विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/ला-वाद्य
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- मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
- ला—अदा॰ पर॰ लाति—-—-—लेना, प्राप्त करना, ग्रहण करना, संभालना
- लाकुटिक—वि॰—-—लकुटः प्रहरणमस्य ठक्—लाठी या सोटे से सुसज्जित
- लाकुटिकः—पुं॰—-—-—सन्तरी, पहरेदार
- लाक्षिक—स्त्री॰—-—-—सीता का नाम
- लाक्षणिक—वि॰—-—लक्षणया बोधयति ठक्—वह जो चिह्न या निशानोम् से परिचित हो
- लाक्षणिक—वि॰—-—लक्षणया बोधयति ठक्—विशिष्ट, संकेतक
- लाक्षणिक—वि॰—-—लक्षणया बोधयति ठक्—गौण अर्थ रखने वाला, गौण अर्थ में प्रयुक्त
- लाक्षणिक—वि॰—-—लक्षणया बोधयति ठक्—गौण, निकृष्ट
- लाक्षणिक—वि॰—-—लक्षणया बोधयति ठक्—पारिभाषिक शब्द
- लाक्षण्य—वि॰—-—लक्षणं वेत्ति-ञ्य—चिह्न संबंधी, संकेतद्योतक
- लाक्षण्य—वि॰—-—लक्षणं वेत्ति-ञ्य—लक्षणों का ज्ञात, लक्षण या संकेतों की व्याख्या करने के योग्य
- लाक्षा—स्त्री॰—-—लक्ष्यतेऽनया-लक्ष्+अच्, पृषो वृद्धिः—एक प्रकार का लाल रंग, महावर, लाख
- लाक्षा—स्त्री॰—-—लक्ष्यतेऽनया-लक्ष्+अच्, पृषो वृद्धिः—वीरबहूटी' जिससे यह रंग बनता है
- लाक्षातरुः—पुं॰—लाक्षा-तरुः—-—एक वृक्ष का नाम, पलास, ढाक
- लाक्षावृक्षः—पुं॰—लाक्षा-वृक्षः—-—एक वृक्ष का नाम, पलास, ढाक
- लाक्षाप्रसादः—पुं॰—लाक्षा-प्रसादः—-—लाल लोध्रवृक्ष
- लाक्षाप्रसाधनः—पुं॰—लाक्षा-प्रसाधनः—-—लाल लोध्रवृक्ष
- लाक्षारक्त—वि॰—लाक्षा-रक्त—-—लाख से रंगा हुआ
- लाक्षिक—वि॰—-—लाक्षा+ठक्—लाख से संबंध रखने वाला, लाख से बना हुआ या रंगा हुआ
- लाक्षिक—वि॰—-—लाक्षा+ठक्—एक लाख से संबद्ध
- लाख्—भ्वा॰ पर॰ <लाखति>—-—-—सूख जाना, नीरस होना
- लाख्—भ्वा॰ पर॰ <लाखति>—-—-—अलंकृत करना
- लाख्—भ्वा॰ पर॰ <लाखति>—-—-—पर्याप्त होना, सक्षम होना
- लाख्—भ्वा॰ पर॰ <लाखति>—-—-—प्रदान करना
- लाख्—भ्वा॰ पर॰ <लाखति>—-—-—रोकना
- लागुडिक—वि॰—-—ल्गुड+ठक्—
- लाघ्—भ्वा॰ आ॰ <लाघते>—-—-—बराबर होना, पर्याप्त होना, सक्षम होना
- लाघवम्—नपुं॰—-—लघोर्भावः अण्—अल्पता, क्षुद्रता
- लाघवम्—नपुं॰—-—लघोर्भावः अण्—लघुता, हलकापन
- लाघवम्—नपुं॰—-—लघोर्भावः अण्—अविचार, निष्फलता
- लाघवम्—नपुं॰—-—लघोर्भावः अण्—नगण्यता
- लाघवम्—नपुं॰—-—लघोर्भावः अण्—अनादर, घृणा, अपमान, अप्रतिष्ठा
- लाघवम्—नपुं॰—-—लघोर्भावः अण्—फुर्ती, चुस्ती
- लाघवम्—नपुं॰—-—लघोर्भावः अण्—क्रियाशीलत, दक्षता, तत्परता
- लाघवम्—नपुं॰—-—लघोर्भावः अण्—सर्वतोमुखी प्रतिभा
- लाघवम्—नपुं॰—-—लघोर्भावः अण्—संक्षेप
- लाघवम्—नपुं॰—-—लघोर्भावः अण्—मात्रा की कमी
- लाङ्गलम्—नपुं॰—-—लङ्ग+कलच्, पृषो वृद्धिः—हल
- लाङ्गलम्—नपुं॰—-—लङ्ग+कलच्, पृषो वृद्धिः—हल की शकल का शहतीर
- लाङ्गलम्—नपुं॰—-—लङ्ग+कलच्, पृषो वृद्धिः—ताड़ का वृक्ष
- लाङ्गलम्—नपुं॰—-—लङ्ग+कलच्, पृषो वृद्धिः—शिश्न, लिंग
- लाङ्गलम्—नपुं॰—-—लङ्ग+कलच्, पृषो वृद्धिः—एक प्रकार का फूल
- लाङ्गलग्रहः—पुं॰—लाङ्गलम्-ग्रहः—-—हाली, किसान
- लाङ्गलदण्डः—पुं॰—लाङ्गलम्-दण्डः—-—हल का लट्ठा, हलस
- लाङ्गलध्वजः—पुं॰—लाङ्गलम्-ध्वजः—-—बलराम का नामान्तर
- लाङ्गलपद्धतिः—स्त्री॰—लाङ्गलम्-पद्धतिः—-—खूड, हल से बनी रेखा, सीता
- लाङ्गलफालः—पुं॰—लाङ्गलम्-फालः—-—हलकी फाली
- लाङ्गलिन्—पुं॰—-—लाङ्गल+इनि—बलराम का नाम
- लाङ्गलिन्—पुं॰—-—लाङ्गल+इनि—नारियल का पेड़
- लाङ्गलिन्—पुं॰—-—लाङ्गल+इनि—साँप
- लाङ्गली—स्त्री॰—-—लाङ्गल+अच्+ङीष्—नारियल का पेड़
- लाङ्गलीषा—स्त्री॰—-—लाङ्गल+ईषा—हलस, हल का लट्ठा
- लाङ्गुलम्—नपुं॰—-—लङ्ग्+उलच्; वा॰ वृद्धिः—पूँछ
- लाङ्गुलम्—नपुं॰—-—लङ्ग्+उलच्; वा॰ वृद्धिः—शिश्न, लिंग
- लाङ्गूलम्—नपुं॰—-—लङ्ग्+ऊलच् पृषो॰—पूँछ
- लाङ्गूलम्—नपुं॰—-—लङ्ग्+ऊलच् पृषो॰—शिश्न, लिंग
- लाङ्गूलिन्—पुं॰—-—लाङ्गूल+इनि—बन्दर, लंगूर
- लाज्—भ्वा॰ पर॰ <लाजति>, <लाञ्जति>—-—-—कलंक लगाना, निन्दा करना
- लाज्—भ्वा॰ पर॰ <लाजति>, <लाञ्जति>—-—-—भूनना, तलना
- लाञ्ज्—भ्वा॰ पर॰ <लाजति>, <लाञ्जति>—-—-—कलंक लगाना, निन्दा करना
- लाञ्ज्—भ्वा॰ पर॰ <लाजति>, <लाञ्जति>—-—-—भूनना, तलना
- लाजः—पुं॰—-—लाज+अच्—गीला धान
- लाजाः—पुं॰ब॰ व॰—-—-—भुना हुआ, या तला हुआ धान
- लाञ्छ्—भ्वा॰ पर॰ <लांछति>—-—-—भेद करना, चिह्नित करना, विशिष्ट बनाना
- लाञ्छ्—भ्वा॰ पर॰ <लांछति>—-—-—सजाना, अलंकृत करना
- लाञ्छनम्—लाञ्छ् कर्मणि ल्युट्—-—-—चिह्न, निशान, निशानी, विशिष्टताद्योतक चिह्न
- लाञ्छनम्—लाञ्छ् कर्मणि ल्युट्—-—-—नाम, अभिधान
- लाञ्छनम्—लाञ्छ् कर्मणि ल्युट्—-—-—दाग, धब्बा, अपकीर्ति का चिह्न
- लाञ्छनम्—लाञ्छ् कर्मणि ल्युट्—-—-—चन्द्रमा का कलंक
- लाञ्छनम्—लाञ्छ् कर्मणि ल्युट्—-—-—सीमान्त
- लाञ्छित—वि॰—-—लाञ्छ्+क्त—चिह्नित, अन्तरयुक्त, विशिष्ट
- लाञ्छित—वि॰—-—लाञ्छ्+क्त—नामी, नामक
- लाञ्छित—वि॰—-—लाञ्छ्+क्त—विभूषित
- लाञ्छित—वि॰—-—लाञ्छ्+क्त—सुसज्जित
- लाट—पुं॰—-—-—एक देश और उसके अधिवासियों का नाम
- लाटः—पुं॰—-—-—लाट देश का राजा
- लाटः—पुं॰—-—-—पुराने जीर्णशीर्ण वस्त्र
- लाटः—पुं॰—-—-—कपड़े
- लाटः—पुं॰—-—-—बच्चों जैसी भाषा
- लाटानुप्रासः—पुं॰—लाट-अनुप्रासः—-—अनुप्रास अलंकार के पाँच भेदों में से एक, शब्द या शब्दों की पुनरावृत्ति उसी अर्थ में परन्तु भिन्न प्रयोग के साथ, मम्मट ने उसका सोदाहरण निरूपण किया है
- लाटक—वि॰—-—लाट्+वुन्—लाट देश से संबद्ध
- लाटिका—स्त्री॰—-—लट्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्, लाट्+अच्+ङीष्—रचना, की एक विषैली
- लाटिका—स्त्री॰—-—लट्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्, लाट्+अच्+ङीष्—एक प्राकृतिक बोली का नाम
- लाड्—चुरा॰ उभ॰ <लाडयति>, <लाडयते>—-—-—लाडप्यार करना, पुचकारना, दुलारना
- लाड्—चुरा॰ उभ॰ <लाडयति>, <लाडयते>—-—-—कलङ्कित करना, निन्दा करना
- लाड्—चुरा॰ उभ॰ <लाडयति>, <लाडयते>—-—-—फेंकना, उछालना
- लाण्ठनी—स्त्री॰—-—-—कुलटा स्त्री, व्यभिचारिणी
- लात—भू॰ क॰ कृ॰—-—ला+क्त—लिया, ग्रहण किया
- लापः—पुं॰—-—लप्+घञ्—बोलना, बातें करना
- लापः—पुं॰—-—लप्+घञ्—किलकिलाना, तुतला कर बोलना
- लाबः—पुं॰—-—लू+घञ्, पृषो॰—एक प्रकार का लवा पक्षी, बटेर
- लाबकः—पुं॰—-—लू+घञ्, पृषो॰—एक प्रकार का लवा पक्षी, बटेर
- लाबुः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की लौकी, तूमड़ी
- लाबूः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की लौकी, तूमड़ी
- लाबुकी—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की सारंगी
- लाभः—पुं॰—-—लभ्+घञ्—उपलब्ध, प्राप्ति, अवाप्ति, अधिग्रहण
- लाभः—पुं॰—-—लभ्+घञ्—नफा, मुनाफा, फायदा
- लाभः—पुं॰—-—लभ्+घञ्—सुखोपभोग
- लाभः—पुं॰—-—लभ्+घञ्—लूट का माल, विजित प्रदेश
- लाभः—पुं॰—-—लभ्+घञ्—प्रत्यक्षज्ञान, जानकारी, संबोध
- लाभकर—वि॰—लाभः-कर—-—लाभकारी, फायदेमंद
- लाभकृत्—वि॰—लाभः-कृत्—-—लाभकारी, फायदेमंद
- लाभलिप्सा—स्त्री॰—लाभः-लिप्सा—-—लाभ की इच्छा
- लाभकः—पुं॰—-—लाभ+कन्—फायदा, मुनाफा
- लामज्जकम्—नपुं॰—-—ला+क्विप्, ला आदीयमाना मज्जा सारो यस्य ब॰ स॰, कप्—एक सुगंधयुक्त घास विशेष की जड़, खस, वीरणमूल
- लाम्पटयम्—नपुं॰—-—ल्म्पट+ष्यञ्—लम्पटता, कामुकता, भोगसक्ति
- लालनम्—नपुं॰—-—लल्+ल्युट्—दुलारना, लाड प्यार करना, पुचकारना
- लालनम्—नपुं॰—-—लल्+ल्युट्—तुष्ट करना, आवश्यकता से अधिक स्नेह करना, आत्मरंजन, अत्यधिक लाडप्यार
- लालस—वि॰—-—लस्+यङ्, लुक् द्वित्वम्, अच्—अत्यंत लालायित, बहुत इच्छुक, आतिर
- लालस—वि॰—-—लस्+यङ्, लुक् द्वित्वम्, अच्—आनन्द लेने वाला, भक्त, अनुरागी, लीन
- लालसा—स्त्री॰—-—लस् स्पृहायां यङ् लुक् भावे अ—प्रबल इच्छा, उत्कण्ठा, बड़ी अभिलाषा, उत्सुकता
- लालसा—स्त्री॰—-—लस् स्पृहायां यङ् लुक् भावे अ—याचना, निवेदन, अभ्यर्थना
- लालसा—स्त्री॰—-—लस् स्पृहायां यङ् लुक् भावे अ—खेद, शोक
- लालसा—स्त्री॰—-—लस् स्पृहायां यङ् लुक् भावे अ—दोहद, गर्भिणी स्त्री की इच्छा
- लालसीकम्—नपुं॰—-—-—चटनी
- लाला—स्त्री॰—-—लल्+णिच्+अच्+टाप्—लार, थूक
- लालास्रवः—पुं॰—लाला-स्रवः—-—मक्कड़
- लालास्रावः—पुं॰—लाला-स्रावः—-—लार बहाना
- लालास्रावः—पुं॰—लाला-स्रावः—-—मक्कड़
- लालाटिक—वि॰—-—ललाटं प्रभोर्भालं पश्यति ठञ्—मस्तक पर स्थित या मस्तकसंबंधी
- लालाटिक—वि॰—-—ललाटं प्रभोर्भालं पश्यति ठञ्—भाग्य से मिलना या भाग्य पर निर्भर रहने वाला
- लालाटिक—वि॰—-—ललाटं प्रभोर्भालं पश्यति ठञ्—निकम्मा, नीच, कमीना
- लालाटिकः—पुं॰—-—-—सावधान सेवक
- लालाटिकः—पुं॰—-—-—निठल्ला, लापरवाह, निरर्थक व्यक्ति
- लालाटिकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का आलिंगन
- लालाटी—स्त्री॰—-—ललाट+अण्+ङीप्—मस्तक, माथा
- लालिकः—पुं॰—-—लाला+ठञ्—भैंसा
- लालित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लल्+णिच्+लक्त—दुलार किया गया, लाडप्यार किया गया, लालन किया गया, अत्यंत स्नेह किया गया
- लालित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लल्+णिच्+लक्त—सत्यपथ से डिगाया गया
- लालित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लल्+णिच्+लक्त—प्रेम किया गया, अभिलषित
- लालितम्—नपुं॰—-—-—आनन्द, प्रेम, हर्ष
- लालितकः—नपुं॰—-—लालित+कन्—लाडला, दुलारा, प्रिय, स्नेह-भाजन
- लालित्यम्—नपुं॰—-—ललित+ष्यञ्—प्रियता, लावण्य, सौन्दर्य, आकर्षण, माधुर्य
- लालित्यम्—नपुं॰—-—ललित+ष्यञ्—प्रीति विषयक हाव भाव
- लालिन्—पुं॰—-—लल्+णिच्+णिनि—बहकानेवाला, फुसलाने वाला
- लालिनी—स्त्री॰—-—लालिन्+ङीप्—स्वेच्छाचारिणी स्त्री
- लालुका—स्त्री॰—-—एक प्रकार की माला, हार—
- लाव—वि॰—-—लू कर्तरि घञ्—काटने वाला, लुनाई करने वाला, उखाड़नेवाला
- लाव—वि॰—-—लू कर्तरि घञ्—उत्पाटन करने वाला, एकत्र करने वाला
- लाव—वि॰—-—लू कर्तरि घञ्—काट कर गिराने वाला, मारने वाला, नष्ट करने वाला
- लावः—पुं॰—-—-—काटना
- लावः—पुं॰—-—-—लवा नामक पक्षी
- लावकः—पुं॰—-—लू+ण्वुल्—काटने वला, खंड-खंड करने वाला
- लावकः—पुं॰—-—लू+ण्वुल्—लावनी करने वाला, एकत्र करने वाला
- लावकः—पुं॰—-—लू+ण्वुल्—लवा, बटेर
- लावण—वि॰—-—लवणं संस्कृतम् अण्—नमकीन
- लावण—वि॰—-—लवणं संस्कृतम् अण्—लवण से युक्त, लवण द्वारा संस्कृत
- लावणिक—वि॰—-—लवणे संस्कृतं ठण्—नमकीन, नमक से प्रसाधित
- लावणिक—वि॰—-—लवणे संस्कृतं ठण्—नमक का व्यापारी
- लावणिक—वि॰—-—लवणे संस्कृतं ठण्—प्रिय, सुन्दर, लावण्यमय
- लावणिकः—पुं॰—-—-—नमक का व्यापारी
- लावणिकम्—नपुं॰—-—-—लवण-पात्र, नमक का बर्तन
- लावण्यम्—नपुं॰—-—लवण+ष्यञ्—नमकीनपना
- लावण्यम्—नपुं॰—-—लवण+ष्यञ्—सौन्दर्य, सलोनापन, मनोहरता
- लावण्यार्जितम्—नपुं॰—लावण्यम्-अर्जितम्—-—विवहिता स्त्री की निजी सम्पति जो विवाह के अवसर पर उसे अपने पिता या सास से प्राप्त हुई हो
- लावण्यमय—वि॰—-—लावण्य+मयट्, मतुप् वा—प्रिय, मनोहर
- लावण्यवत्—वि॰—-—लावण्य+मयट्, मतुप् वा—प्रिय, मनोहर
- लावाणकः—पुं॰—-—लू+आनकः—मगध के निकट एक जिले का नाम
- लाविकः—पुं॰—-—लाव+ठक्—भैंसा
- लाषुक—वि॰—-—लष्+उकञ्—लोलुप्, लोभी लालची
- लासः—पुं॰—-—लस्+घञ्—कूदना, खेलना, उछलना, नाचना
- लासः—पुं॰—-—लस्+घञ्—प्रेमालिंगन, केलि क्रीडा
- लासः—पुं॰—-—लस्+घञ्—स्त्रियों का नाच, रास-लीला
- लासः—पुं॰—-—लस्+घञ्—रसा, झोल
- लासक—वि॰—-—लस्+ण्वुल्—खेलने वाला, किलोल करने वाला, विहार करने वाला
- लासक—वि॰—-—लस्+ण्वुल्—इधर उधर घूमने वाला
- लासकः—पुं॰—-—-—नर्तक
- लासकः—पुं॰—-—-—मोर
- लासकः—पुं॰—-—-—आलिंगन
- लासकः—पुं॰—-—-—शिव का नामान्तर
- लासकम्—नपुं॰—-—-—चौबारा, बुर्ज
- लासकी—स्त्री॰—-—लासक+ङीष्—नर्तकी
- लासिका—स्त्री॰—-—लस्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्—नर्तकी
- लासिका—स्त्री॰—-—लस्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्—वेश्या, स्वेच्छाचारिणी या व्यभिचारिणी स्त्री
- लास्यम्—नपुं॰—-—लस्+ण्यत्—नाचना, नृत्य
- लास्यम्—नपुं॰—-—लस्+ण्यत्—गाने बजाने के साथ नाच
- लास्यम्—नपुं॰—-—लस्+ण्यत्—वह नृत्य जिसमें प्रेम की भावनाएँ विभिन्न हाव भाव तथा अंगविन्यासों द्वारा प्रकट की जाती हैं
- लास्यः—पुं॰—-—-—नट, नर्तक, अभिनेता
- लास्या—स्त्री॰—-—-—नर्तकी
- लिकुचः—पुं॰—-—लक्+उच्, पृषो॰ इत्वम्—बडहर का पेड़, बडहर का फल
- लिक्षा—स्त्री॰—-—रिषेः स कित्—ल्हीक, जूओं के अंडे
- लिक्षा—स्त्री॰—-—-—अत्यन्त सूक्ष्म माप
- लिक्षिका—स्त्री॰—-—लिक्षा+कन्+टाप्, इत्वम्—ल्हीक
- लिख्—तुदा॰ पर॰ <लिखति>, < लिखित>—-—-—लिखना, लिख रखना, अंतरंकण करना, रेखांकन करना, उत्कीर्ण करना
- लिख्—तुदा॰ पर॰ <लिखति>, < लिखित>—-—-—रेखाचित्र बनाना, रेखा खींचना, आलेखन, चित्रित करना, रङ्ग भरना
- लिख्—तुदा॰ पर॰ <लिखति>, < लिखित>—-—-—खुरचना, रगड़ना, घिसना, फाड़ देना
- लिख्—तुदा॰ पर॰ <लिखति>, < लिखित>—-—-—करना, खाल काटना
- लिख्—तुदा॰ पर॰ <लिखति>, < लिखित>—-—-—स्पर्श करना, खरोंच पैदा करना
- लिख्—तुदा॰ पर॰ <लिखति>, < लिखित>—-—-—चोंचे मारना
- लिख्—तुदा॰ पर॰ <लिखति>, < लिखित>—-—-—चिकना करना
- लिख्—तुदा॰ पर॰ <लिखति>, < लिखित>—-—-—स्त्री के साथ सहवास करना
- आलिख्—तुदा॰ पर॰ —आ-लिख्—-—लिखना, चित्रित करना, रेखाएँ खींचना
- आलिख्—तुदा॰ पर॰ —आ-लिख्—-—रङ्ग भरना, चित्र बनाना
- आलिख्—तुदा॰ पर॰ —आ-लिख्—-—खुरचना, छीलना
- उल्लिख्—तुदा॰ पर॰ —उद्-लिख्—-—खुरचना, छीलना, फाड़ना, खोंचा लगाना
- उल्लिख्—तुदा॰ पर॰ —उद्-लिख्—-—पीस डालना, रोगन करना
- उल्लिख्—तुदा॰ पर॰ —उद्-लिख्—-—रङ्ग भरना, लिखना, चित्रित करना
- उल्लिख्—तुदा॰ पर॰ —उद्-लिख्—-—खोदना, काटकर बनाना
- प्रतिलिख्—तुदा॰ पर॰ —प्रति-लिख्—-—उत्तर देना, जबाब देना, बदले में लिखना
- विलिख्—तुदा॰ पर॰ —वि-लिख्—-—लिखना, अन्तरंकण करना
- विलिख्—तुदा॰ पर॰ —वि-लिख्—-—रेखांकन करना, रङ्ग भरना, चित्रित करना, चित्र बनाना
- विलिख्—तुदा॰ पर॰ —वि-लिख्—-—खुरचना, छीलना, फाड़ना
- विलिख्—तुदा॰ पर॰ —वि-लिख्—-—रोपना, जमाना
- संलिख्—तुदा॰ पर॰ —सम्-लिख्—-—खुरचना, छीलना
- लिखनम्—नपुं॰—-—लिख्+ल्युट्—लिखना, अन्तरंकण
- लिखनम्—नपुं॰—-—लिख्+ल्युट्—रेखांकन, रङ्ग भरना
- लिखनम्—नपुं॰—-—लिख्+ल्युट्—खुरचना
- लिखनम्—नपुं॰—-—लिख्+ल्युट्—लिखित दस्तावेज, लेख या हस्तलेख
- लिखित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लिख्+क्त—लिखा हुआ, रङ्ग भरा हुआ, खुरचा हुआ आदि
- लिखितः—पुं॰—-—-—विधि या धर्मशास्त्र के प्रणेता का नाम
- लिखितम्—नपुं॰—-—-—लेख, दस्तावेज
- लिखितम्—नपुं॰—-—-—कोई पुस्तक या रचना
- लिगुः—पुं॰—-—लिग्+कु—हरिण
- लिगुः—पुं॰—-—-—मूर्ख, बुद्धू
- लिगुः—नपुं॰—-—-—हृदय
- लिङ्ख—भ्वा॰ पर॰ <लिखति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- लिङ्ग—भ्वा॰ पर॰ <लिङ्गति>, <लिङ्गित>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- आलिङ्ग—भ्वा॰ पर॰ —आ-लिङ्ग—-—आलिङ्गन करना, परिरंभण करना
- लिङ्ग—चुरा॰ उभ॰ <लिङ्गयति>, <लिङ्गयते>—-—-—रङ्ग भरना, चित्रित करना
- लिङ्ग—चुरा॰ उभ॰ <लिङ्गयति>, <लिङ्गयते>—-—-—किसी संज्ञा शब्द की उसके लिङ्ग के अनुसार रूपरचना करना
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—लिङ्ग्+अच्—निशान, चिह्न, निशानी, प्ररूप, बिल्ला, प्रतीक, विभेदक चिह्न, लक्षण
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—-—अवास्तविक या मिथ्या चिह्न, वेश, छ्द्मवेश, धोखे में डालने वाला बिल्ला
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—-—लक्षण, रोग के चिह्न
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—-—प्रमाण के साधन, प्रमाण, सबूत, साक्ष्य
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—-—किसी प्रतिज्ञा का विधेय
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—-—लिङ्गचिह्न
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—-—योनि
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—-—पुरुष की जननेन्द्रिय, शिश्न
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—-—स्त्री या पुरुषवाची शब्द पहचानने का चिह्न, लिङ्ग
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—-—शिवलिङ्ग
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—-—देवमूर्ति, प्रतिमा
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का संबंध या अभिसूचक जो किसी शब्द के किसी विशेष संदर्भ में अर्थ निश्चित करने का काम देता है
- लिङ्गम्—नपुं॰—-—-—सूक्ष्म शरीर, दृश्यमान स्थूल शरीर का अविनश्वर मूल शरीर
- लिङ्गाग्रम्—नपुं॰—लिङ्गम्-अग्रम्—-—लिङ्ग की मणि, सुपारी
- लिङ्गानुशासनम्—नपुं॰—लिङ्गम्-अनुशासनम्—-—व्याकरण विषयक लिङ्ग ज्ञान, वे नियम जिनसे शब्द के लिङ्गों का ज्ञान मिलता है
- लिङ्गार्चनम्—नपुं॰—लिङ्गम्-अर्चनम्—-—शिव की लिङ्ग के रूप में पूजा
- लिङ्गदेहः—पुं॰—लिङ्गम्-देहः—-—सूक्ष्म शरीर
- लिङ्गशरीरम्—नपुं॰—लिङ्गम्-शरीरम्—-—सूक्ष्म शरीर
- लिङ्गधारिन्—वि॰—लिङ्गम्-धारिन्—-—बिल्लाधारी
- लिङ्गनाशः—पुं॰—लिङ्गम्-नाशः—-—विशिष्ट चिह्नों का लोप
- लिङ्गनाशः—पुं॰—लिङ्गम्-नाशः—-—शिश्न का न रहना
- लिङ्गनाशः—पुं॰—लिङ्गम्-नाशः—-—दृष्टिशक्ति का अभाव, एक प्रकार का आँखों का रोग
- लिङ्गपरामर्शः—पुं॰—लिङ्गम्-परामर्शः—-—विचिह्न को ढूंढना या विचारना
- लिङ्गपुराणम्—नपुं॰—लिङ्गम्-पुराणम्—-—अठारह पुराणों में से एक पुराण्
- लिङ्गप्रतिष्ठा—स्त्री॰—लिङ्गम्-प्रतिष्ठा—-—लिङ्ग' अर्थात् शिवजी की पिण्डी की स्थापना
- लिङ्गवर्धन—वि॰—लिङ्गम्-वर्धन—-—पुरुष की जननेन्द्रिय में उत्तेजना पैदा करने वाला
- लिङ्गविपर्ययः—पुं॰—लिङ्गम्-विपर्ययः—-—लिङ्गपरिवर्तन
- लिङ्गवृत्तिः—वि॰—लिङ्गम्-वृत्तिः—-—पाखंड से बहरा हुआ
- लिङ्गवृतिः—वि॰—लिङ्गम्-वृतिः—-—धर्म के कार्यों में पाखण्ड करने वाला
- लिङ्गवेदी—स्त्री॰—लिङ्गम्-वेदी—-—वह आधार जिस पर शिवलिङ्ग स्थापित किया जाता है
- लिङ्गकः—पुं॰—-—लिङ्ग+कै+क—कपित्थ वृक्ष, कैथ का पेड़
- लिङ्गनम्—नपुं॰—-—लिङ्ग्+ल्युट्—आलिङ्गन करना
- लिङ्गिन्—वि॰—-—लिङ्गमस्त्यस्य इति—चिह्न या निश्आन रखने वाला
- लिङ्गिन्—वि॰—-—-—विशेषतायुक्त
- लिङ्गिन्—वि॰—-—-—बिल्ला या निशान रखने वाला, दिखाई देने वाला, छद्मवेशी, पाखंडी, झूठे बिल्ले लगाने वाला
- लिङ्गिन्—वि॰—-—-—लिङ्ग से युक्त
- लिङ्गिन्—वि॰—-—-—सूक्ष्म शरीरधारी
- लिङ्गिन्—पुं॰—-—-—ब्रह्मचारी, ब्राह्मण सन्यासी
- लिङ्गिन्—पुं॰—-—-—शिवलिङ्ग की पूजा करने वाला
- लिङ्गिन्—पुं॰—-—-—पाखण्डी, बना हुआ भक्त, सन्यासी
- लिङ्गिन्—पुं॰—-—-—हाथी
- लिङ्गिन्—पुं॰—-—-—प्रतिज्ञा का विषय
- लिपिः—स्त्री॰—-—लिप्+इक, ङीप् वा—लीपना, पोतना
- लिपिः—स्त्री॰—-—-—लिखना, लिखावट
- लिपिः—स्त्री॰—-—-—लिखित अक्षर, वर्ण, वर्णमाला
- लिपिः—स्त्री॰—-—-—लिखने की कला
- लिपिः—स्त्री॰—-—-—लिखना
- लिपिः—स्त्री॰—-—-—चित्रकला, रेखांकण
- लिपी—स्त्री॰—-—-—लीपना, पोतना
- लिपी—स्त्री॰—-—-—लिखना, लिखावट
- लिपी—स्त्री॰—-—-—लिखित अक्षर, वर्ण, वर्णमाला
- लिपी—स्त्री॰—-—-—लिखने की कला
- लिपी—स्त्री॰—-—-—लिखना
- लिपी—स्त्री॰—-—-—चित्रकला, रेखांकण
- लिपिकरः—पुं॰—लिपिः-करः—-—पलस्तर करने वाला, सफेदी करने वाला, राज
- लिपिकरः—पुं॰—लिपिः-करः—-—लेखक, लिपिक
- लिपिकरः—पुं॰—लिपिः-करः—-—उत्किरक
- लिपीकरः—पुं॰—लिपी-करः—-—पलस्तर करने वाला, सफेदी करने वाला, राज
- लिपीकरः—पुं॰—लिपी-करः—-—लेखक, लिपिक
- लिपीकरः—पुं॰—लिपी-करः—-—उत्किरक
- लिपिकारः—पुं॰—लिपिः-कारः—-—लेखक, लिपिक
- लिपीकारः—पुं॰—लिपी-कारः—-—लेखक, लिपिक
- लिपिज्ञ—वि॰—लिपि-ज्ञ—-—जो लिख सकता है
- लिपीज्ञ—वि॰—लिपी-ज्ञ—-—जो लिख सकता है
- लिपिन्यासः—पुं॰—लिपिः-न्यासः—-—लिखने या नकल करने की कला
- लिपीन्यासः—पुं॰—लिपी-न्यासः—-—लिखने या नकल करने की कला
- लिपिफलकम्—नपुं॰—लिपिः-फलकम्—-—लिखने का पट्ट या तख्ता
- लिपीफलकम्—नपुं॰—लिपी-फलकम्—-—लिखने का पट्ट या तख्ता
- लिपिशाला—स्त्री॰—लिपिः-शाला—-—वह स्कूल जहाँ लिखना सिखाया जाय
- लिपीशाला—स्त्री॰—लिपी-शाला—-—वह स्कूल जहाँ लिखना सिखाया जाय
- लिपिसज्जा—स्त्री॰—लिपिः-सज्जा—-—लिखने का सामान या उपकरण
- लिपीसज्जा—स्त्री॰—लिपी-सज्जा—-—लिखने का सामान या उपकरण
- लिपिका—स्त्री॰—-—लिपि+कन्+टाप्—लीपना, पोतना
- लिपिका—स्त्री॰—-—लिपि+कन्+टाप्—लिखना, लिखावट
- लिपिका—स्त्री॰—-—लिपि+कन्+टाप्—लिखित अक्षर, वर्ण, वर्णमाला
- लिपिका—स्त्री॰—-—लिपि+कन्+टाप्—लिखने की कला
- लिपिका—स्त्री॰—-—लिपि+कन्+टाप्—लिखना
- लिपिका—स्त्री॰—-—लिपि+कन्+टाप्—चित्रकला, रेखांकण
- लिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—लिप्+क्त—लीपा हुआ, पोता हुआ, साना हुआ, ढका हुआ
- लिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—लिप्+क्त—दागा लगा, बिगड़ा हुआ, दूषित, मलिन
- लिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—लिप्+क्त—विषययुक्त, जहर में बुझाया हुआ
- लिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—लिप्+क्त—खाया हुआ
- लिप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—लिप्+क्त—जुड़ा हुआ, मिला हुआ
- लिपकः—पुं॰—-—लिप्त+कन्—जहर में बुझा तीर
- लिप्सा—स्त्री॰—-—लभ+सन् भावे अ—प्राप्त करने की इच्छा
- लिप्सा—स्त्री॰—-—लभ+सन् भावे अ—अभिलाषा
- लिप्सु—वि॰—-—लभ्+सन्+उ—प्राप्त करने का इच्छुक
- लिबिः—स्त्री॰—-—लिप्+इन्, बा॰ पस्य बः—लीपना, पोतना
- लिबिः—स्त्री॰—-—लिप्+इन्, बा॰ पस्य बः—लिखना, लिखावट
- लिबिः—स्त्री॰—-—लिप्+इन्, बा॰ पस्य बः—लिखित अक्षर, वर्ण, वर्णमाला
- लिबिः—स्त्री॰—-—लिप्+इन्, बा॰ पस्य बः—लिखने की कला
- लिबिः—स्त्री॰—-—लिप्+इन्, बा॰ पस्य बः—लिखना
- लिबिः—स्त्री॰—-—लिप्+इन्, बा॰ पस्य बः—चित्रकला, रेखांकण
- लिबी—स्त्री॰—-—-—लीपना, पोतना
- लिबी—स्त्री॰—-—-—लिखना, लिखावट
- लिबी—स्त्री॰—-—-—लिखित अक्षर, वर्ण, वर्णमाला
- लिबी—स्त्री॰—-—-—लिखने की कला
- लिबी—स्त्री॰—-—-—लिखना
- लिबी—स्त्री॰—-—-—चित्रकला, रेखांकण
- लिबिङ्करः—पुं॰—-—लिबिं करोति कृ+ट, पृषो॰ द्वितीयाया अलुक्—लिपिक, लेखक, लिपिकार
- लिम्प्—तुदा॰ उभ॰ <लिम्पति>, <लिम्पते>, <लिप्त>—-—-—लीपना, पोतना, सानना
- लिम्प्—तुदा॰ उभ॰ <लिम्पति>, <लिम्पते>, <लिप्त>—-—-—ढक देना, विछा देना
- लिम्प्—तुदा॰ उभ॰ <लिम्पति>, <लिम्पते>, <लिप्त>—-—-—प्रज्वलित करना, सुलगाना
- अनुलिम्प्—तुदा॰ उभ॰—अनु-लिम्प्—,—लीपना, पोतना
- अनुलिम्प्—तुदा॰ उभ॰—अनु-लिम्प्—-—ढक देना, फैलाना, घेर लेना
- अवलिम्प्—तुदा॰ उभ॰—अव-लिम्प्—-—लीपना, पोतना, फूल जाना, घमंडी बनना, उन्नत होना
- आलिम्प्—तुदा॰ उभ॰—आ-लिम्प्—-—लीपना, पोतना
- आलिम्प्—तुदा॰ उभ॰—आ-लिम्प्—-—दूषित करना, दाग लगाना
- उपलिम्प्—तुदा॰ उभ॰—उप-लिम्प्—-—धब्बा लगान, मलिन करना
- विलिम्प्—तुदा॰ उभ॰—वि-लिम्प्—-—लीपना, पोतना, मलना
- लिम्पः—पुं॰—-—लिप्+श, मुम्—लेप, पोतना, मालीश
- लिम्पट—वि॰—-— = लम्पट, पृषो॰ —कामादक्त, विषयी
- लिम्पटः—पुं॰—-—-—व्यभिचारी, दुश्चरित्र
- लिम्पाकः—पुं॰—-—लिप्+आकन्, पृषो॰—नींबू या चकोतरे का वृक्ष
- लिम्पाकः—पुं॰—-—लिप्+आकन्, पृषो॰—गधा
- लिम्पाकम्—नपुं॰—-—-—चकोतरा, नींबू
- लिश्—तुदा॰ पर॰ <लिशति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- लिश्—तुदा॰ पर॰ <लिशति>—-—-—चोट पहुँचाना
- लिष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—लिश्+क्त—जो छोटा हो गया हो, घट गया हो या न्यून हो गया हो
- लिष्वः—पुं॰—-—लिष्+वन्—अभिनेता, नर्तक
- लिह्—अदा॰ उभ॰ <लेढि>, <लीढे>, <लीढ>, इच्छा॰ <लिलिक्षति>, <लिलिक्षते>—-—-—चाटना
- लिह्—अदा॰ उभ॰ <लेढि>, <लीढे>, <लीढ>, इच्छा॰ <लिलिक्षति>, <लिलिक्षते>—-—-—चाट जाना, चखना, घूंट-घूंट से पीना, लप-लप करके पीना
- अवलिह्—अदा॰ उभ॰ —अव-लिह्—-—चाटना, लपलप करके पीना, थोड़ा थोड़ा करके चखना
- अवलिह्—अदा॰ उभ॰ —अव-लिह्—-—चबाना, खाना
- आलिह्—अदा॰ उभ॰ —आ-लिह्—-—चाटना, लपलप करके पीना
- आलिह्—अदा॰ उभ॰ —आ-लिह्—-—घायल करना, आघात पहुँचाना
- आलिह्—अदा॰ उभ॰ —आ-लिह्—-—ग्रहण करना, देखना
- उल्लिह्—अदा॰ उभ॰ —उद्-लिह्—-—चमकाना, घर्षण द्वारा चिकना बनाना, रगड़ना
- परिलिह्—अदा॰ उभ॰ —परि-लिह्—-—चाटना
- संलिह्—अदा॰ उभ॰ —सम्-लिह्—-—चाटना
- ली—भ्वा॰ पर॰ <लयति>—-—-—पिघलना, विघटित होना
- ली—क्रया॰ पर॰ <लिनाति>—-—-—जुड़ जाना
- ली—क्रया॰ पर॰ <लिनाति>—-—-—पिघलना
- ली—दिवा॰ आ॰ <लीयते>, <लीन>—-—-—चिपकना, दृढ़ता पूर्वक जमे रहना, जुड़ जाना
- ली—दिवा॰ आ॰ <लीयते>, <लीन>—-—-—बभुजपाश में बांधना, आलिंगन करना
- ली—दिवा॰ आ॰ <लीयते>, <लीन>—-—-—लेटना, विश्राम करना, टेक लगाना, ठहरना, रहना, दुबकना, छिपना, लुकना
- ली—दिवा॰ आ॰ <लीयते>, <लीन>—-—-—विघटित होना, पिघलना
- ली—दिवा॰ आ॰ <लीयते>, <लीन>—-—-—चिपचिपा, लसलसा
- ली—दिवा॰ आ॰ <लीयते>, <लीन>—-—-—लीन हो जाना, भक्त या अनुरक्त होना
- ली—दिवा॰ आ॰ <लीयते>, <लीन>—-—-—नष्ट होना, लोप होना
- ली—दिवा॰ आ॰ , प्रेर॰—-—-—पिघलाना, विघटित करना, तरल बनाना, गलाना
- अभिली—भ्वा॰ पर॰ —अभि-ली—-—जुड़ना, चिपकना
- अभिली—भ्वा॰ पर॰ —अभि-ली—-—ढक लेना, ऊपर फैला देना
- आली—भ्वा॰ पर॰ —आ-ली—-—बस जाना, छिपना, दुबकना
- आली—भ्वा॰ पर॰ —आ-ली—-—जुड़ना, चिपकना
- निली—भ्वा॰ पर॰ —नि-ली—-—चिपकना, जमे रहना, लेट जाना, आराम करना, बस जाना, उतर पड़ना
- निली—भ्वा॰ पर॰ —नि-ली—-—दुबकना, छिपना, अपने आपको छिपा लेना
- निली—भ्वा॰ पर॰ —नि-ली—-—अपने आपको छिपा लेना
- निली—भ्वा॰ पर॰ —नि-ली—-—मरना, नष्ट होना
- प्रली—भ्वा॰ पर॰ —प्र-ली—-—लीन होना, विघटित होना, गल जाना
- प्रली—भ्वा॰ पर॰ —प्र-ली—-—नष्ट होना, लोप होना
- प्रली—भ्वा॰ पर॰ —प्र-ली—-—नाश को प्राप्त होना, नष्ट होना
- विली—भ्वा॰ पर॰ —वि-ली—-—जुड़ना, चिपकना, जमे रहना
- विली—भ्वा॰ पर॰ —वि-ली—-—विश्राम करना, बस जाना, उतर पड़ना
- विली—भ्वा॰ पर॰ —वि-ली—-—विगलित होना, पिघल जाना, लीन होना
- विली—भ्वा॰ पर॰ —वि-ली—-—लोप होन्आ, ओझल होना
- विली—भ्वा॰ पर॰ —वि-ली—-—नष्ट होना
- संली—भ्वा॰ पर॰ —सम्-ली—-—चिपकना, जुड़ना
- संली—भ्वा॰ पर॰ —सम्-ली—-—लेट जाना, बस जाना, उतरना
- संली—भ्वा॰ पर॰ —सम्-ली—-—दुबकना, छिपना
- संली—भ्वा॰ पर॰ —सम्-ली—-—पिघलना
- लीक्का—स्त्री॰—-—-—लीख, यूकांड
- लीढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—लिह्+क्त—चाटा गया, चुसकी ली गई, चखा गया, खाया गया आदि॰
- लीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—ली+क्त—जुड़ा हुआ, चिपका हुआ, चूसा हुआ
- लीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—ली+क्त—दुबकाया हुआ, छिपाया हुआ, प्रच्छन्न
- लीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—ली+क्त—विश्राम करता हुआ, टेक लगाये हुए
- लीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—ली+क्त—पिघला हुआ, विगलित
- लीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—ली+क्त—पूर्णरूप से विलिन, या निगलित, गहरा जुड़ा हुआ
- लीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—ली+क्त—भक्त, छोड़ा हुआ
- लीन—भू॰ क॰ कृ॰—-—ली+क्त—ओझल, लुप्त
- लीला—स्त्री॰—-—ली+क्विप् लियं लाति ला+क वा—खेल, क्रीडा, विनोद, दिलबहलावा, आनन्द, मनोरंजन
- लीला—स्त्री॰—-—ली+क्विप् लियं लाति ला+क वा—प्रीतिविषयक मनोविनोद, स्वेच्छाचारिता, रतिक्रीडा, केलिक्रीडा
- लीला—स्त्री॰—-—ली+क्विप् लियं लाति ला+क वा—आसानी से, सुविधा, क्रीडामात्र, बच्चों का खेल
- लीला—स्त्री॰—-—ली+क्विप् लियं लाति ला+क वा—दर्शन, आभास, हावभाव, छवि
- लीला—स्त्री॰—-—ली+क्विप् लियं लाति ला+क वा—सौन्दर्य, लावण्य, लालित्य
- लीला—स्त्री॰—-—ली+क्विप् लियं लाति ला+क वा—बहाना, छद्मवेश, ढोंग, बनावट
- लीलागारः—नपुं॰—लीला-अगारः—-—आनन्द-भवन
- लीलागारः—नपुं॰—लीला-आगारः—-—आनन्द-भवन
- लीलागारम्—नपुं॰—लीला-आगारम्—-—आनन्द-भवन
- लीलागृहम्—नपुं॰—लीला-गृहम्—-—आनन्द-भवन
- लीलागेहम्—नपुं॰—लीला-गेहम्—-—आनन्द-भवन
- लीलावेश्मन्—नपुं॰—लीला-वेश्मन्—-—आनन्द-भवन
- लीलाङ्ग—वि॰—लीला-अङ्ग—-—ललित अंगों वाला
- लीलाब्जम्—नपुं॰—लीला-अब्जम्—-—कमल-खिलौना' कमल का फूल जो खिलौने की भांति हाथ में लिया हुआ हो
- लीलाम्बुजम्—नपुं॰—लीला-अम्बुजम्—-—कमल-खिलौना' कमल का फूल जो खिलौने की भांति हाथ में लिया हुआ हो
- लीलारविन्दम्—नपुं॰—लीला-अरविन्दम्—-—कमल-खिलौना' कमल का फूल जो खिलौने की भांति हाथ में लिया हुआ हो
- लीलाकमलम्—नपुं॰—लीला-कमलम्—-—कमल-खिलौना' कमल का फूल जो खिलौने की भांति हाथ में लिया हुआ हो
- लीलातामरसम्—नपुं॰—लीला-तामरसम्—-—कमल-खिलौना' कमल का फूल जो खिलौने की भांति हाथ में लिया हुआ हो
- लीलापद्मम्—नपुं॰—लीला-पद्मम्—-—कमल-खिलौना' कमल का फूल जो खिलौने की भांति हाथ में लिया हुआ हो
- लीलावतारः—पुं॰—लीला-अवतारः—-—पृथ्वी पर मनोरंजन के लिए उतरना
- लीलोद्यानम्—नपुं॰—लीला-उद्यानम्—-—प्रमोदवन
- लीलोद्यानम्—नपुं॰—लीला-उद्यानम्—-—देववन, इन्द्र का स्वर्ग
- लीलाकलहः—पुं॰—लीला-कलहः—-—क्रीडामय कलह'
- लीलाचतुर—वि॰—लीला-चतुर—-—विशुद्ध, मनोहर
- लीलामनुष्य—वि॰—लीला-मनुष्य—-—कपटी मनुष्य, छद्मवेशी
- लीलामात्रम्—नपुं॰—लीला-मात्रम्—-—क्रीडामात्र, केवल खेल, बच्चों का खेल, अनायास
- लीलारतिः—स्त्री॰—लीला-रतिः—-—मनोविनोद, क्रीडा
- लीलावापी—स्त्री॰—लीला-वापी—-—आनन्दबावडी
- लीलाशुकः—पुं॰—लीला-शुकः—-—आनन्द के लिए पाला हुआ तोता
- लीलायितम्—नपुं॰—-—लीला+क्यच्+क्त—खेल, क्रीडा, मनोरंजन, आनन्द
- लीलावत्—वि॰—-—लीला+मतुप्, मस्य वः—क्रीडामय, खिलाड़ी
- लीलावती—स्त्री॰—-—-—मनोहर या लावण्यवती स्त्री
- लीलावती—स्त्री॰—-—-—श्रृंगारप्रिय या स्वेच्छाचारिणी स्त्री
- लीलावती—स्त्री॰—-—-—दुर्गा का नाम
