सामग्री पर जाएँ

विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/सै-स्रोत

विक्षनरी से
मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
  • सै—भ्वा॰ पर॰ <सायति>—-—-—बर्बाद होना, क्षीण होना, नष्ट होना
  • सैंह—वि॰—-—सिंह + अण्—सिंह से संबद्ध, सिंह सम्बन्धी
  • सैंहल—वि॰—-—सिंहल + अण्—लंका सम्बन्धी, लंका में उत्पन्न, या लंका में होने वाला
  • सैंहिकः—पुं॰—-—सिंहिक + अण्—राहु का मातृ परक नाम
  • सैंहिकेयः—पुं॰—-—सिंहिका + ढक्—राहु का मातृ परक नाम
  • सैकत—वि॰—-—सिकताः सन्त्यत्र अण्—रेतयुक्त या रेत से बना हुआ, रेतीला, कंकरीला
  • सैकत—वि॰—-—सिकताः सन्त्यत्र अण्—रेतीली भूमि वाला
  • सैकतम्—नपुं॰—-—सिकताः सन्त्यत्र अण्—रेतीला तट
  • सैकतम्—नपुं॰—-—सिकताः सन्त्यत्र अण्—रेतीले तटों वाला द्वीप
  • सैकतम्—नपुं॰—-—सिकताः सन्त्यत्र अण्—किनारा या द्वीप
  • सैकतइष्टम्—नपुं॰—सैकत-इष्टम्—-—अदरक
  • सैकतिक—वि॰—-—सैकत + ठन—रेतीले तट से संबन्ध रखने वाला
  • सैकतिक—वि॰—-—सैकत + ठन—घट-बढ़ होने वाला, तरंगित, सन्देह की अवस्था में रहने वाला, सन्देहजीवी
  • सैकतिकः—पुं॰—-—सैकत + ठन—साधु
  • सैकतिकः—पुं॰—-—सैकत + ठन—संन्यासी
  • सैकतिकम्—नपुं॰—-—सैकत + ठन—मंगलसूत्र जो सौभाग्यशाली बनने के लिए कलाई में बांधा जाता है या कंठ में पहना जाता है
  • सैद्धान्तिक—वि॰—-—सिद्धान्त + ठक्—किसी राद्धान्त या प्रदर्शित सत्य से सम्बन्ध रखने वाला
  • सैद्धान्तिक—पुं॰—-—-—जो वास्तविक सचाई को जानता हैं
  • सैनापत्यम्—नपुं॰—-—सेनापति + ष्यञ्—किसी सेना का सेनापतित्व, सेनाध्यक्षता
  • सैनिक—वि॰—-—सेनायां समवैति ठक्—सेनासम्बन्धी
  • सैनिक—वि॰—-—सेनायां समवैति ठक्—फौजी
  • सैनिकः—पुं॰—-—सेनायां समवैति ठक्—सिपाही
  • सैनिकः—पुं॰—-—सेनायां समवैति ठक्—पहरेदार, संतरी
  • सैनिकः—पुं॰—-—सेनायां समवैति ठक्—सामरिक व्यूह में व्यव्स्थित सैन्यसमूह
  • सैन्धव—वि॰—-—सिन्धुनदीसमीपे देशे भवः अण—सिन्धु प्रदेश में उत्पन्न या पैदा हुआ
  • सैन्धव—वि॰—-—सिन्धुनदीसमीपे देशे भवः अण—सिन्धु नदी संबन्धी
  • सैन्धव—वि॰—-—सिन्धुनदीसमीपे देशे भवः अण—नदी में उत्पन्न
  • सैन्धव—वि॰—-—सिन्धुनदीसमीपे देशे भवः अण—समुद्र संबन्धी, सागर सम्बन्धी, सामुद्रिक
  • सैन्धवः—पुं॰—-—सिन्धुनदीसमीपे देशे भवः अण—घोड़ा, विशेषतः वह जो सिंधु देश में पला हो
  • सैन्धवः—पुं॰—-—सिन्धुनदीसमीपे देशे भवः अण—एक ऋषि का नाम
  • सैन्धवः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का सेंधा नमक
  • सैन्धवम्—नपुं॰—-—-—एक प्रकार का सेंधा नमक
  • सैन्धवाः—पुं॰ ब॰ व॰—-—-—सिंधु प्रदेश के अधिवासी
  • सैन्धवधनः—पुं॰—सैन्धव-धनः—-—नमक का ढेला
  • सैन्धवशिला—स्त्री॰—सैन्धव-शिला—-—एक प्रकार का पहाड़ से निकलने वाला नमक
  • सैन्धवक—वि॰—-—सैंधव + वुञ्—सैंधव सम्बन्धी
  • सैन्धवकः—पुं॰—-—सैंधव + वुञ्—सिंधु देश का कोई आपद्ग्रस्त व्यक्ति जिसकी दशा दयनीय हो
  • सैन्धी—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की मदिरा, ताड़ी
  • सैन्यः—पुं॰—-—सेनायां समवैति ञ्य—सैनिक, सिपाही
  • सैन्यः—पुं॰—-—सेनायां समवैति ञ्य—पहरेदार, संतरी
  • सैन्यम्—नपुं॰—-—सेनायां समवैति ञ्य—सेना, सेना की टुकड़ी
  • सैमन्तिकम्—नपुं॰—-—सीमन्त + ठक्—सिंदूर
  • सैरन्ध्रः —पुं॰—-—सीरं हलं धरति - सीर + धृ + क, मुम् = सीरन्ध्रः कृषकः तस्येद शिल्पकर्म सीरन्ध्र + अण् —घरेलु, नौकर, किंकर
  • सैरन्ध्रः —पुं॰—-—सीरं हलं धरति - सीर + धृ + क, मुम् = सीरन्ध्रः कृषकः तस्येद शिल्पकर्म सीरन्ध्र + अण् —एक मिश्र जाति, दस्यु जाति के पुरुष तथा अयोगव जाति की स्त्री से उत्पन्न सन्तान
  • सैरिन्ध्रः—पुं॰—-—सीरं हलं धरति - सीर + धृ + क, मुम् = सीरन्ध्रः कृषकः तस्येद शिल्पकर्म सीरन्ध्र + अण्, इत्वम्—घरेलु, नौकर, किंकर
  • सैरिन्ध्रः—पुं॰—-—सीरं हलं धरति - सीर + धृ + क, मुम् = सीरन्ध्रः कृषकः तस्येद शिल्पकर्म सीरन्ध्र + अण्, इत्वम्—एक मिश्र जाति, दस्यु जाति के पुरुष तथा अयोगव जाति की स्त्री से उत्पन्न सन्तान
  • सैरन्ध्री —स्त्री॰—-—सैरन्ध्र + ङीष्—दासी या सेविका जो अन्तःपुर में काम करे
  • सैरन्ध्री —स्त्री॰—-—सैरन्ध्र + ङीष्—स्वतंत्र स्त्री जो शिल्पकारिणी के रुप में दूसरे के घर जाकर काम करे
  • सैरन्ध्री —स्त्री॰—-—सैरन्ध्र + ङीष्—द्रौपदी का विशेषण
  • सैरिन्ध्री—स्त्री॰—-—सरिन्ध्र + ङीष्—दासी या सेविका जो अन्तःपुर में काम करे
  • सैरिन्ध्री—स्त्री॰—-—सरिन्ध्र + ङीष्—स्वतंत्र स्त्री जो शिल्पकारिणी के रुप में दूसरे के घर जाकर काम करे
  • सैरिन्ध्री—स्त्री॰—-—सरिन्ध्र + ङीष्—द्रौपदी का विशेषण
  • सैरिक—वि॰—-—सीर + ठक्—हलसम्बन्धी
  • सैरिक—वि॰—-—सीर + ठक्—खूडों से युक्त
  • सैरिकः—पुं॰—-—सीर + ठक्—हल में चलने वाला बैल
  • सैरिकः—पुं॰—-—सीर + ठक्—हाली, हलवाहा
  • सैरिभः—पुं॰—-—सीरे हले तद्वहने इभ इव शूरत्वात्, शक॰ पर॰ सीर + इभ् + अण्—भैंसा
  • सैरिभः—पुं॰—-—सीरे हले तद्वहने इभ इव शूरत्वात्, शक॰ पर॰ सीर + इभ् + अण्—इन्द्र का स्वर्ग
  • सैवाल—पुं॰—-—-—मोथे की भांति हरे रंग का पदार्थ जो पानी के ऊपर उग आता है, काई
  • सैवाल—पुं॰—-—-—एक प्रकार का पौधा
  • सैसक—वि॰—-—सीसक + अण्—सीसे का बना हुआ, सीसा सम्बन्ध्
  • सो—दिवा॰ पर॰ <स्यति> <सित>, प्रेर॰ <साययति> <साययते>, इच्छा॰ <सिषासति>, कर्मवा॰ <सीयते>—-—-—वध करना, नष्ट करना
  • सो—दिवा॰ पर॰ <स्यति> <सित>, प्रेर॰ <साययति> <साययते>, इच्छा॰ <सिषासति>, कर्मवा॰ <सीयते>—-—-—समाप्त करना, पूरा करना, अन्त तक पहुँचाना
  • अवसो—दिवा॰ पर॰—अवसो—-—समाप्त करना, पूरा करना
  • अध्यवसो—दिवा॰ पर॰—अध्यवसो—-—संकल्प करना, निर्धारित करना, मन पक्का करना
  • अध्यवसो—दिवा॰ पर॰—अध्यवसो—-—प्रयास करना, दायित्व लेना, सम्पन्न करना
  • अध्यवसो—दिवा॰ पर॰—अध्यवसो—-—दबोच लेना
  • अध्यवसो—दिवा॰ पर॰—अध्यवसो—-—सोचना, विचार करना
  • पर्यवसो—दिवा॰ पर॰—पर्यवसो—-—पूरा करना, समाप्त करना
  • पर्यवसो—दिवा॰ पर॰—पर्यवसो—-—निर्धारित करना, संकल्प करना
  • पर्यवसो—दिवा॰ पर॰—पर्यवसो—-—परिणाम होना, घट जाना, समाप्त हो जाना
  • पर्यवसो—दिवा॰ पर॰—पर्यवसो—-—नष्ट होना, खो जाना, क्षीण होना
  • पर्यवसो—दिवा॰ पर॰—पर्यवसो—-—प्रयत्न करना
  • व्यवसो—दिवा॰ पर॰—व्यवसो—-—जोर लगाना, हाथ-पाँव मारना, कोशिश करना, चेष्टा करना, प्रयत्न करना, आरम्भ करना
  • व्यवसो—दिवा॰ पर॰—व्यवसो—-—चिन्तन करना, कामना करना, चाहना
  • व्यवसो—दिवा॰ पर॰—व्यवसो—-—लगातार चेष्टा करना, परिश्रमी या उद्योगी होना
  • व्यवसो—दिवा॰ पर॰—व्यवसो—-—संकल्प करना, निर्धारित करना, निश्चय करना, फैसला करना
  • व्यवसो—दिवा॰ पर॰—व्यवसो—-—स्वीकार करना, दायित्व लेना
  • व्यवसो—दिवा॰ पर॰—व्यवसो—-—करना, सम्पन्न करना
  • व्यवसो—दिवा॰ पर॰—व्यवसो—-—विश्वास करना, विश्वस्त होना, प्रतीत होना
  • व्यवसो—दिवा॰ पर॰—व्यवसो—-—विचार-विमर्श करना
  • समवसो—दिवा॰ पर॰—समवसो—-—निर्णय करना, आदेश देना
  • सोढ—भू॰ क॰ कृ॰—-—सह् + क्त—सहन किया गया, भुगता गया, बर्दाश्त किया गया, झेला गया
  • सोदृ—वि॰—-—सह् + तृच्—सहनशील, बर्दाश्त करने वाला, सहिष्णु
  • सोदृ—वि॰—-—सह् + तृच्—शक्तिशाली, समर्थ
  • सोत्क —वि॰—-—सह उत्केन, ब॰ स॰—अत्यन्त उत्सुक, अतीव आतुर, आकुल, यथा
  • सोत्क —वि॰—-—सह उत्केन, ब॰ स॰—खिन्न
  • सोत्क —वि॰—-—सह उत्केन, ब॰ स॰—शोकाकुल, खिद्यमान
  • सोत्कण्ठ—वि॰—-—सह उत्कण्ठया, ब॰ स॰—अत्यन्त उत्सुक, अतीव आतुर, आकुल, यथा
  • सोत्कण्ठ—वि॰—-—सह उत्कण्ठया, ब॰ स॰—खिन्न
  • सोत्कण्ठ—वि॰—-—सह उत्कण्ठया, ब॰ स॰—शोकाकुल, खिद्यमान
  • सोत्कठम्—अव्य॰—-—-—अत्यन्त उत्सुकता के साथ, बड़ी उत्कंठा के साथ
  • सोत्कठम्—अव्य॰—-—-—खेदपूर्वक, दुःखपूर्वक
  • सोत्प्रास—वि॰—-—सह उत्प्रासेन - ब॰ स॰—अत्यधिक
  • सोत्प्रास—वि॰—-—सह उत्प्रासेन - ब॰ स॰—अतिशयोक्तिपूर्ण
  • सोत्प्रास—वि॰—-—सह उत्प्रासेन - ब॰ स॰—व्यंग्यात्मक, व्यंगपूर्ण
  • सोत्प्रासः—पुं॰—-—-—अट्टहास
  • सोत्प्रासः—पुं॰—-—-—व्यंग्यात्मक अतिशयोक्ति, व्यंगोक्ति, व्यंगवाक्यं
  • सोत्प्रासम्—नपुं॰—-—-—व्यंग्यात्मक अतिशयोक्ति, व्यंगोक्ति, व्यंगवाक्यं
  • सोत्सव—वि॰—-—उत्सवेन सह - ब॰ स॰—उत्सवयुक्त, उछाह भरा, हर्षपूर्ण
  • सोत्साह—वि॰—-—सह उत्साहेन - ब॰ स॰—प्रबल, सक्रिय, उत्साही, धीर
  • सोत्साहम्—अव्य॰—-—-—फुर्ती से, उत्साहपूर्वक, सावधानी से
  • सोत्सुक—वि॰—-—-—खिन्न, झल्लाने वाला, आतुर, शोकान्वित
  • सोत्सुक—वि॰—-—-—उत्कण्ठित, लालायित
  • सोत्सेध—वि॰—-—सह उत्सेधेन - ब॰ स॰—उन्नीत, उन्नत, ऊँचा, उत्तुंग
  • सोदर—वि॰—-—समानमुदरं यस्य, समानस्य सः—एक ही पेट से उत्पन्न, सहोदर,
  • सोदरः—पुं॰—-—समानमुदरं यस्य, समानस्य सः—सगा भाई
  • सोदरा—स्त्री॰—-—-—सगी बहन
  • सोदर्यः—पुं॰—-—सोदर + यत्—सहोदर भाई, सगा भाई
  • सोद्योग—वि॰—-—सह उद्योगेन - ब॰ स॰—प्रबल उद्योग करने वाला, परिश्रमी, सक्रिय, धीर, मेहनती
  • सोद्वेग—वि॰—-—सह उद्वेगेन - ब॰ स॰—आतुर, आशंकालु
  • सोद्वेग—वि॰—-—सह उद्वेगेन - ब॰ स॰—शोकान्वित
  • सोद्वेगम्—अव्य॰—-—-—आतुरता के साथ, उतावलेपन से, उत्सुकतापूर्वक
  • सोनहः—पुं॰—-—सु + विच् + सो, नह् + क = नह—लहसुन
  • सोन्माद—वि॰—-—सह उन्मादेन - ब॰ स॰—पागल, दीवाना, आपे से बाहर, मदविक्षिप्त
  • सोपकरण—वि॰—-—सह उपकरेणन - ब॰ स॰—सबप्रकार के आवश्यक सामान या उपकरणों से युक्त, समुचित रुप से सुसज्जित
  • सोपद्रव—वि॰—-—सह उपद्रवेण - ब॰ स॰—संकट और उपद्रवों से युक्त
  • सोपध—वि॰—-—सह उपधया - ब॰ स॰—जालसाजी और धोखे से भरा हुआ, कपटपूर्ण
  • सोपधि—वि॰—-—सह उपधिना - ब॰ स॰—जालसाज
  • सोपधि—अव्य॰—-—-—कपट के साथ, जालसाजी करके
  • सोपप्लव—वि॰—-—सह उपप्लवेन - ब॰ स॰—संकटग्रस्त
  • सोपप्लव—वि॰—-—सह उपप्लवेन - ब॰ स॰—शत्रुओं द्वारा आक्रान्त
  • सोपप्लव—वि॰—-—सह उपप्लवेन - ब॰ स॰—ग्रहणग्रस्त
  • सोपरोध—वि॰—-—सह उपरोधेन - ब॰ स॰—अवरुद्ध, बाधायुक्त
  • सोपरोध—वि॰—-—सह उपरोधेन - ब॰ स॰—अनुगृहीत
  • सोपरोधम्—अव्य॰—-—-—सानुग्रह, सादर
  • सोपसर्ग—वि॰—-—सह उपसर्गेण - ब॰ स॰—संकटग्रस्त, दुर्भाग्यग्रस्त
  • सोपसर्ग—वि॰—-—सह उपसर्गेण - ब॰ स॰—अनिष्टसूचक
  • सोपसर्ग—वि॰—-—सह उपसर्गेण - ब॰ स॰—किसी भूतप्रेत से आवशिष्ट
  • सोपसर्ग—वि॰—-—सह उपसर्गेण - ब॰ स॰—उपसर्ग से युक्त
  • सोपहास—वि॰—-—सह उपहासेन - ब॰ स॰—व्यंग्यपूर्ण हंसी से युक्त, उपालंभपूर्ण, व्यंग्यमय
  • सोपहासम्—अव्य॰—-—-—उपलाभपूर्वक, उलाहने के साथ
  • सोपाकः—पुं॰—-—श्वपाकः, पृषो॰—पतित जाति का पुरुष, चांडाल
  • सोपाधि—वि॰—-—सह उपाधिना - ब॰ स॰, पक्षे कप्—किसी शर्त या सीमा से प्रतिबद्ध, विशिष्ट लक्षणों से युक्त, सीमित, मर्यादित, विशिष्ट
  • सोपाधि—वि॰—-—सह उपाधिना - ब॰ स॰, पक्षे कप्—विशिष्ट विशेषण से युक्त
  • सोपाधिक—वि॰—-—सह उपाधिना - ब॰ स॰, पक्षे कप्—किसी शर्त या सीमा से प्रतिबद्ध, विशिष्ट लक्षणों से युक्त, सीमित, मर्यादित, विशिष्ट
  • सोपाधिक—वि॰—-—सह उपाधिना - ब॰ स॰, पक्षे कप्—विशिष्ट विशेषण से युक्त
  • सोपानम्—नपुं॰—-—उप + अन् + घञ् = उपानः उपरिगतिः सह विद्यमानः उपानः येन - ब॰ स॰—पौड़ी, सीढ़ी का डंडा, जीना, सीढ़ी
  • सोपानपङ्क्तिः—स्त्री॰—सोपानम्-पङ्क्तिः—-—सीढ़ी, जीना
  • सोपानपथः—पुं॰—सोपानम्-पथः—-—सीढ़ी, जीना
  • सोपानपद्धति—स्त्री॰—सोपानम्-पद्धति—-—सीढ़ी, जीना
  • सोपानपरम्परा—स्त्री॰—सोपानम्-परम्परा—-—सीढ़ी, जीना
  • सोपानमार्गः—पुं॰—सोपानम्-मार्गः—-—सीढ़ी, जीना
  • सोमः—पुं॰—-—सू + मन्—एक पौधे का नाम, प्राचीन काल के यज्ञों में आहुति देने के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण औषधि
  • सोमः—पुं॰—-—सू + मन्—‘सोम’ नामक पौधे का रस
  • सोमः—पुं॰—-—सू + मन्—अमृत, देवताओं का पेय पदार्थ
  • सोमः—पुं॰—-—सू + मन्—चन्द्रमा
  • सोमः—पुं॰—-—सू + मन्—प्रकाश की किरण
  • सोमः—पुं॰—-—सू + मन्—कपूर
  • सोमः—पुं॰—-—सू + मन्—जल
  • सोमः—पुं॰—-—सू + मन्—वायु, हवा
  • सोमः—पुं॰—-—सू + मन्—कुबेर
  • सोमः—पुं॰—-—सू + मन्—शिव
  • सोमः—पुं॰—-—सू + मन्—यम
  • सोमः—पुं॰—-—सू + मन्—मुख्य, प्रधान, उत्तम
  • सोमम्—नपुं॰—-—सू + मन्—चावलों की कांजी
  • सोमम्—नपुं॰—-—सू + मन्—आकाश, गगन
  • सोमाभिषवः—पुं॰—सोम-अभिषवः—-—सोमरस का खींचना
  • सोमाहः—पुं॰—सोम-अहः—-—सोमवार
  • सोमाख्यम्—नपुं॰—सोम-आख्यम्—-—लाल कमल
  • सोमेश्वरः—पुं॰—सोम-ईश्वरः—-—शिव की प्रसिद्ध प्रतिमा ‘सोमनाथ’
  • सोमोद्भवा—स्त्री॰—सोम-उद्भवा—-—नर्मदा नदी
  • सोमकान्तः—पुं॰—सोम-कान्तः—-—चन्द्रकान्तः मणि
  • सोमक्षयः—पुं॰—सोम-क्षयः—-—चन्द्रमा की कलाओं का ह्रास
  • सोमग्रह—वि॰—सोम-ग्रह—-—सोमरस रखने का पात्र
  • सोमज—वि॰—सोम-ज—-—चन्द्रमा से उत्पन्न
  • सोमजः—पुं॰—सोम-जः—-—बुधग्रह का विशेषण
  • सोमजम्—नपुं॰—सोम-जम्—-—दूध
  • सोमधारा—स्त्री॰—सोम-धारा—-—आकाश, गगन
  • सोमनाथः—पुं॰—सोम-नाथः—-—प्रसिद्ध ‘शिवलिंग’ या वह स्थान जहाँ यह प्रतिमा स्थापित की गई है
  • सोमप—पुं॰—सोम-प—-—सोमपायी
  • सोमप—पुं॰—सोम-प—-—सोमयाजी
  • सोमप—पुं॰—सोम-प—-—पितरों का विशेष समूह
  • सोमपा—पुं॰—सोम-पा—-—सोमपायी
  • सोमपा—पुं॰—सोम-पा—-—सोमयाजी
  • सोमपा—पुं॰—सोम-पा—-—पितरों का विशेष समूह
  • सोमपतिः—पुं॰—सोम-पतिः—-—इन्द्र का नाम
  • सोमपानम्—नपुं॰—सोम-पानम्—-—सोमरस का पीना
  • सोमपाथिन्—वि॰—सोम-पाथिन्—-—सोमरस को पीने वाला
  • सोमपीथिन्—पुं॰—सोम-पीथिन्—-—सोमरस को पीने वाला
  • सोमपुत्रः—पुं॰—सोम-पुत्रः—-—बुध के विशेषण
  • सोमभूः—पुं॰—सोम-भूः—-—बुध के विशेषण
  • सोमसुतः—पुं॰—सोम-सुतः—-—बुध के विशेषण
  • सोमप्रवाकः—पुं॰—सोम-प्रवाकः—-—सोमयज्ञ के पुरोहितों को वरण करने वाला
  • सोमबन्धुः—पुं॰—सोम-बन्धुः—-—कु्मुद
  • सोमयज्ञः—पुं॰—सोम-यज्ञः—-—सोमयज्ञ
  • सोमयागः—पुं॰—सोम-यागः—-—सोमयज्ञ
  • सोमयोनिः—पुं॰—सोम-योनिः—-—एक प्रकार का पीला और सुगन्धित चन्द्रमा
  • सोमरोगः—पुं॰—सोम-रोगः—-—स्त्रियों का एक विशेष रोग
  • सोमलता—स्त्री॰—सोम-लता—-—सोम का पौधा
  • सोमलता—स्त्री॰—सोम-लता—-—गोदावरी नदी
  • सोमवल्लरी—स्त्री॰—सोम-वल्लरी—-—सोम का पौधा
  • सोमवल्लरी—स्त्री॰—सोम-वल्लरी—-—गोदावरी नदी
  • सोमवंशः—पुं॰—सोम-वंशः—-—बुध द्वारा स्थापित राजाओं का चन्द्रवंश
  • सोमवारः—पुं॰—सोम-वारः—-—सोमवार
  • सोमवासरः—पुं॰—सोम-वासरः—-—सोमवार
  • सोमविक्रयिन्—पुं॰—सोम-विक्रयिन्—-—सोमरस विक्रेता
  • सोमवृक्षः—पुं॰—सोम-वृक्षः—-—सफेद खैर का वृक्ष
  • सोमसारः—स्त्री॰—सोम-सारः—-—सफेद खैर का वृक्ष
  • सोमशकला—स्त्री॰—सोम-शकला—-—एक प्रकार की ककड़ी
  • सोमसंज्ञम्—नपुं॰—सोम-संज्ञम्—-—कपूर
  • सोमसद्—पुं॰—सोम-सद्—-—पितरों का विशेष वर्ग
  • सोमसिन्धुः—पुं॰—सोम-सिन्धुः—-—विष्णु का विशेषण
  • सोमसुत्—पुं॰—सोम-सुत्—-—सोमरस खींचने वाला
  • सोमसुता—स्त्री॰—सोम-सुता—-—नर्मदा नदी
  • सोमसूत्रम्—नपुं॰—सोम-सूत्रम्—-—शिवलिंग के स्नान का जल निकलने की नाली
  • सोमसूत्रम्प्रदक्षिणा—स्त्री॰—सोम-सूत्र-प्रदक्षिणा—-—शिवलिंग की इस तरह परिक्रमा करना कि नाली लांघनी न पड़े
  • सोमन्—पुं॰—-—सु + मनिन्—चन्द्रमा
  • सोमिन्—वि॰—-—सोम + इनि—सोमयज्ञ का अनुष्ठान करने वाला
  • सोमिन्—पुं॰—-—सोम + इनि—सोमयज्ञ का अनुष्ठाता
  • सोम्य—वि॰—-—-—सोम के योग्य
  • सोम्य—वि॰—-—-—सोम की आहुति देने वाला
  • सोम्य—वि॰—-—-—आकृति मे सोम से मिलता जुलता
  • सोम्य—वि॰—-—-—मृदु, सुशील, मिलनसार
  • सोल्लुण्ठः—पुं॰—-—उल्लुण्ठेन सह - ब॰ स॰—व्यंग्य, ताना, चुट्की
  • सोल्लुण्ठनम्—नपुं॰—-—उल्लुण्ठनेन सह - ब॰ स॰—व्यंग्य, ताना, चुट्की
  • सोल्लुण्ठम् —नपुं॰—-—-—व्यंग्यपूर्वक, ताने के साथ
  • सोल्लुण्ठनम्—अव्य॰—-—-—व्यंग्यपूर्वक, ताने के साथ
  • सोष्मन्—वि॰—-—सह उष्मणा - ब॰ स॰ —गरम, तप्त
  • सोष्मन्—वि॰—-—सह उष्मणा - ब॰ स॰ —ऊष्मा युक्त
  • सोष्मन्—पुं॰—-—सह उष्मणा - ब॰ स॰ —ऊष्मवर्ण
  • सौकर—वि॰—-—सूकर + अण्—सूअरसंबंधी, सूअर का
  • सौकर्यम्—नपुं॰—-—सू (सु) कर + ष्यञ्—सूअरपना
  • सौकर्यम्—नपुं॰—-—सू (सु) कर + ष्यञ्—आसानी, सुविधा
  • सौकर्यम्—नपुं॰—-—सू (सु) कर + ष्यञ्—क्रियात्मकता, सुकरता
  • सौकर्यम्—नपुं॰—-—सू (सु) कर + ष्यञ्—निपुणता, कुशलता
  • सौकर्यम्—नपुं॰—-—सू (सु) कर + ष्यञ्—किसी भोज्य पदार्थ या औषधि की सरल तैयारी
  • सौकुमार्यम्—नपुं॰—-—सुकुमार + ष्यञ्—मृदुता, सुकुमारता, कोमलता
  • सौकुमार्यम्—नपुं॰—-—सुकुमार + ष्यञ्—जवानी
  • सौक्ष्म्यम्—नपुं॰—-—सूक्ष्म + ष्यञ्—बारी की, महीनपना, सूक्ष्मता
  • सौखशायनिकः—पुं॰—-—सुखशयनं पृच्छति - सुखशय (न) + ठक्—वह पुरुष जो किसी पुरुष से उसके सुखपूर्वक सोने की बात पूछे
  • सौखशायिकः—पुं॰—-—सुखशयनं पृच्छति - सुखशय (न) + ठक्—वह पुरुष जो किसी पुरुष से उसके सुखपूर्वक सोने की बात पूछे
  • सौखसुप्तिकः—पुं॰—-—सुखसुप्तिं सुखेन शयनं पृच्छति - ठञ्—किसी अन्य पुरुष से सुखपूर्वक सोने का हाल पूछने वाला
  • सौखसुप्तिकः—पुं॰—-—-—चारण, भाट, बन्दी
  • सौखिक—वि॰—-—सुख + ठक्, छण् वा—सुखसम्बन्धी, आनन्ददायक, हर्षप्रद
  • सौखीय—वि॰—-—सुख + ठक्, छण् वा—सुखसम्बन्धी, आनन्ददायक, हर्षप्रद
  • सौख्यम्—नपुं॰—-—सुख + ष्यञ्—सुख, प्रसन्नता, सन्तोष, सुविधा, आनन्द
  • सौगतः—पुं॰—-—सुगत + अण्—बौद्ध
  • सौगतिकः—पुं॰—-—सुगत + ठक्—बौद्ध
  • सौगतिकः—पुं॰—-—सुगत + ठक्—बौद्धभिक्षु
  • सौगतिकः—पुं॰—-—सुगत + ठक्—नास्तिक, पाखंडी, अविश्वासी
  • सौगतिकम्—नपुं॰—-—सुगत + ठक्—अविश्वास, पाखंडधर्म, नास्तिकता, अनीश्वरवाद
  • सौगन्ध—वि॰—-—सुगन्ध + अण्—मधुरगन्धयुक्त, सुगन्धित
  • सौगन्धम्—नपुं॰—-—सुगन्ध + अण्—मधुरगन्धता, सुवास
  • सौगन्धम्—नपुं॰—-—सुगन्ध + अण्—एक प्रकार का सुगन्धित तृण, कत्तृण
  • सौगन्धिक—वि॰—-—सुगन्ध + ठन्—मधुर गन्धवाला, सुगन्धित
  • सौगन्धिकः—पुं॰—-—सुगन्ध + ठन्—गन्ध द्रव्यों का विक्रेता, गन्धी
  • सौगन्धिकः—पुं॰—-—सुगन्ध + ठन्—गन्धक
  • सौगन्धिकम्—नपुं॰—-—सुगन्ध + ठन्—सफेद कुमुद
  • सौगन्धिकम्—नपुं॰—-—सुगन्ध + ठन्—नील कमल
  • सौगन्धिकम्—नपुं॰—-—सुगन्ध + ठन्—एक प्रकार का सुगन्धित घास, कत्तृण
  • सौगन्धिकम्—नपुं॰—-—सुगन्ध + ठन्—लाल
  • सौगन्ध्यम्—नपुं॰—-—सुगन्ध + ष्यञ्—गन्धमाधुर्य, सुगन्ध, सुवास
  • सौचिः —पुं॰—-—सूचि + इञ्—दर्जी
  • सौचिकः—पुं॰—-—सूचि + ठञ्—दर्जी
  • सौजन्यम्—नपुं॰—-—सृजन + ष्यञ्—नेकी, कृपालुता, भलाई
  • सौजन्यम्—नपुं॰—-—सृजन + ष्यञ्—महिमा, उदारता
  • सौजन्यम्—नपुं॰—-—सृजन + ष्यञ्—कृपा, करुणा, अनुकम्पा
  • सौजन्यम्—नपुं॰—-—सृजन + ष्यञ्—मित्रता, सौहार्द, प्रेम
  • सौण्डी—स्त्री॰—-—शुण्डा तदाकारोऽस्ति अस्याः शुण्डा + अण् + ङीप्, पृषो॰—
  • सौतिः—पुं॰—-—सूत + इञ्—कर्ण का नामान्तर
  • सौत्यम्—नपुं॰—-—सूत + ष्यञ्—सारथि का पद
  • सौत्र—वि॰—-—सूत्र + अण्—धागे या डोरी से संबंध रखने वाला
  • सौत्र—वि॰—-—सूत्र + अण्—सूत्रसंबंधी, सूत्र में वर्णित, सूत्र में निर्दिष्ट
  • सौत्रः—पुं॰—-—सूत्र + अण्—ब्राह्मण
  • सौत्रः—पुं॰—-—सूत्र + अण्—कृत्रिम धातु जो केवल सूत्रों में वर्णित है, नियमित धातुओं की भांति उसकी रुपरचना नहीं होती, यौगिक शब्दों के निर्माण में ही उसका उपयोग होता है
  • सौत्रान्तिकाः—पुं॰ ब॰ व॰—-—-—बौद्धों के चार सम्प्रदायों में से एक
  • सौत्रामणी—स्त्री॰—-—सुत्रामा इन्द्रो देवता अस्याः - सुत्रामन् + अण् + ङीप्— पूर्वदिशा
  • सौदर्यम्—नपुं॰—-—सोदर + ष्यञ्—भ्रातृत्व, भाईपना
  • सौदामनी—स्त्री॰—-—सुदामा पर्बतभेदः तेन एका दिक्, सुदामन् + अण् + ङीप्, पक्षे पृषो॰ साधुः—बिजली
  • सौदामिनी—स्त्री॰—-—सुदामा पर्बतभेदः तेन एका दिक्, सुदामन् + अण् + ङीप्, पक्षे पृषो॰ साधुः—बिजली
  • सौदाम्नी—स्त्री॰—-—सुदामा पर्बतभेदः तेन एका दिक्, सुदामन् + अण् + ङीप्, पक्षे पृषो॰ साधुः—बिजली
  • सौदायिक—वि॰—-—सुदाय + ठञ्—स्त्रीधन
  • सौदायिकम्—नपुं॰—-—सुदाय + ठञ्— दाज या दहेजसम्बन्धी
  • सौध—वि॰—-—सुधया निर्मित रक्तं वा अण्—अमृतमय, अमृतसम्बन्धी
  • सौध—वि॰—-—सुधया निर्मित रक्तं वा अण्—पलस्तर से युक्त, या चुने से पुता हुआ
  • सौधम्—नपुं॰—-—सुधया निर्मित रक्तं वा अण्—वह भवन जिसमें सफेदी की हुई है, सुधालिप्त, पलस्तरदार
  • सौधम्—नपुं॰—-—सुधया निर्मित रक्तं वा अण्—विशालभवन, महल, बड़ी हवेली
  • सौधम्—नपुं॰—-—सुधया निर्मित रक्तं वा अण्—चाँदी
  • सौधम्—नपुं॰—-—सुधया निर्मित रक्तं वा अण्—दूधिया पत्थर
  • सौधकारः—पुं॰—सौधम्-कारः—-—पलस्तर करने वाला
  • सौधकारः—पुं॰—सौधम्-कारः—-—मकान बनाने वाला
  • सौधवासः—पुं॰—सौधम्-वासः—-—महल जैसा भवन
  • सौन—वि॰—-—सूना + अण्—कसाईपने या कसाईखाने से सम्बन्ध रखने वाला
  • सौनम्—नपुं॰—-—सूना + अण्—कसाई के घर का मांस
  • सौनधर्म्यम्—नपुं॰—सौनधर्म्यम्—-—घोर शत्रुता की अवस्था
  • सौनन्दम्—नपुं॰—-—सुनन्द + अण्—बलराम का मूसल
  • सौनन्दिन्—पुं॰—-—सौनन्द + इनि—बलराम का विशेषण
  • सौनिकः—पुं॰—-—सुना + ठण्—कसाई
  • सौन्दर्यम्—नपुं॰—-—सुन्दर + ष्यञ्—सुन्दरता, मनोहरता, लावण्य, लालित्य
  • सौपर्णम्—नपुं॰—-—सुपर्ण्याः विनतायाः अपत्यम् - सुपर्णी + ढक्—गरुड का विशेषण
  • सौप्तिक—वि॰—-—सुप्ति + ठक्—निद्रासम्बन्धी
  • सौप्तिक—वि॰—-—सुप्ति + ठक्—निद्राजनक
  • सौप्तिकम्—नपुं॰—-—सुप्ति + ठक्—रात का आक्रमण, सोते हुए पर हमला
  • सौप्तिकपर्वन्—नपुं॰—सौप्तिकपर्वन्—-—महाभारत का दसवाँ पर्व जिसमें वर्णन किया गया है कि अश्वत्थामा, कृतवर्मा, कृप और कौरवसेना के बचे हुए योद्धाओं ने रात को पांडवशिविर पर आक्रमण कर हजारों सोते हुए सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया
  • सौप्तिकवधः—पुं॰—सौप्तिकवधः—-—पांडवशिविर के सैनिकों का रात में संहार
  • सौबलः—पुं॰—-—सुबल + अण्—शकुनि का नामान्तर
  • सौबली—स्त्री॰—-—सौबल + ङीप्—धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी
  • सौबलेयी—स्त्री॰—-—सुबला + ढक् + ङीप्—धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी
  • सौभम्—नपुं॰—-—सुष्ठु सर्वत्र लोके भाति - सु + भा + क + अण्—
  • सौभगम्—नपुं॰—-—सुभग + अण्—अच्छा भाग्य, सौभाग्य
  • सौभगम्—नपुं॰—-—सुभग + अण्—समृद्धि, धन, दौलत
  • सौभद्रः—पुं॰—-—सुभद्रा + अण्— सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु का विशेषण
  • सौभद्रेयः—पुं॰—-—सुभद्रा + ढक् — सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु का विशेषण
  • सौभागिनेयः—पुं॰—-—सुभगा + ढक्, इनङ्, द्विपदवृद्धि—सबसे प्रिय, पत्नी का पुत्र
  • सौभाग्यम्—नपुं॰—-—सुभगायाः सुभगस्य वा भावः - ष्यञ्, द्विपदवृद्धिः—अच्छा भाग्य, अच्छी किस्मत, सौभाग्यशालिता
  • सौभाग्यम्—नपुं॰—-—सुभगायाः सुभगस्य वा भावः - ष्यञ्, द्विपदवृद्धिः—स्वर्गीय सुख, माङ्गलिकता
  • सौभाग्यम्—नपुं॰—-—सुभगायाः सुभगस्य वा भावः - ष्यञ्, द्विपदवृद्धिः—सौन्दर्य, लावण्य, लालित्य
  • सौभाग्यम्—नपुं॰—-—सुभगायाः सुभगस्य वा भावः - ष्यञ्, द्विपदवृद्धिः—शोभा, उदात्तता
  • सौभाग्यम्—नपुं॰—-—सुभगायाः सुभगस्य वा भावः - ष्यञ्, द्विपदवृद्धिः—अहिवात
  • सौभाग्यम्—नपुं॰—-—सुभगायाः सुभगस्य वा भावः - ष्यञ्, द्विपदवृद्धिः—बधाई, मंगलकामना
  • सौभाग्यम्—नपुं॰—-—सुभगायाः सुभगस्य वा भावः - ष्यञ्, द्विपदवृद्धिः—सिंदूर
  • सौभाग्यम्—नपुं॰—-—सुभगायाः सुभगस्य वा भावः - ष्यञ्, द्विपदवृद्धिः—सुहागा
  • सौभाग्यम्चिह्नम्—नपुं॰—सौभाग्य-चिह्नम्—-—अच्छे भाग्य का चिह्न, अच्छी किस्मत का चिह्न
  • सौभाग्यम्चिह्नम्—नपुं॰—सौभाग्य-चिह्नम्—-—अहिवात का चिह्न
  • सौभाग्यम्तन्तुः—पुं॰—सौभाग्य-तन्तुः—-—विवाहसूत्र, मंगलसूत्र
  • सौभाग्यम्तृतीया—स्त्री॰—सौभाग्य-तृतीया—-—भाद्रशुक्ल-तृतीया, हरितालिका, तीज
  • सौभाग्यम्देवता—स्त्री॰—सौभाग्य-देवता—-—शुभदेवता, या अभिभावक देवता
  • सौभाग्यवायनम्—नपुं॰—सौभाग्य-वायनम्—-—मिष्ठान्न का शुभ उपहार या चढ़ावा
  • सौभाग्यवत्—वि॰—-—सौभाग्य + मतुप्—भाग्यशाली, शुभ
  • सौभाग्यवती—स्त्री॰—-—सौभाग्य + मतुप्+ङीप्—विवाहित स्त्री जिसका पति जीवित है, विवाहित सधवा स्त्री
