू॰ क॰कृ॰—-—लप्+क्त—बोला हुआ,कहा हुआ,चीं,चीं किया हुआ
- लपितम्—नपुं॰—-—-—वाणी,आवाज
- लब्ध—भू॰ क॰कृ॰—-—लभ्+क्त—हासिल किया, प्राप्त किया,अवाप्त
- लब्ध—भू॰ क॰कृ॰—-—-—लिया,प्राप्त किया
- लब्ध—भू॰ क॰कृ॰—-—-—प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया,बोध पाया
- लब्ध—भू॰ क॰कृ॰—-—-—उपलब्ध किया
- लब्धम्—नपुं॰—-—-—जो प्राप्त कर लिया गया , या सुरक्षित हो गया
- लब्धान्तर—वि॰—लब्ध-अन्तर—-—जिसने की अवसर प्राप्त कर लिया है
- लब्धान्तर—वि॰—लब्ध-अन्तर—-—जिसकी कहीं पहुंच हो गई है या प्रवेश मिल गया है
- लब्धावकाश—वि॰—लब्ध-अवकाश—-—जिसे किसी बात का अवसर मिल गया है
- लब्धावकाश—वि॰—लब्ध-अवकाश—-—(कोई भी बात) जिसे (कार्य के लिए)क्षेत्र मिल गया है
- लब्धावकाश—वि॰—लब्ध-अवकाश—-—जिसने फुरसत प्राप्त कर ली है,जिसे अवकाश का समय मिल गया है
- लब्धास्पद—वि॰—लब्ध-आस्पद—-—जिसने कहीं पैर जमा लिया है, या कोई पद प्राप्त कर लिया है
- लब्धोदय—वि॰—लब्ध-उदय—-—जन्म लिया हुआ,उत्पन्न,उदित
- लब्धोदय—वि॰—लब्ध-उदय—-—समृद्धशाली,उन्नत
- लब्धकाम—वि॰—लब्ध-काम—-—जिसे अभीष्ट पदार्थ मिल गये हैं
- लब्धकीर्ति—वि॰—लब्ध-कीर्ति—-—विश्रुत, प्रसिद्ध,विख्यात
- लब्धचेतस्—वि॰—लब्ध-चेतस्—-—जिसे होश आगया है , जिसकी बेहोशी दूर हो गई है
- लब्धसंज्ञ—वि॰—लब्ध-संज्ञ—-—जिसे होश आगया है , जिसकी बेहोशी दूर हो गई है
- लब्धजन्मन—वि॰—लब्ध-जन्मन—-—उत्पन्न,पैदा
- लब्धनामन्—वि॰—लब्ध-नामन्—-—विश्रुत,विख्यात
- लब्धशब्द—वि॰—लब्ध-शब्द—-—विश्रुत,विख्यात
- लब्धनाशः—पुं॰—लब्ध-नाशः—-—प्राप्त कि हुई वस्तु का नाश
- लब्धप्रशमनम्—नपुं॰—लब्ध-प्रशमनम्—-—प्राप्त कि हुई वस्तु को सुरक्षा पूर्वक रखना
- लब्धप्रशमनम्—नपुं॰—लब्ध-प्रशमनम्—-—सुपात्र को दान या धन समर्पण
- लब्धलक्ष—वि॰—लब्ध-लक्ष—-—जिसने ठीक निशाने पर आघात किया है
- लब्धलक्ष—वि॰—लब्ध-लक्ष—-—अस्त्र प्रयोग में कुशल
- लब्धलक्ष्य—वि॰—लब्ध-लक्ष्य—-—जिसने ठीक निशाने पर आघात किया है
- लब्धलक्ष्य—वि॰—लब्ध-लक्ष्य—-—अस्त्र प्रयोग में कुशल
- लब्धवर्ण—वि॰—लब्ध-वर्ण—-—विद्वान्,बुद्धिमान्
- लब्धभाज्—वि॰—लब्ध-भाज्—-—प्रसिद्ध,विश्रुत ,विख्यात
- लब्धभाज्—वि॰—लब्ध-भाज्—-—विद्वानों का आदर करने वाला
- लब्धविद्य—वि॰—लब्ध-विद्य—-—विद्वान्,शिक्षित,बुद्धिमान्
- लब्धविद्य—वि॰—लब्ध-विद्य—-—जिसने अभीष्ट पदार्थ या पूर्णता प्राप्त कर ली
- लब्धिः—स्त्री॰—-—लभ् +क्तिन्—अभिग्रहण,प्राप्ति,अवाप्ति
- लब्धिः—स्त्री॰—-—-—लाभ,फायदा,
- लब्धिः—स्त्री॰— —-—भजनफल
- लब्ध्रिम—वि॰—-—लभ्+त्त्क्रि,मप्—प्राप्त,अवाप्त,उपलब्ध
- लभ्—भ्वा॰आ॰<लभते>,<लब्ध>—-—-—हासिल करना,प्राप्त करना,उपलब्ध करना,अवाप्त करना
- लभ्—भ्वा॰आ॰<लभते>,<लब्ध>—-—-—रखना,अधिकार में लेना,कब्जे में होना