- लुक्—अव्य॰—-—-—पाणिनि द्वारा प्रयुक्त पारिभाषिक शब्द जो प्रत्ययओं का लोप करने के लिए काम में आता है
- लुञ्च्—भ्वा॰ पर॰ <लिञ्चति>, <लुञ्चित>—-—-—तोड़ना, खींचना, छीलना, काटना
- लुञ्च्—भ्वा॰ पर॰ <लिञ्चति>, <लुञ्चित>—-—-—फाड़ देना, उखाड़ देना, खींच डालना
- लुञ्चः—पुं॰—-—लुञ्च्+घञ्, ल्युट् वा—छीलना, उखाड़ना
- लुञ्चः—पुं॰—-—लुञ्च्+घञ्, ल्युट् वा—छीलना, उखाड़ना
- लुञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुञ्च्+क्त—छीला हुआ
- लुञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुञ्च्+क्त—तोड़ा हुआ, उखाड़ा हुआ, फाड़ा हुआ
- लुट्—भ्वा॰ आ॰ <लोटते>—-—-—मुकाबला करना, पीछे धकेलना, विरोध करना
- लुट्—भ्वा॰ आ॰ <लोटते>—-—-—चमकना
- लुट्—भ्वा॰ आ॰ <लोटते>—-—-—कष्ट उठाना
- लुट्—चुरा॰ उभ॰ <लोटयति>, <लोटयते>—-—-—बोलना, चमकना
- लुट्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <लोटति>, लुटयति>—-—-—लोटना, जमीन पर लुढ़कना
- लुट्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <लोटति>, लुटयति>—-—-—संबद्ध होना
- लुट्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <लोटति>, लुटयति>—-—-—अपहरण करना, लूटना, खसोटना
- लुठ्—भ्वा॰ पर॰ <लोठति>—-—-—प्रहार करना, पछाड़ देना
- लुठ्—भ्वा॰ आ॰ <लोठते>—-—-—भूमि पर लोटना, इधर उधर करवटें बदलना, गुड़मुड़ी खाना, लुढ़कना, इधर उधर घूमना
- प्रलुठ्—भ्वा॰ आ॰ —प्र-लुठ्—-—लोटना, लुढ़कना आदि
- विलुठ्—भ्वा॰ आ॰ —वि-लुठ्—-—लोटना, लुढ़कना आदि
- लुठनम्—नपुं॰—-—लुठ्+ल्युट्—लोटना, लुढ़कना, इधर उधर घूमना
- लुठित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुठ्+क्त—लोटा हुआ, लोटता हुआ या जमीन पर लुढ़कता हुआ
- लुड्—भ्वा॰ पर॰ <लोडति>—-—-—हरकत देना, क्षुब्ध करना, बिलोना, आलोडित करना
- लुड्—भ्वा॰ आ॰, प्रेर॰—-—-—हरकत करना, विलोना, वोलोडित करना
- लुड्—तुदा॰ पर॰ <लुडति>—-—-—जुड़ना, चिपकना
- लुड्—तुदा॰ पर॰ <लुडति>—-—-—ढकना
- लुण्ट्—भ्वा॰ पर॰ <लुंटति>—-—-—जाना
- लुण्ट्—भ्वा॰ पर॰ <लुंटति>—-—-—चुराना, लूटना,खसोटना
- लुण्ट्—भ्वा॰ पर॰ <लुंटति>—-—-—लँगड़ा या विकलांग होना
- लुण्ट्—भ्वा॰ पर॰ <लुंटति>—-—-—आलसी या सुस्त होना
- लुण्ट्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <लुण्ट्यति>, <लुण्ट्यति>—-—-—लूटना, खसोटना, चुराना
- लुण्ट्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <लुण्ट्यति>, <लुण्ट्यति>—-—-—अवज्ञा करना, घृणा करना
- लुण्टाक्—वि॰—-—लुण्ट्+षाकन्—चोरी करने वाला, लुटेरा, डाक्
- लुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <लुण्ठित>—-—-—जाना
- लुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <लुण्ठित>—-—-—हरकत देना, क्षुब्ध करना, गति देना
- लुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <लुण्ठित>—-—-—सुस्त होना
- लुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <लुण्ठित>—-—-—लँगड़ा होना
- लुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <लुण्ठित>—-—-—लूटना, खसोटना
- लुण्ठ्—भ्वा॰ पर॰ <लुण्ठित>—-—-—मुकाबला करना
- लुण्ठकः—पुं॰—-—लुण्ठ्+ण्वुल्—लुटेरा, डाकू, चोर
- लुण्ठनम्—नपुं॰—-—लुण्ठ्+ल्युट्—खसोटना, लूटना, चुराना
- लुण्ठा—स्त्री॰—-—लु्ण्ठ्+अ+टाप्—लूट, खसोट
- लुण्ठा—स्त्री॰—-—लु्ण्ठ्+अ+टाप्—लुढ़क-पुढ़क
- लुण्ठाकः—पुं॰—-—लुण्ठ्+षाकन्—लुटेरा
- लुण्ठाकः—पुं॰—-—लुण्ठ्+षाकन्—कौवा
- लुण्ठिः—स्त्री॰—-—लुण्ठ्+इन्—खसोटना, लूटना, डकैती डालना
- लुण्ठी—स्त्री॰—-—लुण्ठि+ङीष्—खसोटना, लूटना, डकैती डालना
- लुण्ड्—चुरा॰ उभ॰ <लुण्डयति>, <लुण्डयते>—-—-—खसोटना, लूटना, डकैती डालना
- लुण्डिका—स्त्री॰—-—लुण्ड्+इन्+कन्+टाप्—गोल पिंडी, गेंद
- लुण्डिका—स्त्री॰—-—लुण्ड्+इन्+कन्+टाप्—उचित चाल चलन
- लुण्डी—स्त्री॰—-—लुण्डि+ङीष्—उचित या शोभन चालचलन
- लुन्थ्—भ्वा॰ पर॰ <लुन्थति>—-—-—प्रहार करना, चोट पहुंचाना, मारडालना
- लुन्थ्—भ्वा॰ पर॰ <लुन्थति>—-—-—भुगतना, पिड़ित होना, कष्ट उठाना
- लुप्—दिवा॰ पर॰ <लुप्यति>—-—-—घबड़ा देना, विस्मित करना
- लुप्—दिवा॰ पर॰ <लुप्यति>—-—-—विस्मित हो जाना या घबड़ा जाना
- लुप्—तुदा॰ उभ॰ <लुम्पति>, <लुम्पते>, लुप्त—-—-—तोड़ना, भंग करना, काट देना, नष्ट करना, क्षतिग्रस्त करना
- लुप्—तुदा॰ उभ॰ <लुम्पति>, <लुम्पते>, लुप्त—-—-—अपहरण करना, वञ्चित करना, ठगना, लूटना
- लुप्—तुदा॰ उभ॰ <लुम्पति>, <लुम्पते>, लुप्त—-—-—छीन लेन्आ, झपट्टा मार लेना
- लुप्—तुदा॰ उभ॰ <लुम्पति>, <लुम्पते>, लुप्त—-—-—लोप करना, दबा देना, ओझल करना
- लुप्—तुदा॰ आ॰, कर्मवा॰, <लुप्यते>—-—-—भंग होना, टूट जाना
- लुप्—तुदा॰ आ॰, कर्मवा॰, <लुप्यते>—-—-—लुप्त होना, नष्ट होना, ओझल या लोप होना
- लुप्—तुदा॰ उभ॰प्रेर॰ <लोपयति>, <लोपयते>—-—-—तोड़ना, भंग करना, उल्लंघन करना, अपकार करना
- लुप्—तुदा॰ उभ॰प्रेर॰ <लोपयति>, <लोपयते>—-—-—भूल जाना, उपेक्षा करना, वियुक्त करना
- अवलुप्—तुदा॰ उभ॰—अव-लुप्—-—अपहरण करना, नष्ट करना
- प्रलुप्—तुदा॰ उभ॰—प्र-लुप्—-—अपहरण करना, नष्ट करना
- विलुप्—तुदा॰ उभ॰—वि-लुप्—-—तोड़ देना, खींच कर भग्न कर देना, काट देना
- विलुप्—तुदा॰ उभ॰—वि-लुप्—-—छीन लेन्ा, खसोटना, लूट लेना, उठा कर भाग जाना
- विलुप्—तुदा॰ उभ॰—वि-लुप्—-—बिगाड़ना
- विलुप्—तुदा॰ उभ॰—वि-लुप्—-—नष्ट करना, बर्बाद करना, ओझल करना
- विलुप्—तुदा॰ उभ॰—वि-लुप्—-—पोंछ देना, मिटा देना
- लुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुप्+क्त—टूटा हुआ, भग्न, क्षतिग्रस्त, नष्ट
- लुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुप्+क्त—खोया हुआ, वञ्चित
- लुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुप्+क्त—लूटा गया, ठगा गया
- लुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुप्+क्त—हटाया गया, लोप लिया गया, ओझल या लोप हुआ
- लुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुप्+क्त—भूल से रहा हुआ, उपेक्षित
- लुप्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुप्+क्त—व्यवहारातीत, अप्रयुक्त, अप्रचलित
- लुप्तम्—नपुं॰—-—-—चुराई हुई संपत्ति, लूट का माल
- लुप्तोपमा—स्त्री॰—लुप्त-उपमा—-—खंडित या न्यून पद उपमा अर्थात् वह उपमा जिसमें उपमा के आवश्यक चारों अंगों में से एक, दो, अथवा तीन पद लुप्त हो गये हों
- लुप्तपद—वि॰—लुप्त-पद—-—न्यून पदों से युक्त
- लुप्तपिण्डोदक्रिया—वि॰—लुप्त-पिण्डोदक-क्रिया—-—श्राद्धकर्म से विरहित
- लुप्तप्रतिज्ञ—वि॰—लुप्त-प्रतिज्ञ—-—जिसने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी है, श्रद्धाहीन, विश्वासघाती
- लुप्तप्रतिभ—वि॰—लुप्त-प्रतिभ—-—तर्कनाशक्ति से हीन
- लुब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुभ्+क्त—लालची, लोभी, लोलुप
- लुब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुभ्+क्त—इच्छुक, लालायित, उत्सुक
- लुब्धः—पुं॰—-—-—शिकारी
- लुब्धः—पुं॰—-—-—स्वेच्छाचारी, लम्पट
- लुब्धकः—पुं॰—-—लुब्ध+कन्—शिकारी, बहेलिया
- लुब्धकः—पुं॰—-—लुब्ध+कन्—लोभी या लालची पुरुष
- लुब्धकः—पुं॰—-—लुब्ध+कन्—स्वेच्छाचारी
- लुब्धकः—पुं॰—-—लुब्ध+कन्—उत्तरी गोलार्द्ध का एक तेजस्वी तारा
- लुभ्—दिवा॰ पर॰ <लुभ्यति>, <लुब्ध>—-—-—लालच करना, लालायित होना, उत्सुक होना
- लुभ्—दिवा॰ पर॰ <लुभ्यति>, <लुब्ध>—-—-—रिझाना, फुसलाना
- लुभ्—दिवा॰ पर॰ <लुभ्यति>, <लुब्ध>—-—-—घबरा जाना, विस्मित होना, भटकना
- लुभ्—दिवा॰ पर॰, प्रेर॰ <लोभयति>, <लोभयते>—-—-—ललचाना, लालायित करना, उत्कंठित करना
- लुभ्—दिवा॰ पर॰, प्रेर॰ <लोभयति>, <लोभयते>—-—-—वासना को उत्तेजित करना
- लुभ्—दिवा॰ पर॰, प्रेर॰ <लोभयति>, <लोभयते>—-—-—फुसलाना, बहकाना, प्रलोभन देना, आकृष्ट करना
- प्रलुभ्—दिवा॰ पर॰ —प्र-लुभ्—-—ललचना या इच्छुक होना
- प्रलुभ्—दिवा॰ पर॰, प्रेर॰ —प्र-लुभ्—-—रिझाना, आकृष्ट करना
- प्रलुभ्—दिवा॰ पर॰, प्रेर॰ —प्र-लुभ्—-—बहलाना, मनोरंजन करना, रिझाना
- लुम्ब्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <लुम्बति>, <लुम्बयति>, <लुम्बते>, <लुम्बयते>—-—-—सताना, तंग करना
- लुम्बिका—स्त्री॰—-—लुम्ब्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्—एक प्रकार का वाद्ययंत्र
- लुल्—भ्वा॰ पर॰ <लोलित>, <लुलित>—-—-—लोटना, इधर-उधर लुढ़कना, इधर-उधर घूमना, करवटें बदलना
- लुल्—भ्वा॰ पर॰ <लोलित>, <लुलित>—-—-—हिलाना, हरकत देना, क्षुब्ध करना, कंपायमान करना, अव्यवस्थित करना
- लुल्—भ्वा॰ पर॰ <लोलित>, <लुलित>—-—-—दबाना, कुचलना
- लुल्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰ <लोलयति>, <लोलयते>—-—-—हिलाना, चालित करना
- आलुल्—भ्वा॰ पर॰—आ-लुल्—-—जरा छूना
- विलुल्—भ्वा॰ पर॰—वि-लुल्—-—इधर उधर चक्कर काटना
- विलुल्—भ्वा॰ पर॰—वि-लुल्—-—हिला देना, कम्पायमान करना
- विलुल्—भ्वा॰ पर॰—वि-लुल्—-—अव्यवस्थित करना, अस्तव्यस्त करना, छितराना
- लुलापः—पुं॰—-—लुल् घञर्थे क, तमाप्नोति अण्—भैंसा
- लुलायः—पुं॰—-—लुल् घञर्थे क, तमाप्नोति अण्—भैंसा
- लुलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुल्+क्त—हिलाया हुआ, करवट बदला हुआ, इधर उधर लुढ़का हुआ, कम्पायमान, लहराता हुआ
- लुलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुल्+क्त—अशान्त किया हुआ, दुःखित
- लुलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुल्+क्त—अव्यवस्थित, छितराये हुए
- लुलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुल्+क्त—दबाया हुआ, कुचला हुअ, क्षतिग्रस्त
- लुलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुल्+क्त—दबाने वाला, मर्मस्पर्शी
- लुलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुल्+क्त—थका हुआ, झुका हुआ
- लुलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—लुल्+क्त—प्रांजल, सुन्दर
- लुष्—भ्वा॰ पर॰ <लोषति>—-—-—चोट पहु्ंचाना, क्षतिग्रस्त करना
- लुष्—भ्वा॰ पर॰ <लोषति>—-—-—लूटना, डकैती डालना, चुराना
- लुषभः—पुं॰—-—रुषे अभच् नित् लुश् च—मदोन्मत्त हाथी
- लुह्—भ्वा॰ पर॰ <लोहति>—-—-—लालच करना, उत्सुक होना, लालायित होना
- लू—क्रया॰ उभ॰ <लिनाति>, <लुनीते>, <लून>—-—-—काटना, कतरना, चुटकी से पकड़ना, वियुक्त करना, विभक्त करना. तोड़ना, लुनाई करना, चुनना
- लू—क्रया॰ उभ॰ <लिनाति>, <लुनीते>, <लून>—-—-—काट देना, पूर्णतः नष्ट कर देना, विध्वंस करना
- लू—क्रया॰ उभ॰, प्रेर॰ <लवयति>, <लवयते>—-—-—काटना, कतरना, चुटकी से पकड़ना, वियुक्त करना, विभक्त करना. तोड़ना, लुनाई करना, चुनना
- लू—क्रया॰ उभ॰, प्रेर॰ <लवयति>, <लवयते>—-—-—काट देना, पूर्णतः नष्ट कर देना, विध्वंस करना
- आलू—क्रया॰ उभ॰—आ-लू—-—आहिस्ता से उखाड़ना
- विप्रलू—क्रया॰ उभ॰—विप्र-लू—-—काटना, छाँटना, उखाड़ देना
- लूता—स्त्री॰—-—लू+तक्+टाप्—मकड़ी
- लूता—स्त्री॰—-—-—चींटी
- लूतातन्तुः—पुं॰—लूता-तन्तुः—-—मकड़ी का जाल
- लूतामर्कटकः—पुं॰—लूता-मर्कटकः—-—लंगूर
- लूतामर्कटकः—पुं॰—लूता-मर्कटकः—-—एक प्रकार का चमेली का फूल
- लूतिका—स्त्री॰—-—लूता+कन्+टाप्, इत्वम्—मकड़ी
- लून—भू॰ क॰ कृ॰—-—लू+क्त—काटा गया, छाँटा गया, वियुक्त किया गया, काट दिया गया
- लून—भू॰ क॰ कृ॰—-—लू+क्त—तोड़ा गया, चुने गये
- लून—भू॰ क॰ कृ॰—-—लू+क्त—नष्ट किय हुआ
- लून—भू॰ क॰ कृ॰—-—लू+क्त—कर्तन किया गया, कुतरा गया
- लून—भू॰ क॰ कृ॰—-—लू+क्त—घायल किया गया
- लूनम्—नपुं॰—-—-—पूँछ
- लूमम्—नपुं॰—-—लू+मक्—पूंछ
- लूमविषः—पुं॰—लूमम्-विषः—-—जहरीली पूँछ वाला' जानवर जो अपनी पूँछ से डंक मारता है
- लूष्—भ्वा॰ पर॰ <लूषति>—-—-—चोट पहु्ंचाना, क्षतिग्रस्त करना
- लूष्—भ्वा॰ पर॰ <लूषति>—-—-—लूटना, डकैती डालना, चुराना
- लेखः—पुं॰—-—लिख्+घञ्—लिखावट, दस्तावेज, पत्र
- लेखः—पुं॰—-—लिख्+घञ्—देव, सुर
- लेखाधिकारिन्—पुं॰—लेखः-अधिकारिन्—-—पत्र लिखने का कार्य भारवाहक, सचिव
- लेखर्षभः—पुं॰—लेखः-ऋषभः—-—इन्द्र का नामांतर
- लेखपत्रम्—पुं॰—लेखः-पत्रम्—-—पत्र में लिखी कविता, पत्र, लेख या लिखावट
- लेखपत्रम्—पुं॰—लेखः-पत्रम्—-—लेख्य या पट्टा, दस्तावेज
- लेखपत्रिका—स्त्री॰—लेखः-पत्रिका—-—पत्र में लिखी कविता, पत्र, लेख या लिखावट
- लेखपत्रिका—स्त्री॰—लेखः-पत्रिका—-—लेख्य या पट्टा, दस्तावेज
- लेखसन्देशः—पुं॰—लेखः-सन्देशः—-—लिखा हुआ संदेसा
- लेखहारः—पुं॰—लेखः-हारः—-—पत्रवाहक
- लेखहारिन्—पुं॰—लेखः-हारिन्—-—पत्रवाहक
- लेखकः—पुं॰—-—लिख्+ण्वुल्—लिखने वाला, लिपिक, लिपिकार
- लेखकः—पुं॰—-—लिख्+ण्वुल्—चितेरा
- लेखकदोषः—पुं॰—लेखकः-दोषः—-—लिपिक की भूल-चूक, लिपिकार की त्रुटि
- लेखकप्रमादः—पुं॰—लेखकः-प्रमादः—-—लिपिक की भूल-चूक, लिपिकार की त्रुटि
- लेखन—वि॰—-—लिख्+ल्युट्—लिखने वाल्आ, चितेरा, खुरचने वाला आदि
- लेखनः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का नर कुल जिसके कलम बनते हैं
- लेखनम्—नपुं॰—-—-—लिखना, प्रतिलिपि करना
- लेखनम्—नपुं॰—-—-—खुरचना, छीलना
- लेखनम्—नपुं॰—-—-—चराई, स्पर्श करन
- लेखनम्—नपुं॰—-—-—पतला करना, कृश या दुबला करना
- लेखनम्—नपुं॰—-—-—ताड़पत्र
- लेखनी—स्त्री॰—-—-—कलम, लिखने के लिए नरकुल, नरकुल का कलम
- लेखनी—स्त्री॰—-—-—चम्मच
- लेखनसाधनम्—नपुं॰—लेखन-साधनम्—-—लिखने की सामग्री या उपकरण
- लेखनिकः—पुं॰—-—लेखन+ठन्—पत्रवाहक
- लेखिनी—स्त्री॰—-—लेख्+ल्युट्+ङीप्—कलम
- लेखिनी—स्त्री॰—-—लेख्+ल्युट्+ङीप्—चम्मच
- लेखा—स्त्री॰—-—लिख्+अ+टाप्—रेखा, धारी, लकीर
- लेखा—स्त्री॰—-—लिख्+अ+टाप्—लकीर, सीता या खूड, पंक्ति, चौड़ी धारी
- लेखा—स्त्री॰—-—लिख्+अ+टाप्—लिखावट, रेखांकन, आलेखन, चित्रण
- लेखा—स्त्री॰—-—लिख्+अ+टाप्—दूज का चाँद, चाँद की रेख
- लेखा—स्त्री॰—-—लिख्+अ+टाप्—आकृति, समानता, छाप, निशान
- लेखा—स्त्री॰—-—लिख्+अ+टाप्—गोट, किनारी, अंचल, झालर
- लेखा—स्त्री॰—-—लिख्+अ+टाप्—चोटी
- लेख्य—वि॰—-—लिख्+ण्यत्—अंकित किये जाने के योग्य, लिखे जाने योग्य, रंग भरे जाने योग्य, खुरचे जाने योग्य
- लेख्यम्—नपुं॰—-—-—लिखने की कला
- लेख्यम्—नपुं॰—-—-—लिखना, प्रतिलिपि करना
- लेख्यम्—नपुं॰—-—-—लेख् पत्र, दस्तावेज, हस्तलेख
- लेख्यम्—नपुं॰—-—-—शिलालेख
- लेख्यम्—नपुं॰—-—-—चित्रण, रेखांकण
- लेख्यम्—नपुं॰—-—-—चित्रित आकृति
- लेख्यारूढ—वि॰—लेख्य-आरूढ—-—लिख लिया गया, लिख कर रखा गया
- लेख्यकृत—वि॰—लेख्य-कृत—-—लिख लिया गया, लिख कर रखा गया
- लेख्यगत—वि॰—लेख्य-गत—-—चित्रित, चित्रचित्रित
- लेख्यचूर्णिका—स्त्री॰—लेख्य-चूर्णिका—-—कूची, तूलिका
- लेख्यपत्रम्—नपुं॰—लेख्य-पत्रम्—-—लेख, पत्र, दस्तावेज
- लेख्यपत्रम्—नपुं॰—लेख्य-पत्रम्—-—ताड़ का पत्ता
- लेख्यपत्रकम्—नपुं॰—लेख्य-पत्रकम्—-—लेख, पत्र, दस्तावेज
- लेख्यपत्रकम्—नपुं॰—लेख्य-पत्रकम्—-—ताड़ का पत्ता
- लेख्यप्रसङ्गः—पुं॰—लेख्य-प्रसङ्गः—-—दस्तावेज
- लेख्यस्थानम्—नपुं॰—लेख्य-स्थानम्—-—लिखने का स्थान
- लेण्डम्—नपुं॰—-—-—विष्ठा, मल
- लेतः—पुं॰—-—-—आँसू
- लेतम्—पुं॰—-—-—आँसू
- लेप्—भ्वा॰ आ॰ <लेपते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- लेप्—भ्वा॰ आ॰ <लेपते>—-—-—पूजा करना
- लेपः—पुं॰—-—लिप्+घञ्—लिपना, पोतना, मालिश करना
- लेपः—पुं॰—-—लिप्+घञ्—उबटन, मल्हम, अनुलोप
- लेपः—पुं॰—-—लिप्+घञ्—पलस्तर करना
- लेपः—पुं॰—-—लिप्+घञ्—हारथ में चिपके भोजन का अवशेष
- लेपः—पुं॰—-—लिप्+घञ्—हाथों की पोंछन
- लेपः—पुं॰—-—लिप्+घञ्—धब्बा, दाग, दूषण, कालुष्य
- लेपः—पुं॰—-—लिप्+घञ्—नैतिक अपवित्रता, पाप
- लेपः—पुं॰—-—लिप्+घञ्—भोजन
- लेपकरः—पुं॰—लेपः-करः—-—पलस्तर करने वाला, सफेदी करने वाला, ईंट की चिनाई करने वाला
- लेपभागिन्—पुं॰—लेपः-भागिन्—-—चौथी, पांचवी और छठी पीढ़ी के पितृसंबंधी पूर्वपुरुष @ मनु॰ ४/२१६
- लेपभुज्—पुं॰—लेपः-भुज्—-—चौथी, पांचवी और छठी पीढ़ी के पितृसंबंधी पूर्वपुरुष @ मनु॰ ४/२१७
- लेपकः—पुं॰—-—लिप्+ण्वुल्—पलस्तर करने वाला, राज, सफेदी करने वाला
- लेपनः—पुं॰—-—लिप्+ल्युट्—धूप, लोवान
- लेपनम्—नपुं॰—-—-—मालिश करना, पोतना, लीपना
- लेपनम्—नपुं॰—-—-—पलस्तर, मल्हम
- लेपनम्—नपुं॰—-—-—चूना, सफेदी
- लेपनम्—नपुं॰—-—-—मांस, मोटाई
- लेप्य—वि॰—-—लिप्+ण्यत्—लीपे या पोते जाने के योग्य
- लेप्यम्—नपुं॰—-—-—लीपना, पोतना
- लेप्यम्—नपुं॰—-—-—ढालना, मूर्ति बनाना, आदर्श या प्रतिरूपण बनाना
- लेप्यकृत्—पुं॰—लेप्य-कृत्—-—प्रतिमाकार
- लेप्यकृत्—पुं॰—लेप्य-कृत्—-—ईंट का रद्दा लगाने वाला
- लेप्यकृत्—स्त्री॰—लेप्य-कृत्—-—वह स्त्री जिसने उबटन का लेप किया तथा तैलादिक से शरीर सुवासित किया हुआ है
- लेप्यमयी—स्त्री॰—-—लेप्य+मयट्+ङीप्—गुड़िया, पुतली
- लेलायमाना—स्त्री॰—-—लेला इवाचरति - क्यच्+शानच्+टाप्—अग्नि की सात जिह्वाओं में से एक
- लेलिहः—पुं॰—-—लिह्+यङ्, लुक् द्वित्वादि, ततः अच्—सर्प, सांप
- लेलिहानः—पुं॰—-—लिह्+यङ्, लुक्, द्वित्वादि, ततः शानच्—सर्प, साँप
- लेलिहानः—पुं॰—-—लिह्+यङ्, लुक्, द्वित्वादि, ततः शानच्—शिव का विशेषण
- लेशः—पुं॰—-—लिश्+घञ्—थोड़ा सा टुकड़ा, अंश, कण, अणु, अत्यन्त तुच्छ मात्रा, क्लेश
- लेशः—पुं॰—-—लिश्+घञ्—समय की माप
- लेशः—पुं॰—-—लिश्+घञ्—एक प्रकार का अलंकार जिस में इष्ट का अनिष्ट के रूप में तथा अनिष्ट का इष्ट के रूप में वर्णन विद्यमान होता है
- लेशोक्त—वि॰—लेशः-उक्त—-—सुझावमात्र, संकेतित, वक्रोक्ति द्वारा सूचित
- लेश्या—स्त्री॰—-—-—प्रकाश, रोशनी
- लेष्टुः—पुं॰—-—लिष्+तुन्—ढेला, मिट्टी का लौंदा
- लेष्टुभेदनः—पुं॰—लेष्टुः-भेदनः—-—वह उपकरण जिसमें ढेले फोड़े जाते हैं
- लेसिकः—पुं॰—-—-—गजारोही, हाथी पर चढ़ने वाला
- लेहः—पुं॰—-—लिह्+घञ्—चाटना, आचमन, जैसा कि
- लेहः—पुं॰—-—लिह्+घञ्—चखना
- लेहः—पुं॰—-—लिह्+घञ्—चाट, चटनी
- लेहः—पुं॰—-—लिह्+घञ्—भोज्य पदार्थ
- लेहनम्—नपुं॰—-—लिह्+ल्युट्—चाटना, जिह्वा से आचमन करना
- लेहिनः—पुं॰—-—लिह्+इकन्—सुहागा
- लेह्य—वि॰—-—लिह्+ण्यत्—चाटे जाने या चाट कर खाये जाने के योग्य, जीभ से लपलप पीने योग्य
- लेह्यम्—नपुं॰—-—-—कोई भी चाटकर खायी जाने वाली वस्तु, चाट्अ
- लेह्यम्—नपुं॰—-—-—भोजन
- लैङ्गम्—नपुं॰—-—लिङ्गस्य इदम्-लिङ्ग+अण्—अठारह पुराणों में से एक पुराण का नाम
- लैङ्गिक—वि॰—-—लिङ्ग+ठण्—किसी चिह्न या निशान पर निर्भर या तत्संबंधी
- लैङ्गिक—वि॰—-—लिङ्ग+ठण्—अनुमित
- लैङ्गिकः—पुं॰—-—-—प्रतिमाकार, मूर्तिकार
- लोक्—भ्वा॰ आ॰ <लोकते>, <लोकित>—-—-—देखना, नजर डालना, प्रत्यक्ष ज्ञन प्राप्त करना
- अवलोक्—भ्वा॰ आ॰ —अव-लोक्—-—देखना, निगाह डालना
- आलोक्—भ्वा॰ आ॰ —आ-लोक्—-—देखना, निगाह डालना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना
- लोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰ <लोकयति>, <लोकयते>, <लोकित>—-—-—देखना, निगाह डालनी, निहारना, प्रत्यक्षज्ञान प्राप्त करना
- लोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰ <लोकयति>, <लोकयते>, <लोकित>—-—-—जानना, जानकार होना
- लोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰ <लोकयति>, <लोकयते>, <लोकित>—-—-—चमकना
- लोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰ <लोकयति>, <लोकयते>, <लोकित>—-—-—बोलना
- अवलोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—अव-लोक्—-—देखना, निहारना, निगाह डालना
- अवलोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—अव-लोक्—-—मालूम करना, जानना, निरीक्षण करना
- अवलोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—अव-लोक्—-—परखना, मनन करना, विमर्श करना
- आलोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—आ-लोक्—-—देखना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना, निहारना, निगाह डालना
- आलोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—आ-लोक्—-—खयाल करना, विचार करना, ध्यान देना
- आलोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—आ-लोक्—-—जानना, मालूम करना
- आलोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—आ-लोक्—-—अभिवादन करना, बधाई देना
- विलोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—वि-लोक्—-—देखना, निहारना, निगाह डालना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना
- विलोक्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—वि-लोक्—-—तलाश करना, ढूढ़ना
- लोकः—पुं॰—-—लोंक्यतेऽसौ लोक्+घञ्—दुनिया, संसार, विश्व का एक प्रभाग
- लोकः—पुं॰—-—लोंक्यतेऽसौ लोक्+घञ्—भूलोक, पृथ्वी, इहलोके, इस संसार में
- लोकः—पुं॰—-—लोंक्यतेऽसौ लोक्+घञ्—मानव जाति, मनुष्य जाति, मनुष्य-लोकातिग, लोकोत्तर इत्यादि
- लोकः—पुं॰—-—लोंक्यतेऽसौ लोक्+घञ्—प्रजा, राष्ट्र के व्यक्ति
- लोकः—पुं॰—-—लोंक्यतेऽसौ लोक्+घञ्—समुदाय, समूह, समिति
- लोकः—पुं॰—-—लोंक्यतेऽसौ लोक्+घञ्—क्षेत्र, इलाका, जिला, प्रान्त
- लोकः—पुं॰—-—लोंक्यतेऽसौ लोक्+घञ्—सामान्य जीवन, सामान्य व्यवहार
- लोकः—पुं॰—-—लोंक्यतेऽसौ लोक्+घञ्—सामान्य लोक प्रचलन
- लोकः—पुं॰—-—लोंक्यतेऽसौ लोक्+घञ्—दृष्टि, दर्शन
- लोकः—पुं॰—-—लोंक्यतेऽसौ लोक्+घञ्—सात' या चौदह की संख्या
- लोकातिग—वि॰—लोकः-अतिग—-—असाधारण, अतिप्राकृतिक
- लोकातिशय—वि॰—लोकः-अतिशय—-—संसार के लिए श्रेष्ठ, असाधारण
- लोकाधिक—वि॰—लोकः-अधिक—-—असाधारण, असामान्य
- लोकाधिपः—पुं॰—लोकः-अधिपः—-—राजा
- लोकाधिपः—पुं॰—लोकः-अधिपः—-—सुर, देव
- लोकाधिपतिः—पुं॰—लोकः-अधिपतिः—-—संसार का स्वामी
- लोकानुरागः—पुं॰—लोकः-अनुरागः—-—मनुष्य जाति से प्रेम', विश्वप्रेम, साधारण हितैषिता, परोपकार
- लोकान्तरम्—नपुं॰—लोकः-अन्तरम्—-—परलोक', दूसरी दोनिया, भावी जीवन
- लोकप्राप्—वि॰—लोकः-प्राप्—-—मरना
- लोकापवादः—पुं॰—लोकः-अपवादः—-—सब लोगों में बदनामी, सार्वजनिक निन्दा
- लोकाभ्युदयः—पुं॰—लोकः-अभ्युदयः—-—लोककल्याण
- लोकायनः—पुं॰—लोकः-अयनः—-—नारायण का नामांतर
- लोकालोकः—पुं॰—लोकः-अलोकः—-—एक काल्पनिक पहाड़ जो इस पृथ्वी को घेरे हुए है और निर्मल जल के उस समुद्र से परे स्थित है जिसने सात महाद्वीपों में से अन्तिम द्वीप को घेर रक्खा है, इस लोकालोक से परे घोर अन्कार है, और इस ओर प्रकाश है इस प्रकार यह पहाड़ इस दृश्ययान संसार को अन्धकार के प्रदेश से विभक्त करता है
- लोकालोकौ—पुं॰—लोकः-अलोकौ—-—दृश्यमान और अदृष्ट लोक
- लोकाचारः—पुं॰—लोकः-आचारः—-—सामान्य प्रचलन, सार्वजनिक या साधारण प्रथा, लोकव्यवहार
- लोकात्मन्—पुं॰—लोकः-आत्मन्—-—विश्व की आत्मा
- लोकादिः—पुं॰—लोकः-आदिः—-—संसार का आरम्भ
- लोकादिः—पुं॰—लोकः-आदिः—-—संसार का रचयिता
- लोकायत—वि॰—लोकः-आयत—-—नास्तिकतासंबंधी, अनात्मसंबंधी
- लोकायतः—पुं॰—लोकः-आयतः—-—भौतिकवादी, नास्तिक, चार्वाक दर्शन का अनुयायी
- लोकायतम्—नपुं॰—लोकः-आयतम्—-—भौतिकवादी नास्तिकता
- लोकायतिकः—पुं॰—लोकः-आयतिकः—-—नास्तिक, अनात्मवादी
- लोकेशः—पुं॰—लोकः-ईशः—-—राजा
- लोकेशः—पुं॰—लोकः-ईशः—-—ब्रह्मा
- लोकेशः—पुं॰—लोकः-ईशः—-—पारा
- लोकोक्तिः—स्त्री॰—लोकः-उक्तिः—-—कहावत, लोकोक्ति
- लोकोक्तिः—स्त्री॰—लोकः-उक्तिः—-—सामान्य चर्चा, लोकमत
- लोकोत्तर—वि॰—लोकः-उत्तर—-—असाधारण, असामान्य, अप्रचलित
- लोकोत्तरः—पुं॰—लोकः-उत्तरः—-—राजा
- लोकैषणा—स्त्री॰—लोकः-एषणा—-—स्वर्ग की इच्छा
- लोककण्टकः—पुं॰—लोकः-कण्टकः—-—कष्ट देने वाला या दुष्ट पुरुष, मानवजाति का अभिशाप
- लोककथा—स्त्री॰—लोकः-कथा—-—सर्वप्रिय कहानी
- लोककर्तृ—पुं॰—लोकः-कर्तृ—-—संसार के रचयिता
- लोककृत्—पुं॰—लोकः-कृत्—-—संसार के रचयिता
- लोकगाथा—स्त्री॰—लोकः-गाथा—-—परंपरा से लोगों में गाया जाने वाला गान
- लोकचक्षुस्—नपुं॰—लोकः-चक्षुस्—-—सूर्य
- लोकचारित्रम्—नपुं॰—लोकः-चारित्रम्—-—लोकव्यवहार
- लोकजननी—स्त्री॰—लोकः-जननी—-—लक्ष्मी का विशेषण
- लोकजित्—पुं॰—लोकः-जित्—-—बुद्ध का विशेषण
- लोकजित्—पुं॰—लोकः-जित्—-—संसार का विजेता
- लोकज्ञ—वि॰—लोकः-ज्ञ—-—संसार को जानने वाला
- लोकज्येष्ठः—पुं॰—लोकः-ज्येष्ठः—-—बुद्ध का विशेषण
- लोकतत्त्वम्—नपुं॰—लोकः-तत्त्वम्—-—मनुष्य जाति का ज्ञान
- लोकतन्त्रम्—नपुं॰—लोकः-तन्त्रम्—-—जनतंत्र
- लोकतुषारः—पुं॰—लोकः-तुषारः—-—कपूर
- लोकत्रयम्—नपुं॰—लोकः-त्रयम्—-—सामूहिक रूप से तीनों लोक
- लोकत्रयी—स्त्री॰—लोकः-त्रयी—-—सामूहिक रूप से तीनों लोक
- लोकद्वारम्—नपुं॰—लोकः-द्वारम्—-—स्वर्ग का दरवाजा
- लोकधातुः—पुं॰—लोकः-धातुः—-—संसार का विशेष प्रकार का विभाजन
- लोकधातृ—पुं॰—लोकः-धातृ—-—शिव का विशेषण
- लोकनाथः—पुं॰—लोकः-नाथः—-—ब्रह्मा
- लोकनाथः—पुं॰—लोकः-नाथः—-—विष्णु
- लोकनाथः—पुं॰—लोकः-नाथः—-—शिव
- लोकनाथः—पुं॰—लोकः-नाथः—-—राजा, प्रभु
- लोकनाथः—पुं॰—लोकः-नाथः—-—बुद्ध
- लोकनेतृ—पुं॰—लोकः-नेतृ—-—शिव का विशेषण
- लोकपः—पुं॰—लोकः-पः—-—दिक्पाल
- लोकपः—पुं॰—लोकः-पः—-—राजा, प्रभु
- लोकपालः—पुं॰—लोकः-पालः—-—दिक्पाल
- लोकपालः—पुं॰—लोकः-पालः—-—राजा, प्रभु
- लोकपक्तिः—स्त्री॰—लोकः-पक्तिः—-—मनुष्यजाति का आदर, साधारण आदरणीयता
- लोकपतिः—पुं॰—लोकः-पतिः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- लोकपतिः—पुं॰—लोकः-पतिः—-—विष्णु का विशेषण
- लोकपतिः—पुं॰—लोकः-पतिः—-—राजा, प्रभु
- लोकपथः—स्त्री॰—लोकः-पथः—-—साधारण व्यवहार, दुनिया का तरीका
- लोकपद्धतिः—स्त्री॰—लोकः-पद्धतिः—-—साधारण व्यवहार, दुनिया का तरीका
- लोकपितामहः—पुं॰—लोकः-पितामहः—-—ब्रह्मा का वशेषण
- लोकप्रकाशनः—पुं॰—लोकः-प्रकाशनः—-—सूर्य
- लोकप्रवादः—पुं॰—लोकः-प्रवादः—-—किंवदन्ती, अफवाह, सर्वसाधारण में प्रचलित बात
- लोकप्रसिद्ध—वि॰—लोकः-प्रसिद्ध—-—सुज्ञात, विश्वविज्ञात
- लोकबन्धुः—पुं॰—लोकः-बन्धुः—-—सूर्य
- लोकबान्धवः—पुं॰—लोकः-बान्धवः—-—सूर्य
- लोकबाह्य—वि॰—लोकः-बाह्य—-—समाज में बहिष्कृत, बिरादरी से खारिज
- लोकबाह्य—वि॰—लोकः-बाह्य—-—दुनिया से भिन्न, सनकी, अकेला
- लोकवाह्य—वि॰—लोकः-वाह्य—-—समाज में बहिष्कृत, बिरादरी से खारिज
- लोकवाह्य—वि॰—लोकः-वाह्य—-—दुनिया से भिन्न, सनकी, अकेला
- लोकबाह्यः—पुं॰—लोकः-बाह्यः—-—जातिच्युत व्यक्ति
- लोकबाह्यः—पुं॰—लोकः-वाह्यः—-—जातिच्युत व्यक्ति
- लोकमर्यादा—स्त्री॰—लोकः-मर्यादा—-—मानी हुई या प्रचलित प्रथा
- लोकमातृ—स्त्री॰—लोकः-मातृ—-—लक्ष्मी का विशेषण
- लोकमार्गः—पुं॰—लोकः-मार्गः—-—लोकसमंत प्रथा
- लोकयात्रा—स्त्री॰—लोकः-यात्रा—-—दुनिया के मामले, लौकिक जीवनचर्या, लोकव्यवहार
- लोकयात्रा—स्त्री॰—लोकः-यात्रा—-—सांसारिक अस्तित्व, जीवनचर्या
- लोकयात्रा—स्त्री॰—लोकः-यात्रा—-—आजीविका, वृत्ति
- लोकरक्षः—पुं॰—लोकः-रक्षः—-—राजा, प्रभु
- लोकरञ्जनम्—नपुं॰—लोकः-रञ्जनम्—-—जनता को संतुष्ट करना, सर्वप्रियता
- लोकरवः—पुं॰—लोकः-रवः—-—जनश्रुति, सार्वजनिक चर्चा
- लोकलोचनम्—नपुं॰—लोकः-लोचनम्—-—सूर्य
- लोकवचनम्—नपुं॰—लोकः-वचनम्—-—सार्वजनिक किंवदन्ती, अफवाह
- लोकवादः—पुं॰—लोकः-वादः—-—किंवदन्ती, सामान्य चर्चा, सार्वजनिक अफवाह
- लोकवार्ता—स्त्री॰—लोकः-वार्ता—-—किंवदन्ती, अफवाह
- लोकविद्विष्ट—वि॰—लोकः-विद्विष्ट—-—जिससे सब लोग घृणा करते हों, जिसे लोग पसंद न करते हों
- लोकविधिः—पुं॰—लोकः-विधिः—-—कार्य विधि का प्रकार, लोक में प्रचलित प्रक्रिया
- लोकविधिः—पुं॰—लोकः-विधिः—-—संसार का रचयिता
- लोकविश्रुत—वि॰—लोकः-विश्रुत—-—दूर दूर तक मशहूर, जगद्विख्यात, प्रसिद्ध, यशस्वी
- लोकवृत्तम्—नपुं॰—लोकः-वृत्तम्—-—लोक व्यवहार, संसार में प्रचलित प्रथा
- लोकवृत्तम्—नपुं॰—लोकः-वृत्तम्—-—इधर उधर की बातें, गपशप
- लोकवृत्तान्तः—पुं॰—लोकः-वृत्तान्तः—-—लोकाचार, लोकरीति, साधारण प्रथा
- लोकवृत्तान्तः—पुं॰—लोकः-वृत्तान्तः—-—घटनाक्रम
- लोकव्यवहारः—पुं॰—लोकः-व्यवहारः—-—लोकाचार, लोकरीति, साधारण प्रथा
- लोकव्यवहारः—पुं॰—लोकः-व्यवहारः—-—घटनाक्रम
- लोकश्रुतिः—स्त्री॰—लोकः-श्रुतिः—-—जनश्रु्ति
- लोकश्रुतिः—स्त्री॰—लोकः-श्रुतिः—-—विश्वविख्यात कीर्ति
- लोकसङ्करः—पुं॰—लोकः-सङ्करः—-—संसार की साधारण अव्यवस्था
- लोकसङ्ग्रहः—पुं॰—लोकः-सङ्ग्रहः—-—समस्त विश्व
- लोकसङ्ग्रहः—पुं॰—लोकः-सङ्ग्रहः—-—लोककल्याण
- लोकसङ्ग्रहः—पुं॰—लोकः-सङ्ग्रहः—-—लोगों की भलाई चाहना
- लोकसाक्षिन्—पुं॰—लोकः-साक्षिन्—-—ब्रह्मा का विशेषण
- लोकसाक्षिन्—पुं॰—लोकः-साक्षिन्—-—अग्नि
- लोकसिद्ध—वि॰—लोकः-सिद्ध—-—लोगों में प्रचलित, रिवाजी, प्रथागत
- लोकसिद्ध—वि॰—लोकः-सिद्ध—-—लोक या समाज द्वारा स्वीकृत
- लोकस्थितिः—स्त्री॰—लोकः-स्थितिः—-—विश्व का अस्तित्व या संचालन, सांसारिक अस्तित्व
- लोकस्थितिः—स्त्री॰—लोकः-स्थितिः—-—विश्वनियम
- लोकहास्य—वि॰—लोकः-हास्य—-—संसार द्वारा उपहसित, उपहसित, लोकनोंदित
- लोकहित—वि॰—लोकः-हित—-—मनुष्य जाति के लिए कल्याणकारी
- लोकहितम्—नपुं॰—लोकः-हितम्—-—जनसाधारण का कल्याण
- लोकनम्—नपुं॰—-—लोक्+ल्युट्—देखना, दर्शन करना, निहारना
- लोकम्पृण—वि॰—-—लोक+पृण्+क, मुमागमः—संसार में व्याप्त संसार को भरने वाला
- लोच्—भ्वा॰ आ॰ <लोचते>—-—-—देखना, निहारना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना, निरीक्षण करना
- लोच्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰ <लोचयति>, <लोचयते>—-—-—दिक्हलाना
- आलोच्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—आ-लोच्—-—देखना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना
- आलोच्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—आ-लोच्—-—विचारना, विमर्श करना, चिंतन करना, सोचना
- लोच्—चुर॰ उभ॰ <लोचयति>, <लोचयते>—-—-—बोलना
- लोच्—चुर॰ उभ॰ <लोचयति>, <लोचयते>—-—-—चमकना
- लोचम्—नपुं॰—-—लोच्+अच्—आँसू
- लोचकः—पुं॰—-—लोच्+ण्वुल्—मूर्ख पुरुष
- लोचकः—पुं॰—-—लोच्+ण्वुल्—आँख की पुतली
- लोचकः—पुं॰—-—लोच्+ण्वुल्—दीपक की कालिख, काजल