  • सौभिकः—पुं॰—-—सौभं कामचारिपुरं तन्निर्माणं शीलमस्य - शौभ + ठक्—जादूगर, ऐन्द्रजालिक
  • सौभ्रात्रम्—नपुं॰—-—सुभ्रातृ + अण्—अच्छा भ्रातृभाव, भाईचारा, बंधुता
  • सौमनस—वि॰—-—सुमनस् + अण्—भावनानुकूल, सुखद
  • सौमनस—वि॰—-—सुमनस् + अण्—फूलसंबंधी, पुष्पीय
  • सौमनसम्—नपुं॰—-—सुमनस् + अण्—कृपालुता, उदारता, कृपा
  • सौमनसम्—नपुं॰—-—सुमनस् + अण्—आनन्द, सन्तोष
  • सौमनसा—स्त्री॰—-—सौमनस + टाप्—जायफल का छिलका
  • सौमनस्यम्—नपुं॰—-—सुमनस् + ष्यञ्—मन का संतोष, आनन्द, प्रसन्नता
  • सौमनस्यम्—नपुं॰—-—सुमनस् + ष्यञ्—श्राद्ध के अवसर पर ब्राह्मण को दिया गया फूलों का उपहार
  • सौमनस्यायनी—स्त्री॰—-—सौमनस्य + अय + ल्युट् + ङीप्—मालती लता की मंजरी
  • सौमायनः—पुं॰—-—सोम + फक्—बुद्ध का पितृपरक नाम
  • सौमिक—वि॰—-—सोम + ठक्—सोमरससंबंधी, सोमरस से अनुष्ठित यज्ञ
  • सौमिक—वि॰—-—सोम + ठक्—चन्द्रमाससम्बन्धी
  • सौमित्रः —पुं॰—-—सुमित्रा + अण्—लक्ष्मण का विशेषण
  • सौमित्रिः—पुं॰—-—सुमित्रा + इञ्—लक्ष्मण का विशेषण
  • सौमिल्लः—पुं॰—-—-—कालिदास का पूर्ववर्ती एक नाटककार
  • सौमेचकम्—नपुं॰—-—-—सोना, स्वर्ण
  • सौमेधिकः—पुं॰—-—सुमेधा + ठक्—मुनि, ऋषि, अलौकिक बुद्धिसम्पन्न
  • सौमेरुक—वि॰—-—सुमेरु + कञ्—सुमेरु संबंधी, सुमेरु से आया हुआ, या प्राप्त
  • सौमेरुकम्—नपुं॰—-—सुमेरु + कञ्—सोना, स्वर्ण
  • सौम्य—वि॰—-—सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्—चंद्र संबंधी, चन्द्रमा के लिए पावन
  • सौम्य—वि॰—-—सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्—सोम के गुणों से युक्त
  • सौम्य—वि॰—-—सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्—सुन्दर, सुखद, रुचिकर
  • सौम्य—वि॰—-—सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्—प्रिय, मृदुल, कोमल, स्निग्ध
  • सौम्य—वि॰—-—सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्—शुभ
  • सौम्यम्—नपुं॰—-—सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्—बुधग्रह
  • सौम्यम्—नपुं॰—-—सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्—ब्राह्मण को सम्बोधित करने का समुचित विशेषण
  • सौम्यम्—नपुं॰—-—सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्—ब्राह्मण
  • सौम्यम्—नपुं॰—-—सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्—गूलर का पेड़
  • सौम्यम्—नपुं॰—-—सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्—लाल होने से पूर्व की दशा में रुधिर, लसिका, रक्तोदक
  • सौम्यम्—नपुं॰—-—सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्—अन्नरस जो पेट में जाकर जीर्ण होकर बनता है
  • सौम्यम्—नपुं॰—-—सोमो देवतास्य तस्येदं वा अण्—पृथ्वी के नौ खण्डों में से एक
  • सौम्यम्—पुं॰ ब॰ व॰—-—-—मृगशिरा के पांच नक्षत्रों का पुंज
  • सौम्यम्—नपुं॰—-—-—पितृवर्ग विशेष
  • सौम्योपचारः —पुं॰—सौम्य-उपचारः—-—शान्त उपाय, मृदु चिकित्सा
  • सौम्यकृच्छ्रः—पुं॰—सौम्य-कृच्छ्रः—-—एक प्रकार की धर्म साधना
  • सौम्यकृच्छ्रम्—नपुं॰—सौम्य-कृच्छ्रम्—-—एक प्रकार की धर्म साधना
  • सौम्यगन्धी—स्त्री॰—सौम्य-गन्धी—-—सफेद गुलाब
  • सौम्यग्रहः—पुं॰—सौम्य-ग्रहः—-— शान्त और शुभ ग्रह
  • सौम्यधातुः—पुं॰—सौम्य-धातुः—-—कफ, श्लेषमा
  • सौम्यनामन्—वि॰—सौम्य-नामन्—-—जिसका नाम श्रुतिमधुर हो, सुखद हो
  • सौम्यवारः—पुं॰—सौम्य-वारः—-—बु्धवार
  • सौम्यवासरः—पुं॰—सौम्य-वासरः—-—बु्धवार
  • सौर—वि॰—-—सूर + अण्—सूरज सम्बन्धी, सौर्य
  • सौर—वि॰—-—सूर + अण्—सूर्य को अर्पित या पवन
  • सौर—वि॰—-—सूर + अण्—स्वर्गीय, दिव्य
  • सौर—वि॰—-—सूर + अण्—मदिरासम्बन्धी
  • सौरः—पुं॰—-—सूर + अण्—सुर्योपासक
  • सौरः—पुं॰—-—सूर + अण्—शनिग्रह
  • सौरः—पुं॰—-—सूर + अण्—सौर्य मास
  • सौरः—पुं॰—-—सूर + अण्—तुम्बुरु नाम का पौधा
  • सौरम्—नपुं॰—-—सूर + अण्—सूर्य सम्बन्धी मन्त्रों का समूह
  • सौरनक्तम्—नपुं॰—सौर-नक्तम्—-—एक विशेष व्रत जो रविवार को किया जाय
  • सौरमासः—पुं॰—सौर-मासः—-—सौर्य मास
  • सौरलोकः—पुं॰—सौर-लोकः—-—सूर्य लोक
  • सौरथः—पुं॰—-—सुरथ + अण्—शूरवीर योद्धा
  • सौरभ—वि॰—-—सुरभि + अण्—सुगन्धित
  • सौरभम्—नपुं॰—-—सुरभि + अण्—सुगन्ध
  • सौरभम्—नपुं॰—-—सुरभि + अण्—केसर, जाफ़रान
  • सौरभेय—वि॰—-—सुरभि + ढक्—सुरभि से सम्बन्ध
  • सौरभेयः—पुं॰—-—सुरभि + ढक्—बैल
  • सौरभी —स्त्री॰—-—सौरभ + ङीप्—गाय
  • सौरभी —स्त्री॰—-—सौरभ + ङीप्—‘सुरभी’ नामक गाय की पुत्री
  • सौरभेयी—स्त्री॰—-—सौरभेय + ङीष्—गाय
  • सौरभेयी—स्त्री॰—-—सौरभेय + ङीष्—‘सुरभी’ नामक गाय की पुत्री
  • सौरभ्यम्—नपुं॰—-—सुरभि + ष्यञ्—सुगन्ध, खुशबू, मधुरगन्ध
  • सौरभ्यम्—नपुं॰—-—सुरभि + ष्यञ्—रोचकता, सौन्दर्य
  • सौरभ्यम्—नपुं॰—-—सुरभि + ष्यञ्—सदाचरण, प्रसिद्धि, कीर्ति, ख्याति
  • सौरसेनाः—पुं॰ ब॰ व॰—-—-—एक प्रदेश और उसके अधिवासियों का नाम
  • सौरसेनी—स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की प्राकृत बोली का नाम
  • सौरसेयः—पुं॰—-—सुरसा + ढक्—स्कन्द का विशेषण
  • सौरसैन्धव—वि॰—-—सुरसिन्धु + अण्—आकाशगंगा सम्बन्धी
  • सौरसैन्धवः—पुं॰—-—सुरसिन्धु + अण्—सूर्य का घोड़ा
  • सौराज्यम्—नपुं॰—-—सुराज्य + ष्यञ्—अच्छा प्रशासन या राज्य
  • सौराष्ट्र—वि॰—-—सुराष्ट्र + अण्—सौराष्ट्र नामक प्रदेश सम्बन्धी या वहाँ से प्राप्त
  • सौराष्ट्रः—पुं॰—-—सुराष्ट्र + अण्—सौराष्ट्र प्रदेश
  • सौराष्ट्रः—पुं॰—-—सुराष्ट्र + अण्—सौराष्ट्र प्रदेश के अधिवासी
  • सौराष्ट्रः—पुं॰ ब॰ व॰—-—सुराष्ट्र + अण्—सौराष्ट्र प्रदेश के अधिवासी
  • सौराष्ट्रः—पुं॰—-—सुराष्ट्र + अण्—पीतल, कांसा
  • सौराष्ट्रकः—पुं॰—-—सौराष्ट्र + कन्—एक प्रकार का कांसा, फूल
  • सौराष्ट्रिकम्—नपुं॰—-—सुराष्ट्र + ठक्—एक प्रकार का जहर
  • सौरिः—पुं॰—-—सूरस्यापत्यं पुमान् इञ्—शनि ग्रह का नाम
  • सौरिः—पुं॰—-—सूरस्यापत्यं पुमान् इञ्—असन नामक वृक्ष
  • सौरिरत्नम्—नपुं॰—सौरिरत्नम्—-—एक प्रकार का रत्न, नीलम
  • सौरिक—वि॰—-—सुर (रा) (सूर) + ठक्—स्वर्गीय, दिव्य
  • सौरिक—वि॰—-—सुर (रा) (सूर) + ठक्—मदिरा सम्बन्धी, आसवीय
  • सौरिक—वि॰—-—सुर (रा) (सूर) + ठक्—मदिरा पर लगा कर, शुल्क
  • सौरिकः—पुं॰—-—सुर (रा) (सूर) + ठक्—शनि
  • सौरिकः—पुं॰—-—सुर (रा) (सूर) + ठक्—स्वर्ग, वैकुण्ठ
  • सौरिकः—पुं॰—-—सुर (रा) (सूर) + ठक्—कलाल, मदिरा बेचने वाला
  • सौरी—स्त्री॰—-—सौर + ङीष्—सूर्य की पत्नी
  • सौरीय—वि॰—-—सूर + छण्—सूर्य सम्बन्धी
  • सौरीय—वि॰—-—सूर + छण्—सूर्य के योग्य, सूर्य के उपयुक्त
  • सौर्य—वि॰—-—सूर्य + अण्—सूर्य से सम्बन्ध रखने वाला, सूर्य का
  • सौलभ्यम्—नपुं॰—-—सुलभ - ष्यञ्—प्राप्ति की सुविधा
  • सौलभ्यम्—नपुं॰—-—सुलभ - ष्यञ्—सूकरता, सुलभता, सुगमता
  • सौल्विकः—पुं॰—-—सुल्व + ठक्—ताम्रकार, कसेरा
  • सौव—वि॰—-—स्व (स्वर्) + अण्—अपनी निजी सम्पत्ति से सम्बन्ध रखने वाला
  • सौव—वि॰—-—स्व (स्वर्) + अण्—स्वर्गीय या स्वर्ग सम्बन्धी
  • सौवम्—नपुं॰—-—स्व (स्वर्) + अण्—आदेश, राजशासन
  • सौवग्रामिक—वि॰—-—स्वग्राम + ठक्—अपने निजी गाँव से सम्बन्ध रखने वाला
  • सौवर—वि॰—-—स्वर + अण्—किसी ध्वनि या संगीत के स्वर से संबंध रखने वाला
  • सौवर—वि॰—-—स्वर + अण्—स्वरसम्बन्धी
  • सौवर्चल—वि॰—-—सुवर्चल + अण्—सुवर्चल नामक देश से प्राप्त
  • सौवर्चलम्—नपुं॰—-—सुवर्चल + अण्—सोंचर नमक
  • सौवर्चलम्—नपुं॰—-—सुवर्चल + अण्—सज्जी का खार, रेह
  • सौवर्ण—वि॰—-—सुवर्ण + अण्—सुनहरी
  • सौवर्ण—वि॰—-—सुवर्ण + अण्—तोल में एक स्वर्ण मुद्रा के बराबर
  • सौवस्तिक—वि॰—-—स्वस्ति + ठक्—आशीर्वादात्मक
  • सौवस्तिकः—पुं॰—-—स्वस्ति + ठक्—कुलपुरोहित या ब्राह्मण
  • सौवाध्यायिक—वि॰—-—स्वाध्याय + ठक्—स्वाध्यायसम्बन्धी, स्वाध्यायी
  • सौवास्तव—वि॰—-—सुवास्तु + अण्—अच्छे स्थान पर निर्मित, अच्छी वासभूमि से युक्त
  • सौविदः—पुं॰—-—सु + विद् + क + अण्—अन्तःपुर की रखवाली पर नियुक्त व्यक्ति
  • सौविदल्लः—पुं॰—-—सु + विद् + क + अण्, सुष्ठु विदन्नृपः तं लाति - ला + क + अण्—अन्तःपुर की रखवाली पर नियुक्त व्यक्ति
  • सौवीरम्—नपुं॰—-—सुवीर + अण्—बेर का फल
  • सौवीरम्—नपुं॰—-—सुवीर + अण्—अंजन, सुरमा
  • सौवीरम्—नपुं॰—-—सुवीर + अण्—कांजी
  • सौवीरः—पुं॰—-—सुवीर + अण्—सुवीर देश या वहाँ का अधिवासी
  • सौवीरम्अञ्जनम्—नपुं॰—सौवीराञ्जनम्—-—एक प्रकार का अंजन् या सुरमा
  • सौवीरकः—पुं॰—-—सौवीर + कन्—बेरी, बेर का पेड़
  • सौवीरकः—पुं॰—-—सौवीर + कन्—सुवीर देश का अधिवासी
  • सौवीरकः—पुं॰—-—सौवीर + कन्—जयद्रथ का नाम
  • सौवीरकम्—नपुं॰—-—सौवीर + कन्—जौ की कांजी
  • सौवीर्यम्—नपुं॰—-—सुवीर + ष्यञ्—बड़ी शुरवीरता या विक्रम
  • सौशील्यम्—नपुं॰—-—सुशील + ष्यञ्—स्वभाव की श्रेष्ठता, अच्छा नैतिक आचरण, सदाचरण
  • सौश्रवसम्—नपुं॰—-—सुश्रवस + अण्—ख्याति, प्रसिद्धि
  • सौष्ठवम्—नपुं॰—-—सुष्ठु + अण्—श्रेष्ठता, भलाई, सौन्दर्य, लालित्य, सर्वोपरि सौन्दर्य
  • सौष्ठवम्—नपुं॰—-—सुष्ठु + अण्—परमकौशल, चातुर्य
  • सौष्ठवम्—नपुं॰—-—सुष्ठु + अण्—अधिकता
  • सौष्ठवम्—नपुं॰—-—सुष्ठु + अण्—लचक, हल्कापन
  • सौस्नातिकः—पुं॰—-—सुस्नात + ठक्—स्नान मंगलकारी होने के सम्बन्ध में पूछने वाला
  • सौहार्दः—पुं॰—-—सुहृद् + अण्—मित्र का पुत्र
  • सौहार्दम्—नपुं॰—-—सुहृद् + अण्—हृदय की सरलता, स्नेह, सद्भाव, मैत्री
  • सौहार्द्यम् —नपुं॰—-—सुहृद् + ष्यञ्—मित्रता, स्नेह
  • सौहृदम्—नपुं॰—-—सुहृद् + अण् —मित्रता, स्नेह
  • सौहृद्यम्—नपुं॰—-—सुहृद् + यत्—मित्रता, स्नेह
  • सौहित्यम्—नपुं॰—-—सुहित + ष्यञ्—तृप्ति, संतुष्टि
  • सौहित्यम्—नपुं॰—-—सुहित + ष्यञ्— पूर्णता, पूर्ति
  • सौहित्यम्—नपुं॰—-—सुहित + ष्यञ्—कृपालुता, सद्भावना
  • स्कन्द्—भ्वा॰ आ॰ <स्कन्दते>—-—-—कूदना
  • स्कन्द्—भ्वा॰ आ॰ <स्कन्दते>—-—-—उठाना
  • स्कन्द्—भ्वा॰ आ॰ <स्कन्दते>—-—-—उडेलना, उगलना
  • स्कन्द्—भ्वा॰ पर॰ <स्कन्दति> <स्कन्न>—-—-—उछलना, कूदना
  • स्कन्द्—भ्वा॰ पर॰ <स्कन्दति> <स्कन्न>—-—-—उठाना, ऊपर की ओर उठना, ऊपर को उछलना
  • स्कन्द्—भ्वा॰ पर॰ <स्कन्दति> <स्कन्न>—-—-—गिरना, टपकना
  • स्कन्द्—भ्वा॰ पर॰ <स्कन्दति> <स्कन्न>—-—-—फट जाना, छलकना
  • स्कन्द्—भ्वा॰ पर॰ <स्कन्दति> <स्कन्न>—-—-—नष्ट होना, समाप्त होना
  • स्कन्द्—भ्वा॰ पर॰ <स्कन्दति> <स्कन्न>—-—-—बिखर जाना, रिसना
  • स्कन्द्—भ्वा॰ पर॰ <स्कन्दति> <स्कन्न>—-—-—उगलना, ढालना
  • स्कन्द्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्कन्दयति> <स्कन्दयते>—-—-—उडेलना, फैलाना, ढालना, उगलना
  • स्कन्द्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्कन्दयति> <स्कन्दयते>—-—-—छोड़ देना, अवहेलना करना, पास से निकल जाना
  • अवस्कन्द्—भ्वा॰ पर॰ —अवस्कन्द्—-—आक्रमण करना, धावा बोलना, आंधी की भांति गरजना
  • आस्कन्द्—भ्वा॰ पर॰ —आस्कन्द्—-—आक्रमण करना, धावा बोलना
  • परिस्कन्द्—भ्वा॰ पर॰ —परिस्कन्द्—-—इधर उधर उछलना
  • प्रस्कन्द्—भ्वा॰ पर॰ —प्रस्कन्द्—-—आगे को उछलना
  • प्रस्कन्द्—भ्वा॰ पर॰ —प्रस्कन्द्—-—झपट्टा मारना, आक्रमण करना
  • स्कन्दः—पुं॰—-—स्कन्द् + अच्—उछलना
  • स्कन्दः—पुं॰—-—स्कन्द् + अच्— पारा
  • स्कन्दः—पुं॰—-—स्कन्द् + अच्—कार्तिकेय का नाम
  • स्कन्दः—पुं॰—-—स्कन्द् + अच्— शिव का नाम
  • स्कन्दः—पुं॰—-—स्कन्द् + अच्—शरीर
  • स्कन्दः—पुं॰—-—स्कन्द् + अच्—राजा
  • स्कन्दः—पुं॰—-—स्कन्द् + अच्—नदीतट
  • स्कन्दः—पुं॰—-—स्कन्द् + अच्—चतुर पुरुष
  • स्कन्दपुराणम्—नपुं॰—स्कन्द-पुराणम्—-—अठारह पुराणों में से एक
  • स्कन्दषष्ठी—स्त्री॰—स्कन्द-षष्ठी—-—चैत मास के छठे दिन कार्तिकेय के सम्मान में पर्व
  • स्कन्दकः—पुं॰—-—स्कन्द् + ण्वुल्—उछलने वाला
  • स्कन्दकः—पुं॰—-—स्कन्द् + ण्वुल्—सैनिक
  • स्कन्दनम्—नपुं॰—-—स्कंद् + ल्युट्—क्षरण, बहना
  • स्कन्दनम्—नपुं॰—-—स्कंद् + ल्युट्—रेचन, पेट का चलना, शिथिलता
  • स्कन्दनम्—नपुं॰—-—स्कंद् + ल्युट्—जाना, हिलना-जुलना
  • स्कन्दनम्—नपुं॰—-—स्कंद् + ल्युट्—सूखना
  • स्कन्दनम्—नपुं॰—-—स्कंद् + ल्युट्—ठंडक पहुँचा कर रक्त का जमाना
  • स्कन्ध्—चुरा॰ उभ॰ <स्कन्धयति> <स्कन्धयते>—-—-—एकत्र करना
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—कंधा
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—शरीर
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—वृक्ष का तना
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰— शाखा या बड़ी डाली
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—मानव-ज्ञान की कोई शाखा या विभाग
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—परिच्छेद, अध्याय, खण्ड
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰— किसी सेना की टुकड़ी
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—सैनिक समुच्चय, समूह
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—ज्ञानेन्द्रियों के पाँच विषय
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—जीवन के पाँच तत्त्वरुप
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—संग्राम, लड़ाई
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—ताजा
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—करार
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—मार्ग, रास्ता
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—बुद्धिमान या विद्वान पुरुष
  • स्कन्धः—पुं॰—-—स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सुखेन शाखया वा कर्मणि घञ्, पृषो॰—कंकपक्षी, बगला
  • स्कन्धावारः—पुं॰—स्कन्ध-आवारः—-—सेना या सेना की टुकड़ी
  • स्कन्धावारः—पुं॰—स्कन्ध-आवारः—-—राजा का निवास, राजधानी
  • स्कन्धावारः—पुं॰—स्कन्ध-आवारः—-— शिविर
  • स्कन्धोपानेय—वि॰—स्कन्ध-उपानेय—-—जो कंधे पर ठोया जाय, शान्ति बनाये रखने के लिए की जाने वाली संधि जिसमें अधीनता के चिह्न स्वरुप कोई फल या धान्य उपहार में दिया जाय
  • स्कन्धचापः—पुं॰—स्कन्ध-चापः—-—बहंगी
  • स्कन्धतरुः—पुं॰—स्कन्ध-तरुः—-—नारियल का पेड़
  • स्कन्धदेशः—पुं॰—स्कन्ध-देशः—-—कंध
  • स्कन्धपरिनिर्वाणम्—नपुं॰—स्कन्ध-परिनिर्वाणम्—-—शरीर के स्कन्धों का पूर्ण लोप या नाश
  • स्कन्धफलः—पुं॰—स्कन्ध-फलः—-—नारियल का पेड़
  • स्कन्धफलः—पुं॰—स्कन्ध-फलः—-—बेल का वृक्ष
  • स्कन्धफलः—पुं॰—स्कन्ध-फलः—-—गूलर का पेड़
  • स्कन्धबंधना—स्त्री॰—स्कन्ध-बंधना—-—एक प्रकार का सोया, मेथी
  • स्कन्धमल्लकः—पुं॰—स्कन्ध-मल्लकः—-—कंकपक्षी, बगला
  • स्कन्धरुहः—पुं॰—स्कन्ध-रुहः—-—वटवृक्ष
  • स्कन्धवाहः—पुं॰—स्कन्ध-वाहः—-—बोझा ढोने के लिए सधाया हुआ बैल, लद्दू बैल
  • स्कन्धवाहकः—पुं॰—स्कन्ध-वाहकः—-—बोझा ढोने के लिए सधाया हुआ बैल, लद्दू बैल
  • स्कन्धशाखा—स्त्री॰—स्कन्ध-शाखा—-—पेड़ की मुख्य शाखा जो वृक्ष के तने से निकले
  • स्कन्धशृङ्गः—पुं॰—स्कन्ध-शृङ्गः—-—भैंस
  • स्कन्धस्कन्धः—पुं॰—स्कन्ध-स्कन्धः—-—प्रत्येक कंधा
  • स्कन्धस्—नपुं॰—-—स्कन्ध् + असुन्, पृषो॰—कंधा
  • स्कन्धस्—नपुं॰—-—स्कन्ध् + असुन्, पृषो॰—वृक्ष का तना
  • स्कन्धिकः—पुं॰—-—स्कन्ध + ठन्—बोझा ढोने के लिए सधाया हुआ बैल
  • स्कन्धिन्—वि॰—-—स्कन्ध + इनि—कंधों वाला
  • स्कन्धिन्—वि॰—-—स्कन्ध + इनि—डालियों वाला, तने वाला
  • स्कन्धिन्—पुं॰—-—स्कन्ध + इनि—वक्ष
  • स्कन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्कन्द् + क्त—पतित, नीचे गिरा हुआ, उतरा हुआ
  • स्कन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्कन्द् + क्त—रिसा हुआ, बूंद बूंद टपका हुआ
  • स्कन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्कन्द् + क्त—उगला हुआ, फैलाया हुआ, छिड़का हुआ
  • स्कन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्कन्द् + क्त—गया हुआ
  • स्कन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्कन्द् + क्त—सूखा हुआ
  • स्कम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ <स्कम्भते> <स्कभ्नोति> <स्कभ्नाति>—-—-—रचना
  • स्कम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ <स्कम्भते> <स्कभ्नोति> <स्कभ्नाति>—-—-—रोकना, रुकावट, बाधा डालना, अवरोध करना, दबाना, नियंत्रित करना
  • स्कम्भ्—भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <स्कम्भयति> <स्कम्भयते> या <स्कभयति> <स्कभयते>—-—-—
  • विस्कम्भ्—भ्वा॰ आ॰—वि-स्कम्भ्—-—बाधा डालना, अवरोध करना
  • स्कम्भः—पुं॰—-—स्कन्भ् + घञ्—सहारा, थूणी, टेक
  • स्कम्भः—पुं॰—-—स्कन्भ् + घञ्—आलंब, आधार
  • स्कम्भः—पुं॰—-—स्कन्भ् + घञ्—परमेश्वर
  • स्कम्भनम्—नपुं॰—-—स्कम्भ् + ल्युट्—सहारा देने की क्रिया, सहारा, थूणी, टेक
  • स्कान्द—वि॰—-—स्कन्द + अण्—स्कन्दसम्बन्धी
  • स्कान्द—वि॰—-—स्कन्द + अण्—शिवसम्बन्धी
  • स्कान्दम्—नपुं॰—-—स्कन्द + अण्—स्कन्द पुराण
  • स्कु—स्वा॰ क्रया॰ उभ॰ <स्कुनोति> <स्कुनुते> <स्कुनाति> <स्कुनीते>—-—-—कूद कर चलना, उछलना, चौकड़ी भरना
  • स्कु—स्वा॰ क्रया॰ उभ॰ <स्कुनोति> <स्कुनुते> <स्कुनाति> <स्कुनीते>—-—-—उठाना, उद्वहन करना
  • स्कु—स्वा॰ क्रया॰ उभ॰ <स्कुनोति> <स्कुनुते> <स्कुनाति> <स्कुनीते>—-—-—ढकना, ऊपर बिछा देना
  • स्कु—स्वा॰ क्रया॰ उभ॰ <स्कुनोति> <स्कुनुते> <स्कुनाति> <स्कुनीते>—-—-—पहुँचना
  • प्रतिस्कु—स्वा॰ क्रया॰ उभ॰ <स्कुनोति> <स्कुनुते> <स्कुनाति> <स्कुनीते>—प्रतिस्कु—-—ढांपना
  • स्कुन्द्—भ्वा॰ आ॰ <स्कुन्दते>—-—-—कूदना
  • स्कुन्द्—भ्वा॰ आ॰ <स्कुन्दते>—-—-—उद्वहन करना
  • स्कोटिका—स्त्री॰—-—-—पक्षीविशेष
  • स्खद्—भ्वा॰ आ॰ <स्खदते>—-—-—काटना, काट कर टुकड़े टुकड़े करना
  • स्खद्—भ्वा॰ आ॰ <स्खदते>—-—-—नष्ट करना
  • स्खद्—भ्वा॰ आ॰ <स्खदते>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, मार डालना
  • स्खद्—भ्वा॰ आ॰ <स्खदते>—-—-—परास्त करना, सर्वथा हरा देना
  • स्खद्—भ्वा॰ आ॰ <स्खदते>—-—-—थकाना, श्रांत करना, कष्ट देना
  • स्खद्—भ्वा॰ आ॰ <स्खदते>—-—-—दृढ़ करना
  • स्खदनम्—नपुं॰—-—स्खद् + ल्युट्—काटना, काट कर टुकड़े टुकड़े करना
  • स्खदनम्—नपुं॰—-—स्खद् + ल्युट्—चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, मार डालना
  • स्खदनम्—नपुं॰—-—स्खद् + ल्युट्—कष्ट देना, दुःखी करना
  • स्खल्—भ्वा॰ पर॰ <स्खलति>—-—-—लड़खड़ाना, औंधे मुँह गिरना, नीचे गिरना, फिसलना, डगमगाना
  • स्खल्—भ्वा॰ पर॰ <स्खलति>—-—-—डगमगाना, लहराना, थरथाराना, डगमग होना
  • स्खल्—भ्वा॰ पर॰ <स्खलति>—-—-—आज्ञा भंग किया जाना, उल्लंघित होना
  • स्खल्—भ्वा॰ पर॰ <स्खलति>—-—-—सन्मार्ग से च्युत होना
  • स्खल्—भ्वा॰ पर॰ <स्खलति>—-—-—ग्रस्त होना उत्तेजित होना
  • स्खल्—भ्वा॰ पर॰ <स्खलति>—-—-—त्रुटि करना, बड़ी भूल करना, गलती करना
  • स्खल्—भ्वा॰ पर॰ <स्खलति>—-—-—हकलाना, तुतलाना, रुक रुक कर बोलना
  • स्खल्—भ्वा॰ पर॰ <स्खलति>—-—-—विफल होना, कोई प्रभाव न होना
  • स्खल्—भ्वा॰ पर॰ <स्खलति>—-—-—बूंद बूंद गिरना, टपकना, चूना
  • स्खल्—भ्वा॰ पर॰ <स्खलति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
  • स्खल्—भ्वा॰ पर॰ <स्खलति>—-—-—ओझल होना
  • स्खल्—भ्वा॰ पर॰ <स्खलति>—-—-—एकत्र करना, इकट्ठा करना
  • स्खल्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्खलयति> <स्खलयते>—-—-—लड़खड़ाने का कारण बनना
  • स्खल्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्खलयति> <स्खलयते>—-—-—त्रुटि या भूल कराना, डगमगाने या डावांडोल होने का कारण बनना
  • प्रस्खल्—भ्वा॰ पर॰—प्रस्खल्—-—धक्कमधक्का होना
  • विस्खल्—भ्वा॰ पर॰—विस्खल्—-—गलती करना, बड़ी भूल करना
  • स्खलनम्—नपुं॰—-—स्खल् + ल्युट्—लड़खड़ाना, फिसलना, डगमगाना, नीचे गिर पड़ना
  • स्खलनम्—नपुं॰—-—स्खल् + ल्युट्—डगमगाते हुए चलना
  • स्खलनम्—नपुं॰—-—स्खल् + ल्युट्—सन्मार्ग से विचलन
  • स्खलनम्—नपुं॰—-—स्खल् + ल्युट्—भारी भूल, त्रुटि, गलती
  • स्खलनम्—नपुं॰—-—स्खल् + ल्युट्—विफलता, निराशा, असफलता
  • स्खलनम्—नपुं॰—-—स्खल् + ल्युट्—हकलाना, बोलने में भूल या उच्चारण में अशुद्धि, रुक रुक कर बोलना
  • स्खलनम्—नपुं॰—-—स्खल् + ल्युट्—चूना टपकना
  • स्खलनम्—नपुं॰—-—स्खल् + ल्युट्—टकराना, उलझना
  • स्खलनम्—नपुं॰—-—स्खल् + ल्युट्—आपस में घिसना, रगड़ना
  • स्खलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्खल् + क्त—लड़खड़ाया, फिसला, डगमगाया
  • स्खलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्खल् + क्त—गिरा, पड़ा
  • स्खलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्खल् + क्त—थरथराने वाला, लहराने वाला, घटबढ़ होने वाला, अस्थिर
  • स्खलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्खल् + क्त—नशे में चूर, पियक्कड़
  • स्खलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्खल् + क्त—हकलाने वाला, रुक रुक कर बोलने वाला
  • स्खलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्खल् + क्त—विक्षुब्ध, बाधित
  • स्खलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्खल् + क्त—त्रुटि करने वाला, बड़ी भूल करने वाला
  • स्खलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्खल् + क्त—गिरा हुआ, उद्गीर्ण
  • स्खलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्खल् + क्त—टपकने वाला, चू कर नीचे गिरने वाला
  • स्खलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्खल् + क्त—हस्तक्षेप किया गया, रोका हुआ
  • स्खलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्खल् + क्त—व्याकुल
  • स्खलित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्खल् + क्त—बीता हुआ
  • स्खलितम्—नपुं॰—-—स्खल् + क्त—लड़खड़ाना, डगमगाना, गिरना
  • स्खलितम्—नपुं॰—-—स्खल् + क्त—सन्मार्ग से विचलन
  • स्खलितम्—नपुं॰—-—स्खल् + क्त—त्रुटि, भूल, गलती, गोत्रस्खलित
  • स्खलितम्—नपुं॰—-—स्खल् + क्त—दोष, पाप, अतिक्रमण
  • स्खलितम्—नपुं॰—-—स्खल् + क्त—धोखा, विश्वासघात
  • स्खलितम्—नपुं॰—-—स्खल् + क्त—झाँसा, कूटचाल
  • स्खलितसुभगम्—अव्य॰—स्खलितसुभगम्—-—आकर्षक रीति से चले चलना
  • स्खुड्—तुदा॰ पर॰ <स्खुडति>—-—-—ढकना
  • स्तक्—भ्वा॰ पर॰ <स्तकति>—-—-—मुकाबला करना
  • स्तक्—भ्वा॰ पर॰ <स्तकति>—-—-—टक्कर लेना, प्रतिरोध करना, पीछे ढकेलना
  • स्तन्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ्॰ <स्तनति> <स्तनयति> <स्तनयते> <स्तनित>—-—-—आवाज करना, शब्द करना, गूंजना, प्रतिध्वनि करना
  • स्तन्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ्॰ <स्तनति> <स्तनयति> <स्तनयते> <स्तनित>—-—-—कराहना, कठिनाई से सांस लेना, ऊँचा सांस लेना
  • स्तन्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ्॰ <स्तनति> <स्तनयति> <स्तनयते> <स्तनित>—-—-—गरजना, दहाड़ना
  • निस्तन्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ्—निस्तन्—-—शब्द करना
  • निस्तन्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ्—निस्तन्—-—आह भरना
  • निस्तन्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ्—निस्तन्—-—विलाप करना
  • विस्तन्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ्—विस्तन्—-—दहाड़ना
  • स्तनः—पुं॰—-—स्तन् + अच्—स्त्री की छाती
  • स्तनः—पुं॰—-—स्तन् + अच्—छाती, किसी भी मादा की औड़ी या चूचुक
  • स्तनांशुकम्—नपुं॰—स्तन-अंशुकम्—-—स्तन ढकने का कपड़ा
  • स्तनाग्रः—पुं॰—स्तन-अग्रः—-—चूची
  • स्तनाङ्गरागः—पुं॰—स्तन-अङ्गरागः—-—स्त्री के स्तनों पर लगाया जाने वाला रंग
  • स्तनान्तरम्—नपुं॰—स्तन-अन्तरम्—-—हृदय
  • स्तनान्तरम्—नपुं॰—स्तन-अन्तरम्—-—दोनों के स्तनों के बीच का स्थान
  • स्तनान्तरम्—नपुं॰—स्तन-अन्तरम्—-—स्तन का एक चिह्न
  • स्तनाभोगः—पुं॰—स्तन-आभोगः—-—स्तनों की पूर्णता या फैलाव
  • स्तनाभोगः—पुं॰—स्तन-आभोगः—-—चूचियों की गोलाई