- लभ्—भ्वा॰आ॰<लभते>,<लब्ध>—-—-—लेना,प्राप्त करना
- लभ्—भ्वा॰आ॰<लभते>,<लब्ध>—-—-—पकड़ना,लेना,दबोचना
- लभ्—भ्वा॰आ॰<लभते>,<लब्ध>—-—-—मालूम करना,मुकाबला होना
- लभ्—भ्वा॰आ॰<लभते>,<लब्ध>—-—-—वसूल करना,उगाहना
- लभ्—भ्वा॰आ॰<लभते>,<लब्ध>—-—-—जानना,सीखना,प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना
- लभ्—भ्वा॰आ॰<लभते>,<लब्ध>—-—-—किसी बात को करने के योग्य होना
- गर्भलभ्—भ्वा॰आ॰—गर्भ-लभ्—-—गर्भवती होना,गर्भ धारण करना
- पदंलभ्—भ्वा॰आ॰—पदं-लभ्—-—पैर जमाना, प्रभाव रखना
- आस्पदंलभ्—भ्वा॰आ॰—आस्पदं-लभ्—-—पैर जमाना, प्रभाव रखना
- आन्तरंलभ्—भ्वा॰आ॰—आन्तरं-लभ्—-—पग रखना,प्रविष्ट होना
- चेतनांलभ्—भ्वा॰आ॰—चेतनां- लभ्—-—होश में आना
- संज्ञालभ्—भ्वा॰आ॰—संज्ञा- लभ्—-—होश में आना
- जन्मलभ्—भ्वा॰आ॰—जन्म-लभ्—-—पैदा होना
- दर्शनंलभ्—भ्वा॰आ॰—दर्शनं लभ्—-—भेंट होना,साक्षात्कार होना,दर्शन करना
- स्वास्थ्यंलभ्—भ्वा॰आ॰—स्वास्थ्यं लभ्—-—स्वस्थ होना,आराम में होना
- स्वास्थ्यंलभ्—भ्वा॰उभ॰प्रेर॰<लम्भयति>,<लम्भयते>—स्वास्थ्यं लभ्—-—प्राप्त करवाना, लिवाना
- स्वास्थ्यंलभ्—भ्वा॰आ॰—स्वास्थ्यं लभ्—-—देना, प्रदान करना, अर्पण करना
- स्वास्थ्यंलभ्—भ्वा॰आ॰—स्वास्थ्यं लभ्—-—कष्ट उठाना
- स्वास्थ्यंलभ्—भ्वा॰आ॰—स्वास्थ्यं लभ्—-—प्राप्त करना,लेना
- स्वास्थ्यंलभ्—भ्वा॰आ॰—स्वास्थ्यं लभ्—-—मालूम करना, खोजना,प्राप्त करने की इच्छा करना,प्रबल लालसा रखना
- स्वास्थ्यंलभ्—भ्वा॰आ॰, इच्छा॰<लिप्सते>—स्वास्थ्यं लभ्—-—प्राप्त करने की इच्छा करना,प्रबल लालसा रखना
- आलभ्—भ्वा॰आ॰—आ-लभ्—-—स्पर्श करना
- आलभ्—भ्वा॰आ॰—आ-लभ्—-—प्राप्त करना, हसिल करना,पहुंचना
- आलभ्—भ्वा॰आ॰—आ-लभ्—-—मार ड़ालना,यज्ञ में पशु का बलिदान करना
- उपलभ्—भ्वा॰आ॰—उप-लभ्—-—जानना,समझना,प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना
- उपलभ्—भ्वा॰आ॰—उप-लभ्—-—निश्चय करना, मालूम करना
- उपलभ्—भ्वा॰आ॰—उप-लभ्—-—हासिल करना,प्राप्त करना,अवाप्त करना उपभोग करना,अनुभव प्राप्त करना
- उपालभ्—भ्वा॰आ॰—उप-आ-लभ्—-—कलंक लगाना,बुरा भला कहना,चुभती बात कहना,खरी खोटी सुनाना
- प्रतिलभ्—भ्वा॰आ॰—प्रति-लभ्—-—वसूल करना, फिर से उपलब्ध करना
- प्रतिलभ्—भ्वा॰आ॰—प्रति-लभ्—-—हासिल करना, प्राप्त करना
- विप्रलभ्—भ्वा॰आ॰—विप्र-लभ्—-—ठगना,धोखा देना,आँख में धूल झोकना
- विप्रलभ्—भ्वा॰आ॰—विप्र-लभ्—-—वसूल करना, फिर से उपलब्ध करना
- विप्रलभ्—भ्वा॰आ॰—विप्र-लभ्—-—अपमान करना,अनादर करना
- संलभ्—भ्वा॰आ॰—सम्-लभ्—-—हासिल करना
- लभनम्—नपुं॰—-—लभ्+ल्युट्—हासिल करने कि क्रिया,प्राप्त करना
- लभनम्—नपुं॰—-—-—प्रत्यय पहचानने की क्रिया
- लभसः—पुं॰—-—लभ्+असच्—दौलत,धन
- लभसः—पुं॰—-—-—जो निवेदन करता है , निवेदक
- लभसम्—नपुं॰—-—-—घोडे़ को बांधने की रस्सी