- लोचकः—पुं॰—-—लोच्+ण्वुल्—एक प्रकार का कान का कुंडल
- लोचकः—पुं॰—-—लोच्+ण्वुल्—काली या नीली वेशभूषा
- लोचकः—पुं॰—-—लोच्+ण्वुल्—धनुष की डोरी
- लोचकः—पुं॰—-—लोच्+ण्वुल्—स्त्रियों द्वारा मस्तक पर धारण किया जाने वाला आभूषण, टीका
- लोचकः—पुं॰—-—लोच्+ण्वुल्—मांसपिंड
- लोचकः—पुं॰—-—लोच्+ण्वुल्—साँप की केंचुली
- लोचकः—पुं॰—-—लोच्+ण्वुल्—झुर्रीदार चमड़ी
- लोचकः—पुं॰—-—लोच्+ण्वुल्—भौं जिसमें झुर्रियाँ पड़ी हैं
- लोचकः—पुं॰—-—लोच्+ण्वुल्—केले का पौधा
- लोचनम्—नपुं॰—-—लोच्+ल्युट्—देखना, दृष्टि, दर्शन
- लोचनम्—नपुं॰—-—लोच्+ल्युट्—आँख
- लोचनगोचरः—पुं॰—लोचनम्-गोचरः—-—दृष्टि परास, दृष्टिक्षेत्र
- लोचनपथः—पुं॰—लोचनम्-पथः—-—दृष्टि परास, दृष्टिक्षेत्र
- लोचनमार्गः—पुं॰—लोचनम्-मार्गः—-—दृष्टि परास, दृष्टिक्षेत्र
- लोट्—भ्वा॰ पर॰ <लोटति>—-—-—पागल या मूर्ख होना
- लोठः—पुं॰—-—लुठ्+घञ्—भूमि पर लोटना, लुढ़कना
- लोड्—भ्वा॰ पर॰ <लोडति>—-—-—पागल या मूर्ख होना
- लोडनम्—नपुं॰—-—लोड्+ल्युट्—अशान्त करना, उद्विग्न करना, आलोडित करना
- लोणारः—पुं॰—-—लवण+ऋ+अण्, पृषो॰—नमक का एक प्रकार
- लोतः—पुं॰—-—लू+तन्—आँसू
- लोतः—पुं॰—-—लू+तन्—निशान, चिह्न, निशानी
- लोत्रम्—नपुं॰—-—लू+ष्ट्रन्—चुराई हुई संपत्ति, लूट का माल
- लोधः—पुं॰—-—रुनद्धि औष्ण्यम्, रुध्+रन्—लाल या सफेद फूलों वाला वृक्ष विशेष
- लोध्रः—पुं॰—-—रुनद्धि औष्ण्यम्, रुध्+रन्—लाल या सफेद फूलों वाला वृक्ष विशेष
- लोपः—पुं॰—-—लुप् भावे घञ्—हटा लेना, वंचना
- लोपः—पुं॰—-—लुप् भावे घञ्—हानि, विनाश
- लोपः—पुं॰—-—लुप् भावे घञ्—उन्मूलन, अपाकरण, उत्सादन, अन्तर्धान, अप्रचलन
- लोपः—पुं॰—-—लुप् भावे घञ्—उल्लंघन, अतिक्रमण
- लोपः—पुं॰—-—लुप् भावे घञ्—अभाव, असफलता, अनुपस्थिति
- लोपः—पुं॰—-—लुप् भावे घञ्—भूल-चूक, छूट
- लोपः—पुं॰—-—लुप् भावे घञ्—अदर्शन, वर्णलोप
- लोपनम्—नपुं॰—-—लुप्+ल्युट्—उल्लंघन, अतिक्रमण
- लोपनम्—नपुं॰—-—लुप्+ल्युट्—भूल-चूक, छूट
- लोपा—स्त्री॰—-—लुप्+णिच्+अच्+टाप्, लोपा+आमुद्रा कर्म॰ स॰—विदर्भराज की एक कन्या, अगस्त्य मुनि की पत्नी
- लोपामुद्रा—स्त्री॰—-—लुप्+णिच्+अच्+टाप्, लोपा+आमुद्रा कर्म॰ स॰—विदर्भराज की एक कन्या, अगस्त्य मुनि की पत्नी
- लोपाकः—पुं॰—-—लोपम् आदर्शनमाप्नोति, लोप+आप्+ण्वुल्—एक प्रकार का गीदड़, श्रृगाल
- लोपापकः—पुं॰—-—लोपम् आदर्शनमाप्नोति, लोप+आप्+ण्वुल्—एक प्रकार का गीदड़, श्रृगाल
- लोपाशः—पुं॰—-—लोपमाकुलीभावं चकितमश्नाति लोप+अश्+अण्—गीदड़, लोमड़
- लोपाशकः—पुं॰—-—लोपमाकुलीभावं चकितमश्नाति लोप+अश्+ण्वुल्—गीदड़, लोमड़
- लोपिन्—वि॰—-—लोप्+णिनि—क्षतिग्रस्त करने वाला, नुकसान पहुँचाने वाला
- लोपिन्—वि॰—-—लोप्+णिनि—लुप्त होने वाला
- लोप्त्रम्—नपुं॰—-—लुप्+त्रन्—चुराई हुई संपत्ति, लूट का माल
- लोभः—पुं॰—-—लु्भ्+घञ्—लोलुपता, लालसा, लालच, अतितृष्णा
- लोभः—पुं॰—-—लु्भ्+घञ्—इच्छा, उत्कण्ठा
- लोभान्वित—वि॰—लोभः-अन्वित—-—लोलुप, लालची, लोभी
- लोभविरहः—पुं॰—लोभः-विरहः—-—लोलुपता का अभाव
- लोभनम्—नपुं॰—-—लुभ्+ल्युट्—प्रलोभन, ललचाना, बहकाना, फुसलाना
- लोभनम्—नपुं॰—-—लुभ्+ल्युट्—सोना
- लोभनीय—वि॰—-—लभ्+अनीयर्—फुसलाने वाला, प्रलोभन देने वाला, आकर्षक
- लोमः—पुं॰—-—-—पूंछ
- लोमकिन्—पुं॰—-—लोमक+इनि—एक पक्षी
- लोमन्—नपुं॰—-—लू+मनिन्—मनुष्य और जानवरों के शरीर पर उगने वाले बाल
- लोमाचः—पुं॰—लोमन्-अचः—-—(हर्षातिरेक, बिभीषिका या आश्चर्य आदि में) पुलक, रोंगटे खड़े होना
- लोमालिः—स्त्री॰—लोमन्-आलिः—-—छाती से लेकर नाभि तक बालों की पंक्ति
- लोमाली—स्त्री॰—लोमन्-आली—-—छाती से लेकर नाभि तक बालों की पंक्ति
- लोमावलिः—स्त्री॰—लोमन्-आवलिः—-—छाती से लेकर नाभि तक बालों की पंक्ति
- लोमावली—स्त्री॰—लोमन्-आवली—-—छाती से लेकर नाभि तक बालों की पंक्ति
- लोमराजिः—स्त्री॰—लोमन्-राजिः—-—छाती से लेकर नाभि तक बालों की पंक्ति
- लोमकर्णः—पुं॰—लोमन्-कर्णः—-—खरगोश
- लोमकीटः—पुं॰—लोमन्-कीटः—-—जूँ, यूका
- लोमकूपः—पुं॰—लोमन्-कूपः—-—खाल में छिद्र
- लोमगर्तः—पुं॰—लोमन्-गर्तः—-—खाल में छिद्र
- लोमरन्ध्रम्—नपुं॰—लोमन्-रन्ध्रम्—-—खाल में छिद्र
- लोमविवरम्—नपुं॰—लोमन्-विवरम्—-—खाल में छिद्र
- लोमघ्नम्—नपुं॰—लोमन्-घ्नम्—-—दूषित गंज
- लोममणिः—पुं॰—लोमन्-मणिः—-—बालों से बनाया हुआ ताबीज
- लोमवाहिन्—वि॰—लोमन्-वाहिन्—-—पंखधारी
- लोमसंहर्षण—वि॰—लोमन्-संहर्षण—-—पुलकित करने वाला, रोमांच पैदा करने वाला
- लोमसारः—पुं॰—लोमन्-सारः—-—पन्ना
- लोमहर्ष—पुं॰—लोमन्-हर्ष—-—बालों या रोंगटों का खड़े होना, पुलक
- लोमहर्षण—वि॰—लोमन्-हर्षण—-—बालों या रोंगटों का खड़े होना, पुलक
- लोमहर्षिन्—वि॰—लोमन्-हर्षिन्—-—बालों या रोंगटों का खड़े होना, पुलक
- रोमहर्षणम्—नपुं॰—रोमन्-हर्षणम्—-—शरीर पर रोंगटे खड़े होना, पुलक
- लोमश—वि॰—-—लोमानि सन्ति अस्य - लोमन्+श—बालों वाला, ऊनी, रोएँदार
- लोमश—वि॰—-—लोमानि सन्ति अस्य - लोमन्+श—ऊनी
- लोमश—वि॰—-—लोमानि सन्ति अस्य - लोमन्+श—बालों वाला
- लोमशः—पुं॰—-—-—भेड़, मेंढा
- लोमशा—स्त्री॰—-—-—लोमड़ी
- लोमशा—स्त्री॰—-—-—गीदड़ी
- लोमशा—स्त्री॰—-—-—लंगूर
- लोमशा—स्त्री॰—-—-—कासीस
- लोमशमार्जारः—पुं॰—लोमश-मार्जारः—-—गंधबिलाव
- लोल—वि॰—-—लोड्+अच्, डस्य लः, लुल्+घञ् वा—हिलता हुआ, लोटता हुआ, कांपता हुआ, दोलायमान, थरथराता हुआ, बहता हुआ, लहराता हुआ
- लोल—वि॰—-—लोड्+अच्, डस्य लः, लुल्+घञ् वा—विक्षुब्ध, अशान्त, बेचैन, परेशान
- लोल—वि॰—-—लोड्+अच्, डस्य लः, लुल्+घञ् वा—चंचल, चपल, परिवर्ती, अस्थिर
- लोल—वि॰—-—लोड्+अच्, डस्य लः, लुल्+घञ् वा—अस्थायी, नश्वर
- लोल—वि॰—-—लोड्+अच्, डस्य लः, लुल्+घञ् वा—आतुर, उत्सुक, उत्कण्ठित
- लोला—स्त्री॰—-—-—लक्ष्मी का नाम
- लोला—स्त्री॰—-—-—बिजली
- लोला—स्त्री॰—-—-—जिह्वा
- लोलाक्षि—नपुं॰—लोल-अक्षि—-—चंचल नेत्र
- लोलाक्षिका—स्त्री॰—लोल-अक्षिका—-—चंचल नेत्रों वाली स्त्री
- लोलजिह्व—वि॰—लोल-जिह्व—-—चंचल जिह्वा से युक्त, लालची
- लोललोल—वि॰—लोल-लोल—-—अत्यंत थरथराने वाला, सदैव बेचैन
- लोलुप—वि॰—-—लुभ्+यङ् अच्, पृषो॰ भस्य पः—बहुत उत्सुक, अत्यंत इच्छुक, लालायित, लालची
- लोलुपा—स्त्री॰—-—-—लालसा, उत्कण्ठा, उत्सुकता
- लोलुभ—वि॰—-—लुभ्+यङ्+अच्—अत्यन्त लालसायुक्त, लालचि
- लोष्ट्—भ्वा॰ आ॰ <लोष्टते>—-—-—ढेर लगाना, अंबार लगाना
- लोष्टः—पुं॰—-—लुष्+तन्—ढेला, मिट्टी का लौंदा
- लोष्टम्—नपुं॰—-—-—ढेला, मिट्टी का लौंदा
- लोष्टम्—नपुं॰—-—-—लोहे का मोर्चा, जंग
- लोष्टघ्नः—पुं॰—लोष्टः-घ्नः—-—ढेलों को फोड़ने का उपकरण, पटेला, हेंगा
- लोष्टभेदनः—पुं॰—लोष्टः-भेदनः—-—ढेलों को फोड़ने का उपकरण, पटेला, हेंगा
- लोष्टभेदनम्—नपुं॰—लोष्टः--भेदनम्—-—ढेलों को फोड़ने का उपकरण, पटेला, हेंगा
- लोष्टुः—पुं॰—-—लुष्+तुन्—ढेला, मिट्टी का लौंदा
- लोह—वि॰—-—लूयतेऽनेन, लू+ह—लाल, लाल रंग का
- लोह—वि॰—-—लूयतेऽनेन, लू+ह—तांबे का बना हुआ, ताम्रमय
- लोह—वि॰—-—लूयतेऽनेन, लू+ह—लोहे का बना हुआ
- लोहः—पुं॰—-—-—लाल बकरा
- लोहम्—नपुं॰—-—-—अगर की लकड़ी
- लोहाजः—पुं॰—लोह-अजः—-—लाल बकरा
- लोहाभिसारः—पुं॰—लोह-अभिसारः—-—नीराजन' से मिलता-जुलता एक सैनिक-संस्कार
- लोहाभिहारः—पुं॰—लोह-अभिहारः—-—नीराजन' से मिलता-जुलता एक सैनिक-संस्कार
- लोहोत्तमम्—नपुं॰—लोह-उत्तमम्—-—सोना
- लोहकान्तः—पुं॰—लोह-कान्तः—-—लोहमणि, चुम्बक
- लोहकारः—पुं॰—लोह-कारः—-—लुहार
- लोहकिट्टम्—नपुं॰—लोह-किट्टम्—-—लोहे का जंग
- लोहघातकः—पुं॰—लोह-घातकः—-—लुहार
- लोहचूर्णम्—नपुं॰—लोह-चूर्णम्—-—रेतने से निकला हुआ लोहे का चूरा, लोहे का जंग
- लोहचूर्णजम्—नपुं॰—लोह-चूर्णजम्—-—कांसा
- लोहचूर्णजम्—नपुं॰—लोह-चूर्णजम्—-—लोहे का बुरादा
- लोहजालम्—नपुं॰—लोह-जालम्—-—कवच
- लोहजित्—पुं॰—लोह-जित्—-—हीरा
- लोहद्राविन्—पुं॰—लोह-द्राविन्—-—सुहागा
- लोहनालः—पुं॰—लोह-नालः—-—लोहे का बाण
- लोहपृष्ठः—पुं॰—लोह-पृष्ठः—-—एक प्रकार का बगला, कंकपक्षी
- लोहप्रतिमा—स्त्री॰—लोह-प्रतिमा—-—घन
- लोहप्रतिमा—स्त्री॰—लोह-प्रतिमा—-—लोहमूर्ति
- लोहबद्ध—वि॰—लोह-बद्ध—-—लोके से युक्त या जिसकी नोक पर लोहा जड़ा हो
- लोहमुक्तिका—स्त्री॰—लोह-मुक्तिका—-—लाल मोती
- लोहरजस्—नपुं॰—लोह-रजस्—-—लोहे का जंग, मोर्चा
- लोहराजकम्—नपुं॰—लोह-राजकम्—-—चांदी
- लोहवरम्—नपुं॰—लोह-वरम्—-—सोना
- लोहशङ्कुः—पुं॰—लोह-शङ्कुः—-—लोहे की सलाख
- लोहश्लेषणः—पुं॰—लोह-श्लेषणः—-—सुहागा
- लोहसङ्करम्—नपुं॰—लोह-सङ्करम्—-—नीले रंग का इस्पात
- लोहल—वि॰—-—लोहमिव लाति - ला+क—लोहे का बना हुआ
- लोहल—वि॰—-—लोहमिव लाति - ला+क—अस्पष्टभाषी, तुतला कर बोलने वाला
- लोहिका—स्त्री॰—-—लोह+ठन्+टाप्—लोहे का पात्र
- लोहित—वि॰—-—रुह्+इतन्, रस्य लः—लाल, लाल रंग का
- लोहित—वि॰—-—रुह्+इतन्, रस्य लः—तांबा, तांबे से बना हुआ
- लोहितः—पुं॰—-—-—लाल रंग
- लोहितः—पुं॰—-—-—मंगल ग्रह
- लोहितः—पुं॰—-—-—सांप
- लोहितः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का हरिण
- लोहितः—पुं॰—-—-—एक प्रकार के चावल
- लोहिता—स्त्री॰—-—-—आग की सात जिह्वाओं में से एक
- लोहितम्—नपुं॰—-—-—तांबा
- लोहितम्—नपुं॰—-—-—रुधिर
- लोहितम्—नपुं॰—-—-—जाफरान, केसर
- लोहितम्—नपुं॰—-—-—युद्ध
- लोहितम्—नपुं॰—-—-—लाल चन्दन
- लोहितम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का चन्दन
- लोहितम्—नपुं॰—-—-—इन्द्र धनुष का अधुरा रूप
- लोहिताक्षः—पुं॰—लोहित-अक्षः—-—लाल रंग
- लोहिताक्षः—पुं॰—लोहित-अक्षः—-—एक प्रकार का साँप
- लोहिताक्षः—पुं॰—लोहित-अक्षः—-—कोयल
- लोहिताक्षः—पुं॰—लोहित-अक्षः—-—विष्णु का विशेषण
- लोहिताङ्गगः—पुं॰—लोहित-अङ्गगः—-—मंगलग्रह
- लोहितायस्—नपुं॰—लोहित-अयस्—-—तांबा
- लोहिताशोकः—पुं॰—लोहित-अशोकः—-—अशोक वृक्ष
- लोहिताश्वः—पुं॰—लोहित-अश्वः—-—आग
- लोहिताननः—पुं॰—लोहित-आननः—-—नेवला
- लोहितेक्षणः—वि॰—लोहित-ईक्षणः—-—लाल आँखों वाला
- लोहितोद्—वि॰—लोहित-उद्—-—लाल या रुधिर के समान लाल पानी वाला
- लोहितकल्माष—वि॰—लोहित-कल्माष—-—लाल धब्बों वाला
- लोहितक्षयः—पुं॰—लोहित-क्षयः—-—रुधिर का नाश
- लोहितग्रीवः—पुं॰—लोहित-ग्रीवः—-—अग्नि का विशेषण
- लोहितचन्दनम्—नपुं॰—लोहित-चन्दनम्—-—केसर, जाफरान
- लोहितपुष्पकः—पुं॰—लोहित-पुष्पकः—-—अनार का वृक्ष
- लोहितमृत्तिका—स्त्री॰—लोहित-मृत्तिका—-—लाल खड़िया, गेरु
- लोहितशतपत्रम्—नपुं॰—लोहित-शतपत्रम्—-—लाल कमल का फूल
- लोहितक—वि॰—-—लोहित+कन्—लाल
- लोहितकः—पुं॰—-—-—लालमणि
- लोहितकः—पुं॰—-—-—मंगल ग्रह
- लोहितकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का चावल
- लोहितकम्—नपुं॰—-—-—कांसा
- लोहितिमन्—पुं॰—-—लोहित+इमनिच्—लालिमा, लाली
- लोहिनी—स्त्री॰—-—लोहित+ङीष्, तकारस्य नकारः—वह स्त्री जिसकी चमड़ी लाल रंग की हो
- लौकायतिकः—पुं॰—-—लोकायतमधीते वेद वा-लोकायत+ठक्—चार्वाकमतानुयायी, नास्तिक, अनीश्वरवादी, भौतिकवादी
- लौकिक—वि॰—-—लोके विदितः प्रसिद्धो हितो वा ठण्—सांसार्क, दुनियावी, भौमिक, पार्थिव
- लौकिक—वि॰—-—लोके विदितः प्रसिद्धो हितो वा ठण्—साधारण, सामान्य, प्रचलित, मामूली, गंवारू
- लौकिक—वि॰—-—लोके विदितः प्रसिद्धो हितो वा ठण्—दैनिक जीवन संबंधी, सामान्यतः माना हुआ, सर्वप्रिय, प्रथागत
- लौकिक—वि॰—-—लोके विदितः प्रसिद्धो हितो वा ठण्—समसामयिक, धर्मनिरपेक्ष
- लौकिक—वि॰—-—लोके विदितः प्रसिद्धो हितो वा ठण्—जो वैदिक न हो, सांसारिक
- लौकिक—वि॰—-—लोके विदितः प्रसिद्धो हितो वा ठण्—संसार से संबंध रखने वाला
- लौकिकाः—पुं॰—-—-—सामान्य मनुष्य, संसार के लोग
- लौकिकम्—नपुं॰—-—-—कोई साधारण लोकाचार
- लौकिकज्ञ—वि॰—लौकिक-ज्ञ—-—लोकव्यवहार को जानने वाला, लोक प्रथाओं से परिचित
- लौक्य—वि॰—-—लोके भवः-लोक+ष्यञ्—सांसारिक, दुनियावी, ऐहिक, मानवी
- लौक्य—वि॰—-—लोके भवः-लोक+ष्यञ्—सामान्य, मामूली, रिवाजी
- लौड्—भ्वा॰ पर॰ <लौडति>—-—-—पागल या मूर्ख होना
- लौल्यम्—नपुं॰—-—लोलस्य भावः ष्यञ्—चंचलता, अस्थिरता, चाञ्चल्य
- लौल्यम्—नपुं॰—-—लोलस्य भावः ष्यञ्—उत्सुकता, उत्कण्ठा, लालच, लालसापूर्णता, अत्यन्त प्रणयोन्माद या अभिलाषा
- लौह—वि॰—-—लोह्+अण्—लोहे का बना हुआ, लोहा
- लौह—वि॰—-—लोह्+अण्—ताम्रमय
- लौह—वि॰—-—लोह्+अण्—धातु का बना
- लौह—वि॰—-—लोह्+अण्—तांबे के रंग का, लाल
- लौहम्—नपुं॰—-—-—लोहा
- लौहा—स्त्री॰—-—-—कड़ाही
- लौहात्मन्—पुं॰—लौह-आत्मन्—-—बायलर, कड़ाही, कड़ाह
- लौहभूः—स्त्री॰—लौह-भूः—-—बायलर, कड़ाही, कड़ाह
- लौहकारः—पुं॰—लौह-कारः—-—लुहार
- लौहकारजम्—नपुं॰—लौह-कारजम्—-—लोहे का जंग
- लौहबन्धः—पुं॰—लौह-बन्धः—-—लोहे की बेड़ी, जंजीर
- लौहबन्धम्—नपुं॰—लौह-बन्धम्—-—लोहे की बेड़ी, जंजीर
- लौहभाण्डम्—नपुं॰—लौह-भाण्डम्—-—लोहे का पात्र
- लौहमलम्—नपुं॰—लौह-मलम्—-—लोहे की जंग
- लौहशङ्कुः—पुं॰—लौह-शङ्कुः—-—लोहे की सलाख
- लौहितः—पुं॰—-—लोहित+अण्—शिव का त्रिशूल
- लौहित्यः—पुं॰—-—लोहितस्य भावः ष्यञ् स्वार्थे ष्यञ् वा—एक नदी का नाम, ब्रह्मपुत्र
- लौहित्यम्—नपुं॰—-—-—लाली
- ल्पी—क्र्या॰ पा॰ <ल्पिनाति>, —-—-—मिलना, सम्मिलित होना, मेलजोल करना
- ल्यी—क्र्या॰ पा॰ <ल्यिनाति>—-—-—मिलना, सम्मिलित होना, मेलजोल करना
- ल्वी—क्रया॰ पर॰ <ल्विनाति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना, पहुँचना
- वः—पुं॰—-—वा + ड—वायु, हवा
- वः—पुं॰—-—-—भुजा
- वः—पुं॰—-—-—वरुण
- वः—पुं॰—-—-—समाधान
- वः—पुं॰—-—-—संबोधित करना
- वः—पुं॰—-—-—मांगलिकता
- वः—पुं॰—-—-—निवास, आवास
- वः—पुं॰—-—-—समुद्र
- वः—पुं॰—-—-—व्याघ्र
- वः—पुं॰—-—-—कपड़ा
- वः—पुं॰—-—-—राहु
- वम्—नपुं॰—-—-—वरुण
- वम्—अव्य॰—-—-—की भांति, के समान ‘जैसा कि’
- वंशः—पुं॰—-—वमति उद्गिरति वम् + श तस्य नेत्वम्—बाँस
- वंशः—पुं॰—-—-—जाति, परिवार, कुटुम्ब, परंपरा
- वंशः—पुं॰—-—-—लाठी
- वंशः—पुं॰—-—-—बांसुरी, मुरली, अलगोझा या विपंचीनाड
- वंशः—पुं॰—-—-—संग्रह, संघात, समुच्चय
- वंशः—पुं॰—-—-—आर-पार, शहतीर
- वंशः—पुं॰—-—-—(बांस में) जोड़
- वंशः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का ईख
- वंशः—पुं॰—-—-—रीढ़ की हड्डी
- वंशः—पुं॰—-—-—साल का वृक्ष
- वंशः—पुं॰—-—-—लम्बाई नापने का एक विशेष माप
- वंशाङ्कम्—नपुं॰—वंशः-अङ्कम्—-—बांस का किनारा
- वंशाङ्कम्—नपुं॰—वंशः-अङ्कम्—-—बांस का अंखुआ
- वंशाङ्कुरः—पुं॰—वंशः-अङ्कुरः—-—बांस का किनारा
- वंशाङ्कुरः—पुं॰—वंशः-अङ्कुरः—-—बांस का अंखुआ
- वंशानुकीर्तनम्—नपुं॰—वंशः-अनुकीर्तनम्—-—वंशावली
- वंशानुक्रमः—पुं॰—वंशः-अनुक्रमः—-—वंशावली
- वंशानुचरितम्—नपुं॰—वंशः-अनुचरितम्—-—एक परिवार या कुल का परिचय
- वंशावली—स्त्री॰—वंशः-आवली—-—वंशतालिका, वंशविवरण
- वंशाह्वः—पुं॰—वंशः-आह्वः—-—बंशलोचन
- वंशकठिनः—पुं॰—वंशः-कठिनः—-—बांसों का झुरमुट
- वंशकर—वि॰—वंशः-कर—-—कुलप्रवर्तक
- वंशकर—वि॰—वंशः-कर—-—वंशस्थापक
- वंशकरः—पुं॰—वंशः-करः—-—मूलपुरुष
- वंशकर्पूररोचना—स्त्री॰—वंशः-कर्पूररोचना—-—बंशलोचन, तवाशीर
- वंशरोचना—स्त्री॰—वंशः-रोचना—-—बंशलोचन, तवाशीर
- वंशलोचना—स्त्री॰—वंशः-लोचना—-—बंशलोचन, तवाशीर
- वंशकृत्—पुं॰—वंशः-कृत्—-—कुल संस्थापक, या वंशप्रवर्तक
- वंशक्रमः—पुं॰—वंशः-क्रमः—-—वंशपरंपरा
- वंशक्षीरी—स्त्री॰—वंशः-क्षीरी—-—बंसलोचन
- वंशचरितम्—नपुं॰—वंशः-चरितम्—-—कुलपरिचय
- वंशचिन्तकः—पुं॰—वंशः-चिन्तकः—-—वंशावली जानने वाला
- वंशछेत्तृ—वि॰—वंशः-छेत्तृ—-—किसी कुल का अंतिम पुरुष
- वंशज—वि॰—वंशः-ज—-—कुल में उत्पन्न
- वंशज—वि॰—वंशः-ज—-—सत्कुलोद्भव
- वंशजः—पुं॰—वंशः-जः—-—प्रजा, संतान, औलाद
- वंशजः—पुं॰—वंशः-जः—-—बांस का बीज
- वंशजम्—नपुं॰—वंशः-जम्—-—बंसलोचन
- वंशनर्तिन्—पुं॰—वंशः-नर्तिन्—-—नट, मसखरा
- वंशनाडिका—स्त्री॰—वंशः-नाडिका—-—बांस की बनाई बांसुरी
- वंशनालीका—स्त्री॰—वंशः-नालीका—-—बांस की बनाई बांसुरी
- वंशनाथः—पुं॰—वंशः-नाथः—-—किसी वंश का प्रधान पुरुष
- वंशनेत्रम्—नपुं॰—वंशः-नेत्रम्—-—ईख की जड़
- वंशपत्रम्—नपुं॰—वंशः-पत्रम्—-—बांस का पत्ता
- वंशपत्रः—पुं॰—वंशः-पत्रः—-—नरकुल
- वंशपत्रकः—पुं॰—वंशः-पत्रकः—-—नरकुल
- वंशपत्रकः—पुं॰—वंशः-पत्रकः—-—पौंडा, गन्ने का श्वेत प्रकार
- वंशपत्रकम्—नपुं॰—वंशः-पत्रकम्—-—हरताल
- वंशपरम्परा—स्त्री॰—वंशः-परम्परा—-—वंशानुक्रम, कुलपरंपरा
- वंशपूरकम्—नपुं॰—वंशः-पूरकम्—-—गन्ने की जड़
- वंशभोज्य—वि॰—वंशः-भोज्य—-—आनुवंशिक
- वंशभोज्यम्—नपुं॰—वंशः-भोज्यम्—-—आनुवंशिक भूसंपत्ति
- वंशलक्ष्मीः—स्त्री॰—वंशः-लक्ष्मीः—-—कुल का सौभाग्य
- वंशविततिः—स्त्री॰—वंशः-विततिः—-—परिवार, सन्तान
- वंशविततिः—पुं॰—वंशः-विततिः—-—बांसों का झुरमुट
- वंशशर्करा—स्त्री॰—वंशः-शर्करा—-—बंसलोचन
- वंशशलाका—स्त्री॰—वंशः-शलाका—-—वीणा में लगी बाँस की खूँटी
- वंशस्थितिः—स्त्री॰—वंशः-स्थितिः—-—कुल की अविच्छिन्नता
- वंशकः—पुं॰—-—वंश + कन्—एक प्रकार का गन्ना
- वंशकः—पुं॰—-—-—बांस का जोड़
- वंशकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का मछली
- वंशकम्—नपुं॰—-—-—अगर की लकड़ी
- वंशिका—स्त्री॰—-—वंश + ठन् + टाप्—एक प्रकार की बांसुरी, अगर का लकड़ी
- वंशी—स्त्री॰—-—वंश + अच् + ङीष्—बांसुरी, मुरली
- वंशी—स्त्री॰—-—-—शिरा या धमनी
- वंशी—स्त्री॰—-—-—बंसलोचन
- वंशी—स्त्री॰—-—-—एक विशेष तोल
- वंशीधरः—पुं॰—वंशी-धरः—-—कृष्ण का विशेषण
- वंशीधरः—पुं॰—वंशी-धरः—-—बंशी बजाने वाला
- वंशीधारिन्—पुं॰—वंशी-धारिन्—-—कृष्ण का विशेषण
- वंशीधारिन्—पुं॰—वंशी-धारिन्—-—बंशी बजाने वाला
- वंश्य—वि॰—-—वंशे भवः यत्—मुख्य शहतीर से संबंध रखने वाला
- वंश्य—वि॰—-—-—मेरुदण्ड से संबंध रखने वाला
- वंश्य—वि॰—-—-—परिवार से संबंध रखने वाला
- वंश्य—वि॰—-—-—अच्छे कुल में उत्पन्न, उत्तम कुल का
- वंश्य—वि॰—-—-—वंशधर, वंशप्रवर्तक
- वंश्यः—पुं॰—-—-—सन्तान परवर्ती
- वंश्यः—पुं॰—-—-—पूर्वज, पूर्वपुरुष
- वंश्यः—पुं॰—-—-—परिवार का कोई सदस्य
- वंश्यः—पुं॰—-—-—आरपार, शहतीर
- वंश्यः—पुं॰—-—-—भुजा या टांग की हड्डी
- वंश्यः—पुं॰—-—-—शिष्य
- वंह्—भ्वा॰ आ॰ <वंहते>, <वंहित>—-—-—बढ़ना, उगना
- वक—पुं॰—-—वङ्क् + अच्, पृषो॰ साधुः—बगुला
- वक—पुं॰—-—वङ्क् + अच्, पृषो॰ साधुः—ठग, धूर्त, पाखंडी
- वक—पुं॰—-—वङ्क् + अच्, पृषो॰ साधुः—एक रक्षस का नाम जिसे भीम ने मारा था
- वक—पुं॰—-—वङ्क् + अच्, पृषो॰ साधुः—एक रक्षस का नाम जिसे कृष्ण ने मारा था
- वक—पुं॰—-—वङ्क् + अच्, पृषो॰ साधुः—कुबेर का नामान्तर्
- वकुल—पुं॰—-—वङ्क् + उरच्, रेफस्य लत्वम्, नलोपः—मौलसिरी वृक्ष
- वक्क्—भ्वा॰ आ॰ <वक्कते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- वक्तव्य—सं॰ कृ॰—-—वच् + तव्यत्—कहे जाने या बोले जाने के योग्य, बात किये जाने या प्रकथन के योग्य
- वक्तव्य—सं॰ कृ॰—-—-—किसी विषय में कहे जाने के योग्य
- वक्तव्य—सं॰ कृ॰—-—-—गर्हणीय, दूषणीय, निन्दनीय
- वक्तव्य—सं॰ कृ॰—-—-—नीच, दुष्ट, कमीना
- वक्तव्य—सं॰ कृ॰—-—-—स्पष्टव्य, उत्तरदायी
- वक्तव्य—सं॰ कृ॰—-—-—आश्रित
- वक्तव्यम्—नपुं॰—-—-—बोलना, भाषण
- वक्तव्यम्—नपुं॰—-—-—विधि, नियम, सिद्धान्त वाक्य
- वक्तव्यम्—नपुं॰—-—-—कलंक, निन्दा, भर्त्सना
- वक्तृ—वि॰—-—वच् + तृच्—वक्ता
- वक्तृ—वि॰—-—-—वाक्पटु, प्रवक्ता
- वक्तृ—वि॰—-—-—अध्यापक, व्याख्याता
- वक्तृ—वि॰—-—-—विद्वान पुरुष, बुद्धिमान व्यक्ति
- वक्तृ—पुं॰—-—वच् + तृच्—वक्ता
- वक्तृ—पुं॰—-—-—वाक्पटु, प्रवक्ता
- वक्तृ—पुं॰—-—-—अध्यापक, व्याख्याता
- वक्तृ—पुं॰—-—-—विद्वान पुरुष, बुद्धिमान व्यक्ति
- वक्त्रम्—नपुं॰—-—वक्ति अनेन वच्- करणे ष्ट्रन्—मुख
- वक्त्रम्—नपुं॰—-—-—चेहरा
- वक्त्रम्—नपुं॰—-—-—थूथन, प्रोथ, चोंच
- वक्त्रम्—नपुं॰—-—-—आरम्भ
- वक्त्रम्—नपुं॰—-—-—(बाण की) नोक, किसी पात्र की टोंटी
- वक्त्रम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का वस्त्र
- वक्त्रम्—नपुं॰—-—-—अनुष्टुप् से मिलता-जुलता एक छन्द
- वक्त्रासवः—पुं॰—वक्त्रम्-आसवः—-—लार
- वक्त्रखुरः—पुं॰—वक्त्रम्-खुरः—-—दांत
- वक्त्रजः—पुं॰—वक्त्रम्-जः—-—ब्राह्मण
- वक्त्रतालम्—नपुं॰—वक्त्रम्-तालम्—-—मुँह से बजाया जाने वाला वाद्ययन्त्र
- वक्त्रदलम्—नपुं॰—वक्त्रम्-दलम्—-—तालु
- वक्त्रपटः—पुं॰—वक्त्रम्-पटः—-—परदा
- वक्त्ररन्ध्रम्—नपुं॰—वक्त्रम्-रन्ध्रम्—-—मुखविवर
- वक्त्रपरिस्पन्दः—पुं॰—वक्त्रम्-परिस्पन्दः—-—भाषण
- वक्त्रभेदिन्—वि॰—वक्त्रम्-भेदिन्—-—चरपरा, तीक्ष्ण
- वक्त्रवासः—पुं॰—वक्त्रम्-वासः—-—सन्तरा
- वक्त्रशोधनम्—नपुं॰—वक्त्रम्-शोधनम्—-—मुँह साफ करना
- वक्त्रशोधनम्—नपुं॰—वक्त्रम्-शोधनम्—-—नींबू, चकोतरा
- वक्त्रशोधिन्—नपुं॰—वक्त्रम्-शोधिन्—-—चकोतरा
- वक्त्रशोधिन्—पुं॰—वक्त्रम्-शोधिन्—-—चकोतरे का वृक्ष
- वक्र—वि॰—-—वङ्क् + रन्, पृषो॰ नलोपः—कुटिल
- वक्र—वि॰—-—-—गोलमोल, परोक्ष, टालमटूल, मण्डलाकार, घुमा फिरा कर बात कहना, द्वयर्थक या सन्दिग्घ (भाषण)
- वक्र—वि॰—-—-—छलेदार, लहरियेदार, घुंघराले (बाल)
- वक्र—वि॰—-—-—प्रतिगामी (गति आदि)
- वक्र—वि॰—-—-—बेईमान, जालसाज़, कुटिल स्वभाव का
- वक्र—वि॰—-—-—क्रुर
- वक्र—वि॰—-—-—छन्दः शास्त्र की दृष्टि से गुरु (दीर्घ)
- वक्रः—पुं॰—-—-—मंगलग्रह
- वक्रः—पुं॰—-—-—शनिग्रह
- वक्रः—पुं॰—-—-—शिव
- वक्रः—पुं॰—-—-—त्रिपुर राक्षस
- वक्रम्—नपुं॰—-—-—नदी का मोड़
- वक्रम्—नपुं॰—-—-—(ग्रह का) प्रतिगमन
- वक्राङ्गम्—नपुं॰—वक्र-अङ्गम्—-—टेढ़ा, अवयव
- वक्राङ्गः—पुं॰—वक्र-अङ्गः—-—हंस
- वक्राङ्गः—पुं॰—वक्र-अङ्गः—-—चकवा
- वक्राङ्गः—पुं॰—वक्र-अङ्गः—-—साँप
- वक्रोक्तिः—स्त्री॰—वक्र-उक्तिः—-—एक अलंकार का नाम
- वक्रोक्तिः—स्त्री॰—वक्र-उक्तिः—-—वाक्छल, कटाक्ष, व्यंग्य
- वक्रोक्तिः—स्त्री॰—वक्र-उक्तिः—-—कटूक्ति, ताना
- वक्रकण्टः—पुं॰—वक्र-कण्टः—-—बेर का पेड़
- वक्रकण्टकः—पुं॰—वक्र-कण्टकः—-—खैर का वृक्ष
- वक्रखङ्गः—पुं॰—वक्र-खङ्गः—-—कटार, टेढ़ी तलवार
- वक्रखङ्गकः—पुं॰—वक्र-खङ्गकः—-—कटार, टेढ़ी तलवार
- वक्रगति—वि॰—वक्र-गति—-—टेढ़ी चाल वाला, चक्कदार
- वक्रगति—वि॰—वक्र-गति—-—जालसाज, बेईमान
- वक्रगामिन्—वि॰—वक्र-गामिन्—-—टेढ़ी चाल वाला, चक्कदार
- वक्रगामिन्—वि॰—वक्र-गामिन्—-—जालसाज, बेईमान
- वक्रग्रीवः—पुं॰—वक्र-ग्रीवः—-—ऊँट
- वक्रचञ्चुः—पुं॰—वक्र-चञ्चुः—-—तोता
- वक्रतुण्डः—पुं॰—वक्र-तुण्डः—-—गणेश का विशेषण
- वक्रतुण्डः—पुं॰—वक्र-तुण्डः—-—तोता
- वक्रदंष्ट्रः—पुं॰—वक्र-दंष्ट्रः—-—सूअर
- वक्रदृष्टि—वि॰—वक्र-दृष्टि—-—भैंगी आँख वाला, ऐंचाताना
- वक्रदृष्टि—वि॰—वक्र-दृष्टि—-—विद्वषपूर्ण दृष्टि रखने वाला
- वक्रदृष्टि—वि॰—वक्र-दृष्टि—-—डाह करने वाला
- वक्रदृष्टि—स्त्री॰—वक्र-दृष्टि—-—तिरछी निगाह, तिर्यग्दृष्टि
- वक्रनक्रः—पुं॰—वक्र-नक्रः—-—तोता
- वक्रनक्रः—पुं॰—वक्र-नक्रः—-—नीच पुरुष
- वक्रनासिकः—पुं॰—वक्र-नासिकः—-—उल्लू
- वक्रपुच्छः—पुं॰—वक्र-पुच्छः—-—कुत्ता
- वक्रपुच्छिकः—पुं॰—वक्र-पुच्छिकः—-—कुत्ता
- वक्रपुष्पः—पुं॰—वक्र-पुष्पः—-—ढाक वृक्ष
- वक्रबालधिः—पुं॰—वक्र-बालधिः—-—कुत्ता
- वक्रलाङ्गूलः—पुं॰—वक्र-लाङ्गूलः—-—कुत्ता
- वक्रभावः—पुं॰—वक्र-भावः—-—टेढ़ापन
- वक्रभावः—पुं॰—वक्र-भावः—-—धोखा
- वक्रवक्त्रः—पुं॰—वक्र-वक्त्रः—-—शूकर
- वक्रयः—पुं॰—-—-—मूल्य, क़ीमत
- वक्रिन्—वि॰—-—वक्र + इनि—कुटिल
- वक्रिन्—वि॰—-—-—प्रतिगामी
- वक्रिन्—पुं॰—-—-—जैन या बुद्ध
- वक्रिमन्—पुं॰—-—वक्र + इमनिच्—कुटिलता, वक्रता
- वक्रिमन्—पुं॰—-—-—वाक्छल, टालमटोल, संदिग्धता, चक्कर, घुमाव, (वाणी की) परोक्षता
- वक्रिमन्—पुं॰—-—-—धुर्तता, चालाकी, मक्कारी
- वक्रोष्टिः—स्त्री॰—-—वक्रः ओष्ठो यस्यां ब॰ स॰—मृदु मुस्कान
- वक्रोष्टिका—स्त्री॰—-—वक्रः ओष्ठो यस्यां ब॰ स॰, कप् + टाप्—मृदु मुस्कान
- वक्ष्—भ्वा॰ पर॰ वक्षति—-—-—वृद्धि को प्राप्त होना, बढ़ना
- वक्ष्—भ्वा॰ पर॰ वक्षति—-—-—शक्तिशाली होना
- वक्ष्—भ्वा॰ पर॰ वक्षति—-—-—क्रुद्ध होना
- वक्ष्—भ्वा॰ पर॰ वक्षति—-—-—संचित होना
- वक्षस्—नपुं॰—-—वह् + असुन्, सुट् च—छाती, हृदय, सीना
- वक्षोजः—पुं॰—वक्षस्-जः—-—स्त्री की छाती
- वक्षोरुह्—पुं॰—वक्षस्-रुह्—-—स्त्री की छाती
- वक्षोरुहः—पुं॰—वक्षस्-रुहः—-—स्त्री की छाती
- वक्षःस्थलम्—पुं॰—वक्षस्-स्थलम्—-—छाती या हृदय
- वख्—<वखति>—-—-—जाना, हिलन-जुलना
- वङ्ख—<वङ्खति>—-—-—जाना, हिलन-जुलना
- वगाहः—पुं॰—-—-—स्नान
- वगाहः—पुं॰—-—-—डुबकी लगाना, डुबाना, घुसना
- वगाहः—पुं॰—-—-—निष्णात होना, सीख लेना
- वगाहः—पुं॰—-—-—स्नानागार
- वङ्कः—पुं॰—-—वङ्क् + अच्—नदी का मोड़
- वङ्का—पुं॰—-—वङ्क + टाप्—घोड़े की जीन की अगली मेंडी
- वङ्किलः—पुं॰—-—वङ्क + इलच्—काँटा
- वङ्क्रि—वि॰—-—वकि + क्रिन्, इदित्वात् धातोर्नुम्—किसी जानवर या भवन का पसली
- वङ्क्रि—वि॰—-—-—छत का शहतीर
- वङ्क्रि—वि॰—-—-—एक प्रकार का वाद्य यन्त्र
- वङ्क्षुः—पुं॰—-—वह् + कुन्, नुम्—गंगा नदी की एक शाखा
- वङ्ग्—भ्वा॰ पर॰ <वङ्गति>—-—-—जाना
- वङ्ग्—भ्वा॰ पर॰ <वङ्गति>—-—-—लंगड़ाना, लंगड़ा कर चलना
- वङ्गाः—पुं॰—-—वङ्ग् + अच्—बंगाल प्रदेश तथा अधिवासियों का नाम
- वङ्गः—पुं॰—-—-—कपास
- वङ्गः—पुं॰—-—-—बैंगन का पौधा
- वङ्गम्—नपुं॰—-—-—सीसा
- वङ्गम्—नपुं॰—-—-—रांगा
- वङ्गारिः—पुं॰—वङ्ग-अरिः—-—हरताल
- वङ्गजः—पुं॰—वङ्ग-जः—-—पीतल
- वङ्गजः—पुं॰—वङ्ग-जः—-—सिंदूर
- वङ्गजीवनम्—नपुं॰—वङ्ग-जीवनम्—-—चाँदी
- वङ्गशुल्यजम्—नपुं॰—वङ्ग-शुल्यजम्—-—कांसा
- वन्ध्—भ्वा॰ आ॰ <वन्धते>—-—-—जाना
- वन्ध्—भ्वा॰ आ॰ <वन्धते>—-—-—तेजी से चलना
- वन्ध्—भ्वा॰ आ॰ <वन्धते>—-—-—आरम्भ करना
- वन्ध्—भ्वा॰ आ॰ <वन्धते>—-—-—निन्दा करना, दूषित करना
- वच्—अदा॰ पर॰—-—-—कहना, बोलना
- वच्—अदा॰ पर॰—-—-—वर्णन करना, बयान करना
- वच्—अदा॰ पर॰—-—-—कहना, समाचार देना, घोषणा करना, प्रकथन करना
- वच्—अदा॰ पर॰—-—-—नाम लेना, पुकारना
- वच्—अदा॰ उभ॰, प्रेर॰ <वाचयति>,<वाचयते>—-—-—बुलवाना
- वच्—अदा॰ उभ॰, प्रेर॰ <वाचयति>,<वाचयते>—-—-—निगाह डालना, पढ़ना, अवलोकन करना
- वच्—अदा॰ उभ॰, प्रेर॰ <वाचयति>,<वाचयते>—-—-—कहना, बोलना, प्रकथन करना
- वच्—अदा॰ उभ॰, प्रेर॰ <वाचयति>,<वाचयते>—-—-—प्रतिज्ञा करना
- वच्—अदा॰ पर॰, इच्छा॰ <ववक्षति>—-—-—बोलने की इच्छा करना, (कुछ) कहने का इरादा करना
- अनुवच्—अदा॰ पर॰—अनु-वच्—-—बाद में कहना, आवृत्ति करना, पाठ करना
- अनुवच्—अदा॰ पर॰, प्रेर॰—अनु-वच्—-—मन में पढ़ना
- निर्वच्—अदा॰ पर॰—निस्-वच्—-—अर्थ करना, व्याख्या करना
- निर्वच्—अदा॰ पर॰—निस्-वच्—-—वर्णन करना, बोलना, प्रकथन करना, घोषणा करना
- निर्वच्—अदा॰ पर॰—निस्-वच्—-—नाम लेना, पुकारना
- प्रतिवच्—अदा॰ पर॰—प्रति-वच्—-—उत्तर में बोलना, जबाब देना, प्रतिवाद करना
- विवच्—अदा॰ पर॰—वि-वच्—-—व्याख्या करना
- संवच्—अदा॰ पर॰—सम्-वच्—-—कहना, बोलना
- वचः—पुं॰—-—वच् + अच्—तोता
- वचः—पुं॰—-—-—सूर्य
- वचा—स्त्री॰—-—-—मैना पक्षी
- वचा—स्त्री॰—-—-—एक सुगन्धित जड़
- वचम्—नपुं॰—-—-—बोलना, बातें करना
- वचनम्—नपुं॰—-—वच् + ल्युट्—बोलने, उच्चारण करने या कहने की क्रिमा
- वचनम्—नपुं॰—-—-—भाषण, उद्दागार, उक्ति, वाक्य
- वचनम्—नपुं॰—-—-—दोहराना, पाठ करना
- वचनम्—नपुं॰—-—-—मूल, वाक्य विन्यास, नियम, विधि, धार्मिक ग्रन्थ का सन्दर्भ
- वचनम्—नपुं॰—-—-—आदेश, हुक्म, निदेश, ‘मद्वचनात्’ मेरे नाम से अर्थात् मेरे आदेश
- वचनम्—नपुं॰—-—-—उपदेश, परामर्श, अनुदेश
- वचनम्—नपुं॰—-—-—घोषणा, प्रकथन
- वचनम्—नपुं॰—-—-—(वर्ण का) उच्चारण
- वचनम्—नपुं॰—-—-—शब्द की यथार्थता
- वचनम्—नपुं॰—-—-—(व्या॰ में) वचन
- वचनम्—नपुं॰—-—-—सूखा अदरक
- वचनोपक्रमः—पुं॰—वचनम्-उपक्रमः—-—प्रस्तावना, आमुख्
- वचनकर—वि॰—वचनम्-कर—-—आज्ञाकारी, आदेश पालन करने वाला
- वचनकारिन्—वि॰—वचनम्-कारिन्—-—आज्ञा पालन करने वाला, आज्ञाकारी
- वचनक्रमः—पुं॰—वचनम्-क्रमः—-—प्रवचन
- वचनग्राहिन्—वि॰—वचनम्-ग्राहिन्—-—आज्ञाकारी, अनुवर्ती, विनीत
- वचनपटु—वि॰—वचनम्-पटु—-—बोलने में चतुर
- वचनविरोधः—पुं॰—वचनम्-विरोधः—-—विधियों की असङ्गति, विरोध, पाठ की अननुरूपता
- वचनशतम्—नपुं॰—वचनम्-शतम्—-—सौ भाषण, अर्थात् बार बार घोषणा, पुनरुक्त उक्ति
- वचनस्थित—वि॰—वचनम्-स्थित—-—आज्ञाकारी, अनुवर्ती
- वचनीय—वि॰—-—वच् + अनीयर्—कहे जाने, बोले जाने या वर्णन किये जाने योग्य
- वचनीय—वि॰—-—-—निन्दनीय, दूषणीय
- वचनीयम्—नपुं॰—-—-—कलंक, निन्दा, निर्भर्त्सना
- वचरः—पुं॰—-—-—मुर्ग़ा
- वचरः—पुं॰—-—-—बदमाश, नीच, शठ, दुष्ट
- वचस्—नपुं॰—-—वच् + असुन्—भाषण, वचन, वाक्य
- वचस्—नपुं॰—-—-—हुक्म, आदेश, विधि, निषेधाज्ञा
- वचस्—नपुं॰—-—-—उपदेश, परामर्श
- वचस्—नपुं॰—-—-—(व्या॰ में) वचन
- वचस्कर—वि॰—वचस्-कर—-—आज्ञाकारी, अनुवर्ती
- वचस्कर—वि॰—वचस्-कर—-—दूसरों की आज्ञा पालन करने वाला
- वचस्क्रमः—पुं॰—वचस्-क्रमः—-—प्रवचन
- वचोग्रहः—पुं॰—वचस्-ग्रहः—-—कान
- वचःप्रवृत्तिः—स्त्री॰—वचस्-प्रवृत्तिः—-—भाषण करने का प्रयत्न
- वचसाम्पतिः—पुं॰—-—वचसां वाचां पतिः षष्ठ्या अलुक्—बृहस्पति का विशेषण, गुरु ग्रह
- वज्—भ्वा॰ पर॰ <वजति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना, इधर-उधर घूमना
- वज्—चुरा॰ उभ॰<वाजयति>,<वाजयते>—-—-—काटछांटकर ठीक करना, तैयार करना
- वज्—चुरा॰ उभ॰<वाजयति>,<वाजयते>—-—-—बाण की नोक में पर लगाना
- वज्—चुरा॰ उभ॰<वाजयति>,<वाजयते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- वज्रः—पुं॰—-—वज् + रन्—वज्र, बिजली, इन्द्र का शस्त्र
- वज्रम्—नपुं॰—-—वज् + रन्—वज्र, बिजली, इन्द्र का शस्त्र
- वज्रः—पुं॰—-—वज् + रन्—इन्द्र के वज्र जैसा कोई भी घातक या विनाशकारी हथियार
- वज्रम्—नपुं॰—-—वज् + रन्—इन्द्र के वज्र जैसा कोई भी घातक या विनाशकारी हथियार