  • स्तनाभोगः—पुं॰—स्तन-आभोगः—-—वह पुरुष जिसके स्त्रियों जैसे बड़े स्तन हों
  • स्तनतटः—पुं॰—स्तन-तटः—-—चूचियों का ढलान
  • स्तनतटम्—नपुं॰—स्तन-तटम्—-—चूचियों का ढलान
  • स्तनप—वि॰—स्तन-प—-—स्तन पान करने वाला दुधमुंहा
  • स्तनपा—वि॰—स्तन-पा—-—स्तन पान करने वाला दुधमुंहा
  • स्तनपायक—वि॰—स्तन-पायक—-—स्तन पान करने वाला दुधमुंहा
  • स्तनपायिन्—वि॰—स्तन-पायिन्—-—स्तन पान करने वाला दुधमुंहा
  • स्तनपानम्—नपुं॰—स्तन-पानम्—-—स्तनपान करना
  • स्तनभरः—पुं॰—स्तन-भरः—-—स्तनों की स्थूलता
  • स्तनभरः—पुं॰—स्तन-भरः—-—स्त्री जैसे स्तनों वाला पुरुष
  • स्तनभवः—पुं॰—स्तन-भवः—-—एक प्रकार का रतिबन्ध
  • स्तनमुखम्—नपुं॰—स्तन-मुखम्—-—चूचुक, चूची
  • स्तनवृतम्—नपुं॰—स्तन-वृतम्—-—चूचुक, चूची
  • स्तनशिखा—स्त्री॰—स्तन-शिखा—-—चूचुक, चूची
  • स्तननम्—नपुं॰—-—स्तन् + ल्युट्—ध्वनन, आवाज, कोलाहल
  • स्तननम्—नपुं॰—-—स्तन् + ल्युट्—दहाड़ना, गरजना, गड़गड़ाना
  • स्तननम्—नपुं॰—-—स्तन् + ल्युट्—कराहना
  • स्तननम्—नपुं॰—-—स्तन् + ल्युट्—कठिनाई से साँस लेना
  • स्तनन्धय—वि॰—-—स्तनं धयति - धे + खश्, मुम् च—स्तन्यपान करने वाला
  • स्तनन्धयः—पुं॰—-—स्तनं धयति - धे + खश्, मुम् च—शिशु दूधमुंहा बच्चा @ रघु॰ १४।७८, @ शि॰ १२।४०
  • स्तनयित्नुः—पुं॰—-—स्तन् + इत्नु—ग्रजना, गड़गड़ाना, बादलों का कड़कड़ाना
  • स्तनयित्नुः—पुं॰—-—स्तन् + इत्नु—बादल
  • स्तनयित्नुः—पुं॰—-—स्तन् + इत्नु—बिजली
  • स्तनयित्नुः—पुं॰—-—स्तन् + इत्नु—रोग, बीमारी
  • स्तनयित्नुः—पुं॰—-—स्तन् + इत्नु—मृत्यु
  • स्तनयित्नुः—पुं॰—-—स्तन् + इत्नु—एक प्रकार का घास
  • स्तनित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्तन् कर्तरि क्त—ध्वनित, शब्दायमान, कोलाहलमय
  • स्तनित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्तन् कर्तरि क्त—गरजने वाला, दहाड़ने वाला
  • स्तनितम्—नपुं॰—-—स्तन् कर्तरि क्त—बिजली की कड़कड़ाहट, बादलों की गरज
  • स्तनितम्—नपुं॰—-—स्तन् कर्तरि क्त—गरज, शोर
  • स्तनितम्—नपुं॰—-—स्तन् कर्तरि क्त—ताली बजाने की आवाज
  • स्तन्यम्—नपुं॰—-—स्तने भवं यत्—मां का दूध, क्षीर
  • स्तन्यत्यागः—पुं॰—स्तन्यम्-त्यागः—स्तने भवं यत्—मां का दूध छुड़ाना
  • स्तबकम्—नपुं॰—-—स्तु + वुन् या स्था + अवक्, पृषो॰ बवयोरभेदः—गुच्छा, झुण्ड
  • स्तब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्तम्भ् कर्मणि कर्तरि वा क्त—रोका हुआ, घेराबन्दी किया हुआ, अवरुद्ध
  • स्तब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्तम्भ् कर्मणि कर्तरि वा क्त—लकवे से ग्रस्त, संज्ञाहीन, सुन्न, जड़ीकृत
  • स्तब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्तम्भ् कर्मणि कर्तरि वा क्त—गतिहीन, स्थावर, अचल
  • स्तब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्तम्भ् कर्मणि कर्तरि वा क्त—स्थिर, दृढ़, कड़ा, घोर, कठोर
  • स्तब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्तम्भ् कर्मणि कर्तरि वा क्त—ढीठ, अडिग, कठोर हृदय, निष्ठुर
  • स्तब्ध—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्तम्भ् कर्मणि कर्तरि वा क्त—उजड्ड, मोटा
  • स्तब्धकर्ण—वि॰—स्तब्ध-कर्ण—-—जिसके कान खड़े हों
  • स्तब्धरोमन्—वि॰—स्तब्ध-रोमन्—-—सूअर, वराह
  • स्तब्धलोचन—वि॰—स्तब्ध-लोचन—-—जिसकी पलकें न झपकती हों
  • स्तब्धता—स्त्री॰—-—स्तब्ध + तल् + टाप्—अनम्यता, दृढ़ता, कड़ाई
  • स्तब्धता—स्त्री॰—-—स्तब्ध + तल् + टाप्—जाड्य, असंवेद्यता
  • स्तब्धत्वम्—नपुं॰—-—स्तब्ध + तल् + त्व —अनम्यता, दृढ़ता, कड़ाई
  • स्तब्धत्वम्—नपुं॰—-—स्तब्ध + तल् + त्व —जाड्य, असंवेद्यता
  • स्तब्धिः—स्त्री॰—-—स्तम्भ् + क्तिन्—स्थिरता, कड़ापन, सख्ती, अनम्यता
  • स्तब्धिः—स्त्री॰—-—स्तम्भ् + क्तिन्—दृढ़ता, अचलता
  • स्तब्धिः—स्त्री॰—-—स्तम्भ् + क्तिन्—जाड्य, असंवेद्यता, जड़ता
  • स्तब्धिः—स्त्री॰—-—स्तम्भ् + क्तिन्—घृष्टता
  • स्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —-—-—रोकना, बाधा डालना, पकड़ना, दबाना
  • स्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —-—-—दृढ़ करना, कड़ा करना, अचल बनाना
  • स्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —-—-—जड़ बनाना, शक्तिहीन करना, अनम्य बनाना
  • स्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —-—-—टेक लगाना, सहारा देना, थामना, संभाले रखना
  • स्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —-—-—कड़ा होना, सख्त होना, अटल होना
  • स्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —-—-—घमंडी होना, उन्नत होना, सीधी गर्दन वाला होना
  • स्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —-—-—रोकना, पकड़ना
  • स्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —-—-—दृढ़ या कड़ा करना
  • स्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —-—-—गतिहीन करना
  • स्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —-—-—टेक लगाना, सहारा देना
  • अवस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —अव-स्तभ्—-—झुकना, निर्भर होना
  • अवस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —अव-स्तभ्—-—अवरुद्ध करना
  • अवस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —अव-स्तभ्—-—सहारा देना, टेक लगाना
  • अवस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —अव-स्तभ्—-—थामना, कौली भरना, आलिंगन करना
  • अवस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —अव-स्तभ्—-—लपेटना, लिफाफे में रखना
  • अवस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —अव-स्तभ्—-—बाधा डालना, रोकना, पकड़ना, प्रतिबद्ध करना
  • उद्स्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —उद् स्तभ्—-—रोकना, रुकावट डालना, पकड़ना
  • उद्स्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —उद् स्तभ्—-—सहारा देना, टेक लगाना, थामे रखना
  • उपस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —उप-स्तभ्—-—रोकना, गिरफ्तार करना
  • निस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —निस् स्तभ्—-—रोकना, गिरफ्तार करना
  • पर्यवस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —पर्यव-स्तभ्—-—घेरना
  • विस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —वि-स्तभ्—-—रोकना
  • विस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —वि-स्तभ्—-—जमाना, पौधा लगाना, आश्रित होना
  • संस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —सम्-स्तभ्—-—रोकना, प्रतिबद्ध करना, नियंत्रण करना
  • संस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —सम्-स्तभ्—-—गतिहीन करना, अनम्य करना
  • संस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —सम्-स्तभ्—-—हिम्मत बाँधना, साहस करना, प्रसन्न होना, स्वस्थचित्त करना, सचेत होना
  • संस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —सम्-स्तभ्—-—दृढ़ या अटल करना
  • समवस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —समव-स्तभ्—-—सहारा देना, टेक लगाना
  • समवस्तभ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ —समव-स्तभ्—-—सांत्वना देना, प्रोत्साहित करना
  • स्तभः—पुं॰—-—-—बकरा, मेढा
  • स्तभु—नपुं॰—-—-—स्तम्भन
  • स्तस्—भ्वा॰ पर॰ <स्तमति>—-—-—घबरा जाना, व्याकुल होना
  • स्तम्बः—पुं॰—-—स्था + अम्बच् किच्च, पृषो॰—घास का पुंज
  • स्तम्बः—पुं॰—-—स्था + अम्बच् किच्च, पृषो॰—अनाज के पौधों की पुली
  • स्तम्बः—पुं॰—-—स्था + अम्बच् किच्च, पृषो॰—झुंड, पुंज, गुच्छा
  • स्तम्बः—पुं॰—-—स्था + अम्बच् किच्च, पृषो॰—झाड़ी, झुरमुट
  • स्तम्बः—पुं॰—-—स्था + अम्बच् किच्च, पृषो॰—गुल्म, प्रकांड रहित झाड़ी
  • स्तम्बः—पुं॰—-—स्था + अम्बच् किच्च, पृषो॰—हाथी बाँधने का खूंटा
  • स्तम्बः—पुं॰—-—स्था + अम्बच् किच्च, पृषो॰—खंभा
  • स्तम्बः—पुं॰—-—स्था + अम्बच् किच्च, पृषो॰—जड़ता, असंवेद्यता
  • स्तम्बः—पुं॰—-—स्था + अम्बच् किच्च, पृषो॰—पहाड़
  • स्तम्बकरि—वि॰—स्तम्बः-करि—-—पुलियाँ बनाने वाला, भरोटा बनाने वाला
  • स्तम्बकरिः—पुं॰—स्तम्बः-करिः—-—अनाज, धान्य
  • स्तम्बकरिता—स्त्री॰—स्तम्बः-करिता—-—पूला या मुट्ठा बनना, प्रचुर या पुष्कल मात्रा में विकास
  • स्तम्बघनः—पुं॰—स्तम्बः-घनः—-—खुर्पा
  • स्तम्बघनः—पुं॰—स्तम्बः-घनः—-—दरांती
  • स्तम्बघनः—पुं॰—स्तम्बः-घनः—-—तिन्नी धान एकत्र करने की टोकरी
  • स्तम्बघ्नः—पुं॰—स्तम्बः-घ्नः—-—दरांती, खुर्पा
  • स्तम्बेरमः—पुं॰—-—स्तम्बे वृक्षादीनां काण्डे गुल्मे गुच्छे वा रमते रम् + अच्, अलुक् स॰—हाथी
  • स्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ <स्तम्भते> <स्तम्भोति> <स्तभ्नाति> <स्तम्भित>—-—-—रोकना, बाधा डालना, पकड़ना, दबाना
  • स्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ <स्तम्भते> <स्तम्भोति> <स्तभ्नाति> <स्तम्भित>—-—-—दृढ़ करना, कड़ा करना, अचल बनाना
  • स्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ <स्तम्भते> <स्तम्भोति> <स्तभ्नाति> <स्तम्भित>—-—-—जड़ बनाना, शक्तिहीन करना, अनम्य बनाना
  • स्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ <स्तम्भते> <स्तम्भोति> <स्तभ्नाति> <स्तम्भित>—-—-—टेक लगाना, सहारा देना, थामना, संभाले रखना
  • स्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ <स्तम्भते> <स्तम्भोति> <स्तभ्नाति> <स्तम्भित>—-—-—कड़ा होना, सख्त होना, अटल होना
  • स्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰ <स्तम्भते> <स्तम्भोति> <स्तभ्नाति> <स्तम्भित>—-—-—घमंडी होना, उन्नत होना, सीधी गर्दन वाला होना
  • स्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्तम्भयति> <स्तम्भयते>—-—-—रोकना, पकड़ना
  • स्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्तम्भयति> <स्तम्भयते>—-—-—दृढ़ या कड़ा करना
  • स्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्तम्भयति> <स्तम्भयते>—-—-—गतिहीन करना
  • स्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्तम्भयति> <स्तम्भयते>—-—-—टेक लगाना, सहारा देना
  • अवस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—अव-स्तम्भ्—-—झुकना, निर्भर होना
  • अवस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—अव-स्तम्भ्—-—अवरुद्ध करना
  • अवस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—अव-स्तम्भ्—-—सहारा देना, टेक लगाना
  • अवस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—अव-स्तम्भ्—-—थामना, कौली भरना, आलिंगन करना
  • अवस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—अव-स्तम्भ्—-—लपेटना, लिफाफे में रखना
  • अवस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—अव-स्तम्भ्—-—बाधा डालना, रोकना, पकड़ना, प्रतिबद्ध करना
  • उद्स्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—उद् स्तम्भ्—-—रोकना, रुकावट डालना, पकड़ना
  • उद्स्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—उद् स्तम्भ्—-—सहारा देना, टेक लगाना, थामे रखना
  • उपस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—उप-स्तम्भ्—-—रोकना, गिरफ्तार करना
  • निस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—निस् स्तम्भ्—-—रोकना, गिरफ्तार करना
  • पर्यवस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—पर्यव-स्तम्भ्—-—घेरना
  • विस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—वि-स्तम्भ्—-—रोकना
  • विस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ पर॰—वि-स्तम्भ्—-—जमाना, पौधा लगाना, आश्रित होना
  • संस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्तम्भयति> <स्तम्भयते>—सम्-स्तम्भ्—-—रोकना, प्रतिबद्ध करना, नियंत्रण करना
  • संस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्तम्भयति> <स्तम्भयते>—सम्-स्तम्भ्—-—गतिहीन करना, अनम्य करना
  • संस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्तम्भयति> <स्तम्भयते>—सम्-स्तम्भ्—-—हिम्मत बाँधना, साहस करना, प्रसन्न होना, स्वस्थचित्त करना, सचेत होना
  • संस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्तम्भयति> <स्तम्भयते>—सम्-स्तम्भ्—-—दृढ़ या अटल करना
  • समवस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्तम्भयति> <स्तम्भयते>—समव-स्तम्भ्—-—सहारा देना, टेक लगाना
  • समवस्तम्भ्—भ्वा॰ आ॰, स्वा॰ क्रया॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्तम्भयति> <स्तम्भयते>—समव-स्तम्भ्—-—सांत्वना देना, प्रोत्साहित करना
  • स्तम्भः—पुं॰—-—स्तम्भ् + अच्—स्थिरता, कड़ापन, सख्ती, अटलता
  • स्तम्भः—पुं॰—-—स्तम्भ् + अच्—असंवेद्यता, जडता, जाड्य, अनम्यता, लकवा
  • स्तम्भः—पुं॰—-—स्तम्भ् + अच्—रोक, अवरोध, रुकावट
  • स्तम्भः—पुं॰—-—स्तम्भ् + अच्—नियंत्रित करना, दमन करना, दबाना
  • स्तम्भः—पुं॰—-—स्तम्भ् + अच्—टेक, सहारा, आलंब
  • स्तम्भः—पुं॰—-—स्तम्भ् + अच्—स्थूण, खंभा, पोल
  • स्तम्भः—पुं॰—-—स्तम्भ् + अच्—प्रकांड, तना
  • स्तम्भः—पुं॰—-—स्तम्भ् + अच्—मूढ़ता, जड़ता
  • स्तम्भः—पुं॰—-—स्तम्भ् + अच्—भावशून्यता, अनुत्तेजनीयता
  • स्तम्भः—पुं॰—-—स्तम्भ् + अच्—किसी अलौकिक शक्ति या जादू से भावना या शक्ति का दमन करना
  • स्तम्भोत्कीर्ण—वि॰—स्तम्भउत्कीर्ण—-—किसी लकड़ी में खोदकर बनाई गई
  • स्तम्भगर—वि॰—स्तम्भगर—-—गतिहीन करने वाला, जड़ता लाने वाला
  • स्तम्भगर—वि॰—स्तम्भगर—-—रोकने वाला
  • स्तम्भगरः—पुं॰—स्तम्भगरः—-—बाड़
  • स्तम्भकारणम्—नपुं॰—स्तम्भकारणम्—-—अवरोध या रुकावट का कारण
  • स्तम्भपूजा—स्त्री॰—स्तम्भपूजा—-—विवाह आदि के अवसर पर बनाए गए अस्थायी मंडपों के स्तम्भों की पूजा
  • स्तम्भकिन्—पुं॰—-—-—चर्ममंडित एक वाद्ययंत्र
  • स्तम्भनम्—नपुं॰—-—स्तम्भ् + ल्युट्—रोकना, अवरोध करना, रुकावट डालना, गिरफ्तार करना, दबाना, नियंत्रित करना
  • स्तम्भनम्—नपुं॰—-—स्तम्भ् + ल्युट्—गतिहीन होना, अकड़ाहट, जड़ता
  • स्तम्भनम्—नपुं॰—-—स्तम्भ् + ल्युट्—शान्त होना, स्वस्थचित्तता
  • स्तम्भनम्—नपुं॰—-—स्तम्भ् + ल्युट्—दृढ़ या कड़ा करना, दृढ़तापूर्वक जमाना
  • स्तम्भनम्—नपुं॰—-—स्तम्भ् + ल्युट्—टेक देना, सहारा देना
  • स्तम्भनम्—नपुं॰—-—स्तम्भ् + ल्युट्—रुधिर प्रवाह को रोकना
  • स्तम्भनम्—नपुं॰—-—स्तम्भ् + ल्युट्—कोई भी चीज जो रक्तस्रावरोधक हो
  • स्तम्भनम्—नपुं॰—-—स्तम्भ् + ल्युट्—किसी की शक्ति कुंठित करना
  • स्तम्भनः—पुं॰—-—स्तम्भ् + ल्युट्—कामदेव के पाँच बाणों में से एक
  • स्तर—वि॰ —-—स्तृ स्तॄ + घञ्—फैलाने वाला, विस्तार करने वाला, ढकने वाला
  • स्तरः—पुं॰—-—स्तृ स्तॄ + घञ्—कोई भी बिछाई हुई चीज, रद्दा, तह, परत
  • स्तरः—पुं॰—-—स्तृ स्तॄ + घञ्—शय्या, पलंग
  • स्तरणम्—नपुं॰—-—स्तृ स्तॄ + ल्युट्—फैलाने की क्रिया, बिखेरना, छितराना आदि
  • स्तरिमन् —पुं॰—-—तृ + इ ई मनिच्—शय्या, पलंग
  • स्तरीमन्—पुं॰—-—तृ + इ ई मनिच्—शय्या, पलंग
  • स्तरी—स्त्री॰—-—स्तृ कर्मणि ई—धूँआ, बाष्प
  • स्तरी—स्त्री॰—-—स्तृ कर्मणि ई—बछिया
  • स्तरी—स्त्री॰—-—स्तृ कर्मणि ई—बांझ गाय
  • स्तवः—पुं॰—-—स्तु + अप्—प्रशंसा करना, विख्यात करना, स्तुति करना
  • स्तवः—पुं॰—-—स्तु + अप्—प्रशंसा, स्तुति, स्तोत्र
  • स्तवक—पुं॰—-—स्तु + वुन् —प्रशंसक, स्तोता
  • स्तवकः—पुं॰—-—स्तु + वुन् —स्तुति कर्ता, प्रशंसा, स्तुति
  • स्तवकः—पुं॰—-—स्तु + वुन् —मंजरियों का गुच्छा
  • स्तवकः—पुं॰—-—स्तु + वुन् —फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता, गजरा, कुसुमस्तवक
  • स्तवकः—पुं॰—-—स्तु + वुन् —किसी पुस्तक का परिच्छेद, या अनुभाग
  • स्तवकः—पुं॰—-—स्तु + वुन् —समुच्चय
  • स्तवनम्—नपुं॰—-—स्तु + ल्युट्—प्रशंसा करना, सराहना
  • स्तवनम्—नपुं॰—-—स्तु + ल्युट्—सूक्त
  • स्तावः—पुं॰—-—स्तु + ण्वुल्—प्रशंसा, स्तुति
  • स्तावकः—पुं॰—-—स्तु + ण्वुल्—प्रशंसक, स्तोता, चापलूस
  • स्तिघ्—स्वा॰ आ॰ <स्तिघ्नुते>—-—-—चढ़ना
  • स्तिघ्—स्वा॰ आ॰ <स्तिघ्नुते>—-—-—धावा बोलना
  • स्तिघ्—स्वा॰ आ॰ <स्तिघ्नुते>—-—-—रिसना
  • स्तिप्—भ्वा॰ पर॰ <स्तेपते>—-—-—रिसना, बूंद-बूंद टपकना, झरना
  • स्तिभिः—पुं॰—-—स्तम्भ् + इन्, इत्वम्—रुकावट, अवरोध
  • स्तिभिः—पुं॰—-—स्तम्भ् + इन्, इत्वम्—समुद्र
  • स्तिभिः—पुं॰—-—स्तम्भ् + इन्, इत्वम्—गुल्म, गुच्छा, पुंज
  • स्तिम् —दिवा॰ पर॰ <स्तिम्यति> —-—-—गीला या तर होना
  • स्तिम् —दिवा॰ पर॰ <स्तिम्यति> —-—-—स्थिर या अटल होना, कड़ा होना
  • स्तीम्—दिवा॰ पर॰ <स्तीम्यति>—-—-—गीला या तर होना
  • स्तीम्—दिवा॰ पर॰ <स्तीम्यति>—-—-—स्थिर या अटल होना, कड़ा होना
  • स्तिमित—वि॰—-—स्तिम् कर्तरि क्तः—गीला, तर
  • स्तिमित—वि॰—-—स्तिम् कर्तरि क्तः—निश्चल, निश्चेष्ट, शान्त
  • स्तिमित—वि॰—-—स्तिम् कर्तरि क्तः—जमाया हुआ, कठोर, अटल, गतिहीन, स्थिर
  • स्तिमित—वि॰—-—स्तिम् कर्तरि क्तः—मुंदा हुआ, बंद
  • स्तिमित—वि॰—-—स्तिम् कर्तरि क्तः—अकड़ा हुआ, लकवाग्रस्त
  • स्तिमित—वि॰—-—स्तिम् कर्तरि क्तः—मृदु, कोमल
  • स्तिमित—वि॰—-—स्तिम् कर्तरि क्तः—तृप्त, सन्तुष्ट
  • स्तिमितवायुः—पुं॰—स्तिमित-वायुः—-—शान्त पवन
  • स्तिमितसमाधिः—पुं॰—स्तिमित-समाधिः—-—स्थिर संचिन्तन
  • स्तिमितत्वम्—नपुं॰—-—स्तिमित + त्व—स्थिरता, निश्चेष्टता, शान्ति
  • स्तीर्वि—वि॰—-—स्तृ + क्विन्—यज्ञ में स्थानापन्न ऋत्विक्
  • स्तीर्वि—वि॰—-—स्तृ + क्विन्—घास
  • स्तीर्वि—वि॰—-—स्तृ + क्विन्—आकाश, अन्तरिक्ष
  • स्तीर्वि—वि॰—-—स्तृ + क्विन्—जल
  • स्तीर्वि—वि॰—-—स्तृ + क्विन्—रुधिर
  • स्तीर्वि—वि॰—-—स्तृ + क्विन्—इन्द्र का विशेषण
  • स्तु—अदा॰ उभ॰ <स्तौति> <स्तवति> <स्तुते> <स्तुवीते> <स्तुत>, इच्छा॰ <तुष्टूषति> <तुष्टूषते>—-—-—प्रशंसा करना, सराहना करना, स्तुति करना, स्तुतिगान करना, कीर्तिगान करना, ख्याति करना
  • स्तु—अदा॰ उभ॰ <स्तौति> <स्तवति> <स्तुते> <स्तुवीते> <स्तुत>, इच्छा॰ <तुष्टूषति> <तुष्टूषते>—-—-—प्रशंसागान करना, भजन गाना, स्तोत्रों द्वारा पूजा करना
  • अभिस्तु—अदा॰ उभ॰—अभि-स्तु—-—प्रशंसा करना, स्तुति करना
  • प्रस्तु—अदा॰ उभ॰—प्र-स्तु—-—प्रशंसा करना
  • प्रस्तु—अदा॰ उभ॰—प्र-स्तु—-—आरंभ करणा, उपक्रम करना
  • प्रस्तु—अदा॰ उभ॰—प्र-स्तु—-—कारण बनना, पैदा करना
  • संस्तु—अदा॰ उभ॰—सं-स्तु—-—प्रशंसा करना
  • संस्तु—अदा॰ उभ॰—सं-स्तु—-—परिचित होना, जानकार या घनिष्ट संबंध वाला होना
  • स्तुकः—पुं॰—-—-—बालों की चोटी , ग्रंथि या मीढी
  • स्तुका—स्त्री॰—-—स्तुक + टाप्—बालों की ग्रंथि या मीढी
  • स्तुका—स्त्री॰—-—स्तुक + टाप्—सांड के दोनों सींगों के बीच के घुंघराले बालों का गुच्छा
  • स्तुका—स्त्री॰—-—स्तुक + टाप्—कूल्हा, जंघा
  • स्तुच्—भ्वा॰ आ॰ <स्तोचते>—-—-—उज्जवल होना, चमकना, निर्मल स्वच्छ होना
  • स्तुच्—भ्वा॰ आ॰ <स्तोचते>—-—-—मंगलप्रद या शुभ या सुखद होना
  • स्तुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्तु + क्त—प्रशंसा किया गया, प्रशस्त, स्तुति किया गया
  • स्तुत—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्तु + क्त—खुशामद किया गया
  • स्तुतिः—स्त्री॰—-—स्तु + क्तिन्—प्रशंसा, गुणकीर्तन, सराहना
  • स्तुतिः—स्त्री॰—-—स्तु + क्तिन्—प्रशंसाकारकसूक्त, स्तोत्र
  • स्तुतिः—स्त्री॰—-—स्तु + क्तिन्—चापलूसी, खुशामद, झूठी प्रशंसा
  • स्तुतिः—स्त्री॰—-—स्तु + क्तिन्—दुर्गा का नाम
  • स्तुतिगीतम्—नपुं॰—स्तुति-गीतम्—-—स्तुतिगान, सूक्त, कीर्तिगान
  • स्तुतिपदम्—नपुं॰—स्तुति-पदम्—-—प्रशंसा की वस्तु
  • स्तुतिपाठकः—पुं॰—स्तुति-पाठकः—-—कीर्तिगायक, प्रशस्तिवाचक, भाट, चरण, संदेशवाहक
  • स्तुतिवादः—पुं॰—स्तुति-वादः—-—प्रशंसायुक्त भाषण, स्तोत्र
  • स्तुतिव्रतः—पुं॰—स्तुति-व्रतः—-—भाट
  • स्तुत्य—वि॰—-—स्तु + क्यप्—श्लाघ्य, प्रशंसनीय, सरहानीय
  • स्तुनकः—पुं॰—-—स्तु + ननक्—बकरा
  • स्तुभ्—भ्वा॰ पर॰ <स्तोभति>—-—-—प्रशंसा करना
  • स्तुभ्—भ्वा॰ पर॰ <स्तोभति>—-—-—प्रसिद्ध करना, स्तुतिगान करना, पूजा करना
  • स्तुभ्—भ्वा॰ आ॰ <स्तोभते>—-—-—रोकना, दबाना
  • स्तुभ्—भ्वा॰ आ॰ <स्तोभते>—-—-—ढप करना, सुन्न करना, जडीभूत करना
  • स्तुभः—पुं॰—-—स्तुभ् + क—बकरा
  • स्तुम्भ्—स्वा॰ क्रया॰ पर॰ <स्तुभ्नोति> <स्तुभ्नाति>—-—-—रोकना
  • स्तुम्भ्—स्वा॰ क्रया॰ पर॰ <स्तुभ्नोति> <स्तुभ्नाति>—-—-—सुन्न करना, जड़ीभूत करना
  • स्तुम्भ्—स्वा॰ क्रया॰ पर॰ <स्तुभ्नोति> <स्तुभ्नाति>—-—-—निकाल देना
  • स्तुप्—दिवा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <स्तूप्यति> <स्तूपयति> <स्तूपयते>—-—-—ढेर लगाना, संचित करना, चट्टा लगाना, एकत्र करना
  • स्तुप्—दिवा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <स्तूप्यति> <स्तूपयति> <स्तूपयते>—-—-—खड़ा करना, उठाना
  • स्तुपः—पुं॰—-—स्तूप् + अच्—ढेर, चट्टा, टीला
  • स्तुपः—पुं॰—-—स्तूप् + अच्—बौद्ध स्मारक चिह्न, पावन अवशेषों को रखने के लिए एक प्रकार का स्तंभसदृश स्मृतिचिह्न
  • स्तुपः—पुं॰—-—स्तूप् + अच्—चिता
  • स्तृ—स्वा॰ उत्तर॰ <स्तृणोति> <स्तृणुते> <स्तृत>, कर्मवा॰ <स्तर्यते>—-—-—फैलाना, छितराना, ढकना, बिछाना
  • स्तृ—स्वा॰ उत्तर॰ <स्तृणोति> <स्तृणुते> <स्तृत>, कर्मवा॰ <स्तर्यते>—-—-—फैलाना, प्रसार करना, विकीर्ण करना
  • स्तृ—स्वा॰ उत्तर॰ <स्तृणोति> <स्तृणुते> <स्तृत>, कर्मवा॰ <स्तर्यते>—-—-—बखेरना, छितराना
  • स्तृ—स्वा॰ उत्तर॰ <स्तृणोति> <स्तृणुते> <स्तृत>, कर्मवा॰ <स्तर्यते>—-—-—कपड़े पहनाना, ढांपना, बिछाना, लपेटना
  • स्तृ—स्वा॰ उत्तर॰ <स्तृणोति> <स्तृणुते> <स्तृत>, कर्मवा॰ <स्तर्यते>—-—-—मार डालना
  • स्तृ—प्रेर॰ <स्तारयति> <स्तारयते>—-—-—बिछाना, ढांपना, छितराना
  • स्तृ—स्वा॰ पर॰ <स्तृणोति>—-—-—प्रसन्न करना, तृप्त करना
  • स्तृ—पुं॰—-—स्तृ + क्विप्—तारा
  • स्तृक्ष—भ्वा॰ पर॰ <स्तृक्षति> —-—-—जाना
  • स्तृतिः—स्त्री॰—-—स्तृ + क्तिन्—फैलाना, बिछाना, प्रसार करना
  • स्तृतिः—स्त्री॰—-—स्तृ + क्तिन्—ढकना, कपड़े पहनाना
  • स्तृह —तुदा॰ पर॰ <स्तृहति> —-—-—प्रहार करना, चोट पहुँचाना, मार डालना
  • स्तॄह्—तुदा॰ पर॰ <स्तॄहति>—-—-—प्रहार करना, चोट पहुँचाना, मार डालना
  • स्तृ—क्रया॰ पर॰ <स्तिणाति> <स्तृणीते> <स्तीर्ण>, इच्छा॰ <तिस्तरिषति> <तिस्तरीषति> <तिस्तरीषते> <तिस्तरीर्षते>—-—-—ढांपना, बखेरना आदि
  • अवस्तृ—क्रया॰ पर॰ —अव-स्तृ—-—ढांपना, भरना, बिछा देना
  • आस्तृ—क्रया॰ पर॰ —आ-स्तृ—-—ढकना, आच्छादित करना
  • उपस्तृ—क्रया॰ पर॰ —उप-स्तृ—-—बछेरना
  • उपस्तृ—क्रया॰ पर॰ —उप-स्तृ—-—क्रम से रखना
  • परिस्तृ—क्रया॰ पर॰ —परि-स्तृ—-—फैलाना, विकीर्ण करना, प्रसार करना
  • परिस्तृ—क्रया॰ पर॰ —परि-स्तृ—-—ढांपना
  • परिस्तृ—क्रया॰ पर॰ —परि-स्तृ—-—क्रम से रखना
  • विस्तृ—क्रया॰ पर॰ —वि-स्तृ—-—फैलाना, विकीर्ण करना
  • विस्तृ—क्रया॰ पर॰ —वि-स्तृ—-—ढांपना
  • विस्तृ—क्रया॰ पर॰, प्रेर॰ —वि-स्तृ—-—फैलवाना, प्रसार करवाना
  • विस्तृ—क्रया॰ पर॰, प्रेर॰ —वि-स्तृ—-—बढ़ना
  • विस्तृ—क्रया॰ पर॰, प्रेर॰ —वि-स्तृ—-—फैलाना, प्रसार करना
  • संस्तृ—क्रया॰ पर॰ —सं-स्तृ—-—फैलाना, बखेरना
  • संस्तृ—क्रया॰ पर॰ —सं-स्तृ—-—बिछाना
  • स्तेन्—चुरा॰ उभ॰ ‘स्तेन’ का नामधातु <स्तेनयति> <स्तेनयते>—-—-—चुराना, लूटना
  • स्तेनः—पुं॰—-—स्तेन् कर्तरि अच्—चोर, लुटेरा
  • स्तेननिग्रहः—पुं॰—स्तेन-निग्रहः—-—चोरों को दिया जाने वाला दंड
  • स्तेननिग्रहः—पुं॰—स्तेन-निग्रहः—-—चोरी को रोकना
  • स्तेप्—भ्वा॰ आ॰ <स्तेपते>—-—-—रिसना
  • स्तेप्—चुरा॰ उभ॰ <स्तेपयति> <स्तेपयते>—-—-—भेजना, फेंकना
  • स्तेमः—पुं॰—-—स्तिन् + घञ्—नमी, गीलापन
  • स्तेयम्—नपुं॰—-—स्तेनस्य भावः यत् न लोपः—चोरी, लूट
  • स्तेयम्—नपुं॰—-—स्तेनस्य भावः यत् न लोपः—चुराई हुई या चुराने जाने के योग्य कोई वस्तु