- लभ्य—वि॰—-—लभ्+कर्मणि+ यत्—प्राप्त होने के योग्य,पहुँचने के योग्य,अवाप्त होने य प्राप्त करने के योग्य
- लभ्य—वि॰—-—-—मिलने के योग्य
- लभ्य—वि॰—-—-—योग्य,उपयुक्त,उचित
- लभ्य—वि॰—-—-—सुबोध
- लमकः—पुं॰—-—रभ्+क्वुन्, रस्य लत्वम्—प्रेमी,जार
- लम्पट—वि॰—-—रम्+अटन्,पुक,रस्य लः—ललची,लोलुप ,लालायित
- लम्पट—वि॰—-—-—विषयी,विलासी,कामुक,व्यसनी,इन्द्रियपरायण
- लम्पटः—पुं॰—-—-—स्वेच्छाचारी,दुश्चरित्र,दुराचारी
- लम्पाक—वि॰—-—-—स्वेच्छाचारी,दुश्चरित्र,दुराचारी
- लम्फः—पुं॰—-—लम्फ्+घञ्—कूद,उछाल,छलांग
- लम्फनम्—नपुं॰—-—लम्फ्+ल्युट—कूदना,उछलना
- लम्ब्—भ्वा॰,आ॰<लम्बते>,<लंबित—-—-—लटकना,टांगना,दोलयमान होना,
- लम्ब्—भ्वा॰,आ॰<लम्बते>,<लंबित—-—-—अनुपयुक्त होना,चिपकना,सहारा लेना,आश्रित होना
- लम्ब्—भ्वा॰,आ॰<लम्बते>,<लंबित—-—-—नीचे जाना,डूबना,(सूर्य आदि का ) अस्त होना ,नीचे गिरना
- लम्ब्—भ्वा॰,आ॰<लम्बते>,<लंबित—-—-—पीछे गिरना या पड़ना,पिछड़ना
- लम्ब्—भ्वा॰,आ॰<लम्बते>,<लंबित—-—-—विलंब करना,ठहरना
- लम्ब्—भ्वा॰,आ॰<लम्बते>,<लंबित—-—-—ध्वनि करना
- लम्ब्—भ्वा॰,प्रेर॰<लम्बयति><लम्बयते>—-—-—हराना,नीचे लटकाना
- लम्ब्—भ्वा॰,प्रेर॰<लम्बयति><लम्बयते>—-—-—ऊपर लटकाना,स्थगित करना
- लम्ब्—भ्वा॰,प्रेर॰<लम्बयति><लम्बयते>—-—-—बिछाना,(हाथ आदि) फैलाना
- अवलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—अव-लम्ब्—-—लटकना,लटकाना, स्थगित होना
- अवलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—अव-लम्ब्—-—नीचे डूब जाना,उतरना
- अवलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—अव-लम्ब्—-—थामना,जुड़ना,झुकनाया सहारा लेना,पालन पोषण करना
- अवलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—अव-लम्ब्—-—थामना,संभालना,पालन पोषण करना,जीवित रहना,ले लेना
- अवलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—अव-लम्ब्—-—निर्भर रहना,टिकना
- अवलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—अव-लम्ब्—-—सहारा लेना,आश्रय लेना,भरोसा करना
- धैर्यमवलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—-—-—धैर्य या साहस से काम लेना
- आलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—आ-लम्ब्—-—आराम करना,झुकना
- आलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—आ-लम्ब्—-—लट्कना, स्थगित होना
- आलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—आ-लम्ब्—-—हथियाना,पकड़ना
- आलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—आ-लम्ब्—-—पालन पोषण करना,थामना,उत्तरदायित्व लेना
- आलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—आ-लम्ब्—-—निर्भर होना
- आलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—आ-लम्ब्—-—सहारा लेना,आश्रय लेना,हाथ पकड़ना,धारण करना