- वज्रः—पुं॰—-—वज् + रन्—हीरे की अणि, मणि माणिक्यों को बींधने का उपकरण
- वज्रम्—नपुं॰—-—वज् + रन्—हीरे की अणि, मणि माणिक्यों को बींधने का उपकरण
- वज्रः—पुं॰—-—वज् + रन्—हीरा, वज्र
- वज्रम्—नपुं॰—-—वज् + रन्—हीरा, वज्र
- वज्रः—पुं॰—-—वज् + रन्—काँजी
- वज्रम्—नपुं॰—-—वज् + रन्—काँजी
- वज्रः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का सैनिकव्यूह
- वज्रः—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का कुश नामक घास
- वज्रः—पुं॰—-—-—अनेक पौंधा के नाम
- वज्रम्—नपुं॰—-—-—इस्पात
- वज्रम्—नपुं॰—-—-—अभ्रक
- वज्रम्—नपुं॰—-—-—वज्र जैसी या कठोर भाषा
- वज्रम्—नपुं॰—-—-—बालक, बच्चा
- वज्रम्—नपुं॰—-—-—आंवला
- वज्राङ्गः—पुं॰—वज्रः-अङ्गः—-—साँप
- वज्राभ्यासः—पुं॰—वज्रः-अभ्यासः—-—अनुप्रस्थगुणन
- वज्राशनिः—पुं॰—वज्रः-अशनिः—-—इन्द्र का वज्र
- वज्राकरः—पुं॰—वज्रः-आकरः—-—हीरों की खान
- वज्राख्यः—पुं॰—वज्रः-आख्यः—-—एक बहुमूल्य पत्थर, मणि
- वज्राघातः—पुं॰—वज्रः-आघातः—-—बिजली का प्रहार
- वज्राघातः—पुं॰—वज्रः-आघातः—-—(अतः आलं॰ से) आकस्मिक धक्का या संकट
- वज्रायुधः—पुं॰—वज्रः-आयुधः—-—इन्द्र का हथियार
- वज्रकङ्कटः—पुं॰—वज्रः-कङ्कटः—-—हनुमान् का विशेषण
- वज्रकीलः—पुं॰—वज्रः-कीलः—-—वज्र, बिजली, वज्र की कील
- वज्रक्षारम्—नपुं॰—वज्रः-क्षारम्—-—रिहलि मिट्टी
- वज्रगोपः—पुं॰—वज्रः-गोपः—-—वीरवहूटी
- वज्रेन्द्रगोपः—पुं॰—वज्रः-इन्द्रगोपः—-—वीरवहूटी
- वज्रचञ्चुः—पुं॰—वज्रः-चञ्चुः—-—गिद्ध
- वज्रचर्मन्—पुं॰—वज्रः-चर्मन्—-—गैंडा
- वज्रजित्—पुं॰—वज्रः-जित्—-—गरुड
- वज्रज्वलनम्—नपुं॰—वज्रः-ज्वलनम्—-—बिजली
- वज्रज्वाला—स्त्री॰—वज्रः-ज्वाला—-—बिजली
- वज्रतुण्डः—पुं॰—वज्रः-तुण्डः—-—गिद्ध
- वज्रतुण्डः—पुं॰—वज्रः-तुण्डः—-—मच्छर, डाँस
- वज्रतुण्डः—पुं॰—वज्रः-तुण्डः—-—गरुड
- वज्रतुण्डः—पुं॰—वज्रः-तुण्डः—-—गणेश
- वज्रतुल्यः—पुं॰—वज्रः-तुल्यः—-—नीलम
- वज्रदंष्ट्रः—पुं॰—वज्रः-दंष्ट्रः—-—एक प्रकार का कीडा
- वज्रदन्तः—पुं॰—वज्रः-दन्तः—-—सूअर
- वज्रदन्तः—पुं॰—वज्रः-दन्तः—-—चूहा
- वज्रदशनः—पुं॰—वज्रः-दशनः—-—एक चूहा
- वज्रदेह—वि॰—वज्रः-देह—-—दृढ शरीर वाला
- वज्रदेहिन्—वि॰—वज्रः-देहिन्—-—दृढ शरीर वाला
- वज्रधरः—पुं॰—वज्रः-धरः—-—इन्द्र का विशेषण
- वज्रनाभः—पुं॰—वज्रः-नाभः—-—कृष्ण का (सुदर्शन) चक्र
- वज्रनिर्घोषः—पुं॰—वज्रः-निर्घोषः—-—बिजली की कड़क
- वज्रनिष्पेषः—पुं॰—वज्रः-निष्पेषः—-—बिजली की कड़क
- वज्रपाणिः—पुं॰—वज्र-पाणिः—-—इन्द्र का विशेषण
- वज्रपातः—पुं॰—वज्र-पातः—-—बिजली का गिरना, बिजली का आघात
- वज्रपुष्पम्—नपुं॰—वज्र-पुष्पम्—-—तिल का फूल
- वज्रभृत्—पुं॰—वज्र-भृत्—-—इन्द्र का विशेषण
- वज्रमणिः—पुं॰—वज्र-मणिः—-—हीरा, कड़ा पत्थर
- वज्रमुष्टिः—पुं॰—वज्र-मुष्टिः—-—इन्द्र का विशेषण
- वज्ररदः—पुं॰—वज्र-रदः—-—सूअर
- वज्रलेपः—पुं॰—वज्र-लेपः—-—एक प्रकार बड़ा कड़ा सीमेंट
- वज्रलोहकः—पुं॰—वज्र-लोहकः—-—चुम्बक
- वज्रव्यूहः—पुं॰—वज्र-व्यूहः—-—एक प्रकार का सैनिक व्यूह
- वज्रशल्यः—पुं॰—वज्र-शल्यः—-—साही नामक जानवर
- वज्रसार—वि॰—वज्र-सार—-—पत्थर की भांति कठोर, बिजली की शक्तिवाला, अत्यन्त कड़ा
- वज्रसूचिः—स्त्री॰—वज्र-सूचिः—-—हीरे की सुई
- वज्रची—स्त्री॰—वज्र-ची—-—हीरे की सुई
- वज्रहृदयम्—नपुं॰—वज्र-हृदयम्—-—पत्थर जैसा कड़ा दिल
- वज्रिन्—पुं॰—-—वज्र + इनि—इन्द्र
- वज्रिन्—पुं॰—-—-—उल्लू
- वञ्च्—भ्वा॰ पर॰ <वञ्चति>—-—-—जाना, पहुँचना
- वञ्च्—भ्वा॰ पर॰ <वञ्चति>—-—-—घूमना
- वञ्च्—भ्वा॰ पर॰ <वञ्चति>—-—-—चुपचाप चले जाना, खिसक जाना
- वञ्च्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰ <वंचयति>,<वंचयते>—-—-—टालना, बचना, खिसकना, बिदकना
- वञ्च्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰ <वंचयति>,<वंचयते>—-—-—ठगना, धोखा देना, जालसाजी करना
- वञ्च्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰ <वंचयति>,<वंचयते>—-—-—वंचित करना, दरिद्र करना
- वञ्चक—वि॰—-—वञ्च् + णिच् + ण्वुल्—जालसाज, धोखेबाज, मक्कार
- वञ्चक—वि॰—-—-—ठगने वाला, धोखा देने वाला,
- वञ्चकः—पुं॰—-—-—बदमाश, ठग, उचक्का
- वञ्चकः—पुं॰—-—-—गीदड़
- वञ्चकः—पुं॰—-—-—छछूँदर
- वञ्चकः—पुं॰—-—-—पालतू नेवला
- वञ्चतिः—पुं॰—-—-—अग्नि, आग
- वञ्चथः—पुं॰—-—वञ्च् + अथः—ठगना, बदमाशी, धोखा, चालाकी
- वञ्चथः—पुं॰—-—-—ठग, बदमाश, उचक्का
- वञ्चथः—पुं॰—-—-—कोयल
- वञ्चनम्—नपुं॰—-—वञ्च् + ल्युट्—ठगना
- वञ्चनम्—नपुं॰—-—वञ्च् + ल्युट्—दावपेंच, धोखा, जालसाज़ी, धोखादेही, चालाकी
- वञ्चनम्—नपुं॰—-—वञ्च् + ल्युट्—माया, भ्रम
- वञ्चनम्—नपुं॰—-—वञ्च् + ल्युट्—हानि, क्षति, अड़चन
- वञ्चना—स्त्री॰—-—वञ्च् + ल्युट्+टाप्—ठगना
- वञ्चना—स्त्री॰—-—वञ्च् + ल्युट्+टाप्—दावपेंच, धोखा, जालसाज़ी, धोखादेही, चालाकी
- वञ्चना—स्त्री॰—-—वञ्च् + ल्युट्+टाप्—माया, भ्रम
- वञ्चना—स्त्री॰—-—वञ्च् + ल्युट्+टाप्—हानि, क्षति, अड़चन
- वञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—वञ्च् + क्त—प्रतारित, ठगा गया
- वञ्चित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विरहित
- वञ्चिता—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—एक प्रकार की पहेली या बुझौवल
- वञ्चुक—वि॰—-—वञ्च् + उकन्—धोखे से पूर्ण, जालसाज़, मक्कार, बेईमान
- वञ्चुकः—पुं॰—-—-—गीदड़
- वञ्जुलः—पुं॰—-—वञ्च् + उलच्, पषो॰ चस्य जः—बेंत या नरकुल
- वञ्जुलः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का फूल
- वञ्जुलः—पुं॰—-—-—अशोकवृक्ष
- वञ्जुलः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का पक्षी
- वञ्जुलद्रुमः—पुं॰—वञ्जुलः-द्रुमः—-—अशोकवृक्ष
- वञ्जुलप्रियः—पुं॰—वञ्जुलः-प्रियः—-—बेंत
- वट्—भ्वा॰ पर॰ <वटति>—-—-—घेरना
- वट्—चुरा॰ उभ॰ <वाटयति>,<वाटयते>—-—-—कहना
- वट्—चुरा॰ उभ॰ <वाटयति>,<वाटयते>—-—-—बाँटना, विभाजन करना
- वट्—चुरा॰ उभ॰ <वाटयति>,<वाटयते>—-—-—घेरना, घेरा डालना
- वटः—पुं॰—-—वट् + अच्—बड़ का पेड़
- वटः—पुं॰—-—-—छोटी शुक्ति या कौड़ी
- वटः—पुं॰—-—-—छोटी गेंद, गोलिका, वटिका
- वटः—पुं॰—-—-—गोल अंक, शून्य
- वटः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की रोटी
- वटः—पुं॰—-—-—डोरी, रस्सी
- वटः—पुं॰—-—-—रूपसादृश्य
- वटपत्रम्—नपुं॰—वटः-पत्रम्—-—श्वेत तुलसी का एक भेद
- वटपत्रा—स्त्री॰—वटः-पत्रा—-—चमेली
- वटवासिन्—पुं॰—वटः-वासिन्—-—यक्ष
- वटकः—पुं॰—-—वट + कन्, वट् + क्वुन्—बाटी, एक प्रकार की रोटी
- वटकः—पुं॰—-—-—छोटा पिंड, गेंद, गोली, वटिका
- वटरः—पुं॰—-—वट् + अरन्—मुर्गा
- वटरः—पुं॰—-—-—चटाई
- वटरः—पुं॰—-—-—पगड़ी
- वटरः—पुं॰—-—-—चोर, लुटेरा
- वटरः—पुं॰—-—-—रई का डंडा
- वटरः—पुं॰—-—-—सुगंधित घास
- वटाकरः—पुं॰—-—-—डोरा, डोरी
- वटारकः—पुं॰—-—-—डोरा, डोरी
- वटिकः—पुं॰—-—वट् + इन् + कन्—शतरंज का मोहरा’
- वटिका—स्त्री॰—-—वट् + इन् + कन् + टाप्—टिकिया, गोली
- वटिका—स्त्री॰—-—-—शतरंज का मोहरा’
- वटिन्—वि॰—-—वट् + इन्—डोरीदार, वर्तुलकार
- वटिन्—पुं॰—-—-—वटिक
- वटी—पुं॰—-—वट् + अच् + ङीष्—रस्सी या डोरी
- वटी—पुं॰—-—-—गोली, वटिका
- वटुः—पुं॰—-—वटति अल्पवस्त्रम्- वट् + उः—छोकरा, लड़का, जवान, किशोर
- वटुः—पुं॰—-—-—ब्रह्मचारी
- वटुकः—पुं॰—-—वट् + कन् —छोकरा, लड़का
- वटुकः—पुं॰—-—-—ब्रह्मचारी
- वटुकः—पुं॰—-—-—मूर्ख, बुद्धू
- वठ्—भ्वा॰ पर॰ <वठति>—-—-—बलवान् या शक्तिशाली होना
- वठ्—भ्वा॰ पर॰ <वठति>—-—-—मोटा होना
- वठर—वि॰—-—वठ् + अरन्—मन्दबुद्धि, जड़
- वठर—वि॰—-—-—दुष्ट
- वठरः—पुं॰—-—-—मूर्ख या बुद्धू
- वठरः—पुं॰—-—-—बदमास, या दुष्ट
- वठरः—पुं॰—-—-—वैद्य या डाक्टर
- वठरः—पुं॰—-—-—जल-पात्र
- वडभिः—स्त्री॰—-—वल्यते आच्छाद्यते वल् + अभि—ढलवां छत, लकड़ी का बना छप्पर का ढांचा
- वडभिः—स्त्री॰—-—-—(घर का) सबसे ऊँचा भाग
- वडभिः—स्त्री॰—-—-—सौराष्ट्र प्रदेश के अन्तर्गत एक नगरी
- वडभी—स्त्री॰—-—वल्यते आच्छाद्यते वल् + अभि + ङीप्—ढलवां छत, लकड़ी का बना छप्पर का ढांचा
- वडभी—स्त्री॰—-—-—(घर का) सबसे ऊँचा भाग
- वडभी—स्त्री॰—-—-—सौराष्ट्र प्रदेश के अन्तर्गत एक नगरी
- वडवा—स्त्री॰—-—बलं वाति- बल + वा + क + टाप्, डलयोरैक्यात् लस्य डत्वम्—घोड़ी
- वडवा—स्त्री॰—-—-—अश्विनी नाम की अप्सरा
- वडवा—स्त्री॰—-—-—दासी
- वडवा—स्त्री॰—-—-—वेश्या, रण्डी
- वडवा—स्त्री॰—-—-—ब्राह्मण जाति की स्त्री, द्विजयोषित्
- वडवाग्निः—पुं॰—वडवा-अग्निः—-—समुद्र के भीतर रहने वाली आग
- वडवानलः—पुं॰—वडवा-अनलः—-—समुद्र के भीतर रहने वाली आग
- वडवामुखः—पुं॰—वडवा-मुखः—-—समुद्र के भीतर रहने वाली आग
- वडवामुखः—पुं॰—वडवा-मुखः—-—शिव का नाम
- वडा—स्त्री॰—-—वड् + अच् + टाप्—एक प्रकार की रोटी
- वडिशम्—नपुं॰—-—बलिनो मत्स्यान् श्यति नाशयति- शो + क, लस्य डत्वम्—मछली पकड़ने का कांटा
- वड्र—वि॰—-—वड् + रक्—विशाल, बड़ा, महान्
- वण्—भ्वा॰ पर॰ <वणति>—-—-—शब्द करना, ध्वनि करना
- वणिज्—पुं॰—-—पणायते व्यवहरति-पण् + इजि पस्य वः—सौदागर, व्यापारी
- वणिज्—पुं॰—-—-—तुला राशि
- वणिज्—स्त्री॰—-—-—पण्यवस्तु, व्यापार
- वणिक्कर्मन्—नपुं॰—वणिज्-कर्मन्—-—क्रयविक्रय, व्यापारी
- वणिक्क्रिया—नपुं॰—वणिज्-क्रिया—-—क्रयविक्रय, व्यापारी
- वणिग्जनः—पुं॰—वणिज्-जनः—-—(सामूहिक रूप से) व्यापारी वर्ग
- वणिग्जनः—पुं॰—वणिज्-जनः—-—व्यापारी, सौदागर
- वणिक्पथः—पुं॰—वणिज्-पथः—-—व्यापार, क्रयविक्रय
- वणिक्पथः—पुं॰—वणिज्-पथः—-—सौदागर
- वणिक्पथः—पुं॰—वणिज्-पथः—-—बनिये की दुकान, आपणिका
- वणिक्पथः—पुं॰—वणिज्-पथः—-—तुलाराशि
- वणिग्वृत्तिः—स्त्री॰—वणिज्-वृत्तिः—-—व्यापार, क्रयविक्रय
- वणिक्सार्थः—पुं॰—वणिज्-सार्थः—-—व्यापारियों का दल, टोली
- वणिजः—पुं॰—-—वणिज् + अच् (स्वार्थे)—सौदागर, व्यापारी
- वणिजः—पुं॰—-—-—तुलाराशि
- वणिजकः—पुं॰—-—वणिज + कन्—सौदागर, बनिया
- वणिज्यम्—नपुं॰—-—वणिज् + यत्—व्यापार, क्रयविक्रय
- वणिज्या—स्त्री॰—-—वणिज् + यत्, स्त्रियां टाप् च—व्यापार, क्रयविक्रय
- वण्ट्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <वण्टति>,<वण्टयति>,<वण्टयते>—-—-—बांटना, अशं बनाना, विभाजन करना, हिस्से करना
- वण्टः—पुं॰—-—वण्ट् + घञ्—भाग या खण्ड, अंशम् हिस्सा
- वण्टः—पुं॰—-—-—दरांती का दस्ता
- वण्टः—पुं॰—-—-—अविवाहित पुरुष, कुँआरा
- वण्टकः—पुं॰—-—वण्ट् + घञ्, स्वार्थे क—बाँटने वाला, वितरण करने वाला
- वण्टकः—पुं॰—-—-—वितरक
- वण्टकः—पुं॰—-—-—भाग, अंश, हिस्सा
- वण्टनम्—नपुं॰—-—वण्ट् + ल्युट्—विभाजन करना, अंश बनाना, बाँटना या विभक्त करना
- वण्टालः —पुं॰—-—वण्ट + आलच्, पक्षे पृषो॰—शूरवीरों की प्रतियोगिता
- वण्टालः —पुं॰—-—वण्ट + आलच्, पक्षे पृषो॰—कुदाल, खुर्पा
- वण्टालः —पुं॰—-—वण्ट + आलच्, पक्षे पृषो॰—नाव
- वण्डालः—पुं॰—-—वण्ट + आलच्, पक्षे पृषो॰ टस्य डत्वम्—शूरवीरों की प्रतियोगिता
- वण्डालः—पुं॰—-—वण्ट + आलच्, पक्षे पृषो॰ टस्य डत्वम्—कुदाल, खुर्पा
- वण्डालः—पुं॰—-—वण्ट + आलच्, पक्षे पृषो॰ टस्य डत्वम्—नाव
- वण्ठ्—भ्वा॰ आ॰ <वण्ठते>—-—-—अकेले जाना, बिना किसी को साथ लिए चलना
- वण्ठ—वि॰—-—वण्ठ् + अच्—अविवाहित
- वण्ठ—वि॰—-—-—ठिंगना
- वण्ठ—वि॰—-—-—विकलाङ्ग
- वण्ठः—पुं॰—-—-—अविवाहित पुरुष, कुँआरा
- वण्ठः—पुं॰—-—-—सेवक
- वण्ठः—पुं॰—-—-—ठिंगना
- वण्ठः—पुं॰—-—-—भाला, नेज़ा
- वण्ठरः—पुं॰—-—वण्ठ् + अरन्—बाँस का आवेष्टन, बाँस का मोटा पत्ता
- वण्ठरः—पुं॰—-—-—ताड का नया किशलय
- वण्ठरः—पुं॰—-—-—(बकरे को) बाँधने के लिए रस्सी
- वण्ठरः—पुं॰—-—-—कुत्ता
- वण्ठरः—पुं॰—-—-—कुत्ते की पूँछ
- वण्ठरः—पुं॰—-—-—बादल
- वण्ठरः—पुं॰—-—-—स्त्री की छाती
- वण्ड्—भ्वा॰ पर॰ <वण्डते>—-—-—बाँटना, हिस्से करना, अंश बनाना
- वण्ड्—भ्वा॰ पर॰ <वण्डते>—-—-—घेरना, चारों ओर से आवेष्टित करना
- वण्ड्—चुरा॰ उभ॰ <वण्डयति>,<वण्डयते>—-—-—हिस्से करना, बाँटना, अंश बनाना
- वण्ड—वि॰—-—वण्ड् + अच्—अपाङ्ग, अपाहिज, विकलाङ्ग
- वण्ड—वि॰—-—-—अविवाहित
- वण्ड—वि॰—-—-—नपुंसक बनाया हुआ
- वण्डः—पुं॰—-—-—वह आदमी जिसकी ख़तना हो चुकी है या जिसकी जननेन्द्रिय के अग्रभाग को ढकने वाला चमड़ा नहीं है
- वण्डः—पुं॰—-—-—बिना पूँछ का बैल
- वण्डा—स्त्री॰—-—-—व्यभिचारिणी स्त्री
- वण्डरः—पुं॰—-—वण्ड् + अरन्—कञ्जूस, मक्खीचूस
- वण्डरः—पुं॰—-—-—हिजड़ा
- वत्—वि॰—-—-—एक प्रत्यय जो ‘स्वामित्व’ की भावना को प्रकट करने के लिए ‘संज्ञाशब्दों के साथ लगाया जाता है
- वत्—वि॰—-—-—भू॰ क॰ कृ॰ के आधार से ‘वत्’ लगा कर कर्तृवा॰ का रूप बना लिया जाता है
- वत्—वि॰—-—-—अव्य॰ ‘समानत’ और ‘सादृश्य’ अर्थ को प्रकट करने के लिए संज्ञा या विशेषण शब्दों के साथ ‘वत्’ जोड़ दिया जाता है
- वत—अव्य॰—-—वन् + क्त, बवयोरभेदः —शोक, खेद
- वत—अव्य॰—-—वन् + क्त, बवयोरभेदः —दया या करुणा
- वत—अव्य॰—-—वन् + क्त, बवयोरभेदः —संबोधन, पुकरना
- वत—अव्य॰—-—वन् + क्त, बवयोरभेदः —हर्ष या संतोष
- वत—अव्य॰—-—वन् + क्त, बवयोरभेदः —आश्चर्य, अचम्भा
- वत—अव्य॰—-—वन् + क्त, बवयोरभेदः —निन्दा
- वतंसः—पुं॰—-—अवतंस् + अच् वा घञ्, भागुरिमते ‘अव’ इत्यस्य अकारलोपः—
- वतोका—स्त्री॰—-—अवगतं तोकं यस्याः-अवस्य अकार लोपः—बाँझ या निस्सन्तान स्त्री, वह गाय या स्त्री जिसकी किसी दुर्घटनावश गर्भपात हो गया हो
- वत्सः—पुं॰—-—वद् + सः—बछड़ा, किसी जानवर का बच्चा
- वत्सः—पुं॰—-—-—लड़का, पुत्र
- वत्सः—पुं॰—-—-—संतान, बच्चे, जीववत्सा
- वत्सः—पुं॰—-—-—वर्ष
- वत्सः—पुं॰—-—-—एक देश का नाम या उसके अधिवासी
- वत्सा—स्त्री॰—-—-—बछिया
- वत्सा—स्त्री॰—-—-—छोटी लड़की
- वत्सम्—स्त्री॰—-—-—छाति
- वत्साक्षी—स्त्री॰—वत्सः-अक्षी—-—एक प्रकार की ककड़ी
- वत्सादनः—पुं॰—वत्सः-अदनः—-—भेड़िया
- वत्सेशः—पुं॰—वत्सः-ईशः—-—वत्स देश का राजा
- वत्सराजः—पुं॰—वत्सः-राजः—-—वत्स देश का राजा
- वत्सकाम—वि॰—वत्सः-काम—-—बच्चों को प्यार करने वाला
- वत्सकामा—स्त्री॰—वत्सः-कामा—-—वह गाय जो बछड़े से मिलने की प्रबल लालसा रखती है
- वत्सनाभः—पुं॰—वत्सः-नाभः—-—एक वृक्ष का नाम
- वत्सनाभः—पुं॰—वत्सः-नाभः—-—एक प्रकार अत्यंत कठोर विष
- वत्सपालः—पुं॰—वत्सः-पालः—-—बछड़ों को पालने वाला, कृष्ण या बलराम
- वत्सशाला—स्त्री॰—वत्सः-शाला—-—गौशाला
- वत्सकः—पुं॰—-—वत्स + कन्—नन्हा बछड़ा, बछड़ा
- वत्सकः—पुं॰—-—-—वच्चा
- वत्सकः—पुं॰—-—-—`कुटज' नाम का पौधा
- वत्सकम्—नपुं॰—-—-—पुष्पकसीस
- वत्सतरः—पुं॰—-—वत्स + तरप्—वह बछड़ा जिसने अभी हाल में दूध चूंघना छोड़ा है, जवान बैल जिसके ऊपर अभी जुआ नहीं रक्खा गया है
- वत्सतरी—स्त्री॰—-—-—बछिया
- वत्सरः—पुं॰—-—वस् + सरन्—वर्ष
- वत्सरः—पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
- वत्सरान्तकः—पुं॰—वत्सरः-अन्तकः—-—फाल्गुन का महीना
- वत्सरर्णम्—नपुं॰—वत्सरः-ऋणम्—-—वह ऋण जो वर्ष की समाप्ति पर वापिस किया जाय
- वत्सल—वि॰—-—वत्सं लाति ला + क—बच्चों को प्यार करने वाला, बच्चों के प्रति स्नेहशील
- वत्सल—वि॰—-—-—स्नेहशील, अतिप्रिय, स्नेहानुरागी, दयालु
- वत्सलः—पुं॰—-—-—घास से प्रज्वलित अग्नि
- वत्सला—स्त्री॰—-—-—अपने बछड़े को प्यार करने वाली गाय
- वत्सलम्—नपुं॰—-—-—स्नेह, प्यार
- वत्सलयति—ना॰ धा॰ पर॰ <वत्सलयति>—-—-—उत्कण्ठा पैदा करना, उत्सुक बनाना, स्नेहयुक्त करना
- वत्सा—स्त्री॰—-—वत्स + टाप्—बछिया, बहड़ी
- वत्सिका—स्त्री॰—-—वत्सा +कन् + टाप्—बछिया, बहड़ी
- वस्तिमन्—पुं॰—-—वत्स + इमनिच्—बचपन, कौमार्य, उभरती जवानी
- वत्सीयः—पुं॰—-—वत्स + छ—गोप, ग्वाला
- वद्—भ्वा॰ पर॰ <वदति> परन्तु कुछ अर्थों में तथा कुछ उपसर्गों के साथ आ॰, दे॰ नी॰ <उदित>,कर्म वा॰ <उद्यते>, इच्छा॰ <विवदिषति>—-—-—कहना, वोलना, उच्चारण करना, संबोधित करना, बातें करना
- वद्—भ्वा॰ पर॰ <वदति> परन्तु कुछ अर्थों में तथा कुछ उपसर्गों के साथ आ॰, दे॰ नी॰ <उदित>,कर्म वा॰ <उद्यते>, इच्छा॰ <विवदिषति>—-—-—घोषणा करना, कहना, समाचार देना, सूचित करना
- वद्—भ्वा॰ पर॰ <वदति> परन्तु कुछ अर्थों में तथा कुछ उपसर्गों के साथ आ॰, दे॰ नी॰ <उदित>,कर्म वा॰ <उद्यते>, इच्छा॰ <विवदिषति>—-—-—किसी के विषय में कहना, वर्णन करना
- वद्—भ्वा॰ पर॰ <वदति> परन्तु कुछ अर्थों में तथा कुछ उपसर्गों के साथ आ॰, दे॰ नी॰ <उदित>,कर्म वा॰ <उद्यते>, इच्छा॰ <विवदिषति>—-—-—अंकित करना, निर्धारित करना, बयान
- वद्—भ्वा॰ पर॰ <वदति> परन्तु कुछ अर्थों में तथा कुछ उपसर्गों के साथ आ॰, दे॰ नी॰ <उदित>,कर्म वा॰ <उद्यते>, इच्छा॰ <विवदिषति>—-—-—नाम लेना, पुकारना
- वद्—भ्वा॰ पर॰ <वदति> परन्तु कुछ अर्थों में तथा कुछ उपसर्गों के साथ आ॰, दे॰ नी॰ <उदित>,कर्म वा॰ <उद्यते>, इच्छा॰ <विवदिषति>—-—-—संकेत करना, आभास देना
- वद्—भ्वा॰ पर॰ <वदति> परन्तु कुछ अर्थों में तथा कुछ उपसर्गों के साथ आ॰, दे॰ नी॰ <उदित>,कर्म वा॰ <उद्यते>, इच्छा॰ <विवदिषति>—-—-—स्वर ऊँचा उठाना, क्रन्दन करना, गायन करना
- वद्—भ्वा॰ पर॰ <वदति> परन्तु कुछ अर्थों में तथा कुछ उपसर्गों के साथ आ॰, दे॰ नी॰ <उदित>,कर्म वा॰ <उद्यते>, इच्छा॰ <विवदिषति>—-—-—होशियारी या प्रवीणता दर्शाना, किसी विषय पर अधिकारी होना
- वद्—भ्वा॰ पर॰ <वदति> परन्तु कुछ अर्थों में तथा कुछ उपसर्गों के साथ आ॰, दे॰ नी॰ <उदित>,कर्म वा॰ <उद्यते>, इच्छा॰ <विवदिषति>—-—-—चमकना, उज्ज्वल या देदीप्यमान दिखलाई देना
- वद्—भ्वा॰ पर॰ <वदति> परन्तु कुछ अर्थों में तथा कुछ उपसर्गों के साथ आ॰, दे॰ नी॰ <उदित>,कर्म वा॰ <उद्यते>, इच्छा॰ <विवदिषति>—-—-—उद्योग करना, चेष्टा करना, परिश्रम करना
- वद्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰ <वादयति>,<वादयते>—-—-—कहलवाना
- वद्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰ <वादयति>,<वादयते>—-—-—शब्द करवाना, बाजा बजना
- अनुवद्—भ्वा॰ पर॰—अनु-वद्—-—बोलने में नकल करना, दोहराना
- अनुवद्—भ्वा॰ पर॰—अनु-वद्—-—प्रतिध्वनि करना, गूंजना
- अनुवद्—भ्वा॰ पर॰—अनु-वद्—-—अनुमोदन करना
- अनुवद्—भ्वा॰ पर॰—अनु-वद्—-—नक़ल करना
- अनुवद्—भ्वा॰ पर॰—अनु-वद्—-—समर्थन के रूप मेंआवृत्ति करना
- अपवद्—भ्वा॰ पर॰—अप-वद्—-—बुरा भला कहना, गाली देना, निन्दा करना
- अपवद्—भ्वा॰ पर॰—अप-वद्—-—न अपनाना
- अपवद्—भ्वा॰ पर॰—अप-वद्—-—गिनना विरोध करना
- अभिवद्—भ्वा॰ पर॰—अभि-वद्—-—अभिव्यक्त करना, उच्चारण करना, मूल्य या वजन रखना
- अभिवद्—भ्वा॰ पर॰—अभि-वद्—-—नमस्कार करना, अभिवादन करना
- अभिवद्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰—अभि-वद्—-—प्रणाम करना
- उपवद्—भ्वा॰ पर॰, आ॰—उप-वद्—-—लुभाना, चापलूसी करना, फुसलाना
- उपवद्—भ्वा॰ पर॰, आ॰—उप-वद्—-—मनाना, अनुकूल करना
- परिवद्—भ्वा॰ पर॰—परि-वद्—-—गाली देना, निन्दा करना, बुरा भला कहना
- प्रवद्—भ्वा॰ पर॰—प्र-वद्—-—बोलना, उच्चारण करना
- प्रवद्—भ्वा॰ पर॰—प्र-वद्—-—बातें करना, संबोधित करना
- प्रवद्—भ्वा॰ पर॰—प्र-वद्—-—नाम लेना, पुकारना
- प्रवद्—भ्वा॰ पर॰—प्र-वद्—-—ख़याल करना, सोचना
- प्रतिवद्—भ्वा॰ पर॰—प्रति-वद्—-—उत्तर में बोलना, जबाब देना
- प्रतिवद्—भ्वा॰ पर॰—प्रति-वद्—-—बोलना, उच्चारण करना
- प्रतिवद्—भ्वा॰ पर॰—प्रति-वद्—-—दोहराना
- विवद्—भ्वा॰ पर॰, आ॰—वि-वद्—-—झगड़ा करना, विवाद करना
- विवद्—भ्वा॰ पर॰, आ॰—वि-वद्—-—भिन्नमत का होना, प्रतिकूल होना, विरोधी होना
- विवद्—भ्वा॰ पर॰, आ॰—वि-वद्—-—दृढ़ता पूर्वक कहना
- विप्रवद्—भ्वा॰ पर॰, पर॰ आ॰—विप्र-वद्—-—बादविवाद करना, कलह करना, झगड़ा करना
- विसंवद्—भ्वा॰ पर॰, पर॰ आ॰—विसम्-वद्—-—असंगत होना, भिन्न मत का होना
- विसंवद्—भ्वा॰ पर॰, पर॰ आ॰—विसम्-वद्—-—असफल होना
- विसंवद्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰—विसम्-वद्—-—असंगत बनाना
- संवद्—भ्वा॰ पर॰—सम्-वद्—-—बातें करना, संबोधित करना
- संवद्—भ्वा॰ पर॰—सम्-वद्—-—मिलकर बोलना, वातलिप करना, प्रवचन करना
- संवद्—भ्वा॰ पर॰—सम्-वद्—-—समरूप होना, अनुरूप होना, समान होना
- संवद्—भ्वा॰ पर॰—सम्-वद्—-—नाम लेना, पुकारना
- संवद्—भ्वा॰ पर॰—सम्-वद्—-—बोलना, उच्चारण करना
- संवद्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰—सम्-वद्—-—परामर्श करना, सलाह-मशवरा करना
- संवद्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰—सम्-वद्—-—शब्द करवाना, वाद्ययंत्र बजाना
- संप्रवद्—भ्वा॰ पर॰, आ॰—संप्र-वद्—-—ऊँचे स्वर से या स्पष्ट बोलना
- संप्रवद्—भ्वा॰ पर॰, पर॰—संप्र-वद्—-—क्रन्दन करना, क्रन्दन ध्वनि का उच्चारण करना
- वद—वि॰—-—वद् + अच्—बोलने वाला, बातें करने वाला, अच्छा बोलने वाला
- वदनम्—नपुं॰—-—वद् + ल्युट्—चेहरा
- वदनम्—नपुं॰—-—-—मुख
- वदनम्—नपुं॰—-—-—पहलू, छवि, दर्शन
- वदनम्—नपुं॰—-—-—अगला भाग
- वदनम्—नपुं॰—-—-—(किसी माला का) पहला शब्द
- वदनासवः—पुं॰—वदनम्-आसवः—-—लार
- वदन्ती—स्त्री॰—-—वद् + झच् + ङीष्—भाषण, प्रवचन
- वदन्य—वि॰—-—वद् + अन्य, पृषो॰ ह्रस्वः—धारा प्रवाह से वोलने वाला, वाक्पटु
- वदन्य—वि॰—-—वद् + अन्य, पृषो॰ ह्रस्वः—सानुग्रह बोलने वाला
- वदन्य—वि॰—-—वद् + अन्य, पृषो॰ ह्रस्वः—उदार, दयालु, दानशील
- वदरः—पुं॰—-—वद् + अरच्—बेर का पेड़
- वदरम्—नपुं॰—-—वद् + अरच्—बेर का फल
- वदालः—पुं॰—-—बद् + क, अल् + अच्—बवण्डर, भंबर
- वदालः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की जर्मन मछली
- वदावद—वि॰—-—अत्यन्तं वदति- वद् + अच्, नि॰—बोलने वाला, वाक्पटु
- वदावद—वि॰—-—-—बातूनी, वाचाल
- वदान्य—वि॰—-—वद् + आन्यः—धारा प्रवाह से वोलने वाला, वाक्पटु
- वदान्य—वि॰—-—-—सानुग्रह बोलने वाला
- वदान्य—वि॰—-—-—उदार, दयालु, दानशील
- वदान्यः—पुं॰—-—-—उदार या दानशील व्यक्ति, दाता, अत्युदार व्यक्ति
- वदि—अव्य॰—-—-—(चान्द्रमास का) कृष्णपक्ष, ज्येष्ठबदि
- वद्य—वि॰—-—वद् + यत्—क्हने के योग्य, दूषण देने के अयोग्य
- वद्य—वि॰—-—-—कृष्णपक्ष
- वद्यम्—नपुं॰—-—-—भाषण, इधर-उधर की बातें करना
- वध्—भ्वा॰ पर॰ <वधति>—-—-—मारना, कतल करना
- वधः—पुं॰—-—हन् + अप्, वधादेशः—मार डालना, हत्या, कतल, विनाश
- वधः—पुं॰—-—-—आघात, प्रहार
- वधः—पुं॰—-—-—लकवा
- वधः—पुं॰—-—-—लोप,अन्तर्धान
- वधः—पुं॰—-—-—(गणित में) गुणा
- वधाङ्गकम्—नपुं॰—वधः-अङ्गकम्—-—विष
- वधार्ह—वि॰—वधः-अर्ह—-—फांसी के दण्ड का अधिकारी
- वधोद्यत—वि॰—वधः-उद्यत—-—हत्या संबंधी
- वधोद्यत—वि॰—वधः-उद्यत—-—हत्यारा, कातिल
- वधोपायः—पुं॰—वधः-उपायः—-—हत्या की तरकीब
- वधकर्माधिकारिन—वि॰—वधः-कर्माधिकारिन—-—फांसी पर लटकाने वाला, जल्लाद
- वधजीविन्—पुं॰—वधः-जीविन्—-—शिकारी
- वधजीविन्—पुं॰—वधः-जीविन्—-—कसाई
- वधदण्डः—पुं॰—वधः-दण्डः—-—शारीरिक दण्ड (हंटर आदि लगाना)
- वधदण्डः—पुं॰—वधः-दण्डः—-—फांसी
- वधभूमिः—स्त्री॰—वधः-भूमिः—-—फांसी की जगह
- वधभूमिः—स्त्री॰—वधः-भूमिः—-—बूचड़खाना
- वधस्थली—स्त्री॰—वधः-स्थली—-—फांसी की जगह
- वधस्थली—स्त्री॰—वधः-स्थली—-—बूचड़खाना
- वधस्थानम्—स्त्री॰—वधः-स्थानम्—-—फांसी की जगह
- वधस्थानम्—स्त्री॰—वधः-स्थानम्—-—बूचड़खाना
- वधस्तम्भः—पुं॰—वधः-स्तम्भः—-—फांसी
- वधकः—पुं॰—-—हनः क्वुन्,वध च—जल्लाद, फांसी पर लटकाने वाला
- वधकः—पुं॰—-—-—क़ातिल, हत्यारा
- वधित्रम्—नपुं॰—-—वध् + इत्र—कामदेव
- वधित्रम्—नपुं॰—-—-—कामोन्माद, कामातुरता
- वधुः —स्त्री॰—-—वधूः, नि॰ ह्रस्वः—पुत्रवधू, स्नुषा
- वधुः —स्त्री॰—-—वधूः, नि॰ ह्रस्वः—युवती स्त्री
- वधुका—स्त्री॰—-—वधूः, नि॰ ह्रस्वः—पुत्रवधू, स्नुषा
- वधुका—स्त्री॰—-—वधूः, नि॰ ह्रस्वः—युवती स्त्री
- वधूः—स्त्री॰—-—उह्यते पितृगेहात् पतिगृहं वह् + ऊधुक़्—दुलहिन
- वधूः—स्त्री॰—-—-—पत्नी, भार्या
- वधूः—स्त्री॰—-—-—पुत्रवधू्
- वधूः—स्त्री॰—-—-—महिला, तरुणी, स्त्री
- वधूः—स्त्री॰—-—-—अपने से छोटे रिश्तेदार की पत्नी, नाते में छोटी स्त्री
- वधूः—स्त्री॰—-—-—किसी भी पशु की मादा
- वधूगृहप्रवेशः—पुं॰—वधूः-गृहप्रवेशः—-—दुलहिन का अपने पति के घर में सर्व प्रथम प्रवेश समारंभ
- वधूप्रवेशः—पुं॰—वधूः-प्रवेशः—-—दुलहिन का अपने पति के घर में सर्व प्रथम प्रवेश समारंभ
- वधूजनः—पुं॰—वधूः-जनः—-—पत्नी, स्त्री
- वधूपक्षः—पुं॰—वधूः-पक्षः—-—(विबाह के अवसर पर) कन्या पक्ष के लोग
- वधूवस्त्रम्—नपुं॰—वधूः-वस्त्रम्—-—दुलहिन को वेशभूषा, वैवाहिक पोशाक
- वधूटी—स्त्री॰—-—अल्पवयस्का वधूः - वधू +टि + ङीष्—तरुणी, स्त्री, नवयुवती
- वध्य—वि॰—-—वधमर्हति वध + यत्—मारे जाने के योग्य, हत्या किये जाने के योग्य
- वध्य—वि॰—-—-—जिसे प्राण दण्ड की आज्ञा मिल चुकी है
- वध्य—वि॰—-—-—शारीरिक दण्ड दिये जाने के योग्य, शारीरिक रूप से दण्ड्य
- वध्यः—पुं॰—-—-—शिकार, मृत्यु की तलाश में
- वध्यः—पुं॰—-—-—शत्रु
- वध्यपटहः—पुं॰—वध्य-पटहः—-—वह ढोल जो किसी को फांसी पर लटकाते समय बजाया जाय
- वध्यभूः—स्त्री॰—वध्य-भूः—-—फाँसी देने का स्थान
- वध्यभूमिः—स्त्री॰—वध्य-भूमिः—-—फाँसी देने का स्थान
- वध्यस्थलम्—नपुं॰—वध्य-स्थलम्—-—फाँसी देने का स्थान
- वध्यस्थानम्—नपुं॰—वध्य-स्थानम्—-—फाँसी देने का स्थान
- वध्यमाला—स्त्री॰—वध्य-माला—-—फूलों की माला जो फांसी पर लटकाने के लिए तैयार व्यक्ति को पहनाई जाय
- वध्या—स्त्री॰—-—वध्य + टाप्—वध, हत्या, क़तल
- वध्रम्—नपुं॰—-—वन्ध् + ष्ट्रन्—चमड़े का तस्मा
- वध्रम्—नपुं॰—-—-—सीसा
- वध्री—स्त्री॰—-—-—चमड़े की पट्टी
- वध्र्यः—पुं॰—-—वध्र + यत्—जूता
- वन्—भ्वा॰ पर॰ <वनति>—-—-—संमान करना, पूजा करना
- वन्—भ्वा॰ पर॰ <वनति>—-—-—सहायता करना
- वन्—भ्वा॰ पर॰ <वनति>—-—-—शब्द करना
- वन्—भ्वा॰ पर॰ <वनति>—-—-—व्यापृत या व्यस्त होना
- वन्—तना॰ उभ॰ <वनोति>,<वनुते>—-—-—याचना करना, कहना, प्रार्थना करना
- वन्—तना॰ उभ॰ <वनोति>,<वनुते>—-—-—खोज करना, प्राप्त करने की चेष्टा करना
- वन्—तना॰ उभ॰ <वनोति>,<वनुते>—-—-—जीतना, स्वामित्व प्राप्त करना
- वन्—भ्वा॰ पर॰ चुरा॰ उभ॰ <वनति>,<वानयति>,<वानयते>—-—-—अनुग्रह करना, सहायता करना
- वन्—भ्वा॰ पर॰ चुरा॰ उभ॰ <वनति>,<वानयति>,<वानयते>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना
- वन्—भ्वा॰ पर॰ चुरा॰ उभ॰ <वनति>,<वानयति>,<वानयते>—-—-—ध्वनि करना
- वन्—भ्वा॰ पर॰ चुरा॰ उभ॰ <वनति>,<वानयति>,<वानयते>—-—-—विश्वास करना
- वनम्—नपुं॰—-—वन् + अच्—अरण्य, जंगल, वृक्षों का झुरमुट
- वनम्—नपुं॰—-—-—गुल्म, झुण्ड, सघन क्यारी में उगे हुए कमल या अन्य पौधों का समुच्चय
- वनम्—नपुं॰—-—-—आवासस्थल, निवासस्थान, घर
- वनम्—नपुं॰—-—-—फौवारा (पानी का) झरना
- वनम्—नपुं॰—-—-—पानी
- वनम्—नपुं॰—-—-—लकड़ी, काष्ठ
- वनाग्निः—पुं॰—वनम्-अग्निः—-—दावानल
- वनजः—पुं॰—वनम्-जः—-—जंगली बकरा
- वनान्तः—पुं॰—वनम्-अन्तः—-—किसी जंगल की सीमा या दामन
- वनान्तः—पुं॰—वनम्-अन्तः—-—वन्यप्रदेश, जंगल
- वनान्तरम्—नपुं॰—वनम्-अन्तरम्—-—दूसरा जंगल
- वनान्तरम्—नपुं॰—वनम्-अन्तरम्—-—जंगल का भीतरी प्रदेश
- वनारिष्टा—स्त्री॰—वनम्-अरिष्टा—-—जंगली हल्दी
- वनालक्तम्—नपुं॰—वनम्-अलक्तम्—-—लाल मिट्टी, गेरु या लाल खड़िया
- वनालिका—स्त्री॰—वनम्-अलिका—-—सूरजमुखी
- वनाखुः—पुं॰—वनम्-आखुः—-—खरगोश
- वनाखुकः—पुं॰—वनम्-आखुकः—-—एक प्रकार का लोबिया
- वनापगा—स्त्री॰—वनम्-आपगा—-—जंगली नंदी, अरण्यसरिता
- वनार्द्रका—स्त्री॰—वनम्-आर्द्रका—-—जंगली अदरक
- वनाश्रमः—पुं॰—वनम्-आश्रमः—-—जंगल में आवास, बानप्रस्थ जीवन का तीसरा आश्रम
- वनाश्रमिन्—पुं॰—वनम्-आश्रमिन्—-—वानप्रस्थी, संन्यासी, तपस्वी
- वनाश्रयः—पुं॰—वनम्-आश्रयः—-—वनवासी
- वनाश्रयः—पुं॰—वनम्-आश्रयः—-—एक प्रकार का पहाड़ी कौवा
- वनोत्साहः—पुं॰—वनम्-उत्साहः—-—गैडां
- वनोद्भवा—स्त्री॰—वनम्-उद्भवा—-—जंगली कपास का पौधा
- वनोपप्लवः—पुं॰—वनम्-उपप्लवः—-—दावानल
- वनौकस्—पुं॰—वनम्-ओकस्—-—वनवासी, जंगल में रहने वाला
- वनौकस्—पुं॰—वनम्-ओकस्—-—संन्यासी, तपस्वी
- वनौकस्—पुं॰—वनम्-ओकस्—-—जंगली जानवर
- वनकणा—स्त्री॰—वनम्-कणा—-—वनपिप्पली
- वनकदली—पुं॰—वनम्-कदली—-—जंगलि केला
- वनकरिन्—पुं॰—वनम्-करिन्—-—जंगली हाथी
- वनकुञ्जरः—पुं॰—वनम्-कुञ्जरः—-—जंगली हाथी
- वनगजः—पुं॰—वनम्-गजः—-—जंगली हाथी
- वनकुक्कुटः—पुं॰—वनम्-कुक्कुटः—-—जंगली मुर्ग
- वनखण्डम्—नपुं॰—वनम्-खण्डम्—-—जंगल का एक भाग
- वनगवः—पुं॰—वनम्-गवः—-—जंगल बैल
- वनगहनम्—नपुं॰—वनम्-गहनम्—-—झुरमुट, जंगल का सघन भाग
- वनगुप्तः—पुं॰—वनम्-गुप्तः—-—भेदिया, जासूस
- वनगुल्मः—पुं॰—वनम्-गुल्मः—-—जंगली झाड़ी
- वनगोचर—वि॰—वनम्-गोचर—-—बार-बार जंगल में जाने वाला
- वनगोचरः—पुं॰—वनम्-गोचरः—-—शिकारी
- वनगोचरः—पुं॰—वनम्-गोचरः—-—वनवासी
- वनगोचरम्—नपुं॰—वनम्-गोचरम्—-—वन, जंगल
- वनचन्दनम्—नपुं॰—वनम्-चन्दनम्—-—देवदारु का वृक्ष
- वनचन्दनम्—नपुं॰—वनम्-चन्दनम्—-—अगर की लकड़ी
- वनचन्द्रिका—स्त्री॰—वनम्-चन्द्रिका—-—एक प्रकार की चमेली
- वनज्योत्स्ना—स्त्री॰—वनम्-ज्योत्स्ना—-—एक प्रकार की चमेली
- वनचम्पकः—पुं॰—वनम्-चम्पकः—-—जंगली चम्पा का पौधा
- वनचर—वि॰—वनम्-चर—-—वनवासी, वन में विचरने वाला, वन देवता
- वनचरः—पुं॰—वनम्-चरः—-—वनवासी, वन में रहने वाला, जंगली आदमी
- वनचरः—पुं॰—वनम्-चरः—-—वन्य पशु
- वनचरः—पुं॰—वनम्-चरः—-—आठ पैरों वाला शरभ नाम का एक काल्पनिक जन्तु
- वनचर्या—स्त्री॰—वनम्-चर्या—-—जंगल में घूमना या निवास
- वनच्छागः—पुं॰—वनम्-छागः—-—जंगली बकरा
- वनच्छागः—पुं॰—वनम्-छागः—-—सूअर
- वनजः—पुं॰—वनम्-जः—-—हाथी
- वनजः—पुं॰—वनम्-जः—-—एक प्रकार का सुगन्धित घास
- वनजः—पुं॰—वनम्-जः—-—जंगली नीबू का पेड़
- वनजम्—नपुं॰—वनम्-जम्—-—नीलकमल
- वनजा—स्त्री॰—वनम्-जा—-—जंगली अदरक
- वनजा—स्त्री॰—वनम्-जा—-—जंगली कपास का पौधा
- वनजीविन्—पुं॰—वनम्-जीविन्—-—वनवासी, जंगली आदमी
- वनदः—पुं॰—वनम्-दः—-—बादल