  • स्तेयम्—नपुं॰—-—स्तेनस्य भावः यत् न लोपः—कोई निजी या गुप्त चीज
  • स्तेयिन्—पुं॰—-—स्तेय + इनि—चोर, लुटेरा
  • स्तेयिन्—पुं॰—-—स्तेय + इनि—सु्नार
  • स्तै—भ्वा॰ पर॰ <स्तायति>—-—-—पहनना, अलंकृत करना
  • स्तैनम्—नपुं॰—-—स्तेन + अण्—चोरी, लूट
  • स्तैन्यम्—नपुं॰—-—स्तेनस्य भावः ष्यञ्—चोरी, लूट
  • स्तैन्यः—पुं॰—-—-—चोर
  • स्तैमित्यम्—नपुं॰—-—स्तिमित + ष्यञ्—स्थिरता, कठोरता, अटलता
  • स्तैमित्यम्—नपुं॰—-—स्तिमित + ष्यञ्—जड़ता, सुन्नपना
  • स्तोक—वि॰—-—स्तुच् + घञ्—अल्प, थोड़ा
  • स्तोक—वि॰—-—स्तुच् + घञ्—छोटा
  • स्तोक—वि॰—-—स्तुच् + घञ्—कुछ
  • स्तोक—वि॰—-—स्तुच् + घञ्—अधम, नीच
  • स्तोकः—पुं॰—-—स्तुच् + घञ्—थोड़ी मात्रा, बूंद
  • स्तोकः—पुं॰—-—स्तुच् + घञ्—चातक पक्षी
  • स्तोकम्—अव्य॰—-—-—जरा सा, अपेक्षाकृत कम
  • स्तोककाय—वि॰—स्तोक-काय—-—छोटे शरीर वाला, छोटा, ठिंगना, लघु
  • स्तोकनम्र—वि॰—स्तोक-नम्र—-—जरा झुका हुआ, थोड़ा सा शिथिल या अवसन्न
  • स्तोककः—पुं॰—-—स्तोकाय जलबिन्दवे कायति शब्दायते- स्तोक + कै + क—चातक पक्षी
  • स्तोकशः—अव्य॰—-—स्तोक + शस्—थोड़ा थोड़ा करके, कमी के साथ
  • स्तोतव्य—वि॰—-—स्तु + तव्यत्—प्रशंसनीय, श्लाघ्य, तारीफ के लायक
  • स्तोतृ—पुं॰—-—स्तु + तृच्—प्रशंसक, स्तुतिकर्ता
  • स्तोत्रम्—नपुं॰—-—स्तु + ष्ट्रन्—प्रशंसा, स्तुति
  • स्तोत्रम्—नपुं॰—-—स्तु + ष्ट्रन्—प्रशस्ति, स्तुतिगान
  • स्तोत्रियः —पुं॰—-—स्तोत्र + घ—एक विशेष प्रकार का स्तोत्र या पद्य
  • स्तोत्रिया—स्त्री॰—-—स्तोत्र + घ, स्त्रियां टाप् च—एक विशेष प्रकार की ऋचा
  • स्तोभः—पुं॰—-—स्तुभ् + घञ्—रोकना, अवरुद्ध करना
  • स्तोभः—पुं॰—-—स्तुभ् + घञ्—विराम, यति
  • स्तोभः—पुं॰—-—स्तुभ् + घञ्—निरादर, तिरस्कार
  • स्तोभः—पुं॰—-—स्तुभ् + घञ्—सूक्त, प्रशस्ति
  • स्तोभः—पुं॰—-—स्तुभ् + घञ्—सामवेद का एक प्रभाग
  • स्तोभः—पुं॰—-—स्तुभ् + घञ्—अन्तर्निविष्ट
  • स्तोमः—पुं॰—-—स्तु + मन्—प्रशस्ति, स्तुति, सूक्त
  • स्तोमः—पुं॰—-—स्तु + मन्—यज्ञ, आहुति
  • स्तोमः—पुं॰—-—स्तु + मन्—सोम द्वारा तर्पण
  • स्तोमः—पुं॰—-—स्तु + मन्—संग्रह, समुच्चय, संख्या, समूह, संघात
  • स्तोमः—पुं॰—-—स्तु + मन्—बड़ीमात्रा, ढेर
  • स्तोनम्—नपुं॰—-—-—सिर
  • स्तोनम्—नपुं॰—-—-—धन, दौलत
  • स्तोनम्—नपुं॰—-—-—अजान, धान्य
  • स्तोनम्—नपुं॰—-—-—लोहे की नोक वाली छड़ी
  • स्तोम्य—वि॰—-—स्तोम + यत्—श्लाघ्य, प्रशंसनीय
  • स्त्यान—वि॰—-—स्त्यै + क्त—ढेर रुप में संचित
  • स्त्यान—वि॰—-—स्त्यै + क्त—घनीभूत, स्थूल, ठोस
  • स्त्यान—वि॰—-—स्त्यै + क्त—मृदु, स्निग्ध, कोमल, चिकना
  • स्त्यान—वि॰—-—स्त्यै + क्त—शब्दायमान, मुखर
  • स्त्यानम्—नपुं॰—-—स्त्यै + क्त—सघनता, ठोसपना, आकार या फैलाव में वृद्धि
  • स्त्यानम्—नपुं॰—-—स्त्यै + क्त—चिकनाई
  • स्त्यानम्—नपुं॰—-—स्त्यै + क्त—अमृत
  • स्त्यानम्—नपुं॰—-—स्त्यै + क्त—ढीलापन, आलस्य
  • स्त्यानम्—नपुं॰—-—स्त्यै + क्त—प्रतिध्वनि, गूंज
  • सत्यायनम्—नपुं॰—-—स्त्यै + ल्युट्—ढेर के रुप में संचित करना, भीड़ लगाना, समष्टि
  • स्त्येन—वि॰—-—स्त्यै + इनच्—अमृत
  • स्त्येन—वि॰—-—स्त्यै + इनच्—चोर
  • स्त्य—भ्वा॰ उभ॰ <स्त्यायति> <स्त्यायते>—-—-—ढेर के रुप में एकत्र किया जाना, इधर-उधर फैलाना, विकीर्ण होना
  • स्त्य—भ्वा॰ उभ॰ <स्त्यायति> <स्त्यायते>—-—-—प्रतिध्वनि, गूंज
  • स्त्री—स्त्री॰—-—स्त्यायेते शुक्रशोणिते यस्याम् - स्त्यै + ड्रप् + ङीप्—नारी, औरत
  • स्त्री—स्त्री॰—-—स्त्यायेते शुक्रशोणिते यस्याम् - स्त्यै + ड्रप् + ङीप्—किसी भी जानवर की मादा
  • स्त्री—स्त्री॰—-—स्त्यायेते शुक्रशोणिते यस्याम् - स्त्यै + ड्रप् + ङीप्—पत्नी
  • स्त्री—स्त्री॰—-—स्त्यायेते शुक्रशोणिते यस्याम् - स्त्यै + ड्रप् + ङीप्—स्त्रीलिंग या स्त्रीलिंग का कोई भी शब्द
  • स्त्र्यगारः—पुं॰—स्त्री-अगारः—-—अन्तःपुर, जनानखाना
  • स्त्र्यगारम्—नपुं॰—स्त्री-अगारम्—-—अन्तःपुर, जनानखाना
  • स्त्र्यध्यक्षः—पुं॰—स्त्री-अध्यक्षः—-—कंचुकी
  • स्त्र्यभिगमनम्—नपुं॰—स्त्री-अभिगमनम्—-—संभोग
  • स्त्र्याजीवः—पुं॰—स्त्री-आजीवः—-—अपनी स्त्री के सहारे रहने वाला
  • स्त्र्याजीवः—पुं॰—स्त्री-आजीवः—-—स्त्रियों से वेश्यावृत्ति कराकर जीवनयापन कराने वाला
  • स्त्रीकामः—पुं॰—स्त्री-कामः—-—स्त्रीसंभोग का इच्छुक
  • स्त्रीकामः—पुं॰—स्त्री-कामः—-—पत्नी की इच्छा
  • स्त्रीकार्यम्—नपुं॰—स्त्री-कार्यम्—-—स्त्रियों का व्यवसाय
  • स्त्रीकार्यम्—नपुं॰—स्त्री-कार्यम्—-—स्त्रियों की टहल, अन्तः पुर की सेवा
  • स्त्रीकुमारम्—नपुं॰—स्त्री-कुमारम्—-—एक स्त्री और बच्चा
  • स्त्रीकुसुमम्—नपुं॰—स्त्री-कुसुमम्—-—रजःस्राव, स्त्रियों में ऋतु-स्राव
  • स्त्रीक्षीरम्—नपुं॰—स्त्री-क्षीरम्—-—माँ का दूध
  • स्त्रीग—वि॰—स्त्री-ग—-—स्त्रियों से संभोग करने वाला
  • स्त्रीगवी—स्त्री॰—स्त्री-गवी—-—दूध देने वाली गाय
  • स्त्रीगुरुः—पुं॰—स्त्री-गुरुः—-—दीक्षा या मन्त्र देने वाली या पुरोहितानी
  • स्त्रीगृहम्—नपुं॰—स्त्री-गृहम्—-—अन्तःपुर, जनानखाना
  • स्त्रीघोषः—पुं॰—स्त्री-घोषः—-—पौ फटना, प्रभात , तड़का
  • स्त्रीघ्नः—पुं॰—स्त्री-घ्नः—-—स्त्रीघाती
  • स्त्रीचरितम्—नपुं॰—स्त्री-चरितम्—-—स्त्री के कर्म
  • स्त्रीचरित्रम्—नपुं॰—स्त्री-चरित्रम्—-—स्त्री के कर्म
  • स्त्रीचिह्नम्—नपुं॰—स्त्री-चिह्नम्—-—स्त्रीत्व की विशिष्टता का कोई निशान
  • स्त्रीचिह्नम्—नपुं॰—स्त्री-चिह्नम्—-—स्त्रीयोनि, भग
  • स्त्रीचौरः—पुं॰—स्त्री-चौरः—-—स्त्री को फुसलाने वाला लम्पट्
  • स्त्रीजननी—स्त्री॰—स्त्री-जननी—-—केवल कन्याओं को जन्म देने वाली स्त्री
  • स्त्रीजातिः—स्त्री॰—स्त्री-जातिः—-—स्त्रीवर्ग, मादा
  • स्त्रीजितः—पुं॰—स्त्री-जितः—-—स्त्री के वश में रहने वाला, जोरु का गुलाम
  • स्त्रीधनम्—नपुं॰—स्त्री-धनम्—-—स्त्री की निजी सम्पत्ति जिसपर उसका स्वतंत्र अधिकार हो
  • स्त्रीधर्मः—पुं॰—स्त्री-धर्मः—-—स्त्री या पत्नी का कर्तव्य
  • स्त्रीधर्मः—पुं॰—स्त्री-धर्मः—-—स्त्रीसम्बन्धी नियम
  • स्त्रीधर्मः—पुं॰—स्त्री-धर्मः—-—रजःस्राव
  • स्त्रीधर्मिणी—स्त्री॰—स्त्री-धर्मिणी—-—रजस्वला स्त्री
  • स्त्रीध्वजः—पुं॰—स्त्री-ध्वजः—-—किसी भी जानवर की मादा या स्त्रीत्वलिंग
  • स्त्रीनाथ—वि॰—स्त्री-नाथ—-—स्त्री जिसकी स्वामिनी हो
  • स्त्रीनिबन्धनम्—नपुं॰—स्त्री-निबन्धनम्—-—स्त्री का विशेष कार्य क्षेत्र, गृह्यकर्म, गृहिणी का कार्य
  • स्त्रीपण्योपजीविन्—पुं॰—स्त्री-पण्योपजीविन्—-—अपनी स्त्री के सहारे रहने वाला
  • स्त्रीपण्योपजीविन्—पुं॰—स्त्री-पण्योपजीविन्—-—स्त्रियों से वेश्यावृत्ति कराकर जीवनयापन कराने वाला
  • स्त्रीपरः—पुं॰—स्त्री-परः—-—स्त्रियों से प्रेम करने वाला, कामी, लम्पट
  • स्त्रीपिशाची—स्त्री॰—स्त्री-पिशाची—-—राक्षसी जैसी पत्नी
  • स्त्रीपुंसौ—पुं॰ द्वि॰ व॰—स्त्री-पुंसौ—-—पति और पत्नी
  • स्त्रीपुंसौ—पुं॰ द्वि॰ व॰—स्त्री-पुंसौ—-—स्त्री और पुरुष
  • स्त्रीपुंस्रलक्षणा—स्त्री॰—स्त्री-पुंस्रलक्षणा—-—पुरुष के लक्षणों से युक्त स्त्री, मर्दानी स्त्री
  • स्त्रीप्रत्ययः—पुं॰—स्त्री-प्रत्ययः—-—स्त्रीलिंग शब्द बनाने के लिए शब्द के अन्त में जुड़ने वाला प्रत्यय
  • स्त्रीप्रसङ्गः—पुं॰—स्त्री-प्रसङ्गः—-—संभोग
  • स्त्रीप्रसूः—स्त्री॰—स्त्री-प्रसूः—-—पुत्रियों को जन्म देने वाली स्त्री
  • स्त्रीप्रिय—वि॰—स्त्री-प्रिय—-—जिसको स्त्रियाँ प्यार करे
  • स्त्रीप्रियः—पुं॰—स्त्री-प्रियः—-—आम का पेड़
  • स्त्रीबाध्यः—पुं॰—स्त्री-बाध्यः—-—स्त्री द्वारा परेशान किये जाने वाला
  • स्त्रीबुद्धिः—स्त्री॰—स्त्री-बुद्धिः—-—स्त्री की समझ
  • स्त्रीबुद्धिः—स्त्री॰—स्त्री-बुद्धिः—-—स्त्री का परामर्श, स्त्री द्वारा दिया गया उपदेश
  • स्त्रीभोगः—पुं॰—स्त्री-भोगः—-—संभोग
  • स्त्रीमन्त्रः—पुं॰—स्त्री-मन्त्रः—-—स्त्रीकौशल, स्त्री की कलह
  • स्त्रीमुखपः—पुं॰—स्त्री-मुखपः—-—अशोकवृक्ष
  • स्त्रीयन्त्रम्—नपुं॰—स्त्री-यन्त्रम्—-—यन्त्र की भाँति स्त्री, स्त्री के रुप में मशीन या यन्त्र
  • स्त्रीरञ्जनम्—नपुं॰—स्त्री-रञ्जनम्—-—पान, ताम्बूल
  • स्त्रीरत्नम्—नपुं॰—स्त्री-रत्नम्—-—श्रेष्ठ स्त्री
  • स्त्रीराज्यम्—नपुं॰—स्त्री-राज्यम्—-—स्त्रियों द्वारा शासित राज्य या प्रदेश
  • स्त्रीलिङ्गम्—नपुं॰—स्त्री-लिङ्गम्—-—स्त्रीवाचकता
  • स्त्रीलिङ्गम्—नपुं॰—स्त्री-लिङ्गम्—-—स्त्रीयोनि
  • स्त्रीवशः—पुं॰—स्त्री-वशः—-—पत्नी के वश में होना, स्त्री की अधीनता
  • स्त्रीविधेय—वि॰—स्त्री-विधेय—-—पत्नी द्वारा शासित, जोरुभक्त, अपनी स्त्री को बेहद चाहने वाला
  • स्त्रीविवाहः—पुं॰—स्त्री-विवाहः—-—स्त्री के साथ विवाह
  • स्त्रीसंसर्गः—पुं॰—स्त्री-संसर्गः—-—स्त्रियों का साथ
  • स्त्रीसंस्थान—वि॰—स्त्री-संस्थान—-—स्त्री की आकृति वाला
  • स्त्रीसंग्रहणम्—नपुं॰—स्त्री-संग्रहणम्—-—किसी स्त्री का बलात् आलिंगन
  • स्त्रीसंग्रहणम्—नपुं॰—स्त्री-संग्रहणम्—-—व्यभिचारी, सतीत्वहरण
  • स्त्रीसभम्—नपुं॰—स्त्री-सभम्—-—स्त्रियों की सभा
  • स्त्रीसम्बन्धः—पुं॰—स्त्री-सम्बन्धः—-—किसी स्त्री के साथ दाम्पत्य सम्बन्ध
  • स्त्रीसम्बन्धः—पुं॰—स्त्री-सम्बन्धः—-—वैवाहिक सम्बन्ध
  • स्त्रीसम्बन्धः—पुं॰—स्त्री-सम्बन्धः—-—स्त्री के साथ सम्बन्ध
  • स्त्रीस्वभावः—पुं॰—स्त्री-स्वभावः—-—स्त्रियों की प्रकृति
  • स्त्रीस्वभावः—पुं॰—स्त्री-स्वभावः—-—हीजड़ा
  • स्त्रीहत्या—स्त्री॰—स्त्री-हत्या—-—स्त्री का वध या कत्ल
  • स्त्रीहरणम्—नपुं॰—स्त्री-हरणम्—-—स्त्रियों का बलात अपहरण
  • स्त्रीहरणम्—नपुं॰—स्त्री-हरणम्—-—बलात् सम्भोग, जबरजिनाह
  • स्त्रीतमा—स्त्री॰—-—-—कुलीन स्त्री, उत्तम जाति की सुसंस्कृत स्त्री
  • स्त्रीतरा—स्त्री॰—-—-—कुलीन स्त्री, उत्तम जाति की सुसंस्कृत स्त्री
  • स्त्रीता—स्त्री॰—-—स्त्री + तल् + टाप्—नारीत्व
  • स्त्रीता—स्त्री॰—-—स्त्री + तल् + टाप्—पत्नीत्व
  • स्त्रीता—स्त्री॰—-—स्त्री + तल् + टाप्—स्त्री होने का भाव, स्त्रैणता
  • स्त्रीत्वम्—नपुं॰—-—स्त्री + तल् + त्व —नारीत्व
  • स्त्रीत्वम्—नपुं॰—-—स्त्री + तल् + त्व —पत्नीत्व
  • स्त्रीत्वम्—नपुं॰—-—स्त्री + तल् + त्व —स्त्री होने का भाव, स्त्रैणता
  • स्त्रैण—वि॰—-—स्त्रिया इदम् नञ्—मादा, स्त्रीवाचक
  • स्त्रैण—वि॰—-—स्त्रिया इदम् नञ्—स्त्रियोचित या स्त्री संबन्धी
  • स्त्रैण—वि॰—-—स्त्रिया इदम् नञ्—स्त्रियों में विद्यमान
  • स्त्रैणिन्—वि॰—-—-—स्त्रीत्व, स्त्रियों की प्रकृति, स्त्रीवाचकता
  • स्त्रैणिन्—वि॰—-—-—मादा का चिह्न, स्त्रीपना
  • स्त्रैणिन्—वि॰—-—-—स्त्रियों का समूह
  • स्त्रैणता—स्त्री॰—-—स्त्रैण + तल् + टाप्—स्त्रीवाचकता, स्त्रीपना
  • स्त्रैणता—स्त्री॰—-—स्त्रैण + तल् + टाप्—स्त्रियों के प्रति अत्यधिक रुचि
  • स्त्रैणत्वम्—नपुं॰—-—स्त्रैण + तल् + त्व —स्त्रीवाचकता, स्त्रीपना
  • स्त्रैणत्वम्—नपुं॰—-—स्त्रैण + तल् + त्व —स्त्रियों के प्रति अत्यधिक रुचि
  • स्थ—वि॰—-—स्था + क—खड़ा होने वाला, ठहरने वाला, डटा रहने वाला, विद्यमान, मौजूद, वर्तमान आदि
  • स्थकरम्—नपुं॰—-— =स्थगर, पृषो॰—सुपारी
  • स्थग्—भ्वा॰ पर॰ या प्रेर॰ <स्थगति> <स्थगयति>—-—-—ढांपना, छिपाना, गुप्त रखना, परदा डालना
  • स्थग्—भ्वा॰ पर॰ या प्रेर॰ <स्थगति> <स्थगयति>—-—-—ढांपना, व्याप्त होना, भरना
  • स्थग—वि॰—-—स्थग् + अच्—जालसाज, बेईमान
  • स्थग—वि॰—-—स्थग् + अच्—परित्यक्त, निर्लज्ज, लापरवाह
  • स्थगः—पुं॰—-—स्थग् + अच्—धूर्तः, छली
  • स्थगनम्—नपुं॰—-—स्थग् + ल्युट्—छिपाना, गुप्त रखना
  • स्थागरम्—नपुं॰—-—थग् + अरन्—सुपारी
  • स्थगिका—स्त्री॰—-—स्थग् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—वेश्या
  • स्थगिका—स्त्री॰—-—स्थग् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—पान की दुकान
  • स्थगिका—स्त्री॰—-—स्थग् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—एक प्रकार की पट्टी
  • स्थगित—वि॰—-—स्थग् + क्त—ढका हुआ, छिपा हुआ, गुप्त रखा हुआ
  • स्थगी—स्त्री॰—-—स्थग् + क् + ङीप्—पान की डिबिया
  • स्थगुः—पुं॰—-—स्थग् + उन्—कूबड़, कुब्ज
  • स्थण्डिलम्—नपुं॰—-—स्थल् + इलच्, नुक्, लस्य डः—भूखंड, वेदी
  • स्थण्डिलम्—नपुं॰—-—स्थल् + इलच्, नुक्, लस्य डः—बंजर भूमि
  • स्थण्डिलम्—नपुं॰—-—स्थल् + इलच्, नुक्, लस्य डः—ढेलों का ढेर
  • स्थण्डिलम्—नपुं॰—-—स्थल् + इलच्, नुक्, लस्य डः—सीमा, हद
  • स्थण्डिलम्—नपुं॰—-—स्थल् + इलच्, नुक्, लस्य डः—सीमा चिह्न
  • स्थण्डिलशायिन्—पुं॰—स्थण्डिल-शायिन्—-—वह सन्यासी जो बिना बिस्तर के यज्ञभूमि पर सोता हैं
  • स्थण्डिलसितकम्—नपुं॰—स्थण्डिल-सितकम्—-—वेदी
  • स्थपतिः—पुं॰—-—स्था + क, तस्य पतिः—राजा, प्रभु
  • स्थपतिः—पुं॰—-—स्था + क, तस्य पतिः—वास्तुकार
  • स्थपतिः—पुं॰—-—स्था + क, तस्य पतिः—रथकार, बढ़ई
  • स्थपतिः—पुं॰—-—स्था + क, तस्य पतिः—सारथि
  • स्थपतिः—पुं॰—-—स्था + क, तस्य पतिः—बृहस्पति के प्रति बलि देने वाला, बृहस्पति-यज्ञ करने वाला
  • स्थपतिः—पुं॰—-—स्था + क, तस्य पतिः—अन्तःपुर रक्षक
  • स्थपतिः—पुं॰—-—स्था + क, तस्य पतिः—कुबेर
  • स्थपुट—वि॰—-—तिष्ठति स्था + क, स्थं पुटं यत्र—संकटग्रस्त, विपन्न
  • स्थपुट—वि॰—-—तिष्ठति स्था + क, स्थं पुटं यत्र—ऊबड़-खाबड़, ऊँचा-नीचा
  • स्थपुटगत—वि॰—स्थपुट-गत—तिष्ठति स्था + क, स्थं पुटं यत्र— विषम स्थानों में रहने वाला, कठिनाइयों से ग्रस्त
  • स्थल्—भ्वा॰ पर॰ <स्थलति>—-—-—दृढ़तापूर्वक स्थिर रहना, अडिग रहना
  • स्थलम्—नपुं॰—-—स्थल् + अच्—कठोर या शुष्क भूमि, सूखी जमीन, दृढ़ भू
  • स्थलम्—नपुं॰—-—स्थल् + अच्—समुद्रतट, समुद्रबेला, बालू-तट
  • स्थलम्—नपुं॰—-—स्थल् + अच्—पृथ्वी, भूमि, जमीन
  • स्थलम्—नपुं॰—-—स्थल् + अच्—जगह, स्थान
  • स्थलम्—नपुं॰—-—स्थल् + अच्—खेत, भूखण्ड, जिला
  • स्थलम्—नपुं॰—-—स्थल् + अच्—पड़ाव
  • स्थलम्—नपुं॰—-—स्थल् + अच्—उभरा हुआ भूखंड, टीला
  • स्थलम्—नपुं॰—-—स्थल् + अच्—प्रस्ताव, प्रसंग, विषय, विचारणीय बात-विवाद, विचार आदि
  • स्थलम्—नपुं॰—-—स्थल् + अच्—खंड या भाग
  • स्थलम्—नपुं॰—-—स्थल् + अच्—तम्बू
  • स्थलान्तरम्—नपुं॰—स्थल-अन्तरम्—-—कोई दूसरी जगह
  • स्थलारूढ—वि॰—स्थल-आरूढ—-—धरा पर उतरा हुआ
  • स्थलारबिन्दम्—नपुं॰—स्थल-अरबिन्दम्—-—पृथ्वी पर उगने वाला कमल
  • स्थलकमलम्—नपुं॰—स्थल-कमलम्—-—पृथ्वी पर उगने वाला कमल
  • स्थलकमलिनी—स्त्री॰—स्थल-कमलिनी—-—पृथ्वी पर उगने वाला कमल
  • स्थलचर—वि॰—स्थल-चर—-—भूचर
  • स्थलच्युत—वि॰—स्थल-च्युत—-—स्थान से पतित, अपनी पदवी से हटाया हुआ
  • स्थलदेवता—स्त्री॰—स्थल-देवता—-—स्थानीय या ग्राम्यदेवी
  • स्थलपद्मिनी—स्त्री॰—स्थल-पद्मिनी—-—भूकमलिनी
  • स्थलमार्गः—पुं॰—स्थल-मार्गः—-—भूमि पर बनी हुई सड़क
  • स्थलवर्त्मन्—नपुं॰—स्थल-वर्त्मन्—-—भूमि पर बनी हुई सड़क
  • स्थलविग्रहः—पुं॰—स्थल-विग्रहः—-—चौरस भूमि पर लड़ा जाने वाला युद्ध
  • स्थलशुद्धिः—स्त्री॰—स्थल-शुद्धिः—-—किसी भी स्थल की शुद्धि भूमि की सफाई
  • स्थला—स्त्री॰—-—स्थल + टाप्—ऊँची की हुई सूखी जमीन जहाँ जल के निकाष का अच्छा प्रबन्ध हो
  • स्थली—स्त्री॰—-—स्थल + ङीप्—सूखी जमीन, ढृढ़ भूमि
  • स्थली—स्त्री॰—-—स्थल + ङीप्—भूमि का प्राकृतिक स्थल, भूमि का भूखंड
  • स्थलदेवता—स्त्री॰—स्थल-देवता—-— पृथ्वी की देवी, भूमि की अधिष्ठात्री देवी
  • स्थलेशय—वि॰—-—स्थले शेते शी + अच्, अलुक् स॰—सूखी जमीन पर सोने वाला
  • स्थलेशयः—पुं॰—-—स्थले शेते शी + अच्, अलुक् स॰—कोई भी जलस्थलचारी जानवर
  • स्थविः—पुं॰—-—स्था + क्वि—जुलाहा
  • स्थविः—पुं॰—-—स्था + क्वि—स्वर्ग
  • स्थविर—वि॰—-—स्था + किरच्, स्थवादेशः—दृढ़, पक्का, स्थिर
  • स्थविर—वि॰—-—स्था + किरच्, स्थवादेशः—बूढ़ा, वृद्ध, पुराना
  • स्थविरः—पुं॰—-—स्था + किरच्, स्थवादेशः—बूढ़ा पुरुष
  • स्थविरः—पुं॰—-—स्था + किरच्, स्थवादेशः—भिक्षुक
  • स्थविरः—पुं॰—-—स्था + किरच्, स्थवादेशः—ब्राह्मण का नाम
  • स्थविरा—स्त्री॰—-—स्था + किरच्, स्थवादेशः— बूढ़ी स्त्री
  • स्थविष्ठ—वि॰—-—अतिशयेन स्थूलः - स्थूल + इष्ठन् लस्य लोपः—सबसे बड़ा, बहुत हुष्टपुष्ट, सबसे अधिक विस्तृत
  • स्थवीयस्—वि॰—-—स्थूल + ईयसुन्, स्थूलशब्दस्य स्थावदेश—सबसे बड़ा, अपेक्षाकृत विस्तृत
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—खड़ा होना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—ठहरना, डटे रहना, बसना, रहना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-— शेष बचना, बाकी रह जाना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-— विलम्ब करना, प्रतीक्षा करना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—ठहरना, उपरत होना, रुकना, निश्चेष्ट होना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—एक ओर रह जाना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—होना, विद्यमान होना, किसी भी स्थिति या अवस्था में होना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—डटे रहना, अनुरुप होना, आज्ञा मानना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—प्रतिबद्ध होना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—निकट होना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—जीवित रहना, सांस लेना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—साथ देना, सहायता करना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—आश्रित होना, निर्भर होना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—करना, अनुष्ठान करना, अपने आपको व्यस्त करना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—सहारा लेना, जाना, मार्ग दर्शन पाना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰ —-—-—प्रस्तुत करना, वेश्या के रुप में उपस्थित होना
  • स्था—भ्वा॰ उभ॰प्रेर॰ <स्थापयति> <स्थापयते>—-—-—खड़ा करना
  • स्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्थापयति> <स्थापयते>—-—-—जमाना, जड़ना, स्थापित करना, रखना, प्रस्तावित करना
  • स्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्थापयति> <स्थापयते>—-—-—रोकना
  • स्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्थापयति> <स्थापयते>—-—-—पकड़ना, रोकना
  • स्था—भ्वा॰ पर॰, इच्छा॰ <तिष्ठासति>—-—-—खड़े होने की इच्छा करना
  • अतिस्था—भ्वा॰ पर॰—अति-स्था—-—अधिक होना, बढ़ जाना
  • अधिस्था—भ्वा॰ पर॰—अधि-स्था—-—स्थिर होना, अधिकार करना
  • अधिस्था—भ्वा॰ पर॰—अधि-स्था—-—अभ्यास करना
  • अधिस्था—भ्वा॰ पर॰—अधि-स्था—-—अन्दर होना, रहना, बसना, निवास करना
  • अधिस्था—भ्वा॰ पर॰—अधि-स्था—-—अधिकार करना, जीतना, परास्त करना, पछाड़ना
  • अधिस्था—भ्वा॰ पर॰—अधि-स्था—-—प्राप्त करना
  • अधिस्था—भ्वा॰ पर॰—अधि-स्था—-—नेतृत्व करना, संवहन करना, शासन करना, निदेश देना, प्रधानता करना
  • अधिस्था—भ्वा॰ पर॰—अधि-स्था—-—राज्य करना, शासन करना, नियंत्रण करना
  • अधिस्था—भ्वा॰ पर॰—अधि-स्था—-—उपयोग करना, काम में लगाना
  • अधिस्था—भ्वा॰ पर॰—अधि-स्था—-—चढ़ना, स्थापित होना, गद्दी पर बैठना
  • अनुस्था—भ्वा॰ पर॰—अनु-स्था—-—करना, संपन्न करना, कार्यान्वित करना, ध्यान देना
  • अनुस्था—भ्वा॰ पर॰—अनु-स्था—-—पीछा करना, अभ्यास करना, पालन करना
  • अनुस्था—भ्वा॰ पर॰—अनु-स्था—-—देना, अनुदान देना, किसी के लिए कुछ करना
  • अनुस्था—भ्वा॰ पर॰—अनु-स्था—-—निकट खड़े होना
  • अनुस्था—भ्वा॰ पर॰—अनु-स्था—-—राज्य करना, शासन करना, नियंत्रण करना
  • अनुस्था—भ्वा॰ पर॰—अनु-स्था—-—नकल करना
  • अनुस्था—भ्वा॰ पर॰—अनु-स्था—-—अपने आप को प्रस्तुत करना
  • अवस्था—भ्वा॰ आ॰—अव-स्था—-—रहना, टिकना, डटे रहना
  • अवस्था—भ्वा॰ पर॰—अव-स्था—-—ठहरना, प्रतीक्षा करना
  • अवस्था—भ्वा॰ पर॰—अव-स्था—-—डटे रहना, अनुरुप रहना
  • अवस्था—भ्वा॰ पर॰—अव-स्था—-—जीवित रहना
  • अवस्था—भ्वा॰ पर॰—अव-स्था—-—निश्चेष्ट रहना, रुकना, ठहरना
  • अवस्था—भ्वा॰ पर॰—अव-स्था—-—आ पडना, मिलना, निर्भर रहना
  • अवस्था—भ्वा॰ पर॰—अव-स्था—-—अलग खड़े होना, अलग रहना
  • अवस्था—भ्वा॰ पर॰—अव-स्था—-—निश्चित या निर्णीत होना
  • अवस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —अव-स्था—-—खड़ा रहना, रोकना, पड़ाव डालना
  • अवस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —अव-स्था—-—प्रस्थापित करना, नींव डालना
  • अवस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —अव-स्था—-—स्वस्थ होना, सचेत होना
  • आस्था—भ्वा॰ पर॰—आस्था—-—अधिकार करना
  • आस्था—भ्वा॰ पर॰—आ-स्था—-—चढ़ना, सवार होना
  • आस्था—भ्वा॰ पर॰—आ-स्था—-—उपयोग करना, अवलंब लेना, सहारा लेना, अनुसरण करना, अभ्यास करना, लेना, धारण करना
  • आस्था—भ्वा॰ पर॰—आ-स्था—-—करना, सम्पादन करना, पालन करना
  • आस्था—भ्वा॰ पर॰—आ-स्था—-—अपनाना
  • आस्था—भ्वा॰ पर॰—आ-स्था—-—लक्ष्य बांधना
  • आस्था—भ्वा॰ पर॰—आ-स्था—-—दायित्व लेना
  • आस्था—भ्वा॰ पर॰—आ-स्था—-—विशिष्ठ ढंग से आचरण करना, व्यवहार करना
  • आस्था—भ्वा॰ पर॰—आ-स्था—-—निकट खड़े होना
  • उत्स्था—भ्वा॰ पर॰—उद्-स्था—-—खड़े होना, उठना, उठ कर खड़े होना
  • उत्स्था—भ्वा॰ पर॰—उद्-स्था—-—त्याग देना, छोड़ना
  • उत्स्था—भ्वा॰ पर॰—उद्-स्था—-—पलट कर आना
  • उत्स्था—भ्वा॰ पर॰—उद्-स्था—-—आगे आना, उदय होना, आगे बढ़ना, फुटना, निकलना
  • उत्स्था—भ्वा॰ पर॰—उद्-स्था—-—उदय होना, उगना, शक्ति में बढ़ना
  • उत्स्था—भ्वा॰ पर॰—उद्-स्था—-—सक्रिय होना, उठना, गतिशील होना
  • उत्स्था—भ्वा॰ पर॰—उद्-स्था—-—चेष्टा करना, कोशिश करना
  • उत्स्था—भ्वा॰ आ॰—उद्-स्था—-—चेष्टा करना, कोशिश करना
  • उत्स्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —उद्-स्था—-—उठाना, उन्नत करना
  • उत्स्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —उद्-स्था—-—काम करने के लिए उकसाना, उत्तेजित करना
  • उपस्था—भ्वा॰ पर॰—उप-स्था—-—निकट खड़े होना, हिस्से में मिलना
  • उपस्था—भ्वा॰ पर॰—उप-स्था—-—निकट आना, पहुँचना
  • उपस्था—भ्वा॰ पर॰—उप-स्था—-—प्रतीक्षा करना, सेवा में उपस्थित रहना, सेवा करना
  • उपस्था—भ्वा॰ आ॰—उप-स्था—-—पूजा करना, प्राथना के साथ उपस्थित होना, सेवा करना, प्रणाम करना
  • उपस्था—भ्वा॰ आ॰—उप-स्था—-—निकट खड़े होना
  • उपस्था—भ्वा॰ आ॰—उप-स्था—-—मैथुन के लिए पहुँचना
  • उपस्था—भ्वा॰ आ॰—उप-स्था—-—मिलना, संयुक्त होना
  • उपस्था—भ्वा॰ आ॰—उप-स्था—-—नेतृत्व करना
  • उपस्था—भ्वा॰ आ॰—उप-स्था—-—मित्र बनाना
  • उपस्था—भ्वा॰ आ॰—उप-स्था—-—पहुँचना, निकट खींचना, आसन्नवर्ती होना
  • उपस्था—भ्वा॰ आ॰—उप-स्था—-—द्वेषभावना से पहुँचना
  • उपस्था—भ्वा॰ आ॰—उप-स्था—-—उपस्थित होना
  • उपस्था—भ्वा॰ आ॰—उप-स्था—-—घटित होना, उत्पन्न होना
  • परिस्था—भ्वा॰ पर॰—परि-स्था—-—घेरना, चारों ओर खड़े होना
  • पर्यवस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —पर्यव-स्था—-—स्वस्थचित्त होना, सचेत होना
  • प्रस्था—भ्वा॰ आ॰—प्र-स्था—-—कूच करना, विदा होना
  • प्रस्था—भ्वा॰ आ॰—प्र-स्था—-— दृढ़तापूर्वक खड़े रहना
  • प्रस्था—भ्वा॰ आ॰—प्र-स्था—-—प्रस्थापित होना
  • प्रस्था—भ्वा॰ आ॰—प्र-स्था—-—पहुँचना, निकट आना
  • प्रस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —प्र-स्था—-—पीछे हटाना
  • प्रस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —प्र-स्था—-—भेजना, तितर बितर करना
  • प्रतिस्था—भ्वा॰ पर॰—प्रति-स्था—-—दृढ़ता पूर्वक खड़े रहना, प्रस्थापित होना
  • प्रतिस्था—भ्वा॰ पर॰—प्रति-स्था—-—सहायता किया जाना
  • प्रतिस्था—भ्वा॰ पर॰—प्रति-स्था—-—आश्रित या निर्भर रहना
  • प्रतिस्था—भ्वा॰ पर॰—प्रति-स्था—-—ठहरना, डटे रहना, स्थित रहना
  • प्रत्ययस्था—भ्वा॰ आ॰—प्रत्यय-स्था—-—विरोध करना, शत्रुवत व्यवहार करना, आक्षेप करना
  • प्रत्ययस्था—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—प्रत्यय-स्था—-—अपने आप को सचेत या स्वस्थ करना