- उल्लम्ब्—भ्वा॰,आ॰—उद्-लम्ब्—-—खड़ा होना,सीधा खड़ा होना
- विलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—वि-लम्ब्—-—लटकाना, लटकना,स्थगित होना
- विलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—वि-लम्ब्—-—अस्त होना,क्षीण होना
- विलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—वि-लम्ब्—-—ठहरना, पिछड़ना ,रह जाना
- विलम्ब्—भ्वा॰,आ॰—वि-लम्ब्—-—देर करना,मन्दगति होना
- लम्ब—वि॰—-—लम्ब्+अच्—नीचे की ओर लटकता हुआ,झूलता हुआ, लम्बमान दोलायमान
- लम्ब—वि॰—-—-—लटकता हुआ,अनुषक्त
- लम्ब—वि॰—-—-—बड़ा,विस्तृत
- लम्ब—वि॰—-—-—विस्तीर्ण
- लम्ब—वि॰—-—-—लंबा,ऊँचा
- लम्बः—पुं॰—-—-—लम्बमापक
- लम्बः—पुं॰—-—-—सह-अक्ष रेखा,किसीस्थान के ऊर्ध्वबिन्दु और ध्रुवबिन्दु का मध्यवर्ती चाप,अक्षरेखा का पूरक
- लम्बोदर—वि॰—लम्ब-उदर—-—बड़े पेट वाला,तोंद वाला,स्थूलकाय
- लम्बोदरः—पुं॰—लम्ब-उदरः—-—गणेश का नामान्तर
- लम्बोदरः—पुं॰—लम्ब-उदरः—-—भोजन भट्ट
- लम्बकर्णः—पुं॰—लम्ब-कर्णः—-—गधा
- लम्बकर्णः—पुं॰—लम्ब-कर्णः—-—बकरा
- लम्बकर्णः—पुं॰—लम्ब-कर्णः—-—हाथी
- लम्बकर्णः—पुं॰—लम्ब-कर्णः—-—बाज,शिकरा
- लम्बकर्णः—पुं॰—लम्ब-कर्णः—-—पिशाच, राक्षस
- लम्बजठर—वि॰—लम्ब-जठर—-— मोटे पेट वाला,भारीभरकम
- लम्बपयोधरा—स्त्री॰—लम्ब-पयोधरा—-—वह स्त्री जिसके स्तन भारी हों और नीचे लटकते हों
- लम्बस्फिच्—वि॰—लम्ब-स्फिच्—-—जिसके नितंब भारी और उभरे हुए हों
- लम्बकः—पुं॰—-—लम्ब्+कन्—लम्बरेखा
- लम्बकः—पुं॰—-—-—अक्षरेखा का पूरक,सह अक्षरेखा
- लम्बनः—पुं॰—-—लम्ब्+ल्युट्—शिव का विशेषण
- लम्बनः—पुं॰—-—-—कफ प्रधान प्रकृति
- लम्बनम्—नपुं॰—-—-—नीचे लटकना,निर्भर रहना,उतरना
- लम्बनम्—नपुं॰—-—-—झालर
- लम्बनम्—नपुं॰—-—-—देशान्तर में स्थान भ्रंश
- लम्बनम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का लम्बा हार
- लम्बा—स्त्री॰—-—-—दुर्गा का विशेषण
- लम्बा—स्त्री॰—-—-—लक्ष्मी का विशेषण
- लम्बिका—स्त्री॰—-—लम्ब्+ण्वुल्+टाप्—कोमल तालु का लटकता हुआ मांसल भाग,उपजिह्वा,कण्ठ के अन्दर का कौवा
- लम्बित—भू॰ क॰कृ॰—-—लम्ब्+क्त—नीचे लटकता हुआ,झूलता हुआ
- लम्बित—भू॰ क॰कृ॰—-—-—स्थगित
- लम्बित—भू॰ क॰कृ॰—-—-—डुबा हुआ,नीचे गया हुआ
- लम्बित—भू॰ क॰कृ॰—-—-—सहारा लिए हुए,अनुषक्त
- लम्बुषा—स्त्री॰—-—-—सात लड़ियों का हार
- लम्भः—पुं॰—-—लभ्+घञ् नुम्—उपार्जित ,हासिल,प्राप्त
- लम्भः—पुं॰—-—-—दत्त
- लम्भः—पुं॰—-—-—सुधारा हुआ
- लम्भः—पुं॰—-—-—नियुक्त,प्रयुक्त
- लम्भः—पुं॰—-—-—संजोया
- लम्भः—पुं॰—-—-—कहा गया,संबोधित
- लय्—भ्वा॰आ॰<लयते>—-—-—जाना,हिलना,जुलना
- लयः—पुं॰—-—ली+अच्—चिपकना,मिलाप,लगाव
- लयः—पुं॰—-—-—प्रच्छन्न,छिपा हुआ
- लयः—पुं॰—-—-—संगलन,पिघलना,घोल