- वनदाहः—पुं॰—वनम्-दाहः—-—दावानल
- वनदेवता—स्त्री॰—वनम्-देवता—-—वनदेवी, जंगल- परी
- वनद्रुमः—पुं॰—वनम्-द्रुमः—-—जंगली पेड़
- वनधारा—स्त्री॰—वनम्-धारा—-—वृक्षावलि, छायादार मार्ग
- वनधेनुः—स्त्री॰—वनम्-धेनुः—-—गाय, जंगल बैल की मादा
- वनपांसुलः—पुं॰—वनम्-पांसुलः—-—शिकारी
- वनपार्श्वम्—नपुं॰—वनम्- पार्श्वम्—-—जंगल के आस पास का क्षेत्र, वनप्रदेश
- वनपुष्पम्—नपुं॰—वनम्- पुष्पम्—-—जंगली फूल
- वनपूरकः—पुं॰—वनम्- पूरकः—-—जंगली नीबू का पेड़
- वनप्रवेशः—पुं॰—वनम्- प्रवेशः—-—तपस्वी जीवन का आरम्भ
- वनप्रस्थः—पुं॰—वनम्- प्रस्थः—-—अधित्यका या पठार में स्थित जंगल
- वनप्रियः—पुं॰—वनम्- प्रियः—-—कोयल
- वनप्रियम्—नपुं॰—वनम्- प्रियम्—-—दारचीनी का पेड़
- वनबर्हिणः—पुं॰—वनम्- बर्हिणः—-—जंगली मोर
- वनवर्हिणः—पुं॰—वनम्- वर्हिणः—-—जंगली मोर
- वनभूः—स्त्री॰—वनम्- भूः—-—जंगल की भूमि
- वनमक्षिका—स्त्री॰—वनम्- मक्षिका—-—गोमक्षी, डांस
- वनमल्ली—स्त्री॰—वनम्- मल्ली—-—जंगली चेमली
- वनमाला—स्त्री॰—वनम्- माला—-—जंगली फूलों की माला
- वनमालाधरः—पुं॰—वन-माला-धरः—-—श्रीकृष्ण का विशेषण
- वनमालिन्—पुं॰—वनम्- मालिन्—-—कृष्ण का एक विशेषण
- वनमालिनी—स्त्री॰—वनम्- मालिनी—-—द्वारका नगर का नामांतर
- वनमुच्—वि॰—वनम्- मुच्—-—जल डालने वाला
- वनमूतः—पुं॰—वनम्- मूतः—-—बादल
- वनमुद्गः—पुं॰—वनम्- मुद्गः—-—एक प्रकार की मूंग
- वनमोचा—स्त्री॰—वनम्- मोचा—-—जंगली केला
- वनरक्षकः—पुं॰—वनम्- रक्षकः—-—वन का रखवाला
- वनराजः—पुं॰—वनम्-राजः—-—सिंह
- वनरुहम्—नपुं॰—वनम्-रुहम्—-—कमल का फूल
- वनलक्ष्मीः—स्त्री॰—वनम्-लक्ष्मीः—-—जंगल का आभूषण या सौंदर्य
- वनलक्ष्मीः—स्त्री॰—वनम्-लक्ष्मीः—-—केला
- वनलता—स्त्री॰—वनम्-लता—-—जंगली वेल, लता
- वनवह्निः—पुं॰—वनम्-वह्निः—-—दावानल
- वनहुताशनः—पुं॰—वनम्-हुताशनः—-—दावानल
- वनवासः—पुं॰—वनम्-वासः—-—जंगल में रहना, वन में वास
- वनवासः—पुं॰—वनम्-वासः—-—जंगली या यायावरीय (घुमक्कड़) जीवन
- वनवासः—पुं॰—वनम्-वासः—-—वनवासी
- वनवासनः—पुं॰—वनम्-वासनः—-—गंधबिलाव
- वनवासिन्—पुं॰—वनम्-वासिन्—-—जंगल में रहने वाला, वनवासी
- वनवासिन्—पुं॰—वनम्-वासिन्—-—तपस्वी
- वनव्रीहिः—पुं॰—वनम्-व्रीहिः—-—जंगली चावल
- वनशोभनम्—नपुं॰—वनम्-शोभनम्—-—कमल
- वनश्वन्—पुं॰—वनम्-श्वन्—-—गीदड़
- वनश्वन्—पुं॰—वनम्-श्वन्—-—व्याघ्र
- वनश्वन्—पुं॰—वनम्-श्वन्—-—गंधबिलाव
- वनसङ्कटः—पुं॰—वनम्-सङ्कटः—-—एक प्रकार की दाल, मसूर
- वनसद्—पुं॰—वनम्-सद्—-—वनवासी
- वनसंवासिन्—पुं॰—वनम्-संवासिन्—-—वनवासी
- वनसरोजिनी—स्त्री॰—वनम्-सरोजिनी—-—जंगली कपास का पौधा
- वनस्थः—पुं॰—वनम्-स्थः—-—हरिण
- वनस्थः—पुं॰—वनम्-स्थः—-—तपस्वी
- वनस्था—स्त्री॰—वनम्-स्था—-—बरगद का पेड़
- वनस्थली—स्त्री॰—वनम्-स्थली—-—जंगल, जंगल की भूमि
- वनस्रज्—स्त्री॰—वनम्-स्रज्—-—जंगली फूलों की माला
- वनरः—पुं॰—-—-—बन्दर, लंगूर
- वनस्पतिः—पुं॰—-—वनस्य पतिः, नि॰ सुट्—एक बड़ा जंगली वृक्ष, विशेषकर वह जिसे बिना बौर आये फल लगता है
- वनस्पतिः—पुं॰—-—-—वृक्ष, पेड़
- वनायुः—पुं॰—-—वन + इण् + उण्, वन् + आयुच् वा—एक जिले का नाम
- वनायुज—नपुं॰—वनायुः-ज—-—वनायु में उत्पन्न घोड़ा आदि
- वनिः—स्त्री॰—-—वन् + इ—कामना, इच्छा
- वनिका—स्त्री॰—-—वनी + कन् + टाप्, ह्रस्वः—छोटी जंगल
- वनिता—स्त्री॰—-—वन् + क्त + टाप्—स्त्री, महिला
- वनिता—स्त्री॰—-—-—पत्नी, गृहस्वामिनी
- वनिता—स्त्री॰—-—-—कोई भी प्रेयसी स्त्री
- वनिता—स्त्री॰—-—-—किसी भी जानवर की मादा
- वनिताद्विष्—पुं॰—वनिता-द्विष्—-—स्त्रियों से घृणा करने वाला
- वनिताविलासः—पुं॰—वनिता-विलासः—-—स्त्रियों का इच्छानुकूल मनोरंजन
- वनिन्—पुं॰—-—वन + इनि—वृक्ष
- वनिन्—पुं॰—-—-—सोम लता
- वनिन्—पुं॰—-—-—वानप्रस्थ, तीसरे आश्रम में रहने वाला
- वनिष्णु—पुं॰—-—वन् + इष्णुच्—मांगने वाला, याचना करने वाला
- वनी—पुं॰—-—वन + ङीष्—जंगल, अरण्य, (वृक्षों का) गुल्म या झुरमुट
- वनीपकः—पुं॰—-—-—भिक्षुक, साधु
- वनीयकः—पुं॰—-—वनि याचनामिच्छति - वनि + क्यच्, + ण्वुल्—भिक्षुक, साधु
- वनेकिंशुकाः—पुं॰—-—वने किंशुक इव, सप्तम्या अलुक्—`जंगल में किंशुक' अनायास ही मिलने वाला पदार्थ
- वनेचर—वि॰—-—वने चरति- चर् + ट, सप्तम्या अलुक्—जंगल में रहने वाला
- वनेचरः—पुं॰—-—-—वनवासी, जंगल में रहने वाला आदमी
- वनेचरः—पुं॰—-—-—संन्यासी, तपस्वी
- वनेचरः—पुं॰—-—-—वन्य पशु
- वनेचरः—पुं॰—-—-—वनदेवता, वनमानुष
- वनेचरः—पुं॰—-—-—पिशाच
- वनेज्यः—पुं॰, स॰ त॰—-—वने इज्यः—एक प्रकार का आम
- वन्द्—भ्वा॰ आ॰ <वंदते>,<वंदित>—-—-—प्रणाम करना, सादर नमस्कार करना, श्रद्धांजलि प्रदान करना
- वन्द्—भ्वा॰ आ॰ <वंदते>,<वंदित>—-—-—आराधना करना, पूजा करना
- वन्द्—भ्वा॰ आ॰ <वंदते>,<वंदित>—-—-—प्रशंसा करना, स्तुति करना
- अभिवन्द्—भ्वा॰ आ॰—अभि-वन्द्—-—प्रणाम करना, सादर नमस्कार करना
- वन्दकः—पुं॰—-—वन्द् + ण्वुल्—प्रशंसक
- वन्दथः—पुं॰—-—वन्द् + अथः—प्रशंसक, चारण या भाट, स्तुति गायक
- वन्दनम्—नपुं॰—-—वन्द् + ल्युट्—नमस्कार, अभिवादन
- वन्दनम्—नपुं॰—-—-—श्रद्धा, सत्कार
- वन्दनम्—नपुं॰—-—-—किसी ब्राह्मणादि को (चरणस्पर्श करते हुए) प्रणाम
- वन्दनम्—नपुं॰—-—-—प्रशंसा, स्तुति
- वन्दना—स्त्री॰—-—-—पूजा, अर्चना
- वन्दना—स्त्री॰—-—-—प्रंशसा
- वन्दनी—स्त्री॰—-—-—पूजा, अर्चना
- वन्दनी—स्त्री॰—-—-—प्रंशसा
- वन्दनी—स्त्री॰—-—-—याचना
- वन्दनी—स्त्री॰—-—-—मृतक को पुनर्जीवित करने वाली औषधि
- वन्दनमाला—स्त्री॰—वन्दनम्-माला—-—किसी द्वार पर लगाई गई फूलमाला
- वन्दनमालिका—स्त्री॰—वन्दनम्-मालिका—-—किसी द्वार पर लगाई गई फूलमाला
- वन्दनीय—वि॰—-—वन्द् + अनीयर्—अभिवादन के योग्य, सत्कार के योग्य
- वन्दनीया—स्त्री॰—-—वन्द् + अनीयर्+टाप्—हरताल, गोरोचना
- वन्दा—स्त्री॰—-—वन्द् + अच् + टाप्—भिक्षुणी, भीख माँगने वाली स्त्री
- वन्दारु—वि॰—-—वन्द् + आरु—प्रशंसा करने वाला
- वन्दारु—वि॰—-—वन्द् + आरु—श्रद्धालु, सम्मानपूर्ण, विनीत, शिष्ट
- वन्दारु—नपुं॰—-—वन्द् + आरु—प्रशंसा
- वन्दिन्—पुं॰—-—वन्द् + इन्—स्तुति गायक, चारण, भाट, अग्रदूत
- वन्दिन्—पुं॰—-—-—बंदी, कैदी
- वन्दी—स्त्री॰—-—वन्दि + ङीष्—बन्धन, कारावास
- वन्दी—स्त्री॰—-—वन्दि + ङीष्—क़ैदी, बंधुआ
- वन्दीपालः—पुं॰—वन्दी-पालः—-—काराध्यक्ष, जेलर
- वन्द्य—वि॰—-—वन्द् + ण्यत्—सत्कार के योग्य, श्रद्धेय
- वन्द्य—वि॰—-—-—सादर नमस्करणीय
- वन्द्य—वि॰—-—-—स्तुत्य, श्लाघ्य, प्रशंसनीय
- वन्द्रः—पुं॰—-—वंद् + रक्—पूजा करने वाला, भक्त
- वन्द्रम्—नपुं॰—-—-—समृद्धि
- वन्धुर—वि॰—-—-—डाँवाडोल, लहरदार, उँचा-नीचा
- वन्धुर—वि॰—-—-—झुका हुआ, रुझान वाल, विनत
- वन्धुर—वि॰—-—-—टेढ़ा, वक्र
- वन्धुर—वि॰—-—-—सुहावना, मनोहर, सुन्दर, प्रिय
- वन्धुर—वि॰—-—-—बहरा
- वन्धुर—वि॰—-—-—हानिकर, उत्पातप्रिय
- वन्धुरः—पुं॰—-—-—हंस
- वन्धुरः—पुं॰—-—-—सारस
- वन्धुरः—पुं॰—-—-—औषधि
- वन्धुरः—पुं॰—-—-—खली
- वन्धुरः—पुं॰—-—-—योनि
- वन्ध्य—वि॰—-—-—बांधे जाने योग्य, बेड़ी द्वारा जकड़े जाने योग्य, कैद किये जाने या बन्दी बनाये जाने के योग्य
- वन्ध्य—वि॰—-—-—मिलाकर बाँधने या जोड़ने के योग्य
- वन्ध्य—वि॰—-—-—निर्माण किये जाने के योग्य, बनाये जाने या संरचित किये जाने के योग्य
- वन्ध्य—वि॰—-—-—निरुद्ध, निगृहीत
- वन्ध्य—वि॰—-—-—बाँझ, बंजर जो उपजाऊ न हो, निष्फल, निरर्थक(व्यक्ति या वस्तु)
- वन्ध्य—वि॰—-—-—जिसका मासिक रजःस्राव आना बन्द हो गया हो
- वन्ध्य—वि॰—-—-—विहीन, विरहित
- वन्ध्या—स्त्री॰—-—वन्ध्य + टाप्—बाँझ स्त्री
- वन्ध्या—स्त्री॰—-—वन्ध्य + टाप्—बाँझ गौ
- वन्ध्या—स्त्री॰—-—वन्ध्य + टाप्—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
- वन्य—वि॰—-—वने भवः यत्—जंगल से संबंध रखने वाला, जंगल में उगने बाला या उत्पन्न, जंगली
- वन्य—वि॰—-—-—बर्बर, जो पालतू या घरैलू न हो
- वन्यः—पुं॰—-—-—जंगली जानवर
- वन्यम्—नपुं॰—-—-—जंगली पैदावार
- वन्येतर—वि॰—वन्य-इतर—-—पाकतूम् घरैलू
- वन्यगजः—पुं॰—वन्य-गजः—-—जंगली हाथी
- वन्यद्वीपः—पुं॰—वन्य-द्वीपः—-—जंगली हाथी
- वन्या—स्त्री॰—-—वन्य + टाप्—विशाल जंगल, झुरमुटों का समूह
- वन्या—स्त्री॰—-—-—जलराशि, वाढ़, जलप्रलय
- वप्—भ्वा॰ उभ॰ <वपति>,<वपते>,<उप्तः>, कर्मवा॰ <उप्यते>, इच्छा॰ <विवप्सति>,<विवप्सते>—-—-—बोना, (बीज) विखेरना, पौधा लगाना
- वप्—भ्वा॰ उभ॰ <वपति>,<वपते>,<उप्तः>, कर्मवा॰ <उप्यते>, इच्छा॰ <विवप्सति>,<विवप्सते>—-—-—फेंकना, (पांसा) डालना
- वप्—भ्वा॰ उभ॰ <वपति>,<वपते>,<उप्तः>, कर्मवा॰ <उप्यते>, इच्छा॰ <विवप्सति>,<विवप्सते>—-—-—जन्म देना, पैदा करना
- वप्—भ्वा॰ उभ॰ <वपति>,<वपते>,<उप्तः>, कर्मवा॰ <उप्यते>, इच्छा॰ <विवप्सति>,<विवप्सते>—-—-—बुनना
- वप्—भ्वा॰ उभ॰ <वपति>,<वपते>,<उप्तः>, कर्मवा॰ <उप्यते>, इच्छा॰ <विवप्सति>,<विवप्सते>—-—-—मूँडना, बाल काटना
- वप्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ < वापयति>,<वापयते>—-—-—बोना, पौधा लगाना, भूमि में डालना
- आवप्—भ्वा॰ उभ॰—आ-वप्—-—बिखेरना, इधर उधर फेंकना
- आवप्—भ्वा॰ उभ॰—आ-वप्—-—बोना
- आवप्—भ्वा॰ उभ॰—आ-वप्—-—यज्ञ आदि में आहुति देना
- उद्वप्—भ्वा॰ उभ॰—उद्-वप्—-—उडेलना
- निवप्—भ्वा॰ उभ॰—नि-वप्—-—(बीज) इधर-उधर बिखेरना
- निवप्—भ्वा॰ उभ॰—नि-वप्—-—(आहुति) देना, विशेषतः पितरों को
- निवप्—भ्वा॰ उभ॰—नि-वप्—-—बलि चढ़ाना, यज्ञ के पशु का वध करना
- निर्वप्—भ्वा॰ उभ॰—निस्-वप्—-—बिखेरना, (बीज चादि) छितराना
- निर्वप्—भ्वा॰ उभ॰—निस्-वप्—-—प्रस्तुत करना, पेश करना
- निर्वप्—भ्वा॰ उभ॰—निस्-वप्—-—तर्पण करना, विशेषकर पितरों का
- निर्वप्—भ्वा॰ उभ॰—निस्-वप्—-—अनुष्ठान करना
- प्रतिवप्—भ्वा॰ उभ॰—प्रति-वप्—-—बोना
- प्रतिवप्—भ्वा॰ उभ॰—प्रति-वप्—-—पौधा लगाना, जमाना, रोपना
- प्रतिवप्—भ्वा॰ उभ॰—प्रति-वप्—-—जमाना, (रत्नादिक) जड़ना
- प्रवप्—भ्वा॰ उभ॰—प्र-वप्—-—फेंकना, डालना, प्रस्तुत करना
- वपः—पुं॰—-—वप् + घ—बीज बोना
- वपः—पुं॰—-—-—जो बीज बोता है, बोने वाला
- वपः—पुं॰—-—-—मूँड़ना
- वपः—पुं॰—-—-—बुनना
- वपनम्—नपुं॰—-—वप् + ल्युट्—बीज बोना
- वपनम्—नपुं॰—-—-—मूँड़ना, काटना
- वपनम्—नपुं॰—-—-—वीर्य, शुक्र, बीज
- वपनी—स्त्री॰—-—-—नाई की दुकान
- वपनी—स्त्री॰—-—-—बुनने का उपकरण
- वपनी—स्त्री॰—-—-—तन्तु शाला
- वपा—स्त्री॰—-—वप् + अच् + टाप्—चर्बी, वसा
- वपा—स्त्री॰—-—-—छिद्र, रन्ध्र
- वपा—स्त्री॰—-—-—वमी, दीमकों द्वारा बनाया गया मिट्टी का टीला’
- वपाकृत्—पुं॰—वपा-कृत्—-—वसा, मज्जा
- वपिलः—पुं॰—-—वप् + इलच्—प्रजापति, पिता
- वपुनः—पुं॰—-—-—सुर, देवता
- वपुष्मत्—वि॰—-—वप् + उसि + मतुप्—मूर्त, देहधारी, शरीरधारी
- वपुष्मत्—वि॰—-—-—सुन्दर, मनोहर
- वपुष्मत्—पुं॰—-—-—विश्वेदेवों में से कोई एक
- वपुस्—नपुं॰—-—वप् + उसि —शरीर, देह
- वपुस्—नपुं॰—-—-—रूप, आकृति, सूरत या छवि
- वपुस्—नपुं॰—-—-—रस, प्रकृति
- वपुस्—नपुं॰—-—-—सौन्दर्य, सुन्दर रूप या छवि
- वपुर्गुणः—पुं॰—वपुस्-गुणः—-—रूप की श्रेष्ठता, वैयक्तिक सौन्दर्य
- वपुःप्रकर्षः—पुं॰—वपुस्-प्रकर्षः—-—रूप की श्रेष्ठता, वैयक्तिक सौन्दर्य
- वपुर्धर—वि॰—वपुस्-धर—-—मूर्त
- वपुर्धर—वि॰—वपुस्-धर—-—सुन्दर
- वपुःस्रवः—पुं॰—वपुस्-स्रवः—-—शरीर से चुने वाला तरल रस
- वप्तृ—पुं॰—-—वप् + तृच्—(बीज का) बोने वाला, पौधा लगाने वाला, किसान
- वप्तृ—पुं॰—-—-—पिता, प्रजापति
- वप्तृ—वि॰—-—-—कवि, अन्तःर्स्फूत या प्रणोदित ऋषि
- वप्रः—पुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—दुर्गाप्राचीर, मिट्टी की दीवार, गारे की भित्ति
- वप्रम्—नपुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—दुर्गाप्राचीर, मिट्टी की दीवार, गारे की भित्ति
- वप्रः—पुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—तटबंध या टीला (जिसमें कि साँड या हाथी टक्कर लगाते हैं)
- वप्रम्—नपुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—तटबंध या टीला (जिसमें कि साँड या हाथी टक्कर लगाते हैं)
- वप्रः—पुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—किसी पहाड़ या चट्टान का ढलान
- वप्रम्—नपुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—किसी पहाड़ या चट्टान का ढलान
- वप्रः—पुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—चोटी, शिखर, अधित्यका
- वप्रम्—नपुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—चोटी, शिखर, अधित्यका
- वप्रः—पुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—नदीतट, पार्श्व, किनारा, वेलातट
- वप्रम्—नपुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—नदीतट, पार्श्व, किनारा, वेलातट
- वप्रः—पुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—किसी भवन की नींव
- वप्रम्—नपुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—किसी भवन की नींव
- वप्रः—पुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—शहरपनाह या दुर्गप्राचीर से युक्त नगर का फाटक
- वप्रम्—नपुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—शहरपनाह या दुर्गप्राचीर से युक्त नगर का फाटक
- वप्रः—पुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—खाई
- वप्रम्—नपुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—खाई
- वप्रः—पुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—वृत्त का व्यास
- वप्रम्—नपुं॰—-—उप्यते अत्र वप् + रन्—वृत्त का व्यास
- वप्रः—पुं॰—-—-—खेत
- वप्रम्—नपुं॰—-—-—खेत
- वप्रः—पुं॰—-—-—मिट्टी का टीला
- वप्रम्—नपुं॰—-—-—मिट्टी का टीला
- वप्रः—पुं॰—-—-—पिता
- वप्रम्—नपुं॰—-—-—सीसा
- वप्राभिघातः—पुं॰—वप्र-अभिघातः—-—(किसी पहाड़ या नदी आदि के) तटबंध पर टक्कत मारना
- वप्रक्रिया—स्त्री॰—वप्र-क्रिया—-—किसी टीले या तटबन्ध पर हाथी ( या साँड़) का टक्कर मार कर विहार करना
- वप्रक्रीडा—स्त्री॰—वप्र-क्रीडा—-—किसी टीले या तटबन्ध पर हाथी ( या साँड़) का टक्कर मार कर विहार करना
- वप्रिः—स्त्री॰—-—वप् + क्रिन्—खेत
- वप्रिः—स्त्री॰—-—-—समुद्र
- वप्री—स्त्री॰—-—वप्रि + ङीषू—मिट्टी का टीला, पहाड़ी
- वभ्र—भ्वा॰ पर॰ <वभ्रति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- वम्—भ्वा॰ पर॰ <वमति>,<वाँत>, प्रेर॰ <वामयति>, <वमयति>—-—-—वमन करना, थूक देना, मुँह से बाहर निकालना
- वम्—भ्वा॰ पर॰ <वमति>,<वाँत>, प्रेर॰ <वामयति>, <वमयति>—-—-—बाहर भेजना, उडेलना, बाहर करना, उद्गीरण करना, बाहर निकालना, उत्सर्जन करना
- वम्—भ्वा॰ पर॰ <वमति>,<वाँत>, प्रेर॰ <वामयति>, <वमयति>—-—-—बाहर फेंकना, नीचे डाल देना
- वम्—भ्वा॰ पर॰ <वमति>,<वाँत>, प्रेर॰ <वामयति>, <वमयति>—-—-—अस्वीकृत करना
- उद्वम्—भ्वा॰ पर॰—उद्-वम्—-—थूक देना, उद्वमन करना
- उद्वम्—भ्वा॰ पर॰—उद्-वम्—-—कै करना, भेज देना, उडेल देना
- वमः—पुं॰—-—वम् + अप्—कै करना, वमन करना, बाहर निकालना
- वमथुः—पुं॰—-—वम् + अथुच्—कै करना, उद्वमन, थूकना
- वमथुः—पुं॰—-—-—हाथी के द्वारा अपनी सूँड से फेंका गया पानी
- वमनम्—नपुं॰—-—वम् + ल्युट्—कै करना, उलटी
- वमनम्—नपुं॰—-—-—बाहर खींचना, बाहर निकालना
- वमनम्—नपुं॰—-—-—उलटी लानेवाली
- वमनम्—नपुं॰—-—-—आहुति देना
- वमनः—पुं॰—-—-—गांजा
- वमनी—स्त्री॰—-—-—जोक
- वमनीया—स्त्री॰—-—वम् + अनीयर् + टाप्—मक्खी
- वमिः—पुं॰—-—वम् + इन्—आग
- वमिः—पुं॰—-—-—ठग, बदमाश
- वमिः—स्त्री॰—-—-—बीमारी, जी मिचलाना
- वमिः—स्त्री॰—-—-—उलटी लाने वाली ( औषधि)
- वमी—स्त्री॰—-—वमि + ङीष्—उलटी करना
- वम्भारवः—पुं॰—-—-—पशुओं के राँभने की आवाज
- वम्रः—पुं॰—-—वम् + रक्—चिऊँटी
- वम्री—स्त्री॰—-—वम्रि + ङीष्—चिऊँटी
- वम्रकूटम्—नपुं॰—वम्रः-कूटम्—-—बाँबी
- वय् —भ्वा॰ आ॰ <वयते> —-—-—जाना, हिलना-जुलना
- वयनम्—नपुं॰—-—वे + ल्युट्—बुनना
- वयस्—नपुं॰—-—अज् + असुन्, वीभावः—आयु, जीवन का कोई काल या समय
- वयस्—नपुं॰—-—-—जवानी, जीवन का प्रमुख अंश
- वयस्—नपुं॰—-—-—पक्षी
- वयस्—नपुं॰—-—-—कौवा
- वयोऽतिग—वि॰—वयस्-अतिग—-—बड़ी आयु का, बूढ़ा, जीर्ण, शक्तिहीन
- वयोऽतीत—वि॰—वयस्-अतीत—-—बड़ी आयु का, बूढ़ा, जीर्ण, शक्तिहीन
- वयोऽधिक—वि॰—वयस्-अधिक—-—आयु में अधिक, वयोवृद्ध, वरिष्ठ
- वयोऽवस्था—स्त्री॰—वयस्-अवस्था—-—जीवन की एक अवस्था, आयु की माप
- वयस्कर—वि॰—वयस्-कर—-—स्वास्थ्य देनेवाला, जीवन को पुष्ट करनेवाला, आयु बढ़ानेवाला
- वयोगत—वि॰—वयस्-गत—-—वयस्क
- वयोगत—वि॰—वयस्-गत—-—वयोवृद्ध
- वयःपरिणतिः—स्त्री॰—वयस्-परिणतिः—-—आयु की परिपक्वावस्था, वयोवृद्धता
- वयःपरिणामः—पुं॰—वयस्-परिणामः—-—आयु की परिपक्वावस्था, वयोवृद्धता
- वयःप्रमाणम्—नपुं॰—वयस्-प्रमाणम्—-—जीवन का माप या लम्बाई
- वयःप्रमाणम्—नपुं॰—वयस्-प्रमाणम्—-—जीवन की अवधि
- वयोवृद्ध—वि॰—वयस्-वृद्ध—-—बूढ़ा, बड़ी आयु का
- वयःसन्धिः—पुं॰—वयस्-सन्धिः—-—जीवन के एक काल से दूसरे काल में संक्रमण
- वयःसन्धिः—पुं॰—वयस्-सन्धिः—-—वयस्कता, परिपक्वावस्था (वयस्क होने का काल)
- वयःस्थ—वि॰—वयस्-स्थ—-—जवान
- वयःस्थ—वि॰—वयस्-स्थ—-—वयःप्राप्त, बालिग़
- वयःस्थ—वि॰—वयस्-स्थ—-—बलवान्, शक्तिशाली
- वयःस्था—स्त्री॰—वयस्-स्था—-—सखी, सहेली
- वयोहानिः—स्त्री॰—वयस्-हानिः—-—जवानी का ह्रास
- वयोहानिः—स्त्री॰—वयस्-हानिः—-—यौवन का ह्रास
- वयस्य—वि॰—-—वयसा तुल्यः यत्—समान आयु का
- वयस्य—वि॰—-—-—समसामयिक
- वयस्यः—पुं॰—-—-—मित्र, सखा, साथी
- वयस्या—स्त्री॰—-—-—सखी, सहेली
- वयुनम्—नपुं॰—-—वय् + उनन्—ज्ञान, बुद्धिमत्ता, प्रत्यक्षज्ञान की शक्ति
- वयुनम्—नपुं॰—-—-—मन्दिर
- वयोधस्—पुं॰—-—व यो यौवनं दधाति-वयस् + धा + असि—युवा या प्रौढ़ व्यक्ति
- वयोरङ्गम्—नपुं॰—-—वयसा रंगमिव—सीसा
- वर्—चुरा॰ उभ॰ <वरयति>,<वरयते>, वृ या वृ का प्रेर॰ रूप—-—-—माँगना, चुनना, छाँटना, खोच करना
- वर—वि॰—-—वृ कर्मणि अप्—सश्रेष्ठ, उत्तम, सुन्दरतम, या अत्यंत मूल्यवान्, छांटा हुआ, बढ़िया
- वर—वि॰—-—-—अपेक्षाकृत अच्छा, दूसरे से अच्छा
- वरः—पुं॰—-—-—चुनने और छाँटने की क्रिया
- वरः—पुं॰—-—-—छाँट, चुनाव
- वरः—पुं॰—-—-—वरदान, आशीर्वाद, अनुग्रह
- वरं वृ——-—-—वर मांगना
- वरं याच्——-—-—वर मांगना
- वरः—पुं॰—-—-—भेंट, उपहार, पारितोषिक, पुरस्कार
- वरः—पुं॰—-—-—कामना, इच्छा
- वरः—पुं॰—-—-—याचना, अनुरोध
- वरः—पुं॰—-—-—दूल्हा, पति
- वरः—पुं॰—-—-—पाणिग्रहणार्थो, विवाहार्थी
- वरः—पुं॰—-—-—स्त्रीधन, दहेज
- वरः—पुं॰—-—-—जामाता
- वरः—पुं॰—-—-—कामुक, कामासक्त
- वरः—पुं॰—-—-—चिड़िया
- वरम्—नपुं॰—-—-—जाफरान, केसर
- वराङ्ग—वि॰—वर-अङ्ग—-—उत्तम रूप वाला
- वराङ्गः—पुं॰—वर-अङ्गः—-—हाथी
- वराङ्गी—स्त्री॰—वर-अङ्गी—-—हल्दी
- वराङ्गम्—नपुं॰—वर-अङ्गम्—-—सिर
- वराङ्गम्—नपुं॰—वर-अङ्गम्—-—उत्तम भाग
- वराङ्गम्—नपुं॰—वर-अङ्गम्—-—प्रांजल रूप
- वराङ्गम्—नपुं॰—वर-अङ्गम्—-—योनि
- वराङ्गम्—नपुं॰—वर-अङ्गम्—-—हरी दारचीनी
- वराङ्गना—स्त्री॰—वर-अङ्गना—-—कमनीय स्त्री
- वरार्ह—वि॰—वर-अर्ह—-—वर पाने के योग्य
- वराजीवन—पुं॰—वर-आजीवन—-—ज्योतिषी
- वरारोह—वि॰—वर-आरोह—-—सुन्दर कूल्हों वाला
- वरारोहः—पुं॰—वर-आरोहः—-—उत्तम सवार
- वरारोहा—स्त्री॰—वर-आरोहा—-—सुन्दर स्त्री
- वरालिः—पुं॰—वर-आलिः—-—चाँद
- वरासनम्—नपुं॰—वर-आसनम्—-—उत्तम चौकी
- वरासनम्—नपुं॰—वर-आसनम्—-—मुख्य आसन, सम्मान की कुर्सी
- वरासनम्—नपुं॰—वर-आसनम्—-—चीनी गुलाब
- वरोरुः—स्त्री॰—वर-ऊरुः—-—सुन्दर स्त्री
- वरोरूः—स्त्री॰—वर-ऊरूः—-—सुन्दर स्त्री
- वरर्तुः—स्त्री॰—वर-ऋतुः—-—इन्द्र का विशेषण
- वरचन्दनम्—नपुं॰—वर-चन्दनम्—-—एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी
- वरचन्दनम्—नपुं॰—वर-चन्दनम्—-—देवदारु, चीड़ का पेड़
- वरतनु—वि॰—वर-तनु—-—सुन्दर अवयवों वाला
- वरतनुः—स्त्री॰—वर-तनुः—-—सुन्दर स्त्री
- वरतन्तुः—पुं॰—वर-तन्तुः—-—एक प्राचीन मुनि का नाम
- वरत्वचः—पुं॰—वर-त्वचः—-—नीम का पेड़
- वरद—वि॰—वर-द—-—वर देने वाला, वरदान प्रदान करने वाला
- वरद—वि॰—वर-द—-—मंगलप्रद
- वरदः—पुं॰—वर-दः—-—उपकारी
- वरदः—पुं॰—वर-दः—-—पितृवर्ग
- वरदा—स्त्री॰—वर-दा—-—नदी का नाम
- वरदा—स्त्री॰—वर-दा—-—कुमारी, कन्या
- वरदक्षिणा—स्त्री॰—वर-दक्षिणा—-—दुलहिन के पिता द्वारा दूल्हे को दिया गया उपहार
- वरदानम्—नपुं॰—वर-दानम्—-—वर प्रदान करना
- वरद्रुमः—पुं॰—वर-द्रुमः—-—अगर का वृक्ष
- वरनिश्चयः—पुं॰—वर-निश्चयः—-—दूल्हे का चुनाव
- वरपक्षः—पुं॰—वर-पक्षः—-—(विवाह में) दूल्हे के दल के लोग
- वरप्रस्थानम्—नपुं॰—वर-प्रस्थानम्—-—विवाह संस्कार के लिए दूल्हे का जलूस के रूप में दुलहिन के घर की ओर कूच करना
- वरयात्रा—स्त्री॰—वर-यात्रा—-—विवाह संस्कार के लिए दूल्हे का जलूस के रूप में दुलहिन के घर की ओर कूच करना
- वरफलः—पुं॰—वर-फलः—-—नारियल का पेड़
- वरबाह्लिकम्—नपुं॰—वर-बाह्लिकम्—-—जाफरान, केसर
- वरयुवतिः—स्त्री॰—वर-युवतिः—-—सुन्दर तरुणी स्त्री
- वरयुवती—स्त्री॰—वर-युवती—-—सुन्दर तरुणी स्त्री
- वररुचिः—स्त्री॰—वर-रुचिः—-—एक कवि और वैयाकरण का नाम
- वरलब्ध—वि॰—वर-लब्ध—-—जिसने वरदान प्राप्त कर लिया है
- वरलब्धः—पुं॰—वर-लब्धः—-—चम्पक वृक्ष
- वरवत्सला—स्त्री॰—वर-वत्सला—-—सास, श्वश्रू
- वरवर्णम्—नपुं॰—वर-वर्णम्—-—सोना
- वरवर्णिनी—स्त्री॰—वर-वर्णिनी—-—उत्तम और सुन्दर रंगरूप वाली स्त्री
- वरवर्णिनी—स्त्री॰—वर-वर्णिनी—-—स्त्री
- वरवर्णिनी—स्त्री॰—वर-वर्णिनी—-—हल्दी
- वरवर्णिनी—स्त्री॰—वर-वर्णिनी—-—लाख़
- वरवर्णिनी—स्त्री॰—वर-वर्णिनी—-—लक्ष्मी का नामांतर
- वरवर्णिनी—स्त्री॰—वर-वर्णिनी—-—दुर्गा का नामांतर
- वरवर्णिनी—स्त्री॰—वर-वर्णिनी—-—सरस्वती का नाम
- वरवर्णिनी—स्त्री॰—वर-वर्णिनी—-—‘प्रियंगु’ नाम का लता
- वरस्रज्—स्त्री॰—वर-स्रज्—-—दूल्हे की माला (वह माला जो दुलहिन, दूल्हे के गले में डालती है)
- वरकः—पुं॰—-—वृ + वुन्—इच्छा, प्रार्थना, वर
- वरकः—पुं॰—-—-—चोगा
- वरकः—पुं॰—-—-—लोबिये की एक प्रकार
- वरकम्—नपुं॰—-—-—नाव को ढकने की चादर
- वरकम्—नपुं॰—-—-—तौलिया, अंगोछा
- वरटः—पुं॰—-—वृ + अटन्—हंस
- वरटः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का अनाज
- वरटः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की बर्र, भिड़
- वरटा—स्त्री॰—-—-—हंसिनी
- वरटा—स्त्री॰—-—-—भिड़, बर्र या उसके प्रकार
- वरटी—स्त्री॰—-—-—हंसिनी
- वरटी—स्त्री॰—-—-—भिड़, बर्र या उसके प्रकार
- वरटम्—नपुं॰—-—-—कुंद का फूल
- वरणम्—नपुं॰—-—वृ + ल्युट्—छांटना, चुनना
- वरणम्—नपुं॰—-—-—मांगना, याचना करना, प्रार्थना करना
- वरणम्—नपुं॰—-—-—घेरना, घेरा डालना
- वरणम्—नपुं॰—-—-—ढकना, परदा डालना, प्ररक्षा
- वरणम्—नपुं॰—-—-—दुलहिन का चुनाव
- वरणः—पुं॰—-—-—परकोटा, फ़सील
- वरणः—पुं॰—-—-—पुल
- वरणः—पुं॰—-—-—वरुण नामक वृक्ष
- वरणः—पुं॰—-—-—वृक्ष
- वरणः—पुं॰—-—-—ऊँट
- वरणमाला—स्त्री॰—वरणम्-माला—-—दूल्हे की माला (वह माला जो दुलहिन, दूल्हे के गले में डालती है)
- वरणस्रज्—स्त्री॰—वरणम्-स्रज्—-—दूल्हे की माला (वह माला जो दुलहिन, दूल्हे के गले में डालती है)
- वरणसी—स्त्री॰—-—-—बनारस का पावन नगर
- वरडः—पुं॰—-—वृ + अंडच्—समुदाय, वर्ग
- वरडः—पुं॰—-—-—मुँह पर निकली फुंसी
- वरडः—पुं॰—-—-—वरामदा
- वरडः—पुं॰—-—-—घास का ढेर
- वरडः—पुं॰—-—-—झोला
- वरण्डकः—पुं॰—-—वरंड + कन्—मिट्टी का टीला
- वरण्डकः—पुं॰—-—-—हाथी की पीठ पर बना हौदा
- वरण्डकः—पुं॰—-—-—दीवार
- वरण्डकः—पुं॰—-—-—मुँह पर मुंहासा
- वरण्डा—स्त्री॰—-—वरंड + टाप्—बर्छी, छुरी
- वरण्डा—स्त्री॰—-—-—एक पक्षी-सारिका
- वरण्डा—स्त्री॰—-—-—दीपक की बत्ती
- वरत्रा—स्त्री॰—-—वृ + अत्रन् + टाप्—फ़ीता, (चमड़े का) तस्मा या पट्टी
- वरत्रा—स्त्री॰—-—-—घोड़े या हाथी का तंग
- वरम्—अव्य॰—-—वृ + अप्—अपेक्षाकृत, श्रेष्ठतर, श्रेयस्कर, अधिक अच्छा
- वरलः—पुं॰—-—वृ + अलच्—एक प्रकार की बर्र, भिड़
- वरला—स्त्री॰—-—-—हंसिनी
- वरला—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की भिड़, बर्र
- वरा—स्त्री॰—-—वृ + अच् + टाप्—त्रिफला
- वरा—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का सुगंध द्रव्य
- वरा—स्त्री॰—-—-—हल्दी
- वरा—स्त्री॰—-—-—पार्वती का नाम
- वराक—वि॰ —-—वृ + षाकन्—बेचारा, दयनीय आर्त, मन्दभाग्य दुःखी, अभागा
- वराकः—पुं॰—-—-—शिव
- वराकः—पुं॰—-—-—संग्राम, युद्ध
- वराटः—पुं॰—-—वरमल्पमटति-अट् + अण्—कौड़ी
- वराटः—पुं॰—-—-—रस्सी, डोरी
- वराटकः—पुं॰—-—वराट + कन्—कोड़ी
- वराटकः—पुं॰—-—-—कमल फूल का बीजकोष
- वराटकः—पुं॰—-—-—डोरी, रस्सी
- वराटकरजस्—पुं॰—वराटकः-रजस्—-—नाग केसर नामक वृक्ष
- वराटिका—स्त्री॰—-—वराट् + कन् + टाप्—कौड़ी
- वराणः—पुं॰—-—वृ + शानच्—इन्द्र का विशेषण
- वराणसी—स्त्री॰—-—-—बनारस का पावन नगर
- वरारकम्—नपुं॰—-—वर + ऋ + ण्वुल्—हीरा
- वरालः—पुं॰—-—वृ + आलच् स्वार्थे कन् च—लौंग
- वरालकः—पुं॰—-—वृ + आलच् स्वार्थे कन् च—लौंग
- वराशिः—पुं॰—-—वरम् आवरणमश्नुते वर + अस् + इन्—मोटा कपड़ा
- वरासिः—पुं॰—-—वरम् आवरणमश्नुते वर + अस् + इन्—मोटा कपड़ा
- वराहः—पुं॰—-—वराय अभीष्टाय मुस्तादिलाभाय आहन्ति भूमिन्-आ + हन् + ड—सूअर, बधिया किया गया सूअर
- वराहः—पुं॰—-—-—मेंढ़ा
- वराहः—पुं॰—-—-—बैल
- वराहः—पुं॰—-—-—बादल
- वराहः—पुं॰—-—-—मगरमच्छ
- वराहः—पुं॰—-—-—शूकराकृति में बना सैनिक व्यूह
- वराहः—पुं॰—-—-—विष्णु का तीसरा वराह अवतार
- वराहः—पुं॰—-—-—एक विशेष माप
- वराहः—पुं॰—-—-—वराहमिहिर का नामान्तर
- वराहः—पुं॰—-—-—अठारह, पुराणों में से एक
- वराहावतारः—पुं॰—वराहः-अवतारः—-—विष्णु का तीसरा अवतार, वराहावतार
- वराहकन्दः—पुं॰—वराहः-कन्दः—-—वाराहीकंद, एक खाद्य पदार्थ
- वराहकर्णः—पुं॰—वराहः-कर्णः—-—एक प्रकार का बाण
- वराहकर्णिका—स्त्री॰—वराहः-कर्णिका—-—एक प्रकार का अस्त्र
- वराहकल्पः—पुं॰—वराहः-कल्पः—-—वराहावतार का समय, वह काल जब विष्णु का वराह का अवतार धारण किया
- वराहमिहिरः—पुं॰—वराहः-मिहिरः—-—एक विख्यात ज्योतिर्वेत्ता, बृहत्संहिता का प्रणेता
- वराहशृङ्गः—पुं॰—वराहः-शृङ्गः—-—शिव का नाम
- वरिमन्—पुं॰—-—वर + इननिच्—श्रेष्ठता, सर्वोपरिता, प्रमुखता
- वरिवसित—वि॰—-—वरिवस् + इतच्—पूजा गया, सम्मानित, अर्चित, सत्कृत
- वरिवस्यित—वि॰—-—वरिवस्या + इतच्—पूजा गया, सम्मानित, अर्चित, सत्कृत
- वरिवस्या—स्त्री॰—-—वरिवसः पूजायाः करणम्- वरिवस् + क्यच् + अ + टाप्—पूजा, सम्मान, अर्चना, भक्ति
- वरिष्ठ—वि॰—-—अयमेषामतिशयेन वरः उरुर्वा-उरु + इष्ठन् वरादेशः उरु की उ॰ भ॰—सर्वोत्तम, अत्यंत श्रेष्ठ, अत्यन्त पूज्य, प्रमुख
- वरिष्ठ—वि॰—-—-—अत्यन्त विशाल, उरुतम्
- वरिष्ठ—वि॰—-—-—अत्यन्त विस्तृत
- वरिष्ठ—वि॰—-—-—गुरुतम
- वरिष्ठः—पुं॰—-—-—तित्तिर पक्षी, तीतर
- वरिष्ठः—पुं॰—-—-—संतरे का पेड़
- वरिष्ठम्—नपुं॰—-—-—तांबा
- वरिष्ठम्—नपुं॰—-—-—मिर्च
- वरी—स्त्री॰—-—वृ + अच् + ङीष्—सूर्य की पत्नी छाया
- वरी—स्त्री॰—-—-—शतावरी नाम का पौधा
- वरीयस्—वि॰—-—अयमनयोरतिशयेन वरः उरुर्वा उरु + ईयसुन्, वरादेशः, उरु की म॰ अ॰—अपेक्षाकृत अच्छा, अधिक श्रेष्ठ, अधिमान्य
- वरीयस्—वि॰—-—-—अत्युत्तम्, बहुर अच्छा
- वरीयस्—वि॰—-—-—अपेक्षाकृत बड़ा, चौड़ा या विस्तृत
- वरीवर्दः—पुं॰—-—वृ + क्विप्=वर्, ई वश्च=ईवरौ, तौ ददाति दा + क=ईवर्दः, बली चासौ ईवर्दश्च, कर्म॰ त॰ —बैल, साँड
- वरीषुः—पुं॰—-—वरः + श्रेष्ठः इषु यस्य, पृषो॰—कामदेव का नाम
- वरुटः—पुं॰—-—-—म्लेच्छ जाति का नाम
- वरुडः—पुं॰—-—-—एक नीच जाति का नाम
- वरुणः—पुं॰—-—वृ + उनन्—आदित्य का नाम
- वरुणः—पुं॰—-—-—(परवर्ती पौराणिकता के अनुसार) समुद्र की अधिष्ठात्री देवता, पश्चिम दिशा का देवता (हाथ में पाश लिए हुए)
- वरुणः—पुं॰—-—-—समुद्र
- वरुणः—पुं॰—-—-—अन्तरिक्ष
- वरुणाङ्गरुहः—पुं॰—वरुणः-अङ्गरुहः—-—अगस्त्य का विशेषण
- वरुणात्मजा—स्त्री॰—वरुणः-आत्मजा—-—मदिरा
- वरुणालयः—पुं॰—वरुणः-आलयः—-—समुद्र
- वरुणावासः—पुं॰—वरुणः-आवासः—-—समुद्र
- वरुणपाशः—पुं॰—वरुणः-पाशः—-—घड़ियाल
- वरुणलोकः—पुं॰—वरुणः-लोकः—-—वरुण का संसार
- वरुणलोकः—पुं॰—वरुणः-लोकः—-—जल
- वरुणानी—स्त्री॰—-—वरुण + ङीष्, आनुक्—वरुण की पत्नी
- वरुत्रम्—नपुं॰—-—वृ + उत्र—उत्तरीय वस्त्र, दुपट्टा
- वरुतथम्—नपुं॰—-—वृ + ऊथन्—एक प्रकार का लकड़ी का बन आवरण जो रथ की टक्कर हो जाने पर रथ की रक्षा करे
- वरुतथम्—पुं॰—-—-—एक प्रकार का लकड़ी का बन आवरण जो रथ की टक्कर हो जाने पर रथ की रक्षा करे
- वरुतथम्—नपुं॰—-—-—कवच, बख्तर
- वरुतथम्—नपुं॰—-—-—ढाल
- वरुतथम्—नपुं॰—-—-—वर्ग, समुच्चय, समवाय
- वरुतथः—पुं॰—-—-—कौयल
- वरुतथः—पुं॰—-—-—काल
- वरूथिन्—वि॰—-—वरूथ + इन्—कवचधारी, बख्तरयुक्त
- वरूथिन्—वि॰—-—-—अंगारगुप्ति या बचाऊ जंगले से सुसज्जित
- वरूथिन्—वि॰—-—-—बचाने वाला, आश्रय देने वाला
- वरूथिन्—वि॰—-—-—गाड़ी में बैठा हुआ
- वरूथिन्—पुं॰—-—-—रथ
- वरूथिन्—पुं॰—-—-—अभिरक्षक, प्रतिरक्षक
- वरूथिनी—स्त्री॰—-—-—सेना
- वरेण्य—वि॰—-—वृ + एन्य—अभिलषणीय, वांछनीय, पात्र वरणीय
- वरेण्य—वि॰—-—-—(अतः) सर्वोत्तम, श्रेष्ठतम, प्रमुख, पूज्यतम, मुख्य
- वरेण्यम्—नपुं॰—-—-—ज़ाफ़रान, केसर
- वरोटः—पुं॰—-—वराणि श्रेष्ठानि उटानि दलानि यस्य ब॰ स॰ —मरुवे का पौधा
- वरोटम्—नपुं॰—-—-—मरुए का फूल
- वरोलः—पुं॰—-—वृ + ओलच्—बर्र, भिड़
- वर्करः—पुं॰—-—वृक् + अरन्—भेड़ या बकरी का बच्चा मेमना
- वर्करः—पुं॰—-—-—बकरा
- वर्करः—पुं॰—-—-—कोई पातलू जानवर का बच्चा
- वर्करः—पुं॰—-—-—आमोद, क्रीडाविहार, मनोरंजन
- वर्करकर्करः—पुं॰—वर्करः-कर्करः—-—चमड़े की रस्सी या तस्मा जिससे बकरी या भेड़ बांधी जाय
