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"काहू": अवतरणों में अंतर

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=== शब्दसागर ===
=== शब्दसागर ===
काहू ^१ सर्व॰ [हिं॰ का+ ह (प्रत्य॰)] किसी । उ॰—(क) जो काहू की देखहिं विपती ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) धार लगै तरवार लगै पर काहू कीकाहू सों आँखि लगे ना (शब्द॰) । विशेष—ब्रजभाषा के 'को' शब्द का विभक्ति लगने के पहले 'का' रूप हो जाता है । इसी 'का' में निश्यार्थक 'हू' विभक्ति के पहले लग जाता है, जैसे, काहू ने, काहू को, काहू सों आदि ।
काहू ^१ सर्व॰ [हिं॰ का+ ह (प्रत्य॰)
* किसी को।
किसी । उ॰—(क) जो काहू की देखहिं विपती ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) धार लगै तरवार लगै पर काहू कीकाहू सों आँखि लगे ना (शब्द॰) । विशेष—ब्रजभाषा के 'को' शब्द का विभक्ति लगने के पहले 'का' रूप हो जाता है । इसी 'का' में निश्यार्थक 'हू' विभक्ति के पहले लग जाता है, जैसे, काहू ने, काहू को, काहू सों आदि ।


काहू ^२ संज्ञा पुं॰ [फा॰] गोभी की तरह का एक पौधा जिसकी पत्तियाँ लंबी, दलदार और मुलायम होती हैं ।
काहू ^२ संज्ञा पुं॰ [फा॰] गोभी की तरह का एक पौधा जिसकी पत्तियाँ लंबी, दलदार और मुलायम होती हैं ।

१२:१७, ७ नवम्बर २०२४ का अवतरण


प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

काहू ^१ सर्व॰ [हिं॰ का+ ह (प्रत्य॰)

  • किसी को।

किसी । उ॰—(क) जो काहू की देखहिं विपती ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) धार लगै तरवार लगै पर काहू कीकाहू सों आँखि लगे ना (शब्द॰) । विशेष—ब्रजभाषा के 'को' शब्द का विभक्ति लगने के पहले 'का' रूप हो जाता है । इसी 'का' में निश्यार्थक 'हू' विभक्ति के पहले लग जाता है, जैसे, काहू ने, काहू को, काहू सों आदि ।

काहू ^२ संज्ञा पुं॰ [फा॰] गोभी की तरह का एक पौधा जिसकी पत्तियाँ लंबी, दलदार और मुलायम होती हैं ।