- लयः—पुं॰—-—-—अदर्शन विघटन,बुझाना,विनाश,नष्ट होना
- लयः—पुं॰—-—-—मन की लीनता
- लयः—पुं॰—-—-—गहन एकाग्रता,अनन्य भक्ति
- लयः—पुं॰—-—-—संगीत की लय
- लयः—पुं॰—-—-—संगीत में विश्राम
- लयः—पुं॰—-—-—आराम
- लयः—पुं॰—-—-—विश्राम स्थान,आवास निवास
- लयः—पुं॰—-—-—मन की शिथिलता,मानसिक अकर्मण्यता
- लयः—पुं॰—-—-—आलिंगन
- लयारम्भः—पुं॰—लयः-आरम्भः—-—पात्र,अभिनेता,नर्तक
- लयालम्भः—पुं॰—लयः-आलम्भः—-—पात्र,अभिनेता,नर्तक
- लयकालः—पुं॰—लयः-कालः—-—सृष्टि का प्रलयकाल
- लयगत—वि॰—लयः-गत—-—विघटित,पिघला हुआ
- लयपुत्री—स्त्री॰—लयः-पुत्री—-—नटी,अभिनेत्री,नर्तकी
- लयनम्—नपुं॰—-—ली+ल्युट्—अनुक्त होना,जुड़ना,चिपकना
- लयनम्—नपुं॰—-—-—विश्राम ,आराम
- लयनम्—नपुं॰—-—-—विश्रामस्थल,घर
- लर्ब्—भ्वा॰पर॰लर्बति—-—-—जाना,हिलना,जुलना
- लल्—भ्वा॰उभ॰<ललति><ललते>—-—-—खेलना,क्रीड़ा करना,इठलाना ,किलोल करना
- लल्—चुरा॰उभ॰या प्रेर॰<लालयति><लालयते><लालित>—-—-—खेलने की प्रेरणा देना,पुचकारना,लाड प्यार करना,दुलार करना,प्रेमालिंगन करना
- लल्—चुरा॰उभ॰या प्रेर॰<लालयति><लालयते><लालित>—-—-—इच्छा करना
- लल्—चुरा॰उभ॰<लालयति><लालयते>—-—-—लाडप्यार करना
- लल्—चुरा॰उभ॰<लालयति><लालयते>—-—-—जीभ लपलपाना
- लल्—चुरा॰उभ॰<लालयति><लालयते>—-—-—इच्छा करना
- लल—वि॰—-—ल+अच्—क्रीडासक्त,विनोदप्रिय
- लल—वि॰—-—-—लपलपानेवाला
- लल—वि॰—-—-—अभिलाषी,इच्छुक
- ललजिह्व—वि॰—लल-जिह्व—-—जीभ से लपलप करने वाला
- ललत्—वि॰—-—लल्+शतृ—खेलने वाला,विहार करने वाला
- ललत्—वि॰—-—-—लपलपाता हुआ
- ललज्जिह्व—वि॰—ललत्-जिह्व—-—जीभ से लपलप करने वाला
- ललज्जिह्वः—पुं॰—ललत्-जिह्वः—-—बर्बर,भीषण
- ललज्जिह्वः—पुं॰—-—-— कुत्ता
- ललज्जिह्वः—पुं॰—-—-—ऊँट
- ललनम्—नपुं॰—-—लल्+ल्युट्—क्रीड़ा, खेल ,आमोद,रंगरेली
- ललनम्—नपुं॰—-—-—जीभ बाहर निकालना
- ललना—स्त्री॰—-—लल्+णिच्+ल्युट्+टाप्—स्त्री
- ललना—स्त्री॰—-—-—स्वेच्छाचारिणी स्त्री
- ललना—स्त्री॰—-—-—जिह्वा
- ललनाप्रियः—पुं॰—ललना-प्रियः—-—कदंब का पेड़
- ललनिका—स्त्री॰—-—ललना+कन्+टाप्—छोटी स्त्री,अभागी स्त्री
- ललन्तिका—स्त्री॰—-—लल्+शतृ+ङीप्+कन्+टाप्—लंबी माला,
- ललन्तिका—स्त्री॰—-—-—छिपकली
- ललाकः—पुं॰—-—लल्+आकन्—पुरुष का लिंग,जनेन्द्रिय
- ललाटम्—नपुं॰—-—लड्+अच् डस्य लः,ललमटति अट्+अण् वा—मस्तक
- ललाटाक्षः—पुं॰—ललाट-अक्षः—-—शिव का विशेषण
- ललाटतटम्—नपुं॰—ललाट-तटम्—-—मस्तक का ढलान,माथा
- ललाटपट्टः—पुं॰—ललाट-पट्टः—-—मस्तक का सपाट तल
- ललाटपट्टः—पुं॰—ललाट-पट्टः—-—शिरोवेष्टन,त्रिमुकुट,सिर कि चोटी,केशबंध
- ललाटपट्टिका—स्त्री॰—ललाट-पट्टिका—-—मस्तक का सपाट तल
- ललाटपट्टिका—स्त्री॰—ललाट-पट्टिका—-—शिरोवेष्टन,त्रिमुकुट,सिर कि चोटी,केशबंध
- ललाटलेखा—स्त्री॰—ललाट-लेखा—-—मस्तक की रेखा
- ललाटम्—नपुं॰—-—ललाट-कन्—मस्तक,सुन्दर माथा