  • विस्था—भ्वा॰ आ॰—वि-स्था—-—अलग खड़े होना
  • विस्था—भ्वा॰ आ॰—वि-स्था—-—स्थिर रहना, डटे रहना, बस जाना, अचल रहना
  • विस्था—भ्वा॰ आ॰—वि-स्था—-—फैलना, विकीर्ण होना
  • विप्रस्था—भ्वा॰ आ॰—विप्र-स्था—-—कूच रहना
  • विप्रस्था—भ्वा॰ आ॰—विप्र-स्था—-—फैलना
  • व्यवस्था—भ्वा॰ आ॰—व्यव-स्था—-—अलग-अलग रखा जाना
  • व्यवस्था—भ्वा॰ आ॰—व्यव-स्था—-—क्रमबद्ध किया जाना
  • व्यवस्था—भ्वा॰ आ॰—व्यव-स्था—-—निश्चित होना, स्थिर होना, स्थायी होना
  • व्यवस्था—भ्वा॰ आ॰—व्यव-स्था—-—आश्रित होना, निर्भय होना
  • व्यवस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —व्यव-स्था—-—क्रमबद्ध करना, प्रबन्ध करना, समंजित करना
  • व्यवस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —व्यव-स्था—-—निश्चित करना, स्थापित करना
  • व्यवस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —व्यव-स्था—-—पृथक करना, अलग-अलग रखना
  • संस्था—भ्वा॰ आ॰—सम्-स्था—-—बसना, रहना, परस्पर निकटवर्ती होना
  • संस्था—भ्वा॰ आ॰—सम्-स्था—-—खड़े होना
  • संस्था—भ्वा॰ आ॰—सम्-स्था—-—होना, विद्यमान होना, जीवित होना
  • संस्था—भ्वा॰ आ॰—सम्-स्था—-—डटे रहना, आज्ञा मानना, सिद्धान्त का निर्वाह करना
  • संस्था—भ्वा॰ आ॰—सम्-स्था—-—पूरा होना
  • संस्था—भ्वा॰ आ॰—सम्-स्था—-—सामाप्त होना, विघ्न पड़ जाना
  • संस्था—भ्वा॰ आ॰—सम्-स्था—-—निश्चेष्ट खड़े रहना, स्थिर हो जाना
  • संस्था—भ्वा॰ आ॰—सम्-स्था—-—मारना, नष्ट होना
  • संस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —सम्-स्था—-—स्थापित करना, बसाना
  • संस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —सम्-स्था—-—रखना
  • संस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —सम्-स्था—-—स्वस्थचित्त होना, सचेत होना
  • संस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —सम्-स्था—-—अधीन करना, नियंत्रण में रखना
  • संस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —सम्-स्था—-—रोकना, प्रतिबद्ध करना
  • संस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —सम्-स्था—-—मार डालना
  • समधिस्था—भ्वा॰ पर॰—समधि-स्था—-—प्रधानता करना, शासन करना, प्रशासन करना, अधीक्षण करना
  • समवस्था—भ्वा॰ आ॰—समव-स्था—-—स्थिर रहना , अचल रहना
  • समवस्था—भ्वा॰ आ॰—समव-स्था—-—निश्चेष्ट रहना
  • समवस्था—भ्वा॰ आ॰—समव-स्था—-—तत्पर रहना
  • समवस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —समव-स्था—-—नींव डालना
  • समवस्था—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ —समव-स्था—-—रोकना
  • समास्था—भ्वा॰ पर॰—समा-स्था—-—सहना, अभ्यास करना
  • समास्था—भ्वा॰ पर॰—समा-स्था—-—व्यस्त रहना, सम्पादन करना
  • समास्था—भ्वा॰ पर॰—समा-स्था—-—प्रयोग में लाना, काम में लगाना
  • समास्था—भ्वा॰ पर॰—समा-स्था—-—अनुसरण करना, पालन करना
  • समुत्था—भ्वा॰ पर॰—समुत्-स्था—-—खड़ा होना, उठना
  • समुत्था—भ्वा॰ पर॰—समुत्-स्था—-—मिलकर खड़े होना
  • समुत्था—भ्वा॰ पर॰—समुत्-स्था—-—मृत्यु से उठना, फिर जीवित होना, होश में आना
  • समुत्था—भ्वा॰ पर॰—समुत्-स्था—-—उदय होना, फूटना
  • समुपस्था—भ्वा॰ पर॰—समुप-स्था—-—निकट आना, पास जाना, पहुँचना
  • समुपस्था—भ्वा॰ पर॰—समुप-स्था—-—आक्रमण करना
  • समुपस्था—भ्वा॰ पर॰—समुप-स्था—-—आ पड़ना, घटित होना
  • समुपस्था—भ्वा॰ पर॰—समुप-स्था—-—सटकर खड़े होना
  • सम्प्रस्था—भ्वा॰ आ॰—सम्प्र-स्था—-—कूच करना, विदा होना
  • सम्प्रतिस्था—भ्वा॰ पर॰—सम्प्रति-स्था—-—लटकना, आश्रित होना, निर्भर होना
  • सम्प्रतिस्था—भ्वा॰ पर॰—सम्प्रति-स्था—-—दृढ़ होना, स्थिर होना
  • स्थाणु—वि॰—-—स्था + नु, पृषो॰ णत्वम्—दृढ़, अटल, स्थिर, टिकाऊ, अचल, गतिहीन
  • स्थाणुः—पुं॰—-—स्था + नु, पृषो॰ णत्वम्—शिव का विशेषण
  • स्थाणुः—पुं॰—-—स्था + नु, पृषो॰ णत्वम्—टेक, पोल, स्तम्भ
  • स्थाणुः—पुं॰—-—स्था + नु, पृषो॰ णत्वम्—खूँटी, कील
  • स्थाणुः—पुं॰—-—स्था + नु, पृषो॰ णत्वम्—धूपघड़ी का शंकु
  • स्थाणुः—पुं॰—-—स्था + नु, पृषो॰ णत्वम्—बर्छी, नेजा
  • स्थाणुः—पुं॰—-—स्था + नु, पृषो॰ णत्वम्—दीमकों का घोसला, बामी
  • स्थाणुः—पुं॰—-—स्था + नु, पृषो॰ णत्वम्—औषधि या सुगंध द्रव्य, जीवक, शाखा रहित तना, नंगा डंठल, मुंडा पेड़, ठूंठ
  • स्थाणुच्छेदः—पुं॰—स्थाणु-छेदः—-—वह जो वृक्षों के तने काटता है, जो तने को छील कर साफ करता है
  • भ्रमच्छेदः—पुं॰—भ्रम-च्छेदः—-—किसी थूणी या पोल को कुछ और ही समझ लेना
  • स्थाण्डिलः—पुं॰—-—स्थाण्डिल + अण्—वह सन्यासी जो बिना बिस्तर के भूमि पर या यज्ञीय भूखंड पर सोता है
  • स्थाण्डिलः—पुं॰—-—स्थाण्डिल + अण्—साधु या धार्मिक भिक्षु
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—खड़ा होना, रहना, ठहरना, नैरन्तर्य, निवास स्थान
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—स्थिर या अटल होना
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—स्थिति, दशा
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—जगह, स्थल, भूमि
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—संस्थान, स्थिति, अवस्था
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—संबन्ध, हैसियत
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—आवास, घर, निवास स्थान
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—देश, क्षेत्र, जिला, नगर
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—पद, दर्जा, प्रतिष्ठा
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—पदार्थ
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—अवसर, बात, विषय, कारण
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—उचित या उपयुक्त जगह
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—उचित या योग्य पदार्थ
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—अक्षर का उच्चारण स्थान
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—पावन स्थान
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—वेदी
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—नगरस्थ प्रांगण
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—मृत्यु के बाद कर्मानुसार प्राप्त होने वाला लोक
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—दृढ़ता, आक्रमण का मुकाबला करने के लिए दृढ़ता
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—पड़ाव, डेरा
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—निश्चेष्ट दशा, उदासीनता
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—राज्य के मुख्य अंग, किसी राज्य का स्थैर्य
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—सादृश्य, समानता
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—किसी ग्रंथ का भाग या खंड, परिच्छेद या अध्याय आदि
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—अभिनेता का चरित्र
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—अन्तराल, अवसर, अवकाश
  • स्थानम्—नपुं॰—-—स्था + ल्युट्—गीत, सुर, स्वर के स्पंदन की मात्रा
  • स्थानाध्यक्षः—पुं॰—स्थान-अध्यक्षः—-—स्थानीय राज्यपाल, स्थान का अधीक्षक
  • स्थानासन—नपुं॰ द्वि॰ व॰—स्थान-आसन—-—बैठा हुआ
  • स्थानासेधः—पुं॰—स्थान-आसेधः—-—किसी स्थान पर कैद, कारा, बंधन
  • स्थानचिन्तकः—पुं॰—स्थान-चिन्तकः—-—सेना के शिविर के लिए स्थान की व्यवस्था करने वाला अधिकारी
  • स्थानच्युत—वि॰—स्थान-च्युत—-—किसी पद से हटाया हुआ, विस्थापित, पदच्युत, बेकार
  • स्थानपालः—पुं॰—स्थान-पालः—-—रखवाला, पहरेदार, आरक्षी
  • स्थानभ्रष्ट—वि॰—स्थान-भ्रष्ट—-—किसी पद से हटाया हुआ, विस्थापित, पदच्युत, बेकार
  • स्थानमाहात्म्यम्—नपुं॰—स्थान-माहात्म्यम्—-—किसी स्थान का गौरव या महत्त्व
  • स्थानमाहात्म्यम्—नपुं॰—स्थान-माहात्म्यम्—-—किसी स्थान में मानी जाने वाली असाधारण पवित्रता या दिव्य गुण
  • स्थानयोगः—पुं॰—स्थान-योगः—-—उपयुक्त स्थान का निदेशन
  • स्थानस्थ—वि॰—स्थान-स्थ—-—एक ही स्थान पर स्थित, अचल
  • स्थानकम्—नपुं॰—-—स्थान + स्वार्थे क—अवस्था, स्थिति
  • स्थानकम्—नपुं॰—-—स्थान + स्वार्थे क—नाटकीय व्यापार का एक विशेष स्थल
  • स्थानकम्—नपुं॰—-—स्थान + स्वार्थे क—शहर, नगर
  • स्थानकम्—नपुं॰—-—स्थान + स्वार्थे क—आलवाल
  • स्थानकम्—नपुं॰—-—स्थान + स्वार्थे क—शराब की सतह पर उठा हुआ फेन
  • स्थानकम्—नपुं॰—-—स्थान + स्वार्थे क—स्स्वर पाठ की एक रीति
  • स्थानकम्—नपुं॰—-—स्थान + स्वार्थे क—यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा का अनुवाक या प्रभाग
  • स्थानतः—अव्य॰—-—स्थान + तसिल्—अपनी स्थिति या अवस्था के अनुसार
  • स्थानतः—अव्य॰—-—स्थान + तसिल्—अपने उपयुक्त स्थान से
  • स्थानतः—अव्य॰—-—स्थान + तसिल्—उच्चारण करने के अंग के अनुरुप
  • स्थानिक—वि॰—-—स्थान + ठक्—किसी स्थान विशेष से सबंध रखने वाला, स्थानीय
  • स्थानिक—वि॰—-—स्थान + ठक्—जो किसी अन्य वस्तु के बदले प्रयुक्त हो, या उसका स्थानापन्न हो
  • स्थानिकः—पुं॰—-—स्थान + ठक्—कोई पदाधिकारी, स्थानविशेष का रक्षक
  • स्थानिकः—पुं॰—-—स्थान + ठक्—किसी स्थान का शासक
  • स्थानिन्—वि॰—-—स्थानमस्यास्ति रक्ष्यत्वेन इनि—स्थानवाला, स्थैर्यसम्पन्न, स्थायी
  • स्थानिन्—वि॰—-—स्थानमस्यास्ति रक्ष्यत्वेन इनि—वह जिसका कोई स्थानापन्न हो
  • स्थानिन्—पुं॰—-—स्थानमस्यास्ति रक्ष्यत्वेन इनि—मूलरुप या मौलिक तत्त्व, जिसके लिए कोई दूसरा स्थानापन्न न हो
  • स्थानिन्—पुं॰—-—स्थानमस्यास्ति रक्ष्यत्वेन इनि—जिसका अपना स्थान हो, अभिहित
  • स्थानीय—वि॰—-—स्थान + छ—स्थानविशेष से संबद्ध, किसी स्थान का
  • स्थानीय—वि॰—-—स्थान + छ—किसी स्थान के लिए उपयुक्त
  • स्थानीयम्—नपुं॰—-—स्थान + छ—नगर, शहर
  • स्थाने—अव्य॰—-—‘स्थान का अधि॰ का रुप—ठीक या उपयुक्त स्थान पर, सही ढंग से, उपयुक्त रुप से, ठीक, सचमुच, समुचित रीति से
  • स्थाने—अव्य॰—-—‘स्थान का अधि॰ का रुप—के स्थान में, की बजाय, के बदले, स्थानापन्न के रुप में
  • स्थाने—अव्य॰—-—‘स्थान का अधि॰ का रुप—के कारण, के लिए
  • स्थाने—अव्य॰—-—‘स्थान का अधि॰ का रुप—इसीप्रकार, भांति
  • स्थापक—वि॰—-—स्थापयति - स्था + णिच् + ण्वुल्—खड़ा करने वाला, जमाने वाला, नींव डालने वाला, स्थापित करने वाला, विनियमित करने वाला
  • स्थापकः—पुं॰—-—स्थापयति - स्था + णिच् + ण्वुल्—मंच के कार्य का निदेशक, रंगमंच-प्रबंधक, सूत्रधार
  • स्थापकः—पुं॰—-—स्थापयति - स्था + णिच् + ण्वुल्—किसी देवालय का प्रतिष्ठाता, मूर्ति की स्थापना करने वाला
  • स्थापत्यः—पुं॰—-—स्थपति + ष्यञ्—अन्तःपुर का रक्षक
  • स्थापत्यम्—नपुं॰—-—स्थपति + ष्यञ्—वास्तु विद्या, भवननिर्माण कला
  • स्थापनम्—नपुं॰—-—स्था + णिच् + ल्युट्, पुकागमः—खड़ा करने की क्रिया, जमाना, नींव डालना, निदेश देना, स्थापित करना, संख्या बनाना
  • स्थापनम्—नपुं॰—-—स्था + णिच् + ल्युट्, पुकागमः—विचारों को जमाना, मन को संकेन्द्रित करना, ध्यान, धारणा
  • स्थापनम्—नपुं॰—-—स्था + णिच् + ल्युट्, पुकागमः—निवास, आवास
  • स्थापनम्—नपुं॰—-—स्था + णिच् + ल्युट्, पुकागमः—पुंसवन् संस्कार
  • स्थापना—स्त्री॰—-—स्था + णिच् + युच् + टाप्, पुक्—रखना, जमाना, नींव रखना, स्थापित करना
  • स्थापना—स्त्री॰—-—स्था + णिच् + युच् + टाप्, पुक्—व्यवस्था करना, विनिमन, रंगमंच का प्रबन्ध
  • स्थापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + णिच् + क्त पुक्—रखा हुआ, जमाया हुआ, अवस्थित, धरा हुआ
  • स्थापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + णिच् + क्त पुक्—नींव डाली हुई, निविष्ट
  • स्थापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + णिच् + क्त पुक्—जड़ा हुआ, उठाया हुआ, खड़ा किया हुआ
  • स्थापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + णिच् + क्त पुक्—निदेशित, विनियमित, आदिष्ट, अधिनियम
  • स्थापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + णिच् + क्त पुक्—निर्धारित, तय किया हुआ, निश्चित किया हुआ
  • स्थापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + णिच् + क्त पुक्—नियत, जिसको कोई पद या कर्तव्य सौंपा गया हो
  • स्थापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + णिच् + क्त पुक्—विवाहित, जिसका विवाह हो चुका हो
  • स्थापित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + णिच् + क्त पुक्—दृढ़, स्थिर
  • स्थाप्य—वि॰—-—स्था + णिच् + ण्यत्, पुकागमः—रखे जाने या जमा किये जाने के योग्य
  • स्थाप्य—वि॰—-—स्था + णिच् + ण्यत्, पुकागमः—नींव डाले जाने योग्य, स्थिर या स्थापित किये जाने योग्य
  • स्थाप्यम्—नपुं॰—-—स्था + णिच् + ण्यत्, पुकागमः—धरोहर, अमानत
  • स्थाप्यापहरणम्—नपुं॰—स्थाप्य-अपहरणम्—-—धरोहर की वस्तु हड़प कर जाना, अमानत में खयानत
  • स्थामन्—नपुं॰—-—स्था + मनिन्—सामर्थ्य, शक्ति, स्थैर्य
  • स्थामन्—नपुं॰—-—स्था + मनिन्—स्थिरता, स्थायित्व
  • स्थायिन्—वि॰—-—स्था + णिनि युक्—खड़ा रहने वाला, टिकने वाला, स्थित रहने वाला
  • स्थायिन्—वि॰—-—स्था + णिनि युक्—सहन करने वाला, निरन्तर चलने वाला, टिकाऊ, टिके रहने वाला
  • स्थायिन्—वि॰—-—स्था + णिनि युक्—जीने वाला, निवास करने वाला, रहने वाला
  • स्थायिन्—वि॰—-—स्था + णिनि युक्—स्थिर, दृढ़, पक्का, अपरिवर्ती, जो न बदले
  • स्थायिन्—पुं॰—-—स्था + णिनि युक्—नित्य या शाश्वत भावना
  • स्थायिन्—नपुं॰—-—स्था + णिनि युक्—कोई भी टिकाऊ वस्तु, दृढ़ स्थिति या दशा
  • स्थायिभावः—पुं॰—स्थायि-भावः—-—मन की स्थिर दशा, टिकाऊ या सदा रहने वाली भावना, स्थायीभाव गिनती में आठ या नौ हैं
  • स्थायुक—वि॰—-—स्था + उकञ्, युक्—जो ठहरने वाला हो, या जिसमें ठहरने की प्रवृत्ति हो
  • स्थायुक—वि॰—-—स्था + उकञ्, युक्—दृढ़, स्थिर, अचल
  • स्थायुकः—पुं॰—-—स्था + उकञ्, युक्—गाँव का मुखिया या अधीक्षक
  • स्थालम्—नपुं॰—-—स्थलति तिष्ठति अन्नाद्यत्र आधारे धञ्—थाल, थाली, तस्तरी
  • स्थालम्—नपुं॰—-—स्थलति तिष्ठति अन्नाद्यत्र आधारे धञ्—कोई भोजनपात्र, पाकयोग्य बर्तन
  • स्थालरूपम्—नपुं॰—स्थाल-रूपम्—-—पाकपात्र की आकृति
  • स्थाली—स्त्री॰—-—स्थाल + ङीष्—मिट्टी का घड़ा या हाँड़ी, रांधने का बर्तन, कड़ाही, बटलोई
  • स्थाली—स्त्री॰—-—स्थाल + ङीष्—सोम तैयार करने के काम आने वाला विशेष पात्र, पाटलावृक्ष, तुरही के सदृश फूल
  • स्थालीपाकः—पुं॰—स्थाली-पाकः—-—एक धार्मिक कृत्य जिसका अनुष्ठान गृहस्थ करते है
  • स्थालीपुरीषम्—नपुं॰—स्थाली-पुरीषम्—-—पाक पात्र में जमा हुआ मैल या तरौंछ
  • स्थालीपुलाकः—पुं॰—स्थाली-पुलाकः—-—पाकपात्र में पकाया हुआ चावल
  • स्थालीविलम्—नपुं॰—स्थाली-विलम्—-—पाकपात्र का भीतरी हिस्सा
  • स्थावर—वि॰—-—स्था + वरच्—एक स्थान पर जमा हुआ, अचल, अडिग, अचर, जड़
  • स्थावर—वि॰—-—स्था + वरच्—निश्चेष्ट, निष्क्रिय, मन्द
  • स्थावर—वि॰—-—स्था + वरच्—नियमित, स्थापित
  • स्थावरः—पुं॰—-—स्था + वरच्—पहाड़
  • स्थावरम्—नपुं॰—-—स्था + वरच्—कोई भी स्थिर या जड़ पदार्थ
  • स्थावरम्—नपुं॰—-—स्था + वरच्—धनुष की डोरी
  • स्थावरम्—नपुं॰—-—स्था + वरच्—अचल संपत्ति, माल असबाब
  • स्थावरम्—नपुं॰—-—स्था + वरच्—पैतृक या मौरुसी प्राप्त सम्पत्ति
  • स्थावरास्थावरम्—नपुं॰—स्थावर-अस्थावरम्—-—चल और अचल संपत्ति
  • स्थावरास्थावरम्—नपुं॰—स्थावर-अस्थावरम्—-—चेतन और जड़ पदार्थ
  • स्थावरजङ्गमम्—नपुं॰—स्थावर-जङ्गमम्—-—चल और अचल संपत्ति
  • स्थावरजङ्गमम्—नपुं॰—स्थावर-जङ्गमम्—-—चेतन और जड़ पदार्थ
  • स्थाविर—वि॰—-—स्थविर + अण्—मोटा, दृढ़
  • स्थाविरम्—नपुं॰—-—स्थविर + अण्—बुढ़ापा
  • स्थासकः—पुं॰—-—स्था + स स्वार्थादौ क—सुवासित करना, शरीर पर सुगन्धि लेप करना
  • स्थासकः—पुं॰—-—स्था + स स्वार्थादौ क—पानी का बुलबुला या कोई तरल पदार्थ
  • स्थासु—नपुं॰—-—स्था + सु—शारीरिक बल
  • स्थास्नु—वि॰—-—स्था + स्नु—स्थिर, दृढ़, अचल
  • स्थास्नु—वि॰—-—स्था + स्नु—स्थायी, नित्य टिकाऊ, पायदार
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—खड़ा हुआ, रहा हुआ, ठहरा हुआ
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—खड़ा होने वाला
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—उठकर खड़ा होने वाला, उठा हुआ
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—टिकने वाला, सहारा लेने वाला, जीवित, विद्यमान, मौजूद, स्थित
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—घटित, हुआ
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—पड़ाव डाला हुआ, अधिकार किया हुआ, नियुक्त किया हुआ
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—क्रियान्वित करने वाला, डटा रहने वाला, समनुरुप
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—निश्चेष्ट खड़ा हुआ, रुका हुआ, ठहरा हुआ
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—जमा हुआ, दृढ़तापूर्वक लगा हुआ
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—स्थिर, दृढ़
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—निर्धारित, दृढ़ निश्चय किया हुआ
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—स्थापित, समादिष्ट
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—आचरण में दृढ़, दृढ़मना
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—ईमानदार, धर्मात्मा
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—प्रतिज्ञा या करार का पक्का
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—सहमत, व्यस्त, संविदाग्रस्त
  • स्थित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्था + क्त—तैयार, निकटस्थ, समीप
  • स्थितम्—नपुं॰—-—स्था + क्त—स्वयं खड़ा हुआ
  • स्थितोपस्थित—वि॰—स्थित-उपस्थित—-—‘इति’ शब्द से युक्त या रहित
  • स्थितधी—वि॰—स्थित-धी—-—दृढ़मनस्क, स्थिरमना, शान्त
  • स्थितपाठयम्—नपुं॰—स्थित-पाठयम्—-—खड़ी हुई स्त्रीपात्र द्वारा प्राकृत में पाठ
  • स्थितप्रज्ञ—वि॰—स्थित-प्रज्ञ—-—निर्णय या समझदारी में दृढ़, सब प्रकार के भ्रमों से मुक्त, सन्तुष्ट
  • स्थितप्रेमन्—पुं॰—स्थित-प्रेमन्—-—पक्का या विश्वासपात्र मित्र
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—खड़े होना, रहना, टिकना, डटे रहना, जीवित होना, ठहरना, निवासस्थान
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—रुकना, चुप होकर खड़े होना, एक ही अवस्था में रहना
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—अडिग रहना, जम जाना, स्थिरता, दृढ़ता, लगे रहना, भक्ति
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—हालत, अवस्था, परिस्थिति, दशा
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—प्राकृतिक हालत, प्रकृति, स्वभाव
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—स्थिरता, स्थायित्व, चिरस्थायित्व, निरन्तरता
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—आचरण की शुद्धता, कर्तव्य पालन में दृढ़ता, शिष्टता, कर्तव्य, नैतिक सदाचार, औचित्य
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—अनुशासन का पालन, सुव्यवस्था की स्थापना
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—दर्जा, पद, ऊँचा पद या दर्जा
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—निर्वाह, जीवनका बने रहना
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—जीवन में नैरन्तर्य, रक्षितावस्था
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—यति, विराम, विरति
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—कुशलक्षेम, कल्याण
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—संगति
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—निश्चित नियम, अध्यादेश, आज्ञप्ति, सिद्धांतवाक्य, नीतिवाक्य
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—निश्चय निर्धारण
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—अवधि, सीमा, हद
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—जड़ता, गतिहीनता
  • स्थितिः—स्त्री॰—-—स्था + क्तिन्—ग्रहण की अवधि
  • स्थितिस्थापक—वि॰—स्थिति-स्थापक—-—मूल अवस्था में जमाने वाला, पूर्वावस्था को प्राप्त करने की शक्ति रखने वाला
  • स्थितिस्थापकः—पुं॰—स्थिति-स्थापकः—-—लचीलापन, पूर्वावस्था को पुनः प्राप्त करने की सामर्थ्य
  • स्थिर—वि॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—दृढ़, स्थिरमति, जमा हुआ
  • स्थिर—वि॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—अचल, शान्त, गतिहीन
  • स्थिर—वि॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—दृढ़तापूर्वक, जमा
  • स्थिर—वि॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—स्थायी, नित्य, शाश्वत
  • स्थिर—वि॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—शान्त, सचेत, स्वस्थचित्त धीर, गंभीर
  • स्थिर—वि॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—मौन, अक्षुब्ध
  • स्थिर—वि॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—आचरण में पक्का, दृढ़
  • स्थिर—वि॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—संतत, श्रद्धालु, दृढ़-संकल्प
  • स्थिर—वि॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—निश्चित, विश्वास योग्य
  • स्थिर—वि॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—कठोर, ठोस
  • स्थिर—वि॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—मजबूत, अन्तर्दृढ़
  • स्थिर—वि॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—कड़ा, निष्करुण, कठोर हृदय
  • स्थिरः—पुं॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—देव, सुर
  • स्थिरः—पुं॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ— वृक्ष
  • स्थिरः—पुं॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—पहाड़
  • स्थिरः—पुं॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—सांड
  • स्थिरः—पुं॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—शिव का नाम
  • स्थिरः—पुं॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—कार्तिकेय का नाम
  • स्थिरः—पुं॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—मोक्ष या निर्वाण
  • स्थिरः—पुं॰—-—स्था + किरच्, म॰ अ॰ स्थेयस्, उ॰ अ॰ स्थेष्ठ—शनिग्रह
  • स्थिरीकृ—वि॰—-—-—पुष्ट करना, मजबूत करना, समर्थन करना
  • स्थिरीकृ—वि॰—-—-—रुकना, दृढ़
  • स्थिरीकृ—वि॰—-—-—प्रसन्न करना, तसल्ली देना, आराम पहुँचाना
  • स्थिरीभू—वि॰—-—-—स्थिर या दृढ़ होना
  • स्थिरीभू—वि॰—-—-—शान्त या धीर होना
  • स्थिरानुराग—वि॰—स्थिर-अनुराग—-—दृढ़ आसक्ति वाला, स्नेहसिक्त
  • स्थिरात्मन्—वि॰—स्थिर-आत्मन्—-—दृढ़मना, विचार या संकल्प का पक्का, दृढ़ संकल्प
  • स्थिरात्मन्—वि॰—स्थिर-आत्मन्—-—शान्त, धीर, अक्षुब्ध
  • स्थिरचित्त—वि॰—स्थिर-चित्त—-—दृढ़मना, विचार या संकल्प का पक्का, दृढ़ संकल्प
  • स्थिरचित्त—वि॰—स्थिर-चित्त—-—शान्त, धीर, अक्षुब्ध
  • स्थिरचेतस्—वि॰—स्थिर-चेतस्—-—दृढ़मना, विचार या संकल्प का पक्का, दृढ़ संकल्प
  • स्थिरचेतस्—वि॰—स्थिर-चेतस्—-—शान्त, धीर, अक्षुब्ध
  • स्थिरधी—स्त्री॰—स्थिर-धी—-—दृढ़मना, विचार या संकल्प का पक्का, दृढ़ संकल्प
  • स्थिरधी—स्त्री॰—स्थिर-धी—-—शान्त, धीर, अक्षुब्ध
  • स्थिरबुद्धि—वि॰—स्थिर-बुद्धि—-—दृढ़मना, विचार या संकल्प का पक्का, दृढ़ संकल्प
  • स्थिरबुद्धि—वि॰—स्थिर-बुद्धि—-—शान्त, धीर, अक्षुब्ध
  • स्थिरमति—वि॰—स्थिर-मति—-—दृढ़मना, विचार या संकल्प का पक्का, दृढ़ संकल्प
  • स्थिरमति—वि॰—स्थिर-मति—-—शान्त, धीर, अक्षुब्ध
  • स्थिरायुस्—वि॰—स्थिर-आयुस्—-—दीर्घजीवि, चिरजीवी
  • स्थिरजीविन्—वि॰—स्थिर-जीविन्—-—दीर्घजीवि, चिरजीवी
  • स्थिरारम्भ—वि॰—स्थिर-आरम्भ—-—दायित्व निर्वाह में दृढ़, धैर्यशाली