- वर्कराटः—पुं॰—-—वर्करं परिहासम् अटति गच्छति वर्कर + अट् + अण्—तिरछी नजर, कटाक्ष
- वर्कराटः—पुं॰—-—-—स्त्री के कुचों पर उसके प्रेमी के नखक्षतों के चिह्न
- वर्कुटः—पुं॰—-—-—कील, अर्गला, चटखनी
- वर्गः—पुं॰—-—वृज् + घञ्—श्रेणी, प्रभाग, समूह, दल, समाज, जाति, संग्रह (एक समान वस्तुओं का)
- वर्गः—पुं॰—-—-—टोली, पक्ष
- वर्गः—पुं॰—-—-—प्रवर्ग
- वर्गः—पुं॰—-—-—एक स्थान पर वर्गीकृत शब्दसमूह
- वर्गः—पुं॰—-—-—वर्णमाला में व्यंजनों का समूह
- वर्गः—पुं॰—-—-—अनुभाग, अध्याय, या पुस्तक का परिच्छेद
- वर्गः—पुं॰—-—-—विशेषरूप से ऋग्वेद के अध्यायान्तर्गत अवभाग, सूक्त
- वर्गः—पुं॰—-—-—घात-दो समान अंकों का गुणनफल
- वर्गः—पुं॰—-—-—सामर्थ्य
- वर्गान्त्यम्—नपुं॰—वर्गः-अन्त्यम्—-—पाचों वर्गों में से प्रत्येक का अन्तिम् वर्ण अर्थात् अनुसानिक अक्षर
- वर्गोत्तमम्—नपुं॰—वर्गः-उत्तमम्—-—पाचों वर्गों में से प्रत्येक का अन्तिम् वर्ण अर्थात् अनुसानिक अक्षर
- वर्गघनः—पुं॰—वर्गः-घनः—-—वर्ग का घनफल
- वर्गपदम्—नपुं॰—वर्गः-पदम्—-—वर्गमूल, वह अंक जिसके घात से की वर्गांक बने
- वर्गमूलम्—नपुं॰—वर्गः-मूलम्—-—वर्गमूल, वह अंक जिसके घात से की वर्गांक बने
- वर्गवर्गः—पुं॰—वर्गः-वर्गः—-—वर्ग का वर्ग
- वर्गणा—स्त्री॰—-—-—गुणन, घात
- वर्गशस्—अव्य॰—-—वर्ग +शस्—समूहों में श्रेणीवार
- वर्गीय—वि॰—-—वर्ग + छ—किसी श्रेणी या प्रवर्ग से संबद्ध
- वर्गीयः—पुं॰—-—-—सहपाठी
- वर्ग्य—वि॰—-—वर्गे भवः यत्—एक ही श्रेणी का
- वर्ग्यः—पुं॰—-—-—एक ही श्रेणी या दल से संबद्ध, सहयोगी, सहपाठी, सहाध्यायी (शिक्षा में)
- वर्च्—भ्वा॰ आ॰ <वर्चते>—-—-—चमकाना, उज्ज्वल या आभायुक्त होना
- वर्चस्—नपुं॰—-—वर्च् + असुन्—वीर्य, बल, शक्ति
- वर्चस्—नपुं॰—-—-—प्रकाश, कान्ति, उजाला, आभा
- वर्चस्—नपुं॰—-—-—रूपः, आकृति, शकल
- वर्चस्—नपुं॰—-—-—विष्ठा, मल
- वर्चोग्रहः—पुं॰—वर्चस्-ग्रहः—-—कोष्ठ बद्धता, कब्ज
- वर्चस्कः—पुं॰—-—वर्चस् + कन्—उजाला, कान्ति
- वर्चस्कः—पुं॰—-—-—वीर्य
- वर्चस्कः—पुं॰—-—-—विष्ठा
- वर्चस्मिन्—वि॰—-—वर्चस् + विनि—शक्तिशाली, ओजस्वी, सक्रिय
- वर्चस्मिन्—वि॰—-—-—देदीप्यमान्, उज्ज्वल, तेजस्वी
- वर्जः—पुं॰—-—वृज् + घञ्—छोड़ देना, परित्याग
- वर्जनम्—नपुं॰—-—वृज् + ल्युट्—छोड़ना, त्याग, तिलाजंलि
- वर्जनम्—नपुं॰—-—-—वैराग्य
- वर्जनम्—नपुं॰—-—-—अपवाद, बहिष्करण
- वर्जनम्—नपुं॰—-—-—चोट, क्षति, हत्या
- वर्जम्—अव्य॰—-—-—निकाल कर, बाहर करके, सिवाय
- वर्जित—भू॰ क॰ कृ॰—-—वृज् + क्त—छोड़ा हुआ, अलगाया हुआ
- वर्जित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परियत्यक्त, उत्सृष्ट
- वर्जित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बहिष्कृत
- वर्जित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वंचित, विरहित, हीन
- वर्ज्य—वि॰—-—वृज् +ण्यत्—टाले जाने के योग्य, बिदकाये जाने के योग्य
- वर्ज्य—वि॰—-—-—बहिष्कृत किये जाने के योग्य या छोड़े जाने के योग्य
- वर्ज्य—वि॰—-—-—छोड़कर, सिवाय….के
- वर्ण्—चुरा॰ उभ॰ <वर्णयति>,<वर्णयते>,<वर्णित>—-—-—रंग करना, रोगन करना, रंगना
- वर्ण्—चुरा॰ उभ॰ <वर्णयति>,<वर्णयते>,<वर्णित>—-—-—बयान करना, वर्णन करना, व्याख्या करना, लिखना, चित्रित करना, अंकित करना, निरूपण करना
- वर्ण्—चुरा॰ उभ॰ <वर्णयति>,<वर्णयते>,<वर्णित>—-—-—प्रशंसा करना, स्तुति करना
- वर्ण्—चुरा॰ उभ॰ <वर्णयति>,<वर्णयते>,<वर्णित>—-—-—फैलाना, विस्तृत करना
- वर्ण्—चुरा॰ उभ॰ <वर्णयति>,<वर्णयते>,<वर्णित>—-—-—रोशनी करना
- उपवर्ण्—चुरा॰ उभ॰—उप-वर्ण्—-—बयान करना, वर्णन करना
- निर्वर्ण्—चुरा॰ उभ॰—निर्-वर्ण्—-—ध्यान से देखना, सावधानता पूर्वक अंकित करना
- निर्वर्ण्—चुरा॰ उभ॰—निस्-वर्ण—-—देखना, निहारना
- वर्णः—पुं॰—-—वर्ण् + घञ्—रंग, रोगन
- वर्णः—पुं॰—-—-—रोगन, रंग
- वर्णः—पुं॰—-—-—रंग रूप, सौन्दर्य
- वर्णः—पुं॰—-—-—मनुष्य श्रेणी, जनजाति या कबीला, जाति
- वर्णः—पुं॰—-—-—श्रेणी, वंश, जनजाति, प्रकार, जाति
- वर्णः—पुं॰—-—-—अक्षर, वर्ण, ध्वनि में
- वर्णः—पुं॰—-—-—शब्द, मात्रा
- वर्णः—पुं॰—-—-—ख्याति, कीर्ति, प्रसिद्धि, विश्रुति
- वर्णः—पुं॰—-—-—प्रशंसा
- वर्णः—पुं॰—-—-—वेशभूषा, सजावट
- वर्णः—पुं॰—-—-—बाहरी छवि, रूप, आकृति
- वर्णः—पुं॰—-—-—चादर, दुपट्टा
- वर्णः—पुं॰—-—-—ढकने के लिए ढक्कन, चपनी
- वर्णः—पुं॰—-—-—किसी विषय का क्रमगीत में, गीतक्रम
- वर्णः—पुं॰—-—-—हाथी की झूल
- वर्णः—पुं॰—-—-—गुण, धर्म
- वर्णः—पुं॰—-—-—धर्मानुष्ठान
- वर्णः—पुं॰—-—-—अज्ञात राशि
- वर्णम्—नपुं॰—-—-—केसर, जाफरान
- वर्णम्—नपुं॰—-—-—रंगदार उबटन या सुगन्धद्रव्य
- वर्णाङ्का—स्त्री॰—वर्णः-अङ्का—-—लेखनी
- वर्णापसदः—पुं॰—वर्णः-अपसदः—-—जातिच्युत
- वर्णापेतः—वि॰—वर्णः-अपेतः—-—जातिशून्य, जातिच्युत, पतित
- वर्णार्हः—पुं॰—वर्णः-अर्हः—-—एक प्रकार का लोबिया
- वर्णागमः—पुं॰—वर्णः-आगमः—-—किसी अक्षर का जोड़ना
- वर्णात्मन्—पुं॰—वर्णः-आत्मन्—-—शब्द
- वर्णोदकम्—नपुं॰—वर्णः-उदकम्—-—रंगीन पानी
- वर्णकूपिका—स्त्री॰—वर्णः-कूपिका—-—दवात
- वर्णक्रमः—पुं॰—वर्ण-क्रमः—-—वर्ण व्यवस्था, रंगों का क्रम
- वर्णक्रमः—पुं॰—वर्ण-क्रमः—-—वर्णमाला
- वर्णचारकः—पुं॰—वर्ण-चारकः—-—चितेरा
- वर्णज्येष्ठः—पुं॰—वर्ण-ज्येष्ठः—-—ब्राह्मण
- वर्णतूलिः—स्त्री॰—वर्ण-तूलिः—-—कूची, चितेरे का ब्रुश
- वर्णतूलिका—स्त्री॰—वर्ण-तूलिका—-—कूची, चितेरे का ब्रुश
- वर्णतूली—स्त्री॰—वर्ण-तूली—-—कूची, चितेरे का ब्रुश
- वर्णद—वि॰ —वर्ण-द—-—रंगसाज
- वर्णदम्—नपुं॰—वर्ण-दम्—-—दारुहल्दी
- वर्णदात्री—स्त्री॰—वर्ण-दात्री—-—हल्दी
- वर्णदूतः—पुं॰—वर्ण-दूतः—-—पत्र
- वर्णधर्मः—पुं॰—वर्ण-धर्मः—-—प्रत्येक जाति के विशिष्ट कर्तव्य
- वर्णपातः—पुं॰—वर्ण-पातः—-—किसी अक्षर का लोप हो जाना
- वर्णपुष्पम्—नपुं॰—वर्ण-पुष्पम्—-—पारिजात का फूल
- वर्णपुष्पकः—पुं॰—वर्ण-पुष्पकः—-—पारिजात
- वर्णप्रकर्षः—पुं॰—वर्ण-प्रकर्षः—-—रंग की श्रेष्ठता
- वर्णप्रसादनम्—नपुं॰—वर्ण-प्रसादनम्—-—अगर की लकड़ी
- वर्णमातृ—स्त्री॰—वर्ण-मातृ—-—लेखनी, पैंसिल, कूची
- वर्णमातृका—स्त्री॰—वर्ण-मातृका—-—सरस्वती
- वर्णमाला—स्त्री॰—वर्ण-माला—-—अक्षरों की यथाक्रमसूची, वर्णमाला
- वर्णराशिः—स्त्री॰—वर्ण-राशिः—-—अक्षरों की यथाक्रमसूची, वर्णमाला
- वर्णवर्तिः—स्त्री॰—वर्ण-वर्तिः—-—रंग भरने की तूलिका
- वर्णवर्तिका—स्त्री॰—वर्ण-वर्तिका—-—रंग भरने की तूलिका
- वर्णविपर्ययः—पुं॰—वर्ण-विपर्ययः—-—वर्णो का उलट फेर
- वर्णविलासिनी—स्त्री॰—वर्ण-विलासिनी—-—हल्दी
- वर्णविलोडकः—पुं॰—वर्ण-विलोडकः—-—सेंध लगाकर घर में घुसने वाला
- वर्णविलोडकः—पुं॰—वर्ण-विलोडकः—-—साहित्य चोर
- वर्णवृत्तम्—नपुं॰—वर्ण-वृत्तम्—-—वर्णों की गणना के आधार पर बिनियमित छन्द या वृत्त
- वर्णव्यवस्थितिः—स्त्री॰—वर्ण-व्यवस्थितिः—-—वर्णव्यवस्था, वर्णविभाग
- वर्णशिक्षा—स्त्री॰—वर्ण-शिक्षा—-—वर्णमाला सिखलाना
- वर्णश्रेष्ठः—पुं॰—वर्ण-श्रेष्ठः—-—ब्राह्मण
- वर्णसंयोगः—पुं॰—वर्ण-संयोगः—-—एक ही वर्ण के लोगों में विवाहसंबंध होना
- वर्णसङ्करः—पुं॰—वर्ण-सङ्करः—-—अन्तर्जातीय विवाह के कारण वर्णों का सम्मिश्रण
- वर्णसङ्करः—पुं॰—वर्ण-सङ्करः—-—रंगों का मिश्रण
- वर्णसङ्घातः—पुं॰—वर्ण-सङ्घातः—-—वर्णमाला
- वर्णसमाम्नायः—पुं॰—वर्ण-समाम्नायः—-—वर्णमाला
- वर्णकः—पुं॰—-—वर्णयति-वर्ण् + ण्वुल्—मु्खावरण, नकाब अभिनेता की वेशभूषा
- वर्णकः—पुं॰—-—-—चित्रकारी, चित्रकारी के लिए रंग
- वर्णकः—पुं॰—-—-—रंगलेप या कोई उबटन के रूप में प्रयुक्त होने वाली वस्तु
- वर्णकः—पुं॰—-—-—भाट, चारण, स्तुतिगायक
- वर्णकः—पुं॰—-—-—चन्वन (वृक्ष)
- वर्णका—स्त्री॰—-—-—कस्तूरी
- वर्णका—स्त्री॰—-—-—रंगलेप, चित्रकारी के लिए रंग
- वर्णका—स्त्री॰—-—-—उत्तरीय वस्त्र, दुपट्टा
- वर्णकम्—नपुं॰—-—-—रंगलेप, रंग, वर्ण
- वर्णकम्—नपुं॰—-—-—चन्दन
- वर्णकम्—नपुं॰—-—-—परिच्छेद, अध्याय, प्रभाग
- वर्णनम्—नपुं॰—-—वर्ण् + ल्युट्—चित्रकारी
- वर्णनम्—नपुं॰—-—-—वर्णन, आलेखन, चित्रण
- वर्णनम्—नपुं॰—-—-—लिखना
- वर्णनम्—नपुं॰—-—-—वक्तव्य, उक्ति
- वर्णनम्—नपुं॰—-—-—प्रशंसा, सस्ताव
- वर्णना—स्त्री॰—-—-—प्रशंसा, सस्ताव
- वर्णसिः—पुं॰—-—वृञ् + असि, नुक्—जल
- वर्णाटः—पुं॰—-—वर्ण + अट् + अच्—चित्रकर
- वर्णाटः—पुं॰—-—-—गायक
- वर्णाटः—पुं॰—-—-—जो अपनी आजीविका अपनी पत्नी के द्वारा करता है, स्त्रीकृताजीव
- वर्णिका—स्त्री॰—-—वर्णा अक्षराणि लेख्यत्वेन सन्त्यस्याः ठन्—अभिनेता की वेशभूशा या नकाब
- वर्णिका—स्त्री॰—-—-—रंग. रंगलेप
- वर्णिका—स्त्री॰—-—-—स्याही, मसी
- वर्णिका—स्त्री॰—-—-—लेखनी, पैंसिल
- वर्णिकापरिग्रहः—पुं॰—वर्णिका-परिग्रहः—-—स्वांग भरना या नकाब धारण करना
- वर्णित—भू॰ क॰ कृ॰—-—वर्ण् + क्त—चित्रित
- वर्णित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वर्णन किया गया, बयान किया गया
- वर्णित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—स्तुति की गई, प्रशंसा की गई
- वर्णिन्—वि॰—-—वर्णोऽस्त्यस्य इनि—रंग रूपवाला
- वर्णिन्—वि॰—-—-—जाति से संबंध रखने वाला
- वर्णिन्—पुं॰—-—-—चित्रकर
- वर्णिन्—पुं॰—-—-—लिपिकार, लेखक
- वर्णिन्—पुं॰—-—-—ब्रह्मचारी
- वर्णिन्—पुं॰—-—-—इन चार मुख्य वर्णो में से किसी एक वर्ण का व्याक्ति
- वर्णिलिङ्गिन्—वि॰—वर्णिन्-लिङ्गिन्—-—ब्रह्मचारी की वेशभूषा धारण किए हुए, या उसके चिह्लों को धारण करने वाला
- वर्णिनी—स्त्री॰—-—वर्णिन् + ङीष्—स्त्री
- वर्णिनी—स्त्री॰—-—-—चारों वर्णो में से किसी एक वर्ण की स्त्री
- वर्णिनी—स्त्री॰—-—-—हल्दी
- वर्णुः—पुं॰—-—वृ + णुः नित्—सूर्य
- वर्ण्य—वि॰—-—वर्ण् + ण्यत्—वर्णन करने के योग्य
- वर्ण्यम्—नपुं॰—-—-—केसर, जाफरान
- वर्तः—पुं॰—-—वृत्त् + घञ्—जीविका, वृत्ति
- वर्तजन्मन्—पुं॰—वर्तः-जन्मन्—-—
- वर्तक—वि॰—-—वृत् + ण्वुल्—जीवित, विद्यमान, वर्तमान
- वर्तकः—पुं॰—-—-—बटेर, लवा
- वर्तकः—पुं॰—-—-—घोड़े का सुम
- वर्तकम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का पीतल या कांसा
- वर्तका—स्त्री॰—-—वर्तक + टाप्—बटेर, लवा
- वर्तकी—स्त्री॰—-—वर्तक + ङीष् —बटेर, लवा
- वर्तन—वि॰—-—वृत् + ल्युट्—टिकाऊ, रहने वाला, ठहरने वाला, विद्यमान
- वर्तन—वि॰—-—-—स्थिर
- वर्तनः—पुं॰—-—-—ठिंगना, बौना
- वर्तनी—स्त्री॰—-—-—मार्ग, सड़क
- वर्तनी—स्त्री॰—-—-—जीना, जीवन
- वर्तनी—स्त्री॰—-—-—पीसना, चूर्ण बनाना
- वर्तनी—स्त्री॰—-—-—तकुआ
- वर्तनम्—नपुं॰—-—-—जीना, विद्यमान रहना
- वर्तनम्—नपुं॰—-—-—ठहरना, डटे रहना, निवास करना
- वर्तनम्—नपुं॰—-—-—कर्म, गति, जीने का ढंग या तरीक़ा
- वर्तनम्—नपुं॰—-—-—जीवित रहना, जीवनयापन करना
- वर्तनम्—नपुं॰—-—-—आजीविका, जीवन निर्वाह, वृत्ति
- वर्तनम्—नपुं॰—-—-—जीवन निर्वाह का साधन, वृत्ति, व्यवसाय
- वर्तनम्—नपुं॰—-—-—चालचलन, व्यवहार, आचरण
- वर्तनम्—नपुं॰—-—-—मज़दूरी, वेतन, भाड़ा
- वर्तनम्—नपुं॰—-—-—व्यापार, लेन-देन
- वर्तनम्—नपुं॰—-—-—तकवा
- वर्तनम्—नपुं॰—-—-—गोलक, गेदं
- वर्तनिः—पुं॰—-—वर्तन्तेऽस्यां जनाः, वृत् + निः—भारत का पूर्वी भाग, पूर्ववर्ती प्रदेश
- वर्तनिः—पुं॰—-—-—सूक्त, प्रशंसा, स्त्रोत्र
- वर्तनिः—स्त्री॰—-—-—मार्ग, सड़क
- वर्तमान—वि॰—-—वृत् + शानच मुक्—मौजूद, विद्यमान
- वर्तमान—वि॰—-—-—जीता हुआ, जीवित रहने वाला, समसामयिक
- वर्तमान—वि॰—-—-—मुड़ना, चक्कर काटना, घूम जाना
- वर्तमानः—पुं॰—-—-—वर्तमान काल
- वर्तरूकः—पुं॰—-—वर्त + रा + ऊक—पोखर, जोहड
- वर्तरूकः—पुं॰—-—-—भँवर, बवंडर, जलावर्त
- वर्तरूकः—पुं॰—-—-—कौवे का घोंसला
- वर्तरूकः—पुं॰—-—-—द्वारपाल
- वर्तरूकः—पुं॰—-—-—नदी का नाम
- वर्तिः—स्त्री॰—-—वृत् + इन्—कोई भी लिपटी हुई गोल वस्तु, पत्राली, बही
- वर्तिः—स्त्री॰—-—वृत् + इन्—उबटन, मल्हम, आँखों का लेप, काजल, अंगराग
- वर्तिः—स्त्री॰—-—वृत् + इन्—दीपक की बत्ती
- वर्तिः—स्त्री॰—-—वृत् + इन्—(कपड़े की) झालर, फलवे, किनारी
- वर्तिः—स्त्री॰—-—वृत् + इन्—जादू का लैंप
- वर्तिः—स्त्री॰—-—वृत् + इन्—वर्तन के चारों ओर का उभार
- वर्तिः—स्त्री॰—-—वृत् + इन्—जर्राही उपकरण
- वर्तिः—स्त्री॰—-—वृत् + इन्—धारी, रेखा
- वर्ती—स्त्री॰—-—वृत् + ङीप्—कोई भी लिपटी हुई गोल वस्तु, पत्राली, बही
- वर्ती—स्त्री॰—-—वृत् + ङीप्—उबटन, मल्हम, आँखों का लेप, काजल, अंगराग
- वर्ती—स्त्री॰—-—वृत् + ङीप्—दीपक की बत्ती
- वर्ती—स्त्री॰—-—वृत् + ङीप्—(कपड़े की) झालर, फलवे, किनारी
- वर्ती—स्त्री॰—-—वृत् + ङीप्—जादू का लैंप
- वर्ती—स्त्री॰—-—वृत् + ङीप्—वर्तन के चारों ओर का उभार
- वर्ती—स्त्री॰—-—वृत् + ङीप्—जर्राही उपकरण
- वर्ती—स्त्री॰—-—वृत् + ङीप्—धारी, रेखा
- वर्तिकः—पुं॰—-—वृत + तिकन्—बटेर, लवा
- वर्तिका—स्त्री॰—-—वृतेः तिकन् + टाप्—चितेरे की कूँची
- वर्तिका—स्त्री॰—-—-—दीपक की बत्ती
- वर्तिका—स्त्री॰—-—-—रंग, रंगलेप
- वर्तिका—स्त्री॰—-—-—बटेर, लवा
- वर्तिन्—वि॰—-—वृत् + णिनि—डटा रहने वाला, होने वाला, सहारा लेने वाला, टिकने वाला, स्थित
- वर्तिन्—वि॰—-—-—जाने वाला, गतिशील, मुड़ने वाला
- वर्तिन्—वि॰—-—-—अभिनय करने वाला, व्यवहार करने वाला
- वर्तिन्—वि॰—-—-—अनुष्ठाता, अभ्यास करने वाला
- वर्तिरः—पुं॰—-—वृत् + इरच्—बटेर, लवा
- वर्तीरः—पुं॰—-—वृत् + इरच्, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—बटेर, लवा
- वर्तिष्णु—वि॰—-—वृत् + इष्णुच्—चक्कर काटने वाला
- वर्तिष्णु—वि॰—-—-—वर्तमान, डटा रहने वाला
- वर्तिष्णु—वि॰—-—-—वर्तुलाकार
- वर्तुल—वि॰—-—वत् + उलच्—गोल, कुण्डलाकार, मण्डलाकार
- वर्तुलः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की दाल, मटर
- वर्तुलः—पुं॰—-—-—गेंद
- वर्तुलम्—नपुं॰—-—-—वृत्त
- वर्त्मन्—नपुं॰—-—वृत् + मनिन्—रास्ता, सड़क, पथ, मार्ग पगडंडी
- वर्त्मन्—नपुं॰—-—-—(आलं॰) रीति, मार्ग, सर्वसम्मत तथा निर्धारित प्रचलन, प्रचलित रीति या आचरण क्रम
- वर्त्मन्—नपुं॰—-—-—स्थान, कर्म के लिए क्षेत्र
- वर्त्मन्—नपुं॰—-—-—पलक
- वर्त्मन्—नपुं॰—-—-—धार, किनारा
- वर्त्मपातः—पुं॰—वर्त्मन्-पातः—-—मार्ग से व्यतिक्रम
- वर्त्मबन्धः—पुं॰—वर्त्मन्-बन्धः—-—पलकों का एक रोग
- वर्त्मबन्धकः—पुं॰—वर्त्मन्-बन्धकः—-—पलकों का एक रोग
- वर्त्मनिः—स्त्री॰—-—-—सड़क, रास्ता
- वर्त्मनी—स्त्री॰—-—-—सड़क, रास्ता
- वर्ध्—चुरा॰ उभ॰ <वर्धयति>,<वर्धयते>,<वर्धापयति>—-—-—काटना बाँटना, मूँडना
- वर्ध्—चुरा॰ उभ॰ <वर्धयति>,<वर्धयते>,<वर्धापयति>—-—-—पूरा करना
- वर्धः—पुं॰—-—वर्ध् + अच्, घञ् —काटना बाँटना
- वर्धः—पुं॰—-—-—बढ़ाना, वृद्धि या समृद्धि करना
- वर्धः—पुं॰—-—-—वृद्धि, बढ़ोतरी
- वर्धम्—नपुं॰—-—-—सीसा
- वर्धम्—नपुं॰—-—-—सिंदूर
- वर्धकः—पुं॰—-—वृध् + णिच् + ण्वुल्—बढ़ई
- वर्धकिः—पुं॰—-—वर्ध + कष् + डि—बढ़ई
- वर्धकिन—वि॰—-—वर्ध् + अच् + कन् + इनि—बढ़ई
- वर्धन—वि॰—-—दृध् + णिच् + ल्युट्—बढ़ने वाला, उगने वाला
- वर्धन—वि॰—-—-—बढ़ाने वाला, विस्तृत करने वाला, आवर्धन करने वाला
- वर्धनः—पुं॰—-—-—समृद्धिदाता
- वर्धनः—पुं॰—-—-—वह दाँत जो दाँत के ऊपर उगता है
- वर्धनः—पुं॰—-—-—शिव का नाम
- वर्धनी—स्त्री॰—-—-—बुहारी, झाड़ू
- वर्धनी—स्त्री॰—-—-—विशेष आकार का जलघट
- वर्धनम्—नपुं॰—-—-—उगना, फलना फूलना
- वर्धनम्—नपुं॰—-—-—विकास, वृद्धि, समृद्धि, आवर्धन, विस्तार
- वर्धनम्—नपुं॰—-—-—उन्नति
- वर्धनम्—नपुं॰—-—-—उल्लास, सजीवता
- वर्धनम्—नपुं॰—-—-—शिक्षा देना, पालन-पोषण करना
- वर्धनम्—नपुं॰—-—-—काटना, बाँटना
- वर्धमान—वि॰—-—वृध् + शानच्—विकशित होने वाला, बढ़ने वाला
- वर्धमानः—पुं॰—-—-—एरंड का पौधा
- वर्धमानः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की पहेली
- वर्धमानः—पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
- वर्धमानः—पुं॰—-—-—एक जिले का नाम
- वर्धमानः—पुं॰—-—-—एक विशेष सूरत की तश्तरी, ढक्कन
- वर्धमानः—पुं॰—-—-—एक रहस्यमय रेखाचित्र
- वर्धमानः—पुं॰—-—-—वह भवन जिसका दक्षिण की ओर कोई द्वार न हो
- वर्धमानम्—नपुं॰—-—-—एक विशेष सूरत की तश्तरी, ढक्कन
- वर्धमानम्—नपुं॰—-—-—एक रहस्यमय रेखाचित्र
- वर्धमानम्—नपुं॰—-—-—वह भवन जिसका दक्षिण की ओर कोई द्वार न हो
- वर्धमाना—स्त्री॰—-—-—एक जिले का नाम
- वर्धमानपुरम्—नपुं॰—वर्धमान-पुरम्—-—बर्दवान नामक नगर
- वर्धमानकः—पुं॰—-—वर्धमान + कन्—एक प्रकार का पात्र, तश्तरी, ढक्कन, चपनी
- वर्धापनम्—नपुं॰—-—वर्धं छेदं करोति-वृध् + णिच् + आप् ततो भावे ल्युट्—काटना, बाँटना
- वर्धापनम्—नपुं॰—-—-—नालच्छेदन या तत्संबंधी कोई संस्कार
- वर्धापनम्—नपुं॰—-—-—जन्मदिन का उत्सव
- वर्धापनम्—नपुं॰—-—-—कोई सामान्य उत्सव जब समृद्धि की मंगलकामनाएँ तथा बधाइयों की अभिव्यक्ति की जाती है]
- वर्धित—भू॰ क॰ कृ॰—-—वृध् + णिच् + क्त— विकसित, बड़ा हुआ
- वर्धित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विस्तृत किया हुआ, विशाल बनायाहुआ
- वर्धिष्णु—वि॰—-—-— विकसित होने वाला, बढ़ने वाला, फलने फूलने वाला
- वर्ध्रम्—नपुं॰—-—वृध् + रन्—चमडे का तस्मा या पट्टी
- वर्ध्रम्—नपुं॰—-—-—चमड़ा
- वर्ध्रम्—नपुं॰—-—-—सीसा
- वर्धिका—स्त्री॰—-—वध्री + कन् + टाप् ह्रस्व—चमड़े का तस्मा या पट्टी
- वध्री—स्त्री॰—-—वर्ध्र + ङीष् —चमड़े का तस्मा या पट्टी
- वर्मन्—नपुं॰—-—आवृणोति अंगम्-वृ + मनिन्—कवच, जिरहकख्तर
- वर्मन्—नपुं॰—-—-—छाल, वल्कल
- वर्मन्—पुं॰—-—-—क्षत्रियों के नामों के साथ लगने वाला एक प्रत्यय
- वर्महर—वि॰—वर्मन्-हर—-—कवचधारी
- वर्महर—वि॰—वर्मन्-हर—-—इतना बड़ा जो कवच धारण कर सके
- वर्मणः—पुं॰—-—-—नारङ्गी का पेड़
- वर्मिः—पुं॰—-—-—मत्स्य विशेष, वामी मछली
- वर्मित—वि॰—-—वर्मन् + इतच्—जिरहबख्तर पहने हुए, कवच से सुसज्जित
- वर्य—वि॰—-—वृ + यत्—चुने जाने या छांटे जाने के योग्य पात्र
- वर्य—वि॰—-—-—सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ, मुख्य, प्रधान
- वर्यः—पुं॰—-—-—कामदेव
- वर्या—स्त्री॰—-—-—वह कन्या जो स्वयं अपना पति वरण करे
- वर्या—स्त्री॰—-—-—कन्या
- वर्वटः—पुं॰—-—वर्व् + अटन्—एक प्रकार का अनाज, राजमाष
- वर्वणा—स्त्री॰—-—-—नीली मक्खी
- वर्वर—वि॰—-—वृ + अरच्, वुट् च—हकलाने वाला
- वर्वर—वि॰—-—-—बल खाता हुआ
- वर्वरः—पुं॰—-—-—बर्बर देश का वासी
- वर्वरः—पुं॰—-—-—बुद्धू, प्रलापी मूर्ख
- वर्वरः—पुं॰—-—-—जातिच्युत
- वर्वरः—पुं॰—-—-—घुंघराले बाल
- वर्वरः—पुं॰—-—-—हथियारों की झनकार
- वर्वरः—पुं॰—-—-—नृत्य की एक भावमुद्रा
- वर्वरा—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की मक्खी
- वर्वरा—स्त्री॰—-—-—वनतुलसी
- वर्वरी—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की मक्खी
- वर्वरी—स्त्री॰—-—-—वनतुलसी
- वर्वरम्—नपुं॰—-—-—पीला चन्दन
- वर्वरम्—नपुं॰—-—-—सिन्दूर
- वर्वरम्—नपुं॰—-—-—लोवान
- वर्वरकम्—नपुं॰—-—वर्वर + कन्—एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी
- वर्वरीकः—पुं॰—-—वृ + ईकन्, द्वेरुक् अभ्यासस्य—घुंघराले बाल
- वर्वरीकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार की तुलसी
- वर्वरीकः—पुं॰—-—-—एक झाड़ी विशेष
- वर्वूरः—पुं॰—-—वृ + वुरच् पक्षे वुरच्—एक वृक्ष विशेष, बबूल, कीकर
- वर्वुरः—पुं॰—-—वृ + वुरच् पक्षे वुरच्—एक वृक्ष विशेष, बबूल, कीकर
- वर्षः—पुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—वर्षा, बारिश, वृष्टि की बौछार
- वर्षम्—नपुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—वर्षा, बारिश, वृष्टि की बौछार
- वर्षः—पुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—छिड़कना, उत्सरण, फेंकना, बौछार
- वर्षम्—नपुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—छिड़कना, उत्सरण, फेंकना, बौछार
- वर्षः—पुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—वीर्यपात
- वर्षम्—नपुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—वीर्यपात
- वर्षः—पुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—वर्ष, साल
- वर्षम्—नपुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—वर्ष, साल
- वर्षः—पुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—सृष्टि का प्रभाग, महाद्वीप
- वर्षम्—नपुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—सृष्टि का प्रभाग, महाद्वीप
- वर्षः—पुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—भारतवर्ष, हिन्दुस्तान
- वर्षम्—नपुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—भारतवर्ष, हिन्दुस्तान
- वर्षः—पुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—बादल
- वर्षम्—नपुं॰—-—वृष् भावे घञ् कर्तरि अच् वा—बादल
- वर्षांशः—पुं॰—वर्षः-अंशः—-—महीना, मास
- वर्षांशकः—पुं॰—वर्षः-अंशकः—-—महीना, मास
- वर्षाङ्गः—पुं॰—वर्षः-अङ्गः—-—महीना, मास
- वर्षाम्बु—नपुं॰—वर्षः-अम्बु—-—बारिश का पानी
- वर्षायुतम्—नपुं॰—वर्षः-अयुतम्—-—दस हजार वर्ष
- वर्षार्चिस्—पुं॰—वर्षः-अर्चिस्—-—मंगलग्रह
- वर्षावसानम्—नपुं॰—वर्षः-अवसानम्—-—शरद ऋतु
- वर्षाघोषः—पुं॰—वर्षः-अघोषः—-—मेंढक
- वर्षामदः—पुं॰—वर्षः-आमदः—-—मोर
- वर्षोपलः—पुं॰—वर्षः-उपलः—-—ओला
- वर्षकरः—पुं॰—वर्षः-करः—-—बादल
- वर्षकरी—स्त्री॰—वर्षः-करी—-—झींगुर
- वर्षकोशः—पुं॰—वर्षः-कोशः—-—मास, महीना
- वर्षकोशः—पुं॰—वर्षः-कोशः—-—ज्योतिषी
- वर्षकोषः—पुं॰—वर्षः-कोषः—-—मास, महीना
- वर्षकोषः—पुं॰—वर्षः-कोषः—-—ज्योतिषी
- वर्षगिरिः—पुं॰—वर्षः-गिरिः—-—‘वर्ष-पहाड़’ अर्थात वह पर्वतशृंखला जो सृष्टि के भिन्न-भिन्न प्रभागों को एक दूसरे से पृथक् करती है
- वर्षपर्वतः—पुं॰—वर्षः-पर्वतः—-—‘वर्ष-पहाड़’ अर्थात वह पर्वतशृंखला जो सृष्टि के भिन्न-भिन्न प्रभागों को एक दूसरे से पृथक् करती है
- वर्षज—वि॰—वर्षः-ज—-—बरसात में उत्पन्न
- वर्षधरः—पुं॰—वर्षः-धरः—-—वादल
- वर्षधरः—पुं॰—वर्षः-धरः—-—हिजड़ा, अन्तःपुर का रक्षक, खोजा
- वर्षपूगः—पुं॰—वर्षः-पूगः—-—वर्षों का समुच्चय
- वर्षप्रतिबन्धः—पुं॰—वर्षः-प्रतिबन्धः—-—सूखा, अनावृष्टि
- वर्षप्रियः—पुं॰—वर्षः-प्रियः—-—चातक पक्षी
- वर्षवरः—पुं॰—वर्षः-वरः—-—हिजड़ा, अन्तःपुर का रक्षक, खोजा
- वर्षवृद्धिः—स्त्री॰—वर्षः-वृद्धिः—-—जन्मदिन
- वर्षशतम्—नपुं॰—वर्षः-शतम्—-—शताब्दी, सौ वर्ष
- वर्षसहस्रम्—नपुं॰—वर्षः-सहस्रम्—-—एक हजार वर्ष
- वर्षक—वि॰—-—वृष् + ण्वुल्—बरसने वाला
- वर्षणम्—नपुं॰—-—वृष् + ल्युट्—वृष्टि, वर्षा
- वर्षणम्—नपुं॰—-—-—छिड़कना, बौछार
- वर्षणिः—स्त्री॰—-—वृष् + अनिः—वृष्टि
- वर्षणिः—स्त्री॰—-—-—यज्ञ, यज्ञ सम्वन्धी कृत्य
- वर्षणिः—स्त्री॰—-—-—क्रिया, कर्म
- वर्षणिः—स्त्री॰—-—-—टिकना, रहना, डटे रहना, वर्तन
- वर्षा—स्त्री॰—-—वृष् + अच् + टाप्—बरसात, वर्षाऋतु, वर्षावायु
- वर्षा—स्त्री॰—-—-—बारिश, वृष्टि
- वर्षाकालः—पुं॰—वर्षा-कालः—-—बरसात, वर्षाऋतु
- वर्षाकालीन—वि॰—वर्षा-कालीन—-—वर्षा से उत्पन्न या संबंध रखने वाला
- वर्षाभू—पुं॰—वर्षा-भू—-—मेंढक
- वर्षाभू—पुं॰—वर्षा-भू—-—एक कृषि विशेष, इन्द्रगोप
- वर्षाभूः—स्त्री॰—वर्षा-भूः—-—मेंढकी या छोटा मेंढक
- वर्षाभ्वी—स्त्री॰—वर्षा-भ्वी—-—मेंढकी या छोटा मेंढक
- वर्षारात्रः—पुं॰—वर्षा-रात्रः—-—बरसात की रात
- वर्षारात्रः—पुं॰—वर्षा-रात्रः—-—बरसात
- वर्षिक—वि॰—-—वर्ष + ष्णिक—बरसने वाला, बौछार करने वाला
- वर्षिकम्—नपुं॰—-—-—अगर की लकड़ी
- वर्षितम्—नपुं॰—-—वृष् + क्त—वृष्टि, वर्षा
- वर्षिष्ठ—वि॰—-—अतिशयेन वृद्ध + इष्ठन्, वर्षादेशः वृद्ध की उ॰ अ॰—अत्यंत बूढ़ा, बहुत बड़ा
- वर्षिष्ठ—वि॰—-—-—अत्यंत बलवान्
- वर्षिष्ठ—वि॰—-—-—विशालतम, अत्यंत विस्तृत
- वर्षीयस्—वि॰—-—अममनयोरतिशयेन वृद्धः वृद्ध + ईयसुन्, वर्षादेशः, वृद्ध की म॰ अ॰—अपेक्षाकृत बड़ा, बहुत बूढ़ा
- वर्षीयस्—वि॰—-—-—दस हजार वर्ष
- वर्षुक—वि॰—-—वृष् + उकञ्—बरसने वाला, जलमय, पानी डालने वाला
- वर्षुकाब्दः—पुं॰—वर्षुक-अब्दः—-—बारिश करने वाला बादल
- वर्षुकाम्बुदः—पुं॰—वर्षुक-अम्बुदः—-—बारिश करने वाला बादल
- वर्ष्मम्—नपुं॰—-—वृष् + मन्—शरीर
- वर्ष्मन्—नपुं॰—-—वृष् + मनिन्—शरीर, देह
- वर्ष्मन्—नपुं॰—-—-—माप, ऊँचाई
- वर्ष्मन्—नपुं॰—-—-—सुन्दर या मनोहर रूप
- वर्ह्—भ्वा॰आ॰<वर्हते>—-—-—बोलना
- वर्ह्—भ्वा॰आ॰<वर्हते>—-—-—देना
- वर्ह्—भ्वा॰आ॰<वर्हते>—-—-—ढकना
- वर्ह्—भ्वा॰आ॰<वर्हते>—-—-—क्षति पहुचाना, मार डालना, नष्ट करना
- वर्ह्—भ्वा॰आ॰<वर्हते>—-—-—फैलाना
- वर्हः—पुं॰—-—वर्ह् + अच्—मोर की पूँछ
- वर्हः—पुं॰—-—वर्ह् + अच्—पक्षी की पूँछ
- वर्हः—पुं॰—-—वर्ह् + अच्—पूँछ का पंख
- वर्हः—पुं॰—-—वर्ह् + अच्—पत्ता
- वर्हः—पुं॰—-—वर्ह् + अच्—अनुचरवर्ग, नौकर-चाकर
- वर्हण—नपुं॰—-—बर्ह + ल्युट्—पत्ता
- वर्हिणः—पुं॰—-—वर्ह् + इनच्—मोर
- वर्हिन्—पुं॰—-—वर्ह् + इनि—मोर
- वर्हिस्—पुं॰—-—वर्ह् + <कर्मणि> इसि—कुश नामक घास
- वर्हिस्—पुं॰—-—वर्ह् + <कर्मणि> इसि—बिस्तरा या कुशघास का बिछौना
- वर्हिस्—पुं॰—-—-—आग
- वर्हिस्—पुं॰—-—-—प्रकाश, दीप्ति
- वर्हिस्—नपुं॰—-—-—जल
- वर्हिस्—नपुं॰—-—-—यज्ञ
- वल्—भ्वा॰ आ॰ <वलते>—-—-—जाना, पहुंचाना, जल्दी करना
- वल्—भ्वा॰ आ॰ <वलते>—-—-—हिलना-जुलना, मुड़ना, घूम जाना
- वल्—भ्वा॰ आ॰ <वलते>—-—-—मुड़ना आकृष्ट होना, अनुरक्त होना
- वल्—भ्वा॰ आ॰ <वलते>—-—-—बढ़ाना, वृद्धि या समृद्धि करना
- वल्—भ्वा॰ आ॰ <वलते>—-—-—ढकना, घेरना
- वल्—भ्वा॰ आ॰ <वलते>—-—-—ढका जाना, घेरा जाना या घिरा जाना
- विवल्—भ्वा॰ आ॰—वि-वल्—-—इधर-उधर सरकना, इधर-उधर लुढ़कना
- संवल्—भ्वा॰ आ॰—सम्-वल्—-—मिलाना, गड़बड़ करना
- संवल्—भ्वा॰ आ॰—सम्-वल्—-—संबद्ध करना, जोड़ना
- वलम्—नपुं॰—-—वल् + अच्—सामर्थ्य, शक्ति, ताकत, वीर्य, ओज
- वलम्—नपुं॰—-—वल् + अच्—जबरदस्ती, हिंसा
- वलम्—नपुं॰—-—वल् + अच्—मोटापन, पुष्टि (शरीर की)
- वलम्—नपुं॰—-—वल् + अच्—सेना,चमू, फौज, सैन्यदल
- वलम्—नपुं॰—-—वल् + अच्—शरीर, आकृति, रूप
- वलम्—नपुं॰—-—वल् + अच्—वीर्य, शुक्र
- वलम्—नपुं॰—-—वल् + अच्—रुधिर
- वलम्—नपुं॰—-—वल् + अच्—गोंद, रसगंध
- वलम्—नपुं॰—-—वल् + अच्—अंकुर, अँखुवा
- वलेन—नपुं॰—-—-—सामर्थ्य के आधार पर, की बदौलत
- वलात्—नपुं॰—-—-—बलपूर्वक, जबरदस्ती, हिंसापूर्वक, इच्छा के विरुद्ध
- वलक्ष—वि॰—-—वलं क्षायत्यस्मात् क्षै + क—श्वेत
- वलग्नः—पुं॰—-—अवल्न्ग इत्यत्र भगुरिमते अकारलोपः—कमर
- वलग्नम्—नपुं॰—-—अवल्न्ग इत्यत्र भगुरिमते अकारलोपः—कमर
- वलनम्—नपुं॰—-—वल् भावे ल्युट्—सरकना, मुड़ना
- वलनम्—नपुं॰—-—-—वर्तुलाकार घूमना
- वलनम्—नपुं॰—-—-—ग्रह की वक्रगति
- वलभिः —स्त्री॰—-—वल्यते आच्छाद्यते वल् + अभि—ढलवां छत, लकड़ी का बना छप्पर का ढांचा
- वलभिः —स्त्री॰—-—-—(घर का) सबसे ऊँचा भाग
- वलभिः —स्त्री॰—-—-—सौराष्ट्र प्रदेश के अन्तर्गत एक नगरी
- वलभी—स्त्री॰—-—वल्यते आच्छाद्यते वल् + अभि + ङीप्—ढलवां छत, लकड़ी का बना छप्पर का ढांचा
- वलभी—स्त्री॰—-—-—(घर का) सबसे ऊँचा भाग
- वलभी—स्त्री॰—-—-—सौराष्ट्र प्रदेश के अन्तर्गत एक नगरी
- वलम्ब—वि॰—-—अवलंब इत्यत्र भागुरिमते अकारलोपः—
- वलयः—पुं॰—-—वल् + अयन्—कंकण, बाजूबंद
- वलयः—पुं॰—-—-—छल्ला, कुंडल
- वलयः—पुं॰—-—-—विवाहित स्त्री की करधनी
- वलयः—पुं॰—-—-—वृत्त, परिधि
- वलयः—पुं॰—-—-—बाड़ा, निकुंज
- वलयम्—नपुं॰—-—वल् + अयन्—कंकण, बाजूबंद
- वलयम्—नपुं॰—-—-—छल्ला, कुंडल
- वलयम्—नपुं॰—-—-—विवाहित स्त्री की करधनी
- वलयम्—नपुं॰—-—-—वृत्त, परिधि
- वलयम्—नपुं॰—-—-—बाड़ा, निकुंज
- वलयः—पुं॰—-—-—बाड़, झाड़बन्दी
- वलयः—पुं॰—-—-—गलगण्ड रोग
- वलयी कृ——-—-—कंकण बनाना
- वलयी भू——-—-—करधनी या कंकण का काम देना
- वलयित—वि॰—-—वलय + इतच्—घिरा हुआ, घेरा हुआ, लपेटा हुआ
- वलाकः—पुं॰—-—वल + अक् + अच्—बगुला
- वलाका—स्त्री॰—-—वल + अक् + स्त्रियां टाप् च—बगुला
- वलाका—स्त्री॰—-—वल + अक् + स्त्रियां टाप् च—प्रिया, कान्ता
- वलाकिन्—वि॰—-—वलाका + इनि—बगुलों या सरसों से भरा हुआ
- वलाहकः—पुं॰—-—वल + आ + हा + क्कुन्—बादल
- वलाहकः—पुं॰—-—वल + आ + हा + क्कुन्—एक प्रकार का बगुला या सरस
- वलाहकः—पुं॰—-—वल + आ + हा + क्कुन्—पहाड़
- वलाहकः—पुं॰—-—वल + आ + हा + क्कुन्—प्रलयकालीन सात बादलों में से एक
- वलिः—स्त्री॰—-—वल् + इन्—(खाल पर) शिकन या झुर्री
- वलिः—स्त्री॰—-—-—पेट के ऊपरी भाग में चमड़े पर पड़ी शिकन, झुर्री, सिकुड़न
- वलिः—पुं॰—-—-—छप्पर की छत की बंडेरी
- वली—स्त्री॰—-—वल् + ङीष्—(खाल पर) शिकन या झुर्री
- वली—स्त्री॰—-—-—पेट के ऊपरी भाग में चमड़े पर पड़ी शिकन, झुर्री, सिकुड़न
- वली—पुं॰—-—-—छप्पर की छत की बंडेरी
- वलिभूत्—वि॰—वलिः-भूत्—-—घुंघर वाला, घुंघराले बालों वाला
- वलिमुखः—पुं॰—वलिः-मुखः—-—बंदर
- वलिवदनः—पुं॰—वलिः-वदनः—-—बंदर
- वलिकः —पुं॰—-—वलि + कन्—छप्पर की छत का किनारा, ओलती
- वलिकम्—नपुं॰—-—वलि + कन्—छप्पर की छत का किनारा, ओलती
- वलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—वल् + क्त—गतिशील
- वलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—हिला-जुला, घूमा हुआ, मुड़ा हुआ
- वलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घिरा हुआ, लिपटा हुआ
- वलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—झुर्रीदार
- वलिन—वि॰—-—वलि + न वा —झुर्रीदार, सिकुड़नदार, झुर्रियाँ पड़ी हुई हों, पिलपिला
- वलिभ—वि॰—-—वलि + भ वा—झुर्रीदार, सिकुड़नदार, झुर्रियाँ पड़ी हुई हों, पिलपिला
- वलिमत्—वि॰—-—वलि + मतुप्—झुर्रीदार
- वलिर—वि॰—-—वल् + किरच्—भैंगी आँख वाला, ऐंचाताना, कनखी से देखने वाला
- वलिशम्—नपुं॰—-—वलि + शो + क—मछली पकड़ने का काँटा