- ललाटन्तप—वि॰—-—लला+तप्+खश्,+मुम्—मस्तक को जलाने या तपाने वाला
- ललाटन्तप—वि॰—-—-—मस्तक को जलाने या तपाने वाला
- ललाटन्तपः—पुं॰—-—-—बहुत पीडाकर
- ललाटिका—स्त्री॰—-—ललाट+कन्+टाप्—मस्तक पर पहना जाने वाला आभूषण,टीका
- ललाटिका—स्त्री॰—-—-—मस्तक पर चन्दन का या अन्य किसी सुगन्धित चूर्ण का तिलक
- ललाटूल—वि॰—-—-—उन्नत और सुन्दर मस्तकवाला
- ललाम—वि॰—-—लड्+क्विप्,डस्य लत्वम्,तम् अमति-अम्+अण्—सुन्दर,प्रिय,मनोहर
- ललामम्—नपुं॰—-—-—मस्तक का आभूषण,टीका,सामान्य अलंकार
- ललामम्—नपुं॰—-—-—कोई भी श्रेष्ठ वस्तु
- ललामम्—नपुं॰—-—-—मस्तक का तिलक
- ललामम्—नपुं॰—-—-—चिह्न, प्रतीक, तिलक
- ललामम्—नपुं॰—-—-—झण्डा, पताका
- ललामम्—नपुं॰—-—-—पंक्ति, माला, रेखा
- ललामम्—नपुं॰—-—-—पूँछ
- ललामम्—नपुं॰—-—-—अयाल, गरदन के बाल
- ललामम्—नपुं॰—-—-—प्राधान्य, मर्यादा, सौन्दर्य
- ललामम्—नपुं॰—-—-—सींग
- ललामः—पुं॰—-—-—घोड़ा
- ललामकम्—नपुं॰—-—ललाम+कन्—फूलों का गजरा जो मस्तक पर धारण किया जाता है
- ललामन्—नपुं॰—-—लल्+इमनिन—अलंकार, आभूषण
- ललामन्—नपुं॰—-—लल्+इमनिन—कोई भी अपने प्रकार की श्रेष्ठवस्तु
- ललामन्—नपुं॰—-—लल्+इमनिन—झंडा पताका
- ललामन्—नपुं॰—-—लल्+इमनिन—साम्प्रदायिक चिह्न, तिलक, संकेत, प्रतीक
- ललामन्—नपुं॰—-—लल्+इमनिन—पूंछ
- ललित—वि॰—-—लल्+क्त—क्रीड़ासक्त, खेलने वाला, इठलाने वाला
- ललित—वि॰—-—लल्+क्त—श्रृंगारप्रिय, क्रीडाप्रिय, स्वेच्छाचारी, विषयासक्त
- ललित—वि॰—-—लल्+क्त—प्रिय, सुन्दर, मनोहर, प्रांजल
- ललित—वि॰—-—लल्+क्त—सुहावना, लावण्यमय, रुचिकर, बढ़िया
- ललित—वि॰—-—लल्+क्त—अभीष्ट
- ललित—वि॰—-—लल्+क्त—मृदु, कोमल
- ललित—वि॰—-—लल्+क्त—थरथराता हुआ, कम्पायमान
- ललितम्—नपुं॰—-—-—क्रीडा, रंगरेली, खेल
- ललितम्—नपुं॰—-—-—श्रृंगार परक विनोद, गतिलावण्य, स्त्रियों में प्रीति विषयक हावभाव
- ललितम्—नपुं॰—-—-—सौन्दर्य, लावण्य, आकर्षण
- ललितम्—नपुं॰—-—-—कोई भी प्राकृतिक या स्वाभाविक क्रिया
- ललितम्—नपुं॰—-—-—सरलता, भोलापन
- ललितार्थ—वि॰—ललित-अर्थ—-—सुन्दर या प्रीतिविषयक अर्थ वाला
- ललितपद—वि॰—ललित-पद—-—प्रांजलरचनायुक्त
- ललितप्रहारः—पुं॰—ललित-प्रहारः—-—मृदु या कोमल आघात
- ललिता—स्त्री॰—-—ललित+टाप्—स्त्री
- ललिता—स्त्री॰—-—ललित+टाप्—स्वेच्छाचारिणी स्त्री
- ललिता—स्त्री॰—-—ललित+टाप्—कस्तूरी
- ललिता—स्त्री॰—-—ललित+टाप्—दुर्गा का एक रूप
- ललिता—स्त्री॰—-—ललित+टाप्—विभिन्न छन्दों के नाम
- ललितापञ्चमी—स्त्री॰—ललिता-पञ्चमी—-—आश्विनशुक्ल का पांचवाँ दिन
- ललितासप्तमी—स्त्री॰—ललिता-सप्तमी—-—भाद्रपद के शुक्लपक्ष का सातवाँ दिन
- लवः—पुं॰—-—ल्+अप्—उत्पाटन, उल्लुंचन
- लवः—पुं॰—-—ल्+अप्—कटाई, लावनी
- लवः—पुं॰—-—ल्+अप्—अनुभाग, टुकड़ा, खण्ड, कवल या ग्रास