  • स्थिरकुट्टुकः—पुं॰—स्थिर-कुट्टुकः—-—लगातार पीसने वाला
  • स्थिरकुट्टुकः—पुं॰—स्थिर-कुट्टुकः—-—समान भाजक
  • स्थिरगन्धः—पुं॰—स्थिर-गन्धः—-—चंपक फूल
  • स्थिरछदः—पुं॰—स्थिर-छदः—-—भोजपत्र का वृक्ष
  • स्थिरच्छायः—पुं॰—स्थिर-छायः—-—यात्रियों को छाया देने वाला
  • स्थिरच्छायः—पुं॰—स्थिर-छायः—-—वृक्ष
  • स्थिरजिह्वः—पुं॰—स्थिर-जिह्वः—-—मछली
  • स्थिरजीविता—स्त्री॰—स्थिर-जीविता—-—सेमल का पेड़
  • स्थिरदंष्ट्रः—पुं॰—स्थिर-दंष्ट्रः—-—सांप
  • स्थिरपुष्प—वि॰—स्थिर-पुष्प—-—चंपक वृक्ष
  • स्थिरपुष्प—वि॰—स्थिर-पुष्प—-—बकुल वृक्ष, मौलसिरी
  • स्थिरप्रतिज्ञ—वि॰—स्थिर-प्रतिज्ञ—-—दृढ़प्रतिज्ञ, हठी, आग्रही
  • स्थिरप्रतिज्ञ—वि॰—स्थिर-प्रतिज्ञ—-—वचन का पालन करने वाला
  • स्थिरप्रतिबन्ध—वि॰—स्थिर-प्रतिबन्ध—-—विरोध करने में दृढ़, हठी
  • स्थिरफला—स्त्री॰—स्थिर-फला—-— कुष्मांडी
  • स्थिरयोनिः—पुं॰—स्थिर-योनिः—-—बड़ा भारी वृक्ष जो छाया और शरण दे
  • स्थिरयौवन—वि॰—स्थिर-यौवन—-—सदा जवान रहने वाला
  • स्थिरयौवनः—पुं॰—स्थिर-यौवनः—-—विद्याधर, परी
  • स्थिरयौवनः—पुं॰—स्थिर-यौवनः—-—चिरस्थायी तारुण्य
  • स्थिरश्री—वि॰—स्थिर-श्री—-—सदा रहने वाली समृद्धि वाला
  • स्थिरसंगर—वि॰—स्थिर-संगर—-—प्रतिज्ञा का पालन करने वाला, सच्चा, बात का धनी
  • स्थिरसौहृद—वि॰—स्थिर-सौहृद—-—मित्रता में दृढ़
  • स्थिरस्थायिन्—वि॰—स्थिर-स्थायिन्—-—दृढ़ या अटल रहने वाला, पूर्णतः शान्त रहने वाला
  • स्थिरता—स्त्री॰—-—स्थिर + तल् + टाप्—दृढ़ता, स्थैर्य, टिकाऊपन
  • स्थिरता—स्त्री॰—-—स्थिर + तल् + टाप्—दृढ़ और बलशाली प्रयत्न, पौरुष
  • स्थिरता—स्त्री॰—-—स्थिर + तल् + टाप्—सातत्य, मन की दृढ़ता
  • स्थिरता—स्त्री॰—-—स्थिर + तल् + टाप्—अचलता
  • स्थिरत्वम्—नपुं॰—-—स्थिर + तल् + त्व —दृढ़ता, स्थैर्य, टिकाऊपन
  • स्थिरत्वम्—नपुं॰—-—स्थिर + तल् + त्व —दृढ़ और बलशाली प्रयत्न, पौरुष
  • स्थिरत्वम्—नपुं॰—-—स्थिर + तल् + त्व —सातत्य, मन की दृढ़ता
  • स्थिरत्वम्—नपुं॰—-—स्थिर + तल् + त्व —अचलता
  • स्थिरा—स्त्री॰—-—स्थिर + टाप्—पृथ्वी
  • स्थुड्—तुदा॰ पर॰ <स्थुडति>—-—-—ढकना
  • स्थुलम्—नपुं॰—-—स्थुड् + अच्, पृषो॰ डस्य लः—एक प्रकार का लंबा तंबू
  • स्थूणा—स्त्री॰—-—स्था + नक्, उदान्तादेशः, पृषो॰—घर का खंबा, सतून, स्तंभ, पोल या खंबा
  • स्थूणा—स्त्री॰—-—स्था + नक्, उदान्तादेशः, पृषो॰—लौहमूर्ति या प्रतिमा
  • स्थूणा—स्त्री॰—-—स्था + नक्, उदान्तादेशः, पृषो॰—घन
  • स्थूमः—पुं॰—-—-—प्रकाश
  • स्थूमः—पुं॰—-—-—चन्द्रमा
  • स्थूरः—पुं॰—-—स्था + ऊरन्—साँड
  • स्थूरः—पुं॰—-—स्था + ऊरन्—मनुष्य
  • स्थूल—वि॰—-—स्थूल् + अच् - म॰ अ॰ स्थवीयस्, उ॰ अ॰ स्थविष्ट—विस्तृत, बड़ा, बृहत, विशाल, महान्
  • स्थूल—वि॰—-—स्थूल् + अच् - म॰ अ॰ स्थवीयस्, उ॰ अ॰ स्थविष्ट—मोटा, मांसल, हृष्टपुष्ट
  • स्थूल—वि॰—-—स्थूल् + अच् - म॰ अ॰ स्थवीयस्, उ॰ अ॰ स्थविष्ट—मजबूत, शक्तिशाली
  • स्थूल—वि॰—-—स्थूल् + अच् - म॰ अ॰ स्थवीयस्, उ॰ अ॰ स्थविष्ट—बेडौल, भद्दा
  • स्थूल—वि॰—-—स्थूल् + अच् - म॰ अ॰ स्थवीयस्, उ॰ अ॰ स्थविष्ट—सम्पूर्ण, साधारण, अनाड़ी
  • स्थूल—वि॰—-—स्थूल् + अच् - म॰ अ॰ स्थवीयस्, उ॰ अ॰ स्थविष्ट—मूर्ख, मूढ़, बुद्धू, नासमझ
  • स्थूल—वि॰—-—स्थूल् + अच् - म॰ अ॰ स्थवीयस्, उ॰ अ॰ स्थविष्ट—आलसी, सुस्त, ठग
  • स्थूल—वि॰—-—स्थूल् + अच् - म॰ अ॰ स्थवीयस्, उ॰ अ॰ स्थविष्ट—अयथार्थ
  • स्थूलः—पुं॰—-—स्थूल् + अच् - म॰ अ॰ स्थवीयस्, उ॰ अ॰ स्थविष्ट—कटहल
  • स्थूलम्—नपुं॰—-—स्थूल् + अच् - म॰ अ॰ स्थवीयस्, उ॰ अ॰ स्थविष्ट—ढेर, राशि
  • स्थूलम्—नपुं॰—-—स्थूल् + अच् - म॰ अ॰ स्थवीयस्, उ॰ अ॰ स्थविष्ट—तंबू
  • स्थूलम्—नपुं॰—-—स्थूल् + अच् - म॰ अ॰ स्थवीयस्, उ॰ अ॰ स्थविष्ट—पहाड़ की चोटी
  • स्थूलान्त्रम्—नपुं॰—स्थूलम्-अन्त्रम्—-—बड़ी आंत जो गुदा के पास तक जाती है
  • स्थूलास्यः—पुं॰—स्थूल-आस्यः—-—साँप
  • स्थूलोच्चयः—पुं॰—स्थूल-उच्चयः—-—पर्वत खंड जो गिर कर ऊबड़ खाबड़ टीले जैसा बन गया हो
  • स्थूलोच्चयः—पुं॰—स्थूल-उच्चयः—-—अपूर्णता, कमी, त्रुटि
  • स्थूलोच्चयः—पुं॰—स्थूल-उच्चयः—-—हाथी की मध्यम गति
  • स्थूलोच्चयः—पुं॰—स्थूल-उच्चयः—-—मुंहासा
  • स्थूलोच्चयः—पुं॰—स्थूल-उच्चयः—-—हाथी के दांत का रंध्र
  • स्थूलकाय—वि॰—स्थूल-काय—-—मोटा, मांसल
  • स्थूलक्षेडः—पुं॰—स्थूल-क्षेडः—-—बाण
  • स्थूलक्ष्वेडः—पुं॰—स्थूल-क्ष्वेडः—-—बाण
  • स्थूलचापः—पुं॰—स्थूल-चापः—-—धुनकी
  • स्थूलतालः—पुं॰—स्थूल-तालः—-—हिंताल
  • स्थूलधी—स्त्री॰—स्थूल-धी—-—मुर्ख, बुद्धू
  • स्थूलमति—वि॰—स्थूल-मति—-—मुर्ख, बुद्धू
  • स्थूलनालः—पुं॰—स्थूल-नालः—-—लम्बी जाति का सरकंडा
  • स्थूलनास—वि॰—स्थूल-नास—-—मोटी नाक वाला
  • स्थूलनासिक—वि॰—स्थूल-नासिक—-—मोटी नाक वाला
  • स्थूलनासः—पुं॰—स्थूल-नासः—-—सूअर, वराह
  • स्थूलनासिकः—पुं॰—स्थूल-नासिकः—-—सूअर, वराह
  • स्थूलपटः—पुं॰—स्थूल-पटः—-—मोटा कपड़ा
  • स्थूलपटम्—नपुं॰—स्थूल-पटम्—-—मोटा कपड़ा
  • स्थूलपट्टः—पुं॰—स्थूल-पट्टः—-—कपास
  • स्थूलपाद—वि॰—स्थूल-पाद—-—मोटे पैर वाला, सूजे पैर वाला
  • स्थूलपादः—पुं॰—स्थूल-पादः—-—हाथी
  • स्थूलपादः—पुं॰—स्थूल-पादः—-—श्लीपद रोग से ग्रस्त व्यक्ति
  • स्थूलफलः—पुं॰—स्थूल-फलः—-—सेमल का वृक्ष
  • स्थूलमानम्—नपुं॰—स्थूल-मानम्—-—मोटा हिसाब, मोटा अन्दाज
  • स्थूललक्ष—वि॰—स्थूल-लक्ष—-—दानशील, वदान्य, उदार
  • स्थूललक्ष—वि॰—स्थूल-लक्ष—-—सम्झदार, विद्वान
  • स्थूललक्ष—वि॰—स्थूल-लक्ष—-—लाभ-हानि दोनों का ध्यान रखने वाला
  • स्थूललक्ष्य—वि॰—स्थूल-लक्ष्य—-—दानशील, वदान्य, उदार
  • स्थूललक्ष्य—वि॰—स्थूल-लक्ष्य—-—सम्झदार, विद्वान
  • स्थूललक्ष्य—वि॰—स्थूल-लक्ष्य—-—लाभ-हानि दोनों का ध्यान रखने वाला
  • स्थूलशङ्खा—स्त्री॰—स्थूल-शङ्खा—-—बड़ी योनि वाली स्त्री
  • स्थूलशरीरम्—नपुं॰—स्थूल-शरीरम्—-—भौतिक और नश्वर शरीर
  • स्थूलशाटकः—पुं॰—स्थूल-शाटकः—-—मोटा कपड़ा
  • स्थूलशाटिः—पुं॰—स्थूल-शाटिः—-—मोटा कपड़ा
  • स्थूलशीर्षका—स्त्री॰—स्थूल-शीर्षका—-—क्षुद्र पिपीलिका, छोटी चिऊंटी जिसका सिर शरीर के अनुपात से बड़ा हो
  • स्थूलषट्पदः—पुं॰—स्थूल-षट्पदः—-—भौंरा
  • स्थूलषट्पदः—पुं॰—स्थूल-षट्पदः—-—भिड़
  • स्थूलस्कन्धः—पुं॰—स्थूल-स्कन्धः—-—लकुच वृक्ष, बड़हल का पेड़
  • स्थूलहस्तम्—नपुं॰—स्थूल-हस्तम्—-—हाथी की सूँड़
  • स्थूलक—वि॰—-—स्थूल + कन्—विस्तृत, बड़ा, विशाल, महान
  • स्थूलकः—पुं॰—-—स्थूल + कन्—एक प्रकार की घास या नरकुल
  • स्थूलता—स्त्री॰—-—स्थूल् + तल् + टाप्—विस्तार, विशालता, बड़प्पन
  • स्थूलता—स्त्री॰—-—स्थूल् + तल् + टाप्—सुस्ती, जडता
  • स्थूलत्वम्—नपुं॰—-—स्थूल् + त्व—विस्तार, विशालता, बड़प्पन
  • स्थूलत्वम्—नपुं॰—-—स्थूल् + त्व—सुस्ती, जडता
  • स्थूलयति—ना॰ धा॰ पर॰ <स्थूलयति>—-—-—बड़ा होना, हुष्ट पुष्ट होना, मोटा होना
  • स्थूलिन्—पुं॰—-—स्थूल + इनि—ऊँट
  • स्थेमन्—पुं॰—-—स्था + इमनिच्—दृढ़ता, स्थिरता, अचलता, अडिगपन
  • स्थेय—वि॰—-—स्था + यत्—जमाये जाने योग्य, रखे जाने योग्य, निश्चित या निर्धारित किये जाने योग्य
  • स्थेयः—पुं॰—-—स्था + यत्—झगड़े का फैसला करने के लिए छांटा गया व्यक्ति विवाचक, पंच, निर्णायक
  • स्थेयः—पुं॰—-—स्था + यत्—पुरोहित
  • स्थेयस्—वि॰—-—स्थिर + ईयसुन्, स्थादेशः म॰ अ॰ ‘स्थिर’ की—दृढ़तर, अपेक्षाकृत बलवान्
  • स्थेष्ठ—वि॰—-—स्थिर + इष्ठन्, स्थादेशः, उ॰ अ॰ ‘स्थिर की’—अत्यन्त दृढ़, बलबत्तर
  • स्थैर्यम्—नपुं॰—-—स्थिर + ष्यञ्—दृढ़ता, स्थिरता, अचलता, निश्चलता
  • स्थैर्यम्—नपुं॰—-—स्थिर + ष्यञ्—निरन्तरता
  • स्थैर्यम्—नपुं॰—-—स्थिर + ष्यञ्—मन की दृढ़ता, संकल्प, स्थायित्व
  • स्थैर्यम्—नपुं॰—-—स्थिर + ष्यञ्—सहनशीलता
  • स्थैर्यम्—नपुं॰—-—स्थिर + ष्यञ्—कड़ापन, ठोसपना
  • स्थौणेयः—पुं॰—-—स्थूणा + ढक्, ढकञ् वा—एक प्रकार का गंधद्रव्य
  • स्थौणेयकः—पुं॰—-—स्थूणा + ढक्, ढकञ् वा—एक प्रकार का गंधद्रव्य
  • स्थौरम्—नपुं॰—-—स्थूर + अण्—दृढ़ता, सामर्थ्य, शक्ति
  • स्थौरम्—नपुं॰—-—स्थूर + अण्—गधे या घोड़े पर लादने का पूरा बोझ
  • स्थौरिन्—नपुं॰—-—स्थौर + इनि—पीठ पर बोझा ढोने वाला घोड़ा, लद्दू घोड़ा
  • स्थौरिन्—नपुं॰—-—स्थौर + इनि—मजबूत घोड़ा
  • स्थौल्यम्—नपुं॰—-—स्थूल + ष्यञ्—बड़प्पन, विशालता, हृष्टपुष्टता
  • स्नपनम्—नपुं॰—-—अना + णिच् + ल्युट्, पुक्—छिड़कना, नहलाना
  • स्नपनम्—नपुं॰—-—अना + णिच् + ल्युट्, पुक्—स्नान करना, पानी में डुबकी लगाना
  • स्नवः—पुं॰—-—स्नु + अप्—चूना, रिसना, टपकना
  • स्नस्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <स्नसति> <स्नस्यति>—-—-—बसना
  • स्नस्—भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <स्नसति> <स्नस्यति>—-—-—उगलना, परित्याग करना
  • स्ना—अदा॰ पर॰ <स्नाति> <स्नात>—-—-—स्नान करना, नहाना, पानी में डुबकी लगाना
  • स्ना—अदा॰ पर॰ <स्नाति> <स्नात>—-—-—गुरुकुल छोड़ते समय स्नान करने का संस्कार का अनुष्ठान करना
  • स्ना—अदा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्नापयति> स्नापयते> <स्नपयति> <स्नपयते>—-—-—नहलाना, गीला करना, तर करना, छिड़कना
  • स्ना—अदा॰ पर॰, इच्छा॰ <सिस्नासति>—-—-—स्नान करने की इच्छा करना
  • अपस्ना—अदा॰ पर॰—अप-स्ना—-—मृत्यु के कारण शोक मनाने के पश्चात स्नान करना
  • निस्ना—अदा॰ पर॰—नि-स्ना—-—गहरी डुबकी लगाना अर्थात पारंगत होना
  • स्नातकः—पुं॰—-—स्ना + क्त + क—ब्रह्मचर्याश्रम में अध्य्यन समाप्त कर अनुष्ठेय स्नान की विधि पूरा करने वाला ब्राह्मण
  • स्नातकः—पुं॰—-—स्ना + क्त + क—वह ब्राह्मण जो वेदाधय्यन समाप्त कर अभी गुरुकुल से लौटा है और गृहस्थाश्रम में दीक्षित हुआ है
  • स्नातकः—पुं॰—-—स्ना + क्त + क—वह ब्राह्मण जो किसी धार्मिक विधि को पूरा करने के लिए भिक्षु बना हो
  • स्नातकः—पुं॰—-—स्ना + क्त + क—पहले तीन वर्णों का कोई पुरुष जो गृहस्थ धर्म में दीक्षित हो चुका हैं
  • स्नानम्—नपुं॰—-—स्ना भावे ल्युट्—धिना, मार्जन करना, पानी में डुबकी लगाना
  • स्नानम्—नपुं॰—-—स्ना भावे ल्युट्—स्नान द्वारा शुद्धि, कोई धार्मिक या सांस्कारिक मार्जन
  • स्नानम्—नपुं॰—-—स्ना भावे ल्युट्—मूर्ति का स्नान कराना
  • स्नानम्—नपुं॰—-—स्ना भावे ल्युट्— कोई वस्तु जो स्नान या मार्जन में काम आवें
  • स्नानागारम्—नपुं॰—स्नानम्-आगारम्—-—स्नानगृह
  • स्नानद्रोणी—स्त्री॰—स्नानम्-द्रोणी—-—स्नान करने की नांद
  • स्नानयात्रा—स्त्री॰—स्नानम्-यात्रा—-—ज्येष्ठपूर्णिमा को मानाया जाने वाला पर्व
  • स्नानवस्त्रम्—नपुं॰—स्नानम्-वस्त्रम्—-—स्नान का वस्त्र
  • स्नानविधिः—पुं॰—स्नानम्-विधिः—-—स्नान करने की क्रिया
  • स्नानविधिः—पुं॰—स्नानम्-विधिः—-—स्नान करने के उचित नियम या रीति
  • स्नानीय—वि॰—-—स्नानाय हितं छ—स्नान के लिए योग्य, मार्जन के लिए उपयुक्त, स्नान के समय पहना हुआ वस्त्र
  • स्नानीयम्—नपुं॰—-—स्नानाय हितं छ—जल या और कोई पदार्थ जो स्नान के उपयुक्त हो
  • स्नापकः—पुं॰—-—स्ना + णिच् + ण्वुल् पुक्—अपने स्वामी को स्नान कराने वाला या स्नान के लिए सामग्री लाने वाला नौकर
  • स्नापनम्—नपुं॰—-—स्ना + णिच् + ल्युट्, पुक्—स्नान कराना, या स्नानकर्त्ता की टहल करने वाला
  • स्नायुः—पुं॰—-—स्नाति शुध्यति दोषोऽनया - स्ना + उण्—कंडरा, पेशी, नस
  • स्नायुः—पुं॰—-—स्नाति शुध्यति दोषोऽनया - स्ना + उण्— धनुष की डोरी
  • स्नाय्वर्मन्—वि॰—स्नायुः-अर्मन्—-—आँखों का एक विशेष रोग
  • स्नायुकः—पुं॰—-—स्नायु + कन्—कंडरा, पेशी, नस
  • स्नायुकः—पुं॰—-—स्नायु + कन्— धनुष की डोरी
  • स्नावः—पुं॰—-—स्ना + वन्, वनिप् वा—कंडरा, पेशी
  • स्नावन्—पुं॰—-—स्ना + वन्, वनिप् वा—कंडरा, पेशी
  • स्निग्ध—वि॰—-—स्निह् + क्त—प्रिय, स्नेही, हितैषी, अनुरक्त, प्रेमी
  • स्निग्ध—वि॰—-—स्निह् + क्त—चिकना, तैलाक्त, मसृण, तेल में भीगा हुआ
  • स्निग्ध—वि॰—-—स्निह् + क्त—चिपचिपा, लसलसा, लेसदार, लिबलिबा
  • स्निग्ध—वि॰—-—स्निह् + क्त—प्रभासित, चमकीला, उज्जवल, चमकदार
  • स्निग्ध—वि॰—-—स्निह् + क्त—चिकना, स्निग्धकारी
  • स्निग्ध—वि॰—-—स्निह् + क्त—गीला, तर
  • स्निग्ध—वि॰—-—स्निह् + क्त—शान्त
  • स्निग्ध—वि॰—-—स्निह् + क्त—कृपालु, मृदु, सौम्य, मिलनसार
  • स्निग्ध—वि॰—-—स्निह् + क्त—प्रिय, रुचिकर, मोहक
  • स्निग्ध—वि॰—-—स्निह् + क्त—मोटा, सघन, सटा हुआ
  • स्निग्ध—वि॰—-—स्निह् + क्त—तुला हुआ, जमाया हुआ, टकटकी लगाये हुए
  • स्निग्धः—पुं॰—-—स्निह् + क्त—मित्र, स्नेही, मित्रसदृश, हितैषी
  • स्निग्धः—पुं॰—-—स्निह् + क्त—लाल एरण्ड का पौधा
  • स्निग्धः—पुं॰—-—स्निह् + क्त—एक प्रकार का चीड़ का वृक्ष
  • स्निग्धम्—नपुं॰—-—स्निह् + क्त—तेल
  • स्निग्धम्—नपुं॰—-—स्निह् + क्त—मोम
  • स्निग्धम्—नपुं॰—-—स्निह् + क्त—प्रकाश, आभा
  • स्निग्धम्—नपुं॰—-—स्निह् + क्त—मोटापन, खुरदुरापन
  • स्निग्धजनः—पुं॰—स्निग्ध-जनः—-—स्नेही व्यक्ति, हितैषी मित्र
  • स्निग्धतण्डुलः—पुं॰—स्निग्ध-तण्डुलः—-—एक प्रकार का चावल जो जल्दी उगता है
  • स्निग्धदृष्टिः—वि॰—स्निग्ध-दृष्टिः—-—टकटकी लगाकर देखने वाला
  • स्निग्धता—स्त्री॰—-—स्निग्ध + तल् + टप्—चिकनापन
  • स्निग्धता—स्त्री॰—-—स्निग्ध + तल् + टप्—सौम्यता
  • स्निग्धता—स्त्री॰—-—स्निग्ध + तल् + टप्—सुकुमारता, स्नेह, प्रेम
  • स्निग्धत्वम्—नपुं॰—-—स्निग्ध + तल् + त्व —चिकनापन
  • स्निग्धत्वम्—नपुं॰—-—स्निग्ध + तल् + त्व —सौम्यता
  • स्निग्धत्वम्—नपुं॰—-—स्निग्ध + तल् + त्व —सुकुमारता, स्नेह, प्रेम
  • स्निग्धा—स्त्री॰—-—स्निग्ध + टाप्—मज्जा, वसा
  • स्निह्—दिवा॰ पर॰ <स्निह्यति> <स्निग्ध>—-—-—स्नेह रखना, स्नेहानुभूति होना, प्रेम करना, प्रिय होना
  • स्निह्—दिवा॰ पर॰ <स्निह्यति> <स्निग्ध>—-—-—अनायास ही अनुरक्त होना
  • स्निह्—दिवा॰ पर॰ <स्निह्यति> <स्निग्ध>—-—-— किसी पर प्रसन्न होना, कृपालु होना
  • स्निह्—दिवा॰ पर॰ <स्निह्यति> <स्निग्ध>—-—-—चिपचिपा होना, लसलसा या लिबलिबा होना
  • स्निह्—दिवा॰ पर॰ <स्निह्यति> <स्निग्ध>—-—-—चिकना या सौम्य होना
  • स्निह्—दिवा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्नेहयति> <स्नेहयते>—-—-—चिकनी-चुपडी बातें बनाना, चिकनाना, चिकने पदार्थ से लेप करना, चिकना करना, तेल लगाना
  • स्निह्—दिवा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्नेहयति> <स्नेहयते>—-—-—प्रेम कराना
  • स्निह्—दिवा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्नेहयति> <स्नेहयते>—-—-—विघटित करना, नष्ट करना, मार डालना
  • स्नु—अदा॰ पर॰ <स्नौति> <स्नुत>—-—-—टपकना, स्रवन करना, बू्ंद-बूंद गिरना, स्रवित होना, पड़ना, रिसना, चूना
  • स्नु—अदा॰ पर॰ <स्नौति> <स्नुत>—-—-—बहना, धार पड़ना
  • प्रस्नु—अदा॰ पर॰ —प्र-स्नु—-—बह निकलना, उडेल देना
  • स्नु—पुं॰, नपुं॰—-—स्ना + कु॰—पहाड़ का समतल भूखंड
  • स्नु—पुं॰, नपुं॰—-—स्ना + कु॰—चोटी, सतह
  • स्नु—स्त्री॰—-—स्नु + क्विप्—स्नायु, कण्डरा, पेशी
  • स्नु—वि॰—-—स्नु + क्त—रिसा हुआ, बूंद-बूंद कर गिरा हुआ, बहा हुआ आदि
  • स्नुषा—स्त्री॰—-—स्नु + सक् + टाप्—पुत्रवधू
  • स्नुह्—दिवा॰ पर॰ <स्नुह्यति> <स्नुग्ध> <स्नूढ>—-—-—उलटी करना, कै करना
  • स्नेहः—पुं॰—-—स्निह् + घञ्—अनुराग, प्रेम, कृपालुता, सुकुमारता
  • स्नेहः—पुं॰—-—स्निह् + घञ्—तैलाक्तता, मसृणता, चिकनापन, चिकनाहट
  • स्नेहः—पुं॰—-—स्निह् + घञ्—नमी
  • स्नेहः—पुं॰—-—स्निह् + घञ्—चर्बी, वसा, कोई भी चिकना पदार्थ
  • स्नेहः—पुं॰—-—स्निह् + घञ्—तेल
  • स्नेहः—पुं॰—-—स्निह् + घञ्—शरीरगत कोई भी तरल पदार्थ जैसे कि वीर्य
  • स्नेहाक्त—वि॰—स्नेहः-अक्त—-—तेल में भिगोया हुआ, चिकनाया हुआ, चर्बी में लिप्त
  • स्नेहानुवृत्तिः—स्त्री॰—स्नेहः-अनुवृत्तिः—-—स्निग्ध या मित्रों जैसा मेल-जोल
  • स्नेहाशः—पुं॰—स्नेहः-अशः—-—दीपक
  • स्नेहच्छेदः—पुं॰—स्नेहः-छेदः—-—मित्रता का टूट जाना
  • स्नेहभङ्गः—पुं॰—स्नेहः-भङ्गः—-—मित्रता का टूट जाना
  • स्नेहपूर्वम्—अव्य॰—स्नेहः-पूर्वम्—-—अनुराग पूर्वक
  • स्नेहप्रवृत्तिः—स्त्री॰—स्नेहः-प्रवृत्तिः—-—प्रेम प्रवाह
  • स्नेहप्रिय—वि॰—स्नेहः-प्रिय—-—जिसे तेल अधिक प्यारा हो
  • स्नेहप्रियः—वि॰—स्नेहः-प्रिय—-—दीपक
  • स्नेहभूः—पुं॰—स्नेहः-भूः—-—श्लेष्मा
  • स्नेहरङ्गः—पुं॰—स्नेहः-रङ्गः—-—तिल
  • स्नेहवस्तिः—स्त्री॰—स्नेहः-वस्तिः—-—तेल की सुई लगाना, तेल का अनीमा करना, गुदा के मार्ग से पिचकारी द्वारा तेल डालना
  • स्नेहविमर्दित—वि॰—स्नेहः-विमर्दित—-—तेल से मालिश किया गया
  • स्नेहव्यक्तिः—स्त्री॰—स्नेहः-व्यक्तिः—-—प्रेम का प्रकटीकरण, मित्रता का प्रदर्शन
  • स्नेहन्—पुं॰—-—स्निह् + कनिन, नि॰—मित्र
  • स्नेहन्—पुं॰—-—स्निह् + कनिन, नि॰—चन्द्रमा
  • स्नेहन्—पुं॰—-—स्निह् + कनिन, नि॰—एक प्रकार का रोग
  • स्नेहन—वि॰—-—स्निह् + णिच् + ल्युट्—मालिश करने वाला, चिकनाने वाला
  • स्नेहन—वि॰—-—स्निह् + णिच् + ल्युट्—नष्ट करने वाला
  • स्नेहनम्—नपुं॰—-—स्निह् + णिच् + ल्युट्—तेल मालिश, चिकनाना, तेल या उबटन मलना
  • स्नेहनम्—नपुं॰—-—स्निह् + णिच् + ल्युट्—चिकनाहट
  • स्नेहनम्—नपुं॰—-—स्निह् + णिच् + ल्युट्—उबटन, स्निग्धकारी
  • स्नेहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्निह् + णिच् + क्त—प्रेमपात्र
  • स्नेहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्निह् + णिच् + क्त—कॄपालु, स्नेही
  • स्नेहित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्निह् + णिच् + क्त—लिपा हुआ, चिकनाया हुआ
  • स्नेहितः—पुं॰—-—-—मित्र, प्यारा
  • स्नेहिन्—वि॰—-—स्निह् + णिनि—अनुरक्त, स्नेह करने वाला, मित्र सदृश
  • स्नेहिन्—वि॰—-—स्निह् + णिनि—तैलाक्त, चिकना, चर्बीयुक्त
  • स्नेहिन्—पुं॰—-—स्निह् + णिनि—मित्र
  • स्नेहिन्—पुं॰—-—स्निह् + णिनि—मालिश करने वाला, लेप करने वाला
  • स्नेहिन्—पुं॰—-—स्निह् + णिनि—चित्रकार
  • स्नेहुः—पुं॰—-—स्निह् + उन्—चन्द्रमा
  • स्नेहुः—पुं॰—-—स्निह् + उन्—एक प्रकार का रोग
  • स्नै—भ्वा॰ पर॰ <स्नायति>—-—-—पट्टी बांधना, लपेटना, सुडौल करना, आवृत्त करना, परिवेष्टित करना
  • स्नैग्ध्यम्—नपुं॰—-—स्निग्ध् + ष्यञ्—चिकनाहट, स्निग्धता, फिसलन, चिक्कणता
  • स्नैग्ध्यम्—नपुं॰—-—स्निग्ध् + ष्यञ्—सुकुमारता, प्रियता
  • स्नैग्ध्यम्—नपुं॰—-—स्निग्ध् + ष्यञ्—चिकनापन, मृदुता
  • स्पन्द्—भ्वा॰ आ॰ <स्पन्दते> <स्पन्दित>—-—-—धड़कना, धकधक करना
  • स्पन्द्—भ्वा॰ आ॰ <स्पन्दते> <स्पन्दित>—-—-—हिलना, कांपना, ठिठुरना
  • स्पन्द्—भ्वा॰ आ॰ <स्पन्दते> <स्पन्दित>—-—-— जाना, गतिशील होना
  • परिस्पन्द्—भ्वा॰ आ॰—परि-स्पन्द्—-—धड़कना, काँपना
  • विस्पन्द्—भ्वा॰ आ॰—वि-स्पन्द्—-—इधर-उधर घूमना, संघर्ष करना
  • स्पन्दः—पुं॰—-—स्पन्द + घञ्—धड़कना, धकधक,
  • स्पन्दः—पुं॰—-—स्पन्द + घञ्—कंपकंपी, थरथराहट, गति
  • स्पन्दनम्—नपुं॰—-—स्पन्द + ल्युट्—धड़कना, नाड़ी का फड़कना, थरथराहट, कंपकंपी
  • स्पन्दनम्—नपुं॰—-—स्पन्द + ल्युट्—थरथरी, धड़कन
  • स्पन्दनम्—नपुं॰—-—स्पन्द + ल्युट्—अर्भक में जीव का स्फुरण
  • स्पन्दित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्पन्द + क्त—थरथरीयुक्त, ठिठुरा हुआ
  • स्पन्दित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्पन्द + क्त—गया हुआ
  • स्पन्दितम्—नपुं॰—-—स्पन्द + क्त—नाड़ी का स्फुरण, धड़कना, धकधक
  • स्पर्ध्—भ्वा॰ आ॰ <स्पर्धते> —-—-—स्पृह करना, होड़ लगाना, मुकाबला करना, प्रतिद्वन्द्विता करना, प्रतियोगिता करना
  • स्पर्ध्—भ्वा॰ आ॰ <स्पर्धते> —-—-—ललकारना, चुनौति देना, उपेक्षा करना
  • प्रतिस्पर्ध्—भ्वा॰ आ॰—प्रति-स्पर्ध्—-—चुनौति देना, ललकारना
  • विस्पर्ध्—भ्वा॰ आ॰—वि-स्पर्ध्—-—चुनौति देना, ललकारना
  • स्पर्धा—स्त्री॰—-—स्पर्ध् + अङ् + टाप्—प्रतियोगिता,प्रतिद्वन्द्विता, होड़
  • स्पर्धा—स्त्री॰—-—स्पर्ध् + अङ् + टाप्—ईर्ष्या, डाह
  • स्पर्धा—स्त्री॰—-—स्पर्ध् + अङ् + टाप्—चुनौति
  • स्पर्धा—स्त्री॰—-—स्पर्ध् + अङ् + टाप्—समानता
  • स्पर्धिन्—वि॰—-—स्पर्धा + इनि—प्रतिद्वन्द्विता करने वाला, होड़ करने वाला, प्रतियोगिता करने वाला, प्रतिस्पर्धाशील
  • स्पर्धिन्—वि॰—-—स्पर्धा + इनि—प्रतिस्पर्धी, ईर्ष्यालु
  • स्पर्धिन्—वि॰—-—स्पर्धा + इनि—घमंडी
  • स्पर्धिन्—पुं॰—-—स्पर्धा + इनि—प्रतियोगिता, समकक्ष व्यक्ति
  • स्पर्श्—चुरा॰ आ॰ <स्पर्शयते>—-—-—लेना, पकड़ना, छूना
  • स्पर्श्—चुरा॰ आ॰ <स्पर्शयते>—-—-—मिलना, संयुक्त होना
  • स्पर्श्—चुरा॰ आ॰ <स्पर्शयते>—-—-—आलिंगन करना, आश्लेषण
  • स्पर्शः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—छूना, संपर्क
  • स्पर्शः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—संयोग
  • स्पर्शः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—संघर्ष, मुठभेड़
  • स्पर्शः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—भावना, संवेदना, छूने से होने वाला ज्ञान
  • स्पर्शः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—त्वचा का विषय, स्पर्शयोग्यता, स्पर्शगुण
  • स्पर्शः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—प्रभाव, रोग, बीमारी का दौरा
  • स्पर्शः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—रोग, व्याधि, विकृति, आदि या मनोव्यथा
  • स्पर्शः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—पाँचों वर्गों में कोई सा व्यंजन
  • स्पर्शः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—उपहार, दान, भेंट
  • स्पर्शः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—हवा, वायु
  • स्पर्शः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—आकाश
  • स्पर्शः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—एक रतिबंध
  • स्पर्शा—स्त्री॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + धञ्—कुलटा, पुंश्चली
  • स्पर्शाज्ञ—वि॰—स्पर्श-अज्ञ—-—स्पर्शज्ञान से रहित, संवेदनशून्य
  • स्पर्शेन्द्रियम्—नपुं॰—स्पर्श-इन्द्रियम्—-—स्पर्श का ज्ञान, या स्पर्शज्ञान प्राप्त करने वाली इन्द्रिय
  • स्पर्शोदय—वि॰—स्पर्श-उदय—-—जिसके पीछे व्यंजन वर्ण हो
  • स्पर्शोपलः—पुं॰—स्पर्श-उपलः—-—पारस पत्थर
  • स्पर्शमणिः—पुं॰—स्पर्श-मणिः—-—पारस पत्थर
  • स्पर्शतन्मात्रम्—नपुं॰—स्पर्श-तन्मात्रम्—-—वह तत्व जिसको छूने से ज्ञान हो
  • स्पर्शलज्जा—स्त्री॰—स्पर्श-लज्जा—-—छुईमुई का पौधा
  • स्पर्शवेद्य—वि॰—स्पर्श-वेद्य—-—स्पर्श के द्वारा जिसका ज्ञान हो
  • स्पर्शसंचारिन्—वि॰—स्पर्श-संचारिन्—-—संक्रामक, छूत का
  • स्पर्शस्नानम्—नपुं॰—स्पर्श-स्नानम्—-—सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण आरम्भ होने पर स्नान
  • स्पर्शस्पन्दः—पुं॰—स्पर्श-स्पन्दः—-—मेंढक
  • स्पर्शस्यन्दः—पुं॰—स्पर्श-स्यन्दः—-—मेंढक
  • स्पर्शन—वि॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + ल्युट्—छूने वाला, हाथ लगाने वाला
  • स्पर्शन—वि॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + ल्युट्—ग्रस्त करने वाला, प्रभाव डालने वाला
  • स्पर्शनः—पुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + ल्युट्—हवा, वायु
  • स्पर्शनम्—नपुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + ल्युट्—छूना, स्पर्श, संपर्क
  • स्पर्शनम्—नपुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + ल्युट्—संवेदना, भावना
  • स्पर्शनम्—नपुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + ल्युट्—स्पर्शेन्द्रिय या स्पर्शजन्य ज्ञान
  • स्पर्शनम्—नपुं॰—-—स्पर्श् (स्पृश् वा) + ल्युट्—भेंट, दान
  • स्पर्शनकम्—नपुं॰—-—स्पर्शन + कन्—सांख्यदर्शन में प्रयुक्त ‘त्वचा’ का पर्यायवाची शब्द
  • स्पर्शवत्—वि॰—-—स्पर्श + मतुप्—स्पर्श किये जाने योग्य
  • स्पर्शवत्—वि॰—-—स्पर्श + मतुप्—मृदु, छूने में रुचिकर या कोमल
  • स्पर्ष्—भ्वा॰ आ॰ <स्पर्षते>—-—-—गीला या तर होना