- वलिशी—स्त्री॰—-—वलिश + ङीष्—मछली पकड़ने का काँटा
- वलीकम्—नपुं॰—-—वल् + कीकन्—छप्पर की छत का किनारा, ओलती
- वलूकः—पुं॰—-—वल् + ऊकः—एक पक्षीविशेष
- वलूकम्—नपुं॰—-—-—कमल की जड़, बिस
- वलूल—वि॰—-—वल् + लच्, ऊङ्—बलवान्, हृष्टपुष्ट, शक्तिशाली
- वल्क्—चुरा॰ उभ॰ <वल्कयति>,<वल्कयते>—-—-—बोलना
- वल्कम्—नपुं॰—-—वल् + क्, कस्य नेत्वम्—वृक्ष की छाल
- वल्कः—पुं॰—-—वल् + क्, कस्य नेत्वम्—मछली की खाल की परत या पपड़ी
- वल्कम्—नपुं॰—-—वल् + क्, कस्य नेत्वम्—मछली की खाल की परत या पपड़ी
- वल्कः—पुं॰—-—वल् + क्, कस्य नेत्वम्—भाग, खण्ड
- वल्कम्—नपुं॰—-—वल् + क्, कस्य नेत्वम्—भाग, खण्ड
- वल्कतरुः—पुं॰—वल्कः-तरुः—-—वृक्ष विशेष
- वल्कलोध्रः—पुं॰—वल्कः-लोध्रः—-—लोध्र वृक्ष का एक भेद
- वल्कलः—पुं॰—-—वल् + कलच्, कस्य नेत्वम्—वृक्ष की छाल
- वल्कलम्—नपुं॰—-—वल् + कलच्, कस्य नेत्वम्—वृक्ष की छाल
- वल्कलः—पुं॰—-—वल् + कलच्, कस्य नेत्वम्—वक्कल से बनाई गई पोशाक, छाल से बने वस्त्र
- वल्कलम्—नपुं॰—-—वल् + कलच्, कस्य नेत्वम्—वक्कल से बनाई गई पोशाक, छाल से बने वस्त्र
- वल्कलसंवीत—वि॰—वल्कलः-संवीत—-—छालवस्त्रधारी
- वल्कवन्—वि॰—-—वल्क + मतुप्—मछली
- वल्किलः—पुं॰—-—वल्क् + इलच्—काँटा
- वल्कुटम्—नपुं॰—-—-—छाल, बक्कल
- वल्ग्—भ्वा॰ उभ॰ <वल्गति>,<वल्गते>,<वल्गित>—-—-—हिलना-जुलना, जाना, इधर उधर घुमना
- वल्ग्—भ्वा॰ उभ॰ <वल्गति>,<वल्गते>,<वल्गित>—-—-—कूदना, उछलना, चौकड़ी भरना, छलांग मार कर चलना, सरपट दौड़ना
- वल्ग्—भ्वा॰ उभ॰ <वल्गति>,<वल्गते>,<वल्गित>—-—-—नाचना
- वल्ग्—भ्वा॰ उभ॰ <वल्गति>,<वल्गते>,<वल्गित>—-—-—प्रसन्न होना
- वल्ग्—भ्वा॰ उभ॰ <वल्गति>,<वल्गते>,<वल्गित>—-—-—खाना
- वल्ग्—भ्वा॰ उभ॰ <वल्गति>,<वल्गते>,<वल्गित>—-—-—अकड़ कर चलना, ङीग मारना
- वल्गनम्—नपुं॰—-—वल्ग् + ल्युट्—उछलना, कूदना, सरपट दौड़ना
- वल्गा—स्त्री॰—-—वल्ग् + अच् + टाप्—लगाम, रास
- वल्गित—भू॰ क॰ कृ॰—-—वल्ग् + क्त—कूदा हुआ, छलांग लगाई हुई, उछला हुआ
- वल्गित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—गतिशील किया गया, नचाया गया
- वल्गितम्—नपुं॰—-—-—सरपट दौड़, घोड़ की एक प्रकार की दौड़
- वल्गितम्—नपुं॰—-—-—अकड़ कर चलना, शेख़ी बघारना, ङीग मारना
- वल्गु—वि॰—-—वल् संवरणे उ गुक् च—प्रिय, सुन्दर, मनोहर, आकर्षक
- वल्गु—वि॰—-—-—मधुर
- वल्गु—वि॰—-—-—मूल्यवान्
- वल्गुः—पुं॰—-—-—बकरा
- वल्गुपत्रः—पुं॰—वल्गु-पत्रः—-—एक प्रकार की जंगली दाल
- वल्गुक—वि॰—-—वल्गु + कन्—मनोहर, प्रिय, सुन्दर
- वल्गुकम्—नपुं॰—-—-—चन्दन
- वल्गुकम्—नपुं॰—-—-—मूल्य
- वल्गुकम्—नपुं॰—-—-—लकड़ी
- वल्गुलः—पुं॰—-—वल्ग् + उल—गीदड़
- वल्गुलिका—स्त्री॰—-—वल्गुल + कन् + टाप्, इत्वम्—तैलचोर
- वल्गुलिका—स्त्री॰—-—-—पेटी, डब्बा
- वल्भ्—भ्वा॰ आ॰—-—-—खाना, निगलना
- वल्मिकः—पुं॰—-—-—बामी, दीमकों द्वारा बनाया मिट्टी का टीला
- वल्मिकम्—नपुं॰—-—-—बामी, दीमकों द्वारा बनाया मिट्टी का टीला
- वल्मिकः—पुं॰—-—-—शरीर के कुछ भागों का सूज जाना, हाथी पाँव
- वल्मिकः—पुं॰—-—-—वाल्मीकि कवि
- वल्मिकि—पुं॰—-—-—बामी, दीमकों द्वारा बनाया मिट्टी का टीला
- वल्मिकि—नपुं॰—-—-—बामी, दीमकों द्वारा बनाया मिट्टी का टीला
- वल्मिकि—पुं॰—-—-—शरीर के कुछ भागों का सूज जाना, हाथी पाँव
- वल्मिकि—पुं॰—-—-—वाल्मीकि कवि
- वल्मी—स्त्री॰—-—वल् + अच्, मुम्, नि॰ ङीष्—चिऊँटी
- वल्मीकूटम्—नपुं॰—वल्मी-कूटम्—-—बामी, दीमकों द्वारा बनाया मिट्टी का टीला
- वल्मीकः—पुं॰—-—वल् + ईक्, मुट् च—बामी, दीमकों द्वारा बनाया मिट्टी का टीला
- वल्मीकम्—नपुं॰—-—वल् + ईक्, मुट् च—बामी, दीमकों द्वारा बनाया मिट्टी का टीला
- वल्मीकः—पुं॰—-—-—शरीर के कुछ भागों का सूज जाना, हाथी पाँव
- वल्मीकः—पुं॰—-—-—वाल्मीकि कवि
- वल्मीकशीर्ष—वि॰—वल्मीकः-शीर्ष—-—एक प्रकार का सुरमा
- वल्युल्—चुरा॰ पर॰ <वल्युलयति>—-—-—काट डालना
- वल्युल्—चुरा॰ पर॰ <वल्युलयति>—-—-—निर्मल करना
- वल्यूल्—चुरा॰ पर॰ <वल्युलयति>—-—-—काट डालना
- वल्यूल्—चुरा॰ पर॰ <वल्युलयति>—-—-—निर्मल करना
- वल्ल्—भ्वा॰ आ॰ <वल्लसे>—-—-—ढकना
- वल्ल्—भ्वा॰ आ॰ <वल्लसे>—-—-—ढका जाना
- वल्ल्—भ्वा॰ आ॰ <वल्लसे>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- वल्लः—पुं॰—-—वल्ल् + अच्—चादर
- वल्लः—पुं॰—-—-—ती गुंजाओं के बराबर भार (वज़न)
- वल्लः—पुं॰—-—-—दूसरा बाट जो डेढ़ या दो गुंजा के बराबर होता है
- वल्लः—पुं॰—-—-—प्रतिषेध
- वल्लकी—स्त्री॰—-—वल्ल् + क्वुन् + ङीष्—वीणा
- वल्लभ—वि॰—-—वल्ल् + अभच्—प्यारा, अभिलषित, प्रिय
- वल्लभ—वि॰—-—-—सर्वोपरि
- वल्लभः—वि॰—-—-—प्रेमी, पति
- वल्लभः—वि॰—-—-—कृपापात्र
- वल्लभः—वि॰—-—-—अधीक्षक, अध्यवेक्षक
- वल्लभः—वि॰—-—-—मुख्य गोप
- वल्लभः—वि॰—-—-—उत्तम घोड़ा (शुभ लक्षणों से युक्त)
- वल्लभाचार्यः—पुं॰—वल्लभ-आचार्यः—-—वैष्णव संप्रदाय के प्रसिद्घ प्रवर्तक का नाम
- वल्लभपालः—पुं॰—वल्लभ-पालः—-—साईस
- वल्लभायितम्—नपुं॰—-—वल्लभ् + क्यङ् + क्त—सुरतानन्द का आसन विशेष, रतिबंध
- वल्लरम्—नपुं॰—-—वल्ल् + अरन्—अगर की लकड़ी
- वल्लरम्—नपुं॰—-—-—निकुंज
- वल्लरम्—नपुं॰—-—-—झुरमुट
- वल्लरिः—स्त्री॰—-—वल्ल् + अरि —बेल, लता
- वल्लरिः—स्त्री॰—-—वल्ल् + अरि —मंजरी
- वल्लरी—स्त्री॰—-—वल्ल् + ङीप्—बेल, लता
- वल्लरी—स्त्री॰—-—वल्ल् + ङीप्—मंजरी
- वल्लवः—पुं॰—-—वल्ल + वा + क—ग्वाला
- वल्लवः—पुं॰—-—वल्ल + वा + क—रसोइया
- वल्लवः—पुं॰—-—वल्ल + वा + क—विराट के यहाँ भीम का नाम जब वह रसोइये का कर्य करता था
- वल्लवी—स्त्री॰—-—-—ग्वालिन
- वल्लिः—स्त्री॰—-—वल्ल् + इन्—लता, बेल
- वल्लिः—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
- वल्लिदूर्वा—स्त्री॰—वल्लिः-दूर्वा—-—एक प्रकार का घास
- वल्ली—स्त्री॰—-—वल्लि + ङीष्—बेल, घुमावदार पौधा, लता
- वल्लीजम्—नपुं॰—वल्ली-जम्—-—मिर्च
- वल्लीवृक्षः—पुं॰—वल्ली-वृक्षः—-—साल का वृक्ष
- वल्लुरम्—नपुं॰—-—वल्ल् + उरन्—निकुन्ज, पर्णशाला
- वल्लुरम्—नपुं॰—-—-—वनस्थली, झुरमुट
- वल्लुरम्—नपुं॰—-—-—मंजरी
- वल्लुरम्—नपुं॰—-—-—अनजुता खेत
- वल्लुरम्—नपुं॰—-—-—रेगिस्तान, जंगल, उजाड़
- वल्लुरम्—नपुं॰—-—-—सूखा मांस
- वल्लरम्—नपुं॰—-—वल्ल् + ऊरन्—सूखा मांस
- वल्लरम्—नपुं॰—-—-—(जंगली) सूअर का मांस
- वल्लरम्—नपुं॰—-—-—झुरमुट
- वल्लरम्—नपुं॰—-—-—उजाड़, वीरान
- वल्लरम्—नपुं॰—-—-—अनजुता खेत
- वल्ह्—भ्वा॰ आ॰ <वल्हते>—-—-—प्रमुख होना, सर्वोत्तम होना
- वल्ह्—भ्वा॰ आ॰ <वल्हते>—-—-—ढकना
- वल्ह्—भ्वा॰ आ॰ <वल्हते>—-—-—मार डालना, चोट पहुंचाना
- वल्ह्—भ्वा॰ आ॰ <वल्हते>—-—-—बोलना
- वल्ह्—भ्वा॰ आ॰ <वल्हते>—-—-—देना
- वल्ह्—चुरा॰ उभ॰ <वल्हयति>,<वल्हयते>—-—-—बोलना
- वल्ह्—चुरा॰ उभ॰ <वल्हयति>,<वल्हयते>—-—-—चमकना
- वल्हिकः—पुं॰—-—-—एक (बलख) देश का तथा उसके अधिवासियों का नाम
- वल्हीकः—पुं॰—-—-—एक (बलख) देश का तथा उसके अधिवासियों का नाम
- वश्—अदा॰ पर॰ <वष्टि>,<उशित>—-—-—चाहना, इच्छा करना, लालसा करना
- वश्—अदा॰ पर॰ <वष्टि>,<उशित>—-—-—अनुग्रह करना
- वश्—अदा॰ पर॰ <वष्टि>,<उशित>—-—-—चमकना
- वश—वि॰—-—वश् कर्तरि अच् भावे अप् —अधीन, प्रभावित, प्रभावगत, नियन्त्रणगत
- वश—वि॰—-—-—आज्ञाकारी, विनीत, अनुवर्ती
- वश—वि॰—-—-—विनम्र, वशीकृत
- वश—वि॰—-—-—मुग्ध, आकृष्ट
- वश—वि॰—-—-—जादू द्वारा वश में किया हुआ
- वशः—पुं॰—-—-—अभिलाषा, चाह, इच्छा
- वशः—पुं॰—-—-—शक्ति, प्रभाव, नियन्त्रण, स्वामित्व, अधिकार, अधीनता, दीनता, स्ववशः
- वशम्—नपुं॰—-—-—अभिलाषा, चाह, इच्छा
- वशम्—नपुं॰—-—-—शक्ति, प्रभाव, नियन्त्रण, स्वामित्व, अधिकार, अधीनता, दीनता, स्ववशः
- वशं नी——-—-—अधीन करना, वश में करना जीत लेना
- वशं आनी——-—-—अधीन करना, वश में करना जीत लेना
- वशं गम्——-—-—अधीन होना, मार्ग से हट जाना, दब जाना, विनीत होना
- वशं इ——-—-—अधीन होना, मार्ग से हट जाना, दब जाना, विनीत होना
- वशं या——-—-—अधीन होना, मार्ग से हट जाना, दब जाना, विनीत होना
- वशे कृ——-—-—बस में करना, हावी होना, जीत लेना, मुग्ध करना, जादू से बस में करना
- वशीकृ——-—-—बस में करना, हावी होना, जीत लेना, मुग्ध करना, जादू से बस में करना
- वशात्—अपा॰—-—-—क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त होकर ‘शक्ति के द्वारा’ ‘प्रभाव के द्वारा’ ‘के कारण’ ‘प्रयोजन से’ अर्थ प्रकट करता है
- वशात्—अपा॰—-—-—पालतू, रहने वाला
- वशात्—अपा॰—-—-—जन्म
- वशः—पुं॰—-—-—वेश्याओं का वासस्थान, चकला
- वशानुज—वि॰—वशः-अनुज—-—आज्ञाकारी, दूसरे की इच्छा का वशवर्ती, विनीत, अधीन
- वशवर्तिन्—वि॰—वशः-वर्तिन्—-—आज्ञाकारी, दूसरे की इच्छा का वशवर्ती, विनीत, अधीन
- वशानुज—पुं॰—वशः-अनुज—-—सेवक
- वशवर्तिन्—पुं॰—वशः-वर्तिन्—-—सेवक
- वशाढ्यकः—पुं॰—वशः-आढ्यकः—-—सूंस
- वशक्रिया—स्त्री॰—वशः-क्रिया—-—जीतना, अधीन करना
- वशग—वि॰—वशः-ग—-—अधीन, आज्ञाकारी
- वशगा—स्त्री॰—वशः-गा—-—आज्ञाकारिणी पत्नी
- वशंवद—वि॰—-—वश + वद् + खच्, मुम्—आज्ञाकारी, अनुवर्ती, विनीत, अधीन, प्रभावित
- वशका—स्त्री॰—-—वश + कै + क + टाप्—आज्ञाकारिणी पत्नी
- वशा—स्त्री॰—-—वश् + अच् + टाप्—स्त्री, अबला
- वशा—स्त्री॰—-—-—पत्नी
- वशा—स्त्री॰—-—-—पुत्री
- वशा—स्त्री॰—-—-—ननद
- वशा—स्त्री॰—-—-—गाय
- वशा—स्त्री॰—-—-—बाँझ स्त्री
- वशा—स्त्री॰—-—-—बंध्या गाय
- वशा—स्त्री॰—-—-—हथिनी
- वशिः—स्त्री॰—-—वश् + इन्—अधीनता
- वशिः—स्त्री॰—-—-—सम्मोहन, मन्त्रमुग्धता
- वशिः—नपुं॰—-—-—वश्यता
- वशिक—वि॰—-—वश + ठन्—शून्य, रहित
- वशिका—स्त्री॰—-—-—आगर की लकड़ी
- वशिन्—वि॰—-—वशः अस्त्यस्य इनि—शक्तिशाली
- वशिन्—वि॰—-—-—नियन्त्रण में, वशीभूत, अधीन, विनीत
- वशिन्—वि॰—-—-—जितेन्द्रिय
- वशिनी—स्त्री॰—-—वशिन् + ङीप्—शमीवृक्ष, जैंडी का पेड़
- वशिरः—स्त्री॰—-—वश् + किरच्—एक प्रकार की मिर्च
- वशिरम्—नपुं॰—-—-—समुद्रीनमक
- वशिष्ठः—पुं॰—-—-—एक विख्यात मुनि का नाम
- वशिष्ठः—पुं॰—-—-—स्मृति के प्रणेता का नाम
- वश्य—वि॰—-—वश् + यत्—वश में होने के योग्य, नियन्त्रणीय, शासित होने के योग्य
- वश्य—वि॰—-—-—वशीभूत, विजित, सधा हुआ, विनीत
- वश्य—वि॰—-—-—प्रभाव या नियन्त्रण में अधीन, आश्रित, आज्ञाकारी
- वश्यः—पुं॰—-—-—सेवक, आश्रित
- वश्या—स्त्री॰—-—-—विनम्रा या आज्ञाकारिणी पत्नी
- वश्यम्—नपुं॰—-—-—लौंग
- वश्यका—स्त्री॰—-—वश्य + कन् + टाप्—विनम्रा या आज्ञाकारिणी पत्नी
- वष्—भ्वा॰ पर॰ <वषति>—-—-—क्षति पहुँचाना, चोट मारना, वध करना
- वषट्—अव्य॰—-—वह् + डषटि—किसी देवता को आहुति देते समय उच्चारण किया जाने वाला शब्द
- वषट्कर्तृ—पुं॰—वषट्-कर्तृ—-—पुरोहित जो ‘वषट्’ का उच्चारण करके आहुति देता है
- वषट्कारः—पुं॰—वषट्-कारः—-—‘वषट्’ शब्द का उच्चारण करना
- वष्क्—भ्वा॰आ॰ <वष्कते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- वष्कयः—पुं॰—-—वष्क + अयन्—एक वर्ष का बछड़ा
- वष्कयणी—स्त्री॰—-—वष्कय + नी + क्विप् + ङीष्, णत्वम्—वह गाय जिसके बछड़े बहुत बड़े हो गये हैं, चिर प्रसूता, बहुत दिनों की ब्यायी हुई
- वष्कयिणी—स्त्री॰—-—वष्कय + इनि + ङीष्, णत्वम्—वह गाय जिसके बछड़े बहुत बड़े हो गये हैं, चिर प्रसूता, बहुत दिनों की ब्यायी हुई
- वस्—भ्वा॰ पर॰ <वसति>,<वसते>,<उषित>—-—-—रहना, बसना, निवास करना, ठहरना, डठे रहना, वास करना
- वस्—भ्वा॰ पर॰ <वसति>,<वसते>,<उषित>—-—-—होना, विद्यमान होना, मौजूद होना
- वस्—भ्वा॰ पर॰ <वसति>,<वसते>,<उषित>—-—-—वेग से चलना, (समय) बिताना
- वस्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰—-—-—बसाना, आवास देना, आबाद करना
- वस्—भ्वा॰ पर॰, इच्छा॰—-—-—रहने की इच्छा
- अधिवस्—भ्वा॰ पर॰—अधि-वस्—-—रहना, बसना, निवास करना, बस जाना
- अधिवस्—भ्वा॰ पर॰—अधि-वस्—-—उतरना, या अड्डे पर बैठना
- अनुवस्—भ्वा॰कर्म॰—अनु-वस्—-—निवास करना
- आवस्—भ्वा॰कर्म॰—आ-वस्—-—निवास करना, बसना
- आवस्—भ्वा॰कर्म॰—आ-वस्—-—कार्यवाही प्रारम्भ करना
- आवस्—भ्वा॰कर्म॰—आ-वस्—-—व्यय करना, (समय) बिताना
- उपवस्—भ्वा॰ पर॰—उप-वस्—-—रहना, ठहरना
- उपवस्—भ्वा॰ पर॰—उप-वस्—-—उपवास रखना, अनशन करना
- निवस्—भ्वा॰ पर॰—नि-वस्—-—रहना, निवास करना, ठहरना
- निवस्—भ्वा॰ पर॰—नि-वस्—-—मौजूद होना, विद्यमान होना
- निवस्—भ्वा॰ पर॰—नि-वस्—-—अधिकार करना, बसना, अधिकार में लेना
- निर्वस्—भ्वा॰ पर॰—निस्-वस्—-—रह चुकना, अर्थात् (किसी विशेष काल) की समाप्ति तक जाना
- निर्वस्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰—निस्-वस्—-—निर्वासित करना, बाहर निकाल देना, देश निकाला देना
- परिवस्—भ्वा॰ पर॰—परि-वस्—-—निवास करना, ठहरना
- परिवस्—भ्वा॰ पर॰—परि-वस्—-—रात बिताना
- प्रवस्—भ्वा॰ पर॰—प्र-वस्—-—रहना, निवास करना
- प्रवस्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰—प्र-वस्—-—विदेश जाना, यात्रा करना, घर से बाहर जाना, देशाटन करना
- प्रतिवस्—भ्वा॰ पर॰—प्रति-वस्—-—निकट रहना, पास में होना
- विवस्—भ्वा॰ पर॰—वि-वस्—-—परदेश में रहना
- विवस्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰—वि-वस्—-—देश निकाला देना, निर्वासित करना
- विप्रवस्—भ्वा॰ पर॰—विप्र-वस्—-—देशाटन करना, घर से बाहर जाना
- संवस्—भ्वा॰ पर॰—सम्-वस्—-—रहना, निवास करना
- संवस्—भ्वा॰ पर॰—सम्-वस्—-—साथ रहना, साहचर्य करना
- संवस्—अदा॰ आ॰ <वस्ते>—सम्-वस्—-—पहनना, धारण करना
- संवस्—भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰ <वासयति>,<वासयते>—सम्-वस्—-—पहनवाना
- निवस्—भ्वा॰ पर॰—नि-वस्—-—सुसज्जित करना
- विवस्—भ्वा॰ पर॰—वि-वस्—-—धारण करना, पहनना
- विवस्—दिवा॰ पर॰<वस्यति>—वि-वस्—-—सीधा होना
- विवस्—दिवा॰ पर॰<वस्यति>—वि-वस्—-—दृढ़ होना
- विवस्—दिवा॰ पर॰<वस्यति>—वि-वस्—-—स्थिर करना
- विवस्—चुरा॰ उभ॰ <वासयति>,<वासयते>—वि-वस्—-—काटना, बाँटना, काट डालना
- विवस्—चुरा॰ उभ॰ <वासयति>,<वासयते>—वि-वस्—-—रहना
- विवस्—चुरा॰ उभ॰ <वासयति>,<वासयते>—वि-वस्—-—लेना, स्वीकार करना
- विवस्—चुरा॰ उभ॰ <वासयति>,<वासयते>—वि-वस्—-—चोट पहुँचाना, हत्या करना
- विवस्—चुरा॰ उभ॰ <वसयति>,<वसयते>—वि-वस्—-—सुगन्धित करना, सुवासित करना
- वसतिः—स्त्री॰—-—वस् + अति —रहना, निवास करना, टिके रहना
- वसतिः—स्त्री॰—-—वस् + अति —घर, आवास, निवास, वासस्थान
- वसतिः—स्त्री॰—-—वस् + अति —आधार, आशय, पात्र (आलं॰)
- वसतिः—स्त्री॰—-—वस् + अति —शिविर, पड़ाव
- वसतिः—स्त्री॰—-—वस् + अति —ठहरने और आराम करने का समय अर्थात् रात्रि
- वसती—स्त्री॰—-—वस् + ङीप्—रहना, निवास करना, टिके रहना
- वसती—स्त्री॰—-—वस् + ङीप्—घर, आवास, निवास, वासस्थान
- वसती—स्त्री॰—-—वस् + ङीप्—आधार, आशय, पात्र (आलं॰)
- वसती—स्त्री॰—-—वस् + ङीप्—शिविर, पड़ाव
- वसती—स्त्री॰—-—वस् + ङीप्—ठहरने और आराम करने का समय अर्थात् रात्रि
- वसनम्—नपुं॰—-—वस् + ल्युट्—रहना, निवास करना, ठहरना
- वसनम्—नपुं॰—-—वस् + ल्युट्—घर, निवास स्थान
- वसनम्—नपुं॰—-—वस् + ल्युट्—प्रसाधन करना, वस्त्र धारण करना, कपड़े पहनना
- वसनम्—नपुं॰—-—वस् + ल्युट्—वस्त्र, कपड़ा, परिधान, कपड़े
- वसनम्—नपुं॰—-—वस् + ल्युट्—करधनी, तगड़ी
- वसन्तः—पुं॰—-—वस् + झच्—वसंत ऋतु, बहार का मौसम
- वसन्तः—पुं॰—-—वस् + झच्—मूर्त या मानवीकृत वसंत जो कामदेव का साथी माना जाता है
- वसन्तः—पुं॰—-—वस् + झच्—पेचिस
- वसन्तः—पुं॰—-—वस् + झच्—चेचक, शीतला
- वसन्तोत्सवः—पुं॰—वसन्त-उत्सवः—-—वसन्तोत्सव, वसन्त ऋतु की रंगरेलियां
- वसन्तकालः—पुं॰—वसन्त-कालः—-—बसन्त की लहर, बसन्त ऋतु
- वसन्तघोषिन्—पुं॰—वसन्त-घोषिन्—-—कोयल
- वसन्तजा—स्त्री॰—वसन्त-जा—-—वासन्ती या माधवी लता
- वसन्तजा—स्त्री॰—वसन्त-जा—-—बासन्ती चहल-पहल
- वसन्ततिलकः—पुं॰—वसन्त-तिलकः—-—वसन्त ऋतु का अलंकार
- वसन्ततिलकम्—नपुं॰—वसन्त-तिलकम्—-—वसन्त ऋतु का अलंकार
- वसन्तदूतः—पुं॰—वसन्त-दूतः—-—कोयल
- वसन्तदूतः—पुं॰—वसन्त-दूतः—-—चैत्र का महीना
- वसन्तदूतः—पुं॰—वसन्त-दूतः—-—हिंदोल राग
- वसन्तदूतः—पुं॰—वसन्त-दूतः—-—आम का वृक्ष
- वसन्तदूती—स्त्री॰—वसन्त-दूती—-—शृंगवल्ली का फूल
- वसन्तद्रुः—पुं॰—वसन्त-द्रुः—-—आम का वृक्ष
- वसन्तद्रुमः—पुं॰—वसन्त-द्रुमः—-—आम का वृक्ष
- वसन्तपञ्चमी—स्त्री॰—वसन्त-पञ्चमी—-—माघ शुक्ला पंचमी
- वसन्तबन्धुः—पुं॰—वसन्त-बन्धुः—-—कामदेव के विशेषण
- वसन्तसखः—पुं॰—वसन्त-सखः—-—कामदेव के विशेषण
- वसा—स्त्री॰—-—वस् + अच् + टाप्—मेद, चरबी, मज्जा, पशुमज्जा, पशुओं के गुर्दे की चर्बी
- वसा—स्त्री॰—-—वस् + अच् + टाप्—कोई तेल या चर्बीवाला स्राव
- वसा—स्त्री॰—-—वस् + अच् + टाप्—मस्तिष्क
- वसाढ्यः—पुं॰—वसा-आढ्यः—-—सूंस
- वसाढ्यकः—पुं॰—वसा-आढ्यकः—-—सूंस
- वसाछटा—स्त्री॰—वसा-छटा—-—भेजा
- वसापायिन्—पुं॰—वसा-पायिन्—-—कुत्ता
- वसिः—नपुं॰—-—वस् + इन्—कपड़े
- वसिः—नपुं॰—-—-—निवास, आवास
- वसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—वस् + णिच् + क्त—पहना हुआ, धारण किया हुआ
- वसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निवास
- वसित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—(अनाज आदि) संगृहीत
- वशिरम्—नपुं॰—-—वस् + किरच्—समुद्री नमक
- वसिष्ठः—पुं॰—-—-—एक विख्यात मुनि का नाम
- वसिष्ठः—पुं॰—-—-—स्मृति के प्रणेता का नाम
- वसु—नपुं॰—-—वस् + उन्—दौलत, धन
- वसु—नपुं॰—-—-—मणि, रत्न
- वसु—नपुं॰—-—-—सोना
- वसु—नपुं॰—-—-—पानी
- वसु—नपुं॰—-—-—वस्तु, द्रव्य
- वसु—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का नमक
- वसु—नपुं॰—-—-—एक जड़ी-विशेष, वृद्धि
- वसु—पुं॰—-—-—एक देव समुह
- वसु—पुं॰—-—-—आप
- वसु—पुं॰—-—-—ध्रुव
- वसु—पुं॰—-—-—सोम
- वसु—पुं॰—-—-—धर या धव
- वसु—पुं॰—-—-—अनिल
- वसु—पुं॰—-—-—अनल
- वसु—पुं॰—-—-—प्रत्यूष
- वसु—पुं॰—-—-—प्रभास
- वसु—पुं॰—-—-—आठ की संख्या
- वसु—पुं॰—-—-—कुबेर
- वसु—पुं॰—-—-—शिव
- वसु—पुं॰—-—-—अग्नि
- वसु—पुं॰—-—-—वृक्ष
- वसु—पुं॰—-—-—सरोवर, तालाब
- वसु—पुं॰—-—-—रास
- वसु—पुं॰—-—-—जुवा बांधने की रस्सी
- वसु—पुं॰—-—-—बागडोर
- वसु—पुं॰—-—-—प्रकाश की किरण
- वसु—पुं॰—-—-—सूर्य
- वसु—स्त्री॰—-—-—प्रकाश, किरण
- वस्वौकसरा—स्त्री॰—वसु-ओकसरा—-—इन्द्र की नगरी अमरावती
- वस्वौकसरा—स्त्री॰—वसु-ओकसरा—-—कुबेर की नगरी अलका
- वस्वौकसरा—स्त्री॰—वसु-ओकसरा—-—एक नदी का नाम जो अलका या अमरावती से संबद्ध है
- वस्वौकसरा—स्त्री॰—वसु-औकसरा—-—इन्द्र की नगरी अमरावती
- वस्वौकसरा—स्त्री॰—वसु-औकसरा—-—कुबेर की नगरी अलका
- वस्वौकसरा—स्त्री॰—वसु-औकसरा—-—एक नदी का नाम जो अलका या अमरावती से संबद्ध है
- वसुकीटः—पुं॰—वसु-कीटः—-—भिक्षुक
- वसुकृमिः—पुं॰—वसु-कृमिः—-—भिक्षुक
- वसुदा—स्त्री॰—वसु-दा—-—पृथ्वी
- वसुदेवः—पुं॰—वसु-देवः—-—कृष्ण के पिता और सूर के पुत्र का नाम
- वसुभूः—पुं॰—वसु-भूः—-—कृष्ण के विशेषण
- वसुसुतः—पुं॰—वसु-सुतः—-—कृष्ण के विशेषण
- वसुदेवता—स्त्री॰—वसु-देवता—-—धनिष्ठा नाम का नक्षत्र
- वसुदेव्या—स्त्री॰—वसु-देव्या—-—धनिष्ठा नाम का नक्षत्र
- वसुधर्मिका—स्त्री॰—वसु-धर्मिका—-—स्फटिक
- वसुधा—स्त्री॰—वसु-धा—-—पृथ्वी
- वसुधा—स्त्री॰—वसु-धा—-—भूमि
- वस्वधिपः—पुं॰—वसु-अधिपः—-—राजा
- वसुधरः—पुं॰—वसु-धरः—-—पहाड़
- वसुनगरम्—नपुं॰—वसु-नगरम्—-—वरुण की राजधानी
- वसुधारा—स्त्री॰—वसु-धारा—-—कुबेर की राजधानी
- वसुभारा—स्त्री॰—वसु-भारा—-—कुबेर की राजधानी
- वसुप्रभा—स्त्री॰—वसु-प्रभा—-—आग की सात जिह्नाओं में से एक
- वसुप्राणः—पुं॰—वसु-प्राणः—-—अग्नि का विशेषण
- वसुरेतस्—पुं॰—वसु-रेतस्—-—अग्नि
- वसुश्रेष्ठम्—नपुं॰—वसु-श्रेष्ठम्—-—तपाया हुआ सोना
- वसुश्रेष्ठम्—नपुं॰—वसु-श्रेष्ठम्—-—चाँदी
- वसुवेणः—पुं॰—वसु-वेणः—-—कर्ण का नाम
- वसुस्थली—स्त्री॰—वसु-स्थली—-—कुबेर की नगरी का विशेषण
- वसुकः—पुं॰—-—वसु + कै + क—आक का पौधा
- वसूकः—पुं॰—-—वसु + कै + क—आक का पौधा
- वसुकम्—नपुं॰—-—-—समुद्री नमक
- वसुकम्—नपुं॰—-—-—शिलीभूत लवण
- वसुन्धरा—स्त्री॰—-—वसूनि धारयति-वसु + धृ + णिच् + खच् + टाप्, मुम्—पृथ्वी
- वसुमत्—वि॰—-—वसु + मतुप्—दौलतमंद, धनवान
- वसुमती—स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
- वसुलः—पुं॰—-—वसु + ला + क—सुर, देवता
- वसूराः—स्स्—-—वस् + ऊरच् + टाप्—वेश्या, रंडी, गणिका
- वस्क्—भ्वा॰ आ॰ <वस्कते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- वस्कयः—पुं॰—-—-—एक वर्ष का बछड़ा
- वस्कयणी—स्त्री॰—-—-—वह गाय जिसके बछड़े बहुत बड़े हो गये हैं, चिर प्रसूता, बहुत दिनों की ब्यायी हुई
- वस्कराटिका—स्त्री॰—-—-—विच्छू
- वस्त्—चुरा॰ उभ॰ <वस्तयति>,<वस्तयते>—-—-—क्षति पहुँचाना, हत्या करना
- वस्त्—चुरा॰ उभ॰ <वस्तयति>,<वस्तयते>—-—-—मांगना, निवेदन करना, याचना करना
- वस्त्—चुरा॰ उभ॰ <वस्तयति>,<वस्तयते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- वस्म्—नपुं॰—-—वस्त + अच्—आवासस्थान
- वस्तः—पुं॰—-—-—बकरा
- वस्तकम्—नपुं॰—-—वस्त + कै + क—कृत्रिम लवण
- वस्तिः—पुं॰—-—वस् + तिः—निवास, आवास, टिकना
- वस्तिः—पुं॰—-—-—उदर, पेट का नाभि से नीचे का भाग
- वस्तिः—पुं॰—-—-—पेडू
- वस्तिः—पुं॰—-—-—मूत्राशय
- वस्तिः—पुं॰—-—-—पिचकारी, एनीमा
- वस्तिमलम्—नपुं॰—वस्तिः-मलम्—-—मूत्र
- वस्तिशिरस्—नपुं॰—वस्तिः-शिरस्—-—एनीमा की नली
- वस्तिशोधनम्—नपुं॰—वस्तिः-शोधनम्—-—(मूत्राशय साफ करने की) मूत्र बढ़ाने वाली दवा
- वस्तु—नपुं॰—-—वस् + तुन्—वस्तुतः विद्यमान चीज, वास्तविक, वास्तविकता
- वस्तु—नपुं॰—-—-—चीज, पदार्थ, सामग्री, द्रव्य, मामला
- वस्तु—नपुं॰—-—-—धनदौलत, सम्पत्ति, वैभव
- वस्तु—नपुं॰—-—-—सत, प्रकृति, नैसर्गिक या प्रधान गुण
- वस्तु—नपुं॰—-—-—सामान (जिससे कोई वस्तु बन सके), सामग्री, मूलपदार्थ
- वस्तु—नपुं॰—-—-—(नाटक की) कथावस्तु, किसी काव्यकृति की विषयवस्तु
- वस्तु—नपुं॰—-—-—किसी वस्तु का गूदा
- वस्तु—नपुं॰—-—-—योजना, रूपरेखा
- वस्त्वभावः—पुं॰—वस्तु-अभावः—-—वास्तविकता की कमी
- वस्त्वभावः—पुं॰—वस्तु-अभावः—-—सम्पत्ति की हानि
- वस्तूत्थापनम्—नपुं॰—वस्तु-उत्थापनम्—-—ओझाई या झाड़फूंक अथवा अभिचार के द्बारा (नाटकों में) किसी उपख्यान की रचना
- वस्तूपमा—स्त्री॰—वस्तु-उपमा—-—दण्डी के अनुसार उपमा का एक भेद, दण्डी द्वारा निरूपित लक्षण
- वस्तूपहित—वि॰—वस्तु-उपहित—-—उपयुक्त पदार्थ के साथ व्यवहृत, उपयुक्त सामग्री पर अर्पित
- वस्तुमात्रम्—नपुं॰—वस्तु-मात्रम्—-—किसी विषय की केवल रूपरेखा या ढांचा
- वस्तुतम्—अव्य॰—-—वस्तु + तस्—दरासल, वास्तव में, सचमुच, वाकई
- वस्तुतम्—अव्य॰—-—-—अनिवार्यतः, यथार्थतः, तत्त्वतः
- वस्तुतम्—अव्य॰—-—-—इसका स्वाभाविक फल यह है कि, सच बात तो यह है कि, निस्सन्देह
- वस्त्यम्—नपुं॰—-—वस्ति + यत्—घर, आवासस्थान, निवासस्थान
- वस्त्रम्—नपुं॰—-—वस् + ष्ट्रन्—परिधान, कपड़ा, कपड़े, पहनावा
- वस्त्रम्—नपुं॰—-—-—वेशभूषा, पोशाक
- वस्त्रागारः—नपुं॰—वस्त्रम्-अगारम्—-—तम्बू
- वस्त्रागारम्—पुं॰—वस्त्रम्-अगारः—-—तम्बू
- वस्त्रगृहम्—नपुं॰—वस्त्रम्-गृहम्—-—तम्बू
- वस्त्रांचलः—पुं॰—वस्त्रम्-अंचलः—-—कपड़े की किनारी या वस्त्र की झालर
- वस्त्रांतः—पुं॰—वस्त्रम्-अंतः—-—कपड़े की किनारी या वस्त्र की झालर
- वस्त्रकुट्टिमम्—नपुं॰—वस्त्रम्-कुट्टिमम्—-—तम्बू
- वस्त्रकुट्टिमम्—नपुं॰—वस्त्रम्-कुट्टिमम्—-—छतरी
- वस्त्रग्रंथिः—पुं॰—वस्त्रम्-ग्रंथिः—-—धोती या साड़ी की गांठ (जो नाभि के निकट कपड़े में लगाई जाति है)
- वस्त्रनिर्णेजकः—पुं॰—वस्त्रम्-निर्णेजकः—-—धोबी
- वस्त्रपरिधानम्—नपुं॰—वस्त्रम्-परिधानम्—-—कपड़े पहनना, वस्त्रधारण करना
- वस्त्रपुत्रिका—स्त्री॰—वस्त्रम्-पुत्रिका—-—गुडिया, पुत्तलिका
- वस्त्रपूत—वि॰—वस्त्रम्-पूत—-—कपड़े में छाना हुआ
- वस्त्रभेदकः—पुं॰—वस्त्रम्-भेदकः—-—दर्जी
- वस्त्रभेदिन्—पुं॰—वस्त्रम्-भेदिन्—-—दर्जी
- वस्त्रयोनिः—पुं॰—वस्त्रम्-योनिः—-—कपड़े का उपादान (कपास आदि)
- वस्त्ररंजनम्—नपुं॰—वस्त्रम्-रंजनम्—-—कुसुंभ
- वस्नम्—नपुं॰—-—वस् + न—भाड़ा, मजदूरी
- वस्नम्—पुं॰—-—-—भाड़ा, मजदूरी
- वस्नम्—नपुं॰—-—-—निवासस्थान, आवासस्थान
- वस्नम्—नपुं॰—-—-—दौलत, द्रव्य
- वस्नम्—नपुं॰—-—-—वस्त्र, कपड़े
- वस्नम्—नपुं॰—-—-—चमड़ा
- वस्नम्—नपुं॰—-—-—मूल्य
- वस्नम्—नपुं॰—-—-—मृत्यु
- वस्ननम्—नपुं॰—-—वस् + नन—करधनी, पटका या तागड़ी
- वस्नसा—स्त्री॰—-—वस्नं चर्म सीव्गति-सिव् + ड + टाप्—कण्डरा, स्नायु
- वंह्—चुरा॰ उभ॰ <वंहवति>,<वंहवते>—-—-—उज्ज्वल करना, चमकाना, रोशनी करना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰ <वहति>,<वहते>,<ऊढ>,कर्म॰ <उह्यते>—-—-—ले जाना, नेतृत्व करना, धारण करना, वहन करना, परिवहन करना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰ <वहति>,<वहते>,<ऊढ>,कर्म॰ <उह्यते>—-—-—ढोना, आगे चलाना, बहा कर ले जाना, धकेलना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰ <वहति>,<वहते>,<ऊढ>,कर्म॰ <उह्यते>—-—-—जाकर लाना, ले आना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰ <वहति>,<वहते>,<ऊढ>,कर्म॰ <उह्यते>—-—-—धारण करना, सहारा देना, थाम लेना, जीवित रहना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰ <वहति>,<वहते>,<ऊढ>,कर्म॰ <उह्यते>—-—-—उठाकर ले जाना, अपहरण करना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰ <वहति>,<वहते>,<ऊढ>,कर्म॰ <उह्यते>—-—-—विवाह करना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰ <वहति>,<वहते>,<ऊढ>,कर्म॰ <उह्यते>—-—-—रखना, अधिकार में करना, भारवहन करना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰ <वहति>,<वहते>,<ऊढ>,कर्म॰ <उह्यते>—-—-—धारण करना, प्रदर्शित करना, दिखाना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰ <वहति>,<वहते>,<ऊढ>,कर्म॰ <उह्यते>—-—-—मुंह ताकना, सेवा करना, देखभाल करना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰ <वहति>,<वहते>,<ऊढ>,कर्म॰ <उह्यते>—-—-—भुगतना, टटोलना, अनुभव करना
- वह्—भ्वा॰, अक॰—-—-—धारण किया जाना, ले जाया जाना, चलते रहना
- वह्—भ्वा॰, अक॰—-—-—(नदी आदि का) बहना
- वह्—भ्वा॰, अक॰—-—-—(हवा का) चलना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <वाहयति>,<वाहयते>—-—-— धारण कराना, भिजवाना, मँगवाना, ले जाया जाना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <वाहयति>,<वाहयते>—-—-—हाँकना, ठेलना, निदेश देना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <वाहयति>,<वाहयते>—-—-—आर पार जाना, पारगमन करना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <वाहयति>,<वाहयते>—-—-—उपयोग करना, ले जाना
- वह्—भ्वा॰ उभ॰, इच्छा॰ <विवक्षति>,<विवक्षते>—-—-—ले जाने की इच्छा करना
- अतिवह्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —अति-वह्—-—गुज़ारना, (समय) बिताना, मुख्य रूप से
- अपवह्—भ्वा॰ उभ॰—अप-वह्—-—हाँक कर दूर भगा देना, हटाना, दूर ले जाना
- अपवह्—भ्वा॰ उभ॰—अप-वह्—-—छोड़ना, त्यागना, तिलांजलि देना
- अपवह्—भ्वा॰ उभ॰—अप-वह्—-—घटाना, व्यवकलन करना
- आवह्—भ्वा॰ उभ॰—आ-वह्—-—पूरी तरह समझा देना
- आवह्—भ्वा॰ उभ॰—आ-वह्—-—जन्म देना, पैदा करना प्रवृत्त होना या झुकना
- आवह्—भ्वा॰ उभ॰—आ-वह्—-—वहन करना, कब्जे में करना, रखना
- आवह्—भ्वा॰ उभ॰—आ-वह्—-—बहना
- आवह्—भ्वा॰ उभ॰—आ-वह्—-—प्रयोग करना, उपयोग करना
- आवह्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—आ-वह्—-—(देवता का) आवाहन करना
- उद्वह्—भ्वा॰ उभ॰—उद्-वह्—-—विवाह करना
- उद्वह्—भ्वा॰ उभ॰—उद्-वह्—-—ऊपर उठाना, उन्नत होना
- उद्वह्—भ्वा॰ उभ॰—उद्-वह्—-—संभालना, जीवित रखना, ऊँचे उठाना, सहारा देना
- उद्वह्—भ्वा॰ उभ॰—उद्-वह्—-—भुगतना, अनुभव करना
- उद्वह्—भ्वा॰ उभ॰—उद्-वह्—-—अधिकार में करना, रखना, पहनना, धारण करना
- उद्वह्—भ्वा॰ उभ॰—उद्-वह्—-—समाप्त करना, पूरा करना
- उपवह्—भ्वा॰ उभ॰—उप-वह्—-—निकट लाना
- उपवह्—भ्वा॰ उभ॰—उप-वह्—-—उपक्रम करना, आरम्भ करना
- निवह्—भ्वा॰ उभ॰—नि-वह्—-—संभाले रखना, जीवित रखना, सहारा देना
- निःवह्—भ्वा॰ उभ॰—निस्-वह्—-—समाप्त होना
- निःवह्—भ्वा॰ उभ॰—निस्-वह्—-—अवलंबित होना,…की सहायता से निर्वाह करना
- निःवह्—भ्वा॰ उभ॰—निस्-वह्—-—समाप्ति तक ले जाना, पूरा करना, समाप्त करना, प्रबंध करना
- परिवह्—भ्वा॰ उभ॰—परि-वह्—-—छलकना
- प्रवह्—भ्वा॰ उभ॰—प्र-वह्—-—वहन करना, ले जाना, खींचते रहना
- प्रवह्—भ्वा॰ उभ॰—प्र-वह्—-—वहा ले जाना, ले जाना, वहन करते जाना
- प्रवह्—भ्वा॰ उभ॰—प्र-वह्—-—सहारा देना, (भार) वहन करना,
- प्रवह्—भ्वा॰ उभ॰—प्र-वह्—-—बहना
- प्रवह्—भ्वा॰ उभ॰—प्र-वह्—-—खिलना
- प्रवह्—भ्वा॰ उभ॰—प्र-वह्—-—रखना, अधिकार में करना, स्पर्श करना या महसूस करना
- विवह्—भ्वा॰ उभ॰—वि-वह्—-—विवाह करना
- संवह्—भ्वा॰ उभ॰—सम्-वह्—-—ले जाना, धारण किये जाना
- संवह्—भ्वा॰ उभ॰—सम्-वह्—-—मसलना, दबाना
- संवह्—भ्वा॰ उभ॰—सम्-वह्—-—विवाह करना, दिखाना, प्रदर्शित करना, प्रस्तुत करना
- संवह्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—सम्-वह्—-—मसलना, या मालिश करना
- वहः—पुं॰—-—वह् + कर्तरि अच्—वहन करने वाला, ले जाने वाला, सहारा देने वाला
- वहः—पुं॰—-—वह् + कर्तरि अच्—बैल के कंधे
- वहः—पुं॰—-—वह् + कर्तरि अच्—सवारी यान
- वहः—पुं॰—-—वह् + कर्तरि अच्—विशेष करके घोड़ा
- वहः—पुं॰—-—वह् + कर्तरि अच्—हवा, वायु
- वहः—पुं॰—-—वह् + कर्तरि अच्—मार्ग सड़क
- वहः—पुं॰—-—वह् + कर्तरि अच्—नद, नाला
- वहः—पुं॰—-—वह् + कर्तरि अच्—चार द्रोण की माप
- वहतः—पुं॰—-—वह् + अतच्—यात्री
- वहतः—पुं॰—-—वह् + अतच्—बैल