- लवः—पुं॰—-—ल्+अप्—कण, बूँद, अल्पमात्रा, थोड़ा
- लवः—पुं॰—-—ल्+अप्—ऊन, पशम
- लवः—पुं॰—-—ल्+अप्—क्रीडा
- लवः—पुं॰—-—ल्+अप्—समय का सूक्ष्म विभाग
- लवः—पुं॰—-—ल्+अप्—किसी भिन्न राशि अंश
- लवः—पुं॰—-—ल्+अप्—घात
- लवः—पुं॰—-—ल्+अप्—हानि, विनाश
- लवः—पुं॰—-—ल्+अप्—राम का एक पुत्र, यमल में से एक
- लवम्—नपुं॰—-—-—लौंग
- लवम्—नपुं॰—-—-—जायफल
- लवम्—अव्य॰—-—-—कुछ, थोड़ा सा
- लवङ्गः—पुं॰—-—लू+अङ्गच्—लौंग का पौधा
- लवङ्गम्—नपुं॰—-—-—लौंग
- लवङ्गकलिका—स्त्री॰—लवङ्गः-कलिका—-—लौंग
- लवङ्गकम्—नपुं॰—-—लवङ्ग+कन्—लौंग
- लवण—वि॰—-—लू+ल्युट्, पृषो॰ णत्वम्—क्षारीय, सलोना, नमकीन
- लवण—वि॰—-—लू+ल्युट्, पृषो॰ णत्वम्—प्रिय, मनोहर
- लवणः—पुं॰—-—-—खारी स्वाद
- लवणः—पुं॰—-—-—नमकीन पानी का समुद्र
- लवणः—पुं॰—-—-—एक राक्षस का नाम, मधु का पुत्र,
- लवणः—पुं॰—-—-—एक नरक का नाम
- लवणम्—नपुं॰—-—-—नमक
- लवणम्—नपुं॰—-—-—समुद्री नमक, लूण
- लवणम्—नपुं॰—-—-—कृत्रिम नमक
- लवणान्तकः—पुं॰—लवण-अन्तकः—-—शत्रुघ्न का विशेषण
- लवणाब्धिः—पुं॰—लवण-अब्धिः—-—खारी समुद्र
- लवणाब्धिजम्—नपुं॰—लवण-अब्धिः-जम्—-—समुद्री नमक
- लवणाम्बुराशिः—पुं॰—लवण-अम्बुराशिः—-—समुद्र
- लवणाम्भस्—पुं॰—लवण-अम्भस्—-—समुद्र
- लवणाम्भस्—नपुं॰—लवण-अम्भस्—-—नमकीन पानी
- लवणाकरः—पुं॰—लवण-आकरः—-—नमक की खान
- लवणाकरः—पुं॰—लवण-आकरः—-—नमकीन जलाशय अर्थात् समुद्र
- लवणाकरः—पुं॰—लवण-आकरः—-—लावण्य की खान
- लवणोत्तमम्—नपुं॰—लवण-उत्तमम्—-—सेंधा नमक
- लवणोत्तमम्—नपुं॰—लवण-उत्तमम्—-—यवक्षार
- लवणोदः—पुं॰—लवण-उदः—-—समुद्र
- लवणोदः—पुं॰—लवण-उदः—-—नमकीन पानी का समुद्र
- लवणोदकः—पुं॰—लवण-उदकः—-—समुद्र
- लवणोदधिः—पुं॰—लवण-उदधिः—-—समुद्र
- लवणजलः—पुं॰—लवण-जलः—-—समुद्र
- लवणक्षारम्—नपुं॰—लवण-क्षारम्—-—एक प्रकार का नमक
- लवणमेहः—पुं॰—लवण-मेहः—-—एक प्रकार का मूत्ररोग
- लवणसमूद्रः—पुं॰—लवण-समूद्रः—-—नमकीन समुद्र, सागर
- लवणा—स्त्री॰—-—लवण+टाप्—कान्ति, सौन्दर्य
- लवणिमन्—पुं॰—-—लवण+इमनिच्—नमकीनपना, लावण्य
- लवणिमन्—पुं॰—-—लवण+इमनिच्—सौन्दर्य, मनोहरता, चारुता
- लवनम्—नपुं॰—-—लू भावे कर्मणि च ल्युट्—लुनाई, लावनी, कटाई
- लवनम्—नपुं॰—-—लू भावे कर्मणि च ल्युट्—काटने का उपकरण, दरांती, हँसिया
- लवली—स्त्री॰—-—लव+ला+क+ङीष्—एक प्रकार की लता
- लवित्रम्—नपुं॰—-—लूयतेऽनेन+लू+इत्र—काटने का उपकरण, दरांती, हँसिया
- लश्—चुरा॰ उभ॰ <लशयति>, <लशयते>—-—-—किसी कला का अभ्यास करना
- लशुनः—पुं॰—-—अशेः उनन्, लशश्च—लहसुन
- लशुनम्—नपुं॰—-—अशेः उनन्, लशश्च—लहसुन
- लशूनः—पुं॰—-—अशेः उनन्, लशश्च—लहसुन
- लशूनम्—नपुं॰—-—अशेः उनन्, लशश्च—लहसुन
- लष्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <लषति>, <लष्यति>, लर्षित>—-—-—चाहना, इच्छा करना, लालायित होना, उत्सुक होना