  • स्पर्ष्टृ—पुं॰—-—स्पर्श् + तृच्—मनोव्यथा, शरीर में विकार, रोग
  • स्पश्—भ्वा॰ उभ॰ <स्पशति>—-—-—अवरुद्ध करना
  • स्पश्—भ्वा॰ उभ॰ <स्पशति>—-—-—दायित्व ग्रहण करना, संपन्न करना
  • स्पश्—भ्वा॰ उभ॰ <स्पशति>—-—-—नत्थी करना
  • स्पश्—भ्वा॰ उभ॰ <स्पशति>—-—-—छूना, देखना, निहारना, स्पष्ट दृष्टिगोचर होना, जासूसी करना, भांपना, भेद पाना
  • स्पशः—पुं॰—-—स्पश् + अच्—भेदिया, गुप्तचर
  • स्पशः—पुं॰—-—स्पश् + अच्—लड़ाई, संग्राम, युद्ध
  • स्पशः—पुं॰—-—स्पश् + अच्—जंगली जानवरों से लड़ने वाला, या ऐसी लड़ाई
  • स्पष्ट—वि॰—-—स्पश् + क्त—जो साफ साफ देखा जा सके, व्यक्त, साफ दृष्टिगोचर, साफ, सरल, प्रकट
  • स्पष्ट—वि॰—-—स्पश् + क्त—वास्तविक, सच्चा
  • स्पष्ट—वि॰—-—स्पश् + क्त—पूरा खिला हुआ, फूला हुआ
  • स्पष्ट—वि॰—-—स्पश् + क्त—साफ साफ देखने वाला
  • स्पष्टम्—अव्य॰—-—-—स्पष्ट रुप से, साफ तौर पर, साफ-साफ
  • स्पष्टम्—अव्य॰—-—-—खुल्लमखुल्ला, साहसपूर्वक
  • स्पष्टीकृ——-—-—साफ करना, प्रकट करना, व्याख्या खोल कर कहना
  • स्पष्टगर्भा—स्त्री॰—स्पष्टम्-गर्भा—-—वह स्त्री जिसके गर्भ के चिह्न साफ देख पडे
  • स्पष्टप्रतिपत्तिः—स्त्री॰—स्पष्टम्-प्रतिपत्तिः—-—स्पष्ट ज्ञान, शुद्ध प्रत्यक्ष ज्ञान
  • स्पष्टभाषिन्—वि॰—स्पष्टम्-भाषिन्—-—साफ साफ कहने वाला, मुँहफट, खरा, सरल
  • स्पष्टवक्तृ—वि॰—स्पष्टम्-वक्तृ—-—साफ साफ कहने वाला, मुँहफट, खरा, सरल
  • स्पृ—भ्वा॰ पर॰ <स्पृणोति>—-—-—मुक्त करना, उद्धार करना
  • स्पृ—भ्वा॰ पर॰ <स्पृणोति>—-—-—पुरस्कार देना, अनुदान देना, प्रदान करना
  • स्पृ—भ्वा॰ पर॰ <स्पृणोति>—-—-—रक्षा करना
  • स्पृ—भ्वा॰ पर॰ <स्पृणोति>—-—-—जीवित रहना
  • स्पृक्का—स्त्री॰—-—स्पृश् + कक् पृषो॰ शस्य कः—एक जंगली पौधा
  • स्पृश्—तुदा॰ पर॰ <स्पृशति> <स्पृष्ट>—-—-—छूना
  • स्पृश्—तुदा॰ पर॰ <स्पृशति> <स्पृष्ट>—-—-—हाथ रखना, थपथपाना, छूना
  • स्पृश्—तुदा॰ पर॰ <स्पृशति> <स्पृष्ट>—-—-— जुड़ जाना, चिपक जाना, संपृक्त होना
  • स्पृश्—तुदा॰ पर॰ <स्पृशति> <स्पृष्ट>—-—-—पानी से धोना या छिड़काव करना
  • स्पृश्—तुदा॰ पर॰ <स्पृशति> <स्पृष्ट>—-—-— जाना, पहुँचना
  • स्पृश्—तुदा॰ पर॰ <स्पृशति> <स्पृष्ट>—-—-—प्राप्त करना, हासिल करना, विशेष स्थिति पर पहुँचना
  • स्पृश्—तुदा॰ पर॰ <स्पृशति> <स्पृष्ट>—-—-—कार्य में परिणत करना, प्रभावित करना, ग्रस्त करना, पसीजना, द्रवीभूत होना
  • स्पृश्—तुदा॰ पर॰ <स्पृशति> <स्पृष्ट>—-—-—संकेत करना, उल्लेख करना
  • स्पृश्—तुदा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्पर्शयति> <स्पर्शयते>—-—-—छुवाना
  • स्पृश्—तुदा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्पर्शयति> <स्पर्शयते>—-—-—देना, प्रस्तुत करना
  • अपस्पृश्—तुदा॰ पर॰—अप-स्पृश्—-—छूना
  • अपस्पृश्—तुदा॰ पर॰—अप-स्पृश्—-—शरीर पर पानी के छींटे देना या स्नान करना
  • अपस्पृश्—तुदा॰ पर॰—अप-स्पृश्—-—आचमन करना, पानी देना, कुल्ला करना
  • अपस्पृश्—तुदा॰ पर॰—अप-स्पृश्—-—स्नान करना
  • अभिस्पृश्—तुदा॰ पर॰—अभि-स्पृश्—-—छूना
  • उपस्पृश्—तुदा॰ पर॰—उप-स्पृश्—-—छूना
  • उपस्पृश्—तुदा॰ पर॰—उप-स्पृश्—-—शरीर पर पानी के छींटे देना या स्नान करना
  • उपस्पृश्—तुदा॰ पर॰—उप-स्पृश्—-—आचमन करना, पानी देना, कुल्ला करना
  • उपस्पृश्—तुदा॰ पर॰—उप-स्पृश्—-—स्नान करना
  • परिस्पृश्—तुदा॰ पर॰—परि-स्पृश्—-—छूना
  • संस्पृश्—तुदा॰ पर॰—सम्-स्पृश्—-—छूना
  • संस्पृश्—तुदा॰ पर॰—सम्-स्पृश्—-—पानी से छिड़काव करना
  • संस्पृश्—तुदा॰ पर॰—सम्-स्पृश्—-—सम्पर्क स्थापित करना
  • स्पृश्—वि॰—-—स्पृश् + क्विप्—जो छूता है, छूने वाला, ग्रस्त करने वाला, वेधने वाला
  • स्पृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्पृश् + क्त—छूआ हुआ, हाथ लगाया हुआ
  • स्पृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्पृश् + क्त—सम्पर्क में आया हुआ, स्पर्शी
  • स्पृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्पृश् + क्त—पहुँचने वाला, उपयोग करने वाला, विस्तार पाने वाला
  • स्पृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्पृश् + क्त—ग्रस्त पकड़ा हुआ
  • स्पृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्पृश् + क्त—गन्दा, मलिन
  • स्पृष्ट—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्पृश् + क्त—जिह्वा के पूर्ण स्पर्श से बना हुआ
  • स्पृष्टिः—स्त्री॰—-—स्पृश् + क्तिन्—छूना, सम्पर्क
  • स्पृष्टिका—स्त्री॰—-—स्पृश् + कन् + टाप्—छूना, सम्पर्क
  • स्पृह्—चुरा॰ उभ॰ <स्पृहयति> <स्पृहयते>—-—-—कामना करना, लालायित होना, इच्छा करना, उत्सुक होना, चाहना
  • स्पृहणम्—नपुं॰—-—स्पृह् + ल्युट्—इच्छा या कामना करने की क्रिया, लालायित होना
  • स्पृहणीय—वि॰—-—स्पृह् + अनीयर्—चाहने के योग्य, अभिलषणीय, स्पृहा के योग्य, वांछनीय
  • स्पृहयालु—वि॰—-—स्पृह् + णिच् + आलुच्—इच्छा करने वाला, लालायित, उत्सुक, उत्कण्ठित
  • स्पृहा—स्त्री॰—-—स्पृह् + अच् + टाप्—इच्छा, उत्सुकता, प्रबल कामना, लालसा, ईर्ष्या, अभिलाषा
  • स्पृह्य—वि॰—-—स्पृह् + णिच् + यत्—वांछनीय, स्पर्धा के योग्य
  • स्पृह्यः—पुं॰—-—स्पृह् + णिच् + यत्—बिजौरा नीबू
  • स्पॄ—क्रया॰ पर॰ <स्पृणाति>—-—-—आघात करना, मार डालना
  • स्प्रष्टृ—पुं॰—-—-—मनोव्यथा, शरीर में विकार, रोग
  • स्फट्—भ्वा॰ पर॰ <स्फटति>—-—-—फट पड़ना, फूलना
  • स्फटः—पुं॰—-—स्फट + अच्—साँप का फैलाया हुआ फण
  • स्फटः—पुं॰—-—स्फट + अच्—फिटकरी
  • स्फटिकः—पुं॰—-—स्फटि + कै + क—बिलौर, काचमणि
  • स्फटिकाचलः—पुं॰—स्फटिकः-अचलः—-—मेरु पर्वत
  • स्फटिकाद्रिः—पुं॰—स्फटिकः-अद्रिः—-—कैलाश पर्वत
  • स्फटिकभिद्—पुं॰—स्फटिकः-भिद्—-—कपूर
  • स्फटिकाश्मन्—वि॰—स्फटिकः-अश्मन्—-—बिल्लौर पत्थर
  • स्फटिकात्मन्—वि॰—स्फटिकः-आत्मन्—-—बिल्लौर पत्थर
  • स्फटिकमणि—पुं॰—स्फटिकः-मणि—-—बिल्लौर पत्थर
  • स्फटिकशिला—स्त्री॰—स्फटिकः-शिला—-—बिल्लौर पत्थर
  • स्फटिकारिः—स्त्री॰—-—-—फिटकिरी
  • स्फटिकारिका—स्त्री॰—-—-—फिटकिरी
  • स्फटिकी—स्त्री॰—-—फटिक + ङीप्—फिटकिरी
  • स्फण्ट्—भ्वा॰ पर॰ <स्फण्टति>—-—-—फूट पड़ना, खिलना, फूलना
  • स्फण्ट्—चुरा॰ उभ॰ <स्फण्टयति> <स्फण्टयते>—-—-—मखौल करना, मजाक करना, हंसी उड़ाना
  • स्फर्—तुदा॰ पर॰ <स्फरति> <स्फरित>—-—-—थरथराना, फरकना
  • स्फर्—तुदा॰ पर॰ <स्फरति> <स्फरित>—-—-—हिलना, कांपना, लरजना, थरथराना
  • स्फर्—तुदा॰ पर॰ <स्फरति> <स्फरित>—-—-—खसोटना, संघर्ष करना, विक्षुब्ध होना
  • स्फर्—तुदा॰ पर॰ <स्फरति> <स्फरित>—-—-—कूच करना, फेंकना, आगे उछालना
  • स्फर्—तुदा॰ पर॰ <स्फरति> <स्फरित>—-—-—पीछे की ओर उछालना, पलट कर आना
  • स्फर्—तुदा॰ पर॰ <स्फरति> <स्फरित>—-—-—उछालना, फूट निकलना, उद्गत होना, उठना
  • स्फर्—तुदा॰ पर॰ <स्फरति> <स्फरित>—-—-—दृष्टिगोचर होने लगना, दिखाई देने लगना, प्रकट होने लगना, स्पष्ट दिखाई देना, प्रदर्शित होना
  • स्फर्—तुदा॰ पर॰ <स्फरति> <स्फरित>—-—-—दमक उठना, जगमगाना, चिंगारी उठना, चमकना, झलकना, टिमटिमाना
  • स्फर्—तुदा॰ पर॰ <स्फरति> <स्फरित>—-—-—चमकना, विशिष्टता दिखाना, प्रमुख होना
  • स्फर्—तुदा॰ पर॰ <स्फरति> <स्फरित>—-—-—अचानक मन में फुरना, अकस्मात स्मृति में आना
  • स्फर्—तुदा॰ पर॰ <स्फरति> <स्फरित>—-—-—थरथराते हुए चलना
  • स्फर्—तुदा॰ पर॰ <स्फरति> <स्फरित>—-—-—खरोंचना, नष्ट करना
  • स्फर्—तुदा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्फारयति> <स्फारयते> <स्फोरयति> <स्फोरयते>—-—-—थरथराना
  • स्फर्—प्रेर॰ <स्फारयति> <स्फारयते> <स्फोरयति> <स्फोरयते>—-—-—चमकाना, जगमगाना
  • स्फर्—प्रेर॰ <स्फारयति> <स्फारयते> <स्फोरयति> <स्फोरयते>—-—-—फेंकना, डाल देना
  • अपस्फर्—तुदा॰ पर॰—अप-स्फर्—-—चमक उठना
  • अभिस्फर्—तुदा॰ पर॰—अभि-स्फर्—-—फैसला, प्रकीर्ण होना, फूलना
  • अभिस्फर्—तुदा॰ पर॰—अभि-स्फर्—-—ज्ञात होना
  • परिस्फर्—तुदा॰ पर॰—परि-स्फर्—-—धड़कना, फरकना, धकधक करना
  • प्रस्फर्—तुदा॰ पर॰—प्र-स्फर्—-—फरकना, काँपना
  • प्रस्फर्—तुदा॰ पर॰—प्र-स्फर्—-—फैलना, प्रसृत होना
  • प्रस्फर्—तुदा॰ पर॰—प्र-स्फर्—-—दूर दूर तक फैलना, विख्यात होना
  • विस्फर्—तुदा॰ पर॰—वि-स्फर्—-—फरकना, काँपना
  • विस्फर्—तुदा॰ पर॰—वि-स्फर्—-—संघर्ष करना
  • विस्फर्—तुदा॰ पर॰—वि-स्फर्—-—चमकना, दमकना
  • विस्फर्—तुदा॰ पर॰—वि-स्फर्—-—तानना, टंकारना
  • स्फरणम्—नपुं॰—-—स्फर् + ल्युट्—कांपना, थरथराना, धड़कना
  • स्फल्—भ्वा॰ पर॰ <स्फलति>—-—-—कांपना, थरथराना, धड़कना, लरजना
  • स्फल्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰ <स्फालयति> <स्फालयते>—-—-—कंपा देना, हिला देना
  • आस्फल्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—आ-स्फल्—-—कंपाना, फड़फड़ाना, हिलाना, डुलाना
  • आस्फल्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—आ-स्फल्—-—आघात करना, प्रपीडित करना, छपछप करना
  • आस्फल्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—आ-स्फल्—-—आघात करना, अनुचित लाभ उठाना
  • आस्फल्—चुरा॰ उभ॰ या प्रेर॰—आ-स्फल्—-—टंकारना
  • स्फाटिक—वि॰—-—स्फटिक + अण्—विल्लौर पत्थर का
  • स्फाटिकम्—नपुं॰—-—स्फटिक + अण्—बिल्लौर पत्थर
  • स्फाटित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फट् + णिच् + क्त—फाड़ा हुआ, फटा हुआ, फूला हुआ, विदीर्ण किया हुआ
  • स्फातिः—स्त्री॰ —-—स्फाय् + क्तिन्, यलोपः—सूजन, शोथ
  • स्फातिः—स्त्री॰ —-—स्फाय् + क्तिन्, यलोपः—वृद्धि, बढ़ती
  • स्फाय्—भ्वा॰ आ॰ <स्फायते> <स्फीत>—-—-—मोटा होना, बड़ा होना, विस्तारयुक्त होना, विशाल होना
  • स्फाय्—भ्वा॰ आ॰ <स्फायते> <स्फीत>—-—-—सूजना, बढ़ना, फूलना
  • स्फाय्—प्रेर॰ <स्फावयति> <स्फावयते>—-—-—बढ़ाना, विकसित करना, विस्तारयुक्त करना, बड़ा करना
  • स्फार—वि॰—-—स्फाय् + रक्—विस्तृत, बड़ा, बढ़ा हुआ, फुलाया हुआ
  • स्फार—वि॰—-—स्फाय् + रक्—अधिक, पुस्कल
  • स्फार—वि॰—-—स्फाय् + रक्—ऊंचा
  • स्फारः—पुं॰—-—स्फाय् + रक्—सूजन, वृद्धि, विकास, विस्तार
  • स्फारः—पुं॰—-—स्फाय् + रक्—फुटकी
  • स्फारः—पुं॰—-—स्फाय् + रक्—उभार, गिल्टी
  • स्फारः—पुं॰—-—स्फाय् + रक्—धड़कना, थरथरीयुक्त स्पन्दन, धकधक
  • स्फारः—पुं॰—-—स्फाय् + रक्—टंकार
  • स्फारम्—नपुं॰—-—स्फाय् + रक्—प्रचुरता, आधिक्य, पुष्कलता
  • स्फारीभू—वि॰—-—-—सूज जाना, फूलना, फैलना, बढ़ना, वृद्धि होना
  • स्फारण—वि॰—-—स्फुर् + णिच् + ल्युट्, स्फारादेशः—थरथराहट, स्फुरण, कंपकंपी
  • स्फालः—पुं॰—-—स्फाल् + घञ्—थरथराहट, धकधक, धड़कन, कंपकंपी
  • स्फालनम्—नपुं॰—-—स्फाल् + ल्युट्—स्पन्दन, धकधक
  • स्फालनम्—नपुं॰—-—स्फाल् + ल्युट्—हिलाना, डुलाना
  • स्फालनम्—नपुं॰—-—स्फाल् + ल्युट्—रगड़ना, घिसना
  • स्फालनम्—नपुं॰—-—स्फाल् + ल्युट्—थपथपाना, सहलाना, धीरे-धीरे हाथ फेरना
  • स्फिच्—स्त्री॰—-—स्फाय् + डिच्—चूतड़, कूल्हा
  • स्फिट्—चुरा॰ उभ॰ <स्फेटयति> <स्फेटयते>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, मार डालना
  • स्फिट्—चुरा॰ उभ॰ <स्फेटयति> <स्फेटयते>—-—-—घृणा करना
  • स्फिट्—चुरा॰ उभ॰ <स्फेटयति> <स्फेटयते>—-—-—प्रेम करना
  • स्फिट्—चुरा॰ उभ॰ <स्फेटयति> <स्फेटयते>—-—-—ढकना
  • स्फिट्ट—चुरा॰ उभ॰ <स्फिट्टयति> <स्फिट्टयते>—-—-—चोट पहुँचाना आदि
  • स्फिर—वि॰—-—स्फाय् + किरच्, म॰ अ॰ <स्फेयस्> उ॰ अ॰ <स्फेष्ठ>—प्रचुर, प्रभूत, बहुत
  • स्फिर—वि॰—-—स्फाय् + किरच्, म॰ अ॰ <स्फेयस्> उ॰ अ॰ <स्फेष्ठ>—बहुत से असंख्य
  • स्फिर—वि॰—-—स्फाय् + किरच्, म॰ अ॰ <स्फेयस्> उ॰ अ॰ <स्फेष्ठ>—विस्तृत, आयत
  • स्फोत—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फाय् + क्त, स्फी आदेशः—सूजा हुआ, बढ़ हुआ
  • स्फोत—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फाय् + क्त, स्फी आदेशः—मोटा, पीन, बड़ा, विस्तृत, विशाल
  • स्फोत—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फाय् + क्त, स्फी आदेशः—बहुत से, असंख्य, अधिक, पर्याप्त, पुष्कल, प्रचुर
  • स्फोत—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फाय् + क्त, स्फी आदेशः—पवित्र
  • स्फोत—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फाय् + क्त, स्फी आदेशः—सफल, समृद्ध, फलता-फूलता
  • स्फोत—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फाय् + क्त, स्फी आदेशः—पैतृक रोग से ग्रस्त
  • स्फीतीकृत—वि॰—-—-—बड़ा करना, विस्तृत करना
  • स्फीतीः—स्त्री॰—-—स्फाय् + क्तिन्, स्फी आदेशः—वृद्धि, बढ़ती, विस्तार
  • स्फीतीः—स्त्री॰—-—स्फाय् + क्तिन्, स्फी आदेशः—प्राचुर्य, यथेष्टता, पुष्कलता
  • स्फीतीः—स्त्री॰—-—स्फाय् + क्तिन्, स्फी आदेशः—समृद्धि
  • स्फुट्—तुदा॰ पर॰, भ्वा॰ उभ॰ <स्फुटति> <स्फोटति> <स्फोटते> <स्फुटित>—-—-—फट जाना, अकस्मात् फूट जाना, टूट जाना, अचानक विदीर्ण होना, दरार पड़ना, भंग होना
  • स्फुट्—तुदा॰ पर॰, भ्वा॰ उभ॰ <स्फुटति> <स्फोटति> <स्फोटते> <स्फुटित>—-—-—फूलना, खिलना, फूल देना, कुसूमित होना
  • स्फुट्—तुदा॰ पर॰, भ्वा॰ उभ॰ <स्फुटति> <स्फोटति> <स्फोटते> <स्फुटित>—-—-—भाग जाना, छलांग लगाना, तितर-बितर करना
  • स्फुट्—तुदा॰ पर॰, भ्वा॰ उभ॰ <स्फुटति> <स्फोटति> <स्फोटते> <स्फुटित>—-—-—दृष्टिगोचर होना, निगाह में पड़ना, प्रकट होना, स्पष्ट होना
  • स्फुट्—चुरा॰ उभ॰ <स्फुटयति> <स्फुटयते>—-—-—फटना, तरेड़ आना, टूट जाना
  • स्फुट्—चुरा॰ उभ॰ <स्फुटयति> <स्फुटयते>—-—-—निगाह में पड़ना
  • स्फुट्—चुरा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्फोटयति> <स्फोटयते>—-—-—फटकर टुकड़े टुकड़े होना, खंडशः होना, खोलकर फाड़ना, तरेड़ डालना, बांटना
  • स्फुट्—चुरा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्फोटयति> <स्फोटयते>—-—-—प्रकट करना, बतलाना, स्पष्ट करना
  • स्फुट्—चुरा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्फोटयति> <स्फोटयते>—-—-—खोलना, भंड़ाफोड़ करना
  • स्फुट्—चुरा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्फोटयति> <स्फोटयते>—-—-—चोट पहुँचाना, नष्ट करना, मार डालना
  • स्फुट्—चुरा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्फोटयति> <स्फोटयते>—-—-—पछोड़ना
  • स्फुट—वि॰—-—स्फुट् + क—फट पड़ा, टूट कर टुकड़े हुआ, टूटा हुआ, खंडित
  • स्फुट—वि॰—-—स्फुट् + क—खिला हुआ, फुला हुआ, प्रफुल्लित
  • स्फुट—वि॰—-—स्फुट् + क—प्रकटीकृत, प्रदर्शित, स्पष्ट किया हुआ
  • स्फुट—वि॰—-—स्फुट् + क—साफ, स्पष्ट, साफ दिखाई देने वाला या व्यक्त
  • स्फुट—वि॰—-—स्फुट् + क—प्रत्यक्ष
  • स्फुट—वि॰—-—स्फुट् + क—श्वेत, उज्जवल, शुभ्र
  • स्फुट—वि॰—-—स्फुट् + क—सुविदित, प्रसिद्ध
  • स्फुट—वि॰—-—स्फुट् + क—प्रसारित, विकीर्ण
  • स्फुट—वि॰—-—स्फुट् + क—उच्च
  • स्फुट—वि॰—-—स्फुट् + क—दृश्यमान, सत्य
  • स्फुटम्—अव्य॰—-—-—स्पष्ट रुप से, विशदतया, साफ तौर पर, निश्चय ही, प्रकट रुप से
  • स्फुटार्थ—वि॰—स्फुटम्-अर्थ—-—बोधगम्य, स्पष्ट
  • स्फुटार्थ—वि॰—स्फुटम्-अर्थ—-—सार्थक
  • स्फुटतार—वि॰—स्फुटम्-तार—-—जिसमें तारे रुपी रत्न जुड़े हुए हों, उज्ज्वल
  • स्फुटफलम्—नपुं॰—स्फुटम्-फलम्—-—किसी त्रिकोण का यथार्थ क्षेत्रफल
  • स्फुटफलम्—नपुं॰—स्फुटम्-फलम्—-—किसी गणित का मूलफल
  • स्फुटसारः—पुं॰—स्फुटम्-सारः—-—किसी ग्रह या तारे का वास्तविक आयाम
  • स्फुटसूर्यगतिः—स्त्री॰—स्फुटम्-सूर्यगतिः—-—सूर्य की दृश्यमान या वास्तविक गति
  • स्फुटनम्—नपुं॰—-—स्फुट् + ल्युट्—तोड़ कर खोलना, फाड़ देना, फूट जाना, फट कर खुल कर जाना, प्रसार होना, खुलना, प्रफुल्लित होना
  • स्फुटिः —स्त्री॰—-—स्फुट् + इन्—पैरों की खाल का फट जाना, बवाई, पैरों का दुःखना या सूजन
  • स्फुटी—स्त्री॰—-—स्फुट् +ङीष्—पैरों की खाल का फट जाना, बवाई, पैरों का दुःखना या सूजन
  • स्फुटिका—स्त्री॰—-—स्फुटि + कन् + टाप्—टूटा हुआ छोटा टुकड़ा, खंड, फांक
  • स्फुटित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फुट् + क्त—फटा हुआ, टूट कर खुला हुआ, खंड-खंड हुआ, तरेड़ आया हुआ
  • स्फुटित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फुट् + क्त—मुकुलित, खिला हुआ, प्रफुल्लित
  • स्फुटित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फुट् + क्त—स्पष्ट किया गया, प्रकट किया गया, दिखलाया गया
  • स्फुटित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फुट् + क्त—फाड़ा हुआ, नष्ट
  • स्फुटित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फुट् + क्त—हंसी उड़ाया हुआ
  • स्फुटितचरण—वि॰—स्फुटित-चरण—-—जिसके पैर फैले हों, बाहर को निकले हुए चौड़े चपटे पैर वाला
  • स्फुट्ट्—चुरा॰ उभ॰ <स्फुट्टयति> <स्फुट्टयते>—-—-—तिरस्कार करना, अपमान करना, निरादर करना
  • स्फुड्—तुदा॰ पर॰ <स्फुडति>—-—-—ढकना
  • स्फुण्ट्—भ्वा॰ पर॰ <स्फुण्टति>—-—-—खोलना, फुलाना
  • स्फुण्ट्—चुरा॰ उभ॰ <स्फुण्टयति> <स्फुण्टयते>—-—-—मखौल करना, मजाक करना, उपहास करना
  • स्फुण्ड्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <स्फुण्डते> <स्फुण्डयति> <स्फुण्डयते>—-—-—
  • स्फुत्—अव्य॰—-—-—एक अनुकरण परक ध्वनि
  • स्फुत्करः—पुं॰—स्फुत्-करः—-—आग
  • स्फुत्कारः—पुं॰—स्फुत्-करः—-—‘स्फुत्’ ध्वनि, चटचटाने की आवाज
  • स्फुर्—तुदा॰ पर॰ <स्फुरति> <स्फुरित>—-—-—थरथराना, फरकना
  • स्फुर्—तुदा॰ पर॰ <स्फुरति> <स्फुरित>—-—-—हिलना, कांपना, लरजना, थरथराना
  • स्फुर्—तुदा॰ पर॰ <स्फुरति> <स्फुरित>—-—-—खसोटना, संघर्ष करना, विक्षुब्ध होना
  • स्फुर्—तुदा॰ पर॰ <स्फुरति> <स्फुरित>—-—-—कूच करना, फेंकना, आगे उछालना
  • स्फुर्—तुदा॰ पर॰ <स्फुरति> <स्फुरित>—-—-—पीछे की ओर उछालना, पलट कर आना
  • स्फुर्—तुदा॰ पर॰ <स्फुरति> <स्फुरित>—-—-—उछालना, फूट निकलना, उद्गत होना, उठना
  • स्फुर्—तुदा॰ पर॰ <स्फुरति> <स्फुरित>—-—-—दृष्टिगोचर होने लगना, दिखाई देने लगना, प्रकट होने लगना, स्पष्ट दिखाई देना, प्रदर्शित होना
  • स्फुर्—तुदा॰ पर॰ <स्फुरति> <स्फुरित>—-—-—दमक उठना, जगमगाना, चिंगारी उठना, चमकना, झलकना, टिमटिमाना
  • स्फुर्—तुदा॰ पर॰ <स्फुरति> <स्फुरित>—-—-—चमकना, विशिष्टता दिखाना, प्रमुख होना
  • स्फुर्—तुदा॰ पर॰ <स्फुरति> <स्फुरित>—-—-—अचानक मन में फुरना, अकस्मात स्मृति में आना
  • स्फुर्—तुदा॰ पर॰ <स्फुरति> <स्फुरित>—-—-—थरथराते हुए चलना
  • स्फुर्—तुदा॰ पर॰ <स्फुरति> <स्फुरित>—-—-—खरोंचना, नष्ट करना
  • स्फुर्—तुदा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्फारयति> <स्फारयते> <स्फोरयति> <स्फोरयते>—-—-—थरथराना
  • स्फुर्—प्रेर॰ <स्फारयति> <स्फारयते> <स्फोरयति> <स्फोरयते>—-—-—चमकाना, जगमगाना
  • स्फुर्—प्रेर॰ <स्फारयति> <स्फारयते> <स्फोरयति> <स्फोरयते>—-—-—फेंकना, डाल देना
  • अपस्फुर्—तुदा॰ पर॰—अप-स्फुर्—-—चमक उठना
  • अभिस्फुर्—तुदा॰ पर॰—अभि-स्फुर्—-—फैसला, प्रकीर्ण होना, फूलना
  • अभिस्फुर्—तुदा॰ पर॰—अभि-स्फुर्—-—ज्ञात होना
  • परिस्फुर्—तुदा॰ पर॰—परि-स्फुर्—-—धड़कना, फरकना, धकधक करना
  • प्रस्फुर्—तुदा॰ पर॰—प्र-स्फुर्—-—फरकना, काँपना
  • प्रस्फुर्—तुदा॰ पर॰—प्र-स्फुर्—-—फैलना, प्रसृत होना
  • प्रस्फुर्—तुदा॰ पर॰—प्र-स्फुर्—-—दूर दूर तक फैलना, विख्यात होना
  • विस्फुर्—तुदा॰ पर॰—वि-स्फुर्—-—फरकना, काँपना
  • विस्फुर्—तुदा॰ पर॰—वि-स्फुर्—-—संघर्ष करना
  • विस्फुर्—तुदा॰ पर॰—वि-स्फुर्—-—चमकना, दमकना
  • विस्फुर्—तुदा॰ पर॰—वि-स्फुर्—-—तानना, टंकारना
  • स्फुरः—पुं॰—-—स्फुर् भावे घञ्—धड़कना, थरथराना, फरकना
  • स्फुरः—पुं॰—-—स्फुर् भावे घञ्—सूजन
  • स्फुरः—पुं॰—-—स्फुर् भावे घञ्—ढाल
  • स्फुरणम्—नपुं॰—-—स्फुर + ल्युट्—धड़कना, थरथराना, फरकना
  • स्फुरणम्—नपुं॰—-—स्फुर + ल्युट्—शरीर के अंगों का फरकना
  • स्फुरणम्—नपुं॰—-—स्फुर + ल्युट्—फूट निकलना, उदित होना, दिखाई देने लगना
  • स्फुरणम्—नपुं॰—-—स्फुर + ल्युट्—चमकना, दमकना, जगमगाना, झलकना, टिमटिमाना
  • स्फुरणम्—नपुं॰—-—स्फुर + ल्युट्—मन में फुरना, अचानक स्मरण हो आना
  • स्फुरत्—वि॰—-—स्फुर् + शतृ—धड़कने वाला, चमकने वाला
  • स्फुरदुल्का—स्त्री॰—स्फुरत्-उल्का—-—उल्कापिंड, टूटा तारा
  • स्फुरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फुर् + क्त—कंपायमान, घड़कता हुआ
  • स्फुरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फुर् + क्त—हिला-डुला
  • स्फुरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फुर् + क्त—चमकीला, दमकने वाला
  • स्फुरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फुर् + क्त—अस्थिर
  • स्फुरित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्फुर् + क्त—सूजा हुआ
  • स्फुरितम्—नपुं॰—-—स्फुर् + क्त—धड़कना, फरकना, थरथराहट
  • स्फुरितम्—नपुं॰—-—स्फुर् + क्त—विक्षोभ या मन का संवेग
  • स्फुर्च्छ्—भ्वा॰ पर॰ <स्फूर्च्छति>—-—-—फैलना, विस्तृत होना
  • स्फुर्च्छ्—भ्वा॰ पर॰ <स्फूर्च्छति>—-—-—भूल जाना
  • स्फुर्ज्—भ्वा॰ पर॰ <स्फूर्जति>—-—-—गरजना, गरजनध्वनि, धमाधम होना, विस्फोट होना
  • स्फुर्ज्—भ्वा॰ पर॰ <स्फूर्जति>—-—-—दमकना, चमकना
  • स्फुर्ज्—भ्वा॰ पर॰ <स्फूर्जति>—-—-—फट पड़ना, फूट पड़ना
  • विस्फुर्ज्—भ्वा॰ पर॰—वि-स्फुर्ज्—-—दहाड़ना, गरजना
  • विस्फुर्ज्—भ्वा॰ पर॰—वि-स्फुर्ज्—-—गूंजना
  • विस्फुर्ज्—भ्वा॰ पर॰—वि-स्फुर्ज्—-—बढ़ना
  • विस्फुर्ज्—भ्वा॰ पर॰—वि-स्फुर्ज्—-—चमकना, प्रतीत होना
  • स्फुल्—तुदा॰ पर॰ <स्फुलति>—-—-—कांपना, धड़कना, धकधक करना
  • स्फुल्—तुदा॰ पर॰ <स्फुलति>—-—-—लपकना, अचानक आ पड़ना
  • स्फुल्—तुदा॰ पर॰ <स्फुलति>—-—-—स्वस्थचित्त होना
  • स्फुल्—तुदा॰ पर॰ <स्फुलति>—-—-—मार डालना, नष्ट करना
  • स्फुलम्—नपुं॰—-—स्फुल् + क—तंबू, खेमा
  • स्फुलनम्—नपुं॰—-—स्फुल् + ल्युट्—कांपना, थरथराना, फरकना
  • स्फुलिङ्ग—नपुं॰—-—स्फुल् + इङ्गक्—आग की चिंगारी
  • स्फुलिङ्गम्—नपुं॰—-—स्फुल् + इङ्गक्—आग की चिंगारी
  • स्फुलिङ्गा—स्त्री॰—-—स्फुल् + इङ्गक्—आग की चिंगारी
  • स्फूर्जः—पुं॰—-—स्फुर्ज् + घञ्—बादलों की गड़गड़ाहट
  • स्फूर्जः—पुं॰—-—स्फुर्ज् + घञ्—इन्द्र का वज्र
  • स्फूर्जः—पुं॰—-—स्फुर्ज् + घञ्—अकस्मात फूट निकलना या उदय होना
  • स्फूर्जः—पुं॰—-—स्फुर्ज् + घञ्—नायक-नायिका का प्रथम मिलन जिसके आरंभ में आनन्द और अन्त में भय की आशंका रहती है
  • स्फूर्जथुः—पुं॰—-—स्फुर्ज् + अथुच्—बिजली की गड़गड़ाहट, गरज
  • स्फूर्तिः—स्त्री॰—-—स्फुर् (स्फुर्च्छ) + क्तिन्—धड़कन, स्फुरण, थरथराहट
  • स्फूर्तिः—स्त्री॰—-—स्फुर् (स्फुर्च्छ) + क्तिन्—छलांग, चौकड़ी
  • स्फूर्तिः—स्त्री॰—-—स्फुर् (स्फुर्च्छ) + क्तिन्—कुसुमित, प्रफुल्लित
  • स्फूर्तिः—स्त्री॰—-—स्फुर् (स्फुर्च्छ) + क्तिन्—प्रकटीकरण, प्रदर्शन
  • स्फूर्तिः—स्त्री॰—-—स्फुर् (स्फुर्च्छ) + क्तिन्—मन में फुरना
  • स्फूर्तिः—स्त्री॰—-—स्फुर् (स्फुर्च्छ) + क्तिन्—काव्य की उद्भावना
  • स्फूर्तिमत्—वि॰—-—स्फूर्ति + मतुप्—धड़कने वाला, थरथराने वाला, विक्षुब्ध
  • स्फूर्तिमत्—वि॰—-—स्फूर्ति + मतुप्—कोमल हृदय
  • स्फेयस्—वि॰—-—अतिशयेन स्फिरः, ईयसुन्म् स्फादेशः ‘स्फिर की म॰ अ॰—प्रचुर तर, अपेक्षाकृत विस्तारयुक्त
  • स्फेष्ठ—वि॰—-—स्फिर + इष्ठन्, स्फादेशः, ‘स्फिर’ की उ॰ अ॰—प्रचुरतम, अत्यंत विस्तारयुक्त
  • स्फोटः—पुं॰—-—स्फुत् करणे घञ्—फूट निकलना, चटक कर खुलना, फट पड़ना
  • स्फोटः—पुं॰—-—स्फुत् करणे घञ्—भेद खुलना
  • स्फोटः—पुं॰—-—स्फुत् करणे घञ्—सूजन, फोड़ा, रसौली
  • स्फोटः—पुं॰—-—स्फुत् करणे घञ्—शब्द के सुनने पर मन में आने वाला भाव, शब्द सुनकर मन में उत्पन्न होने वाला विचार
  • स्फोटः—पुं॰—-—स्फुत् करणे घञ्—मीमांसकों द्वारा माना हुआ नित्य शब्द
  • स्फोटबीजकः—पुं॰—स्फोटः-बीजकः—-—भिलावाँ
  • स्फोटन—वि॰—-—स्फुट् + ल्युट्—फाड़कर अलग-अलग करना, प्रकट करना, भेद खोलना, स्पष्ट करना
  • स्फोटनः—पुं॰—-—स्फुट् + ल्युट्—परस्पर मिले हुए व्यजनों का अलग-अलग उच्चारण