- वहतिः—पुं॰—-—वह् + अतिः—बैल
- वहतिः—पुं॰—-—वह् + अतिः—हवा, वायु
- वहतिः—पुं॰—-—वह् + अतिः—मित्र, परामर्शदाता, सलाहकार
- वहती—स्त्री॰—-—वहति + ङीष्—नदी, सरिता
- वहा—स्त्री॰—-—-—नदी, सरिता
- वहतुः—पुं॰—-—वह् + अतु—बैल
- वहनम्—नपुं॰—-—वह् + ल्युट्—ले जाना, धारण करना, ढोना
- वहनम्—नपुं॰—-—-—सहारा देना
- वहनम्—नपुं॰—-—-—बहना
- वहनम्—नपुं॰—-—-—गाड़ी, यान
- वहनम्—नपुं॰—-—-—नाव, डोंगी
- वहंतः—पुं॰—-—वह् + झच्—वायु
- वहंतः—पुं॰—-—-—शिशु
- वहल—वि॰—-—वह् + अलच्—अत्यधिक, यथेष्ट, प्रचुर, पुष्कल, बहुविध, महान, मजबूत
- वहल—वि॰—-—वह् + अलच्—घिनका, सघन
- वहल—वि॰—-—वह् + अलच्—लोमश (पूँछ की भांति)
- वहल—वि॰—-—वह् + अलच्—कठोर, दृढ़, सटा हुआ
- वहलः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का इक्षुरस, ईख, गन्ना
- वहला—स्त्री॰—-—-—बड़ी इलायची
- वहित्रम्—नपुं॰—-—वह् + इत्र—डोंगी, बेड़ा, नाव, किश्ती
- वहित्रकम्—नपुं॰—-—वहित्र + कन्—डोंगी, बेड़ा, नाव, किश्ती
- वहिनी—स्त्री॰—-—वह् + इनि + ङीष्—डोंगी, बेड़ा, नाव, किश्ती
- वहिस्—अव्य॰—-—वह् + इयसुन्—में से, बाहर
- वहिस्—अव्य॰—-—वह् + इयसुन्—बाहर की ओर, दरवाजे के बाहर
- वहिस्—अव्य॰—-—वह् + इयसुन्—बाह्यतः, बाहर की ओर से
- वहिष्क—वि॰—-—वहिस् + कन्—बाहरी, बाह्यपत्रसंबंधी
- वहेडुकः—पुं॰—-—-—बहेड़े का पेड़, विभीतक का वृक्ष
- वह्निः—पुं॰—-—वह् + निः—अग्नि
- वह्निः—पुं॰—-—-—पाचनशक्ति, आमाशय का रस
- वह्निः—पुं॰—-—-—हाज़मा, भूख लगना
- वह्निः—पुं॰—-—-—यान
- वह्निकर—वि॰—वह्निः-कर—-—अन्तदहिक
- वह्निकर—वि॰—वह्निः-कर—-—पाचनशक्ति को उद्दीप्त करने वाला, क्षुधावर्धक
- वह्निकाष्ठम्—नपुं॰—वह्निः-काष्ठम्—-—एक प्रकार की अगर की लकड़ी
- वह्निगंधः—पुं॰—वह्निः-गंधः—-—धूप, लोबान
- वह्निगर्भः—पुं॰—वह्निः-गर्भः—-—बांस
- वह्निगर्भः—पुं॰—वह्निः-गर्भः—-—शमी या जैंडी का वृक्ष
- वह्निदीपकः—पुं॰—वह्निः-दीपकाः—-—कुसुंभ का पेड़
- वह्निभोग्यम्—नपुं॰—वह्निः-भोग्यम्—-—घी
- वह्निमित्रः—पुं॰—वह्निः-मित्रः—-—हवा, वायु
- वह्निरेतस्—पुं॰—वह्निः-रेतस्—-—शिव का विशेषण
- वह्निलोहम्—नपुं॰—वह्निः-लोहम्—-—तांबा
- वह्निलोहकम्—नपुं॰—वह्निः-लोहकम्—-—तांबा
- वह्निवर्णम्—नपुं॰—वह्निः-वर्णम्—-—लाल रंग का कुमुद, रक्तोत्पल
- वह्निवल्लभः—पुं॰—वह्निः-वल्ल्भः—-—राल
- वह्निवीजम्—नपुं॰—वह्निः-वीजम्—-—सोना
- वह्निवीजम्—नपुं॰—वह्निः-वीजम्—-—चूना
- वह्निशिखम्—नपुं॰—वह्निः-शिखम्—-—केसर
- वह्निशिखम्—नपुं॰—वह्निः-शिखम्—-—कुसुंभ
- वह्निसखः—पुं॰—वह्निः-सखः—-—हवा
- वह्निसंज्ञकः—पुं॰—वह्निः-संज्ञकः—-—चित्रकवृक्ष
- वह्यम्—नपुं॰—-—वह् + यत्—गाड़ी
- वह्यम्—नपुं॰—-—वह् + यत्—यान, सवारी
- वह्या—स्त्री॰—-—-—एक मुनि की पत्नी
- वह्लिक—वि॰—-—-—
- वह्लीक—वि॰—-—-—
- वा—अव्य॰—-—वा + क्विप्—विकल्प बोधक अव्यय
- वा—अव्य॰—-—-—और, भी
- वा—अव्य॰—-—-—के समान, जैसा कि
- वा—अव्य॰—-—-—विकल्प से
- वा—अव्य॰—-—-—संभावना
- वा—अव्य॰—-—-—कभी कभी केवल पाद्पूर्ति के लिए ही प्रयुक्त होता है
- वा—अव्य॰—-—-—जब ‘वा’ की पुनरुक्ति की जाती है तो इसका अर्थ होता है या-या
- वा—भ्वा॰ अदा॰ पर॰ <वाति>,<वात>,<वान>—-—-—हवा का चलना
- वा—भ्वा॰ अदा॰ पर॰ <वाति>,<वात>,<वान>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
- वा—भ्वा॰ अदा॰ पर॰ <वाति>,<वात>,<वान>—-—-—प्रहार करना, चोट पहुंचाना, क्षतिग्रस्त करना
- वा—भ्वा॰ अदा॰उभ॰प्रेर॰ <वापयति>,<वापयते>—-—-—हवा चलवाना
- वा—भ्वा॰ अदा॰उभ॰प्रेर॰ <वापयति>,<वापयते>—-—-—डुलना
- आवा—भ्वा॰ अदा॰ पर॰—आ-वा—-—हवा का चलना
- निर्वा—भ्वा॰ अदा॰ पर॰—निस्-वा—-—खिलना
- निर्वा—भ्वा॰ अदा॰ पर॰—निस्-वा—-—ठंडा होना, शान्त होना
- निर्वा—भ्वा॰ अदा॰ पर॰, प्रेर॰ —निस्-वा—-—फूंक मारना, बुझना, तिष्प्रभ होना
- निर्वा—भ्वा॰ अदा॰ पर॰, प्रेर॰ —निस्-वा—-—शांत करना, गर्मी दूर करना, शीतल करना
- निर्वा—भ्वा॰ अदा॰ पर॰, प्रेर॰ —निस्-वा—-—रिझाना, सान्त्वना देना, आराम पहुँचाना
- प्रवा—भ्वा॰ अदा॰ पर॰—प्र-वा—-—हवा का चलना
- विवा—भ्वा॰ अदा॰ पर॰—वि-वा—-—हवा का चलना
- वांश—वि॰—-—वशं + अण्—बांस का बना हुआ
- वांशी—स्त्री॰—-—-—बंसलोचन
- वांशिकः—पुं॰—-—वशं + ठक्—वांस काटने वाला
- वांशिकः—पुं॰—-—-—बांसुरी बजाने वाला, बाँसुरिया
- वाकम्—नपुं॰—-—वक + अण्—सारसों का समूह या उड़ान
- वाकुलम्—नपुं॰—-—वकुल + अच्—बकुल वृक्ष का फल
- वाक्यम्—नपुं॰—-—वच् + ण्यत्, चस्य कः—वक्तृता, वचन, वक्तव्य, उक्ति, कथन
- वाक्यम्—नपुं॰—-—-—बात, उपवाक्य
- वाक्यम्—नपुं॰—-—-—तर्क, अनुमान (तर्क में)
- वाक्यम्—नपुं॰—-—-—विधि, नियम, सूत्र
- वाक्यार्थः—पुं॰—वाक्यम्-अर्थः—-—वाक्य का अर्थ
- वाक्योपमा—स्त्री॰—वाक्यम्-उपमा—-—दण्डी के अनुसार उपमा का एक भेद
- वाक्यालापः—पुं॰—वाक्यम्-आलापः—-—वार्तालाप, बातचीत, प्रवचन
- वाक्यखंडनम्—नपुं॰—वाक्यम्-खंडनम्—-—किसी उक्ति या तर्क का निराकरण
- वाक्यपदीयम्—नपुं॰—वाक्यम्-पदीयम्—-—भर्तृहरि द्वारा रचित एक पुस्तक का नाम
- वाक्यपद्धतिः—स्त्री॰—वाक्यम्-पद्धतिः—-—वाक्य बनाने की रीति, वाक्यविन्यास, लेखनशैली
- वाक्यप्रबंधः—पुं॰—वाक्यम्-प्रबंधः—-—पुस्तक, संबद्ध रचना
- वाक्यप्रबंधः—पुं॰—वाक्यम्-प्रबंधः—-—वाक्य प्रवाह
- वाक्यप्रयोगः—पुं॰—वाक्यम्-प्रयोगः—-—वक्तृता को काम में लाना, भाषा का उपयोग
- वाक्यभेदः—पुं॰—वाक्यम्-भेदः—-—भिन्न उक्ति, विभिन्न वक्तव्य
- वाक्यरचना—स्त्री॰—वाक्यम्-रचना—-—वाक्य में शब्दों का क्रम, शब्द योजना, वाक्यरचनाविचार
- वाक्यविन्यासः—पुं॰—वाक्यम्-विन्यासः—-—वाक्य में शब्दों का क्रम, शब्द योजना, वाक्यरचनाविचार
- वाक्यशेषः—पुं॰—वाक्यम्-शेषः—-—किसी बात का अवशिष्ट भाग, पूरा न किया गया या अपूर्ण वाक्य
- वाक्यशेषः—पुं॰—वाक्यम्-शेषः—-—न्यून पद वाक्य
- वागरः—पुं॰—-—वाचा इयर्ति गच्छति, वाच् + ऋ + अच्—ऋषि, मुनि, पुण्यात्मा
- वागरः—पुं॰—-—-—विद्वान् ब्राह्मण, विद्यार्थी
- वागरः—पुं॰—-—-—शूर, वीर, सूरमा
- वागरः—पुं॰—-—-—सान, सिल्ली
- वागरः—पुं॰—-—-—बाधा, रूकावट
- वागरः—पुं॰—-—-—निश्चिति
- वागरः—पुं॰—-—-—बड़वानल
- वागरः—पुं॰—-—-—भेड़िया
- वागा—स्त्री॰—-—-—लगाम
- वागुरा—स्त्री॰—-—वा हिंसने उरच् गन् च—खटकेदार पिंजड़ा, जाल, पाश, फन्दा, जालीदार फ़न्दा
- वागुरावृत्तिः—स्त्री॰—वागुरा-वृत्तिः—-—जंगली जानवरों को पकड़ कर प्राप्त होने वाली आजीविका
- वागुरावृत्तिः—स्त्री॰—वागुरा-वृत्तिः—-—बहेलिया, शिकारी
- वागुरिकः—पुं॰—-—वागुरा + ठक्—बहेलिया, शिकारी, हरिण पकड़ने वाला
- वाग्मिन्—वि॰—-—वाक् अस्त्यर्थे ग्मिनिः चस्यः कः—वाक्पटु, वाक्चतुर
- वाग्मिन्—वि॰—-—-—बातूनी
- वाग्मिन्—वि॰—-—-—शब्दाडम्बपूर्ण, शब्दसंक्रान्त
- वाग्मिन्—पुं॰—-—-—प्रवक्ता सुवक्ता
- वाग्मिन्—पुं॰—-—-—बृहस्पति का नाम
- वाग्य—वि॰—-—वांच यच्छति- यम् + ड—कम बोलने वाला, मितभाषी
- वाग्य—वि॰—-—-—सत्य बोलने वाला
- वाग्यः—पुं॰—-—-—विनय, नम्रता
- वांकः—पुं॰—-—-—समुद्र
- वांक्ष्—भ्वा॰ पर॰ <वांक्षति>—-—-—अभिलाषा करना, इच्छा करना
- वाङ्मय—वि॰—-—वाच् + मयट्—शब्दों से युक्त
- वाङ्मय—वि॰—-—-—बाणी या वचनों से संबन्ध रखने वाला
- वाङ्मय—वि॰—-—-—बाणी से युक्त
- वाङ्मय—वि॰—-—-—वाक्पटु, अलंकारपूर्ण, वाग्विदग्ध
- वाङ्मयम्—नपुं॰—-—-—बाणी, भाषा
- वाङ्मयम्—नपुं॰—-—-—वाग्मिता
- वाङ्मयम्—नपुं॰—-—-—आलंकारिक
- वाङ्मयी—स्त्री॰—-—-—सरस्वती देवी
- वाच्—स्त्री॰—-—वच् + क्विप् दीर्घोऽसंप्रसारणं च—वचन, शब्द, पदावली
- वाच्—स्त्री॰—-—-—वचन, बात, भाषा, बाणी
- वाच्—स्त्री॰—-—-—बाणी, शब्द
- वाच्—स्त्री॰—-—-—उक्ति, वक्तव्य
- वाच्—स्त्री॰—-—-—भरोसा, प्रतिज्ञा
- वाच्—स्त्री॰—-—-—पदोच्चय, कहावत, लोकोक्ति
- वाच्—स्त्री॰—-—-—विद्या की देवी सरस्वती
- वागर्थः—पुं॰—वाच्-अर्थः—-—शब्द और उसका अर्थ
- वागाडम्बरः—पुं॰—वाच्-अडम्बरः—-—शब्दाडम्बर, वाग्जाल
- वागात्मन्—वि॰—वाच्-आत्मन्—-—शब्दों से युक्त
- वागीशः—पुं॰—वाच्-ईशः—-—सुवक्ता, वाक्पटु
- वागीशः—पुं॰—वाच्-ईशः—-—देवताओं के गुरु बृहस्पति का विशेषण
- वागीशः—पुं॰—वाच्-ईशः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- वागीशा—स्त्री॰—वाच्-ईशा—-—सरस्वती का नाम
- वागीश्वरः—पुं॰—वाच्-ईश्वरः—-—सुवक्ता, वाक्पटु
- वागीश्वरः—पुं॰—वाच्-ईश्वरः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- वागीश्वरी—स्त्री॰—वाच्-ईश्वरी—-—बाणी की देवता सरस्वती का नाम
- वागृषभः—पुं॰—वाच्-ऋषभः—-—बोलने में प्रमुख, वाक्पटु या विद्वान् पुरुष
- वाक्क्लहः—पुं॰—वाच्-कलहः—-—झगड़ा, उत्पात
- वाक्कीरः—पुं॰—वाच्-कीरः—-—पत्नी का भाई
- वाग्गुदः—पुं॰—वाच्-गुदः—-—एक प्रकार का पक्षी
- वाग्गुलिः—पुं॰—वाच्-गुलिः—-—राजा का पान दान-वाहक
- वाग्गुलिकः—पुं॰—वाच्-गुलिकः—-—राजा का पान दान-वाहक
- वाक्चपल—वि॰—वाच्-चपल—-—बकवास करने वाला, निरर्थक और असंगत बातें करने वाला
- वाक्चापल्यम्—नपुं॰—वाच्-चापल्यम्—-—निरर्थक बातें, बकवास, गपशप
- वाक्छलम्—नपुं॰—वाच्-छलम्—-—शब्दों के द्वारा बेईमानी, टालमटूल उत्तर, गोलमाल
- वाग्जालम्—नपुं॰—वाच्-जालम्—-—शब्दाडंबरपूर्ण असार बातें
- वाग्डम्बरः—पुं॰—वाच्-डम्बरः—-—निस्सार उक्ति
- वाग्डम्बरः—पुं॰—वाच्-डम्बरः—-—बड़े बोल
- वाग्दण्डः—पुं॰—वाच्-दण्डः—-—भर्त्सनापूर्ण वचन, डाट-फटकार, झिड़की
- वाग्दण्डः—पुं॰—वाच्-दण्डः—-—बोलने पर नियन्त्रण, शब्दों या वचनों पर रोक
- वाग्दत्त—वि॰—वाच्-दत्त—-—प्रतिज्ञात, संबद्ध, जिसकी सगाई हो चुकी हो
- वाग्दत्ता—स्त्री॰—वाच्-दत्ता—-—संबद्ध या सगाई हुई कन्या
- वाग्दरिद्र—वि॰—वाच्-दरिद्र—-—वचनों में दरिद्र अर्थात् कम बोलने वाला
- वाग्दलम्—नपुं॰—वाच्-दलम्—-—ओष्ठ
- वाग्दानम्—नपुं॰—वाच्-दानम्—-—सगाई
- वाग्दुष्ट—वि॰—वाच्-दुष्ट—-—गाली देने वाला, बदजबान, अश्लीलभाषी
- वाग्दुष्ट—वि॰—वाच्-दुष्ट—-—व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध भाषा बोलने वाला
- वाग्दुष्टः—पुं॰—वाच्-दुष्टः—-—निन्दक
- वाग्दुष्टः—पुं॰—वाच्-दुष्टः—-—वह ब्राह्मण जिसका उपनयनसंस्कार ठीक समय पर न हुआ हो
- वाग्देवता—स्त्री॰—वाच्-देवता—-—बाणी की देवता सरस्वती देवी
- वाग्देवी—स्त्री॰—वाच्-देवी—-—बाणी की देवता सरस्वती देवी
- वाग्दोषः—पुं॰—वाच्-दोषः—-—(अरुचिकर) शब्द का उच्चारण
- वाग्दोषः—पुं॰—वाच्-दोषः—-—अपशब्द, मानहानि
- वाग्दोषः—पुं॰—वाच्-दोषः—-—व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध भाषण
- वाग्निबन्धन—वि॰—वाच्-निबन्धन—-—वचनों पर आश्रित रहने वाला
- वाङ्निश्चयः—पुं॰—वाच्-निश्चयः—-—मुंह के वचन से मंगनी, विवाह-संविदा
- वाङ्निष्ठा—स्त्री॰—वाच्- निष्ठा—-—(अपने वचनों या प्रतिज्ञा) के प्रति भक्ति या श्रद्धा
- वाक्पटु—वि॰—वाच्- पटु—-—बोलने में कुशल, वाक्चतुर
- वाक्पति—वि॰—वाच्- पति—-—वाकचतुर, अलंकारयुक्त
- वाक्पतिः—पुं॰—वाच्- पतिः—-—बृहस्पति का नाम
- वाक्पारुष्यम्—नपुं॰—वाच्- पारुष्यम्—-—भाषा की कर्कशता
- वाक्पारुष्यम्—नपुं॰—वाच्- पारुष्यम्—-—शब्दों द्वारा अपमान, अपशब्दयुक्त भाषा, मानहानि
- वाक्प्रचोदनम्—नपुं॰—वाच्- प्रचोदनम्—-—वचनों में अभिव्यक्त किया गया आदेश
- वाक्प्रतोदः—पुं॰—वाच्- प्रतोदः—-—वचनों द्वारा उकसाना, भड़काने वाली या उपालभयुक्त भाषा
- वाक्प्रलापः—पुं॰—वाच्- प्रलापः—-—वाग्मिता
- वाग्बंधनम्—नपुं॰—वाच्- बंधनम्—-—भाषण बंद करना, चुप करना
- वाङमनसे—नपुं॰—वाच्- मनसे—-—बाणी और मन
- वाङ्मात्रम्—नपुं॰—वाच्- मात्रम्—-—केवल वचन
- वाङ्मुखम्—नपुं॰—वाच्- मुखम्—-—किसी वक्तृता का आरंभ या प्रस्तावना, आमुख, भूमिका
- वाग्यत—वि॰—वाच्- यत—-—जिसने अपनी बाणी को नियंत्रित कर लिया है या दमन कर लिया है, मौनी
- वाग्यमः—पुं॰—वाच्- यमः—-—जिसने अपनी बोली को नियंत्रित कर लिया है, मुनि
- वाग्यामः—पुं॰—वाच्- यामः—-—मूक पुरुष
- वाग्युद्धम्—नपुं॰—वाच्- युद्धम्—-—शब्दों की लड़ाई, गरमागरम वादविवाद या चर्चा, विवादास्पद विषय
- वाग्वज्रः—पुं॰—वाच्- वज्रः—-—कठोर (वज्र की भांति) शब्द
- वाग्वज्रः—पुं॰—वाच्- वज्रः—-—कठोर भाषा
- वाग्विदग्ध—वि॰—वाच्- विदग्ध—-—बोलने में कुशल
- वाग्विदग्धा—स्त्री॰—वाच्- विदग्धा—-—मधुरभाषिणी और मनोहारिणी
- वाग्विभवः—पुं॰—वाच्- विभवः—-—शब्दों का भंडार, वर्णनशक्ति, भाषा पर आधिपत्य
- वाग्विलासः—पुं॰—वाच्- विलासः—-—ललित या प्रांजल भाषा
- वाग्व्यवहारः—पुं॰—वाच्- व्यवहारः—-—मौखिक विचारविमर्श
- वाग्व्ययः—पुं॰—वाच्- व्ययः—-—शब्दों का ह्रास
- वाग्व्यापारः—पुं॰—वाच्- व्यपारः—-—बोलने की रीति
- वाग्व्यापारः—पुं॰—वाच्- व्यपारः—-—भाषणशैली या अभ्यास
- वाक्संयमः—पुं॰—वाच्-संयमः—-—भाषण या बोलने पर नियंत्रण
- वाचः—पुं॰—-—वच् + णिच् + अच्—एक प्रकार की मछली
- वाचः—पुं॰—-—-—मदन नाम का पौधा
- वाचंयम—वि॰—-— वाचो वाक्यात् यच्छति विरमति - वाच् + यम् + खच् नि॰ अम्—जिह्वा को रोकने वाला, पूर्ण निस्तब्धता रखने वाला, चुप रहने वाला, मौनी, स्वल्पभाषी
- वाचंयमः—पुं॰—-—-—मौन रहने वाला मुनि
- वाचक—वि॰—-—वक्ति अभिधावृत्त्या बोधयति अर्थात् वच् + ण्वुल्—बोलने वाला, घोषणा करने वाला, व्याख्यात्मक
- वाचक—वि॰—-—-—अभिव्यक्त करने वाला, अर्थ बतलाने वाला, प्रत्यक्ष संकेत करने वाला
- वाचक—वि॰—-—-—मौखिक
- वाचकः—पुं॰—-—-—वक्ता
- वाचकः—पुं॰—-—-—पाठक
- वाचकः—पुं॰—-—-—महत्त्वपूर्ण शब्द
- वाचकः—पुं॰—-—-—दूत
- वाचनम्—नपुं॰—-—वच् + णिच् + ल्युट्—पढ़ना, पाठ करना
- वाचनम्—नपुं॰—-—-—घोषणा, प्रकथन, उच्चारण
- वाचनकम्—नपुं॰—-—वाचन + कन्—पहेली, वुझौवल
- वाचनिक—वि॰—-—वचनेन निर्वृत्तम्-ठक्—मौखिक, शब्दों में अभिव्यक्त
- वाचस्पतिः—पुं॰—-—वाचः पतिः षष्ठ्यलुक्—‘बाणी का स्वामी’ देवों के गुरु बृहस्पति का विशेषण
- वाचस्पत्यम्—नपुं॰—-—वाचस्पति + ष्यञ्—वाक्पटुतायुक्क्त भाषण, वक्तृता, प्रभावशाली भाषण
- वाचा—स्त्री॰—-—वाक् + आप्—भाषण
- वाचा—स्त्री॰—-—-—धार्मिक ग्रन्थों का पाठ, सूत्र
- वाचा—स्त्री॰—-—-—शपथ
- वाचाट—वि॰—-—वाच् + आटच्, चस्य न कः—बातूनी, वाचाल, बहुत बातें करने वाला
- वाचाल—वि॰—-—वाचाकृतं वाच् + ठक्, चन कः—शब्दों से युक्त या अभिव्यक्त
- वाचाल—वि॰—-—-—मौखिक, शाब्दिक, मौखिक रूप से अभिव्यक्त
- वाचालकम्—नपुं॰—-—-—संदेश, मौखिक या शाब्दिक समाचार
- वाचालकम्—नपुं॰—-—-—समाचार, वार्ता, ख़बर
- वाचोयुक्ति—वि॰—-—वाचो युक्तिः यस्य ब॰ स॰, षष्ठ्या अलुक्—बोलने में कुशल, वाक्पटु
- वाचोयुक्तिः—स्त्री॰—-—-—‘शब्दों का क्रम’ घोषणा. अभिज्ञापन, भाषण
- वाच्य—वि॰—-—वच् + कर्मणि ण्यत्—कहे जाने या बतलाये जाने के योग्य, संबोधित किये जाने योग्य
- वाच्य—वि॰—-—-—अभिधानीय, गुणवाचक, विशेषक
- वाच्य—वि॰—-—-—अभिव्यक्त (शब्दार्थ आदि)
- वाच्य—वि॰—-—-—दूषणीय, निन्दनीय, डांटने-फटकारने योग्य
- वाच्यम्—नपुं॰—-—-—कलंक, निन्दा, झिड़की
- वाच्यम्—नपुं॰—-—-—अभिव्यक्त अर्थ जो अभिधा द्वारा ज्ञात हों
- वाच्यम्—नपुं॰—-—-—विधेय
- वाच्यम्—नपुं॰—-—-—क्रिया की वाच्यता
- वाच्यार्थः—पुं॰—वाच्य-अर्थः—-—अभिव्यक्त अर्थ
- वाच्यचित्रम्—नपुं॰—वाच्य-चित्रम्—-—अधम काव्य के दो भेदों में से एक, इसमें काव्य सौन्दर्य चमत्कार युक्त तथा उद्भावना युक्त विचारों की अभिव्यजना में निहित है
- वाच्यवज्रम्—नपुं॰—वाच्य-वज्रम्—-—कठोर और कर्कश भाषा
- वाजः—पुं॰—-—वज् + घञ्—बाजू, डैना
- वाजः—पुं॰—-—-—पखं
- वाजः—पुं॰—-—-—बाण का पंख
- वाजः—पुं॰—-—-—युद्ध, लड़ाई
- वाजः—पुं॰—-—-—ध्वनि
- वाजम्—नपुं॰—-—-—घी
- वाजम्—नपुं॰—-—-—श्राद्ध या और्ध्वदैहिक क्रिया के अवसर पर प्रदान किया गया पिण्ड
- वाजम्—नपुं॰—-—-—भोज्यसामग्री
- वाजम्—नपुं॰—-—-—जल
- वाजम्—नपुं॰—-—-—यज्ञ की पूर्णाहुति का मन्त्र
- वाजपेयः—पुं॰—वाजः-पेयः—-—एक विशेष यज्ञ का नाम
- वाजपेयम्—नपुं॰—वाजः-पेयम्—-—एक विशेष यज्ञ का नाम
- वाजसनः—पुं॰—वाजः-सनः—-—विष्णु का नाम
- वाजसनः—पुं॰—वाजः-सनः—-—शिव का नाम
- वाजसनिः—पुं॰—वाजः-सनिः—-—सूर्य
- वाजसनेयः—पुं॰—-—वाजसनेः सूर्यस्य छात्रः-वाजसनि + ढक्—शुक्ल यजुर्वेद या वाजसनेयी संहिता के प्रणेता याज्ञवल्क्य का नाम
- वाजसनेयिन्—पुं॰—-—वाजसनेयी +इनि—शुक्लयजुर्वेद के प्रवर्तक तथा प्रणेता याज्ञवल्क्य मुनि का नाम
- वाजसनेयिन्—पुं॰—-—-—शुक्ल यजुर्वेद का अनुयायी, वाजसनेयि संप्रदाय से सम्बन्ध रखने वाला
- वाजिन्—पुं॰—-—वाज + इनि—घोड़ा
- वाजिन्—पुं॰—-—-—बाण
- वाजिन्—पुं॰—-—-—पक्षी
- वाजिन्—पुं॰—-—-—यजुर्वेद की वाजसनेयिशाखा का अनुयायी
- वाजिपृष्ठः—पुं॰—वाजिन्-पृष्ठः—-—गोलसदाबहार
- वाजिभक्षः—पुं॰—वाजिन्-भक्षः—-—छोटी मटर
- वाजिभोजनः—पुं॰—वाजिन्-भोजनः—-—एक प्रकार का लोबिया
- वाजिमेधः—पुं॰—वाजिन्-मेधः—-—अश्वमेध यज्ञ
- वाजिशाला—स्त्री॰—वाजिन्-शाला—-—अस्तबल, घुड़शाला
- वाजीकर—वि॰—-—वाज + च्वि + कृ + अच्—कामकेलि इच्छाओं का उद्दीपक
- वाजीकरण—वि॰—-—वाज + च्वि + कृ + ल्युट्—कामोद्दीपकों द्वारा कामनाओं को उत्तेजित या उद्दीप्त करना
- वांछ्—भ्वा॰ पर॰ <वांछति>,<वांछित>—-—-—अभिलाषा करना, चाहना
- अभिवांछ्—भ्वा॰ पर॰—अभि-वांछ्—-—कामना करना, अभिलाषा करना, इच्छा करना
- संवांछ्—भ्वा॰ पर॰—सम्-वांछ्—-—कामना करना, अभिलाषा करना, इच्छा करना
- वांछनम्—नपुं॰—-—वांछ् + ल्युट्—कामना, इच्छा करना
- वांछा—स्त्री॰—-—वांछ् + अ + टाप्—कामना करना, इच्छा करना, अभिलाषा करना
- वांछित—भू॰ क॰ कृ॰—-—वांछ् + क्त—अभीष्ट, इच्छित
- वांछितम्—नपुं॰—-—-—अभिलाष, इच्छा
- वांछिन्—वि॰—-—वांछ् + णिनि—अभिलाषी
- वांछिन्—वि॰—-—-—विलासी
- वाटः—पुं॰—-—वट् + घञ्—बाड़ा, घिरा हुआ भूभाग, अहाता
- वाटम्—नपुं॰—-—वट् + घञ्—बाड़ा, घिरा हुआ भूभाग, अहाता
- वाटः—पुं॰—-—-—उद्यान, उपवन, फलोद्यान
- वाटः—पुं॰—-—-—सड़क
- वाटः—पुं॰—-—-—तट पर लगाया गया लकड़ी के तख्तों का बांध
- वाटः—पुं॰—-—-—अन्न विशेष
- वाटम्—नपुं॰—-—-—उद्यान, उपवन, फलोद्यान
- वाटम्—नपुं॰—-—-—सड़क
- वाटम्—नपुं॰—-—-—तट पर लगाया गया लकड़ी के तख्तों का बांध
- वाटम्—नपुं॰—-—-—अन्न विशेष
- वाटधानः—पुं॰—वाटः-धानः—-—ब्राह्मण स्त्री में पतित ब्राह्मण द्वारा उत्पन्न सन्तान
- वाटिका—स्त्री॰—-—वट् + ण्वुल् + टाप्—वह भूखण्ड जहाँ पर कोई भवन बनाना हो
- वाटिका—स्त्री॰—-—-—फलोद्यान, बगीचा
- वाटी—स्त्री॰—-—वाट + ङीष्—वह भूखण्ड जहाँ पर कोई भवन बनाया है
- वाटी—स्त्री॰—-—-—घर, आवास स्थान
- वाटी—स्त्री॰—-—-—अहाता, बाड़ा
- वाटी—स्त्री॰—-—-—उद्यान, उपवन, फलोद्यान
- वाटी—स्त्री॰—-—-—सड़क
- वाटी—स्त्री॰—-—-—पानी रोकने के लिए लकड़ी के तख्तों का बाँध
- वाटी—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का अन्न
- वाट्या—स्त्री॰—-—वाटी + यत् + टाय्—एक पौधे का नाम, अतिबला
- वाट्यालः—पुं॰—-—वाटी + अल् + अण्—एक पौधे का नाम, अतिबला
- वाट्याली—स्त्री॰—-—वाट्यालय + ङीष्—एक पौधे का नाम, अतिबला
- वाड्—भ्वा॰ आ॰ <वाडते>—-—-—स्नान करना, गोता लगाना
- वाडवः—पुं॰—-—वडवाया अपत्यं वडवानां समूहो वा अण्—बडवानल
- वाडवः—पुं॰—-—-—ब्राह्मण
- वाडवम्—नपुं॰—-—-—घोड़ियों का समूह
- वाडवाग्निः—पुं॰—वाडवः-अग्निः—-—समुद्र के भीतर रहने वाली आग
- वाडवानलः—पुं॰—वाडवः-अनलः—-—समुद्र के भीतर रहने वाली आग
- वाडवेयः—पुं॰—-—वडवा + ढक्—साँड़
- वाडवेयः—पुं॰—-—-—घोड़ा
- वाडवेयौ—द्वि॰ व॰ —-—-—दोनों अश्विनी कुमार
- वाडव्यम्—नपुं॰—-—वाडव + यन्—ब्राहर्णो का समूह
- वाढ—वि॰—-—वह् + क्त नि॰ साधुः—दृढ़, मज़बूत
- वाढ—वि॰—-—वह् + क्त नि॰ साधुः—ऊँचे स्वर का
- वाढम्—नपुं॰—-—-—यक़ीनन, निश्चय ही, अवश्य, वस्तुतः, हाँ (प्रश्न के उत्तर के रूप में )
- वाढम्—नपुं॰—-—-—बहुत अच्छा, तथास्तु, शुभम्
- वाढम्—नपुं॰—-—-—अत्यंत, बहुत ज्यादह
- वाणः—पुं॰—-—वण् + घञ्—तीर, बाण, शर
- वाणः—पुं॰—-—वण् + घञ्—तीर का निशाना, बाण का लक्ष्य
- वाणः—पुं॰—-—वण् + घञ्—तीर का पंखयुक्त भाग
- वाणः—पुं॰—-—वण् + घञ्—गाय का ऐन या औड़ी
- वाणः—पुं॰—-—वण् + घञ्—एक प्रकार का पौधा (नीलझिंटी भी)
- वाणः—पुं॰—-—वण् + घञ्—एक राक्षस का नाम, बलि का पुत्र
- वाणः—पुं॰—-—वण् + घञ्—एक प्रसिद्ध कवि का नाम
- वाणः—पुं॰—-—वण् + घञ्—पाँच की संख्या के लिए प्रतीकात्मक उक्ति
- वाणिः—स्त्री॰ —-—वण् + इण्—बुनना
- वाणिः—स्त्री॰ —-—वण् + इण्—जुलाहे की खड्डी, करघा
- वाणिजः—पुं॰—-—वणिज् + अण् (स्वार्थ)—व्यापारी, सौदागर
- वाणिज्यम्—नपुं॰—-—वणिज् + ष्यञ्—व्यापार, बनिज, लेन देन
- वणिनी—स्त्री॰ —-—वण् + णिनि + ङीप्—चतुर और धूर्त स्त्री
- वणिनी—स्त्री॰ —-—-—नर्तकी, अभिनेत्री
- वणिनी—स्त्री॰ —-—-—मत्त स्त्री, शृङ्गारप्रिय स्वेच्छाचारिणी स्त्री
- वाणी—स्त्री॰ —-—वण् + इण् + ङीप्—भाषण, वचन, भाषा
- वाणी—स्त्री॰ —-—-—बोलने की शक्ति
- वाणी—स्त्री॰ —-—-—ध्वनि, आवाज
- वाणी—स्त्री॰ —-—-—साहित्यिक कृति या रचना
- वाणी—स्त्री॰ —-—-—प्रशंसा
- वाणी—स्त्री॰ —-—-—विद्या की देवी सरस्वती
- वात्—चुरा॰ उभ॰ <वातयति>,<वातयते>—-—-—हवा का चलना
- वात्—चुरा॰ उभ॰ <वातयति>,<वातयते>—-—-—पंखा करना, हवादार करना
- वात्—चुरा॰ उभ॰ <वातयति>,<वातयते>—-—-—सेवा करना
- वात्—चुरा॰ उभ॰ <वातयति>,<वातयते>—-—-—प्रसन्न करना
- वात्—चुरा॰ उभ॰ <वातयति>,<वातयते>—-—-—जाना
- वात—भू॰ क॰ कृ॰—-—वा + क्त—बही हुई
- वात—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—इच्छित या अभीष्ट, प्रर्थित
- वातः—पुं॰—-—-—हवा, वायु
- वातः—पुं॰—-—-—वायु का देवता, वायु की अधिष्ठात्री देवता
- वातः—पुं॰—-—-—शरीर के तीन दोषों में से एक
- वातः—पुं॰—-—-—गठिया, सन्धिवात
- वाताटः—पुं॰—वात-अटः—-—वातमृग, बारहसिंगा
- वाताटः—पुं॰—वात-अटः—-—सूर्य का घोड़ा
- वातांडः—पुं॰—वात-अंडः—-—फोतों का रोग, अंडकोषवृद्धि
- वातातिसारः—पुं॰—वात-अतिसारः—-—शरीरगत वायु के विकृत होने से उत्पन्न पेचिश
- वातायम्—नपुं॰—वात-अयम्—-—पत्ता
- वातायनः—पुं॰—वात-अयनः—-—घोड़ा
- वातायनम्—नपुं॰—वात-अयनम्—-—खिड़की, झरोखा
- वातायनम्—नपुं॰—वात-अयनम्—-—अलिन्द, द्वारमण्डप
- वातायनम्—नपुं॰—वात-अयनम्—-—मंडवा मंडप
- वातायुः—पुं॰—वात-अयुः—-—बारहसिंगा
- वातारिः—पुं॰—वात-अरिः—-—एरण्ड का वृक्ष
- वाताश्वः—पुं॰—वात-अश्वः—-—बहुत तेज चलने वाला घोड़ा
- वातामोदा—स्त्री॰—वात-आमोदा—-—कस्तूरी
- वातालिः—स्त्री॰—वात-आलिः—-—भंवर
- वाताहतः—वि॰—वात-आहतः—-—हवा से हिलाया हुआ
- वाताहतः—वि॰—वात-आहतः—-—गठिया रोग से ग्रस्त
- वाताहतिः—वि॰—वात-आहतिः—-—हवा का प्रचंड झोंका
- वातर्द्धि—स्त्री॰—वात-ऋद्धिः—-—वायु की अधिकता
- वातर्द्धि—स्त्री॰—वात-ऋद्धिः—-—गदा, मुदगर, लोहे की स्याम से जटित लाठी
- वातकर्मन्—नपुं॰—वात-कर्मन्—-—पाद मारना
- वातकुण्डलिका—स्त्री॰—वात-कुण्डलिका—-—मूत्ररोग जिसमें मूत्र पीडा के साथ बूंद-बूंद उतरता है
- वातकुम्भः—पुं॰—वात-कुम्भः—-—हाथी का गंडस्थल
- वातकेतुः—पुं॰—वात-केतुः—-—धूल
- वातकेलिः—पुं॰—वात-केलिः—-—प्रेमरसयुक्त बातचीत, प्रेमियों की कानाफूंसी
- वातकेलिः—पुं॰—वात-केलिः—-—प्रेमी या प्रेमिका के शरीर पर नख क्षत
- वातगुल्मः—पुं॰—वात-गुल्मः—-—आँधी, अंधड़
- वातगुल्मः—पुं॰—वात-गुल्मः—-—गठिया
- वातज्वरः—पुं॰—वात-ज्वरः—-—विषाक्त वायु से उत्पन्न बुखार
- वातध्वजः—पुं॰—वात-ध्वजः—-—बादल
- वातपुत्रः—पुं॰—वात-पुत्रः—-—भीम, हनुमान
- वातपोथः—पुं॰—वात-पोथः—-—पलाश का वृक्ष, ढाक का पेड़
- वातप्रकोपः—पुं॰—वात-प्रकोपः—-—वायु की अधिकता
- वातप्रमी—पुं॰—वात-प्रमी—-—तेज चलने वाला हरिण
- वातमंडली—पुं॰—वात-मंडली—-—भंवर
- वातमृगः—पुं॰—वात-मृगः—-—वेग से दौड़ने वाला हरिण
- वातरक्तम्—नपुं॰—वात-रक्तम्—-—तीक्ष्ण गठिया
- वातशोणितम्—नपुं॰—वात-शोणितम्—-—तीक्ष्ण गठिया
- वातरंगः—पुं॰—वात-रंगः—-—गूलर का वृक्ष
- वातरूषः—पुं॰—वात-रूषः—-—तूफान, प्रचंड हवा, आँधी
- वातरूषः—पुं॰—वात-रूषः—-—इन्द्रधनुष
- वातरूषः—पुं॰—वात-रूषः—-—रिश्वत
- वातरोगः—पुं॰—वात-रोगः—-—गंठिया का रोग
- वातव्याधिः—स्त्री॰—वात-व्याधिः—-—गंठिया का रोग
- वातवस्तिः—स्त्री॰—वात-वस्तिः—-—मूत्ररोकना
- वातवृद्धिः—स्त्री॰—वात-वृद्धिः—-—अंडकोष की सूजन
- वातशीर्षम्—नपुं॰—वात-शीर्षम्—-—पेडू
- वातशूलम्—नपुं॰—वात-शूलम्—-—उदर पीड़ा के साथ अफारा होना
- वातसारथिः—पुं॰—वात-सारथिः—-—आग
- वातकः—पुं॰—-—वात + कन्—उपपति, जार
- वातकः—पुं॰—-—-—एक पौधा का नाम
- वातकिन्—वि॰—-—वातोऽतिशयितोऽस्ति अस्य वात + इनि, कुक्—गठिया रोग से ग्रस्त
- वातगजः—पुं॰—-—वातमभिमुखीकृत्य अजति गच्छति- वात + अज् + खश्, मुम्—तेज दौड़ने वाला हरिण
- वातर—वि॰—-—वात + रा + क—तूफ़ानी, झंझामय
- वातर—वि॰—-—-—तेज़, चुस्त
- वातरायणः—पुं॰—वातर-अयणः—-—बाण
- वातरायणः—पुं॰—वातर-अयणः—-—बाण की उड़ान, तीर के लक्ष्य तक पहुंचने की दूरी, शरपरास
- वातरायणः—पुं॰—वातर-अयणः—-—चोटी, शिखर
- वातरायणः—पुं॰—वातर-अयणः—-—आरा
- वातरायणः—पुं॰—वातर-अयणः—-—पागल या नशे में उन्मत्त पुरुष
- वातरायणः—पुं॰—वातर-अयणः—-—निठल्ला
- वातरायणः—पुं॰—वातर-अयणः—-—सरल वृक्ष, चीड़ का पेड़
- वातल—वि॰—-—वातं रोगभेदं लाति ला + क—तूफानी, झंझामय
- वातल—वि॰—-—-—हवा से फूला हुआ
- वातलः—पुं॰—-—-—वायु
- वातलः—पुं॰—-—-—चना
- वातापिः—पुं॰—-—-—एक राक्षस का नाम जिसको अगस्त्य ने खा कर पचा लिया
- वातापिद्विष्—पुं॰—वातापिः-द्विष्—-—अगस्त्य के विशेषण
- वातापिसूदनः—पुं॰—वातापिः-सूदनः—-—अगस्त्य के विशेषण
- वातापिहन्—पुं॰—वातापिः-हन्—-—अगस्त्य के विशेषण
- वातिः—पुं॰—-—वा + क्तिच्—सूर्य
- वातिः—पुं॰—-—-—वायु, हवा
- वातिः—पुं॰—-—-—चन्द्रमा
- वातिगः—पुं॰—वातिः-गः—-—बैंगन
- वातिगमः—पुं॰—वातिः-गमः—-—बैंगन
- वातिक—वि॰—-—वातादागतः + ठक्—तूफानी, हवाई, झंझामय
- वातिक—वि॰—-—-—गठियाग्रस्त, सन्धिवात से पीड़ित
- वातिक—वि॰—-—-—पागल
- वातिकः—पुं॰—-—-—वायु की विकृत अवस्था से उत्पन्न ज्वर
- वातीय—वि॰—-—वात + छ—हवादार
- वातीयम्—नपुं॰—-—-—भात का मांड
- वातुल—वि॰—-—वात + उलच्—वायु रोग से ग्रस्त, गठिया पीड़ित
- वातुल—वि॰—-—-—पागल, वायुप्रकोप के कारण जिसकी बुद्धि ठिकाने न हो
- वातुलः—पुं॰—-—-—भँवर
- वातुलिः—पुं॰—-—वा + उलि, तुट्—बड़ा चमगीदड़
- वातूल—वि॰—-—वात + ऊलच्—वायु रोग से ग्रस्त, गठिया पीड़ित
- वातूल—वि॰—-—वात + ऊलच्—पागल, वायुप्रकोप के कारण जिसकी बुद्धि ठिकाने न हो
- वातृ—पुं॰—-—वा + तृच्—हवा, वायु
- वात्या—स्त्री॰—-—वातानां समूहः यत्—तूफान, अन्धड़, भँवर, तूफान या झंझामय वायु
- वात्सकम्—नपुं॰—-—वत्स + वुञ्—बछड़ों का समूह
- वात्सल्यम्—नपुं॰—-—वत्सलस्य भावः ष्यञ्—स्नेह, वत्सलता सुकुमारता
- वात्सल्यम्—नपुं॰—-—-—लाडप्यार या पक्षपात
- वात्सिः—स्त्री॰—-—-—शूद्र स्त्री की बाह्मण द्वारा उत्पन्न पुत्री
- वात्सी—स्त्री॰—-—-—शूद्र स्त्री की बाह्मण द्वारा उत्पन्न पुत्री
- वात्स्यायनः—पुं॰—-—वत्सस्य गोत्रापत्यं - वत्स + यञ् + फक्—कामसूत्र (रतिशास्त्र पर लिखा गया एक ग्रन्थ) के प्रणेता
- वात्स्यायनः—पुं॰—-—वत्सस्य गोत्रापत्यं - वत्स + यञ् + फक्—न्यायसूत्र पर किये गये भाष्य के प्रणेता
- वादः—पुं॰—-—वद् + घञ्—बातें करना, बोलना
- वादः—पुं॰—-—-—भाषण, वचन, बात
- वादः—पुं॰—-—-—वक्तव्य, उक्ति, आरोप
- वादः—पुं॰—-—-—वर्णन, वृत्त
- वादः—पुं॰—-—-—विचार, विमर्श, विवाद, वादविवाद, तर्कवितर्क
- वादः—पुं॰—-—-—उत्तर
- वादः—पुं॰—-—-—विवृति, व्याख्या
- वादः—पुं॰—-—-—प्रदर्शित उपसंहार, सिद्धान्त, तत्त्व
- वादः—पुं॰—-—-—ध्वननं, ध्वनि
- वादः—पुं॰—-—-—विवरण, अफवाह
- वादः—पुं॰—-—-—(विधि में) अभियोग, नालिश
- वादानुवादौ—पुं॰—वादः-अनुवादौ—-—उक्ति और उत्तर, अभियोग तथा उसका उत्तर, दोषारोपण तथा उसका बचाव
- वादानुवादौ—पुं॰—वादः-अनुवादौ—-—वादविवाद, शास्त्रार्थ
- वादकर—वि॰—वादः-कर—-—विवाद करने वाला
- वादकृत्—वि॰—वादः-कृत्—-—विवाद करने वाला
- वादग्रस्त—वि॰—वादः-ग्रस्त—-—विवादास्पद, विवादग्रस्त
- वादचञ्चु—वि॰—वादः-चञ्चु—-—श्लेषगर्भित उत्तर देने में निपुण, हाजिरजवाव
- वादप्रतिवादः—पुं॰—वादः-प्रतिवादः—-—शास्त्रार्थ
- वादयुद्धम्—नपुं॰—वादः-युद्धम्—-—विवाद, तर्कवितर्क
- वादविवादः—पुं॰—वादः-विवादः—-—तर्कवितर्क, विचारविमर्श, वाक्प्रतियोगिता
- वादकः—पुं॰—-—वद् + णिच् + ण्वुल्—वजाने वाला
- वादनम्—नपुं॰—-—वद् + णिच् + ल्युट्—ध्वनि करना
- वादनम्—नपुं॰—-—-—बाजा, वाद्ययन्त्र
- वादर—वि॰—-—वदरायाः कार्पस्याः विकारः वादरा + अण्—कपास से युक्त या कपास से निर्मित
- वादरा—स्त्री॰—-—-—कपास का पौधा
- वादरम्—नपुं॰—-—-—सूती कपड़ा
- वादरङ्गः—पुं॰—-—वादर + गम् + खच्, डित्—पीपल का पेड़, गूलर का वृक्ष
- वादरायण—पुं॰—-—वदरी + फक्—वेदान्त दर्शन के शारीरक सूत्रों का प्रणेता वादरायण
- वादालः—पुं॰—-—वात + ला + क, पृषो॰—जर्मन मछली
- वादि—वि॰—-—वादयति व्यक्तमुच्चारयति + पद् + णिच् + इञ्—बुद्धिमान्, विद्वान्, कुशल
- वादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—वद् + णिच् + क्त—उच्चारित कराया गया, बुलवाया गया
- वादित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बजाया गया, ध्वनि किया गया
- वादित्रम्—नपुं॰—-—वद् + णित्रन्—बाजा
- वादित्रम्—नपुं॰—-—-—संगीत
- वादिन्—वि॰—-—वद् + णिनि—बोलने वाला, बातें करने वाला, प्रवचन करने वाला
- वादिन्—वि॰—-—-—दृढ़तापूर्वक कहने वाला
- वादिन्—वि॰—-—-—तर्क-वितर्क करने वाला, विपक्षी
- वादिन्—वि॰—-—-—दोषारोपण करने वाला, अभियोक्ता
- वादिन्—वि॰—-—-—व्याख्याता, अध्यापक
- वादिशः—पुं॰—-—-—विद्वान् पुरुष्, ऋषि, विद्याव्यसनी
- वाद्यम्—नपुं॰—-—वद् + णिच् + यत्—बाजा
- वाद्यम्—नपुं॰—-—-—बाजे की ध्वनि
- वाद्यकरः—पुं॰—वाद्यम्-करः—-—संगीतज्ञ
- वाद्यभाण्डम्—नपुं॰—वाद्यम्-भाण्डम्—-—बाजों का समूह, वाद्य यंत्रों का ढेर
- वाद्यभाण्डम्—नपुं॰—वाद्यम्-भाण्डम्—-—मृदगं आदि बाजे