- अभिलष्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰—अभि-लष्—-—चाहना, इच्छा करना, लालायित होना
- लषित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लष्+क्त—चाहा हुआ, वाञ्छित
- लष्वः—पुं॰—-—लष्+वन्—नाटक का पात्र, अभिनेता, नट, नर्तक
- लस्—भ्वा॰ पर॰ <लसति>, <लसित>—-—-—चमकना, दमकना, जगमगाना
- लस्—भ्वा॰ पर॰ <लसति>, <लसित>—-—-—प्रकट होना, उगना, प्रकाश में आना
- लस्—भ्वा॰ पर॰ <लसति>, <लसित>—-—-—आलिंगन करना
- लस्—भ्वा॰ पर॰ <लसति>, <लसित>—-—-—खेलना, किलोल करना, उछल-कूद करना, नाचना
- लस्—भ्वा॰ पर॰प्रेर॰ <लासयति>, <लासयते>—-—-—चमकना, शोभा बढ़ाना, अलंकृत करना
- लस्—भ्वा॰ पर॰प्रेर॰ <लासयति>, <लासयते>—-—-—नचाना
- लस्—भ्वा॰ पर॰प्रेर॰ <लासयति>, <लासयते>—-—-—कला का अभ्यास करना
- उल्लस्—भ्वा॰ पर॰—उद्-लस्—-—क्रीडा करना, खेलना, लहराना, फड़फड़ाना
- उल्लस्—भ्वा॰ पर॰—उद्-लस्—-—चमकना, जगमगाना, देदीप्यमान होना
- उल्लस्—भ्वा॰ पर॰—उद्-लस्—-—उदित होना, उगना
- उल्लस्—भ्वा॰ पर॰—उद्-लस्—-—फूँक मारना, खुलना, विस्तीर्ण होना
- उल्लस्—भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—उद्-लस्—-—रोशनी करना, उज्ज्वल करना
- परिलस्—भ्वा॰ पर॰—परि-लस्—-—चमकना, सुन्दर लगना
- विलस्—भ्वा॰ पर॰—वि-लस्—-—चमकना, जगमगाना, देदीप्यमान होना
- विलस्—भ्वा॰ पर॰—वि-लस्—-—दिखाई देना, उदय होना, प्रकट होना
- विलस्—भ्वा॰ पर॰—वि-लस्—-—क्रीडा करना, मनोविनोद करना, खेलना, किलोल करना
- विलस्—भ्वा॰ पर॰—वि-लस्—-—ध्वनि करना, गूँजना, प्रतिध्वनि करना
- लसा—स्त्री॰—-—लसति-लस्+अच्+टाप्—जाफरान, केसर
- लसा—स्त्री॰—-—लसति-लस्+अच्+टाप्—हल्दी
- लसिका—स्त्री॰—-—लस्+अच्+कन्+टाप् इय्वम्—थूक, लार
- लसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लस्+क्त—खेला, क्रीडा की, दिखाई दिया, प्रकट हुआ, इधर उधर उछल कूद करने वाला
- लसीका—स्त्री॰—-—लस+ङीष्+कन्+टाप्—थूक
- लसीका—स्त्री॰—-—लस+ङीष्+कन्+टाप्—पीप, मवाद
- लसीका—स्त्री॰—-—लस+ङीष्+कन्+टाप्—ईख का रस
- लसीका—स्त्री॰—-—लस+ङीष्+कन्+टाप्—टीके का रस
- लस्ज्—भ्वा॰ आ॰ <लज्जते>, <लज्जित>—-—-—शर्मिन्दा होना, लज्जा अनुभव करना
- लस्ज्—भ्वा॰ आ॰ <लज्जते>, <लज्जित>—-—-—शर्माना, लजाना
- लस्ज्—भ्वा॰ आ॰, प्रेर॰ <लज्जयति>, <लज्जयते>—-—-—लज्जित करना
- विलस्ज्—भ्वा॰ आ॰—वि-लस्ज्—-—शर्मीला, या विनीत होना, संकोच करना
- लस्त—वि॰—-—लस्+क्त—ध्नुष का मध्य भाग, वह भाग जहाँ हाथ से पकड़ा जाता है
- लस्तकिन्—पुं॰—-—लस्तक+इनि—धनुष
- लहरिः—स्त्री॰—-—लेन इन्द्रेण इव ह्रियते ऊर्ध्वगमनाय ल+हृ+इन्, पक्षे ङीष्—लहर, तरंग, बड़ी लहर, झाल
- लहरी—स्त्री॰—-—लेन इन्द्रेण इव ह्रियते ऊर्ध्वगमनाय ल+हृ+इन्, पक्षे ङीष्—लहर, तरंग, बड़ी लहर, झाल