  • स्फोटनम्—नपुं॰—-—स्फुट् + ल्युट्—फाड़ना, अचानक फट पड़ना, टुकड़े टुकड़े होना, चटकना
  • स्फोटनम्—नपुं॰—-—स्फुट् + ल्युट्—अनाज फटकना
  • स्फोटनम्—नपुं॰—-—स्फुट् + ल्युट्—अंगुलियों की ग्रन्थियां चटखाना, अंगुलियाँ चटकना
  • स्फोटनम्—नपुं॰—-—स्फुट् + ल्युट्—दो मिले हुए व्यंजनों का अलग करना
  • स्फोटिनी—नपुं॰—-—स्फोटन् + ङीप्—सूराख करने का औजार, जमीन का बरमा, बरमा
  • स्फोटा—स्त्री॰—-—स्फोट + टाप्—साँप का फैलाया हुआ फण
  • स्फोटिका—स्त्री॰—-—स्फुट् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—एक पक्षीविशेष
  • स्फोरणम्—नपुं॰—-—स्फुर + ल्युट्—धड़कना, थरथराना, फरकना
  • स्फोरणम्—नपुं॰—-—स्फुर + ल्युट्—शरीर के अंगों का फरकना
  • स्फोरणम्—नपुं॰—-—स्फुर + ल्युट्—फूट निकलना, उदित होना, दिखाई देने लगना
  • स्फोरणम्—नपुं॰—-—स्फुर + ल्युट्—चमकना, दमकना, जगमगाना, झलकना, टिमटिमाना
  • स्फोरणम्—नपुं॰—-—स्फुर + ल्युट्—मन में फुरना, अचानक स्मरण हो आना
  • स्फ्यम्—नपुं॰—-—स्फाय् + यत्, नि॰ साधुः—यज्ञों में प्रयुक्त होने वाला तलवार के आकार का एक उपकरण
  • स्फ्यवर्तनिः—स्त्री॰—स्फ्यम्-वर्तनिः—-—स्फ्य नामक उपकरण द्वारा बनाया गया चिह्न
  • स्बृ—भ्वा॰ पर॰ —-—-—शब्द करना, सस्वर पाठ करना
  • स्बृ—भ्वा॰ पर॰ —-—-—प्रशंसा करना
  • स्बृ—भ्वा॰ पर॰ —-—-—पीडा देना या पीडित होना
  • स्बृ—भ्वा॰ पर॰ —-—-—जाना
  • स्म—अव्य॰—-—स्मि + ड—एक प्रकार का निपात जो वर्तमान काल की क्रियाओं के साथ जुड़कर भूतकाल का अर्थ देता हैं
  • स्म—अव्य॰—-—स्मि + ड—शब्दाधिक्य निपात (बहुधा निषेधात्मक- निपात के साथ जोड़ा जाता है - भर्तुर्विप्रकृतापि रोषणतया मा स्म प्रतीपं गमः @ श॰ ४।१७, मा स्म सीमन्तिनी काचिज्जनयेत्पुत्रमीदृशम् @ हि॰ २।७
  • स्मयः—पुं॰—-—स्मि + अच्—आश्चर्य, अचंभा, ताज्जुब
  • स्मयः—पुं॰—-—स्मि + अच्—अभिमान, घमंड, हेकड़पना, गर्व
  • स्मरः—पुं॰—-—स्मृ भावे अप्—प्रत्यास्मरण, याद
  • स्मरः—पुं॰—-—स्मृ भावे अप्—प्रेम
  • स्मरः—पुं॰—-—स्मृ भावे अप्—कामदेव, प्रेम का देवता
  • स्मराङ्कुशः—पुं॰—स्मरः-अङ्कुशः—-—अंगुली का नाखून
  • स्मराङ्कुशः—पुं॰—स्मरः-अङ्कुशः—-—प्रेमी, कामातुर व्यक्ति
  • स्मरागारम्—नपुं॰—स्मरः-आगारम्—-—स्त्री की योनि, भग
  • स्मरकूपकः—पुं॰—स्मरः-कूपकः—-—स्त्री की योनि, भग
  • स्मरगृहम्—नपुं॰—स्मरः-गृहम्—-—स्त्री की योनि, भग
  • स्मरमन्दिरम्—नपुं॰—स्मरः-मन्दिरम्—-—स्त्री की योनि, भग
  • स्मरान्ध—वि॰—स्मरः-अन्ध—-—कामांध, प्रेममुग्ध
  • स्मरातुर—वि॰—स्मरः-आतुर—-—काम से पीडित, कामतप्त, कामदग्ध
  • स्मरार्त—वि॰—स्मरः-आर्त—-—काम से पीडित, कामतप्त, कामदग्ध
  • स्मरोत्सुक—वि॰—स्मरः-उत्सुक—-—काम से पीडित, कामतप्त, कामदग्ध
  • स्मरासवः—पुं॰—स्मरः-आसवः—-—लार
  • स्मरकर्मन्—नपुं॰—स्मरः-कर्मन्—-—कोई भी कामुकतापूर्ण व्यवहार, स्वैरकृत्य
  • स्मरगुरुः—पुं॰—स्मरः-गुरुः—-—विष्णु का विशेषण
  • स्मरच्छत्रम्—नपुं॰—स्मरः-छत्रम्—-—भगशिश्निका
  • स्मरदशा—स्त्री॰—स्मरः-दशा—-—शरीर की कामजन्य अवस्था
  • स्मरध्वजः—पुं॰—स्मरः-ध्वजः—-—पुरुषेन्द्रिय
  • स्मरध्वजः—पुं॰—स्मरः-ध्वजः—-—पौराणिक मछली
  • स्मरध्वजः—पुं॰—स्मरः-ध्वजः—-—एक वाद्ययंत्र
  • स्मरध्वजम्—नपुं॰—स्मरः-ध्वजम्—-—भग, चाँदनी रात
  • स्मरप्रिया—स्त्री॰—स्मरः-प्रिया—-—रति का विशेषण
  • स्मरभाषित—वि॰—स्मरः-भाषित—-—कामोद्दीप्त
  • स्मरमोहः—पुं॰—स्मरः-मोहः—-—कामजन्य संज्ञाहीनता, प्रणयोन्माद
  • स्मरलेखनी—स्त्री॰—स्मरः-लेखनी—-— सारिका पक्षी
  • स्मरवल्लभः—पुं॰—स्मरः-वल्लभः—-—बसंत ऋतु का विशेषण
  • स्मरवल्लभः—पुं॰—स्मरः-वल्लभः—-—अनिरुद्ध का विशेषण
  • स्मरवीथिका—स्त्री॰—स्मरः-वीथिका—-—वेश्या, रंडी
  • स्मरशासनः—पुं॰—स्मरः-शासनः—-—शिव का विशेषण
  • स्मरसखः—पुं॰—स्मरः-सखः—-—चन्द्रमा
  • स्मरस्तम्भः—पुं॰—स्मरः-स्तम्भः—-—शिश्न, पुरुष का लिंग
  • स्मरस्मर्यः—पुं॰—स्मरः-स्मर्यः—-—रासभ, गधा
  • स्मरहरः—पुं॰—स्मरः-हरः—-—शिव का विशेषण
  • स्मरणम्—नपुं॰—-—स्मृ + ल्युट्—स्मृति, याद, प्रत्यास्मरणम्
  • स्मरणम्—नपुं॰—-—स्मृ + ल्युट्—चिन्तन करना
  • स्मरणम्—नपुं॰—-—स्मृ + ल्युट्—स्मृति, स्मरणशक्ति
  • स्मरणम्—नपुं॰—-—स्मृ + ल्युट्—परम्परा, परंपरागत विधि
  • स्मरणम्—नपुं॰—-—स्मृ + ल्युट्—किसी देवता के नाम का मन में जाप करना
  • स्मरणम्—नपुं॰—-—स्मृ + ल्युट्—खेद से याद करना, खेद करना
  • स्मरणम्—नपुं॰—-—स्मृ + ल्युट्—काव्यगत प्रत्यास्मरण जो एक अलंकार माना जाता है
  • स्मरणानुग्रहः—पुं॰—स्मरणम्-अनुग्रहः—-—कृपापूर्वक स्मरण करना
  • स्मरणानुग्रहः—पुं॰—स्मरणम्-अनुग्रहः—-—स्मरण करने की कृपा
  • स्मरणापत्यतर्पकः—पुं॰—स्मरणम्-अपत्यतर्पकः—-—कच्छप, कछुवा
  • स्मरणायौगपद्यम्—नपुं॰—स्मरणम्-यौगपद्यम्—-—प्रत्यास्मरणों की समसामयिकता का अभाव
  • स्मरणपदवी—स्त्री॰—स्मरणम्-पदवी—-—मृत्यु
  • स्मार—वि॰—-—स्मर + अण्—कामदेवसंबंधी
  • स्मारम्—नपुं॰—-—स्मृ + घञ्—प्रत्यास्मरण, स्मरणशक्ति
  • स्मारक—वि॰—-—-—ध्यान दिलाने वाला, फिर याद कराने वाला
  • स्मारिका—स्त्री॰—-—स्मृ + णिच् + ण्वुल्, स्त्रियां टाप् इत्वं च—ध्यान दिलाने वाला, फिर याद कराने वाला
  • स्मारकम्—नपुं॰—-—-—किसी की स्मृति-रक्षा के अभिप्राय से संस्थापित कोई संस्था
  • स्मारणम्—नपुं॰—-—स्मृ + णिच् + ल्युट्—मन में लाना, याद दिलाना, स्मरण कराना
  • स्मार्त—वि॰—-—स्मृतौ विहितः, स्मृतिं वेत्त्यधीते वा अण्—स्मृतिसंबंधी, याद किया हुआ, स्मारक
  • स्मार्त—वि॰—-—स्मृतौ विहितः, स्मृतिं वेत्त्यधीते वा अण्—स्मृति के भीतर
  • स्मार्त—वि॰—-—स्मृतौ विहितः, स्मृतिं वेत्त्यधीते वा अण्—स्मृति पर आधारित, या स्मृति में अभिलिखित, धर्मशास्त्र में विहित
  • स्मार्त—वि॰—-—स्मृतौ विहितः, स्मृतिं वेत्त्यधीते वा अण्—वैध
  • स्मार्त—वि॰—-—स्मृतौ विहितः, स्मृतिं वेत्त्यधीते वा अण्—धर्मशास्त्र को मानने वाला
  • स्मार्त—वि॰—-—स्मृतौ विहितः, स्मृतिं वेत्त्यधीते वा अण्—गृह्य
  • स्मार्तः—पुं॰—-—स्मृतौ विहितः, स्मृतिं वेत्त्यधीते वा अण्—परंपराप्राप्त धर्म का विशेषज्ञ ब्राह्मण
  • स्मार्तः—पुं॰—-—स्मृतौ विहितः, स्मृतिं वेत्त्यधीते वा अण्—परंपराप्राप्त धर्म का अनुयायी
  • स्मार्तः—पुं॰—-—स्मृतौ विहितः, स्मृतिं वेत्त्यधीते वा अण्—संप्रदाय
  • स्मि—भ्वा॰ आ॰ <स्मयते> <स्मित>—-—-—मुस्कराना, हँसना
  • स्मि—भ्वा॰ आ॰ <स्मयते> <स्मित>—-—-—खिलना, फूलना
  • स्मि—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्माययति> <स्माययते>—-—-—मुस्कान पैदा करना, मुस्कराहट को जन्म देना
  • स्मि—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्माययति> <स्माययते>—-—-—हँसना, उपहास करना
  • स्मि—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्माययति> <स्माययते>—-—-—आश्चर्यान्वित करना
  • स्मि—भ्वा॰ आ॰, इच्छा॰ <सिस्मयिषते>—-—-—मुस्कराने की इच्छा करना
  • उत्स्मि—भ्वा॰ आ॰—उद्-स्मि—-—मुस्कराना, हँसना
  • विस्मि—भ्वा॰ आ॰—वि-स्मि—-—आश्चर्य करना, अचंभे में होना
  • विस्मि—भ्वा॰ आ॰—वि-स्मि—-—सराहना
  • विस्मि—भ्वा॰ आ॰—वि-स्मि—-—घमंडी, अहंमन्य होना
  • विस्मि—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—वि-स्मि—-—मुस्कान पैदा करना, आश्चर्यान्वित कराना, आश्चर्य या अचंभे से भरना
  • स्मिट्—चुरा॰ उभ॰ <स्मेटयति> <स्मेटयते>—-—-—अपमानित करना, घृणा करना, नफरत करना
  • स्मिट्—चुरा॰ उभ॰ <स्मेटयति> <स्मेटयते>—-—-—प्रेम करना
  • स्मिट्—चुरा॰ उभ॰ <स्मेटयति> <स्मेटयते>—-—-—जाना
  • स्मित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्मि + क्त—मुस्कानयुक्त, मुसकराता हुआ
  • स्मित—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्मि + क्त—फुलाया हुआ, खिला हुआ, प्रफुल्लित
  • स्मितम्—नपुं॰—-—-—मुस्कान, मंद हँसी
  • सस्मितम्—नपुं॰—-—-—मुस्कराहट के साथ, सविलक्षस्मितम् आदि
  • स्मितदृश्—वि॰—स्मित-दृश्—-—मुस्कानयुक्त दृष्टि रखने वाला
  • स्मितदृश्—स्त्री॰—स्मित-दृश्—-—सुन्दर स्त्री
  • स्मितपूर्वम्—अव्य॰—स्मित-पूर्वम्—-—मुस्कराहट के साथ, मुस्कान से युक्त
  • स्मील्—भ्वा॰ पर॰ <स्मीलति>—-—-—झपकना, आँख से संकेत करना
  • स्मृ—स्वा॰ पर॰ <स्मृणोति>—-—-—प्रसन्न होना, संतुष्ट होना
  • स्मृ—स्वा॰ पर॰ <स्मृणोति>—-—-—प्ररक्षा करना, प्रतिरक्षा करना
  • स्मृ—स्वा॰ पर॰ <स्मृणोति>—-—-—जीवित रहना
  • स्मृ—भ्वा॰ पर॰ <स्मरति> <स्मृत>, कर्मवा॰ <स्मर्यते>—-—-—याद करना, मन में रखना, प्रत्यास्मरण करना, मन में लाना, विदित होना
  • स्मृ—भ्वा॰ पर॰ <स्मरति> <स्मृत>, कर्मवा॰ <स्मर्यते>—-—-—मन में पुकारना, मन से याद करना, सोचना
  • स्मृ—भ्वा॰ पर॰ <स्मरति> <स्मृत>, कर्मवा॰ <स्मर्यते>—-—-—किसी देवता के नाम का मन में ध्यान करना या मन में जाप करना
  • स्मृ—भ्वा॰ पर॰ <स्मरति> <स्मृत>, कर्मवा॰ <स्मर्यते>—-—-—स्मृति में अंकित करना या अभिलेख करना
  • स्मृ—भ्वा॰ पर॰ <स्मरति> <स्मृत>, कर्मवा॰ <स्मर्यते>—-—-—प्रकथन करना, खयाल करना, सोचना
  • स्मृ—भ्वा॰ पर॰ <स्मरति> <स्मृत>, कर्मवा॰ <स्मर्यते>—-—-—खेद के साथ याद करना, आतुर होना, उत्कंठित होना, अभिलाषा करना
  • स्मृ—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्मारयति> <स्मारयते>—-—-—याद कराना, फिर ध्यान दिलाना, मन में लाना, सोचना
  • स्मृ—प्रेर॰ <स्मारयति> <स्मारयते>—-—-—सूचना देना
  • स्मृ—प्रेर॰ <स्मारयति> <स्मारयते>—-—-—खेद के साथ स्मरण कराना, लालायित करना, अभिलाषा पैदा करना
  • स्मृ—भ्वा॰ आ॰, इच्छा॰ <सुस्मूर्षते>—-—-—प्रत्यास्मरण करने की इच्छा करना
  • अनुस्मृ—भ्वा॰ पर॰—अनु-स्मृ—-—याद करना, प्रत्यास्मरण करना, मन में ध्यान करना
  • अपस्मृ—भ्वा॰ पर॰—अप-स्मृ—-—भूल जाना
  • प्रस्मृ—भ्वा॰ पर॰—प्र-स्मृ—-—भूल जाना
  • विस्मृ—भ्वा॰ पर॰—वि-स्मृ—-—भूल जाना
  • विस्मृ—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—वि-स्मृ—-—भुलाना
  • संस्मृ—भ्वा॰ पर॰—सम्-स्मृ—-—याद करना, चिन्तन करना
  • संस्मृ—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—सम्-स्मृ—-—ध्यान दिलाना, मन में रखना
  • स्मृतिः—स्त्री॰—-—स्मृ + क्तिन्—याद, प्रत्यास्मरण, स्मरणशक्ति
  • स्मृतिः—स्त्री॰—-—स्मृ + क्तिन्—चिन्तन करना, मन में ध्यान करना
  • स्मृतिः—स्त्री॰—-—स्मृ + क्तिन्—मानवधर्मशास्त्र, परम्परागत धर्मशास्त्र, स्मृतिग्रन्थ
  • स्मृतिः—स्त्री॰—-—स्मृ + क्तिन्—धर्मसंहिता, स्मृतिग्रन्थ
  • स्मृतिः—स्त्री॰—-—स्मृ + क्तिन्—स्मृति का मूलपाठ, धर्मसूत्र, धर्म के नियम
  • स्मृतिः—स्त्री॰—-—स्मृ + क्तिन्—इच्छा कामना
  • स्मृतिः—स्त्री॰—-—स्मृ + क्तिन्—समझ
  • स्मृत्यन्तरम्—नपुं॰—स्मृति-अन्तरम्—-—दूसरा स्मृतिग्रन्थ
  • स्मृत्यपेत—वि॰—स्मृति-अपेत—-—भूला हुआ
  • स्मृत्यपेत—वि॰—स्मृति-अपेत—-—शास्त्रविरुद्ध
  • स्मृत्यपेत—वि॰—स्मृति-अपेत—-—अवैध, अन्यायपूर्ण
  • स्मृत्युक्त—वि॰—स्मृति-उक्त—-—धर्मशास्त्र में विहित, धर्मसूत्र में प्रतिपादित
  • स्मृतिपथः—पुं॰—स्मृति-पथः—-—स्मरण शक्ति का पदार्थ
  • स्मृतिविषयः—पुं॰—स्मृति-विषयः—-—स्मरण शक्ति का पदार्थ
  • स्मृतिपथं गम्——-—-—मरना
  • स्मृतिविषयं गम्——-—-—मरना
  • स्मृतिप्रत्यवमर्षः—पुं॰—स्मृति-प्रत्यवमर्षः—-—स्मृति की धारणा शक्ति, प्रत्यास्मरण की यथार्थता
  • स्मृतिप्रबन्धः—पुं॰—स्मृति-प्रबन्धः—-—धर्मशास्त्र की कृति
  • स्मृतिभ्रंशः—पुं॰—स्मृति-भ्रंशः—-—स्मृति का नष्ट हो जाना, याद न रहना
  • स्मृतिरोधः—पुं॰—स्मृति-रोधः—-—क्षणिक विस्मरण, स्मृति का नाश
  • स्मृतिविभ्रमः—पुं॰—स्मृति-विभ्रमः—-—स्मृति की गड़बड़, स्पष्ट याद न रहना
  • स्मृतिविरुद्ध—वि॰—स्मृति-विरुद्ध—-—अवैध
  • स्मृतिविरोधः—पुं॰—स्मृति-विरोधः—-—धर्म का वैपरीत्य, अवैधता
  • स्मृतिविरोधः—पुं॰—स्मृति-विरोधः—-—दो या दो से अधिक स्मृतियों का पारस्परिक विरोध
  • स्मृतिशास्त्रम्—नपुं॰—स्मृति-शास्त्रम्—-—धर्मशास्त्र, धर्मसंहिता, धर्मसूत्र
  • स्मृतिशास्त्रम्—नपुं॰—स्मृति-शास्त्रम्—-—धार्मिक विज्ञान
  • स्मृतिशेष—वि॰—स्मृति-शेष—-—उपरत, मृत
  • स्मृतिशैथिल्यम्—नपुं॰—स्मृति-शैथिल्यम्—-—स्मरणशक्ति की दुर्बलता
  • स्मृतिसाध्य—वि॰—स्मृति-साध्य—-—धर्मशास्त्र से सिद्ध होने योग्य
  • स्मृतिहेतुः—पुं॰—स्मृति-हेतुः—-—प्रत्यास्मरण के कारण मन में पड़ी हुई छाप, विचार-साहचर्य
  • स्मेर—वि॰—-—स्मि + रन्—मुसकराने वाला
  • स्मेर—वि॰—-—स्मि + रन्—घमंडी, व्यक्त
  • स्मेरविष्किरः—पुं॰—स्मेर-विष्किरः—-—मोर
  • स्यदः—पुं॰—-—स्यन्द + क—चाल, तीव्रगति, तेजी से चलना, वेग
  • स्यन्द्—भ्वा॰ पर॰ <स्यन्दते> <स्यन्न>, इच्छा॰ <सिस्यन्दिषते> <सिस्यंत्सति> <सिस्यंत्सते>—-—-—रिसना, चूना, टपकना, बूँद बूँद गिरना, स्रवित होना, अर्क निकालना, बहना
  • स्यन्द्—भ्वा॰ पर॰ <स्यन्दते> <स्यन्न>, इच्छा॰ <सिस्यन्दिषते> <सिस्यंत्सति> <सिस्यंत्सते>—-—-—ढालना, उडेलना
  • स्यन्द्—भ्वा॰ पर॰ <स्यन्दते> <स्यन्न>, इच्छा॰ <सिस्यन्दिषते> <सिस्यंत्सति> <सिस्यंत्सते>—-—-—भागना, दौड़ना
  • अनुष्यन्द्—भ्वा॰ पर॰—अनु-स्यन्द्—-—बहना
  • अभिष्यन्द्—भ्वा॰ पर॰—अभि-स्यन्द्—-—रिसना, बहना
  • अभिष्यन्द्—भ्वा॰ पर॰—अभि-स्यन्द्—-—बारिश होना, पानी गिरना
  • अभिष्यन्द्—भ्वा॰ पर॰—अभि-स्यन्द्—-—पिघलना
  • निष्यन्द्—भ्वा॰ पर॰—नि-स्यन्द्—-—बह निकलना
  • परिष्यन्द्—भ्वा॰ पर॰—परि-स्यन्द्—-—बह निकलना
  • प्रस्यन्द्—भ्वा॰ पर॰—प्र-स्यन्द्—-—बह जाना
  • विष्यन्द्—भ्वा॰ पर॰—वि-स्यन्द्—-—बहना
  • स्यन्दः—पुं॰—-—स्यन्द भावे घञ्—बहना, टपकना
  • स्यन्दः—पुं॰—-—स्यन्द भावे घञ्—तेजी से जाना, चलना
  • स्यन्दः—पुं॰—-—स्यन्द भावे घञ्—गाड़ी, रथ
  • स्यन्दन—वि॰—-—स्यन्द् + ल्युट्—जल्दी से जाने वाला, द्रुतगामी, बहने वाला
  • स्यन्दन—वि॰—-—स्यन्द् + ल्युट्—चुस्त, फुर्तीला, शीघ्रगामी
  • स्यन्दनः—पुं॰—-—स्यन्द् + ल्युट्—युद्ध-रथ, गाड़ी या रथ
  • स्यन्दनः—पुं॰—-—स्यन्द् + ल्युट्—वायु, हवा
  • स्यन्दनः—पुं॰—-—स्यन्द् + ल्युट्—एक प्रकार का वृक्ष, तिनिश
  • स्यन्दनम्—नपुं॰—-—स्यन्द् + ल्युट्—बहना, टपकना, रिसना
  • स्यन्दनम्—नपुं॰—-—स्यन्द् + ल्युट्—तेजी से जाना, बहना
  • स्यन्दनम्—नपुं॰—-—स्यन्द् + ल्युट्—पानी
  • स्यन्दनारोहः—पुं॰—स्यन्दनम्-आरोहः—-—रथ में बैठकर युद्ध करने वाला
  • स्यन्दनिका—स्त्री॰—-—स्यन्दन + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—थूक की फुटक
  • स्यन्दिन्—वि॰—-—स्यन्द् + णिनि—रिसने वाला, बहने वाला, टपकने वाला
  • स्यन्दिन्—वि॰—-—स्यन्द् + णिनि—वेग से जाने वाला
  • स्यन्दिन्—वि॰—-—स्यन्द् + णिनि—गतिशील
  • स्यन्दिनी—स्त्री॰—-—स्यन्दिन् + ङीप्—लार, थूक
  • स्यन्दिनी—स्त्री॰—-—स्यन्दिन् + ङीप्—वह गाय जो दो बच्चों को एक साथ जन्म दे
  • स्यन्न—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्यन्द + क्त—रिसा हुआ, टपका हुआ, गिरा हुआ
  • स्यम्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <स्यमति> <स्यमयति> <स्यमयते>—-—-—शब्द करना, जोर से चिल्लाना, चीखना
  • स्यम्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <स्यमति> <स्यमयति> <स्यमयते>—-—-—जाना
  • स्यम्—भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <स्यमति> <स्यमयति> <स्यमयते>—-—-—विचार करना, विमर्श करना, चिंतन करना
  • स्यमन्तकः—पुं॰—-—स्यम् + झच् + कन्—एक मूल्यवान मणि
  • स्यमिकः —पुं॰—-—स्यम् + इकक्—बादल
  • स्यमिकः —पुं॰—-—स्यम् + इकक्—बामी
  • स्यमिकः —पुं॰—-—स्यम् + इकक्—एक प्रकार का वृक्ष
  • स्यमिकः —पुं॰—-—स्यम् + इकक्—समय
  • स्यमीकः—पुं॰—-—स्यम् + ईकक्—बादल
  • स्यमीकः—पुं॰—-—स्यम् + ईकक्—बामी
  • स्यमीकः—पुं॰—-—स्यम् + ईकक्—एक प्रकार का वृक्ष
  • स्यमीकः—पुं॰—-—स्यम् + ईकक्—समय
  • स्यमिका—स्त्री॰—-—स्यमिक + टाप्—नील
  • स्यात्—अव्य॰—-—अस् धातु का विधिलिङ् में, प्र॰ पु॰, ए॰ व॰—ऐसा हो सकता है, शायद, कदाचित्
  • स्याद्वादः—पुं॰—स्यात्-वादः—-—संभावना की उक्ति, संशयवाद
  • स्याद्वादिन्—पुं॰—स्यात्-वादिन्—-—संशयवादी, स्याद्वाद का अनुयायी
  • स्यालः—पुं॰—-—-—पत्नी का भाई, साला
  • स्यूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सिव् + क्त—सुई से सीया हुआ, नत्थी किया हुआ, बुना हुआ
  • स्यूत—भू॰ क॰ कृ॰—-—सिव् + क्त—बींधा हुआ
  • स्यूतः—पुं॰—-—-—बोरा
  • स्यूतिः—स्त्री॰—-—सिव् भावे क्तिन्—सीना, टांका लगाना
  • स्यूतिः—स्त्री॰—-—सिव् भावे क्तिन्—सुई का काम
  • स्यूतिः—स्त्री॰—-—सिव् भावे क्तिन्—थैला
  • स्यूतिः—स्त्री॰—-—सिव् भावे क्तिन्—वंशावली, कुल
  • स्यूतिः—स्त्री॰—-—सिव् भावे क्तिन्—संतति
  • स्यूनः—पुं॰—-—सिव् + नक—प्रकाश की किरण
  • स्यूनः—पुं॰—-—सिव् + नक—सूर्य
  • स्यूनः—पुं॰—-—सिव् + नक—थैला, बोरा
  • स्यूमः—पुं॰—-—सिव् + मक्—प्रकाश किरण
  • स्योतः—पुं॰—-— = स्यूत, पृषो॰ —बोरा, थैला
  • स्योन—वि॰—-— = स्यून, पृषो॰ —सुन्दर, सुखद
  • स्योन—वि॰—-— = स्यून, पृषो॰ —शुभ, मंगलप्रद
  • स्योनः—पुं॰—-—-—प्रकाश की किरण
  • स्योनः—पुं॰—-—-—सूर्य
  • स्योनः—पुं॰—-—-—बोरा
  • स्योनम्—नपुं॰—-—-—प्रसन्नता, आनन्द
  • स्रंस्—भ्वा॰ आ॰ <स्रंसते> <स्रस्त>—-—-—गिरना, नीचे गिर पड़ना
  • स्रंस्—भ्वा॰ आ॰ <स्रंसते> <स्रस्त>—-—-—डूबना, घटना, गिर कर टुकड़ें टुकड़े होना
  • स्रंस्—भ्वा॰ आ॰ <स्रंसते> <स्रस्त>—-—-—नीचे लटकना
  • स्रंस्—भ्वा॰ आ॰ <स्रंसते> <स्रस्त>—-—-—जाना
  • स्रंस्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्रंसयति> <स्रंसयते>—-—-—गिराना, खिसकना, लुढ़काना, बाधा डालना
  • स्रंस्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्रंसयति> <स्रंसयते>—-—-—शिथिल करना, ढील देना
  • विस्रंस्—भ्वा॰ आ॰—वि-स्रंस्—-—खिसकना, ढीला होना
  • विस्रंस्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—वि-स्रंस्—-—गिरना, गिरने देना
  • विस्रंस्—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰—वि-स्रंस्—-—ढीला करना, शिथिल करना
  • स्रंसः—पुं॰—-—स्रंस् + घञ्—गिरना, खिसकना
  • स्रंसनम्—नपुं॰—-—स्रंस् + णिच् ल्युट्—गिरना
  • स्रंसनम्—नपुं॰—-—स्रंस् + णिच् ल्युट्—गिराना, नीचे पटकना
  • स्रंसिन्—वि॰—-—स्रंस् + णिनि—गिरने वाला, खिसकने वाला, ढीला होने वाला, मार्ग देने वाला
  • स्रंसिन्—वि॰—-—-—निर्भर, लंबमान, ढीला लटकने वाला
  • स्रंह्—भ्वा॰ पर॰ <स्रंहते>—-—-—विश्वास करना, भरोसा करना
  • स्रग्विन्—वि॰—-—स्रज् + विनि, म॰ अ॰ <स्रजीयस्> उ॰ अ॰ <स्रजिष्ठ>—हार या गजरा पहने हुए
  • स्रज्—स्त्री॰—-—सृज्यते - सृज् + क्विन्, नि—गजरा, पुष्पमाला
  • स्रज्—स्त्री॰—-—सृज्यते - सृज् + क्विन्, नि—माला, हार
  • स्रग्दामन्—नपुं॰—स्रज्-दामन्—-—माला की ग्रन्थि या गांठ
  • स्रग्धर—वि॰—स्रज्-धर—-—मालाधारी
  • स्रग्धरा—स्त्री॰—स्रज्-धरा—-—एक छंद का नाम
  • स्रज्वा—स्त्री॰—-—सृज् + वा, नि॰—रस्सी, डोरी, सूत्र
  • स्रद्धू—स्त्री॰—-—-—अपना वायु
  • स्रम्भ्—भ्वा॰ आ॰ <स्रंभते> <स्रब्ध>—-—-—विश्वास करना
  • विस्रम्भ्—भ्वा॰ आ॰—वि-स्रम्भ्—-—विश्वस्त होना
  • विस्रम्भ्—भ्वा॰ आ॰—वि-स्रम्भ्—-—आश्वस्त होना
  • स्रवः—पुं॰—-—स्रु + अप्—चूना, रिसना, बहना
  • स्रवः—पुं॰—-—स्रु + अप्—बूँद, प्रवाह, सरिता
  • स्रवः—पुं॰—-—स्रु + अप्—फौवारा, निर्झर
  • स्रवणम्—नपुं॰—-—स्रु + ल्युट्—बहना, चूना, रिसना
  • स्रवणम्—नपुं॰—-—स्रु + ल्युट्—पसीना
  • स्रवणम्—नपुं॰—-—स्रु + ल्युट्—मूत्र
  • स्रवत्—वि॰—-—स्रु + शतृ—बहने वाला, रिसने वाला, चूने वाला
  • स्रवद्गर्भा—स्त्री॰—स्रवत्-गर्भा—-—वह स्त्री जिसका गर्भ गिर गया हो
  • स्रवद्गर्भा—स्त्री॰—स्रवत्-गर्भा—-—दुर्घटना के कारण गिरे हुए गर्भ वाली गाय
  • स्रवन्ती—स्त्री॰—-—स्रवत् + ङीप्—नदी, दरिया
  • स्रष्टृ—पुं॰—-—सृज् + तृच्—बनाने वाला
  • स्रष्टृ—पुं॰—-—सृज् + तृच्—रचने वाला
  • स्रष्टृ—पुं॰—-—सृज् + तृच्—सृष्टिरचयिता, ब्रह्मा का विशेषण
  • स्रष्टृ—पुं॰—-—सृज् + तृच्—शिव का नाम
  • स्रस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्रंस् + क्त—गिरा हुआ, खिसका हुआ, नीचे पड़ा हुआ
  • स्रस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्रंस् + क्त—लुढ़का हुआ, नीचे लटकता हुआ
  • स्रस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्रंस् + क्त—ढीला किया हुआ
  • स्रस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्रंस् + क्त—च्युत, ढीला पड़ा हुआ
  • स्रस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्रंस् + क्त—लंब, नीचे लटकता हुआ
  • स्रस्त—भू॰ क॰ कृ॰—-—स्रंस् + क्त—अलग किया हुआ
  • स्रस्ताङ्ग—वि॰—स्रस्त-अङ्ग—-—ढीले अंगों वाला
  • स्रस्ताङ्ग—वि॰—स्रस्त-अङ्ग—-—मूर्छित, बेहोश
  • स्रस्तरः—पुं॰—-—स्रंस् + तरच्, कित्वान्नलोपः—पलंग या सोफा, बिछौना
  • स्राक्—अव्य॰—-—स्रु + डाक्—फुर्ती से, तेजी से
  • स्रावः—पुं॰—-—स्रु + घञ्—प्रवाह, बहाव, रिसना, बूँद बूँद टपकना
  • स्रावक—वि॰—-—स्रु + ण्वुल्—बहाने वाला, उडेलने वाला, रिस कर बहने वाला
  • स्रावकम्—नपुं॰—-—-—काली मिर्च
  • स्रिभ्—भ्वा॰ पर॰ <स्रेभति>—-—-—चोट पहुँचाना, मार डालना
  • स्रिम्भ्—भ्वा॰ पर॰ <स्रीम्भति>—-—-—चोट पहुँचाना, मार डालना
  • स्रिव्—दिवा॰ पर॰ <स्रीव्यति> <स्रुत>—-—-—जाना
  • स्रिव्—दिवा॰ पर॰ <स्रीव्यति> <स्रुत>—-—-—सूख जाना
  • स्रु—भ्वा॰ पर॰ <स्रवति> <स्रुत>—-—-—बहना, धारा निकलना, चूना, रिसना, बूँद बूँद करके गिरना, टपकना
  • स्रु—भ्वा॰ पर॰ <स्रवति>, <स्रुत>—-—-—उडेलना, डालना, बहने देना
  • स्रु—भ्वा॰ पर॰ <स्रवति>, <स्रुत>—-—-—जाना, हिलना-डुलना
  • स्रु—भ्वा॰ पर॰ <स्रवति>, <स्रुत>—-—-—चूना, खिसक जाना, छीजना, नष्ट होना, कुछ फल न निकलना
  • स्रु—भ्वा॰ पर॰ <स्रवति>, <स्रुत>—-—-—इधर उधर फैलाना, सब दिशाओं में पहुँचाना, प्रकट हो जाना
  • स्रु—भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <स्रावयति>, <स्रावयते>—-—-—बहाना, उडेलना, डालना, बखेरना
  • स्रुघ्नः—पुं॰—-—-—एक जनपद या जिले का नाम
  • स्रुघ्नी—स्त्री॰—-—स्रुघ्न + अच् + ङीष्—सज्जी, रेह
  • स्रुच्—स्त्री॰—-—स्रु + क्विप्, चिट् आगमः—लकड़ी का बना एक प्रकार का चमचा जिसके द्वारा यज्ञाग्नि में घी की आहुति दी जाती है, स्रुवा
  • स्रुक्प्रणालिका—स्त्री॰—स्रुच्-प्रणालिका—-—चमचे की पनाली
  • स्रुत्—वि॰—-—स्रु + क्विप्, तुक्—बहने वाला, गिरने वाला, उडलने वाला
  • स्रुतिः—स्त्री॰—-—स्रु + क्तिन्—बहना, रिसना, अर्क निकालना, टपकना, चूना
  • स्रुतिः—स्त्री॰—-—स्रु + क्तिन्—रसस्रवण, राल
  • स्रुतिः—स्त्री॰—-—स्रु + क्तिन्—धारा
  • स्रुवः —पुं॰—-—स्रु + क—यज्ञ का चमचा
  • स्रुवः —पुं॰—-—स्रु + क—निर्झर, झरना या प्रपातिका
  • स्रुवा—स्त्री॰—-—स्रु + क, स्त्रियां टाप् च—यज्ञ का चमचा
  • स्रुवा—स्त्री॰—-—स्रु + क, स्त्रियां टाप् च—निर्झर, झरना या प्रपातिका
  • स्रेक्—भ्वा॰ आ॰—-—-—जाना, गतिशील होना
  • स्रै—भ्वा॰ पर॰ <स्रायति>—-—-—उबालना
  • स्रै—भ्वा॰ पर॰ <स्रायति>—-—-—पसीना आना
  • स्रोतम्—नपुं॰—-—स्रु + तन्—धारा, सरिता
  • स्रोतस्—नपुं॰—-—स्रु + तसि—सरिता, धारा, प्रवाह, जलप्रवाह
  • स्रोतस्—नपुं॰—-—स्रु + तसि—धार, प्रवाहिणी
  • स्रोतस्—नपुं॰—-—स्रु + तसि—सरिता, नदी
  • स्रोतस्—नपुं॰—-—स्रु + तसि—लहर
  • स्रोतस्—नपुं॰—-—स्रु + तसि—जल
  • स्रोतस्—नपुं॰—-—स्रु + तसि—शरीरस्थ पोषण-नलिका
  • स्रोतस्—नपुं॰—-—स्रु + तसि—ज्ञानेन्द्रिय
  • स्रोतस्—नपुं॰—-—स्रु + तसि—हाथी की सूंड
  • स्रोतोञ्जनम्—नपुं॰—स्रोतस्-अञ्जनम्—-—सुरमा
  • स्रोतईशः—पुं॰—स्रोतस्-ईशः—-—सागर
  • स्रोतोरन्ध्रम्—नपुं॰—स्रोतस्-रन्ध्रम्—-—हाथी की सूंड का छिद्र, नथुना
  • स्रोतोवहा—स्त्री॰—स्रोतस्-वहा—-—नदी
  • स्रोतस्यः—पुं॰—-—स्रोतस् + यत्—शिव का नाम
  • स्रोतस्यः—पुं॰—-—स्रोतस् + यत्—चोर
  • स्रोतस्वती <o> स्रोतस्विनी—स्त्री॰—-—स्रोतस् + मतुप् + (विनि) + ङीष्, वत्वम्—नदी